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Surah Originator [Fatir] in Hindi

Surah Originator [Fatir] Ayah 45 Location Maccah Number 35

ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ فَاطِرِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ جَاعِلِ ٱلْمَلَٰٓئِكَةِ رُسُلًا أُو۟لِىٓ أَجْنِحَةٍۢ مَّثْنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَ ۚ يَزِيدُ فِى ٱلْخَلْقِ مَا يَشَآءُ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ ﴿١﴾

हर तरह की तारीफ खुदा ही के लिए (मख़सूस) है जो सारे आसमान और ज़मीन का पैदा करने वाला फरिश्तों का (अपना) क़ासिद बनाने वाला है जिनके दो-दो और तीन-तीन और चार-चार पर होते हैं (मख़लूक़ात की) पैदाइश में जो (मुनासिब) चाहता है बढ़ा देता है बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर (व तवाना है)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो आकाशों और धरती का पैदा करनेवाला है। दो-दो, तीन-तीन और चार-चार फ़रिश्तों को बाज़ुओंवालों सन्देशवाहक बनाकर नियुक्त करता है। वह संरचना में जैसी चाहता है, अभिवृद्धि करता है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

مَّا يَفْتَحِ ٱللَّهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحْمَةٍۢ فَلَا مُمْسِكَ لَهَا ۖ وَمَا يُمْسِكْ فَلَا مُرْسِلَ لَهُۥ مِنۢ بَعْدِهِۦ ۚ وَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ ﴿٢﴾

लोगों के वास्ते जब (अपनी) रहमत (के दरवाजे) ख़ोल दे तो कोई उसे जारी नहीं कर सकता और जिस चीज़ को रोक ले उसके बाद उसे कोई रोक नहीं सकता और वही हर चीज़ पर ग़ालिब और दाना व बीना हकीम है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह जो दयालुता लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकनेवाला नहीं और जिसे वह रोक ले तो उसके बाद उसे कोई जारी करनेवाला भी नहीं। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱذْكُرُوا۟ نِعْمَتَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ ۚ هَلْ مِنْ خَٰلِقٍ غَيْرُ ٱللَّهِ يَرْزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلْأَرْضِ ۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَأَنَّىٰ تُؤْفَكُونَ ﴿٣﴾

लोगों खुदा के एहसानात को जो उसने तुम पर किए हैं याद करो क्या खुदा के सिवा कोई और ख़ालिक है जो आसमान और ज़मीन से तुम्हारी रोज़ी पहुँचाता है उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं फिर तुम किधर बहके चले जा रहे हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ लोगो! अल्लाह की तुमपर जो अनुकम्पा है, उसे याद करो। क्या अल्लाह के सिवा कोई और पैदा करनेवाला है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। तो तुम कहाँ से उलटे भटके चले जा रहे हो?

وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌۭ مِّن قَبْلِكَ ۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرْجَعُ ٱلْأُمُورُ ﴿٤﴾

और (ऐ रसूल) अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो (कुढ़ो नहीं) तुमसे पहले बहुतेरे पैग़म्बर (लोगों के हाथों) झुठलाए जा चुके हैं और (आख़िर) कुल उमूर की रूजू तो खुदा ही की तरफ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और यदि वे तुम्हें झुठलाते तो तुमसे पहले भी कितने ही रसूल झुठलाए जा चुके है। सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते हैं

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّ وَعْدَ ٱللَّهِ حَقٌّۭ ۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَا ۖ وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِٱللَّهِ ٱلْغَرُورُ ﴿٥﴾

लोगों खुदा का (क़यामत का) वायदा यक़ीनी बिल्कुल सच्चा है तो (कहीं) तुम्हें दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी फ़रेब में न लाए (ऐसा न हो कि शैतान) तुम्हें खुदा के बारे में धोखा दे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ लोगों! निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है। अतः सांसारिक जीवन तुम्हें धोखे में न डाले और न वह धोखेबाज़ अल्लाह के विषय में तुम्हें धोखा दे

إِنَّ ٱلشَّيْطَٰنَ لَكُمْ عَدُوٌّۭ فَٱتَّخِذُوهُ عَدُوًّا ۚ إِنَّمَا يَدْعُوا۟ حِزْبَهُۥ لِيَكُونُوا۟ مِنْ أَصْحَٰبِ ٱلسَّعِيرِ ﴿٦﴾

बेशक शैतान तुम्हारा दुश्मन है तो तुम भी उसे अपना दुशमन बनाए रहो वह तो अपने गिरोह को बस इसलिए बुलाता है कि वह लोग (सब के सब) जहन्नुमी बन जाएँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः तुम उसे शत्रु ही समझो। वह तो अपने गिरोह को केवल इसी लिए बुला रहा है कि वे दहकती आगवालों में सम्मिलित हो जाएँ

ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَهُمْ عَذَابٌۭ شَدِيدٌۭ ۖ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌۭ وَأَجْرٌۭ كَبِيرٌ ﴿٧﴾

जिन लोगों ने (दुनिया में) कुफ्र इख़तेयार किया उनके लिए (आखेरत में) सख्त अज़ाब है और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए उनके लिए (गुनाहों की) मग़फेरत और निहायत अच्छा बदला (बेहश्त) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे लोग है कि जिन्होंने इनकार किया उनके लिए कठोर यातना है। किन्तु जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है

أَفَمَن زُيِّنَ لَهُۥ سُوٓءُ عَمَلِهِۦ فَرَءَاهُ حَسَنًۭا ۖ فَإِنَّ ٱللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهْدِى مَن يَشَآءُ ۖ فَلَا تَذْهَبْ نَفْسُكَ عَلَيْهِمْ حَسَرَٰتٍ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۢ بِمَا يَصْنَعُونَ ﴿٨﴾

तो भला वह शख्स जिसे उस का बुरा काम शैतानी (अग़वॉ से) अच्छा कर दिखाया गया है औ वह उसे अच्छा समझने लगा है (कभी मोमिन नेकोकार के बराबर हो सकता है हरगिज़ नहीं) तो यक़ीनी (बात) ये है कि ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है राहे रास्त पर आने (की तौफ़ीक़) देता है तो (ऐ रसूल कहीं) उन (बदबख्तों) पर अफसोस कर करके तुम्हारे दम न निकल जाए जो कुछ ये लोग करते हैं ख़ुदा उससे खूब वाक़िफ़ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर क्या वह व्यक्ति जिसके लिए उसका बुरा कर्म सुहाना बना दिया गया हो और वह उसे अच्छा दिख रहा हो (तो क्या वह बुराई को छोड़ेगा)? निश्चय ही अल्लाह जिसे चाहता है मार्ग से वंचित रखता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। अतः उनपर अफ़सोस करते-करते तुम्हारी जान न जाती रहे। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे रच रहे है

وَٱللَّهُ ٱلَّذِىٓ أَرْسَلَ ٱلرِّيَٰحَ فَتُثِيرُ سَحَابًۭا فَسُقْنَٰهُ إِلَىٰ بَلَدٍۢ مَّيِّتٍۢ فَأَحْيَيْنَا بِهِ ٱلْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ كَذَٰلِكَ ٱلنُّشُورُ ﴿٩﴾

और ख़ुदा ही वह (क़ादिर व तवाना) है जो हवाओं को भेजता है तो हवाएँ बादलों को उड़ाए-उड़ाए फिरती है फिर हम उस बादल को मुर्दा (उफ़तादा) शहर की तरफ हका देते हैं फिर हम उसके ज़रिए से ज़मीन को उसके मर जाने के बाद शादाब कर देते हैं यूँ ही (मुर्दों को क़यामत में जी उठना होगा)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह ही तो है जिसने हवाएँ चलाई फिर वह बादलों को उभारती है, फिर हम उसे किसी शुष्क और निर्जीव भूभाग की ओर ले गए, और उसके द्वारा हमने धरती को उसके मुर्दा हो जाने के पश्चात जीवित कर दिया। इसी प्रकार (लोगों का नए सिरे से) जीवित होकर उठना भी है

مَن كَانَ يُرِيدُ ٱلْعِزَّةَ فَلِلَّهِ ٱلْعِزَّةُ جَمِيعًا ۚ إِلَيْهِ يَصْعَدُ ٱلْكَلِمُ ٱلطَّيِّبُ وَٱلْعَمَلُ ٱلصَّٰلِحُ يَرْفَعُهُۥ ۚ وَٱلَّذِينَ يَمْكُرُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ لَهُمْ عَذَابٌۭ شَدِيدٌۭ ۖ وَمَكْرُ أُو۟لَٰٓئِكَ هُوَ يَبُورُ ﴿١٠﴾

जो शख्स इज्ज़त का ख्वाहाँ हो तो ख़ुदा से माँगे क्योंकि सारी इज्ज़त खुदा ही की है उसकी बारगाह तक अच्छी बातें (बुलन्द होकर) पहुँचतीं हैं और अच्छे काम को वह खुद बुलन्द फरमाता है और जो लोग (तुम्हारे ख़िलाफ) बुरी-बुरी तदबीरें करते रहते हैं उनके लिए क़यामत में सख्त अज़ाब है और (आख़िर) उन लोगों की तदबीर मटियामेट हो जाएगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो कोई प्रभुत्व चाहता हो तो प्रभुत्व तो सारा का सारा अल्लाह के लिए है। उसी की ओर अच्छा-पवित्र बोल चढ़ता है और अच्छा कर्म उसे ऊँचा उठाता है। रहे वे लोग जो बुरी चालें चलते है, उनके लिए कठोर यातना है और उनकी चालबाज़ी मटियामेट होकर रहेगी

وَٱللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٍۢ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍۢ ثُمَّ جَعَلَكُمْ أَزْوَٰجًۭا ۚ وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِۦ ۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٍۢ وَلَا يُنقَصُ مِنْ عُمُرِهِۦٓ إِلَّا فِى كِتَٰبٍ ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٌۭ ﴿١١﴾

और खुदा ही ने तुम लोगों को (पहले पहल) मिट्टी से पैदा किया फिर नतफ़े से फिर तुमको जोड़ा (नर मादा) बनाया और बग़ैर उसके इल्म (इजाज़त) के न कोई औरत हमेला होती है और न जनती है और न किसी शख्स की उम्र में ज्यादती होती है और न किसी की उम्र से कमी की जाती है मगर वह किताब (लौहे महफूज़) में (ज़रूर) है बेशक ये बात खुदा पर बहुत ही आसान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह ने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर तुम्हें जोड़े-जोड़े बनाया। उसके ज्ञान के बिना न कोई स्त्री गर्भवती होती है और न जन्म देती है। और जो कोई आयु को प्राप्ति करनेवाला आयु को प्राप्त करता है और जो कुछ उसकी आयु में कमी होती है। अनिवार्यतः यह सब एक किताब में लिखा होता है। निश्चय ही यह सब अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है

وَمَا يَسْتَوِى ٱلْبَحْرَانِ هَٰذَا عَذْبٌۭ فُرَاتٌۭ سَآئِغٌۭ شَرَابُهُۥ وَهَٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌۭ ۖ وَمِن كُلٍّۢ تَأْكُلُونَ لَحْمًۭا طَرِيًّۭا وَتَسْتَخْرِجُونَ حِلْيَةًۭ تَلْبَسُونَهَا ۖ وَتَرَى ٱلْفُلْكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوا۟ مِن فَضْلِهِۦ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ﴿١٢﴾

(उसकी कुदरत देखो) दो समन्दर बावजूद मिल जाने के यकसाँ नहीं हो जाते ये (एक तो) मीठा खुश ज़ाएका कि उसका पीना सुवारत (ख़ुश्गवार) है और ये (दूसरा) खारी कड़ुवा है और (इस इख़तेलाफ पर भी) तुम लोग दोनों से (मछली का) तरो ताज़ा गोश्त (यकसाँ) खाते हो और (अपने लिए ज़ेवरात (मोती वग़ैरह) निकालते हो जिन्हें तुम पहनते हो और तुम देखते हो कि कश्तियां दरिया में (पानी को) फाड़ती चली जाती हैं ताकि उसके फज्ल (व करम तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शुक्र करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

दोनों सागर समान नहीं, यह मीठा सुस्वाद है जिससे प्यास जाती रहे, पीने में रुचिकर। और यह खारा-कडुवा है। और तुम प्रत्येक में से तरोताज़ा माँस खाते हो और आभूषण निकालते हो, जिसे तुम पहनते हो। और तुम नौकाओं को देखते हो कि चीरती हुई उसमें चली जा रही हैं, ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो और कदाचित तुम आभारी बनो

يُولِجُ ٱلَّيْلَ فِى ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِى ٱلَّيْلِ وَسَخَّرَ ٱلشَّمْسَ وَٱلْقَمَرَ كُلٌّۭ يَجْرِى لِأَجَلٍۢ مُّسَمًّۭى ۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ ٱلْمُلْكُ ۚ وَٱلَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِهِۦ مَا يَمْلِكُونَ مِن قِطْمِيرٍ ﴿١٣﴾

वही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और वही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है और) उसी ने सूरज और चाँद को अपना मुतीइ बना रखा है कि हर एक अपने (अपने) मुअय्यन (तय) वक्त पर चला करता है वही खुदा तुम्हारा परवरदिगार है उसी की सलतनत है और उसे छोड़कर जिन माबूदों को तुम पुकारते हो वह छुवारों की गुठली की झिल्ली के बराबर भी तो इख़तेयार नहीं रखते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वह रात को दिन में प्रविष्ट करता है और दिन को रात में प्रविष्ट करता हैं। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम में लगा रखा है। प्रत्येक एक नियत समय पूरी करने के लिए चल रहा है। वही अल्लाह तुम्हारा रब है। उसी की बादशाही है। उससे हटकर जिनको तुम पुकारते हो वे एक तिनके के भी मालिक नहीं

إِن تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا۟ دُعَآءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا۟ مَا ٱسْتَجَابُوا۟ لَكُمْ ۖ وَيَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْ ۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍۢ ﴿١٤﴾

अगर तुम उनको पुकारो तो वह तुम्हारी पुकार को सुनते नहीं अगर (बिफ़रज़े मुहाल) सुनों भी तो तुम्हारी दुआएँ नहीं कुबूल कर सकते और क़यामत के दिन तुम्हारे शिर्क से इन्कार कर बैठेंगें और वाक़िफकार (शख्स की तरह कोई दूसरा उनकी पूरी हालत) तुम्हें बता नहीं सकता

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि तुम उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी पुकार सुनेगे नहीं। और यदि वे सुनते तो भी तुम्हारी याचना स्वीकार न कर सकते और क़ियामत के दिन वे तुम्हारे साझी ठहराने का इनकार कर देंगे। पूरी ख़बर रखनेवाला (अल्लाह) की तरह तुम्हें कोई न बताएगा

۞ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ أَنتُمُ ٱلْفُقَرَآءُ إِلَى ٱللَّهِ ۖ وَٱللَّهُ هُوَ ٱلْغَنِىُّ ٱلْحَمِيدُ ﴿١٥﴾

लोगों तुम सब के सब खुदा के (हर वक्त) मोहताज हो और (सिर्फ) खुदा ही (सबसे) बेपरवा सज़ावारे हम्द (व सना) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ लोगों! तुम्ही अल्लाह के मुहताज हो और अल्लाह तो निस्पृह, स्वप्रशंसित है

إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍۢ جَدِيدٍۢ ﴿١٦﴾

अगर वह चाहे तो तुम लोगों को (अदम के पर्दे में) ले जाए और एक नयी ख़िलक़त ला बसाए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि वह चाहे तो तुम्हें हटा दे और एक नई संसृति ले आए

وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ بِعَزِيزٍۢ ﴿١٧﴾

और ये कुछ खुदा के वास्ते दुशवार नहीं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और यह अल्लाह के लिए कुछ भी कठिन नहीं

وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌۭ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۚ وَإِن تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَىٰ حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَىْءٌۭ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰٓ ۗ إِنَّمَا تُنذِرُ ٱلَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِٱلْغَيْبِ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ ۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفْسِهِۦ ۚ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلْمَصِيرُ ﴿١٨﴾

और याद रहे कि कोई शख्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा और अगर कोई (अपने गुनाहों का) भारी बोझ उठाने वाला अपना बोझ उठाने के वास्ते (किसी को) बुलाएगा तो उसके बारे में से कुछ भी उठाया न जाएगा अगरचे (कोई किसी का) कराबतदार ही (क्यों न) हो (ऐ रसूल) तुम तो बस उन्हीं लोगों को डरा सकते हो जो बे देखे भाले अपने परवरदिगार का ख़ौफ रखते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और (याद रखो कि) जो शख्स पाक साफ रहता है वह अपने ही फ़ायदे के वास्ते पाक साफ रहता है और (आख़िरकार सबको हिरफिर के) खुदा ही की तरफ जाना है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। और यदि कोई कोई से दबा हुआ व्यक्ति अपना बोझ उठाने के लिए पुकारे तो उसमें से कुछ भी न उठाया, यद्यपि वह निकट का सम्बन्धी ही क्यों न हो। तुम तो केवल सावधान कर रहे हो। जो परोक्ष में रहते हुए अपने रब से डरते हैं और नमाज़ के पाबन्द हो चुके है (उनकी आत्मा का विकास हो गया) । और जिसने स्वयं को विकसित किया वह अपने ही भले के लिए अपने आपको विकसित करेगा। और पलटकर जाना तो अल्लाह ही की ओर है

وَمَا يَسْتَوِى ٱلْأَعْمَىٰ وَٱلْبَصِيرُ ﴿١٩﴾

और अन्धा (क़ाफिर) और ऑंखों वाला (मोमिन किसी तरह) बराबर नहीं हो सकते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अंधा और आँखोंवाला बराबर नहीं,

وَلَا ٱلظُّلُمَٰتُ وَلَا ٱلنُّورُ ﴿٢٠﴾

और न अंधेरा (कुफ्र) और उजाला (ईमान) बराबर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और न अँधेरे और प्रकाश,

وَلَا ٱلظِّلُّ وَلَا ٱلْحَرُورُ ﴿٢١﴾

और न छाँव (बेहिश्त) और धूप (दोज़ख़ बराबर है)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और न छाया और धूप

وَمَا يَسْتَوِى ٱلْأَحْيَآءُ وَلَا ٱلْأَمْوَٰتُ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُسْمِعُ مَن يَشَآءُ ۖ وَمَآ أَنتَ بِمُسْمِعٍۢ مَّن فِى ٱلْقُبُورِ ﴿٢٢﴾

और न ज़िन्दे (मोमिनीन) और न मुर्दें (क़ाफिर) बराबर हो सकते हैं और खुदा जिसे चाहता है अच्छी तरह सुना (समझा) देता है और (ऐ रसूल) जो (कुफ्फ़ार मुर्दों की तरह) क़ब्रों में हैं उन्हें तुम अपनी (बातें) नहीं समझा सकते हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और न जीवित और मृत बराबर है। निश्चय ही अल्लाह जिसे चाहता है सुनाता है। तुम उन लोगों को नहीं सुना सकते, जो क़ब्रों में हो।

إِنْ أَنتَ إِلَّا نَذِيرٌ ﴿٢٣﴾

तुम तो बस (एक खुदा से) डराने वाले हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुम तो बस एक सचेतकर्ता हो

إِنَّآ أَرْسَلْنَٰكَ بِٱلْحَقِّ بَشِيرًۭا وَنَذِيرًۭا ۚ وَإِن مِّنْ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٌۭ ﴿٢٤﴾

हम ही ने तुमको यक़ीनन कुरान के साथ खुशख़बरी देने वाला और डराने वाला ( पैग़म्बर) बनाकर भेजा और कोई उम्मत (दुनिया में)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने तुम्हें सत्य के साथ भेजा है, शुभ-सूचना देनेवाला और सचेतकर्ता बनाकर। और जो भी समुदाय गुज़रा है, उसमें अनिवार्यतः एक सचेतकर्ता हुआ है

وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ جَآءَتْهُمْ رُسُلُهُم بِٱلْبَيِّنَٰتِ وَبِٱلزُّبُرِ وَبِٱلْكِتَٰبِ ٱلْمُنِيرِ ﴿٢٥﴾

ऐसी नहीं गुज़री कि उसके पास (हमारा) डराने वाला पैग़म्बर न आया हो और अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो कुछ परवाह नहीं करो क्योंकि इनके अगलों ने भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया है (हालाँकि) उनके पास उनके पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिजे अौर सहीफ़े और रौशन किताब लेकर आए थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि वे तुम्हें झुठलाते है तो जो उनसे पहले थे वे भी झुठला चुके है। उनके रसूल उनके पास स्पष्ट और ज़बूरें और प्रकाशमान किताब लेकर आए थे

ثُمَّ أَخَذْتُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ ﴿٢٦﴾

फिर हमने उन लोगों को जो काफ़िर हो बैठे ले डाला तो (तुमने देखाकि) मेरा अज़ाब (उन पर) कैसा (सख्त हुआ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर मैं उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, पकड़ लिया (तो फिर कैसा रहा मेरा इनकार!)

أَلَمْ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ فَأَخْرَجْنَا بِهِۦ ثَمَرَٰتٍۢ مُّخْتَلِفًا أَلْوَٰنُهَا ۚ وَمِنَ ٱلْجِبَالِ جُدَدٌۢ بِيضٌۭ وَحُمْرٌۭ مُّخْتَلِفٌ أَلْوَٰنُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٌۭ ﴿٢٧﴾

अब क्या तुमने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि यक़ीनन खुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम (खुदा) ने उसके ज़रिए से तरह-तरह की रंगतों के फल पैदा किए और पहाड़ों में क़तआत (टुकड़े रास्ते) हैं जिनके रंग मुख़तलिफ है कुछ तो सफेद (बुर्राक़) और कुछ लाल (लाल) और कुछ बिल्कुल काले सियाह

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से पानी बरसाया, फिर उसके द्वारा हमने फल निकाले, जिनके रंग विभिन्न प्रकार के होते है? और पहाड़ो में भी श्वेत और लाल विभिन्न रंगों की धारियाँ पाई जाती है, और भुजंग काली भी

وَمِنَ ٱلنَّاسِ وَٱلدَّوَآبِّ وَٱلْأَنْعَٰمِ مُخْتَلِفٌ أَلْوَٰنُهُۥ كَذَٰلِكَ ۗ إِنَّمَا يَخْشَى ٱللَّهَ مِنْ عِبَادِهِ ٱلْعُلَمَٰٓؤُا۟ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ ﴿٢٨﴾

और इसी तरह आदमियों और जानवरों और चारपायों की भी रंगते तरह-तरह की हैं उसके बन्दों में ख़ुदा का ख़ौफ करने वाले तो बस उलेमा हैं बेशक खुदा (सबसे) ग़ालिब और बख्शने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और मनुष्यों और जानवरों और चौपायों के रंग भी इसी प्रकार भिन्न हैं। अल्लाह से डरते तो उसके वही बन्दे हैं, जो बाख़बर है। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, क्षमाशील है

إِنَّ ٱلَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَٰبَ ٱللَّهِ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُوا۟ مِمَّا رَزَقْنَٰهُمْ سِرًّۭا وَعَلَانِيَةًۭ يَرْجُونَ تِجَٰرَةًۭ لَّن تَبُورَ ﴿٢٩﴾

बेशक जो लोग Âुदा की किताब पढ़ा करते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से छिपा के और दिखा के (खुदा की राह में) देते हैं वह यक़ीनन ऐसे व्यापार का आसरा रखते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही जो लोग अल्लाह की किताब पढ़ते हैं, इस हाल मे कि नमाज़ के पाबन्द हैं, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से छिपे और खुले ख़र्च किया है, वे एक ऐसे व्यापार की आशा रखते है जो कभी तबाह न होगा

لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِۦٓ ۚ إِنَّهُۥ غَفُورٌۭ شَكُورٌۭ ﴿٣٠﴾

जिसका कभी टाट न उलटेगा ताकि खुदा उन्हें उनकी मज़दूरियाँ भरपूर अता करे बल्कि अपने फज़ल (व करम) से उसे कुछ और बढ़ा देगा बेशक वह बड़ा बख्शने वाला है (और) बड़ा क़द्रदान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

परिणामस्वरूप वह उन्हें उनके प्रतिदान पूरे-पूरे दे और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक भी प्रदान करे। निस्संदेह वह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त गुणग्राहक है

وَٱلَّذِىٓ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ مِنَ ٱلْكِتَٰبِ هُوَ ٱلْحَقُّ مُصَدِّقًۭا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِعِبَادِهِۦ لَخَبِيرٌۢ بَصِيرٌۭ ﴿٣١﴾

और हमने जो किताब तुम्हारे पास ''वही'' के ज़रिए से भेजी वह बिल्कुल ठीक है और जो (किताबें इससे पहले की) उसके सामने (मौजूद) हैं उनकी तसदीक़ भी करती हैं - बेशक खुदा अपने बन्दों (के हालात) से खूब वाक़िफ है (और) देख रहा है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो किताब हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना द्वारा भेजी है, वही सत्य है। अपने से पहले (की किताबों) की पुष्टि में है। निश्चय ही अल्लाह अपने बन्दों की ख़बर पूरी रखनेवाला, देखनेवाला है

ثُمَّ أَوْرَثْنَا ٱلْكِتَٰبَ ٱلَّذِينَ ٱصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا ۖ فَمِنْهُمْ ظَالِمٌۭ لِّنَفْسِهِۦ وَمِنْهُم مُّقْتَصِدٌۭ وَمِنْهُمْ سَابِقٌۢ بِٱلْخَيْرَٰتِ بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَضْلُ ٱلْكَبِيرُ ﴿٣٢﴾

फिर हमने अपने बन्दगान में से ख़ास उनको कुरान का वारिस बनाया जिन्हें (अहल समझकर) मुन्तख़िब किया क्योंकि बन्दों में से कुछ तो (नाफरमानी करके) अपनी जान पर सितम ढाते हैं और कुछ उनमें से (नेकी बदी के) दरमियान हैं और उनमें से कुछ लोग खुदा के इख़तेयार से नेकों में (औरों से) गोया सबकत ले गए हैं (इन्तेख़ाब व सबक़त) तो खुदा का बड़ा फज़ल है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर हमने इस किताब का उत्तराधिकारी उन लोगों को बनाया, जिन्हें हमने अपने बन्दो में से चुन लिया है। अब कोई तो उनमें से अपने आप पर ज़ुल्म करता है और कोई उनमें से मध्य श्रेणी का है और कोई उनमें से अल्लाह के कृपायोग से भलाइयों में अग्रसर है। यही है बड़ी श्रेष्ठता। -

جَنَّٰتُ عَدْنٍۢ يَدْخُلُونَهَا يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍۢ وَلُؤْلُؤًۭا ۖ وَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌۭ ﴿٣٣﴾

(और उसका सिला बेहिश्त के) सदा बहार बाग़ात हैं जिनमें ये लोग दाख़िल होंगे और उन्हें वहाँ सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएँगे और वहाँ उनकी (मामूली) पोशाक ख़ालिस रेशमी होगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

सदैव रहने के बाग है, जिनमें वे प्रवेश करेंगे। वहाँ उन्हें सोने के कंगनों और मोती से आभूषित किया जाएगा। और वहाँ उनका वस्त्र रेशम होगा

وَقَالُوا۟ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِىٓ أَذْهَبَ عَنَّا ٱلْحَزَنَ ۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٌۭ شَكُورٌ ﴿٣٤﴾

और ये लोग (खुशी के लहजे में) कहेंगे खुदा का शुक्र जिसने हम से (हर क़िस्म का) रंज व ग़म दूर कर दिया बेशक हमारा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला (और) क़दरदान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और वे कहेंगे, \"सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमसे ग़म दूर कर दिया। निश्चय ही हमारा रब अत्यन्त क्षमाशील, बड़ा गुणग्राहक है

ٱلَّذِىٓ أَحَلَّنَا دَارَ ٱلْمُقَامَةِ مِن فَضْلِهِۦ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٌۭ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٌۭ ﴿٣٥﴾

जिसने हमको अपने फज़ल (व करम) से हमेशगी के घर (बेहिश्त) में उतारा (मेहमान किया) जहाँ हमें कोई तकलीफ छुयेगी भी तो नहीं और न कोई थकान ही पहुँचेगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिसने हमें अपने उदार अनुग्रह से रहने के ऐसे घर में उतारा जहाँ न हमें कोई मशक़्क़त उठानी पड़ती है और न हमें कोई थकान ही आती है।\"

وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَهُمْ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقْضَىٰ عَلَيْهِمْ فَيَمُوتُوا۟ وَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُم مِّنْ عَذَابِهَا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِى كُلَّ كَفُورٍۢ ﴿٣٦﴾

और जो लोग काफिर हो बैठे उनके लिए जहन्नुम की आग है न उनकी कज़ा ही आएगी कि वह मर जाए और तकलीफ से नजात मिले और न उनसे उनके अज़ाब ही में तख़फीफ की जाएगी हम हर नाशुक्रे की सज़ा यूँ ही किया करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, उनके लिए जहन्नम की आग है, न उनका काम तमाम किया जाएगा कि मर जाएँ और न उनसे उसकी यातना ही कुछ हल्की की जाएगी। हम ऐसा ही बदला प्रत्येक अकृतज्ञ को देते है

وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَآ أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَٰلِحًا غَيْرَ ٱلَّذِى كُنَّا نَعْمَلُ ۚ أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَآءَكُمُ ٱلنَّذِيرُ ۖ فَذُوقُوا۟ فَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِن نَّصِيرٍ ﴿٣٧﴾

और ये लोग दोजख़ में (पड़े) चिल्लाया करेगें कि परवरदिगार अब हमको (यहाँ से) निकाल दे तो जो कुछ हम करते थे उसे छोड़कर नेक काम करेंगे (तो ख़ुदा जवाब देगा कि) क्या हमने तुम्हें इतनी उम्रें न दी थी कि जिनमें जिसको जो कुछ सोंचना समझना (मंज़ूर) हो खूब सोच समझ ले और (उसके अलावा) तुम्हारे पास (हमारा) डराने वाला (पैग़म्बर) भी पहुँच गया था तो (अपने किए का मज़ा) चखो क्योंकि सरकश लोगों का कोई मद्दगार नहीं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे वहाँ चिल्लाएँगे कि \"ऐ हमारे रब! हमें निकाल ले। हम अच्छा कर्म करेंगे, उससे भिन्न जो हम करते रहे।\" \"क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी कि जिसमें कोई होश में आना चाहता तो होश में आ जाता? और तुम्हारे पास सचेतकर्ता भी आया था, तो अब मज़ा चखते रहो! ज़ालिमोंं को कोई सहायक नहीं!\"

إِنَّ ٱللَّهَ عَٰلِمُ غَيْبِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ إِنَّهُۥ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿٣٨﴾

बेशक खुदा सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों से ख़ूब वाक़िफ है वह यक़ीनी दिलों के पोशीदा राज़ से बाख़बर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निस्संदेह अल्लाह आकाशों और धरती की छिपी बात को जानता है। वह तो सीनो तक की बात जानता है

هُوَ ٱلَّذِى جَعَلَكُمْ خَلَٰٓئِفَ فِى ٱلْأَرْضِ ۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُۥ ۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلْكَٰفِرِينَ كُفْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ إِلَّا مَقْتًۭا ۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلْكَٰفِرِينَ كُفْرُهُمْ إِلَّا خَسَارًۭا ﴿٣٩﴾

वह वही खुदा है जिसने रूए ज़मीन में तुम लोगों को (अगलों का) जानशीन बनाया फिर जो शख्स काफ़िर होगा तो उसके कुफ़्र का वबाल उसी पर पड़ेगा और काफ़िरों को उनका कुफ्र उनके परवरदिगार की बारगाह में ग़ज़ब के सिवा कुछ बढ़ाएगा नहीं और कुफ्फ़ार को उनका कुफ़्र घाटे के सिवा कुछ नफ़ा न देगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वही तो है जिसने तुम्हे धरती में ख़लीफ़ा बनाया। अब तो कोई इनकार करेगा, उसके इनकार का वबाल उसी पर है। इनकार करनेवालों का इनकार उनके रब के यहाँ केवल प्रकोप ही को बढ़ाता है, और इनकार करनेवालों का इनकार केवल घाटे में ही अभिवृद्धि करता है

قُلْ أَرَءَيْتُمْ شُرَكَآءَكُمُ ٱلَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَرُونِى مَاذَا خَلَقُوا۟ مِنَ ٱلْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌۭ فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ أَمْ ءَاتَيْنَٰهُمْ كِتَٰبًۭا فَهُمْ عَلَىٰ بَيِّنَتٍۢ مِّنْهُ ۚ بَلْ إِن يَعِدُ ٱلظَّٰلِمُونَ بَعْضُهُم بَعْضًا إِلَّا غُرُورًا ﴿٤٠﴾

(ऐ रसूल) तुम (उनसे) पूछो तो कि खुदा के सिवा अपने जिन शरीकों की तुम क़यादत करते थे क्या तुमने उन्हें (कुछ) देखा भी मुझे भी ज़रा दिखाओ तो कि उन्होंने ज़मीन (की चीज़ों) से कौन सी चीज़ पैदा की या आसमानों में कुछ उनका आधा साझा है या हमने खुद उन्हें कोई किताब दी है कि वह उसकी दलील रखते हैं (ये सब तो कुछ नहीं) बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे से (धोखे और) फरेब ही का वायदा करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"क्या तुमने अपने ठहराए हुए साझीदारो का अवलोकन भी किया, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो? मुझे दिखाओ उन्होंने धरती का कौन-सा भाग पैदा किया है या आकाशों में उनकी कोई भागीदारी है?\" या हमने उन्हें कोई किताब ही है कि उसका कोई स्पष्ट प्रमाण उनके पक्ष में हो? नहीं, बल्कि वे ज़ालिम आपस में एक-दूसरे से केवल धोखे का वादा कर रहे है

۞ إِنَّ ٱللَّهَ يُمْسِكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ أَن تَزُولَا ۚ وَلَئِن زَالَتَآ إِنْ أَمْسَكَهُمَا مِنْ أَحَدٍۢ مِّنۢ بَعْدِهِۦٓ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًۭا ﴿٤١﴾

बेशक खुदा ही सारे आसमान और ज़मीन अपनी जगह से हट जाने से रोके हुए है और अगर (फर्ज़ करे कि) ये अपनी जगह से हट जाए तो फिर तो उसके सिवा उन्हें कोई रोक नहीं सकता बेशक वह बड़ा बुर्दबर (और) बड़ा बख्शने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह ही आकाशों और धरती को थामे हुए है कि वे टल न जाएँ और यदि वे टल जाएँ तो उसके पश्चात कोई भी नहीं जो उन्हें थाम सके। निस्संदेह, वह बहुत सहनशील, क्षमा करनेवाला है

وَأَقْسَمُوا۟ بِٱللَّهِ جَهْدَ أَيْمَٰنِهِمْ لَئِن جَآءَهُمْ نَذِيرٌۭ لَّيَكُونُنَّ أَهْدَىٰ مِنْ إِحْدَى ٱلْأُمَمِ ۖ فَلَمَّا جَآءَهُمْ نَذِيرٌۭ مَّا زَادَهُمْ إِلَّا نُفُورًا ﴿٤٢﴾

और ये लोग तो खुदा की बड़ी-बड़ी सख्त क़समें खा (कर कहते) थे कि बेशक अगर उनके पास कोई डराने वाला (पैग़म्बर) आएगा तो वह ज़रूर हर एक उम्मत से ज्यादा रूबसह होंगे फिर जब उनके पास डराने वाला (रसूल) आ पहुँचा तो (उन लोगों को) रूए ज़मीन में सरकशी और बुरी-बुरी तद्बीरें करने की वजह से

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्होंने अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाई थी कि यदि उनके पास कोई सचेतकर्ता आए तो वे समुदायों में से प्रत्येक से बढ़कर सीधे मार्ग पर होंगे। किन्तु जब उनके पास एक सचेतकर्ता आ गया तो इस चीज़ ने धरती में उनके घमंड और बुरी चालों के कारण उनकी नफ़रत ही में अभिवृद्धि की,

ٱسْتِكْبَارًۭا فِى ٱلْأَرْضِ وَمَكْرَ ٱلسَّيِّئِ ۚ وَلَا يَحِيقُ ٱلْمَكْرُ ٱلسَّيِّئُ إِلَّا بِأَهْلِهِۦ ۚ فَهَلْ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ ٱلْأَوَّلِينَ ۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَبْدِيلًۭا ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَحْوِيلًا ﴿٤٣﴾

(उसके आने से) उनकी नफरत को तरक्की ही होती गयी और बुदी तद्बीर (की बुराई) तो बुरी तद्बीर करने वाले ही पर पड़ती है तो (हो न हो) ये लोग बस अगले ही लोगों के बरताव के मुन्तज़िर हैं तो (बेहतर) तुम खुदा के दसतूर में कभी तब्दीली न पाओगे और खुदा की आदत में हरगिज़ कोई तग़य्युर न पाओगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हालाँकि बुरी चाल अपने ही लोगों को घेर लेती है। तो अब क्या जो रीति अगलों के सिलसिले में रही है वे बस उसी रीति की प्रतिक्षा कर रहे है? तो तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे और न तुम अल्लाह की रीति को कभी टलते ही पाओगे

أَوَلَمْ يَسِيرُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ فَيَنظُرُوا۟ كَيْفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَكَانُوٓا۟ أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةًۭ ۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعْجِزَهُۥ مِن شَىْءٍۢ فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَلَا فِى ٱلْأَرْضِ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَلِيمًۭا قَدِيرًۭا ﴿٤٤﴾

तो क्या उन लोगों ने रूए ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनके पहले थे और उनसे ज़ोर व कूवत में भी कहीं बढ़-चढ़ के थे फिर उनका (नाफ़रमानी की वजह से) क्या (ख़राब) अन्जाम हुआ और खुदा ऐसा (गया गुज़रा) नहीं है कि उसे कोई चीज़ आजिज़ कर सके (न इतने) आसमानों में और न ज़मीन में बेशक वह बड़ा ख़बरदार (और) बड़ी (क़ाबू) कुदरत वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ है जो उनसे पहले गुज़रे हैं? हालाँकि वे शक्ति में उनसे कही बढ़-चढ़कर थे। अल्लाह ऐसा नहीं कि आकाशों में कोई चीज़ उसे मात कर सके और न धरती ही में। निस्संदेह वह सर्वज्ञ, सामर्थ्यमान है

وَلَوْ يُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِمَا كَسَبُوا۟ مَا تَرَكَ عَلَىٰ ظَهْرِهَا مِن دَآبَّةٍۢ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمْ إِلَىٰٓ أَجَلٍۢ مُّسَمًّۭى ۖ فَإِذَا جَآءَ أَجَلُهُمْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِۦ بَصِيرًۢا ﴿٤٥﴾

और अगर (कहीं) खुदा लोगों की करतूतों की गिरफ्त करता तो (जैसी उनकी करनी है) रूए ज़मीन पर किसी जानवर को बाक़ी न छोड़ता मगर वह तो एक मुक़र्रर मियाद तक लोगों को मोहलत देता है (कि जो करना हो कर लो) फिर जब उनका (वह) वक्त अा जाएगा तो खुदा यक़ीनी तौर पर अपने बन्दों (के हाल) को देख रहा है (जो जैसा करेगा वैसा पाएगा)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि अल्लाह लोगों को उनकी कमाई के कारण पकड़ने पर आ जाए तो इस धरती की पीठ पर किसी जीवधारी को भी न छोड़े। किन्तु वह उन्हें एक नियत समय तक ढील देता है, फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो निश्चय ही अल्लाह तो अपने बन्दों को देख ही रहा है