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Surah The Story [Al-Qasas] in Hindi

Surah The Story [Al-Qasas] Ayah 88 Location Maccah Number 28

طسٓمٓ ﴿١﴾

ता सीन मीम

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ता॰ सीन॰ मीम॰

تِلْكَ ءَايَٰتُ ٱلْكِتَٰبِ ٱلْمُبِينِ ﴿٢﴾

(ऐ रसूल) ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

(जो आयतें अवतरित हो रही है) वे स्पष्ट। किताब की आयतें हैं

نَتْلُوا۟ عَلَيْكَ مِن نَّبَإِ مُوسَىٰ وَفِرْعَوْنَ بِٱلْحَقِّ لِقَوْمٍۢ يُؤْمِنُونَ ﴿٣﴾

(जिसमें) हम तुम्हारें सामने मूसा और फिरऔन का वाक़िया ईमानदार लोगों के नफ़े के वास्ते ठीक ठीक बयान करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हम उन्हें मूसा और फ़िरऔन का कुछ वृत्तान्त ठीक-ठीक सुनाते है, उन लोगों के लिए जो ईमान लाना चाहें

إِنَّ فِرْعَوْنَ عَلَا فِى ٱلْأَرْضِ وَجَعَلَ أَهْلَهَا شِيَعًۭا يَسْتَضْعِفُ طَآئِفَةًۭ مِّنْهُمْ يُذَبِّحُ أَبْنَآءَهُمْ وَيَسْتَحْىِۦ نِسَآءَهُمْ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلْمُفْسِدِينَ ﴿٤﴾

बेशक फिरऔन ने (मिस्र की) सरज़मीन में बहुत सर उठाया था और उसने वहाँ के रहने वालों को कई गिरोह कर दिया था उनमें से एक गिरोह (बनी इसराइल) को आजिज़ कर रखा थ कि उनके बेटों को ज़बाह करवा देता था और उनकी औरतों (बेटियों) को ज़िन्दा छोड़ देता था बेशक वह भी मुफ़सिदों में था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निस्संदेह फ़िरऔन ने धरती में सरकशी की और उसके निवासियों को विभिन्न गिरोहों में विभक्त कर दिया। उनमें से एक गिरोह को कमज़ोर कर रखा था। वह उनके बेटों की हत्या करता और उनकी स्त्रियों को जीवित रहने देता। निश्चय ही वह बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था

وَنُرِيدُ أَن نَّمُنَّ عَلَى ٱلَّذِينَ ٱسْتُضْعِفُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ وَنَجْعَلَهُمْ أَئِمَّةًۭ وَنَجْعَلَهُمُ ٱلْوَٰرِثِينَ ﴿٥﴾

और हम तो ये चाहते हैं कि जो लोग रुए ज़मीन में कमज़ोर कर दिए गए हैं उनपर एहसान करे और उन्हींको (लोगों का) पेशवा बनाएँ और उन्हीं को इस (सरज़मीन) का मालिक बनाएँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हम यह चाहते थे कि उन लोगों पर उपकार करें, जो धरती में कमज़ोर पड़े थे और उन्हें नायक बनाएँ और उन्हीं को वारिस बनाएँ

وَنُمَكِّنَ لَهُمْ فِى ٱلْأَرْضِ وَنُرِىَ فِرْعَوْنَ وَهَٰمَٰنَ وَجُنُودَهُمَا مِنْهُم مَّا كَانُوا۟ يَحْذَرُونَ ﴿٦﴾

और उन्हीं को रुए ज़मीन पर पूरी क़ुदरत अता करे और फिरऔन और हामान और उन दोनों के लश्करो को उन्हीं कमज़ोरों के हाथ से वह चीज़ें दिखायें जिससे ये लोग डरते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और धरती में उन्हें सत्ताधिकार प्रदान करें और उनकी ओर से फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं को वह कुछ दिखाएँ, जिसकी उन्हें आशंका थी

وَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰٓ أُمِّ مُوسَىٰٓ أَنْ أَرْضِعِيهِ ۖ فَإِذَا خِفْتِ عَلَيْهِ فَأَلْقِيهِ فِى ٱلْيَمِّ وَلَا تَخَافِى وَلَا تَحْزَنِىٓ ۖ إِنَّا رَآدُّوهُ إِلَيْكِ وَجَاعِلُوهُ مِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ ﴿٧﴾

और हमने मूसा की माँ के पास ये वही भेजी कि तुम उसको दूध पिला लो फिर जब उसकी निस्बत तुमको कोई ख़ौफ हो तो इसको (एक सन्दूक़ में रखकर) दरिया में डाल दो और (उस पर) तुम कुछ न डरना और न कुढ़ना (तुम इतमेनान रखो) हम उसको फिर तुम्हारे पास पहुँचा देगें और उसको (अपना) रसूल बनाएँगें

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने मूसा की माँ को संकेत किया कि \"उसे दूध पिला फिर जब तुझे उसके विषय में भय हो, तो उसे दरिया में डाल दे और न तुझे कोई भय हो और न तू शोकाकुल हो। हम उसे तेरे पास लौटा लाएँगे और उसे रसूल बनाएँगे।\"

فَٱلْتَقَطَهُۥٓ ءَالُ فِرْعَوْنَ لِيَكُونَ لَهُمْ عَدُوًّۭا وَحَزَنًا ۗ إِنَّ فِرْعَوْنَ وَهَٰمَٰنَ وَجُنُودَهُمَا كَانُوا۟ خَٰطِـِٔينَ ﴿٨﴾

(ग़रज़ मूसा की माँ ने दरिया में डाल दिया) वह सन्दूक़ बहते बहते फिरऔन के महल के पास आ लगा तो फिरऔन के लोगों ने उसे उठा लिया ताकि (एक दिन यही) उनका दुश्मन और उनके राज का बायस बने इसमें शक नहीं कि फिरऔन और हामान उन दोनों के लश्कर ग़लती पर थे

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अन्ततः फ़िरऔन के लोगों ने उसे उठा लिया, ताकि परिणामस्वरूप वह उनका शत्रु और उनके लिए दुख बने। निश्चय ही फ़िरऔन और हामान और उनकी सेनाओं से बड़ी चूक हुई

وَقَالَتِ ٱمْرَأَتُ فِرْعَوْنَ قُرَّتُ عَيْنٍۢ لِّى وَلَكَ ۖ لَا تَقْتُلُوهُ عَسَىٰٓ أَن يَنفَعَنَآ أَوْ نَتَّخِذَهُۥ وَلَدًۭا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ ﴿٩﴾

और (जब मूसा महल में लाए गए तो) फिरऔन की बीबी (आसिया अपने शौहर से) बोली कि ये मेरी और तुम्हारी (दोनों की) ऑंखों की ठन्डक है तो तुम लोग इसको क़त्ल न करो क्या अजब है कि ये हमको नफ़ा पहुँचाए या हम उसे ले पालक ही बना लें और उन्हें (उसी के हाथ से बर्बाद होने की) ख़बर न थी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फ़िरऔन की स्त्री ने कहा, \"यह मेरी और तुम्हारी आँखों की ठंडक है। इसकी हत्या न करो, कदाचित यह हमें लाभ पहुँचाए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें।\" और वे (परिणाम से) बेख़बर थे

وَأَصْبَحَ فُؤَادُ أُمِّ مُوسَىٰ فَٰرِغًا ۖ إِن كَادَتْ لَتُبْدِى بِهِۦ لَوْلَآ أَن رَّبَطْنَا عَلَىٰ قَلْبِهَا لِتَكُونَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ ﴿١٠﴾

इधर तो ये हो रहा था और (उधर) मूसा की माँ का दिल ऐसा बेचैन हो गया कि अगर हम उसके दिल को मज़बूत कर देते तो क़रीब था कि मूसा का हाल ज़ाहिर कर देती (और हमने इसीलिए ढारस दी) ताकि वह (हमारे वायदे का) यक़ीन रखे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और मूसा की माँ का हृदय विचलित हो गया। निकट था कि वह उसको प्रकट कर देती, यदि हम उसके दिल को इस ध्येय से न सँभालते कि वह मोमिनों में से हो

وَقَالَتْ لِأُخْتِهِۦ قُصِّيهِ ۖ فَبَصُرَتْ بِهِۦ عَن جُنُبٍۢ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ ﴿١١﴾

और मूसा की माँ ने (दरिया में डालते वक्त) उनकी बहन (कुलसूम) से कहा कि तुम इसके पीछे पीछे (अलग) चली जाओ तो वह मूसा को दूर से देखती रही और उन लोगो को उसकी ख़बर भी न हुई

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उसने उसकी बहन से कहा, \"तू उसके पीछे-पीछे जा।\" अतएव वह उसे दूर ही दूर से देखती रही और वे महसूस नहीं कर रहे थे

۞ وَحَرَّمْنَا عَلَيْهِ ٱلْمَرَاضِعَ مِن قَبْلُ فَقَالَتْ هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَىٰٓ أَهْلِ بَيْتٍۢ يَكْفُلُونَهُۥ لَكُمْ وَهُمْ لَهُۥ نَٰصِحُونَ ﴿١٢﴾

और हमने मूसा पर पहले ही से और दाईयों (के दूध) को हराम कर दिया था (कि किसी की छाती से मुँह न लगाया) तब मूसा की बहन बोली भला मै तुम्हें एक घराने का पता बताऊ कि वह तुम्हारी ख़ातिर इस बच्चे की परवरिश कर देंगे और वह यक़ीनन इसके खैरख्वाह होगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने पहले ही से दूध पिलानेवालियों को उसपर हराम कर दिया। अतः उसने (मूसा की बहन से) कहा कि \"क्या मैं तुम्हें ऐसे घरवालों का पता बताऊँ जो तुम्हारे लिए इसके पालन-पोषण का ज़िम्मा लें और इसके शुभ-चिंतक हों?\"

فَرَدَدْنَٰهُ إِلَىٰٓ أُمِّهِۦ كَىْ تَقَرَّ عَيْنُهَا وَلَا تَحْزَنَ وَلِتَعْلَمَ أَنَّ وَعْدَ ٱللَّهِ حَقٌّۭ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ﴿١٣﴾

ग़रज़ (इस तरकीब से) हमने मूसा को उसकी माँ तक फिर पहुँचा दिया ताकि उसकी ऑंख ठन्डी हो जाए और रंज न करे और ताकि समझ ले ख़ुदा का वायदा बिल्कुल ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

इस प्रकार हम उसे उसकी माँ के पास लौटा लाए, ताकि उसकी आँख ठंड़ी हो और वह शोकाकुल न हो और ताकि वह जान ले कि अल्लाह का वादा सच्चा है, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं

وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُۥ وَٱسْتَوَىٰٓ ءَاتَيْنَٰهُ حُكْمًۭا وَعِلْمًۭا ۚ وَكَذَٰلِكَ نَجْزِى ٱلْمُحْسِنِينَ ﴿١٤﴾

और जब मूसा अपनी जवानी को पहुँचे और (हाथ पाँव निकाल के) दुरुस्त हो गए तो हमने उनको हिकमत और इल्म अता किया और नेकी करने वालों को हम यूँ जज़ाए खैर देते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब वह अपनी जवानी को पहुँचा और भरपूर हो गया, तो हमने उसे निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया। और सुकर्मी लोगों को हम इसी प्रकार बदला देते है

وَدَخَلَ ٱلْمَدِينَةَ عَلَىٰ حِينِ غَفْلَةٍۢ مِّنْ أَهْلِهَا فَوَجَدَ فِيهَا رَجُلَيْنِ يَقْتَتِلَانِ هَٰذَا مِن شِيعَتِهِۦ وَهَٰذَا مِنْ عَدُوِّهِۦ ۖ فَٱسْتَغَٰثَهُ ٱلَّذِى مِن شِيعَتِهِۦ عَلَى ٱلَّذِى مِنْ عَدُوِّهِۦ فَوَكَزَهُۥ مُوسَىٰ فَقَضَىٰ عَلَيْهِ ۖ قَالَ هَٰذَا مِنْ عَمَلِ ٱلشَّيْطَٰنِ ۖ إِنَّهُۥ عَدُوٌّۭ مُّضِلٌّۭ مُّبِينٌۭ ﴿١٥﴾

और एक दिन इत्तिफाक़न मूसा शहर में ऐसे वक्त अाए कि वहाँ के लोग (नींद की) ग़फलत में पडे हुए थे तो देखा कि वहाँ दो आदमी आपस में लड़े मरते हैं ये (एक) तो उनकी क़ौम (बनी इसराइल) में का है और वह (दूसरा) उनके दुश्मन की क़ौम (क़िब्ती) का है तो जो शख्स उनकी क़ौम का था उसने उस शख्स से जो उनके दुश्मनों में था (ग़लबा हासिल करने के लिए) मूसा से मदद माँगी ये सुनते ही मूसा ने उसे एक घूसा मारा था कि उसका काम तमाम हो गया फिर (ख्याल करके) कहने लगे ये शैतान का काम था इसमें शक नहीं कि वह दुश्मन और खुल्लम खुल्ला गुमराह करने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने नगर में ऐसे समय प्रवेश किया जबकि वहाँ के लोग बेख़बर थे। उसने वहाँ दो आदमियों को लड़ते पाया। यह उसके अपने गिरोह का था और यह उसके शत्रुओं में से था। जो उसके गिरोह में से था उसने उसके मुक़ाबले में, जो उसके शत्रुओं में से था, सहायता के लिए उसे पुकारा। मूसा ने उसे घूँसा मारा और उसका काम तमाम कर दिया। कहा, \"यह शैतान की कार्यवाई है। निश्चय ही वह खुला पथभ्रष्ट करनेवाला शत्रु है।\"

قَالَ رَبِّ إِنِّى ظَلَمْتُ نَفْسِى فَٱغْفِرْ لِى فَغَفَرَ لَهُۥٓ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلْغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ﴿١٦﴾

(फिर बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार बेशक मैने अपने ऊपर आप ज़ुल्म किया (कि इस शहर में आया) तो तू मुझे (दुश्मनों से) पोशीदा रख-ग़रज़ ख़ुदा ने उन्हें पोशीदा रखा (इसमें तो शक नहीं कि वह बड़ा पोशीदा रखने वाला मेहरबान है)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने कहा, \"ऐ मेरे रब, मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अतः तू मुझे क्षमा कर दे।\" अतएव उसने उसे क्षमा कर दिया। निश्चय ही वही बड़ी क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है

قَالَ رَبِّ بِمَآ أَنْعَمْتَ عَلَىَّ فَلَنْ أَكُونَ ظَهِيرًۭا لِّلْمُجْرِمِينَ ﴿١٧﴾

मूसा ने अर्ज क़ी परवरदिगार चूँकि तूने मुझ पर एहसान किया है मै भी आइन्दा गुनाहगारों का हरगिज़ मदद गार न बनूगाँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! जैसे तूने मुझपर अनुकम्पा दर्शाई है, अब मैं भी कभी अपराधियों का सहायक नहीं बनूँगा।\"

فَأَصْبَحَ فِى ٱلْمَدِينَةِ خَآئِفًۭا يَتَرَقَّبُ فَإِذَا ٱلَّذِى ٱسْتَنصَرَهُۥ بِٱلْأَمْسِ يَسْتَصْرِخُهُۥ ۚ قَالَ لَهُۥ مُوسَىٰٓ إِنَّكَ لَغَوِىٌّۭ مُّبِينٌۭ ﴿١٨﴾

ग़रज़ (रात तो जो त्यों गुज़री) सुबह को उम्मीदो बीम की हालत में मूसा शहर में गए तो क्या देखते हैं कि वही शख्स जिसने कल उनसे मदद माँगी थी उनसे (फिर) फरियाद कर रहा है-मूसा ने उससे कहा बेशक तू यक़ीनी खुल्लम खुल्ला गुमराह है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर दूसरे दिन वह नगर में डरता, टोह लेता हुआ प्रविष्ट हुआ। इतने में अचानक क्या देखता है कि वही व्यक्ति जिसने कल उससे सहायता चाही थी, उसे पुकार रहा है। मूसा ने उससे कहा, \"तू तो प्रत्यक्ष बहका हुआ व्यक्ति है।\"

فَلَمَّآ أَنْ أَرَادَ أَن يَبْطِشَ بِٱلَّذِى هُوَ عَدُوٌّۭ لَّهُمَا قَالَ يَٰمُوسَىٰٓ أَتُرِيدُ أَن تَقْتُلَنِى كَمَا قَتَلْتَ نَفْسًۢا بِٱلْأَمْسِ ۖ إِن تُرِيدُ إِلَّآ أَن تَكُونَ جَبَّارًۭا فِى ٱلْأَرْضِ وَمَا تُرِيدُ أَن تَكُونَ مِنَ ٱلْمُصْلِحِينَ ﴿١٩﴾

ग़रज़ जब मूसा ने चाहा कि उस शख्स पर जो दोनों का दुश्मन था (छुड़ाने के लिए) हाथ बढ़ाएँ तो क़िब्ती कहने लगा कि ऐ मूसा जिस तरह तुमने कल एक आदमी को मार डाला (उसी तरह) मुझे भी मार डालना चाहते हो तो तुम बस ये चाहते हो कि रुए ज़मीन में सरकश बन कर रहो और मसलह (क़ौम) बनकर रहना नहीं चाहते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर जब उसने वादा किया कि उस व्यक्ति को पकड़े, जो उन लोगों का शत्रु था, तो वह बोल उठा, \"ऐ मूसा, क्या तू चाहता है कि मुझे मार डाले, जिस प्रकार तूने कल एक व्यक्ति को मार डाला? धरती में बस तू निर्दय अत्याचारी बनकर रहना चाहता है और यह नहीं चाहता कि सुधार करनेवाला हो।\"

وَجَآءَ رَجُلٌۭ مِّنْ أَقْصَا ٱلْمَدِينَةِ يَسْعَىٰ قَالَ يَٰمُوسَىٰٓ إِنَّ ٱلْمَلَأَ يَأْتَمِرُونَ بِكَ لِيَقْتُلُوكَ فَٱخْرُجْ إِنِّى لَكَ مِنَ ٱلنَّٰصِحِينَ ﴿٢٠﴾

और एक शख्स शहर के उस किनारे से डराता हुआ आया और (मूसा से) कहने लगा मूसा (तुम ये यक़ीन जानो कि शहर के) बड़े बड़े आदमी तुम्हारे आदमी तुम्हारे बारे में मशवरा कर रहे हैं कि तुमको कत्ल कर डालें तो तुम (शहर से) निकल भागो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

इसके पश्चात एक आदमी नगर के परले सिरे से दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, \"ऐ मूसा, सरदार तेरे विषय में परामर्श कर रहे हैं कि तुझे मार डालें। अतः तू निकल जा! मैं तेरा हितैषी हूँ।\"

فَخَرَجَ مِنْهَا خَآئِفًۭا يَتَرَقَّبُ ۖ قَالَ رَبِّ نَجِّنِى مِنَ ٱلْقَوْمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ﴿٢١﴾

मै तुमसे ख़ैरख्वाहाना (भलाइ के लिए) कहता हूँ ग़रज़ मूसा वहाँ से उम्मीद व बीम की हालत में निकल खडे हुए और (बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार मुझे ज़ालिम लोगों (के हाथ) से नजात दे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर वह वहाँ से डरता और ख़तरा भाँपता हुआ निकल खड़ा हुआ। उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! मुझे ज़ालिम लोगों से छुटकारा दे।\"

وَلَمَّا تَوَجَّهَ تِلْقَآءَ مَدْيَنَ قَالَ عَسَىٰ رَبِّىٓ أَن يَهْدِيَنِى سَوَآءَ ٱلسَّبِيلِ ﴿٢٢﴾

और जब मदियन की तरफ रुख़ किया (और रास्ता मालूम न था) तो आप ही आप बोले मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधे रास्ता दिखा दे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जब उसने मदयन का रुख़ किया तो कहा, \"आशा है, मेरा रब मुझे ठीक रास्ते पर डाल देगा।\"

وَلَمَّا وَرَدَ مَآءَ مَدْيَنَ وَجَدَ عَلَيْهِ أُمَّةًۭ مِّنَ ٱلنَّاسِ يَسْقُونَ وَوَجَدَ مِن دُونِهِمُ ٱمْرَأَتَيْنِ تَذُودَانِ ۖ قَالَ مَا خَطْبُكُمَا ۖ قَالَتَا لَا نَسْقِى حَتَّىٰ يُصْدِرَ ٱلرِّعَآءُ ۖ وَأَبُونَا شَيْخٌۭ كَبِيرٌۭ ﴿٢٣﴾

और (आठ दिन फाक़ा करते चले) जब शहर मदियन के कुओं पर (जो शहर के बाहर था) पहुँचें तो कुओं पर लोगों की भीड़ देखी कि वह (अपने जानवरों को) पानी पिला रहे हैं और उन सबके पीछे दो औरतो (हज़रत शुएब की बेटियों) को देखा कि वह (अपनी बकरियों को) रोके खड़ी है मूसा ने पूछा कि तुम्हारा क्या मतलब है वह बोली जब तक सब चरवाहे (अपने जानवरों को) ख़ूब छक के पानी पिला कर फिर न जाएँ हम नहीं पिला सकते और हमारे वालिद बहुत बूढे हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब वह मदयन के पानी पर पहुँचा तो उसने उसपर पानी पिलाते लोगों को एक गिरोह पाया। और उनसे हटकर एक ओर दो स्त्रियों को पाया, जो अपन जानवरों को रोक रही थीं। उसने कहा, \"तुम्हारा क्या मामला है?\" उन्होंने कहा, \"हम उस समय तक पानी नहीं पिला सकते, जब तक ये चरवाहे अपने जानवर निकाल न ले जाएँ, और हमारे बाप बहुत ही बूढ़े है।\"

فَسَقَىٰ لَهُمَا ثُمَّ تَوَلَّىٰٓ إِلَى ٱلظِّلِّ فَقَالَ رَبِّ إِنِّى لِمَآ أَنزَلْتَ إِلَىَّ مِنْ خَيْرٍۢ فَقِيرٌۭ ﴿٢٤﴾

तब मूसा ने उन की (बकरियों) के लिए (पानी खीच कर) पिला दिया फिर वहाँ से हट कर छांव में जा बैठे तो (चूँकि बहुत भूक थी) अर्ज क़ी परवरदिगार (उस वक्त) ज़ो नेअमत तू मेरे पास भेज दे मै उसका सख्त हाजत मन्द हूँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तब उसने उन दोनों के लिए पानी पिला दिया। फिर छाया की ओर पलट गया और कहा, \"ऐ मेरे रब, जो भलाई भी तू मेरी उतार दे, मैं उसका ज़रूरतमंद हूँ।\"

فَجَآءَتْهُ إِحْدَىٰهُمَا تَمْشِى عَلَى ٱسْتِحْيَآءٍۢ قَالَتْ إِنَّ أَبِى يَدْعُوكَ لِيَجْزِيَكَ أَجْرَ مَا سَقَيْتَ لَنَا ۚ فَلَمَّا جَآءَهُۥ وَقَصَّ عَلَيْهِ ٱلْقَصَصَ قَالَ لَا تَخَفْ ۖ نَجَوْتَ مِنَ ٱلْقَوْمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ﴿٢٥﴾

इतने में उन्हीं दो मे से एक औरत शर्मीली चाल से आयी (और मूसा से) कहने लगी-मेरे वालिद तुम को बुलाते हैं ताकि तुमने जो (हमारी बकरियों को) पानी पिला दिया है तुम्हें उसकी मज़दूरी दे ग़रज़ जब मूसा उनके पास आए और उनसे अपने किस्से बयान किए तो उन्होंने कहा अब कुछ अन्देशा न करो तुमने ज़ालिम लोगों के हाथ से नजात पायी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर उन दोनों में से एक लजाती हुई उसके पास आई। उसने कहा, \"मेरे बाप आपको बुला रहे है, ताकि आपने हमारे लिए (जानवरों को) जो पानी पिलाया है, उसका बदला आपको दें।\" फिर जब वह उसके पास पहुँचा और उसे अपने सारे वृत्तान्त सुनाए तो उसने कहा, \"कुछ भय न करो। तुम ज़ालिम लोगों से छुटकारा पा गए हो।\"

قَالَتْ إِحْدَىٰهُمَا يَٰٓأَبَتِ ٱسْتَـْٔجِرْهُ ۖ إِنَّ خَيْرَ مَنِ ٱسْتَـْٔجَرْتَ ٱلْقَوِىُّ ٱلْأَمِينُ ﴿٢٦﴾

(इसी असना में) उन दोनों में से एक लड़की ने कहा ऐ अब्बा इन को नौकर रख लीजिए क्योंकि आप जिसको भी नौकर रखें सब में बेहतर वह है जो मज़बूत और अमानतदार हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन दोनों स्त्रियों में से एक ने कहा, \"ऐ मेरे बाप! इसको मज़दूरी पर रख लीजिए। अच्छा व्यक्ति, जिसे आप मज़दूरी पर रखें, वही है जो बलवान, अमानतदार हो।\"

قَالَ إِنِّىٓ أُرِيدُ أَنْ أُنكِحَكَ إِحْدَى ٱبْنَتَىَّ هَٰتَيْنِ عَلَىٰٓ أَن تَأْجُرَنِى ثَمَٰنِىَ حِجَجٍۢ ۖ فَإِنْ أَتْمَمْتَ عَشْرًۭا فَمِنْ عِندِكَ ۖ وَمَآ أُرِيدُ أَنْ أَشُقَّ عَلَيْكَ ۚ سَتَجِدُنِىٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ﴿٢٧﴾

(और इनमें दोनों बातें पायी जाती हैं तब) शुएब ने कहा मै चाहता हूँ कि अपनी दोनों लड़कियों में से एक के साथ तुम्हारा इस (महर) पर निकाह कर दूँ कि तुम आठ बरस तक मेरी नौकरी करो और अगर तुम दस बरस पूरे कर दो तो तुम्हारा एहसान और मै तुम पर मेहनत मशक्क़त भी डालना नही चाहता और तुम मुझे इन्शा अल्लाह नेको कार आदमी पाओगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने कहा, \"मैं चाहता हूँ कि अपनी इन दोनों बेटियों में से एक का विवाह तुम्हारे साथ इस शर्त पर कर दूँ कि तुम आठ वर्ष तक मेरे यहाँ नौकरी करो। और यदि तुम दस वर्ष पूरे कर दो, तो यह तुम्हारी ओर से होगा। मैं तुम्हें कठिनाई में डालना नहीं चाहता। यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम मुझे नेक पाओगे।\"

قَالَ ذَٰلِكَ بَيْنِى وَبَيْنَكَ ۖ أَيَّمَا ٱلْأَجَلَيْنِ قَضَيْتُ فَلَا عُدْوَٰنَ عَلَىَّ ۖ وَٱللَّهُ عَلَىٰ مَا نَقُولُ وَكِيلٌۭ ﴿٢٨﴾

मूसा ने कहा ये मेरे और आप के दरमियान (मुहाएदा) है दोनों मुद्दतों मे से मै जो भी पूरी कर दूँ (मुझे एख्तियार है) फिर मुझ पर जब्र और ज्यादती (देने का आपको हक़) नहीं और हम आप जो कुछ कर रहे हैं (उसका) ख़ुदा गवाह है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहा, \"यह मेरे और आपके बीच निश्चय हो चुका। इन दोनों अवधियों में से जो भी मैं पूरी कर दूँ, तो तुझपर कोई ज़्यादती नहीं होगी। और जो कुछ हम कह रहे है, उसके विषय में अल्लाह पर भरोसा काफ़ी है।\"

۞ فَلَمَّا قَضَىٰ مُوسَى ٱلْأَجَلَ وَسَارَ بِأَهْلِهِۦٓ ءَانَسَ مِن جَانِبِ ٱلطُّورِ نَارًۭا قَالَ لِأَهْلِهِ ٱمْكُثُوٓا۟ إِنِّىٓ ءَانَسْتُ نَارًۭا لَّعَلِّىٓ ءَاتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ جَذْوَةٍۢ مِّنَ ٱلنَّارِ لَعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ ﴿٢٩﴾

ग़रज़ मूसा का छोटी लड़की से निकाह हो गया और रहने लगे फिर जब मूसा ने अपनी (दस बरस की) मुद्दत पूरी की और बीवी को लेकर चले तो अंधेरीरात जाड़ों के दिन राह भूल गए और बीबी सफ़ूरा को दर्द ज़ेह शुरु हुआ (इतने में) कोहेतूर की तरफ आग दिखायी दी तो अपने लड़के बालों से कहा तुम लोग ठहरो मैने यक़ीनन आग देखी है (मै वहाँ जाता हूँ) क्या अजब है वहाँ से (रास्ते की) कुछ ख़बर लाऊँ या आग की कोई चिंगारी (लेता आऊँ) ताकि तुम लोग तापो

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फिर जब मूसा ने अवधि पूरी कर दी और अपने घरवालों को लेकर चला तो तूर की ओर उसने एक आग-सी देखी। उसने अपने घरवालों से कहा, \"ठहरो, मैंने एक आग का अवलोकन किया है। कदाचित मैं वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर ले आऊँ या उस आग से कोई अंगारा ही, ताकि तुम ताप सको।\"

فَلَمَّآ أَتَىٰهَا نُودِىَ مِن شَٰطِئِ ٱلْوَادِ ٱلْأَيْمَنِ فِى ٱلْبُقْعَةِ ٱلْمُبَٰرَكَةِ مِنَ ٱلشَّجَرَةِ أَن يَٰمُوسَىٰٓ إِنِّىٓ أَنَا ٱللَّهُ رَبُّ ٱلْعَٰلَمِينَ ﴿٣٠﴾

ग़रज़ जब मूसा आग के पास आए तो मैदान के दाहिने किनारे से इस मुबारक जगह में एक दरख्त से उन्हें आवाज़ आयी कि ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मै ही अल्लाह सारे जहाँ का पालने वाला हूँ

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फिर जब वह वहाँ पहुँचा तो दाहिनी घाटी के किनारे से शुभ क्षेत्र में वृक्ष से आवाज़ आई, \"ऐ मूसा! मैं ही अल्लाह हूँ, सारे संसार का रब!\"

وَأَنْ أَلْقِ عَصَاكَ ۖ فَلَمَّا رَءَاهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَآنٌّۭ وَلَّىٰ مُدْبِرًۭا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَٰمُوسَىٰٓ أَقْبِلْ وَلَا تَخَفْ ۖ إِنَّكَ مِنَ ٱلْءَامِنِينَ ﴿٣١﴾

और यह (भी आवाज़ आयी) कि तुम आपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दो फिर जब (डाल दिया तो) देखा कि वह इस तरह बल खा रही है कि गोया वह (ज़िन्दा) अजदहा है तो पीठ फेरके भागे और पीछे मुड़कर भी न देखा (तो हमने फरमाया) ऐ मूसा आगे आओ और डरो नहीं तुम पर हर तरह अमन व अमान में हो

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और यह कि \"डाल दे अपनी लाठी।\" फिर जब उसने देखा कि वह बल खा रही है जैसे कोई साँप हो तो वह पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर भी न देखा। \"ऐ मूसा! आगे आ और भय न कर। निस्संदेह तेरे लिए कोई भय की बात नहीं

ٱسْلُكْ يَدَكَ فِى جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَآءَ مِنْ غَيْرِ سُوٓءٍۢ وَٱضْمُمْ إِلَيْكَ جَنَاحَكَ مِنَ ٱلرَّهْبِ ۖ فَذَٰنِكَ بُرْهَٰنَانِ مِن رَّبِّكَ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَإِي۟هِۦٓ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا۟ قَوْمًۭا فَٰسِقِينَ ﴿٣٢﴾

(अच्छा और लो) अपना हाथ गरेबान में डालो (और निकाल लो) तो सफेद बुर्राक़ होकर बेऐब निकल आया और ख़ौफ की (वजह) से अपने बाजू अपनी तरफ समेट लो (ताकि ख़ौफ जाता रहे) ग़रज़ ये दोनों (असा व यदे बैज़ा) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारी नुबूवत की) दो दलीलें फिरऔन और उसके दरबार के सरदारों के वास्ते हैं और इसमें शक नहीं कि वह बदकार लोग थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल। बिना किसी ख़राबी के चमकता हुआ निकलेगा। और भय के समय अपनी भुजा को अपने से मिलाए रख। ये दो निशानियाँ है तेरे रब की ओर से फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास लेकर जाने के लिए। निश्चय ही वे बड़े अवज्ञाकारी लोग है।\"

قَالَ رَبِّ إِنِّى قَتَلْتُ مِنْهُمْ نَفْسًۭا فَأَخَافُ أَن يَقْتُلُونِ ﴿٣٣﴾

मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार मैने उनमें से एक शख्स को मार डाला था तो मै डरता हूँ कहीं (उसके बदले) मुझे न मार डालें

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उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! मुझसे उनके एक आदमी की जान गई है। इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे

وَأَخِى هَٰرُونُ هُوَ أَفْصَحُ مِنِّى لِسَانًۭا فَأَرْسِلْهُ مَعِىَ رِدْءًۭا يُصَدِّقُنِىٓ ۖ إِنِّىٓ أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ ﴿٣٤﴾

और मेरा भाई हारुन वह मुझसे (ज़बान में ज्यादा) फ़सीह है तो तू उसे मेरे साथ मेरा मददगार बनाकर भेज कि वह मेरी तसदीक करे क्योंकि यक़ीनन मै इस बात से डरता हूँ कि मुझे वह लोग झुठला देंगे (तो उनके जवाब के लिए गोयाइ की ज़रुरत है)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

मेरे भाई हारून की ज़बान मुझसे बढ़कर धाराप्रवाह है। अतः उसे मेरे साथ सहायक के रूप में भेज कि वह मेरी पुष्टि करे। मुझे भय है कि वे मुझे झुठलाएँगे।\"

قَالَ سَنَشُدُّ عَضُدَكَ بِأَخِيكَ وَنَجْعَلُ لَكُمَا سُلْطَٰنًۭا فَلَا يَصِلُونَ إِلَيْكُمَا ۚ بِـَٔايَٰتِنَآ أَنتُمَا وَمَنِ ٱتَّبَعَكُمَا ٱلْغَٰلِبُونَ ﴿٣٥﴾

फ़रमाया अच्छा हम अनक़रीब तुम्हारे भाई की वजह से तुम्हारे बाज़ू क़वी कर देगें और तुम दोनों को ऐसा ग़लबा अता करेंगें कि फिरऔनी लोग तुम दोनों तक हमारे मौजिज़े की वजह से पहुँच भी न सकेंगे लो जाओ तुम दोनो और तुम्हारे पैरवी करने वाले गालिब रहेंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहा, \"हम तेरे भाई के द्वारा तेरी भुजा मज़बूत करेंगे, और तुम दोनों को एक ओज प्रदान करेंगे कि वे फिर तुम तक न पहुँच सकेंगे। हमारी निशानियों के कारण तुम दोनों और जो तुम्हारे अनुयायी होंगे वे ही प्रभावी होंगे।\"

فَلَمَّا جَآءَهُم مُّوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَا بَيِّنَٰتٍۢ قَالُوا۟ مَا هَٰذَآ إِلَّا سِحْرٌۭ مُّفْتَرًۭى وَمَا سَمِعْنَا بِهَٰذَا فِىٓ ءَابَآئِنَا ٱلْأَوَّلِينَ ﴿٣٦﴾

ग़रज़ जब मूसा हमारे वाजेए व रौशन मौजिज़े लेकर उनके पास आए तो वह लोग कहने लगे कि ये तो बस अपने दिल का गढ़ा हुआ जादू है और हमने तो अपने अगले बाप दादाओं (के ज़माने) में ऐसी बात सुनी भी नहीें

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फिर जब मूसा उनके पास हमारी खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया तो उन्होंने कहा, \"यह तो बस घड़ा हुआ जादू है। हमने तो यह बात अपने अगले बाप-दादा में कभी सुनी ही नहीं।\"

وَقَالَ مُوسَىٰ رَبِّىٓ أَعْلَمُ بِمَن جَآءَ بِٱلْهُدَىٰ مِنْ عِندِهِۦ وَمَن تَكُونُ لَهُۥ عَٰقِبَةُ ٱلدَّارِ ۖ إِنَّهُۥ لَا يُفْلِحُ ٱلظَّٰلِمُونَ ﴿٣٧﴾

और मूसा ने कहा मेरा परवरदिगार उस शख्स से ख़ूब वाक़िफ़ है जो उसकी बारगाह से हिदायत लेकर आया है और उस शख्स से भी जिसके लिए आख़िरत का घर है इसमें तो शक ही नहीं कि ज़ालिम लोग कामयाब नहीं होते

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मूसा ने कहा, \"मेरा रब उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है जो उसके यहाँ से मार्गदर्शन लेकर आया है, और उसको भी जिसके लिए अंतिम घर है। निश्चय ही ज़ालिम सफल नहीं होते।\"

وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَٰٓأَيُّهَا ٱلْمَلَأُ مَا عَلِمْتُ لَكُم مِّنْ إِلَٰهٍ غَيْرِى فَأَوْقِدْ لِى يَٰهَٰمَٰنُ عَلَى ٱلطِّينِ فَٱجْعَل لِّى صَرْحًۭا لَّعَلِّىٓ أَطَّلِعُ إِلَىٰٓ إِلَٰهِ مُوسَىٰ وَإِنِّى لَأَظُنُّهُۥ مِنَ ٱلْكَٰذِبِينَ ﴿٣٨﴾

और (ये सुनकर) फिरऔन ने कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारों मुझ को तो अपने सिवा तुम्हारा कोई परवरदिगार मालूम नही होता (और मूसा दूसरे को ख़ुदा बताता है) तो ऐ हामान (वज़ीर फिरऔन) तुम मेरे वास्ते मिट्टी (की ईटों) का पजावा सुलगाओ फिर मेरे वास्ते एक पुख्ता महल तैयार कराओ ताकि मै (उस पर चढ़ कर) मूसा के ख़ुदा को देंखू और मै तो यक़ीनन मूसा को झूठा समझता हूँ

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फ़िरऔन ने कहा, \"ऐ दरबारवालो, मैं तो अपने सिवा तुम्हारे किसी प्रभु को नहीं जानता। अच्छा तो ऐ हामान! तू मेरे लिए ईटें आग में पकवा। फिर मेरे लिए एक ऊँचा महल बना कि मैं मूसा के प्रभु को झाँक आऊँ। मैं तो उसे झूठा समझता हूँ।\"

وَٱسْتَكْبَرَ هُوَ وَجُنُودُهُۥ فِى ٱلْأَرْضِ بِغَيْرِ ٱلْحَقِّ وَظَنُّوٓا۟ أَنَّهُمْ إِلَيْنَا لَا يُرْجَعُونَ ﴿٣٩﴾

और फिरऔन और उसके लश्कर ने रुए ज़मीन में नाहक़ सर उठाया था और उन लोगों ने समझ लिया था कि हमारी बारगाह मे वह कभी पलट कर नही आएँगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने और उसकी सेनाओं ने धरती में नाहक़ घमंड किया और समझा कि उन्हें हमारी ओर लौटना नहीं है

فَأَخَذْنَٰهُ وَجُنُودَهُۥ فَنَبَذْنَٰهُمْ فِى ٱلْيَمِّ ۖ فَٱنظُرْ كَيْفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلظَّٰلِمِينَ ﴿٤٠﴾

तो हमने उसको और उसके लश्कर को ले डाला फिर उन सबको दरिया में डाल दिया तो (ऐ रसूल) ज़रा देखों तो कि ज़ालिमों का कैसा बुरा अन्जाम हुआ

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अन्ततः हमने उसे औऱ उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया। अब देख लो कि ज़ालिमों का कैसा परिणाम हुआ

وَجَعَلْنَٰهُمْ أَئِمَّةًۭ يَدْعُونَ إِلَى ٱلنَّارِ ۖ وَيَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ لَا يُنصَرُونَ ﴿٤١﴾

और हमने उनको (गुमराहों का) पेशवा बनाया कि (लोगों को) जहन्नुम की तरफ बुलाते है और क़यामत के दिन (ऐसे बेकस होगें कि) उनको किसी तरह की मदद न दी जाएगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने उन्हें आग की ओर बुलानेवाले पेशवा बना दिया और क़ियामत के दिन उन्हें कोई सहायता प्राप्त न होगी

وَأَتْبَعْنَٰهُمْ فِى هَٰذِهِ ٱلدُّنْيَا لَعْنَةًۭ ۖ وَيَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ هُم مِّنَ ٱلْمَقْبُوحِينَ ﴿٤٢﴾

और हमने दुनिया में भी तो लानत उन के पीछे लगा दी है और क़यामत के दिन उनके चेहरे बिगाड़ दिए जायेंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने इस दुनिया में उनके पीछे लानत लगा दी और क़ियामत दिन वही बदहाल होंगे

وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا مُوسَى ٱلْكِتَٰبَ مِنۢ بَعْدِ مَآ أَهْلَكْنَا ٱلْقُرُونَ ٱلْأُولَىٰ بَصَآئِرَ لِلنَّاسِ وَهُدًۭى وَرَحْمَةًۭ لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ ﴿٤٣﴾

और हमने बहुतेरी अगली उम्मतों को हलाक कर डाला उसके बाद मूसा को किताब (तौरैत) अता की जो लोगों के लिए अजसरतापा बसीरत और हिदायत और रहमत थी ताकि वह लोग इबरत व नसीहत हासिल करें

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और अगली नस्लों को विनष्ट कर देने के पश्चात हमने मूसा को किताब प्रदान की, लोगों के लिए अन्तर्दृष्टियों की सामग्री, मार्गदर्शन और दयालुता बनाकर, ताकि वे ध्यान दें

وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ ٱلْغَرْبِىِّ إِذْ قَضَيْنَآ إِلَىٰ مُوسَى ٱلْأَمْرَ وَمَا كُنتَ مِنَ ٱلشَّٰهِدِينَ ﴿٤٤﴾

और (ऐ रसूल) जिस वक्त हमने मूसा के पास अपना हुक्म भेजा था तो तुम (तूर के) मग़रिबी जानिब मौजूद न थे और न तुम उन वाक्यात को चश्मदीद देखने वालों में से थे

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तुम तो (नगर के) पश्चिमी किनारे पर नहीं थे, जब हमने मूसा को बात की निर्णित सूचना दी थी, और न तुम गवाहों में से थे

وَلَٰكِنَّآ أَنشَأْنَا قُرُونًۭا فَتَطَاوَلَ عَلَيْهِمُ ٱلْعُمُرُ ۚ وَمَا كُنتَ ثَاوِيًۭا فِىٓ أَهْلِ مَدْيَنَ تَتْلُوا۟ عَلَيْهِمْ ءَايَٰتِنَا وَلَٰكِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ ﴿٤٥﴾

मगर हमने (मूसा के बाद) बहुतेरी उम्मतें पैदा की फिर उन पर एक ज़माना दराज़ गुज़र गया और न तुम मदैन के लोगों में रहे थे कि उनके सामने हमारी आयते पढ़ते (और न तुम को उन के हालात मालूम होते) मगर हम तो (तुमको) पैग़म्बर बनाकर भेजने वाले थे

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लेकिन हमने बहुत-सी नस्लें उठाईं और उनपर बहुत समय बीत गया। और न तुम मदयनवालों में रहते थे कि उन्हें हमारी आयतें सुना रहे होते, किन्तु रसूलों को भेजनेवाले हम ही रहे है

وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ ٱلطُّورِ إِذْ نَادَيْنَا وَلَٰكِن رَّحْمَةًۭ مِّن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوْمًۭا مَّآ أَتَىٰهُم مِّن نَّذِيرٍۢ مِّن قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ ﴿٤٦﴾

और न तुम तूर की किसी जानिब उस वक्त मौजूद थे जब हमने (मूसा को) आवाज़ दी थी (ताकि तुम देखते) मगर ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है ताकि तुम उन लोगों को जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं डराओ ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें

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और तुम तूर के अंचल में भी उपस्थित न थे जब हमने पुकारा था, किन्तु यह तुम्हारे रब की दयालुता है - ताकि तुम ऐसे लोगों को सचेत कर दो जिनके पास तुमसे पहले कोई सचेत करनेवाला नहीं आया, ताकि वे ध्यान दें

وَلَوْلَآ أَن تُصِيبَهُم مُّصِيبَةٌۢ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَيَقُولُوا۟ رَبَّنَا لَوْلَآ أَرْسَلْتَ إِلَيْنَا رَسُولًۭا فَنَتَّبِعَ ءَايَٰتِكَ وَنَكُونَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ ﴿٤٧﴾

और अगर ये नही होता कि जब उन पर उनकी अगली करतूतों की बदौलत कोई मुसीबत पड़ती तो बेसाख्ता कह बैठते कि परवरदिगार तूने हमारे पास कोई पैग़म्बर क्यों न भेजा कि हम तेरे हुक्मों पर चलते और ईमानदारों में होते (तो हम तुमको न भेजते )

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(हम रसूल बनाकर न भेजते) यदि यह बात न होती कि जो कुछ उनके हाथ आगे भेज चुके है उसके कारण जब उनपर कोई मुसीबत आए तो वे कहने लगें, \"ऐ हमारे रब, तूने क्यों न हमारी ओर कोई रसूल भेजा कि हम तेरी आयतों का (अनुसरण) करते और मोमिन होते?\"

فَلَمَّا جَآءَهُمُ ٱلْحَقُّ مِنْ عِندِنَا قَالُوا۟ لَوْلَآ أُوتِىَ مِثْلَ مَآ أُوتِىَ مُوسَىٰٓ ۚ أَوَلَمْ يَكْفُرُوا۟ بِمَآ أُوتِىَ مُوسَىٰ مِن قَبْلُ ۖ قَالُوا۟ سِحْرَانِ تَظَٰهَرَا وَقَالُوٓا۟ إِنَّا بِكُلٍّۢ كَٰفِرُونَ ﴿٤٨﴾

मगर फिर जब हमारी बारगाह से (दीन) हक़ उनके पास पहुँचा तो कहने लगे जैसे (मौजिज़े) मूसा को अता हुए थे वैसे ही इस रसूल (मोहम्मद) को क्यों नही दिए गए क्या जो मौजिज़े इससे पहले मूसा को अता हुए थे उनसे इन लोगों ने इन्कार न किया था कुफ्फ़ार तो ये भी कह गुज़रे कि ये दोनों के दोनों (तौरैत व कुरान) जादू हैं कि बाहम एक दूसरे के मददगार हो गए हैं

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फिर जब उनके पास हमारे यहाँ से सत्य आ गया तो वे कहने लगे कि \"जो चीज़ मूसा को मिली थी उसी तरह की चीज़ इसे क्यों न मिली?\" क्या वे उसका इनकार नहीं कर चुके है, जो इससे पहले मूसा को प्रदान किया गया था? उन्होंने कहा, \"दोनों जादू है जो एक-दूसरे की सहायता करते है।\" और कहा, \"हम तो हरेक का इनकार करते है।\"

قُلْ فَأْتُوا۟ بِكِتَٰبٍۢ مِّنْ عِندِ ٱللَّهِ هُوَ أَهْدَىٰ مِنْهُمَآ أَتَّبِعْهُ إِن كُنتُمْ صَٰدِقِينَ ﴿٤٩﴾

और ये भी कह चुके कि हम एब के मुन्किर हैं (ऐ रसूल) तुम (इन लोगों से) कह दो कि अगर सच्चे हो तो ख़ुदा की तरफ से एक ऐसी किताब जो इन दोनों से हिदायत में बेहतर हो ले आओ

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कहो, \"अच्छा तो लाओ अल्लाह के यहाँ से कोई ऐसी किताब, जो इन दोनों से बढ़कर मार्गदर्शन करनेवाली हो कि मैं उसका अनुसरण करूँ, यदि तुम सच्चे हो?\"

فَإِن لَّمْ يَسْتَجِيبُوا۟ لَكَ فَٱعْلَمْ أَنَّمَا يَتَّبِعُونَ أَهْوَآءَهُمْ ۚ وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّنِ ٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ بِغَيْرِ هُدًۭى مِّنَ ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّٰلِمِينَ ﴿٥٠﴾

कि मै भी उस पर चलँ फिर अगर ये लोग (इस पर भी) न मानें तो समझ लो कि ये लोग बस अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है और जो शख्स ख़ुदा की हिदायत को छोड़ कर अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है उससे ज्यादा गुमराह कौन होगा बेशक ख़ुदा सरकश लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अब यदि वे तुम्हारी माँग पूरी न करें तो जान लो कि वे केवल अपनी इच्छाओं के पीछे चलते है। और उस व्यक्ति से बढ़कर भटका हुआ कौन होगा जो अल्लाह की ओर से किसी मार्गदर्शन के बिना अपनी इच्छा पर चले? निश्चय ही अल्लाह ज़ालिम लोगों को मार्ग नहीं दिखाता

۞ وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ ٱلْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ ﴿٥١﴾

और हम यक़ीनन लगातार (अपने एहकाम भेजकर) उनकी नसीहत करते रहे ताकि वह लोग नसीहत हासिल करें

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हम उनके लिए वाणी बराबर अवतरित करते रहे, शायद वे ध्यान दें

ٱلَّذِينَ ءَاتَيْنَٰهُمُ ٱلْكِتَٰبَ مِن قَبْلِهِۦ هُم بِهِۦ يُؤْمِنُونَ ﴿٥٢﴾

जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब अता की है वह उस (क़ुरान) पर ईमान लाते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों को हमने इससे पूर्व किताब दी थी, वे इसपर ईमान लाते है

وَإِذَا يُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ قَالُوٓا۟ ءَامَنَّا بِهِۦٓ إِنَّهُ ٱلْحَقُّ مِن رَّبِّنَآ إِنَّا كُنَّا مِن قَبْلِهِۦ مُسْلِمِينَ ﴿٥٣﴾

और जब उनके सामने ये पढ़ा जाता है तो बोल उठते हैं कि हम तो इस पर ईमान ला चुके बेशक ये ठीक है (और) हमारे परवरदिगार की तरफ से है हम तो इसको पहले ही मानते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब यह उनको पढ़कर सुनाया जाता है तो वे कहते है, \"हम इसपर ईमान लाए। निश्चय ही यह सत्य है हमारे रब की ओर से। हम तो इससे पहले ही से मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।\"

أُو۟لَٰٓئِكَ يُؤْتَوْنَ أَجْرَهُم مَّرَّتَيْنِ بِمَا صَبَرُوا۟ وَيَدْرَءُونَ بِٱلْحَسَنَةِ ٱلسَّيِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنَٰهُمْ يُنفِقُونَ ﴿٥٤﴾

यही वह लोग हैं जिन्हें (इनके आमाले ख़ैर की) दोहरी जज़ा दी जाएगी-चूँकि उन लोगों ने सब्र किया और बदी को नेकी से दफ़ा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (हमारी राह में) ख़र्च करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ये वे लोग है जिन्हें उनका प्रतिदान दुगना दिया जाएगा, क्योंकि वे जमे रहे और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते है और जो कुछ रोज़ी हमने उन्हें दी हैं, उसमें से ख़र्च करते है

وَإِذَا سَمِعُوا۟ ٱللَّغْوَ أَعْرَضُوا۟ عَنْهُ وَقَالُوا۟ لَنَآ أَعْمَٰلُنَا وَلَكُمْ أَعْمَٰلُكُمْ سَلَٰمٌ عَلَيْكُمْ لَا نَبْتَغِى ٱلْجَٰهِلِينَ ﴿٥٥﴾

और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख्वाहॉ नहीं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब वे व्यर्थ की बात सुनते है तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते है कि \"हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म है। तुमको सलाम है! ज़ाहिलों को हम नहीं चाहते।\"

إِنَّكَ لَا تَهْدِى مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَهْدِى مَن يَشَآءُ ۚ وَهُوَ أَعْلَمُ بِٱلْمُهْتَدِينَ ﴿٥٦﴾

(ऐ रसूल) बेशक तुम जिसे चाहो मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचा सकते मगर हाँ जिसे खुदा चाहे मंज़िल मक़सूद तक पहुचाए और वही हिदायत याफ़ता लोगों से ख़ूब वाक़िफ़ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुम जिसे चाहो राह पर नहीं ला सकते, किन्तु अल्लाह जिसे चाहता है राह दिखाता है, और वही राह पानेवालों को भली-भाँति जानता है

وَقَالُوٓا۟ إِن نَّتَّبِعِ ٱلْهُدَىٰ مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ أَرْضِنَآ ۚ أَوَلَمْ نُمَكِّن لَّهُمْ حَرَمًا ءَامِنًۭا يُجْبَىٰٓ إِلَيْهِ ثَمَرَٰتُ كُلِّ شَىْءٍۢ رِّزْقًۭا مِّن لَّدُنَّا وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ﴿٥٧﴾

(ऐ रसूल) कुफ्फ़ार (मक्का) तुमसे कहते हैं कि अगर हम तुम्हारे साथ दीन हक़ की पैरवी करें तो हम अपने मुल्क़ से उचक लिए जाएँ (ये क्या बकते है) क्या हमने उन्हें हरम (मक्का) में जहाँ हर तरह का अमन है जगह नहीं दी वहाँ हर किस्म के फल रोज़ी के वास्ते हमारी बारगाह से खिंचे चले जाते हैं मगर बहुतेरे लोग नहीं जाते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे कहते है, \"यदि हम तुम्हारे साथ इस मार्गदर्शन का अनुसरण करें तो अपने भू-भाग से उचक लिए जाएँगे।\" क्या ख़तरों से सुरक्षित हरम में हमने ठिकाना नहीं दिया, जिसकी ओर हमारी ओर से रोज़ी के रूप में हर चीज़ की पैदावार खिंची चली आती है? किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं

وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍۭ بَطِرَتْ مَعِيشَتَهَا ۖ فَتِلْكَ مَسَٰكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَن مِّنۢ بَعْدِهِمْ إِلَّا قَلِيلًۭا ۖ وَكُنَّا نَحْنُ ٱلْوَٰرِثِينَ ﴿٥٨﴾

और हमने तो बहुतेरी बस्तियाँ बरबाद कर दी जो अपनी मइशत (रोजी) में बहुत इतराहट से (ज़िन्दगी) बसर किया करती थीं-(तो देखो) ये उन ही के (उजड़े हुए) घर हैं जो उनके बाद फिर आबाद नहीं हुए मगर बहुत कम और (आख़िर) हम ही उनके (माल व असबाब के) वारिस हुए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने कितनी ही बस्तियों को विनष्ट कर डाला, जिन्होंने अपनी गुज़र-बसर के संसाधन पर इतराते हुए अकृतज्ञता दिखाई। तो वे है उनके घर, जो उनके बाद आबाद थोड़े ही हुए। अन्ततः हम ही वारिस हुए

وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ ٱلْقُرَىٰ حَتَّىٰ يَبْعَثَ فِىٓ أُمِّهَا رَسُولًۭا يَتْلُوا۟ عَلَيْهِمْ ءَايَٰتِنَا ۚ وَمَا كُنَّا مُهْلِكِى ٱلْقُرَىٰٓ إِلَّا وَأَهْلُهَا ظَٰلِمُونَ ﴿٥٩﴾

और तुम्हारा परवरदिगार जब तक उन गाँव के सदर मक़ाम पर अपना पैग़म्बर न भेज ले और वह उनके सामने हमारी आयतें न पढ़ दे (उस वक्त तक) बस्तियों को बरबाद नहीं कर दिया करता-और हम तो बस्तियों को बरबाद करते ही नहीं जब तक वहाँ के लोग ज़ालिम न हों

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तेरा रब तो बस्तियों को विनष्ट करनेवाला नहीं जब तक कि उनकी केन्द्रीय बस्ती में कोई रसूल न भेज दे, जो हमारी आयतें सुनाए। और हम बस्तियों को विनष्ट करनेवाले नहीं सिवाय इस स्थिति के कि वहाँ के रहनेवाले ज़ालिम हों

وَمَآ أُوتِيتُم مِّن شَىْءٍۢ فَمَتَٰعُ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا وَزِينَتُهَا ۚ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ خَيْرٌۭ وَأَبْقَىٰٓ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ ﴿٦٠﴾

और तुम लोगों को जो कुछ अता हुआ है तो दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी का फ़ायदा और उसकी आराइश है और जो कुछ ख़ुदा के पास है वह उससे कही बेहतर और पाएदार है तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो चीज़ भी तुम्हें प्रदान की गई है वह तो सांसारिक जीवन की सामग्री और उसकी शोभा है। और जो कुछ अल्लाह के पास है वह उत्तम और शेष रहनेवाला है, तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?

أَفَمَن وَعَدْنَٰهُ وَعْدًا حَسَنًۭا فَهُوَ لَٰقِيهِ كَمَن مَّتَّعْنَٰهُ مَتَٰعَ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا ثُمَّ هُوَ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ مِنَ ٱلْمُحْضَرِينَ ﴿٦١﴾

तो क्या वह शख्स जिससे हमने (बेहश्त का) अच्छा वायदा किया है और वह उसे पाकर रहेगा उस शख्स के बराबर हो सकता है जिसे हमने दुनियावी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ा) फायदे अता किए हैं और फिर क़यामत के दिन (जवाब देही के वास्ते हमारे सामने) हाज़िर किए जाएँगें

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

भला वह व्यक्ति जिससे हमने अच्छा वादा किया है और वह उसे पानेवाला भी हो, वह उस व्यक्ति की तरह हो सकता है जिसे हमने सांसारिक जीवन की सामग्री दे दी हो, फिर वह क़ियामत के दिन पकड़कर पेश किया जानेवाला हो?

وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَآءِىَ ٱلَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ ﴿٦٢﴾

और जिस दिन ख़ुदा उन कुफ्फ़ार को पुकारेगा और पूछेगा कि जिनको तुम हमारा शरीक ख्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं (ग़रज़ वह शरीक भी बुलाँए जाएँगे)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ख़याल करो जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, \"कहाँ है मेरे वे साझीदार जिनका तुम्हें दावा था?\"

قَالَ ٱلَّذِينَ حَقَّ عَلَيْهِمُ ٱلْقَوْلُ رَبَّنَا هَٰٓؤُلَآءِ ٱلَّذِينَ أَغْوَيْنَآ أَغْوَيْنَٰهُمْ كَمَا غَوَيْنَا ۖ تَبَرَّأْنَآ إِلَيْكَ ۖ مَا كَانُوٓا۟ إِيَّانَا يَعْبُدُونَ ﴿٦٣﴾

वह लोग जो हमारे अज़ाब के मुस्ताजिब हो चुके हैं कह देगे कि परवरदिगार यही वह लोग हैं जिन्हें हमने गुमराह किया था जिस तरह हम ख़़ुद गुमराह हुए उसी तरह हमने इनको गुमराह किया-अब हम तेरी बारगाह में (उनसे) दस्तबरदार होते है-ये लोग हमारी इबादत नहीं करते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिनपर बात पूरी हो चुकी होगी, वे कहेंगे, \"ऐ हमारे रब! ये वे लोग है जिन्हें हमने बहका दिया था। जैसे हम स्वयं बहके थे, इन्हें भी बहकाया। हमने तेरे आगे स्पष्ट कर दिया कि इनसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं। ये हमारी बन्दगी तो करते नहीं थे?\"

وَقِيلَ ٱدْعُوا۟ شُرَكَآءَكُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا۟ لَهُمْ وَرَأَوُا۟ ٱلْعَذَابَ ۚ لَوْ أَنَّهُمْ كَانُوا۟ يَهْتَدُونَ ﴿٦٤﴾

और कहा जाएगा कि भला अपने उन शरीको को (जिन्हें तुम ख़ुदा समझते थे) बुलाओ तो ग़रज़ वह लोग उन्हें बुलाएँगे तो वह उन्हें जवाब तक नही देगें और (अपनी ऑंखों से) अज़ाब को देखेंगें काश ये लोग (दुनिया में) राह पर आए होते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहा जाएगा, \"पुकारो, अपने ठहराए हुए साझीदारों को!\" तो वे उन्हें पुकारेंगे, किन्तु वे उनको कोई उत्तर न देंगे। और वे यातना देखकर रहेंगे। काश वे मार्ग पानेवाले होते!

وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ مَاذَآ أَجَبْتُمُ ٱلْمُرْسَلِينَ ﴿٦٥﴾

और (वह दिन याद करो) जिस दिन ख़ुदा लोगों को पुकार कर पूछेगा कि तुम लोगों ने पैग़म्बरों को (उनके समझाने पर) क्या जवाब दिया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, \"तुमने रसूलों को क्या उत्तर दिया था?\"

فَعَمِيَتْ عَلَيْهِمُ ٱلْأَنۢبَآءُ يَوْمَئِذٍۢ فَهُمْ لَا يَتَسَآءَلُونَ ﴿٦٦﴾

तब उस दिन उन्हें बातें न सूझ पडेग़ी (और) फिर बाहम एक दूसरे से पूछ भी न सकेगें

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उस दिन उन्हें बात न सूझेंगी, फिर वे आपस में भी पूछताछ न करेंगे

فَأَمَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحًۭا فَعَسَىٰٓ أَن يَكُونَ مِنَ ٱلْمُفْلِحِينَ ﴿٦٧﴾

मगर हाँ जिस शख्स ने तौबा कर ली और ईमान लाया और अच्छे अच्छे काम किए तो क़रीब है कि ये लोग अपनी मुरादें पाने वालों से होंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अलबत्ता जिस किसी ने तौबा कर ली और वह ईमान ले आया और अच्छा कर्म किया, तो आशा है वह सफल होनेवालों में से होगा

وَرَبُّكَ يَخْلُقُ مَا يَشَآءُ وَيَخْتَارُ ۗ مَا كَانَ لَهُمُ ٱلْخِيَرَةُ ۚ سُبْحَٰنَ ٱللَّهِ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ ﴿٦٨﴾

और तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है पैदा करता है और (जिसे चाहता है) मुन्तख़िब करता है और ये इन्तिख़ाब लोगों के एख्तियार में नहीं है और जिस चीज़ को ये लोग ख़ुदा का शरीक बनाते हैं उससे ख़ुदा पाक और (कहीं) बरतर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तेरा रब पैदा करता है जो कुछ चाहता है और ग्रहण करता है जो चाहता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं। अल्लाह महान और उच्च है उस शिर्क से, जो वे करते है

وَرَبُّكَ يَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ ﴿٦٩﴾

और (ऐ रसूल) ये लोग जो बातें अपने दिलों में छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और तेरा रब जानता है जो कुछ उनके सीने छिपाते है और जो कुछ वे लोग व्यक्त करते है

وَهُوَ ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ لَهُ ٱلْحَمْدُ فِى ٱلْأُولَىٰ وَٱلْءَاخِرَةِ ۖ وَلَهُ ٱلْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴿٧٠﴾

और वही ख़ुदा है उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं दुनिया और आख़िरत में उस की तारीफ़ है और उसकी हुकूमत है और तुम लोग (मरने के बाद) उसकी तरफ लौटाए जाओगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और वही अल्लाह है, उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं। सारी प्रशंसा उसी के लिए है पहले और पिछले जीवन में फ़ैसले का अधिकार उसी को है और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे

قُلْ أَرَءَيْتُمْ إِن جَعَلَ ٱللَّهُ عَلَيْكُمُ ٱلَّيْلَ سَرْمَدًا إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَٰمَةِ مَنْ إِلَٰهٌ غَيْرُ ٱللَّهِ يَأْتِيكُم بِضِيَآءٍ ۖ أَفَلَا تَسْمَعُونَ ﴿٧١﴾

(ऐ रसूल इन लोगों से) कहो कि भला तुमने देखा कि अगर ख़ुदा हमेशा के लिए क़यामत तक तुम्हारे सरों पर रात को छाए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे पास रौशनी ले आता तो क्या तुम सुनते नहीं हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

‍‍कहो, \"क्या तुमने विचार किया कि यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर रात कर दे तो अल्लाह के सिवा कौन इष्ट-प्रभु है जो तुम्हारे लिए प्रकाश लाए? तो क्या तुम देखते नहीं?\"

قُلْ أَرَءَيْتُمْ إِن جَعَلَ ٱللَّهُ عَلَيْكُمُ ٱلنَّهَارَ سَرْمَدًا إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَٰمَةِ مَنْ إِلَٰهٌ غَيْرُ ٱللَّهِ يَأْتِيكُم بِلَيْلٍۢ تَسْكُنُونَ فِيهِ ۖ أَفَلَا تُبْصِرُونَ ﴿٧٢﴾

(ऐ रसूल उन से) कह दो कि भला तुमने देखा कि अगर ख़ुदा क़यामत तक बराबर तुम्हारे सरों पर दिन किए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे लिए रात को ले आता कि तुम लोग इसमें रात को आराम करो तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं देखते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"क्या तुमने विचार किया? यदि अल्लाह क़ियामत के दिन तक सदैव के लिए तुमपर दिन कर दे तो अल्लाह के सिवा दूसरा कौन इष्ट-पूज्य है जो तुम्हारे लिए रात लाए जिसमें तुम आराम पाते हो? तो क्या तुम देखते नहीं?

وَمِن رَّحْمَتِهِۦ جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ لِتَسْكُنُوا۟ فِيهِ وَلِتَبْتَغُوا۟ مِن فَضْلِهِۦ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ﴿٧٣﴾

और उसने अपनी मेहरबानी से तुम्हारे वास्ते रात और दिन को बनाया ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शुक्र करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने अपनी दयालुता से तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए, ताकि तुम उसमें (रात में) आराम पाओ और ताकि तुम (दिन में) उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ।\"

وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَآءِىَ ٱلَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ ﴿٧٤﴾

और (उस दिन को याद करो) जिस दिन वह उन्हें पुकार कर पूछेगा जिनको तुम लोग मेरा शरीक ख्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ख़याल करो, जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा और कहेगा, \"कहाँ है मेरे वे मेरे साझीदार, जिनका तुम्हे दावा था?\"

وَنَزَعْنَا مِن كُلِّ أُمَّةٍۢ شَهِيدًۭا فَقُلْنَا هَاتُوا۟ بُرْهَٰنَكُمْ فَعَلِمُوٓا۟ أَنَّ ٱلْحَقَّ لِلَّهِ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا۟ يَفْتَرُونَ ﴿٧٥﴾

और हम हर एक उम्मत से एक गवाह (पैग़म्बर) निकाले (सामने बुलाएँगे) फिर (उस दिन मुशरेकीन से) कहेंगे कि अपनी (बराअत की) दलील पेश करो तब उन्हें मालूम हो जाएगा कि हक़ ख़ुदा ही की तरफ़ है और जो इफ़तेरा परवाज़ियाँ ये लोग किया करते थे सब उनसे ग़ायब हो जाएँगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह निकाल लाएँगे और कहेंगे, \"लाओ अपना प्रमाण।\" तब वे जान लेंगे कि सत्य अल्लाह की ओर से है और जो कुछ वे घड़ते थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा

۞ إِنَّ قَٰرُونَ كَانَ مِن قَوْمِ مُوسَىٰ فَبَغَىٰ عَلَيْهِمْ ۖ وَءَاتَيْنَٰهُ مِنَ ٱلْكُنُوزِ مَآ إِنَّ مَفَاتِحَهُۥ لَتَنُوٓأُ بِٱلْعُصْبَةِ أُو۟لِى ٱلْقُوَّةِ إِذْ قَالَ لَهُۥ قَوْمُهُۥ لَا تَفْرَحْ ۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلْفَرِحِينَ ﴿٧٦﴾

(नाशुक्री का एक क़िस्सा सुनो) मूसा की क़ौम से एक शख्स कारुन (नामी) था तो उसने उन पर सरकशी शुरु की और हमने उसको इस क़दर ख़ज़ाने अता किए थे कि उनकी कुन्जियाँ एक सकतदार जमाअत (की जामअत) को उठाना दूभर हो जाता था जब (एक बार) उसकी क़ौम ने उससे कहा कि (अपनी दौलत पर) इतरा मत क्योंकि ख़ुदा इतराने वालों को दोस्त नहीं रखता

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही क़ारून मूसा की क़ौम में से था, फिर उसने उनके विरुद्ध सिर उठाया और हमने उसे इतने ख़जाने दे रखें थे कि उनकी कुंजियाँ एक बलशाली दल को भारी पड़ती थी। जब उससे उसकी क़ौम के लोगों ने कहा, \"इतरा मत, अल्लाह इतरानेवालों के पसन्द नही करता

وَٱبْتَغِ فِيمَآ ءَاتَىٰكَ ٱللَّهُ ٱلدَّارَ ٱلْءَاخِرَةَ ۖ وَلَا تَنسَ نَصِيبَكَ مِنَ ٱلدُّنْيَا ۖ وَأَحْسِن كَمَآ أَحْسَنَ ٱللَّهُ إِلَيْكَ ۖ وَلَا تَبْغِ ٱلْفَسَادَ فِى ٱلْأَرْضِ ۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلْمُفْسِدِينَ ﴿٧٧﴾

और जो कुछ ख़ुदा ने तूझे दे रखा है उसमें आख़िरत के घर की भी जुस्तजू कर और दुनिया से जिस क़दर तेरा हिस्सा है मत भूल जा और जिस तरह ख़ुदा ने तेरे साथ एहसान किया है तू भी औरों के साथ एहसान कर और रुए ज़मीन में फसाद का ख्वाहा न हो-इसमें शक नहीं कि ख़ुदा फ़साद करने वालों को दोस्त नहीं रखता

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उसमें आख़िरत के घर का निर्माण कर और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल, और भलाई कर, जैसा कि अल्लाह ने तेरे साथ भलाई की है, और धरती का बिगाड़ मत चाह। निश्चय ही अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों को पसन्द नहीं करता।\"

قَالَ إِنَّمَآ أُوتِيتُهُۥ عَلَىٰ عِلْمٍ عِندِىٓ ۚ أَوَلَمْ يَعْلَمْ أَنَّ ٱللَّهَ قَدْ أَهْلَكَ مِن قَبْلِهِۦ مِنَ ٱلْقُرُونِ مَنْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُ قُوَّةًۭ وَأَكْثَرُ جَمْعًۭا ۚ وَلَا يُسْـَٔلُ عَن ذُنُوبِهِمُ ٱلْمُجْرِمُونَ ﴿٧٨﴾

तो क़ारुन कहने लगा कि ये (माल व दौलत) तो मुझे अपने इल्म (कीमिया) की वजह से हासिल होता है क्या क़ारुन ने ये भी न ख्याल किया कि अल्लाह उसके पहले उन लोगों को हलाक़ कर चुका है जो उससे क़ूवत और हैसियत में कहीं बढ़ बढ़ के थे और गुनाहगारों से (उनकी सज़ा के वक्त) उनके गुनाहों की पूछताछ नहीं हुआ करती

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने कहा, \"मुझे तो यह मेरे अपने व्यक्तिगत ज्ञान के कारण मिला है।\" क्या उसने यह नहीं जाना कि अल्लाह उससे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर चुका है जो शक्ति में उससे बढ़-चढ़कर और बाहुल्य में उससे अधिक थीं? अपराधियों से तो (उनकी तबाही के समय) उनके गुनाहों के विषय में पूछा भी नहीं जाता

فَخَرَجَ عَلَىٰ قَوْمِهِۦ فِى زِينَتِهِۦ ۖ قَالَ ٱلَّذِينَ يُرِيدُونَ ٱلْحَيَوٰةَ ٱلدُّنْيَا يَٰلَيْتَ لَنَا مِثْلَ مَآ أُوتِىَ قَٰرُونُ إِنَّهُۥ لَذُو حَظٍّ عَظِيمٍۢ ﴿٧٩﴾

ग़रज़ (एक दिन क़ारुन) अपनी क़ौम के सामने बड़ी आराइश और ठाठ के साथ निकला तो जो लोग दुनिया को (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी के तालिब थे (इस शान से देख कर) कहने लगे जो माल व दौलत क़ारुन को अता हुई है काश मेरे लिए भी होती इसमें शक नहीं कि क़ारुन बड़ा नसीब वर था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर वह अपनी क़ौम के सामने अपने ठाठ-बाट में निकला। जो लोग सांसारिक जीवन के चाहनेवाले थे, उन्होंने कहा, \"क्या ही अच्छा होता जैसा कुछ क़ारून को मिला है, हमें भी मिला होता! वह तो बड़ा ही भाग्यशाली है।\"

وَقَالَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْعِلْمَ وَيْلَكُمْ ثَوَابُ ٱللَّهِ خَيْرٌۭ لِّمَنْ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحًۭا وَلَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ٱلصَّٰبِرُونَ ﴿٨٠﴾

और जिन लोगों को (हमारी बारगाह में) इल्म अता हुआ था कहनें लगे तुम्हारा नास हो जाए (अरे) जो शख्स ईमान लाए और अच्छे काम करे उसके लिए तो ख़ुदा का सवाब इससे कही बेहतर है और वह तो अब सब्र करने वालों के सिवा दूसरे नहीं पा सकते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

किन्तु जिनको ज्ञान प्राप्त था, उन्होंने कहा, \"अफ़सोस तुमपर! अल्लाह का प्रतिदान उत्तम है, उस व्यक्ति के लिए जो ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, और यह बात उन्हीम के दिलों में पड़ती है जो धैर्यवान होते है।\"

فَخَسَفْنَا بِهِۦ وَبِدَارِهِ ٱلْأَرْضَ فَمَا كَانَ لَهُۥ مِن فِئَةٍۢ يَنصُرُونَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلْمُنتَصِرِينَ ﴿٨١﴾

और हमने क़ारुन और उसके घर बार को ज़मीन में धंसा दिया फिर ख़ुदा के सिवा कोई जमाअत ऐसी न थी कि उसकी मदद करती और न खुद आप अपनी मदद आप कर सका

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अन्ततः हमने उसको और उसके घर को धरती में धँसा दिया। और कोई ऐसा गिरोह न हुआ जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी सहायता करता, और न वह स्वयं अपना बचाव कर सका

وَأَصْبَحَ ٱلَّذِينَ تَمَنَّوْا۟ مَكَانَهُۥ بِٱلْأَمْسِ يَقُولُونَ وَيْكَأَنَّ ٱللَّهَ يَبْسُطُ ٱلرِّزْقَ لِمَن يَشَآءُ مِنْ عِبَادِهِۦ وَيَقْدِرُ ۖ لَوْلَآ أَن مَّنَّ ٱللَّهُ عَلَيْنَا لَخَسَفَ بِنَا ۖ وَيْكَأَنَّهُۥ لَا يُفْلِحُ ٱلْكَٰفِرُونَ ﴿٨٢﴾

और जिन लोगों ने कल उसके जाह व मरतबे की तमन्ना की थी वह (आज ये तमाशा देखकर) कहने लगे अरे माज़अल्लाह ये तो ख़ुदा ही अपने बन्दों से जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग कर देता है और अगर (कहीं) ख़ुदा हम पर मेहरबानी न करता (और इतना माल दे देता) तो उसकी तरह हमको भी ज़रुर धॅसा देता-और माज़अल्लाह (सच है) हरगिज़ कुफ्फार अपनी मुरादें न पाएँगें

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अब वही लोग, जो कल उसके पद की कामना कर रहे थे, कहने लगें, \"अफ़सोस हम भूल गए थे कि अल्लाह अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा करता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है। यदि अल्लाह ने हमपर उपकार न किया होता तो हमें भी धँसा देता। अफ़सोस हम भूल गए थे कि इनकार करनेवाले सफल नहीं हुआ करते।\"

تِلْكَ ٱلدَّارُ ٱلْءَاخِرَةُ نَجْعَلُهَا لِلَّذِينَ لَا يُرِيدُونَ عُلُوًّۭا فِى ٱلْأَرْضِ وَلَا فَسَادًۭا ۚ وَٱلْعَٰقِبَةُ لِلْمُتَّقِينَ ﴿٨٣﴾

ये आख़िरत का घर तो हम उन्हीं लोगों के लिए ख़ास कर देगें जो रुए ज़मीन पर न सरकशी करना चाहते हैं और न फसाद-और (सच भी यूँ ही है कि) फिर अन्जाम तो परहेज़गारों ही का है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

आख़िरत का घर हम उन लोगों के लिए ख़ास कर देंगे जो न धरती में अपनी बड़ाई चाहते है और न बिगाड़। परिणाम तो अन्ततः डर रखनेवालों के पक्ष में है

مَن جَآءَ بِٱلْحَسَنَةِ فَلَهُۥ خَيْرٌۭ مِّنْهَا ۖ وَمَن جَآءَ بِٱلسَّيِّئَةِ فَلَا يُجْزَى ٱلَّذِينَ عَمِلُوا۟ ٱلسَّيِّـَٔاتِ إِلَّا مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ ﴿٨٤﴾

जो शख्स नेकी करेगा तो उसके लिए उसे कहीं बेहतर बदला है औ जो बुरे काम करेगा तो वह याद रखे कि जिन लोगों ने बुराइयाँ की हैं उनका वही बदला हे जो दुनिया में करते रहे हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो कोई अच्छा आचारण लेकर आया उसे उससे उत्तम प्राप्त होगा, और जो बुरा आचरण लेकर आया तो बुराइयाँ करनेवालों को तो वस वही मिलेगा जो वे करते थे

إِنَّ ٱلَّذِى فَرَضَ عَلَيْكَ ٱلْقُرْءَانَ لَرَآدُّكَ إِلَىٰ مَعَادٍۢ ۚ قُل رَّبِّىٓ أَعْلَمُ مَن جَآءَ بِٱلْهُدَىٰ وَمَنْ هُوَ فِى ضَلَٰلٍۢ مُّبِينٍۢ ﴿٨٥﴾

(ऐ रसूल) ख़ुदा जिसने तुम पर क़ुरान नाज़िल किया ज़रुर ठिकाने तक पहुँचा देगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि कौन राह पर आया और कौन सरीही गुमराही में पड़ा रहा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिसने इस क़ुरआन की ज़िम्मेदारी तुमपर डाली है, वह तुम्हें उसके (अच्छे) अंजाम तक ज़रूर पहुँचाएगा। कहो, \"मेरा रब उसे भली-भाँति जानता है जो मार्गदर्शन लेकर आया, और उसे भी जो खुली गुमराही में पड़ा है।\"

وَمَا كُنتَ تَرْجُوٓا۟ أَن يُلْقَىٰٓ إِلَيْكَ ٱلْكِتَٰبُ إِلَّا رَحْمَةًۭ مِّن رَّبِّكَ ۖ فَلَا تَكُونَنَّ ظَهِيرًۭا لِّلْكَٰفِرِينَ ﴿٨٦﴾

इससे मेरा परवरदिगार ख़ूब वाक़िफ है और तुमको तो ये उम्मीद न थी कि तुम्हारे पास ख़ुदा की तरफ से किताब नाज़िल की जाएगी मगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से नाज़िल हुई तो तुम हरग़िज़ काफिरों के पुश्त पनाह न बनना

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुम तो इसकी आशा नहीं रखते थे कि तुम्हारी ओर किताब उतारी जाएगी। इसकी संभावना तो केवल तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुई। अतः तुम इनकार करनेवालों के पृष्ठपोषक न बनो

وَلَا يَصُدُّنَّكَ عَنْ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ بَعْدَ إِذْ أُنزِلَتْ إِلَيْكَ ۖ وَٱدْعُ إِلَىٰ رَبِّكَ ۖ وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ﴿٨٧﴾

कहीं ऐसा न हो एहकामे ख़ुदा वन्दी नाज़िल होने के बाद तुमको ये लोग उनकी तबलीग़ से रोक दें और तुम अपने परवरदिगार की तरफ (लोगों को) बुलाते जाओ और ख़बरदार मुशरेकीन से हरगिज़ न होना

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और वे तुम्हें अल्लाह की आयतों से रोक न पाएँ, इसके पश्चात कि वे तुमपर अवतरित हो चुकी है। और अपने रब की ओर बुलाओ और बहुदेववादियों में कदापि सम्मिलित न होना

وَلَا تَدْعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ ۘ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ كُلُّ شَىْءٍ هَالِكٌ إِلَّا وَجْهَهُۥ ۚ لَهُ ٱلْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴿٨٨﴾

और ख़ुदा के सिवा किसी और माबूद की परसतिश न करना उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फना होने वाली है उसकी हुकूमत है और तुम लोग उसकी तरफ़ (मरने के बाद) लौटाये जाओगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और अल्लाह के साथ किसी और इष्ट-पूज्य को न पुकारना। उसके सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। हर चीज़ नाशवान है सिवास उसके स्वरूप के। फ़ैसला और आदेश का अधिकार उसी को प्राप्त है और उसी की ओर तुम सबको लौटकर जाना है