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Surah The Coalition [Al-Ahzab] in Hindi

Surah The Coalition [Al-Ahzab] Ayah 73 Location Maccah Number 33

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ ٱتَّقِ ٱللَّهَ وَلَا تُطِعِ ٱلْكَٰفِرِينَ وَٱلْمُنَٰفِقِينَ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًۭا ﴿١﴾

ऐ नबी खुदा ही से डरते रहो और काफिरों और मुनाफिक़ों की बात न मानो इसमें शक नहीं कि खुदा बड़ा वाक़िफकार हकीम है।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ नबी! अल्लाह का डर रखना और इनकार करनेवालों और कपटाचारियों का कहना न मानना। वास्तब में अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है

وَٱتَّبِعْ مَا يُوحَىٰٓ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًۭا ﴿٢﴾

और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास जो ''वही'' की जाती है (बस) उसी की पैरवी करो तुम लोग जो कुछ कर रहे हो खुदा उससे यक़ीनी अच्छा तरह आगाह है।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और अनुकरण करना उस चीज़ का जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हें प्रकाशना की जा रही है। निश्चय ही अल्लाह उसकी ख़बर रखता है जो तुम करते हो

وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًۭا ﴿٣﴾

और खुदा ही पर भरोसा रखो और खुदा ही कारसाजी के लिए काफी है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह भरोसे के लिए काफी है

مَّا جَعَلَ ٱللَّهُ لِرَجُلٍۢ مِّن قَلْبَيْنِ فِى جَوْفِهِۦ ۚ وَمَا جَعَلَ أَزْوَٰجَكُمُ ٱلَّٰٓـِٔى تُظَٰهِرُونَ مِنْهُنَّ أُمَّهَٰتِكُمْ ۚ وَمَا جَعَلَ أَدْعِيَآءَكُمْ أَبْنَآءَكُمْ ۚ ذَٰلِكُمْ قَوْلُكُم بِأَفْوَٰهِكُمْ ۖ وَٱللَّهُ يَقُولُ ٱلْحَقَّ وَهُوَ يَهْدِى ٱلسَّبِيلَ ﴿٤﴾

ख़ुदा ने किसी आदमी के सीने में दो दिल नहीं पैदा किये कि (एक ही वक्त दो इरादे कर सके) और न उसने तुम्हारी बीवियों को जिन से तुम जेहार करते हो तुम्हारी माएँ बना दी और न उसने तुम्हारे लिये पालकों को तुम्हारे बेटे बना दिये। ये तो फ़क़त तुम्हारी मुँह बोली बात (और ज़ुबानी जमा खर्च) है और (चाहे किसी को बुरी लगे या अच्छी) खुदा तो सच्ची कहता है और सीधी राह दिखाता है।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह ने किसी व्यक्ति के सीने में दो दिल नहीं रखे। और न उसने तुम्हारी उन पत्ऩियों को जिनसे तुम ज़िहार कर बैठते हो, वास्तव में तुम्हारी माँ बनाया, और न उसने तुम्हारे मुँह बोले बेटों को तुम्हारे वास्तविक बेटे बनाए। ये तो तुम्हारे मुँह की बातें है। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहता है और वही मार्ग दिखाता है

ٱدْعُوهُمْ لِءَابَآئِهِمْ هُوَ أَقْسَطُ عِندَ ٱللَّهِ ۚ فَإِن لَّمْ تَعْلَمُوٓا۟ ءَابَآءَهُمْ فَإِخْوَٰنُكُمْ فِى ٱلدِّينِ وَمَوَٰلِيكُمْ ۚ وَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌۭ فِيمَآ أَخْطَأْتُم بِهِۦ وَلَٰكِن مَّا تَعَمَّدَتْ قُلُوبُكُمْ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًا ﴿٥﴾

लिये पालकों का उनके (असली) बापों के नाम से पुकारा करो यही खुदा के नज़दीक बहुत ठीक है हाँ अगर तुम लोग उनके असली बापों को न जानते हो तो तुम्हारे दीनी भाई और दोस्त हैं (उन्हें भाई या दोस्त कहकर पुकारा करो) और हाँ इसमें भूल चूक जाओ तो अलबत्ता उसका तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है मगर जब तुम दिल से जानबूझ कर करो (तो ज़रूर गुनाह है) और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्हें उनके बापों का बेटा करकर पुकारो। अल्लाह के यहाँ यही अधिक न्यायसंगत बात है। और यदि तुम उनके बापों को न जानते हो, तो धर्म में वे तुम्हारे भाई तो है ही और तुम्हारे सहचर भी। इस सिलसिले में तुमसे जो ग़लती हुई हो उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं, किन्तु जिसका संकल्प तुम्हारे दिलों ने कर लिया, उसकी बात और है। वास्तव में अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है

ٱلنَّبِىُّ أَوْلَىٰ بِٱلْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنفُسِهِمْ ۖ وَأَزْوَٰجُهُۥٓ أُمَّهَٰتُهُمْ ۗ وَأُو۟لُوا۟ ٱلْأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَىٰ بِبَعْضٍۢ فِى كِتَٰبِ ٱللَّهِ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُهَٰجِرِينَ إِلَّآ أَن تَفْعَلُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَوْلِيَآئِكُم مَّعْرُوفًۭا ۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِى ٱلْكِتَٰبِ مَسْطُورًۭا ﴿٦﴾

नबी तो मोमिनीन से खुद उनकी जानों से भी बढ़कर हक़ रखते हैं (क्योंकि वह गोया उम्मत के मेहरबान बाप हैं) और उनकी बीवियाँ (गोया) उनकी माएँ हैं और मोमिनीन व मुहाजिरीन में से (जो लोग बाहम) क़राबतदार हैं। किताबें खुदा की रूह से (ग़ैरों की निस्बत) एक दूसरे के (तर्के के) ज्यादा हक़दार हैं मगर (जब) तुम अपने दोस्तों के साथ सुलूक करना चाहो (तो दूसरी बात है) ये तो किताबे (खुदा) में लिखा हुआ (मौजूद) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

नबी का हक़ ईमानवालों पर स्वयं उनके अपने प्राणों से बढ़कर है। और उसकी पत्नियों उनकी माएँ है। और अल्लाह के विधान के अनुसार सामान्य मोमिनों और मुहाजिरों की अपेक्षा नातेदार आपस में एक-दूसरे से अधिक निकट है। यह और बात है कि तुम अपने साथियों के साथ कोई भलाई करो। यह बात किताब में लिखी हुई है

وَإِذْ أَخَذْنَا مِنَ ٱلنَّبِيِّۦنَ مِيثَٰقَهُمْ وَمِنكَ وَمِن نُّوحٍۢ وَإِبْرَٰهِيمَ وَمُوسَىٰ وَعِيسَى ٱبْنِ مَرْيَمَ ۖ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظًۭا ﴿٧﴾

और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब हमने और पैग़म्बरों से और ख़ास तुमसे और नूह और इबराहीम और मूसा और मरियम के बेटे ईसा से एहदो पैमाने लिया और उन लोगों से हमने सख्त एहद लिया था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जब हमने नबियों से वचन लिया, तुमसे भी और नूह और इबराहीम और मूसा और मरयम के बेटे ईसा से भी। इन सबसे हमने ढृढ़ वचन लिया,

لِّيَسْـَٔلَ ٱلصَّٰدِقِينَ عَن صِدْقِهِمْ ۚ وَأَعَدَّ لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابًا أَلِيمًۭا ﴿٨﴾

ताकि (क़यामत के दिन) सच्चों (पैग़म्बरों) से उनकी सच्चाई तबलीग़े रिसालत का हाल दरियाफ्त करें और काफिरों के वास्ते तो उसने दर्दनाक अज़ाब तैयार ही कर रखा है।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ताकि वह सच्चे लोगों से उनकी सच्चाई के बारे में पूछे। और इनकार करनेवालों के लिए तो उसने दुखद यातना तैयार कर रखी है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱذْكُرُوا۟ نِعْمَةَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَآءَتْكُمْ جُنُودٌۭ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًۭا وَجُنُودًۭا لَّمْ تَرَوْهَا ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا ﴿٩﴾

(ऐ ईमानदारों खुदा की) उन नेअमतों को याद करो जो उसने तुम पर नाज़िल की हैं (जंगे खन्दक में) जब तुम पर (काफिरों का) लशकर (उमड़ के) आ पड़ा तो (हमने तुम्हारी मदद की) उन पर ऑंधी भेजी और (इसके अलावा फरिश्तों का ऐसा लश्कर भेजा) जिसको तुमने देखा तक नहीं और तुम जो कुछ कर रहे थे खुदा उसे खूब देख रहा था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की उस अनुकम्पा को याद करो जो तुमपर हुई; जबकि सेनाएँ तुमपर चढ़ आई तो हमने उनपर एक हवा भेज दी और ऐसी सेनाएँ भी, जिनको तुमने देखा नहीं। और अल्लाह वह सब कुछ देखता है जो तुम करते हो

إِذْ جَآءُوكُم مِّن فَوْقِكُمْ وَمِنْ أَسْفَلَ مِنكُمْ وَإِذْ زَاغَتِ ٱلْأَبْصَٰرُ وَبَلَغَتِ ٱلْقُلُوبُ ٱلْحَنَاجِرَ وَتَظُنُّونَ بِٱللَّهِ ٱلظُّنُونَا۠ ﴿١٠﴾

जिस वक्त वह लोग तुम पर तुम्हारे ऊपर से आ पड़े और तुम्हारे नीचे की तरफ से भी पिल गए और जिस वक्त (उनकी कसरत से) तुम्हारी ऑंखें ख़ैरा हो गयीं थी और (ख़ौफ से) कलेजे मुँह को आ गए थे और ख़ुदा पर तरह-तरह के (बुरे) ख्याल करने लगे थे।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो जब वे तुम्हारे ऊपर की ओर से और तुम्हारे नीचे की ओर से भी तुमपर चढ़ आए, और जब निगाहें टेढ़ी-तिरछी हो गई और उर (हृदय) कंठ को आ लगे। और तुम अल्लाह के बारे में तरह-तरह के गुमान करने लगे थे

هُنَالِكَ ٱبْتُلِىَ ٱلْمُؤْمِنُونَ وَزُلْزِلُوا۟ زِلْزَالًۭا شَدِيدًۭا ﴿١١﴾

यहाँ पर मोमिनों का इम्तिहान लिया गया था और ख़ूब अच्छी तरह झिंझोड़े गए थे।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उस समय ईमानवाले आज़माए गए और पूरी तरह हिला दिए गए

وَإِذْ يَقُولُ ٱلْمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌۭ مَّا وَعَدَنَا ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ إِلَّا غُرُورًۭا ﴿١٢﴾

और जिस वक्त मुनाफेक़ीन और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ्र का) मरज़ था कहने लगे थे कि खुदा ने और उसके रसूल ने जो हमसे वायदे किए थे वह बस बिल्कुल धोखे की टट्टी था।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है कहने लगे, \"अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे जो वादा किया था वह तो धोखा मात्र था।\"

وَإِذْ قَالَت طَّآئِفَةٌۭ مِّنْهُمْ يَٰٓأَهْلَ يَثْرِبَ لَا مُقَامَ لَكُمْ فَٱرْجِعُوا۟ ۚ وَيَسْتَـْٔذِنُ فَرِيقٌۭ مِّنْهُمُ ٱلنَّبِىَّ يَقُولُونَ إِنَّ بُيُوتَنَا عَوْرَةٌۭ وَمَا هِىَ بِعَوْرَةٍ ۖ إِن يُرِيدُونَ إِلَّا فِرَارًۭا ﴿١٣﴾

और अब उनमें का एक गिरोह कहने लगा था कि ऐ मदीने वालों अब (दुश्मन के मुक़ाबलें में ) तुम्हारे कहीं ठिकाना नहीं तो (बेहतर है कि अब भी) पलट चलो और उनमें से कुछ लोग रसूल से (घर लौट जाने की) इजाज़त माँगने लगे थे कि हमारे घर (मर्दों से) बिल्कुल ख़ाली (गैर महफूज़) पड़े हुए हैं - हालाँकि वह ख़ाली (ग़ैर महफूज़) न थे (बल्कि) वह लोग तो (इसी बहाने से) बस भागना चाहते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जबकि उनमें से एक गिरोह ने कहा, \"ऐ यसरिबवालो, तुम्हारे लिए ठहरने का कोई मौक़ा नहीं। अतः लौट चलो।\" और उनका एक गिरोह नबी से यह कहकर (वापस जाने की) अनुमति चाह रहा था कि \"हमारे घर असुरक्षित है।\" यद्यपि वे असुरक्षित न थे। वे तो बस भागना चाहते थे

وَلَوْ دُخِلَتْ عَلَيْهِم مِّنْ أَقْطَارِهَا ثُمَّ سُئِلُوا۟ ٱلْفِتْنَةَ لَءَاتَوْهَا وَمَا تَلَبَّثُوا۟ بِهَآ إِلَّا يَسِيرًۭا ﴿١٤﴾

और अगर ऐसा ही लश्कर उन लोगों पर मदीने के एतराफ से आ पड़े और उन से फसाद (ख़ाना जंगी) करने की दरख्वास्त की जाए तो ये लोग उसके लिए (फौरन) आ मौजूद हों

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और यदि उसके चतुर्दिक से उनपर हमला हो जाता, फिर उस समय उनसे उपद्रव के लिए कहा जाता, तो वे ऐसा कर डालते और इसमें विलम्ब थोड़े ही करते!

وَلَقَدْ كَانُوا۟ عَٰهَدُوا۟ ٱللَّهَ مِن قَبْلُ لَا يُوَلُّونَ ٱلْأَدْبَٰرَ ۚ وَكَانَ عَهْدُ ٱللَّهِ مَسْـُٔولًۭا ﴿١٥﴾

और (उस वक्त) अपने घरों में भी बहुत कम तवक्क़ुफ़ करेंगे (मगर ये तो जिहाद है) हालाँकि उन लोगों ने पहले ही खुदा से एहद किया था कि हम दुश्मन के मुक़ाबले में (अपनी) पीठ न फेरेंगे और खुदा के एहद की पूछगछ तो (एक न एक दिन) होकर रहेगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यद्यपि वे इससे पहले अल्लाह को वचन दे चुके थे कि वे पीठ न फेरेंगे, और अल्लाह से की गई प्रतिज्ञा के विषय में तो पूछा जाना ही है

قُل لَّن يَنفَعَكُمُ ٱلْفِرَارُ إِن فَرَرْتُم مِّنَ ٱلْمَوْتِ أَوِ ٱلْقَتْلِ وَإِذًۭا لَّا تُمَتَّعُونَ إِلَّا قَلِيلًۭا ﴿١٦﴾

(ऐ रसूल उनसे) कह दो कि अगर तुम मौत का क़त्ल (के ख़ौफ) से भागे भी तो (यह) भागना तुम्हें हरगिज़ कुछ भी मुफ़ीद न होगा और अगर तुम भागकर बच भी गए तो बस यही न की दुनिया में चन्द रोज़ा और चैनकर लो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, \"यदि तुम मृत्यु और मारे जाने से भागो भी तो यह भागना तुम्हारे लिए कदापि लाभप्रद न होगा। और इस हालत में भी तुम सुख थोड़े ही प्राप्त कर सकोगे।\"

قُلْ مَن ذَا ٱلَّذِى يَعْصِمُكُم مِّنَ ٱللَّهِ إِنْ أَرَادَ بِكُمْ سُوٓءًا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ رَحْمَةًۭ ۚ وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيًّۭا وَلَا نَصِيرًۭا ﴿١٧﴾

(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि अगर खुदा तुम्हारे साथ बुराई का इरादा कर बैठे तो तुम्हें उसके (अज़ाब) से कौन ऐसा है जो बचाए या भलाई ही करना चाहे (तो कौन रोक सकता है) और ये लोग खुदा के सिवा न तो किसी को अपना सरपरस्त पाएँगे और न मद्दगार

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"कहो है जो तुम्हें अल्लाह से बचा सकता है, यदि वह तुम्हारी कोई बुराई चाहे या वह तुम्हारे प्रति दयालुता का इरादा करे (तो कौन है जो उसकी दयालुता को रोक सके)?\" वे अल्लाह के अल्लाह के अलावा न अपना कोई निकटवर्ती समर्थक पाएँगे और न (दूर का) सहायक

۞ قَدْ يَعْلَمُ ٱللَّهُ ٱلْمُعَوِّقِينَ مِنكُمْ وَٱلْقَآئِلِينَ لِإِخْوَٰنِهِمْ هَلُمَّ إِلَيْنَا ۖ وَلَا يَأْتُونَ ٱلْبَأْسَ إِلَّا قَلِيلًا ﴿١٨﴾

तुममें से जो लोग (दूसरों को जिहाद से) रोकते हैं खुदा उनको खूब जानता है और (उनको भी खूब जानता है) जो अपने भाई बन्दों से कहते हैं कि हमारे पास चले भी आओ और खुद भी (फक़त पीछा छुड़ाने को लड़ाई के खेत) में बस एक ज़रा सा आकर तुमसे अपनी जान चुराई

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह तुममें से उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो (युद्ध से) रोकते है और अपने भाइयों से कहते है, \"हमारे पास आ जाओ।\" और वे लड़ाई में थोड़े ही आते है, (क्योंकि वे)

أَشِحَّةً عَلَيْكُمْ ۖ فَإِذَا جَآءَ ٱلْخَوْفُ رَأَيْتَهُمْ يَنظُرُونَ إِلَيْكَ تَدُورُ أَعْيُنُهُمْ كَٱلَّذِى يُغْشَىٰ عَلَيْهِ مِنَ ٱلْمَوْتِ ۖ فَإِذَا ذَهَبَ ٱلْخَوْفُ سَلَقُوكُم بِأَلْسِنَةٍ حِدَادٍ أَشِحَّةً عَلَى ٱلْخَيْرِ ۚ أُو۟لَٰٓئِكَ لَمْ يُؤْمِنُوا۟ فَأَحْبَطَ ٱللَّهُ أَعْمَٰلَهُمْ ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًۭا ﴿١٩﴾

और चल दिए और जब (उन पर) कोई ख़ौफ (का मौक़ा) आ पड़ा तो देखते हो कि (आस से) तुम्हारी तरफ देखते हैं (और) उनकी ऑंखें इस तरह घूमती हैं जैसे किसी शख्स पर मौत की बेहोशी छा जाए फिर वह ख़ौफ (का मौक़ा) जाता रहा और ईमानदारों की फतेह हुई तो माले (ग़नीमत) पर गिरते पड़ते फौरन तुम पर अपनी तेज़ ज़बानों से ताना कसने लगे ये लोग (शुरू) से ईमान ही नहीं लाए (फक़त ज़बानी जमा ख़र्च थी) तो खुदा ने भी इनका किया कराया सब अकारत कर दिया और ये तो खुदा के वास्ते एक (निहायत) आसान बात थी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुम्हारे साथ कृपणता से काम लेते है। अतः जब भय का समय आ जाता है, तो तुम उन्हें देखते हो कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार ताक रहे कि उनकी आँखें चक्कर खा रही है, जैसे किसी व्यक्ति पर मौत की बेहोशी छा रही हो। किन्तु जब भय जाता रहता है तो वे माल के लोभ में तेज़ ज़बाने तुमपर चलाते है। ऐसे लोग ईमान लाए ही नहीं। अतः अल्लाह ने उनके कर्म उनकी जान को लागू कर दिए। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है

يَحْسَبُونَ ٱلْأَحْزَابَ لَمْ يَذْهَبُوا۟ ۖ وَإِن يَأْتِ ٱلْأَحْزَابُ يَوَدُّوا۟ لَوْ أَنَّهُم بَادُونَ فِى ٱلْأَعْرَابِ يَسْـَٔلُونَ عَنْ أَنۢبَآئِكُمْ ۖ وَلَوْ كَانُوا۟ فِيكُم مَّا قَٰتَلُوٓا۟ إِلَّا قَلِيلًۭا ﴿٢٠﴾

(मदीने का मुहासेरा करने वाले चल भी दिए मगर) ये लोग अभी यही समझ रहे हैं कि (काफ़िरों के) लश्कर अभी नहीं गए और अगर कहीं (कुफ्फार का) लश्कर फिर आ पहुँचे तो ये लोग चाहेंगे कि काश वह जंगलों में गँवारों में जा बसते और (वहीं से बैठे बैठे) तुम्हारे हालात दरयाफ्त करते रहते और अगर उनको तुम लोगों में रहना पड़ता तो फ़क़त (पीछा छुड़ाने को) ज़रा ज़हूर (कहीं) लड़ते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे समझ रहे है कि (शत्रु के) सैन्य दल अभी गए नहीं हैं, और यदि वे गिरोह फिर आ जाएँ तो वे चाहेंगे कि किसी प्रकार बाहर (मरुस्थल में) बद्दु ओं के साथ हो रहें और वहीं से तुम्हारे बारे में समाचार पूछते रहे। और यदि वे तुम्हारे साथ होते भी तो लड़ाई में हिस्सा थोड़े ही लेते

لَّقَدْ كَانَ لَكُمْ فِى رَسُولِ ٱللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌۭ لِّمَن كَانَ يَرْجُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلْيَوْمَ ٱلْءَاخِرَ وَذَكَرَ ٱللَّهَ كَثِيرًۭا ﴿٢١﴾

(मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते तो खुद रसूल अल्लाह का (ख़न्दक़ में बैठना) एक अच्छा नमूना था (मगर हाँ यह) उस शख्स के वास्ते है जो खुदा और रोजे आखेरत की उम्मीद रखता हो और खुदा की याद बाकसरत करता हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निस्संदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श है अर्थात उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता हो और अल्लाह को अधिक याद करे

وَلَمَّا رَءَا ٱلْمُؤْمِنُونَ ٱلْأَحْزَابَ قَالُوا۟ هَٰذَا مَا وَعَدَنَا ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَصَدَقَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ ۚ وَمَا زَادَهُمْ إِلَّآ إِيمَٰنًۭا وَتَسْلِيمًۭا ﴿٢٢﴾

और जब सच्चे ईमानदारों ने (कुफ्फार के) जमघटों को देखा तो (बेतकल्लुफ़) कहने लगे कि ये वही चीज़ तो है जिसका हम से खुदा ने और उसके रसूल ने वायदा किया था (इसकी परवाह क्या है) और खुदा ने और उसके रसूल ने बिल्कुल ठीक कहा था और (इसके देखने से) उनका ईमानदार और उनकी इताअत और भी ज़िन्दा हो गयी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब ईमानवालों ने सैन्य दलों को देखा तो वे पुकार उठे, \"यह तो वही चीज़ है, जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था। और अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहा था।\" इस चीज़ ने उनके ईमान और आज्ञाकारिता ही को बढ़ाया

مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ رِجَالٌۭ صَدَقُوا۟ مَا عَٰهَدُوا۟ ٱللَّهَ عَلَيْهِ ۖ فَمِنْهُم مَّن قَضَىٰ نَحْبَهُۥ وَمِنْهُم مَّن يَنتَظِرُ ۖ وَمَا بَدَّلُوا۟ تَبْدِيلًۭا ﴿٢٣﴾

ईमानदारों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं कि खुदा से उन्होंने (जॉनिसारी का) जो एहद किया था उसे पूरा कर दिखाया ग़रज़ उनमें से बाज़ वह हैं जो (मर कर) अपना वक्त पूरा कर गए और उनमें से बाज़ (हुक्मे खुदा के) मुन्तज़िर बैठे हैं और उन लोगों ने (अपनी बात) ज़रा भी नहीं बदली

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ईमानवालों के रूप में ऐसे पुरुष मौजूद है कि जो प्रतिज्ञा उन्होंने अल्लाह से की थी उसे उन्होंने सच्चा कर दिखाया। फिर उनमें से कुछ तो अपना प्रण पूरा कर चुके और उनमें से कुछ प्रतीक्षा में है। और उन्होंने अपनी बात तनिक भी नहीं बदली

لِّيَجْزِىَ ٱللَّهُ ٱلصَّٰدِقِينَ بِصِدْقِهِمْ وَيُعَذِّبَ ٱلْمُنَٰفِقِينَ إِن شَآءَ أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا ﴿٢٤﴾

ये इम्तेहान इसलिए था ताकि खुद सच्चे (ईमानदारों) को उनकी सच्चाई की जज़ाए ख़ैर दे और अगर चाहे तो मुनाफेक़ीन की सज़ा करे या (अगर वह लागे तौबा करें तो) खुदा उनकी तौबा कुबूल फरमाए इसमें शक नहीं कि खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ताकि इसके परिणामस्वरूप अल्लाह सच्चों को उनकी सच्चाई का बदला दे और कपटाचारियों को चाहे तो यातना दे या उनकी तौबा क़बूल करे। निश्चय ही अल्लाह बड़ी क्षमाशील, दयावान है

وَرَدَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِغَيْظِهِمْ لَمْ يَنَالُوا۟ خَيْرًۭا ۚ وَكَفَى ٱللَّهُ ٱلْمُؤْمِنِينَ ٱلْقِتَالَ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ قَوِيًّا عَزِيزًۭا ﴿٢٥﴾

और खुदा ने (अपनी कुदरत से) क़ाफिरों को मदीने से फेर दिया (और वह लोग) अपनी झुंझलाहट में (फिर गए) और इन्हें कुछ फायदे भी न हुआ और खुदा ने (अपनी मेहरबानी से) मोमिनीन को लड़ने की नौबत न आने दी और खुदा तो (बड़ा) ज़बरदस्त (और) ग़ालिब हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह ने इनकार करनेवालों को उनके अपने क्रोध के साथ फेर दिया। वे कोई भलाई प्राप्त न कर सके। अल्लाह ने मोमिनों को युद्ध करने से बचा लिया। अल्लाह तो है ही बड़ा शक्तिवान, प्रभुत्वशाली

وَأَنزَلَ ٱلَّذِينَ ظَٰهَرُوهُم مِّنْ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ مِن صَيَاصِيهِمْ وَقَذَفَ فِى قُلُوبِهِمُ ٱلرُّعْبَ فَرِيقًۭا تَقْتُلُونَ وَتَأْسِرُونَ فَرِيقًۭا ﴿٢٦﴾

और अहले किताब में से जिन लोगों (बनी कुरैज़ा) ने उन (कुफ्फार) की मदद की थी खुदा उनको उनके क़िलों से (बेदख़ल करके) नीचे उतार लाया और उनके दिलों में (तुम्हारा) ऐसा रोब बैठा दिया कि तुम उनके कुछ लोगों को क़त्ल करने लगे

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और किताबवालों में सो जिन लोगों ने उसकी सहायता की थी, उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गिरोह को जान से मारने लगे और एक गिरोह को बन्दी बनाने लगे

وَأَوْرَثَكُمْ أَرْضَهُمْ وَدِيَٰرَهُمْ وَأَمْوَٰلَهُمْ وَأَرْضًۭا لَّمْ تَطَـُٔوهَا ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرًۭا ﴿٢٧﴾

और कुछ को क़ैदी (और गुलाम) बनाने और तुम ही लोगों को उनकी ज़मीन और उनके घर और उनके माल और उस ज़मीन (खैबर) का खुदा ने मालिक बना दिया जिसमें तुमने क़दम तक नहीं रखा था और खुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर वतवाना है

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और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ قُل لِّأَزْوَٰجِكَ إِن كُنتُنَّ تُرِدْنَ ٱلْحَيَوٰةَ ٱلدُّنْيَا وَزِينَتَهَا فَتَعَالَيْنَ أُمَتِّعْكُنَّ وَأُسَرِّحْكُنَّ سَرَاحًۭا جَمِيلًۭا ﴿٢٨﴾

ऐ रसूल अपनी बीवियों से कह दो कि अगर तुम (फक़त) दुनियावी ज़िन्दगी और उसकी आराइश व ज़ीनत की ख्वाहॉ हो तो उधर आओ मैं तुम लोगों को कुछ साज़ो सामान दे दूँ और उनवाने शाइस्ता से रूख़सत कर दूँ

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ऐ नबी! अपनी पत्नि यों से कह दो कि \"यदि तुम सांसारिक जीवन और उसकी शोभा चाहती हो तो आओ, मैं तुम्हें कुछ दे-दिलाकर भली रीति से विदा कर दूँ

وَإِن كُنتُنَّ تُرِدْنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَٱلدَّارَ ٱلْءَاخِرَةَ فَإِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلْمُحْسِنَٰتِ مِنكُنَّ أَجْرًا عَظِيمًۭا ﴿٢٩﴾

और अगर तुम लोग खुदा और उसके रसूल और आखेरत के घर की ख्वाहॉ हो तो (अच्छी तरह ख्याल रखो कि) तुम लोगों में से नेकोकार औरतों के लिए खुदा ने यक़ीनन् बड़ा (बड़ा) अज्र व (सवाब) मुहय्या कर रखा है

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\"किन्तु यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हो तो निश्चय ही अल्लाह ने तुममे से उत्तमकार स्त्रियों के लिए बड़ा प्रतिदान रख छोड़ा है।\"

يَٰنِسَآءَ ٱلنَّبِىِّ مَن يَأْتِ مِنكُنَّ بِفَٰحِشَةٍۢ مُّبَيِّنَةٍۢ يُضَٰعَفْ لَهَا ٱلْعَذَابُ ضِعْفَيْنِ ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًۭا ﴿٣٠﴾

ऐ पैग़म्बर की बीबियों तुममें से जो कोई किसी सरीही ना शाइस्ता हरकत की का मुरतिब हुई तो (याद रहे कि) उसका अज़ाब भी दुगना बढ़ा दिया जाएगा और खुदा के वास्ते (निहायत) आसान है

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ऐ नबी की स्त्रियों! तुममें से जो कोई प्रत्यक्ष अनुचित कर्म करे तो उसके लिए दोहरी यातना होगी। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है

۞ وَمَن يَقْنُتْ مِنكُنَّ لِلَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتَعْمَلْ صَٰلِحًۭا نُّؤْتِهَآ أَجْرَهَا مَرَّتَيْنِ وَأَعْتَدْنَا لَهَا رِزْقًۭا كَرِيمًۭا ﴿٣١﴾

और तुममें से जो (बीवी) खुदा और उसके रसूल की ताबेदारी अच्छे (अच्छे) काम करेगी उसको हम उसका सवाब भी दोहरा अता करेगें और हमने उसके लिए (जन्नत में) इज्ज़त की रोज़ी तैयार कर रखी है

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किन्तु तुममें से जो अल्लाह और उसके रसूल के प्रति निष्ठापूर्वक आज्ञाकारिता की नीति अपनाए और अच्छा कर्म करे, उसे हम दोहरा प्रतिदान प्रदान करेंगे और उसके लिए हमने सम्मानपूर्ण आजीविका तैयार कर रखी है

يَٰنِسَآءَ ٱلنَّبِىِّ لَسْتُنَّ كَأَحَدٍۢ مِّنَ ٱلنِّسَآءِ ۚ إِنِ ٱتَّقَيْتُنَّ فَلَا تَخْضَعْنَ بِٱلْقَوْلِ فَيَطْمَعَ ٱلَّذِى فِى قَلْبِهِۦ مَرَضٌۭ وَقُلْنَ قَوْلًۭا مَّعْرُوفًۭا ﴿٣٢﴾

ऐ नबी की बीवियों तुम और मामूली औरतों की सी तो हो वही (बस) अगर तुम को परहेज़गारी मंजूर रहे तो (अजनबी आदमी से) बात करने में नरम नरम (लगी लिपटी) बात न करो ताकि जिसके दिल में (शहवते ज़िना का) मर्ज़ है वह (कुछ और) इरादा (न) करे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ नबी की स्त्रियों! तुम सामान्य स्त्रियों में से किसी की तरह नहीं हो, यदि तुम अल्लाह का डर रखो। अतः तुम्हारी बातों में लोच न हो कि वह व्यक्ति जिसके दिल में रोग है, वह लालच में पड़ जाए। तुम सामान्य रूप से बात करो

وَقَرْنَ فِى بُيُوتِكُنَّ وَلَا تَبَرَّجْنَ تَبَرُّجَ ٱلْجَٰهِلِيَّةِ ٱلْأُولَىٰ ۖ وَأَقِمْنَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتِينَ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِعْنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ ۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ ٱلرِّجْسَ أَهْلَ ٱلْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًۭا ﴿٣٣﴾

और (साफ-साफ) उनवाने शाइस्ता से बात किया करो और अपने घरों में निचली बैठी रहो और अगले ज़माने जाहिलियत की तरह अपना बनाव सिंगार न दिखाती फिरो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और (बराबर) ज़कात दिया करो और खुदा और उसके रसूल की इताअत करो ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत खुदा तो बस ये चाहता है कि तुमको (हर तरह की) बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा दिखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अपने घरों में टिककर रहो और विगत अज्ञानकाल की-सी सज-धज न दिखाती फिरना। नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो। और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो। अल्लाह तो बस यही चाहता है कि ऐ नबी के घरवालो, तुमसे गन्दगी को दूर रखे और तुम्हें तरह पाक-साफ़ रखे

وَٱذْكُرْنَ مَا يُتْلَىٰ فِى بُيُوتِكُنَّ مِنْ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ وَٱلْحِكْمَةِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ لَطِيفًا خَبِيرًا ﴿٣٤﴾

और (ऐ नबी की बीबियों) तुम्हारे घरों में जो खुदा की आयतें और (अक़ल व हिकमत की बातें) पढ़ी जाती हैं उनको याद रखो कि बेशक ख़ुदा बड़ा बारीक है वाक़िफकार है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुम्हारे घरों में अल्लाह की जो आयतें और तत्वदर्शिता की बातें सुनाई जाती है उनकी चर्चा करती रहो। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी, खबर रखनेवाला है

إِنَّ ٱلْمُسْلِمِينَ وَٱلْمُسْلِمَٰتِ وَٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ وَٱلْقَٰنِتِينَ وَٱلْقَٰنِتَٰتِ وَٱلصَّٰدِقِينَ وَٱلصَّٰدِقَٰتِ وَٱلصَّٰبِرِينَ وَٱلصَّٰبِرَٰتِ وَٱلْخَٰشِعِينَ وَٱلْخَٰشِعَٰتِ وَٱلْمُتَصَدِّقِينَ وَٱلْمُتَصَدِّقَٰتِ وَٱلصَّٰٓئِمِينَ وَٱلصَّٰٓئِمَٰتِ وَٱلْحَٰفِظِينَ فُرُوجَهُمْ وَٱلْحَٰفِظَٰتِ وَٱلذَّٰكِرِينَ ٱللَّهَ كَثِيرًۭا وَٱلذَّٰكِرَٰتِ أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُم مَّغْفِرَةًۭ وَأَجْرًا عَظِيمًۭا ﴿٣٥﴾

(दिल लगा के सुनो) मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें और फरमाबरदार मर्द और फरमाबरदार औरतें और रास्तबाज़ मर्द और रास्तबाज़ औरतें और सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें और फिरौतनी करने वाले मर्द और फिरौतनी करने वाली औरतें और Âैरात करने वाले मर्द और Âैरात करने वाली औरतें और रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले मर्द और हिफाज़त करने वाली औरतें और खुदा की बकसरत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें बेशक इन सब लोगों के वास्ते खुदा ने मग़फिरत और (बड़ा) सवाब मुहैय्या कर रखा है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियाँ, ईमानवाले पुरुष और ईमानवाली स्त्रियाँ, निष्ठा्पूर्वक आज्ञापालन करनेवाले पुरुष और निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करनेवाली स्त्रियाँ, सत्यवादी पुरुष और सत्यवादी स्त्रियाँ, धैर्यवान पुरुष और धैर्य रखनेवाली स्त्रियाँ, विनम्रता दिखानेवाले पुरुष और विनम्रता दिखानेवाली स्त्रियाँ, सदक़ा (दान) देनेवाले पुरुष और सदक़ा देनेवाली स्त्रियाँ, रोज़ा रखनेवाले पुरुष और रोज़ा रखनेवाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करनेवाले पुरुष और रक्षा करनेवाली स्त्रियाँ और अल्लाह को अधिक याद करनेवाले पुरुष और याद करनेवाली स्त्रियाँ - इनके लिए अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है

وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍۢ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ أَمْرًا أَن يَكُونَ لَهُمُ ٱلْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ ۗ وَمَن يَعْصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَٰلًۭا مُّبِينًۭا ﴿٣٦﴾

और न किसी ईमानदार मर्द को ये मुनासिब है और न किसी ईमानदार औरत को जब खुदा और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें तो उनको अपने उस काम (के करने न करने) अख़तेयार हो और (याद रहे कि) जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की वह यक़ीनन खुल्लम खुल्ला गुमराही में मुब्तिला हो चुका

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

न किसी ईमानवाले पुरुष और न किसी ईमानवाली स्त्री को यह अधिकार है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दें, तो फिर उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार शेष रहे। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे तो वह खुली गुमराही में पड़ गया

وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِىٓ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ أَمْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَٱتَّقِ ٱللَّهَ وَتُخْفِى فِى نَفْسِكَ مَا ٱللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى ٱلنَّاسَ وَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَىٰهُ ۖ فَلَمَّا قَضَىٰ زَيْدٌۭ مِّنْهَا وَطَرًۭا زَوَّجْنَٰكَهَا لِكَىْ لَا يَكُونَ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌۭ فِىٓ أَزْوَٰجِ أَدْعِيَآئِهِمْ إِذَا قَضَوْا۟ مِنْهُنَّ وَطَرًۭا ۚ وَكَانَ أَمْرُ ٱللَّهِ مَفْعُولًۭا ﴿٣٧﴾

और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब तुम उस शख्स (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर खुदा ने एहसान (अलग) किया था और तुमने उस पर (अलग) एहसान किया था कि अपनी बीबी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौज़ियत में रहने दे और खुदा से डेर खुद तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिसको (आख़िरकार) खुदा ज़ाहिर करने वाला था और तुम लोगों से डरते थे हालॉकि खुदा इसका ज्यादा हक़दार है कि तुम उस से डरो ग़रज़ जब ज़ैद अपनी हाजत पूरी कर चुका (तलाक़ दे दी) तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह तुमसे कर दिया ताकि आम मोमिनीन को अपने ले पालक लड़कों की बीवियों (से निकाह करने) में जब वह अपना मतलब उन औरतों से पूरा कर चुकें (तलाक़ दे दें) किसी तरह की तंगी न रहे और खुदा का हुक्म तो किया कराया हुआ (क़तई) होता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो (ऐ नबी), जबकि तुम उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्पा की, और तुमने भी जिसपर अनुकम्पा की कि \"अपनी पत्नी को अपने पास रोक रखो और अल्लाह का डर रखो, और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला है। तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो।\" अतः जब ज़ैद उससे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका तो हमने उसका तुमसे विवाह कर दिया, ताकि ईमानवालों पर अपने मुँह बोले बेटों की पत्नियों के मामले में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपनी ज़रूरत पूरी कर लें। अल्लाह का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है

مَّا كَانَ عَلَى ٱلنَّبِىِّ مِنْ حَرَجٍۢ فِيمَا فَرَضَ ٱللَّهُ لَهُۥ ۖ سُنَّةَ ٱللَّهِ فِى ٱلَّذِينَ خَلَوْا۟ مِن قَبْلُ ۚ وَكَانَ أَمْرُ ٱللَّهِ قَدَرًۭا مَّقْدُورًا ﴿٣٨﴾

जो हुक्म खुदा ने पैग़म्बर पर फर्ज क़र दिया (उसके करने) में उस पर कोई मुज़ाएका नहीं जो लोग (उनसे) पहले गुज़र चुके हैं उनके बारे में भी खुदा का (यही) दस्तूर (जारी) रहा है (कि निकाह में तंगी न की) और खुदा का हुक्म तो (ठीक अन्दाज़े से) मुक़र्रर हुआ होता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

नबी पर उस काम में कोई तंगी नहीं जो अल्लाह ने उसके लिए ठहराया हो। यही अल्लाह का दस्तूर उन लोगों के मामले में भी रहा है जो पहले गुज़र चुके है - और अल्लाह का काम तो जँचा-तुला होता है। -

ٱلَّذِينَ يُبَلِّغُونَ رِسَٰلَٰتِ ٱللَّهِ وَيَخْشَوْنَهُۥ وَلَا يَخْشَوْنَ أَحَدًا إِلَّا ٱللَّهَ ۗ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبًۭا ﴿٣٩﴾

वह लोग जो खुदा के पैग़ामों को (लोगों तक जूँ का तूँ) पहुँचाते थे और उससे डरते थे और खुदा के सिवा किसी से नहीं डरते थे (फिर तुम क्यों डरते हो) और हिसाब लेने के वास्ते तो खुद काफ़ी है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो अल्लाह के सन्देश पहुँचाते थे और उसी से डरते थे और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते थे। और हिसाब लेने के लिए अल्लाह काफ़ी है। -

مَّا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَآ أَحَدٍۢ مِّن رِّجَالِكُمْ وَلَٰكِن رَّسُولَ ٱللَّهِ وَخَاتَمَ ٱلنَّبِيِّۦنَ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًۭا ﴿٤٠﴾

(लोगों) मोहम्मद तुम्हारे मर्दों में से (हक़ीक़तन) किसी के बाप नहीं हैं (फिर जैद की बीवी क्यों हराम होने लगी) बल्कि अल्लाह के रसूल और नबियों की मोहर (यानी ख़त्म करने वाले) हैं और खुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

मुहम्मद तुम्हारे पुरुषों में से किसी के बाप नहीं है, बल्कि वे अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक है। अल्लाह को हर चीज़ का पूरा ज्ञान है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ ذِكْرًۭا كَثِيرًۭا ﴿٤١﴾

ऐ ईमानवालों बाकसरत खुदा की याद किया करो और

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह को अधिक याद करो

وَسَبِّحُوهُ بُكْرَةًۭ وَأَصِيلًا ﴿٤٢﴾

सुबह व शाम उसकी तसबीह करते रहो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और प्रातःकाल और सन्ध्या समय उसकी तसबीह करते रहो -

هُوَ ٱلَّذِى يُصَلِّى عَلَيْكُمْ وَمَلَٰٓئِكَتُهُۥ لِيُخْرِجَكُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ ۚ وَكَانَ بِٱلْمُؤْمِنِينَ رَحِيمًۭا ﴿٤٣﴾

वह वही तो है जो खुद तुमपर दूरूद (दर्दों रहमत) भेजता है और उसके फ़रिश्ते ताकि तुमको (कुफ़्र की) तारीक़ियों से निकालकर (ईमान की) रौशनी में ले जाए और खुदा ईमानवालों पर बड़ा मेहरबान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वही है जो तुमपर रहमत भेजता है और उसके फ़रिश्ते भी (दुआएँ करते है) - ताकि वह तुम्हें अँधरों से प्रकाश की ओर निकाल लाए। वास्तव में, वह ईमानवालों पर बहुत दयालु है

تَحِيَّتُهُمْ يَوْمَ يَلْقَوْنَهُۥ سَلَٰمٌۭ ۚ وَأَعَدَّ لَهُمْ أَجْرًۭا كَرِيمًۭا ﴿٤٤﴾

जिस दिन उसकी बारगाह में हाज़िर होंगे (उस दिन) उनकी मुरादात (उसकी तरफ से हर क़िस्म की) सलामती होगी और खुदा ने तो उनके वास्ते बहुत अच्छा बदला (बेहश्त) तैयार रखा है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिस दिन वे उससे मिलेंगे उनका अभिवादन होगा, सलाम और उनके लिए प्रतिष्ठामय प्रदान तैयार कर रखा है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ إِنَّآ أَرْسَلْنَٰكَ شَٰهِدًۭا وَمُبَشِّرًۭا وَنَذِيرًۭا ﴿٤٥﴾

ऐ नबी हमने तुमको (लोगों का) गवाह और (नेकों को बेहश्त की) खुशख़बरी देने वाला और बदों को अज़ाब से डराने वाला

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ नबी! हमने तुमको साक्षी और शुभ सूचना देनेवाला और सचेल करनेवाला बनाकर भेजा है;

وَدَاعِيًا إِلَى ٱللَّهِ بِإِذْنِهِۦ وَسِرَاجًۭا مُّنِيرًۭا ﴿٤٦﴾

और खुदा की तरफ उसी के हुक्म से बुलाने वाला और (ईमान व हिदायत का) रौशन चिराग़ बनाकर भेजा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और अल्लाह की अनुज्ञा से उसकी ओर बुलानेवाला और प्रकाशमान प्रदीप बनाकर

وَبَشِّرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ بِأَنَّ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَضْلًۭا كَبِيرًۭا ﴿٤٧﴾

और तुम मोमिनीन को खुशख़बरी दे दो कि उनके लिए खुदा की तरफ से बहुत बड़ी (मेहरबानी और) बख्शिश है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ईमानवालों को शुभ सूचना दे दो कि उनके लिए अल्लाह को ओर से बहुत बड़ा उदार अनुग्रह है

وَلَا تُطِعِ ٱلْكَٰفِرِينَ وَٱلْمُنَٰفِقِينَ وَدَعْ أَذَىٰهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًۭا ﴿٤٨﴾

और (ऐ रसूल) तुम (कहीं) काफिरों और मुनाफिक़ों की इताअत न करना और उनकी ईज़ारसानी का ख्याल छोड़ दो और खुदा पर भरोसा रखो और कारसाज़ी में खुदा काफ़ी है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और इनकार करनेवालों और कपटाचारियों के कहने में न आना। उनकी पहुँचाई हुई तकलीफ़ का ख़याल न करो। और अल्लाह पर भरोसा रखो। अल्लाह इसके लिए काफ़ी है कि अपने मामले में उसपर भरोसा किया जाए

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا نَكَحْتُمُ ٱلْمُؤْمِنَٰتِ ثُمَّ طَلَّقْتُمُوهُنَّ مِن قَبْلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ فَمَا لَكُمْ عَلَيْهِنَّ مِنْ عِدَّةٍۢ تَعْتَدُّونَهَا ۖ فَمَتِّعُوهُنَّ وَسَرِّحُوهُنَّ سَرَاحًۭا جَمِيلًۭا ﴿٤٩﴾

ऐ ईमानवालों जब तुम मोमिना औरतों से (बग़ैर मेहर मुक़र्रर किये) निकाह करो उसके बाद उन्हें अपने हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो तो फिर तुमको उनपर कोई हक़ नहीं कि (उनसे) इद्दा पूरा कराओ उनको तो कुछ (कपड़े रूपये वग़ैरह) देकर उनवाने शाइस्ता से रूख़सत कर दो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम ईमान लानेवाली स्त्रियों से विवाह करो और फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो तो तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत नहीं, जिसकी तुम गिनती करो। अतः उन्हें कुछ सामान दे दो और भली रीति से विदा कर दो

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ إِنَّآ أَحْلَلْنَا لَكَ أَزْوَٰجَكَ ٱلَّٰتِىٓ ءَاتَيْتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ مِمَّآ أَفَآءَ ٱللَّهُ عَلَيْكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّٰتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَٰلَٰتِكَ ٱلَّٰتِى هَاجَرْنَ مَعَكَ وَٱمْرَأَةًۭ مُّؤْمِنَةً إِن وَهَبَتْ نَفْسَهَا لِلنَّبِىِّ إِنْ أَرَادَ ٱلنَّبِىُّ أَن يَسْتَنكِحَهَا خَالِصَةًۭ لَّكَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ ۗ قَدْ عَلِمْنَا مَا فَرَضْنَا عَلَيْهِمْ فِىٓ أَزْوَٰجِهِمْ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُهُمْ لِكَيْلَا يَكُونَ عَلَيْكَ حَرَجٌۭ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا ﴿٥٠﴾

ऐ नबी हमने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी उन बीवियों को हलाल कर दिया है जिनको तुम मेहर दे चुके हो और तुम्हारी उन लौंडियों को (भी) जो खुदा ने तुमको (बग़ैर लड़े-भिड़े) माले ग़नीमत में अता की है और तुम्हारे चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामू की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जो तुम्हारे साथ हिजरत करके आयी हैं (हलाल कर दी और हर ईमानवाली औरत (भी हलाल कर दी) अगर वह अपने को (बग़ैर मेहर) नबी को दे दें और नबी भी उससे निकाह करना चाहते हों मगर (ऐ रसूल) ये हुक्म सिर्फ तुम्हारे वास्ते ख़ास है और मोमिनीन के लिए नहीं और हमने जो कुछ (मेहर या क़ीमत) आम मोमिनीन पर उनकी बीवियों और उनकी लौंडियों के बारे में मुक़र्रर कर दिया है हम खूब जानते हैं और (तुम्हारी रिआयत इसलिए है) ताकि तुमको (बीवियों की तरफ से) कोई दिक्क़त न हो और खुदा तो बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी वे पत्नियों वैध कर दी है जिनके मह्रक तुम दे चुके हो, और उन स्त्रियों को भी जो तुम्हारी मिल्कियत में आई, जिन्हें अल्लाह ने ग़नीमत के रूप में तुम्हें दी और तुम्हारी चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामुओं की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की है और वह ईमानवाली स्त्री जो अपने आपको नबी के लिए दे दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहे। ईमानवालों से हटकर यह केवल तुम्हारे ही लिए है, हमें मालूम है जो कुछ हमने उनकी पत्ऩियों और उनकी लौड़ियों के बारे में उनपर अनिवार्य किया है - ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है

۞ تُرْجِى مَن تَشَآءُ مِنْهُنَّ وَتُـْٔوِىٓ إِلَيْكَ مَن تَشَآءُ ۖ وَمَنِ ٱبْتَغَيْتَ مِمَّنْ عَزَلْتَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكَ ۚ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰٓ أَن تَقَرَّ أَعْيُنُهُنَّ وَلَا يَحْزَنَّ وَيَرْضَيْنَ بِمَآ ءَاتَيْتَهُنَّ كُلُّهُنَّ ۚ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ مَا فِى قُلُوبِكُمْ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَلِيمًۭا ﴿٥١﴾

इनमें से जिसको (जब) चाहो अलग कर दो और जिसको (जब तक) चाहो अपने पास रखो और जिन औरतों को तुमने अलग कर दिया था अगर फिर तुम उनके ख्वाहॉ हो तो भी तुम पर कोई मज़ाएक़ा नहीं है ये (अख़तेयार जो तुमको दिया गया है) ज़रूर इस क़ाबिल है कि तुम्हारी बीवियों की ऑंखें ठन्डी रहे और आर्जूदा ख़ातिर न हो और वो कुछ तुम उन्हें दे दो सबकी सब उस पर राज़ी रहें और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है खुदा उसको ख़ुब जानता है और खुदा तो बड़ा वाक़िफकार बुर्दबार है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुम उनमें से जिसे चाहो अपने से अलग रखो और जिसे चाहो अपने पास रखो, और जिनको तुमने अलग रखा हो, उनमें से किसी के इच्छुक हो तो इसमें तुमपर कोई दोष नहीं, इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि उनकी आँखें ठंड़ी रहें और वे शोकाकुल न हों और जो कुछ तुम उन्हें दो उसपर वे राज़ी रहें। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम्हारे दिलों में है। अल्लाह सर्वज्ञ, बहुत सहनशील है

لَّا يَحِلُّ لَكَ ٱلنِّسَآءُ مِنۢ بَعْدُ وَلَآ أَن تَبَدَّلَ بِهِنَّ مِنْ أَزْوَٰجٍۢ وَلَوْ أَعْجَبَكَ حُسْنُهُنَّ إِلَّا مَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ رَّقِيبًۭا ﴿٥٢﴾

(ऐ रसूल) अब उन (नौ) के बाद (और) औरतें तुम्हारे वास्ते हलाल नहीं और न ये जायज़ है कि उनके बदले उनमें से किसी को छोड़कर और बीबियाँ कर लो अगर चे तुमको उनका हुस्न कैसा ही भला (क्यों न) मालूम हो मगर तुम्हारी लौंडियाँ (इस के बाद भी जायज़ हैं) और खुदा तो हर चीज़ का निगरॉ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

इसके पश्चात तुम्हारे लिए दूसरी स्त्रियाँ वैध नहीं और न यह कि तुम उनकी जगह दूसरी पत्नियों ले आओ, यद्यपि उनका सौन्दर्य तुम्हें कितना ही भाए। उनकी बात औऱ है जो तुम्हारी लौंडियाँ हो। वास्तव में अल्लाह की स्पष्ट हर चीज़ पर है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَدْخُلُوا۟ بُيُوتَ ٱلنَّبِىِّ إِلَّآ أَن يُؤْذَنَ لَكُمْ إِلَىٰ طَعَامٍ غَيْرَ نَٰظِرِينَ إِنَىٰهُ وَلَٰكِنْ إِذَا دُعِيتُمْ فَٱدْخُلُوا۟ فَإِذَا طَعِمْتُمْ فَٱنتَشِرُوا۟ وَلَا مُسْتَـْٔنِسِينَ لِحَدِيثٍ ۚ إِنَّ ذَٰلِكُمْ كَانَ يُؤْذِى ٱلنَّبِىَّ فَيَسْتَحْىِۦ مِنكُمْ ۖ وَٱللَّهُ لَا يَسْتَحْىِۦ مِنَ ٱلْحَقِّ ۚ وَإِذَا سَأَلْتُمُوهُنَّ مَتَٰعًۭا فَسْـَٔلُوهُنَّ مِن وَرَآءِ حِجَابٍۢ ۚ ذَٰلِكُمْ أَطْهَرُ لِقُلُوبِكُمْ وَقُلُوبِهِنَّ ۚ وَمَا كَانَ لَكُمْ أَن تُؤْذُوا۟ رَسُولَ ٱللَّهِ وَلَآ أَن تَنكِحُوٓا۟ أَزْوَٰجَهُۥ مِنۢ بَعْدِهِۦٓ أَبَدًا ۚ إِنَّ ذَٰلِكُمْ كَانَ عِندَ ٱللَّهِ عَظِيمًا ﴿٥٣﴾

ऐ ईमानदारों तुम लोग पैग़म्बर के घरों में न जाया करो मगर जब तुमको खाने के वास्ते (अन्दर आने की) इजाज़त दी जाए (लेकिन) उसके पकने का इन्तेज़ार (नबी के घर बैठकर) न करो मगर जब तुमको बुलाया जाए तो (ठीक वक्त पर) जाओ और फिर जब खा चुको तो (फौरन अपनी अपनी जगह) चले जाया करो और बातों में न लग जाया करो क्योंकि इससे पैग़म्बर को अज़ीयत होती है तो वह तुम्हारा लैहाज़ करते हैं और खुदा तो ठीक (ठीक कहने) से झेंपता नहीं और जब पैग़म्बर की बीवियों से कुछ माँगना हो तो पर्दे के बाहर से माँगा करो यही तुम्हारे दिलों और उनके दिलों के वास्ते बहुत सफाई की बात है और तुम्हारे वास्ते ये जायज़ नहीं कि रसूले खुदा को (किसी तरह) अज़ीयत दो और न ये जायज़ है कि तुम उसके बाद कभी उनकी बीवियों से निकाह करो बेशक ये ख़ुदा के नज़दीक बड़ा (गुनाह) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! नबी के घरों में प्रवेश न करो, सिवाय इसके कि कभी तुम्हें खाने पर आने की अनुमति दी जाए। वह भी इस तरह कि उसकी (खाना पकने की) तैयारी की प्रतिक्षा में न रहो। अलबत्ता जब तुम्हें बुलाया जाए तो अन्दर जाओ, और जब तुम खा चुको तो उठकर चले जाओ, बातों में लगे न रहो। निश्चय ही यह हरकत नबी को तकलीफ़ देती है। किन्तु उन्हें तुमसे लज्जा आती है। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहने से लज्जा नहीं करता। और जब तुम उनसे कुछ माँगों तो उनसे परदे के पीछे से माँगो। यह अधिक शुद्धता की बात है तुम्हारे दिलों के लिए और उनके दिलों के लिए भी। तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुम अल्लाह के रसूल को तकलीफ़ पहुँचाओ और न यह कि उसके बाद कभी उसकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही अल्लाह की दृष्टि में यह बड़ी गम्भीर बात है

إِن تُبْدُوا۟ شَيْـًٔا أَوْ تُخْفُوهُ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًۭا ﴿٥٤﴾

चाहे किसी चीज़ को तुम ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ खुदा तो (बहरहाल) हर चीज़ से यक़ीनी खूब आगाह है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुम चाहे किसी चीज़ को व्यक्त करो या उसे छिपाओ, अल्लाह को तो हर चीज़ का ज्ञान है

لَّا جُنَاحَ عَلَيْهِنَّ فِىٓ ءَابَآئِهِنَّ وَلَآ أَبْنَآئِهِنَّ وَلَآ إِخْوَٰنِهِنَّ وَلَآ أَبْنَآءِ إِخْوَٰنِهِنَّ وَلَآ أَبْنَآءِ أَخَوَٰتِهِنَّ وَلَا نِسَآئِهِنَّ وَلَا مَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُهُنَّ ۗ وَٱتَّقِينَ ٱللَّهَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ شَهِيدًا ﴿٥٥﴾

औरतों पर न अपने बाप दादाओं (के सामने होने) में कुछ गुनाह है और न अपने बेटों के और न अपने भाईयों के और न अपने भतीजों के और अपने भांजों के और न अपनी (क़िस्म कि) औरतों के और न अपनी लौंडियों के सामने होने में कुछ गुनाह है (ऐ पैग़म्बर की बीबियों) तुम लोग खुदा से डरती रहो इसमें कोई शक ही नहीं की खुदा (तुम्हारे आमाल में) हर चीज़ से वाक़िफ़ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

न उनके लिए अपने बापों के सामने होने में कोई दोष है और न अपने बेटों, न अपने भाइयों, न अपने भतीजों, न अपने भांजो, न अपने मेल की स्त्रियों और न जिनपर उन्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो उनके सामने होने में। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ का साक्षी है

إِنَّ ٱللَّهَ وَمَلَٰٓئِكَتَهُۥ يُصَلُّونَ عَلَى ٱلنَّبِىِّ ۚ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ صَلُّوا۟ عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا۟ تَسْلِيمًا ﴿٥٦﴾

इसमें भी शक नहीं कि खुदा और उसके फरिश्ते पैग़म्बर (और उनकी आल) पर दुरूद भेजते हैं तो ऐ ईमानदारों तुम भी दुरूद भेजते रहो और बराबर सलाम करते रहो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निस्संदेह अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते है। ऐ ईमान लानेवालो, तुम भी उसपर रहमत भेजो और ख़ूब सलाम भेजो

إِنَّ ٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ وَأَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًۭا مُّهِينًۭا ﴿٥٧﴾

बेशक जो लोग खुदा को और उसके रसूल को अज़ीयत देते हैं उन पर खुदा ने दुनिया और आखेरत (दोनों) में लानत की है और उनके लिए रूसवाई का अज़ाब तैयार कर रखा है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को दुख पहुँचाते है, अल्लाह ने उनपर दुनिया और आख़िरत में लानत की है और उनके लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है

وَٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ بِغَيْرِ مَا ٱكْتَسَبُوا۟ فَقَدِ ٱحْتَمَلُوا۟ بُهْتَٰنًۭا وَإِثْمًۭا مُّبِينًۭا ﴿٥٨﴾

और जो लोग ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतों को बगैर कुछ किए द्दरे (तोहमत देकर) अज़ीयत देते हैं तो वह एक बोहतान और सरीह गुनाह का बोझ (अपनी गर्दन पर) उठाते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जो लोग ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को, बिना इसके कि उन्होंने कुछ किया हो (आरोप लगाकर), दुख पहुँचाते है, उन्होंने तो बड़े मिथ्यारोपण और प्रत्यक्ष गुनाह का बोझ अपने ऊपर उठा लिया

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ قُل لِّأَزْوَٰجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَآءِ ٱلْمُؤْمِنِينَ يُدْنِينَ عَلَيْهِنَّ مِن جَلَٰبِيبِهِنَّ ۚ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰٓ أَن يُعْرَفْنَ فَلَا يُؤْذَيْنَ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا ﴿٥٩﴾

ऐ नबी अपनी बीवियों और अपनी लड़कियों और मोमिनीन की औरतों से कह दो कि (बाहर निकलते वक्त) अपने (चेहरों और गर्दनों) पर अपनी चादरों का घूंघट लटका लिया करें ये उनकी (शराफ़त की) पहचान के वास्ते बहुत मुनासिब है तो उन्हें कोई छेड़ेगा नहीं और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ नबी! अपनी पत्नि यों और अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें। इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि वे पहचान ली जाएँ और सताई न जाएँ। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

۞ لَّئِن لَّمْ يَنتَهِ ٱلْمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌۭ وَٱلْمُرْجِفُونَ فِى ٱلْمَدِينَةِ لَنُغْرِيَنَّكَ بِهِمْ ثُمَّ لَا يُجَاوِرُونَكَ فِيهَآ إِلَّا قَلِيلًۭا ﴿٦٠﴾

ऐ रसूल मुनाफेक़ीन और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ है और जो लोग मदीने में बुरी ख़बरें उड़ाया करते हैं- अगर ये लोग (अपनी शरारतों से) बाज़ न आएंगें तो हम तुम ही को (एक न एक दिन) उन पर मुसल्लत कर देगें फिर वह तुम्हारे पड़ोस में चन्द रोज़ों के सिवा ठहरने (ही) न पाएँगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है और मदीना में खलबली पैदा करनेवाली अफ़वाहें फैलाने से बाज़ न आएँ तो हम तुम्हें उनके विरुद्ध उभार खड़ा करेंगे। फिर वे उसमें तुम्हारे साथ थोड़ा ही रहने पाएँगे,

مَّلْعُونِينَ ۖ أَيْنَمَا ثُقِفُوٓا۟ أُخِذُوا۟ وَقُتِّلُوا۟ تَقْتِيلًۭا ﴿٦١﴾

लानत के मारे जहाँ कहीं हत्थे चढ़े पकड़े गए और फिर बुरी तरह मार डाले गए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिटकारे हुए होंगे। जहाँ कही पाए गए पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे

سُنَّةَ ٱللَّهِ فِى ٱلَّذِينَ خَلَوْا۟ مِن قَبْلُ ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ ٱللَّهِ تَبْدِيلًۭا ﴿٦٢﴾

जो लोग पहले गुज़र गए उनके बारे में (भी) खुदा की (यही) आदत (जारी) रही और तुम खुदा की आदत में हरगिज़ तग़य्युर तबद्दुल न पाओगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यही अल्लाह की रीति रही है उन लोगों के विषय में भी जो पहले गुज़र चुके हैं। और तुम अल्लाह की रीति में कदापि परिवर्तन न पाओगे

يَسْـَٔلُكَ ٱلنَّاسُ عَنِ ٱلسَّاعَةِ ۖ قُلْ إِنَّمَا عِلْمُهَا عِندَ ٱللَّهِ ۚ وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ ٱلسَّاعَةَ تَكُونُ قَرِيبًا ﴿٦٣﴾

(ऐ रसूल) लोग तुमसे क़यामत के बारे में पूछा करते हैं (तुम उनसे) कह दो कि उसका इल्म तो बस खुदा को है और तुम क्या जानो शायद क़यामत क़रीब ही हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

लोग तुमसे क़ियामत की घड़ी के बारे में पूछते है। कह दो, \"उसका ज्ञान तो बस अल्लाह ही के पास है। तुम्हें क्या मालूम? कदाचित वह घड़ी निकट ही हो।\"

إِنَّ ٱللَّهَ لَعَنَ ٱلْكَٰفِرِينَ وَأَعَدَّ لَهُمْ سَعِيرًا ﴿٦٤﴾

ख़ुदा ने क़ाफिरों पर यक़ीनन लानत की है और उनके लिए जहन्नुम को तैयार कर रखा है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही अल्लाह ने इनकार करनेवालों पर लानत की है और उनके लिए भड़कती आग तैयार कर रखी है,

خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًۭا ۖ لَّا يَجِدُونَ وَلِيًّۭا وَلَا نَصِيرًۭا ﴿٦٥﴾

जिसमें वह हमेशा अबदल आबाद रहेंगे न किसी को अपना सरपरस्त पाएँगे न मद्दगार

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिसमें वे सदैव रहेंगे। न वे कोई निकटवर्ती समर्थक पाएँगे और न (दूर का) सहायक

يَوْمَ تُقَلَّبُ وُجُوهُهُمْ فِى ٱلنَّارِ يَقُولُونَ يَٰلَيْتَنَآ أَطَعْنَا ٱللَّهَ وَأَطَعْنَا ٱلرَّسُولَا۠ ﴿٦٦﴾

जिस दिन उनके मुँह जहन्नुम की तरफ फेर दिए जाएँगें तो उस दिन अफ़सोसनाक लहजे में कहेंगे ऐ काश हमने खुदा की इताअत की होती और रसूल का कहना माना होता

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिस दिन उनके चहेरे आग में उलटे-पलटे जाएँगे, वे कहेंगे, \"क्या ही अच्छा होता कि हमने अल्लाह का आज्ञापालन किया होता और रसूल का आज्ञापालन किया होता!\"

وَقَالُوا۟ رَبَّنَآ إِنَّآ أَطَعْنَا سَادَتَنَا وَكُبَرَآءَنَا فَأَضَلُّونَا ٱلسَّبِيلَا۠ ﴿٦٧﴾

और कहेंगे कि परवरदिगारहमने अपने सरदारों अपने बड़ों का कहना माना तो उन्हों ही ने हमें गुमराह कर दिया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे कहेंगे, \"ऐ हमारे रब! वास्तव में हमने अपने सरदारों और अपने बड़ो का आज्ञा का पालन किया और उन्होंने हमें मार्ग से भटका दिया।

رَبَّنَآ ءَاتِهِمْ ضِعْفَيْنِ مِنَ ٱلْعَذَابِ وَٱلْعَنْهُمْ لَعْنًۭا كَبِيرًۭا ﴿٦٨﴾

परवरदिगारा (हम पर तो अज़ाब सही है मगर) उन लोगों पर दोहरा अज़ाब नाज़िल कर और उन पर बड़ी से बड़ी लानत कर

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"ऐ हमारे रब! उन्हें दोहरी यातना दे और उनपर बड़ी लानत कर!\"

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ ءَاذَوْا۟ مُوسَىٰ فَبَرَّأَهُ ٱللَّهُ مِمَّا قَالُوا۟ ۚ وَكَانَ عِندَ ٱللَّهِ وَجِيهًۭا ﴿٦٩﴾

ऐ ईमानवालों (ख़बरदार कहीं) तुम लोग भी उनके से न हो जाना जिन्होंने मूसा को तकलीफ दी तो खुदा ने उनकी तोहमतों से मूसा को बरी कर दिया और मूसा खुदा के नज़दीक एक रवादार (इज्ज़त करने वाले) (पैग़म्बर) थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने मूसा को दुख पहुँचाया, तो अल्लाह ने उससे जो कुछ उन्होंने कहा था उसे बरी कर दिया। वह अल्लाह के यहाँ बड़ा गरिमावान था

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَقُولُوا۟ قَوْلًۭا سَدِيدًۭا ﴿٧٠﴾

ऐ ईमानवालों खुदा से डरते रहो और (जब कहो तो) दुरूस्त बात कहा करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और बात कहो ठीक सधी हुई

يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَٰلَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ۗ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا ﴿٧١﴾

तो खुदा तुम्हारी कारगुज़ारियों को दुरूस्त कर देगा और तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की इताअत की वह तो अपनी मुराद को खूब अच्छी तरह पहुँच गया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वह तुम्हारे कर्मों को सँवार देगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। और जो अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करे, उसने बड़ी सफलता प्राप्त॥ कर ली है

إِنَّا عَرَضْنَا ٱلْأَمَانَةَ عَلَى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَٱلْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَن يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا ٱلْإِنسَٰنُ ۖ إِنَّهُۥ كَانَ ظَلُومًۭا جَهُولًۭا ﴿٧٢﴾

बेशक हमने (रोज़े अज़ल) अपनी अमानत (इताअत इबादत) को सारे आसमान और ज़मीन पहाड़ों के सामने पेश किया तो उन्होंने उसके (बार) उठाने से इन्कार किया और उससे डर गए और आदमी ने उसे (बे ताम्मुल) उठा लिया बेशक इन्सान (अपने हक़ में) बड़ा ज़ालिम (और) नादान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने अमानत को आकाशों और धरती और पर्वतों के समक्ष प्रस्तुत किया, किन्तु उन्होंने उसके उठाने से इनकार कर दिया और उससे डर गए। लेकिन मनुष्य ने उसे उठा लिया। निश्चय ही वह बड़ी ज़ालिम, आवेश के वशीभूत हो जानेवाला है

لِّيُعَذِّبَ ٱللَّهُ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلْمُشْرِكِينَ وَٱلْمُشْرِكَٰتِ وَيَتُوبَ ٱللَّهُ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًۢا ﴿٧٣﴾

इसका नतीजा यह हुआ कि खुदा मुनाफिक़ मर्दों और मुनाफिक़ औरतों और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को (उनके किए की) सज़ा देगा और ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों की (तक़सीर अमानत की) तौबा क़ुबूल फरमाएगा और खुदा तो बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ताकि अल्लाह कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को यातना दे, और ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों पर अल्लाह कृपा-स्पष्ट करे। वास्तव में अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है