The Noble Qur'an Encyclopedia
Towards providing reliable exegeses and translations of the meanings of the Noble Qur'an in the world languagesThe Coalition [Al-Ahzab] - Hindi Translation
Surah The Coalition [Al-Ahzab] Ayah 73 Location Maccah Number 33
ऐ नबी! अल्लाह से डरें, और काफ़िरों तथा मुनाफ़िक़ों का कहना न मानें। निश्चय अल्लाह सब कुछ जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है।[1]
तथा उसका अनुसरण करें, जो आपके पालनहार की तरफ से आपकी ओर वह़्य की जा रही है। निश्चय अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखने वाला है, जो तुम कर रहे हो।
और अल्लाह पर भरोसा रखें तथा अल्लाह संरक्षक के रूप में काफ़ी है।
अल्लाह ने किसी व्यक्ति के लिए उसके सीने में दो दिल नहीं बनाए, और न उसने तुम्हारी उन पत्नियों को जिनसे तुम ज़िहार करते हो, तुम्हारी माएँ बनाया है, और न तुम्हारे मुँह बोले बेटों को तुम्हारे बेटे बनाया है। यह तो तुम्हारा अपने मुँह से कहना है और अल्लाह सच कहता है तथा वही सीधी राह दिखाता है।[2]
उन्हें उनके बापों की ओर मनसूब करके पुकारो। यह अल्लाह के निकट अधिक न्याय की बात है और यदि तुम उनके बापों को न जानो, तो वे तुम्हारे धार्मिक भाई तथा तुम्हारे मित्र हैं। और तुमपर उसमें कोई दोष नहीं है, जो ग़लती से हो जाए, लेकिन (उसमें दोष है) जो दिल के इरादे से करो। तथा अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, अति दयावान् है।
यह नबी[3] ईमान वालों पर उनके अपने प्राणों से अधिक हक़ रखने वाले हैं। और नबी की पत्नियाँ उनकी माताएँ[4] हैं। और रिश्तेदार, अल्लाह की किताब के अनुसार, (अन्य) ईमान वालों और मुहाजिरों से एक-दूसरे के अधिक हक़दार[5] हैं। सिवाय इसके कि तुम अपने मित्रों के साथ कोई भलाई करो। यह पुस्तक में लिखा हुआ है।
तथा (याद करो) जब हमने नबियों से उनका वचन[6] लिया। तथा (विशेष रूप से) आपसे और नूह और इबराहीम और मूसा और मरयम के पुत्र ईसा से। और हमने उनसे दृढ़ वचन लिया।
ताकि वह सच्चे लोगों से उनकी सच्चाई के बारे में पूछे[7] तथा उसने काफ़िरों के लिए दर्दनाक यातना तैयार कर रखी है।
ऐ ईमान वालो! अपने ऊपर अल्लाह के उपकार को याद करो, जब सेनाएँ तुमपर चढ़ आईं, तो हमने उनपर आँधी भेज दी और ऐसी सेनाएँ, जिन्हें तुमने नहीं देखा। और जो कुछ तुम कर रहे थे, अल्लाह उसे खूब देखने वाला था।
जब वे तुमपर, तुम्हारे ऊपर से तथा तुम्हारे नीचे से चढ़ आए, तथा जब आँखें फिर गईं, और दिल गले तक पहुँच गए, तथा तुम अल्लाह के बारे में तरह-तरह के गुमान करने लगे।[8]
इस जगह ईमान वाले आज़माए गए और वे पूर्ण रूप से झंझोड़ दिए गए।
और जब मुनाफ़िक़ और वे लोग जिनके दिलों में रोग है, कह रहे थे : अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे जो वादा किया था, वह मात्र धोखा था।
और जब उनके एक गिरोह ने कहा : ऐ यसरिब[9] वालो! तुम्हारे लिए ठहरने का कोई अवसर नहीं है। अतः लौट[10] चलो। तथा उनमें से एक गिरोह नबी से (वापसी की) अनुमति माँगता था। वे कहते थे : हमारे घर असुरक्षित हैं। हालाँकि वे असुरक्षित नहीं हैं। वे तो केवल भागना चाहते हैं।
और यदि उनपर उस (मदीने) की चारों ओर से सेनाएँ दाखिल की जातीं, फिर उनसे फितने[11] का अह्वान किया जाता, तो वे निश्चित रूप से ऐसा कर डालते और उसमें केवल थोड़ा ही संकोच करते।
जबकि उन्होंने इससे पूर्व अल्लाह से प्रतिज्ञा की थी कि वे पीठ नहीं फेरेंगे। और अल्लाह से की गई प्रतिज्ञा के बारे में तो पूछा ही जाएगा।
आप कह दें : यदि तुम मौत से या क़त्ल होने से भागते हो, तो भागना तुम्हें कदापि लाभ नहीं देगा। और उस समय तुम्हें (जीवन का) बहुत थोड़ा[12] लाभ दिया जाएगा ।
आप कह दीजिए : वह कौन है, जो तुम्हें अल्लाह से बचाएगा, यदि वह तुम्हारे साथ कोई बुराई चाहे अथवा तुम पर कोई दया करना चाहे? और वे अपने लिए अल्लाह के सिवा न कोई संरक्षक पाएँगे और न कोई सहायक।
निश्चय अल्लाह तुम में से उन लोगों को भली-भाँति जानता है, जो (जिहाद से) रोकने वाले हैं और जो अपने भाइयों से कहते हैं कि हमारे पास चले आओ और वे युद्ध में बहुत कम आते हैं।
वे तुम्हारे बारे में बड़े कंजूस हैं। फिर जब भय[13] का समय आ जाए, तो आप उन्हें देखेंगे कि वे आपकी ओर ऐसे देखते हैं कि उनकी आँखें उस व्यक्ति की तरह घूमती हैं, जिसपर मौत की बेहोशी छा रही हो। फिर जब भय दूर हो जाए, तो तुम्हें तेज़ ज़बानों[14] के साथ कष्ट पहुँचाएँगे, इस हाल में कि धन के बहुत लोभी हैं। ये लोग ईमान लाए ही नहीं हैं। इसलिए अल्लाह ने उनके कार्यों को व्यर्थ कर दिया। तथा यह अल्लाह पर अति सरल है।
वे समझते हैं कि सैन्य दल (अभी) नहीं गए[15] हैं। और यदि सेनाएँ (दोबारा) आ जाएँ, तो वे चाहेंगे कि काश! वे देहातियों के साथ देहातों में चले जाते और (वहीं से) तुम्हारे समाचार मालूम करते रहते। और अगर वे तुम्हारे साथ होते भी, तो युद्ध में कम ही भाग लेते।
निःसंदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम[16] आदर्श है। उसके लिए, जो अल्लाह और अंतिम दिन की आशा रखता हो, तथा अल्लाह को अत्यधिक याद करता हो।
और जब ईमान वालों ने सेनाएँ देखीं, तो पुकार उठे : यह वही चीज़ है, जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था और अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहा। और इस चीज़ ने उनके ईमान तथा आज्ञापालन को और बढ़ा दिया।
ईमान वालों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अल्लाह से जो प्रतिज्ञा की थी, उसे सच कर दिखाया। फिर उनमें से कुछ तो अपना प्रण[17] पूरा कर चुके, और उनमें से कुछ लोग (अभी) प्रतीक्षा कर रहे हैं। और उन्होंने (अपनी प्रतिज्ञा में) तनिक भी परिवर्तन नहीं किया।
ताकि अल्लाह सच्चे लोगों को उनके सच का बदला प्रदान करे, और मुनाफ़िक़ों को, यदि चाहे तो यातना दे या उनकी तौबा क़बूल कर ले। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
तथा अल्लाह ने काफ़िरों को (मदीना से) उनके क्रोध सहित लौटा दिया, उन्होंने कोई भलाई प्राप्त न की। और अल्लाह ईमान वालों को लड़ाई से काफी हो गया। और अल्लाह बड़ा शक्तिशाली, अत्यंत प्रभुत्वशाली है।
और अल्लाह ने उन किताब वालों को, जिन्होंने उन (काफ़िरों) की सहायता की थी, उनके क़िलों से उतार दिया तथा उनके दिलों में भय[18] डाल दिया। तुम उनके एक समूह को क़त्ल करते थे और एक समूह को बंदी बनाते थे।
और तुम्हें उनकी भूमि तथा उनके घरों और उनके धनों का वारिस बना दिया और उस भूमि का भी जिसपर तुमने क़दम नहीं रखा। और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
ऐ नबी! आप अपनी पत्नियों से कह दें कि यदि तुम सांसारिक जीवन और उसकी शोभा चाहती हो, तो आओ, मैं तुम्हें कुछ सामान दे दूँ और अच्छे तरीक़े से रुख़्सत कर दूँ।
और यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल तथा आख़िरत के घर को चाहती हो, तो अल्लाह ने तुममें से अच्छे कार्य करने वालियों के लिए बहुत बड़ा बदला[19] तैयार कर रखा है।
ऐ नबी की पत्नियो! तुममें से जो खुला दुराचार करेगी, उसे दुगनी यातना दी जाएगी। और यह अल्लाह पर अति सरल है।
तथा तुममें से जो अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करेगी और सत्कर्म करेगी, हम उसे उसका दोहरा प्रतिफल प्रदान करेंगे, और हमने उसके लिए सम्मानजनक जीविका[20] तैयार कर रखी है।
ऐ नबी की पत्नियो! तुम अन्य स्त्रियों के समान नहीं हो। यदि तुम अल्लाह से डरती हो, तो कोमल भाव से बात न करो कि वह व्यक्ति लोभ करने लगे, जिसके दिल में रोग हो। और सभ्य बात बोलो।
और अपने घरों में ठहरी रहो, और विगत अज्ञानता के युग की तरह श्रृंगार का प्रदर्शन न करो, तथा नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो तथा अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो। ऐ नबी की घर वालियो! अल्लाह चाहता है कि तुमसे मलिनता को दूर कर दे और तुम्हें पूर्ण रूप से पवित्र कर दे।
तथा तुम्हारे घरों में जो अल्लाह की आयतें और हिकमत[21] पढ़ी जाती हैं, उन्हें याद रखो। निःसंदेह अल्लाह सूक्ष्मदर्शी, हर चीज़ की खबर रखनेवाला है।
निःसंदेह मुसलमान पुरुष और मुसलमान स्त्रियाँ, ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली स्त्रियाँ, आज्ञाकारी पुरुष और आज्ञाकारिणी स्त्रियाँ, सच्चे पुरुष और सच्ची स्त्रियाँ, धैर्यवान पुरुष और धैर्यवान स्त्रियाँ, विनम्रता दिखाने वाले पुरुष और विनम्रता दिखाने वाली स्त्रियाँ, सदक़ा (दान) देने वाले पुरुष और सदक़ा देने वाली स्त्रियाँ, रोज़ा रखने वाले पुरुष और रोज़ा रखने वाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले पुरुष और रक्षा करने वाली स्त्रियाँ तथा अल्लाह को अत्यधिक याद करने वाले पुरुष और याद करने वाली स्त्रियाँ, अल्लाह ने इनके लिए क्षमा तथा महान प्रतिफल तैयार कर रखा है।[22]
तथा किसी ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली स्त्री को यह अधिकार नहीं कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का निर्णय कर दें, तो उनके लिए अपने मामले में कोई अख़्तियार बाक़ी रहे। और जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे, वह खुली गुमराही में पड़ गया।[23]
तथा (ऐ नबी!) आप (वह समय याद करें) जब आप उस व्यक्ति से, जिसपर अल्लाह ने उपकार किया तथा जिसपर आपने (भी) उपकार किया था, कह रहे थे : अपनी पत्नी को अपने पास रोके रखो तथा अल्लाह से डरो। और आप अपने मन में वह बात छिपा रहे थे, जिसे अल्लाह प्रकट करने वाला[24] था। तथा आप लोगों से डर रहे थे, हालाँकि अल्लाह अधिक योग्य है कि आप उससे डरें। फिर जब ज़ैद ने उस (स्त्री) से अपनी आवश्यकता पूरी कर ली, तो हमने आपसे उसका विवाह कर दिया, ताकि ईमान वालों पर अपने मुँह बोले (लेपालक) बेटों की पत्नियों के विषय[25] में कोई तंगी न रहे, जब वे उनसे अपनी आवश्यकता पूरी कर लें। तथा अल्लाह का आदेश तो पूरा होकर ही रहता है।
नबी पर उस कार्य में कोई तंगी (पाप) नहीं है, जो अल्लाह ने उसके लिए निर्धारित किया है।[26] अल्लाह का यही नियम रहा है उन लोगों के बारे में भी जो पहले गुज़र चुके हैं। तथा अल्लाह का आदेश एक निश्चित निर्णय होता है।
जो अल्लाह के संदेश पहुँचाते हैं तथा उससे डरते हैं और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते, और अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।
मुहम्मद तुम्हारे पुरुषों में से किसी के पिता[27] नहीं हैं। बल्कि वह अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक[28] हैं। और अल्लाह प्रत्येक वस्तु को भली-भाँति जानने वाला है।
ऐ ईमान वालो! अल्लाह को बहुलता से याद करो।[29]
तथा सुबह व शाम उसकी पवित्रता बयान करो।
वही है, जो तुमपर दया अवतरित करता है और उसके फ़रिश्ते भी (तुम्हारे लिए प्रार्थना करते हैं), ताकि वह तुम्हें अँधेरों से निकाल कर प्रकाश[30] की ओर लाए। तथा वह ईमान वालों पर बहुत दयालु है।
जिस दिन वे अपने पालनहार से मिलेंगे, उनका अभिवादन सलाम होगा। और उसने उनके लिए सम्मानजनका प्रतिफल तैयार कर रखा है।
ऐ नबी! हमने आपको गवाही[31] देने वाला, शुभ सूचना देने वाला[32] और डराने वाला[33] बनाकर भेजा है।
तथा अल्लाह की अनुमति से उसकी ओर बुलाने वाला और एक प्रकाशमान दीप (बनाकर भेजा है)।[34]
तथा आप ईमान वालों को शुभ सूचना दे दें कि उनके लिए अल्लाह की ओर से बड़ा अनुग्रह है।
तथा आप काफ़िरों और मुनाफ़िकों की बात न मानें, तथा उनके कष्ट पहुँचाने की परवाह न करें, और अल्लाह ही पर भरोसा रखें, तथा अल्लाह काम बनाने के लिए काफ़ी है।
ऐ ईमान वालो! जब तुम ईमान वाली स्त्रियों से विवाह करो, फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो, तो तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत[35] नहीं, जिसकी तुम गिनती करो। अतः तुम उन्हें कुछ सामान दे दो और उन्हें भलाई के साथ विदा कर दो।
ऐ नबी! निःसंदेह हमने आपके लिए आपकी वे पत्नियाँ हलाल (वैध) कर दी हैं, जिन्हें आपने उनका महर चुका दिया है, तथा वे लौंडियाँ (भी) जो आपके स्वामित्व में हैं, उन लौंडियों में से जो अल्लाह ने ग़नीमत के धन से आपको[36] प्रदान की हैं। तथा आपके चाचा की बेटियाँ, आपकी फूफियों की बेटियाँ, आपके मामा की बेटियाँ और आपकी मौसियों की बेटियाँ, जिन्होंने आपके साथ हिजरत की है। तथा वह ईमान वाली महिला भी, जो स्वयं को नबी के लिए दान कर दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहे। यह विशेष रूप से आपके लिए है, अन्य ईमान वालों के लिए नहीं। निश्चय ही हम जानते हैं जो कुछ हमने उनपर उनकी पत्नियों तथा उनके स्वामित्व में आई हुई दासियों के संबंध[37] में फ़र्ज़ किया है; ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयालु है।
आप अपनी पत्नियों में से जिसे चाहें (उसकी बारी) स्थगित कर दें, और जिसे चाहें अपने साथ रखें, और जिन्हें आपने अलग रखा है, उनमें से जिसकी भी आप (अपने पास रखने की) इच्छा करें, तो इसमें आपपर कोई दोष नहीं है। यह इस बात के अधिक निकट है कि उनकी आँखें ठंडी रहें और वे शोकाकुल न हों, तथा जो कुछ आप उन्हें दें, उससे वे सब संतुष्ट रहें। और जो कुछ तुम्हारे दिलों[38] में है, अल्लाह उससे अवगत है। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, बहुत सहनशील[39] है।
(ऐ नबी!) इसके पश्चात् आपके लिए अन्य स्त्रियाँ हलाल (वैध) नहीं हैं, और न यह कि आप उन्हें दूसरी पत्नियों से बदलें[40], यद्यपि उनका सौंदर्य आपको भा जाए, सिवाय उन दासियों के जो आपके स्वामित्व में आ जाएँ। तथा अल्लाह प्रत्येक वस्तु का निरीक्षक है।
ऐ ईमान वालो! नबी के घरों में प्रवेश न करो, सिवाय इसके कि तुम्हें भोजन के लिए अनुमति दी जाए। परंतु भोजन पकने की प्रतीक्षा में (देर तक बैठे) न रहो। बल्कि जब बुलाए जाओ, तो प्रवेश करो। फिर जब भोजन कर लो, तो निकल जाओ। बातों में न लगे रहो। निश्चय ही इससे नबी को कष्ट पहुँचता है। लेकिन उन्हें तुमसे (बाहर जाने को कहने में) शर्म आती है। किंतु अल्लाह सत्य बात से नहीं शरमाता।[41] तथा जब तुम नबी की पत्नियों से कुछ माँगो, तो पर्दे के पीछे से माँगो। यह तुम्हारे दिलों तथा उनके दिलों के लिए अधिक पवित्रता का कारण है। और तुम्हारे लिए यह उचित नहीं है कि तुम अल्लाह के रसूल को कष्ट पहुँचाओ, और न यह कि तुम उनके पश्चात् कभी उनकी पत्नियों से विवाह करो। निःसंदेह यह अल्लाह के निकट बहुत बड़ा (पाप) है।
यदि तुम किसी चीज़ को प्रकट करो अथवा उसे गुप्त रखो, अल्लाह प्रत्येक वस्तु को अच्छी तरह जानता है।
स्त्रियों पर अपने पिताओं, अपने बेटों, अपने भाइयों, अपने भाइयों के बेटों (भतीजों), अपनी बहनों के बेटों (भांजों), अपनी (मेल-जोल की) स्त्रियों और उन (दासों एवं दासियों) से, जो उनके स्वामित्व में हैं, पर्दा न करने में कोई पाप नहीं है। और (ऐ स्त्रियो) तुम अल्लाह से डरती रहो। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक चीज़ का साक्षी है।
निःसंदेह अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते नबी पर दुरूद[42] भेजते हैं। ऐ ईमान वालो! तुम (भी) उनपर दुरूद तथा बहुत सलाम भेजा करो।
निःसंदेह जो लोग अल्लाह तथा उसके रसूल को कष्ट पहुँचाते हैं, अल्लाह ने उन्हें दुनिया एवं आखिरत में धिक्कार दिया है और उनके लिए अपमानकारी यातना तैयार की है।
और जो लोग ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों को कष्ट पहुँचाते हैं, बिना इसके कि उन्होंने कुछ (अपराध) किया हो, तो उन्होंने मिथ्यारोपण और स्पष्ट पाप का बोझ उठाया।
ऐ नबी! अपनी पत्नियों, अपनी बेटियों और ईमान वाले लोगों की स्त्रियों से कह दें कि वे अपने ऊपर अपनी चादरें डाल लिया करें। यह इसके अधिक निकट है कि वे पहचान ली जाएँ, फिर उन्हें कष्ट न पहुँचाया[43] जाए। और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
यदि मुनाफ़िक़[44] तथा वे लोग जिनके दिलों में रोग है और मदीना में अफ़वाह फैलाने वाले बाज़ नहीं आए, तो हम आपको उनके पीछे लगा देंगे। फिर वे आपके साथ उसमें थोड़े ही समय के लिए रह सकेंगे।
वे धिक्कारे हुए हैं। जहाँ भी वे पाए जाएँ, पकड़ लिए जाएँगे तथा बुरी तरह वध कर दिए जाएँगे।
यही अल्लाह का नियम रहा है उन लोगों के विषय में, जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं, तथा आप अल्लाह के नियम में कदापि कोई परिवर्तन नहीं पाएँगे।
(ऐ रसूल!) लोग[45] आपसे क़ियामत के विषय में पूछते हैं। आप कह दें कि उसका ज्ञान तो मात्र अल्लाह ही के पास है। और आपको क्या मालूम शायद क़ियामत निकट ही हो?
निःसंदेह अल्लाह ने काफ़िरों को धिक्कार दिया है और उनके लिए भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है।
वे उसमें सदैव रहेंगे। वे न कोई दोस्त पाएँगे और न कोई सहायक।
जिस दिन उनके चेहरे आग में उलटे-पलटे जाएँगे, तो वे कहेंगे : ऐ काश, हमने अल्लाह का आज्ञापालन किया होता और हमने रसूल का आज्ञापालन किया होता।
तथा वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! हमने अपने सरदारों और बड़े लोगों का कहा माना, तो उन्होंने हमें सीधे रास्ते से भटका दिया।
ऐ हमारे पालनहार! उन्हें दोहरी यातना दे और उनपर बड़ी धिक्कार कर।
ऐ ईमान वालो! उन लोगों के समान न हो जाओ, जिन्होंने मूसा को कष्ट पहुँचाया, तो अल्लाह ने उन्हें उनकी कही हुई बातों से बरी[46] कर दिया, और वह अल्लाह के यहाँ प्रतिष्ठावान थे।
ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो तथा सही और सच्ची बात कहो।
वह तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्मों को सुधार देगा, तथा तुम्हारे पापों को क्षमा कर देगा और जो अल्लाह तथा उसके रसूल का आज्ञापालन करे, उसने बड़ी सफलता प्राप्त कर ली।
हमने अमानत[47] को आकाशों और धरती तथा पर्वतों के समक्ष प्रस्तुत किया, लेकिन उन सबने उसका भार उठाने से इनकार कर दिया और वे उससे डर गए। परंतु इनसान ने उसे उठा लिया। निःसंदेह वह बड़ा ही अत्याचारी[48] औ बहुत अज्ञानी है।
ताकि अल्लाह मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियों और मुश्रिक पुरुषों तथा मुश्रिक स्त्रियों को यातना दे, तथा अल्लाह ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों की तौबा क़बूल करे। और अल्लाह अति क्षमाशील, बड़ा दयावान् है।