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Surah Spoils of war, booty [Al-Anfal] in Hindi

Surah Spoils of war, booty [Al-Anfal] Ayah 75 Location Madanah Number 8

يَسْـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلْأَنفَالِ ۖ قُلِ ٱلْأَنفَالُ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِ ۖ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَصْلِحُوا۟ ذَاتَ بَيْنِكُمْ ۖ وَأَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ ﴿١﴾

(ऐ रसूल) तुम से लोग अनफाल (माले ग़नीमत) के बारे में पूछा करते हैं तुम कह दो कि अनफाल मख़सूस ख़ुदा और रसूल के वास्ते है तो ख़ुदा से डरो (और) अपने बाहमी (आपसी) मामलात की इसलाह करो और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो ख़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे तुमसे ग़नीमतों के विषय में पूछते है। कहो, \"ग़नीमतें अल्लाह और रसूल की है। अतः अल्लाह का डर रखों और आपस के सम्बन्धों को ठीक रखो। और, अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो, यदि तुम ईमानवाले हो

إِنَّمَا ٱلْمُؤْمِنُونَ ٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ وَإِذَا تُلِيَتْ عَلَيْهِمْ ءَايَٰتُهُۥ زَادَتْهُمْ إِيمَٰنًۭا وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ ﴿٢﴾

सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) ख़ुदा का ज़िक्र किया जाता है तो उनके दिल हिल जाते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं तो उनके ईमान को और भी ज्यादा कर देती हैं और वह लोग बस अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ईमानवाले तो वही लोग है जिनके दिल उस समय काँप उठे जबकि अल्लाह को याद किया जाए। और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाएँ तो वे उनके ईमान को और अधिक बढ़ा दें और वे अपने रब पर भरोसा रखते हों

ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقْنَٰهُمْ يُنفِقُونَ ﴿٣﴾

नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और जो हम ने उन्हें दिया हैं उसमें से (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ये वे लोग हैं जो नमाज़ क़ायम करते है और जो कुछ हमने दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं

أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُؤْمِنُونَ حَقًّۭا ۚ لَّهُمْ دَرَجَٰتٌ عِندَ رَبِّهِمْ وَمَغْفِرَةٌۭ وَرِزْقٌۭ كَرِيمٌۭ ﴿٤﴾

यही तो सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के लिए उनके परवरदिगार के हॉ (बड़े बड़े) दरजे हैं और बख्शिश और इज्ज़त और आबरू के साथ रोज़ी है (ये माले ग़नीमत का झगड़ा वैसा ही है)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वही लोग वास्तव में ईमानवाले है। उनके लिेए रब के पास बड़े दर्जे है और क्षमा और सम्मानित उत्तम आजीविका भी

كَمَآ أَخْرَجَكَ رَبُّكَ مِنۢ بَيْتِكَ بِٱلْحَقِّ وَإِنَّ فَرِيقًۭا مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ لَكَٰرِهُونَ ﴿٥﴾

जिस तरह तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें बिल्कुल ठीक (मसलहत से) तुम्हारे घर से (जंग बदर) में निकाला था और मोमिनीन का एक गिरोह (उससे) नाखुश था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

(यह बिल्कुल वैसी ही परिस्थित है) जैसे तुम्हारे ने तुम्हें तुम्हारे घर से एक उद्देश्य के साथ निकाला, किन्तु ईमानवालों में से एक गिरोह को यह अप्रिय लगा था

يُجَٰدِلُونَكَ فِى ٱلْحَقِّ بَعْدَمَا تَبَيَّنَ كَأَنَّمَا يُسَاقُونَ إِلَى ٱلْمَوْتِ وَهُمْ يَنظُرُونَ ﴿٦﴾

कि वह लोग हक़ के ज़ाहिर होने के बाद भी तुमसे (ख्वाह माख्वाह) सच्ची बात में झगड़तें थें और इस तरह (करने लगे) गोया (ज़बरदस्ती) मौत के मुँह में ढकेले जा रहे हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे सत्य के विषय में उसके स्पष्ट हो जाने के पश्चात तुमसे झगड़ रहे थे। मानो वे आँखों देखी मृत्यु की ओर हाँके जा रहे हों

وَإِذْ يَعِدُكُمُ ٱللَّهُ إِحْدَى ٱلطَّآئِفَتَيْنِ أَنَّهَا لَكُمْ وَتَوَدُّونَ أَنَّ غَيْرَ ذَاتِ ٱلشَّوْكَةِ تَكُونُ لَكُمْ وَيُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُحِقَّ ٱلْحَقَّ بِكَلِمَٰتِهِۦ وَيَقْطَعَ دَابِرَ ٱلْكَٰفِرِينَ ﴿٧﴾

और उसे (अपनी ऑंखों से) देख रहे हैं और (ये वक्त था) जब ख़ुदा तुमसे वायदा कर रहा था कि (कुफ्फार मक्का) दो जमाअतों में से एक तुम्हारे लिए ज़रूरी हैं और तुम ये चाहते थे कि कमज़ोर जमाअत तुम्हारे हाथ लगे (ताकि बग़ैर लड़े भिड़े माले ग़नीमत हाथ आ जाए) और ख़ुदा ये चाहता था कि अपनी बातों से हक़ को साबित (क़दम) करें और काफिरों की जड़ काट डाले

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जब अल्लाह तुमसे वादा कर रहा था कि दो गिरोहों में से एक तुम्हारे हाथ आएगा और तुम चाहते थे कि तुम्हें वह हाथ आए, जो निःशस्त्र था, हालाँकि अल्लाह चाहता था कि अपने वचनों से सत्य को सत्य कर दिखाए और इनकार करनेवालों की जड़ काट दे

لِيُحِقَّ ٱلْحَقَّ وَيُبْطِلَ ٱلْبَٰطِلَ وَلَوْ كَرِهَ ٱلْمُجْرِمُونَ ﴿٨﴾

ताकि हक़ को (हक़) साबित कर दे और बातिल का मटियामेट कर दे अगर चे गुनाहगार (कुफ्फार उससे) नाखुश ही क्यों न हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ताकि सत्य को सत्य कर दिखाए और असत्य को असत्य, चाहे अपराधियों को कितना ही अप्रिय लगे

إِذْ تَسْتَغِيثُونَ رَبَّكُمْ فَٱسْتَجَابَ لَكُمْ أَنِّى مُمِدُّكُم بِأَلْفٍۢ مِّنَ ٱلْمَلَٰٓئِكَةِ مُرْدِفِينَ ﴿٩﴾

(ये वह वक्त था) जब तुम अपने परवदिगार से फरियाद कर रहे थे उसने तुम्हारी सुन ली और जवाब दे दिया कि मैं तुम्हारी लगातार हज़ार फ़रिश्तों से मदद करूँगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो जब तुम अपने रब से फ़रियाद कर रहे थे, तो उसने तुम्हारी पुकार सुन ली। (उसने कहा,) \"मैं एक हजार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करूँगा जो तुम्हारे साथी होंगे।\"

وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشْرَىٰ وَلِتَطْمَئِنَّ بِهِۦ قُلُوبُكُمْ ۚ وَمَا ٱلنَّصْرُ إِلَّا مِنْ عِندِ ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ ﴿١٠﴾

और (ये इमदाद ग़ैबी) ख़ुदा ने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर (खुशी) के लिए की थी और तुम्हारे दिल मुतमइन हो जाएं और (याद रखो) मदद ख़ुदा के सिवा और कहीं से (कभी) नहीं होती बेशक ख़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह ने यह केवल इसलिए किया कि यह एक शुभ-सूचना हो और ताकि इससे तुम्हारे हृदय संतुष्ट हो जाएँ। सहायता अल्लाह ही के यहाँ से होती है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

إِذْ يُغَشِّيكُمُ ٱلنُّعَاسَ أَمَنَةًۭ مِّنْهُ وَيُنَزِّلُ عَلَيْكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ لِّيُطَهِّرَكُم بِهِۦ وَيُذْهِبَ عَنكُمْ رِجْزَ ٱلشَّيْطَٰنِ وَلِيَرْبِطَ عَلَىٰ قُلُوبِكُمْ وَيُثَبِّتَ بِهِ ٱلْأَقْدَامَ ﴿١١﴾

ये वह वक्त था जब अपनी तरफ से इत्मिनान देने के लिए तुम पर नींद को ग़ालिब कर रहा था और तुम पर आसमान से पानी बरस रहा था ताकि उससे तुम्हें पाक (पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दूर कर दे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे और पानी से (बालू जम जाए) और तुम्हारे क़दम ब क़दम (अच्छी तरह) जमाए रहे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह करो जबकि वह अपनी ओर से चैन प्रदान कर तुम्हें ऊँघ से ढँक रहा था और वह आकाश से तुमपर पानी बरसा रहा था, ताकि उसके द्वारा तुम्हें अच्छी तरह पाक करे और शैतान की गन्दगी तुमसे दूर करे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत करे और उसके द्वारा तुम्हारे क़दमों को जमा दे

إِذْ يُوحِى رَبُّكَ إِلَى ٱلْمَلَٰٓئِكَةِ أَنِّى مَعَكُمْ فَثَبِّتُوا۟ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ۚ سَأُلْقِى فِى قُلُوبِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ٱلرُّعْبَ فَٱضْرِبُوا۟ فَوْقَ ٱلْأَعْنَاقِ وَٱضْرِبُوا۟ مِنْهُمْ كُلَّ بَنَانٍۢ ﴿١٢﴾

(ऐ रसूल ये वह वक्त था) जब तुम्हारा परवरदिगार फ़रिश्तों से फरमा रहा था कि मै यकीनन तुम्हारे साथ हूँ तुम ईमानदारों को साबित क़दम रखो मै बहुत जल्द काफिरों के दिलों में (तुम्हारा रौब) डाल दूँगा (पस फिर क्या है अब) तो उन कुफ्फार की गर्दनों पर मारो और उनकी पोर पोर को चटिया कर दो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि \"मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!\"

ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ شَآقُّوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ ۚ وَمَن يُشَاقِقِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ ﴿١٣﴾

ये (सज़ा) इसलिए है कि उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालिफ की और जो शख़्स (भी) ख़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालफ़त करेगा तो (याद रहें कि) ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब करने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे (उसे कठोर यातना मिलकर रहेगी) क्योंकि अल्लाह कड़ी यातना देनेवाला है

ذَٰلِكُمْ فَذُوقُوهُ وَأَنَّ لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابَ ٱلنَّارِ ﴿١٤﴾

(काफिरों दुनिया में तो) लो फिर उस (सज़ा का चखो और (फिर आख़िर में तो) काफिरों के वास्ते जहन्नुम का अज़ाब ही है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह तो तुम चखो! और यह कि इनकार करनेवालों के लिए आग की यातना है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا لَقِيتُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ زَحْفًۭا فَلَا تُوَلُّوهُمُ ٱلْأَدْبَارَ ﴿١٥﴾

ऐ ईमानदारों जब तुमसे कुफ्फ़ार से मैदाने जंग में मुक़ाबला हुआ तो (ख़बरदार) उनकी तरफ पीठ न करना

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! जब एक सेना के रूप में तुम्हारा इनकार करनेवालों से मुक़ाबला हो तो पीठ न फेरो

وَمَن يُوَلِّهِمْ يَوْمَئِذٍۢ دُبُرَهُۥٓ إِلَّا مُتَحَرِّفًۭا لِّقِتَالٍ أَوْ مُتَحَيِّزًا إِلَىٰ فِئَةٍۢ فَقَدْ بَآءَ بِغَضَبٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأْوَىٰهُ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ ﴿١٦﴾

(याद रहे कि) उस शख़्स के सिवा जो लड़ाई वास्ते कतराए या किसी जमाअत के पास (जाकर) मौके पाए (और) जो शख़्स भी उस दिन उन कुफ्फ़ार की तरफ पीठ फेरेगा वह यक़ीनी (हिर फिर के) ख़ुदा के ग़जब में आ गया और उसका ठिकाना जहन्नुम ही हैं और वह क्या बुरा ठिकाना है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिस किसी ने भी उस दिन उनसे अपनी पीठ फेरी - यह और बात है कि युद्ध-चाल के रूप में या दूसरी टुकड़ी से मिलने के लिए ऐसा करे - तो वह अल्लाह के प्रकोप का भागी हुआ और उसका ठिकाना जहन्नम है, और क्या ही बुरा जगह है वह पहुँचने की!

فَلَمْ تَقْتُلُوهُمْ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ قَتَلَهُمْ ۚ وَمَا رَمَيْتَ إِذْ رَمَيْتَ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ رَمَىٰ ۚ وَلِيُبْلِىَ ٱلْمُؤْمِنِينَ مِنْهُ بَلَآءً حَسَنًا ۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌۭ ﴿١٧﴾

और (मुसलमानों) उन कुफ्फ़ार को कुछ तुमने तो क़त्ल किया नही बल्कि उनको तो ख़ुदा ने क़त्ल किया और (ऐ रसूल) जब तुमने तीर मारा तो कुछ तुमने नही मारा बल्कि ख़ुदा ख़ुदा ने तीर मारा और ताकि अपनी तरफ से मोमिनीन पर खूब एहसान करे बेशक ख़ुदा (सबकी) सुनता और (सब कुछ) जानता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तुमने उसे क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ही ने उन्हें क़त्ल किया और जब तुमने (उनकी ओर मिट्टी और कंकड़) फेंक, तो तुमने नहीं फेंका बल्कि अल्लाह ने फेंका (कि अल्लाह अपनी गुण-गरिमा दिखाए) और ताकि अपनी ओर से ईमानवालों के गुण प्रकट करे। निस्संदेह अल्लाह सुनता, जानता है

ذَٰلِكُمْ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُوهِنُ كَيْدِ ٱلْكَٰفِرِينَ ﴿١٨﴾

ये तो ये ख़ुदा तो काफिरों की मक्कारी का कमज़ोर कर देने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह तो हुआ, और यह (जान लो) कि अल्लाह इनकार करनेवालों की चाल को कमज़ोर कर देनेवाला है

إِن تَسْتَفْتِحُوا۟ فَقَدْ جَآءَكُمُ ٱلْفَتْحُ ۖ وَإِن تَنتَهُوا۟ فَهُوَ خَيْرٌۭ لَّكُمْ ۖ وَإِن تَعُودُوا۟ نَعُدْ وَلَن تُغْنِىَ عَنكُمْ فِئَتُكُمْ شَيْـًۭٔا وَلَوْ كَثُرَتْ وَأَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُؤْمِنِينَ ﴿١٩﴾

(काफ़िर) अगर तुम ये चाहते हो (कि जो हक़ पर हो उसकी) फ़तेह हो (मुसलमानों की) फ़तेह भी तुम्हारे सामने आ मौजूद हुई अब क्या गुरूर बाक़ी है और अगर तुम (अब भी मुख़तलिफ़ इस्लाम) से बाज़ रहो तो तुम्हारे वास्ते बेहतर है और अगर कहीं तुम पलट पड़े तो (याद रहे) हम भी पलट पड़ेगें (और तुम्हें तबाह कर छोड़ देगें) और तुम्हारी जमाअत अगरचे बहुत ज्यादा भी हो हरगिज़ कुछ काम न आएगी और ख़ुदा तो यक़ीनी मामिनीन के साथ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि तुम फ़ैसला चाहते हो तो फ़ैसला तुम्हारे सामने आ चुका और यदि बाज़ आ जाओ तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है। लेकिन यदि तुमने पलटकर फिर वही हरकत की तो हम भी पलटेंगे और तुम्हारा जत्था, चाहे वह कितना ही अधिक हो, तुम्हारे कुछ काम न आ सकेगा। और यह कि अल्लाह मोमिनों के साथ होता है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَوَلَّوْا۟ عَنْهُ وَأَنتُمْ تَسْمَعُونَ ﴿٢٠﴾

(ऐ ईमानदारों खुदा और उसके रसूल की इताअत करो और उससे मुँह न मोड़ो जब तुम समझ रहे हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करो और उससे मुँह न फेरो जबकि तुम सुन रहे हो

وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ قَالُوا۟ سَمِعْنَا وَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ ﴿٢١﴾

और उन लोगों के ऐसे न हो जाओं जो (मुँह से तो) कहते थे कि हम सुन रहे हैं हालाकि वह सुनते (सुनाते ख़ाक) न थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने कहा था, \"हमने सुना\" हालाँकि वे सुनते नहीं

۞ إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَآبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلصُّمُّ ٱلْبُكْمُ ٱلَّذِينَ لَا يَعْقِلُونَ ﴿٢٢﴾

इसमें शक़ नहीं कि ज़मीन पर चलने वाले तमाम हैवानात से बदतर ख़ुदा के नज़दीक वह बहरे गूँगे (कुफ्फार) हैं जो कुछ नहीं समझते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अल्लाह की स्पष्ट में तो निकृष्ट पशु वे बहरे-गूँगे लोग है, जो बुद्धि से काम नहीं लेते

وَلَوْ عَلِمَ ٱللَّهُ فِيهِمْ خَيْرًۭا لَّأَسْمَعَهُمْ ۖ وَلَوْ أَسْمَعَهُمْ لَتَوَلَّوا۟ وَّهُم مُّعْرِضُونَ ﴿٢٣﴾

और अगर ख़ुदा उनमें नेकी (की बू भी) देखता तो ज़रूर उनमें सुनने की क़ाबलियत अता करता मगर ये ऐसे हैं कि अगर उनमें सुनने की क़ाबिलयत भी देता तो मुँह फेर कर भागते।

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि अल्लाह जानता कि उनमें कुछ भी भलाई है, तो वह उन्हें अवश्य सुनने का सौभाग्य प्रदान करता। और यदि वह उन्हें सुना देता तो भी वे कतराते हुए मुँह फेर लेते

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱسْتَجِيبُوا۟ لِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُمْ لِمَا يُحْيِيكُمْ ۖ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ يَحُولُ بَيْنَ ٱلْمَرْءِ وَقَلْبِهِۦ وَأَنَّهُۥٓ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ ﴿٢٤﴾

ऐ ईमानदार जब तुम को हमारा रसूल (मोहम्मद) ऐसे काम के लिए बुलाए जो तुम्हारी रूहानी ज़िन्दगी का बाइस हो तो तुम ख़ुदा और रसूल के हुक्म दिल से कुबूल कर लो और जान लो कि ख़ुदा वह क़ादिर मुतलिक़ है कि आदमी और उसके दिल (इरादे) के दरमियान इस तरह आ जाता है और ये भी समझ लो कि तुम सबके सब उसके सामने हाज़िर किये जाओगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवाले! अल्लाह और रसूल की बात मानो, जब वह तुम्हें उस चीज़ की ओर बुलाए जो तुम्हें जीवन प्रदान करनेवाली है, और जान रखो कि अल्लाह आदमी और उसके दिल के बीच आड़े आ जाता है और यह कि वही है जिसकी ओर (पलटकर) तुम एकत्र होगे

وَٱتَّقُوا۟ فِتْنَةًۭ لَّا تُصِيبَنَّ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ مِنكُمْ خَآصَّةًۭ ۖ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ ﴿٢٥﴾

और उस फितने से डरते रहो जो ख़ास उन्हीं लोगों पर नही पड़ेगा जिन्होने तुम में से ज़ुल्म किया (बल्कि तुम सबके सब उसमें पड़ जाओगे) और यक़ीन मानों कि ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब करने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

बचो उस फ़ितने से जो अपनी लपेट में विशेष रूप से केवल अत्याचारियों को ही नहीं लेगा, जान लो अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है

وَٱذْكُرُوٓا۟ إِذْ أَنتُمْ قَلِيلٌۭ مُّسْتَضْعَفُونَ فِى ٱلْأَرْضِ تَخَافُونَ أَن يَتَخَطَّفَكُمُ ٱلنَّاسُ فَـَٔاوَىٰكُمْ وَأَيَّدَكُم بِنَصْرِهِۦ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ﴿٢٦﴾

(मुसलमानों वह वक्त याद करो) जब तुम सर ज़मीन (मक्के) में बहुत कम और बिल्कुल बेबस थे उससे सहमे जाते थे कि कहीं लोग तुमको उचक न ले जाए तो ख़ुदा ने तुमको (मदीने में) पनाह दी और ख़ास अपनी मदद से तुम्हारी ताईद की और तुम्हे पाक व पाकीज़ा चीज़े खाने को दी ताकि तुम शुक्र गुज़ारी करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जब तुम थोड़े थे, धरती में निर्बल थे, डरे-सहमे रहते कि लोग कहीं तु्म्हें उचक न ले जाएँ, फिर उसने तुम्हें ठिकाना दिया और अपनी सहायता से तुम्हें शक्ति प्रदान की और अच्छी-स्वच्छ चीज़ों की तुम्हें रोजी दी, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَخُونُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ وَتَخُونُوٓا۟ أَمَٰنَٰتِكُمْ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ ﴿٢٧﴾

ऐ ईमानदारों न तो ख़ुदा और रसूल की (अमानत में) ख्यानत करो और न अपनी अमानतों में ख्यानत करो हालॉकि समझते बूझते हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! जानते-बुझते तुम अल्लाह और उसके रसूल के साथ विश्वासघात न करना और न अपनी अमानतों में ख़ियानत करना

وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّمَآ أَمْوَٰلُكُمْ وَأَوْلَٰدُكُمْ فِتْنَةٌۭ وَأَنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥٓ أَجْرٌ عَظِيمٌۭ ﴿٢٨﴾

और यक़ीन जानों कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुम्हारी आज़माइश (इम्तेहान) की चीज़े हैं कि जो उनकी मोहब्बत में भी ख़ुदा को न भूले और वह दीनदार है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जान रखो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी संतान परीक्षा-सामग्री हैं और यह कि अल्लाह के पास बड़ा प्रतिदान है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِن تَتَّقُوا۟ ٱللَّهَ يَجْعَل لَّكُمْ فُرْقَانًۭا وَيُكَفِّرْ عَنكُمْ سَيِّـَٔاتِكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلْفَضْلِ ٱلْعَظِيمِ ﴿٢٩﴾

और यक़ीनन ख़ुदा के हॉ बड़ी मज़दूरी है ऐ ईमानदारों अगर तुम ख़ुदा से डरते रहोगे तो वह तुम्हारे वास्ते इम्तियाज़ पैदा करे देगा और तुम्हारी तरफ से तुम्हारे गुनाह का कफ्फ़ारा क़रार देगा और तुम्हें बख्श देगा और ख़ुदा बड़ा साहब फज़ल (व करम) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम अल्लाह का डर रखोगे तो वह तुम्हें एक विशिष्टता प्रदान करेगा और तुमसे तुम्हारी बुराइयाँ दूर करेगा और तुम्हे क्षमा करेगा। अल्लाह बड़ा अनुग्राहक है

وَإِذْ يَمْكُرُ بِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لِيُثْبِتُوكَ أَوْ يَقْتُلُوكَ أَوْ يُخْرِجُوكَ ۚ وَيَمْكُرُونَ وَيَمْكُرُ ٱللَّهُ ۖ وَٱللَّهُ خَيْرُ ٱلْمَٰكِرِينَ ﴿٣٠﴾

और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब कुफ्फ़ार तुम से फरेब कर रहे थे ताकि तुमको क़ैद कर लें या तुमको मार डाले तुम्हें (घर से) निकाल बाहर करे वह तो ये तदबीर (चालाकी) कर रहे थे और ख़ुदा भी (उनके ख़िलाफ) तदबीरकर रहा था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जब इनकार करनेवाले तुम्हारे साथ चालें चल रहे थे कि तम्हें क़ैद रखें या तुम्हे क़त्ल कर दें या तुम्हे निकाल बाहर करे। वे अपनी चालें चल रहे थे और अल्लाह भी अपनी चाल चल रहा था। अल्लाह सबसे अच्छी चाल चलता है

وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ ءَايَٰتُنَا قَالُوا۟ قَدْ سَمِعْنَا لَوْ نَشَآءُ لَقُلْنَا مِثْلَ هَٰذَآ ۙ إِنْ هَٰذَآ إِلَّآ أَسَٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ ﴿٣١﴾

और ख़ुदा तो सब तदबीरकरने वालों से बेहतर है और जब उनके सामने हमारी आयते पढ़ी जाती हैं तो बोल उठते हैं कि हमने सुना तो लेकिन अगर हम चाहें तो यक़ीनन ऐसा ही (क़रार) हम भी कह सकते हैं-तो बस अगलों के क़िस्से है

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जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती है, तो वे कहते है, \"हम सुन चुके। यदि हम चाहें तो ऐसी बातें हम भी बना लें; ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ हैं।\"

وَإِذْ قَالُوا۟ ٱللَّهُمَّ إِن كَانَ هَٰذَا هُوَ ٱلْحَقَّ مِنْ عِندِكَ فَأَمْطِرْ عَلَيْنَا حِجَارَةًۭ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ أَوِ ٱئْتِنَا بِعَذَابٍ أَلِيمٍۢ ﴿٣٢﴾

और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब उन काफिरों ने दुआएँ माँगीं थी कि ख़ुदा (वन्द) अगर ये (दीन इस्लाम) हक़ है और तेरे पास से (आया है) तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा या हम पर कोई और दर्दनाक अज़ाब ही नाज़िल फरमा

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और याद करो जब उन्होंने कहा, \"ऐ अल्लाह! यदि यही तेरे यहाँ से सत्य हो तो हमपर आकाश से पत्थर बरसा दे, या हम पर कोई दुखद यातना ही ले आ

وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعَذِّبَهُمْ وَأَنتَ فِيهِمْ ۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ مُعَذِّبَهُمْ وَهُمْ يَسْتَغْفِرُونَ ﴿٣٣﴾

हालॉकि जब तक तुम उनके दरमियान मौजूद हो ख़ुदा उन पर अज़ाब नहीं करेगा और अल्लाह ऐसा भी नही कि लोग तो उससे अपने गुनाहो की माफी माँग रहे हैं और ख़ुदा उन पर नाज़िल फरमाए

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और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम उनके बीच उपस्थित हो और वह उन्हें यातना देने लग जाए, और न अल्लाह ऐसा है कि वे क्षमा-याचना कर रहे हो और वह उन्हें यातना से ग्रस्त कर दे

وَمَا لَهُمْ أَلَّا يُعَذِّبَهُمُ ٱللَّهُ وَهُمْ يَصُدُّونَ عَنِ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ وَمَا كَانُوٓا۟ أَوْلِيَآءَهُۥٓ ۚ إِنْ أَوْلِيَآؤُهُۥٓ إِلَّا ٱلْمُتَّقُونَ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ﴿٣٤﴾

और जब ये लोग लोगों को मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा की इबादत) से रोकते है तो फिर उनके लिए कौन सी बात बाक़ी है कि उन पर अज़ाब न नाज़िल करे और ये लोग तो ख़ानाए काबा के मुतवल्ली भी नहीं (फिर क्यों रोकते है) इसके मुतवल्ली तो सिर्फ परहेज़गार लोग हैं मगर इन काफ़िरों में से बहुतेरे नहीं जानते

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किन्तु अब क्या है उनके पास कि अल्लाह उन्हें यातना न दे, जबकि वे 'मस्जिदे हराम' (काबा) से रोकते है, हालाँकि वे उसके कोई व्यवस्थापक नहीं? उसके व्यवस्थापक तो केवल डर रखनेवाले ही है, परन्तु उनके अधिकतर लोग जानते नहीं

وَمَا كَانَ صَلَاتُهُمْ عِندَ ٱلْبَيْتِ إِلَّا مُكَآءًۭ وَتَصْدِيَةًۭ ۚ فَذُوقُوا۟ ٱلْعَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ ﴿٣٥﴾

और ख़ानाए काबे के पास सीटियॉ तालिया बजाने के सिवा उनकी नमाज ही क्या थी तो (ऐ काफिरों) जब तुम कुफ्र किया करते थे उसकी सज़ा में (पड़े) अज़ाब के मज़े चखो

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उनकी नमाज़़ इस घर (काबा) के पास सीटियाँ बजाने और तालियाँ पीटने के अलावा कुछ भी नहीं होती। तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يُنفِقُونَ أَمْوَٰلَهُمْ لِيَصُدُّوا۟ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ فَسَيُنفِقُونَهَا ثُمَّ تَكُونُ عَلَيْهِمْ حَسْرَةًۭ ثُمَّ يُغْلَبُونَ ۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِلَىٰ جَهَنَّمَ يُحْشَرُونَ ﴿٣٦﴾

इसमें शक़ नहीं कि ये कुफ्फार अपने माल महज़ इस वास्ते खर्च करेगें फिर उसके बाद उनकी हसरत का बाइस होगा फिर आख़िर ये लोग हार जाएँगें और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तियार किया (क़यामत में) सब के सब जहन्नुम की तरफ हाके जाएँगें

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निश्चय ही इनकार करनेवाले अपने माल अल्लाह के मार्ग से रोकने के लिए ख़र्च करते रहेंगे, फिर यही उनके लिए पश्चाताप बनेगा। फिर वे पराभूत होंगे और इनकार करनेवाले जहन्नम की ओर समेट लाए जाएँगे

لِيَمِيزَ ٱللَّهُ ٱلْخَبِيثَ مِنَ ٱلطَّيِّبِ وَيَجْعَلَ ٱلْخَبِيثَ بَعْضَهُۥ عَلَىٰ بَعْضٍۢ فَيَرْكُمَهُۥ جَمِيعًۭا فَيَجْعَلَهُۥ فِى جَهَنَّمَ ۚ أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْخَٰسِرُونَ ﴿٣٧﴾

ताकि ख़ुदा पाक को नापाक से जुदा कर दे और नापाक लोगों को एक दूसरे पर रखके ढेर बनाए फिर सब को जहन्नुम में झोंक दे यही लोग घाटा उठाने वाले हैं

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ताकि अल्लाह नापाक को पाक से छाँटकर अलग करे और नापाकों को आपस में एक-दूसरे पर रखकर ढेर बनाए, फिर उसे जहन्नम में डाल दे। यही लोग घाटे में पड़नेवाले है

قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِن يَنتَهُوا۟ يُغْفَرْ لَهُم مَّا قَدْ سَلَفَ وَإِن يَعُودُوا۟ فَقَدْ مَضَتْ سُنَّتُ ٱلْأَوَّلِينَ ﴿٣٨﴾

(ऐ रसूल) तुम काफिरों से कह दो कि अगर वह लोग (अब भी अपनी शरारत से) बाज़ रहें तो उनके पिछले कुसूर माफ कर दिए जाएं और अगर फिर कहीं पलटें तो यक़ीनन अगलों के तरीक़े गुज़र चुके जो, उनकी सज़ा हुई वही इनकी भी होगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन इनकार करनेवालो से कह दो कि वे यदि बाज़ आ जाएँ तो जो कुछ हो चुका, उसे क्षमा कर दिया जाएगा, किन्तु यदि वे फिर भी वहीं करेंगे तो पूर्ववर्ती लोगों के सिलसिले में जो रीति अपनाई गई वह सामने से गुज़र चुकी है

وَقَٰتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌۭ وَيَكُونَ ٱلدِّينُ كُلُّهُۥ لِلَّهِ ۚ فَإِنِ ٱنتَهَوْا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِمَا يَعْمَلُونَ بَصِيرٌۭ ﴿٣٩﴾

मुसलमानों काफ़िरों से लड़े जाओ यहाँ तक कि कोई फसाद (बाक़ी) न रहे और (बिल्कुल सारी ख़ुदाई में) ख़ुदा की दीन ही दीन हो जाए फिर अगर ये लोग (फ़साद से) न बाज़ आएं तो ख़ुदा उनकी कारवाइयों को ख़ूब देखता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है

وَإِن تَوَلَّوْا۟ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَوْلَىٰكُمْ ۚ نِعْمَ ٱلْمَوْلَىٰ وَنِعْمَ ٱلنَّصِيرُ ﴿٤٠﴾

और अगर सरताबी करें तो (मुसलमानों) समझ लो कि ख़ुदा यक़ीनी तुम्हारा मालिक है और वह क्या अच्छा मालिक है और क्या अच्छा मददगार है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

किन्तु यदि वे मुँह मोड़े तो जान रखो कि अल्लाह संरक्षक है। क्या ही अच्छा संरक्षक है वह, और क्या ही अच्छा सहायक!

۞ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّمَا غَنِمْتُم مِّن شَىْءٍۢ فَأَنَّ لِلَّهِ خُمُسَهُۥ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْيَتَٰمَىٰ وَٱلْمَسَٰكِينِ وَٱبْنِ ٱلسَّبِيلِ إِن كُنتُمْ ءَامَنتُم بِٱللَّهِ وَمَآ أَنزَلْنَا عَلَىٰ عَبْدِنَا يَوْمَ ٱلْفُرْقَانِ يَوْمَ ٱلْتَقَى ٱلْجَمْعَانِ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌ ﴿٤١﴾

और जान लो कि जो कुछ तुम (माल लड़कर) लूटो तो उनमें का पॉचवॉ हिस्सा मख़सूस ख़ुदा और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मिस्कीनों और परदेसियों का है अगर तुम ख़ुदा पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने ख़ास बन्दे (मोहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंग बदर में) नाज़िल की थी जिस दिन (मुसलमानों और काफिरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गयी थी और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और तुम्हें मालूम हो कि जो कुछ ग़नीमत के रूप में माल तुमने प्राप्त किया है, उसका पाँचवा भाग अल्लाग का, रसूल का, नातेदारों का, अनाथों का, मुहताजों और मुसाफ़िरों का है। यदि तुम अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारी, जिस दिन दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हूई, और अल्लाह को हर चीज़ की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त है

إِذْ أَنتُم بِٱلْعُدْوَةِ ٱلدُّنْيَا وَهُم بِٱلْعُدْوَةِ ٱلْقُصْوَىٰ وَٱلرَّكْبُ أَسْفَلَ مِنكُمْ ۚ وَلَوْ تَوَاعَدتُّمْ لَٱخْتَلَفْتُمْ فِى ٱلْمِيعَٰدِ ۙ وَلَٰكِن لِّيَقْضِىَ ٱللَّهُ أَمْرًۭا كَانَ مَفْعُولًۭا لِّيَهْلِكَ مَنْ هَلَكَ عَنۢ بَيِّنَةٍۢ وَيَحْيَىٰ مَنْ حَىَّ عَنۢ بَيِّنَةٍۢ ۗ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَسَمِيعٌ عَلِيمٌ ﴿٤٢﴾

(ये वह वक्त था) जब तुम (मैदाने जंग में मदीने के) क़रीब नाके पर थे और वह कुफ्फ़ार बईद (दूर के) के नाके पर और (काफ़िले के) सवार तुम से नशेब में थे और अगर तुम एक दूसरे से (वक्त क़ी तक़रीर का) वायदा कर लेते हो तो और वक्त पर गड़बड़ कर देते मगर (ख़ुदा ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया ताकि जो बात यदनी (होनी) थी वह पूरी कर दिखाए ताकि जो शख़्स हलाक (गुमराह) हो वह (हक़ की) हुज्जत तमाम होने के बाद हलाक हो और जो ज़िन्दा रहे वह हिदायत की हुज्जत तमाम होने के बाद ज़िन्दा रहे और ख़ुदा यक़ीनी सुनने वाला ख़बरदार है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो जब तुम घाटी के निकटवर्ती छोर पर थे और वे घाटी के दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। यदि तुम परस्पर समय निश्चित किए होते तो अनिवार्यतः तुम निश्चित समय पर न पहुँचते। किन्तु जो कुछ हुआ वह इसलिए कि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे, जिसका पूरा होना निश्चित था, ताकि जिसे विनष्ट होना हो, वह स्पष्ट प्रमाण देखकर ही विनष्ट हो और जिसे जीवित रहना हो वह स्पष्ट़ प्रमाण देखकर जीवित रहे। निस्संदेह अल्लाह भली-भाँति जानता, सुनता है

إِذْ يُرِيكَهُمُ ٱللَّهُ فِى مَنَامِكَ قَلِيلًۭا ۖ وَلَوْ أَرَىٰكَهُمْ كَثِيرًۭا لَّفَشِلْتُمْ وَلَتَنَٰزَعْتُمْ فِى ٱلْأَمْرِ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ سَلَّمَ ۗ إِنَّهُۥ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿٤٣﴾

(ये वह वक्त था) जब ख़ुदा ने तुम्हें ख्वाब में कुफ्फ़ार को कम करके दिखलाया था और अगर उनको तुम्हें ज्यादा करते दिखलाता तुम यक़ीनन हिम्मत हार देते और लड़ाई के बारे में झगड़ने लगते मगर ख़ुदा ने इसे (बदनामी) से बचाया इसमें तो शक़ ही नहीं कि वह दिली ख्यालात से वाक़िफ़ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जब अल्लाह उनको तुम्हारे स्वप्न में थोड़ा करके तुम्हें दिखा रहा था और यदि वह उन्हें ज़्यादा करके तुम्हें दिखा देता तो अवश्य ही तुम हिम्मत हार बैठते और असल मामले में झगड़ने लग जाते, किन्तु अल्लाह ने इससे बचा लिया। निश्चय ही वह तो जो कुछ दिलों में होता है उसे भी जानता है

وَإِذْ يُرِيكُمُوهُمْ إِذِ ٱلْتَقَيْتُمْ فِىٓ أَعْيُنِكُمْ قَلِيلًۭا وَيُقَلِّلُكُمْ فِىٓ أَعْيُنِهِمْ لِيَقْضِىَ ٱللَّهُ أَمْرًۭا كَانَ مَفْعُولًۭا ۗ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرْجَعُ ٱلْأُمُورُ ﴿٤٤﴾

(ये वह वक्त था) जब तुम लोगों ने मुठभेड़ की तो ख़ुदा ने तुम्हारी ऑखों में कुफ्फ़ार को बहुत कम करके दिखलाया और उनकी ऑखों में तुमको थोड़ा कर दिया ताकि ख़ुदा को जो कुछ करना मंज़ूर था वह पूरा हो जाए और कुल बातों का दारोमदार तो ख़ुदा ही पर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो जब तुम्हारी परस्पर मुठभेड़ हुई तो वह तुम्हारी निगाहों में उन्हें कम करके और तुम्हें उनकी निगाहों में कम करके दिखा रहा था, ताकि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे जिसका होना निश्चित था। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا لَقِيتُمْ فِئَةًۭ فَٱثْبُتُوا۟ وَٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ كَثِيرًۭا لَّعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ﴿٤٥﴾

ऐ ईमानदारों जब तुम किसी फौज से मुठभेड़ करो तो ख़बरदार अपने क़दम जमाए रहो और ख़ुदा को बहुंत याद करते रहो ताकि तुम फलाह पाओ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम्हारा किसी गिरोह से मुक़ाबला हो जाए तो जमे रहो और अल्लाह को ज़्यादा याद करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो

وَأَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَنَٰزَعُوا۟ فَتَفْشَلُوا۟ وَتَذْهَبَ رِيحُكُمْ ۖ وَٱصْبِرُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّٰبِرِينَ ﴿٤٦﴾

और ख़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो और आपस में झगड़ा न करो वरना तुम हिम्मत हारोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी और (जंग की तकलीफ़ को) झेल जाओ (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन सब्र करने वालों का साथी है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानो और आपस में न झगड़ो, अन्यथा हिम्मत हार बैठोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। और धैर्य से काम लो। निश्चय ही, अल्लाह धैर्यवानों के साथ है

وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ خَرَجُوا۟ مِن دِيَٰرِهِم بَطَرًۭا وَرِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ وَٱللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطٌۭ ﴿٤٧﴾

और उन लोगों के ऐसे न हो जाओ जो इतराते हुए और लोगों के दिखलाने के वास्ते अपने घरों से निकल खड़े हुए और लोगों को ख़ुदा की राह से रोकते हैं और जो कुछ भी वह लोग करते हैं ख़ुदा उस पर (हर तरह से) अहाता किए हुए है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और उन लोगों की तरह न हो जाना जो अपने घरों से इतराते और लोगों को दिखाते निकले थे और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते है, हालाँकि जो कुछ वे करते है, अल्लाह उसे अपने घेरे में लिए हुए है

وَإِذْ زَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيْطَٰنُ أَعْمَٰلَهُمْ وَقَالَ لَا غَالِبَ لَكُمُ ٱلْيَوْمَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَإِنِّى جَارٌۭ لَّكُمْ ۖ فَلَمَّا تَرَآءَتِ ٱلْفِئَتَانِ نَكَصَ عَلَىٰ عَقِبَيْهِ وَقَالَ إِنِّى بَرِىٓءٌۭ مِّنكُمْ إِنِّىٓ أَرَىٰ مَا لَا تَرَوْنَ إِنِّىٓ أَخَافُ ٱللَّهَ ۚ وَٱللَّهُ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ ﴿٤٨﴾

और जब शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया और उनके कान में फूंक दिया कि लोगों में आज कोई ऐसा नहीं जो तुम पर ग़ालिब आ सके और मै तुम्हारा मददगार हूं फिर जब दोनों लश्कर मुकाबिल हुए तो अपने उलटे पॉव भाग निकला और कहने लगा कि मै तो तुम से अलग हूं मै वह चीजें देख रहा हूं जो तुम्हें नहीं सूझती मैं तो ख़ुदा से डरता हूं और ख़ुदा बहुत सख्त अज़ाब वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जब शैतान ने उनके कर्म उनके लिए सुन्दर बना दिए और कहा, \"आज लोगों में से कोई भी तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। मैं तुम्हारे साथ हूँ।\" किन्तु जब दोनों गिरोह आमने-सामने हुए तो वह उलटे पाँव फिर गया और कहने लगा, \"मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं। मैं वह कुछ देख रहा हूँ, जो तुम्हें नहीं दिखाई देता। मैं अल्लाह से डरता हूँ, और अल्लाह कठोर यातना देनेवाला है।\"

إِذْ يَقُولُ ٱلْمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌ غَرَّ هَٰٓؤُلَآءِ دِينُهُمْ ۗ وَمَن يَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ ﴿٤٩﴾

(ये वक्त था) जब मुनाफिक़ीन और जिन लोगों के दिल में (कुफ्र का) मर्ज़ है कह रहे थे कि उन मुसलमानों को उनके दीन ने धोके में डाल रखा है (कि इतराते फिरते हैं हालॉकि जो शख़्स ख़ुदा पर भरोसा करता है (वह ग़ालिब रहता है क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन ग़ालिब और हिकमत वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो जब कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है, कह रहे थे, \"इन लोगों को तो इनके धर्म ने धोखे में डाल रखा है।\" हालाँकि जो अल्लाह पर भरोसा रखता है, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

وَلَوْ تَرَىٰٓ إِذْ يَتَوَفَّى ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۙ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ يَضْرِبُونَ وُجُوهَهُمْ وَأَدْبَٰرَهُمْ وَذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلْحَرِيقِ ﴿٥٠﴾

और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफ़िरों की जान निकाल लेते थे और रूख़ और पुश्त (पीठ) पर कोड़े मारते थे और (कहते थे कि) अज़ाब जहन्नुम के मज़े चखों

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या ही अच्छा होता कि तुम देखते जब फ़रिश्ते इनकार करनेवालों के प्राण ग्रस्त करते हैं! वे उनके चहरों और उनकी पीठों पर मारते जाते हैं कि \"लो अब जलने की यातना मज़ा चखो।\" (तो उनकी दुर्दशा का अन्दाजा कर सकते)

ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيكُمْ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيْسَ بِظَلَّٰمٍۢ لِّلْعَبِيدِ ﴿٥١﴾

ये सज़ा उसकी है जो तुम्हारे हाथों ने पहले किया कराया है और ख़ुदा बन्दों पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं किया करता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह तो उसी का बदला है जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजा और यह कि अल्लाह अपने बन्दों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता

كَدَأْبِ ءَالِ فِرْعَوْنَ ۙ وَٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِىٌّۭ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ ﴿٥٢﴾

(उन लोगों की हालत) क़ौमे फिरऔन और उनके लोगों की सी है जो उन से पहले थे और ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते थे तो ख़ुदा ने भी उनके गुनाहों की वजह से उन्हें ले डाला बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त और बहुत सख्त अज़ाब देने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

इनके साथ वैसा ही मामला पेश आया जैसा फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों के साथ पेश आया। उन्होंने अल्लाह की आयतों का इनकार किया तो अल्लाह ने उनके गुनाहों के कारण उन्हें पकड़ लिया। निस्संदेह अल्लाह शक्तिशाली, कठोर यातना देनेवाला है

ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ لَمْ يَكُ مُغَيِّرًۭا نِّعْمَةً أَنْعَمَهَا عَلَىٰ قَوْمٍ حَتَّىٰ يُغَيِّرُوا۟ مَا بِأَنفُسِهِمْ ۙ وَأَنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌۭ ﴿٥٣﴾

ये सज़ा इस वजह से (दी गई) कि जब कोई नेअमत ख़ुदा किसी क़ौम को देता है तो जब तक कि वह लोग ख़ुद अपनी कलबी हालत (न) बदलें ख़ुदा भी उसे नहीं बदलेगा और ख़ुदा तो यक़ीनी (सब की सुनता) और सब कुछ जानता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह इसलिए हुआ कि अल्लाह उस उदार अनुग्रह (नेमत) को, जो उसने किसी क़ौम पर किया हो, बदलनेवाला नहीं हैं, जब तक कि लोग उस चीज़ को न बदल डालें, जिसका सम्बन्ध स्वयं उनसे है। और यह कि अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है

كَدَأْبِ ءَالِ فِرْعَوْنَ ۙ وَٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمْ فَأَهْلَكْنَٰهُم بِذُنُوبِهِمْ وَأَغْرَقْنَآ ءَالَ فِرْعَوْنَ ۚ وَكُلٌّۭ كَانُوا۟ ظَٰلِمِينَ ﴿٥٤﴾

(उन लोगों की हालत) क़ौम फिरऔन और उन लोगों की सी है जो उनसे पहले थे और अपने परवरदिगार की आयतों को झुठलाते थे तो हमने भी उनके गुनाहों की वजह से उनको हलाक़ कर डाला और फिरऔन की क़ौम को डुबा मारा और (ये) सब के सब ज़ालिम थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जैसे फ़िरऔनियों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने अपने रब की आयतों को झुठलाया तो हमने उन्हें उनके गुनाहों के बदले में विनष्ट कर दिया और फ़िरऔनियों को डूबो दिया। ये सभी अत्याचारी थे

إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَآبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ ﴿٥٥﴾

इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक जानवरों में कुफ्फ़ार सबसे बदतरीन तो (बावजूद इसके) फिर ईमान नहीं लाते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही, सबसे बुरे प्राणी अल्लाह की स्पष्ट में वे लोग है, जिन्होंने इनकार किया। फिर वे ईमान नहीं लाते

ٱلَّذِينَ عَٰهَدتَّ مِنْهُمْ ثُمَّ يَنقُضُونَ عَهْدَهُمْ فِى كُلِّ مَرَّةٍۢ وَهُمْ لَا يَتَّقُونَ ﴿٥٦﴾

ऐ रसूल जिन लोगों से तुम ने एहद व पैमान किया था फिर वह लोग अपने एहद को हर बार तोड़ डालते है और (फिर ख़ुदा से) नहीं डरते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिनसे तुमने वचन लिया वे फिर हर बार अपने वचन को भंग कर देते है और वे डर नहीं रखते

فَإِمَّا تَثْقَفَنَّهُمْ فِى ٱلْحَرْبِ فَشَرِّدْ بِهِم مَّنْ خَلْفَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ ﴿٥٧﴾

तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हाथे चढ़ जाएँ तो (ऐसी सख्त गोश्माली दो कि) उनके साथ साथ उन लोगों का तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हत्थे चढ़ जाएं तो (ऐसी सजा दो की) उनके साथ उन लोगों को भी तितिर बितिर कर दो जो उन के पुश्त पर हो ताकि ये इबरत हासिल करें

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अतः यदि युद्ध में तुम उनपर क़ाबू पाओ, तो उनके साथ इस तरह पेश आओ कि उनके पीछेवाले भी भाग खड़े हों, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें

وَإِمَّا تَخَافَنَّ مِن قَوْمٍ خِيَانَةًۭ فَٱنۢبِذْ إِلَيْهِمْ عَلَىٰ سَوَآءٍ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلْخَآئِنِينَ ﴿٥٨﴾

और अगर तुम्हें किसी क़ौम की ख्यानत (एहद शिकनी(वादा ख़िलाफी)) का ख़ौफ हो तो तुम भी बराबर उनका एहद उन्हीं की तरफ से फेंक मारो (एहदो शिकन के साथ एहद शिकनी करो ख़ुदा हरगिज़ दग़ाबाजों को दोस्त नहीं रखता

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और यदि तुम्हें किसी क़ौम से विश्वासघात की आशंका हो, तो तुम भी उसी प्रकार ऐसे लोगों के साथ हुई संधि को खुल्लम-खुल्ला उनके आगे फेंक दो। निश्चय ही अल्लाह को विश्वासघात करनेवाले प्रिय नहीं

وَلَا يَحْسَبَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ سَبَقُوٓا۟ ۚ إِنَّهُمْ لَا يُعْجِزُونَ ﴿٥٩﴾

और कुफ्फ़ार ये न ख्याल करें कि वह (मुसलमानों से) आगे बढ़ निकले (क्योंकि) वह हरगिज़ (मुसलमानों को) हरा नहीं सकते

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इनकार करनेवाले यह न समझे कि वे आगे निकल गए। वे क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते

وَأَعِدُّوا۟ لَهُم مَّا ٱسْتَطَعْتُم مِّن قُوَّةٍۢ وَمِن رِّبَاطِ ٱلْخَيْلِ تُرْهِبُونَ بِهِۦ عَدُوَّ ٱللَّهِ وَعَدُوَّكُمْ وَءَاخَرِينَ مِن دُونِهِمْ لَا تَعْلَمُونَهُمُ ٱللَّهُ يَعْلَمُهُمْ ۚ وَمَا تُنفِقُوا۟ مِن شَىْءٍۢ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنتُمْ لَا تُظْلَمُونَ ﴿٦٠﴾

और (मुसलमानों तुम कुफ्फार के मुकाबले के) वास्ते जहाँ तक तुमसे हो सके (अपने बाज़ू के) ज़ोर से और बॅधे हुए घोड़े से लड़ाई का सामान मुहय्या करो इससे ख़ुदा के दुश्मन और अपने दुश्मन और उसके सिवा दूसरे लोगों पर भी अपनी धाक बढ़ा लेगें जिन्हें तुम नहीं जानते हो मगर ख़ुदा तो उनको जानता है और ख़ुदा की राह में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगें वह तुम पूरा पूरा भर पाओगें और तुम पर किसी तरह ज़ुल्म नहीं किया जाएगा

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और जो भी तुमसे हो सके, उनके लिए बल और बँधे घोड़े तैयार रखो, ताकि इसके द्वारा अल्लाह के शत्रुओं और अपने शत्रुओं और इनके अतिरिक्त उन दूसरे लोगों को भी भयभीत कर दो जिन्हें तुम नहीं जानते। अल्लाह उनको जानता है और अल्लाह के मार्ग में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगे, वह तुम्हें पूरा-पूरा चुका दिया जाएगा और तुम्हारे साथ कदापि अन्याय न होगा

۞ وَإِن جَنَحُوا۟ لِلسَّلْمِ فَٱجْنَحْ لَهَا وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ ﴿٦١﴾

और अगर ये कुफ्फार सुलह की तरफ माएल हो तो तुम भी उसकी तरफ माएल हो और ख़ुदा पर भरोसा रखो (क्योंकि) वह बेशक (सब कुछ) सुनता जानता है

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और यदि वे संधि और सलामती की ओर झुकें तो तुम भी इसके लिए झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा रखो। निस्संदेह, वह सब कुछ सुनता, जानता है

وَإِن يُرِيدُوٓا۟ أَن يَخْدَعُوكَ فَإِنَّ حَسْبَكَ ٱللَّهُ ۚ هُوَ ٱلَّذِىٓ أَيَّدَكَ بِنَصْرِهِۦ وَبِٱلْمُؤْمِنِينَ ﴿٦٢﴾

और अगर वह लोग तुम्हें फरेब देना चाहे तो (कुछ परवा नहीं) ख़ुदा तुम्हारे वास्ते यक़ीनी काफी है-(ऐ रसूल) वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी ख़ास मदद और मोमिनीन से तुम्हारी ताईद की

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और यदि वे यह चाहें कि तुम्हें धोखा दें तो तुम्हारे लिए अल्लाह काफ़ी है। वही तो है जिसने तुम्हें अपनी सहायता से और मोमिनों के द्वारा शक्ति प्रदान की

وَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ ۚ لَوْ أَنفَقْتَ مَا فِى ٱلْأَرْضِ جَمِيعًۭا مَّآ أَلَّفْتَ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ أَلَّفَ بَيْنَهُمْ ۚ إِنَّهُۥ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ ﴿٦٣﴾

और उसी ने उन मुसलमानों के दिलों में बाहम ऐसी उलफ़त पैदा कर दी कि अगर तुम जो कुछ ज़मीन में है सब का सब खर्च कर डालते तो भी उनके दिलो में ऐसी उलफ़त पैदा न कर सकते मगर ख़ुदा ही था जिसने बाहम उलफत पैदा की बेशक वह ज़बरदस्त हिक़मत वाला है

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और उनके दिल आपस में एक-दूसरे से जोड़ दिए। यदि तुम धरती में जो कुछ है, सब खर्च कर डालते तो भी उनके दिलों को परस्पर जोड़ न सकते, किन्तु अल्लाह ने उन्हें परस्पर जोड़ दिया। निश्चय ही वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ حَسْبُكَ ٱللَّهُ وَمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ ﴿٦٤﴾

ऐ रसूल तुमको बस ख़ुदा और जो मोमिनीन तुम्हारे ताबेए फरमान (फरमाबरदार) है काफी है

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ऐ नबी! तुम्हारे लिए अल्लाह और तुम्हारे ईमानवाले अनुयायी ही काफ़ी है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ حَرِّضِ ٱلْمُؤْمِنِينَ عَلَى ٱلْقِتَالِ ۚ إِن يَكُن مِّنكُمْ عِشْرُونَ صَٰبِرُونَ يَغْلِبُوا۟ مِا۟ئَتَيْنِ ۚ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّا۟ئَةٌۭ يَغْلِبُوٓا۟ أَلْفًۭا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌۭ لَّا يَفْقَهُونَ ﴿٦٥﴾

ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते आमादा करो (वह घबराए नहीं ख़ुदा उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित क़दम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर ग़ालिब आ जायेगे और अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होगें तो हज़ार (काफिरों) पर ग़ालिब आ जाएँगें इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं

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ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो। यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुमसे से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग है

ٱلْـَٰٔنَ خَفَّفَ ٱللَّهُ عَنكُمْ وَعَلِمَ أَنَّ فِيكُمْ ضَعْفًۭا ۚ فَإِن يَكُن مِّنكُم مِّا۟ئَةٌۭ صَابِرَةٌۭ يَغْلِبُوا۟ مِا۟ئَتَيْنِ ۚ وَإِن يَكُن مِّنكُمْ أَلْفٌۭ يَغْلِبُوٓا۟ أَلْفَيْنِ بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّٰبِرِينَ ﴿٦٦﴾

अब ख़ुदा ने तुम से (अपने हुक्म की सख्ती में) तख्फ़ीफ (कमी) कर दी और देख लिया कि तुम में यक़ीनन कमज़ोरी है तो अगर तुम लोगों में से साबित क़दम रहने वाले सौ होगें तो दो सौ (काफ़िरों) पर ग़ालिब रहेंगें और अगर तुम लोगों में से (ऐसे) एक हज़ार होगें तो ख़ुदा के हुक्म से दो हज़ार (काफ़िरों) पर ग़ालिब रहेंगे और (जंग की तकलीफों को) झेल जाने वालों का ख़ुदा साथी है

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अब अल्लाह ने तुम्हारे बोझ हल्का कर दिया और उसे मालूम हुआ कि तुममें कुछ कमज़ोरी है। तो यदि तुम्हारे सौ आदमी जमे रहनेवाले होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी रहेंगे और यदि तुममें से ऐसे हजार होंगे तो अल्लाह के हुक्म से वे दो हज़ार पर प्रभावी रहेंगे। अल्लाह तो उन्ही लोगों के साथ है जो जमे रहते है

مَا كَانَ لِنَبِىٍّ أَن يَكُونَ لَهُۥٓ أَسْرَىٰ حَتَّىٰ يُثْخِنَ فِى ٱلْأَرْضِ ۚ تُرِيدُونَ عَرَضَ ٱلدُّنْيَا وَٱللَّهُ يُرِيدُ ٱلْءَاخِرَةَ ۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ ﴿٦٧﴾

कोई नबी जब कि रूए ज़मीन पर (काफिरों का) खून न बहाए उसके यहाँ कैदियों का रहना मुनासिब नहीं तुम लोग तो दुनिया के साज़ो सामान के ख्वाहॉ (चाहने वाले) हो औॅर ख़ुदा (तुम्हारे लिए) आख़िरत की (भलाई) का ख्वाहॉ है और ख़ुदा ज़बरदस्त हिकमत वाला है

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किसी नबी के लिए यह उचित नहीं कि उसके पास क़ैदी हो यहाँ तक की वह धरती में रक्तपात करे। तुम लोग संसार की सामग्री चाहते हो, जबकि अल्लाह आख़िरत चाहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

لَّوْلَا كِتَٰبٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ سَبَقَ لَمَسَّكُمْ فِيمَآ أَخَذْتُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ ﴿٦٨﴾

और अगर ख़ुदा की तरफ से पहले ही (उसकी) माफी का हुक्म आ चुका होता तो तुमने जो (बदर के क़ैदियों के छोड़ देने के बदले) फिदिया लिया था

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यदि अल्लाह का लिखा पहले से मौजूद न होता, तो जो कुछ नीति तुमने अपनाई है उसपर तुम्हें कोई बड़ी यातना आ लेती

فَكُلُوا۟ مِمَّا غَنِمْتُمْ حَلَٰلًۭا طَيِّبًۭا ۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ ﴿٦٩﴾

उसकी सज़ा में तुम पर बड़ा अज़ाब नाज़िल होकर रहता तो (ख़ैर जो हुआ सो हुआ) अब तुमने जो माल ग़नीमत हासिल किया है उसे खाओ (और तुम्हारे लिए) हलाल तय्यब है और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

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अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है

يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ قُل لِّمَن فِىٓ أَيْدِيكُم مِّنَ ٱلْأَسْرَىٰٓ إِن يَعْلَمِ ٱللَّهُ فِى قُلُوبِكُمْ خَيْرًۭا يُؤْتِكُمْ خَيْرًۭا مِّمَّآ أُخِذَ مِنكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ ﴿٧٠﴾

ऐ रसूल जो कैदी तुम्हारे कब्जे में है उनसे कह दो कि अगर तुम्हारे दिलों में नेकी देखेगा तो जो (माल) तुम से छीन लिया गया है उससे कहीं बेहतर तुम्हें अता फरमाएगा और तुम्हें बख्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

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ऐ नबी! जो क़ैदी तुम्हारे क़ब्जें में है, उनसे कह दो, \"यदि अल्लाह ने यह जान लिया कि तुम्हारे दिलों में कुछ भलाई है तो वह तुम्हें उससे कहीं उत्तम प्रदान करेगा, जो तुम से छिन गया है और तुम्हें क्षमा कर देगा। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।\"

وَإِن يُرِيدُوا۟ خِيَانَتَكَ فَقَدْ خَانُوا۟ ٱللَّهَ مِن قَبْلُ فَأَمْكَنَ مِنْهُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ ﴿٧١﴾

और अगर ये लोग तुमसे फरेब करना चाहते है तो ख़ुदा से पहले ही फरेब कर चुके हैं तो (उसकी सज़ा में) ख़ुदा ने उन पर तुम्हें क़ाबू दे दिया और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफकार हिकमत वाला है

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किन्तुम यदि वे तुम्हारे साथ विश्वासघात करना चाहेंगे, तो इससे पहले वे अल्लाह के साथ विश्वासघात कर चुके है। तो उसने तुम्हें उनपर अधिकार दे दिया। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, बड़ा तत्वदर्शी है

إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَٰهَدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ ءَاوَوا۟ وَّنَصَرُوٓا۟ أُو۟لَٰٓئِكَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍۢ ۚ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَلَمْ يُهَاجِرُوا۟ مَا لَكُم مِّن وَلَٰيَتِهِم مِّن شَىْءٍ حَتَّىٰ يُهَاجِرُوا۟ ۚ وَإِنِ ٱسْتَنصَرُوكُمْ فِى ٱلدِّينِ فَعَلَيْكُمُ ٱلنَّصْرُ إِلَّا عَلَىٰ قَوْمٍۭ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَٰقٌۭ ۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌۭ ﴿٧٢﴾

जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और अपने अपने जान माल से ख़ुदा की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने (हिजरत करने वालों को जगह दी और हर (तरह) उनकी ख़बर गीरी (मदद) की यही लोग एक दूसरे के (बाहम) सरपरस्त दोस्त हैं और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत नहीं की तो तुम लोगों को उनकी सरपरस्ती से कुछ सरोकार नहीं-यहाँ तक कि वह हिजरत एख्तियार करें और (हॉ) मगर दीनी अम्र में तुम से मदद के ख्वाहॉ हो तो तुम पर (उनकी मदद करना लाज़िम व वाजिब है मगर उन लोगों के मुक़ाबले में (नहीं) जिनमें और तुममें बाहम (सुलह का) एहदो पैमान है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा (सबको) देख रहा है

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जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की, वही लोग परस्पर एक-दूसरे के संरक्षक मित्र है। रहे वे लोग जो ईमान लाए, किन्तु उन्होंने हिजरत नहीं की, उनसे तुम्हारा संरक्षण और मित्रता का कोई सम्बन्ध नहीं है, जब तक कि वे हिजरत न करें, किन्तु यदि वे धर्म के मामले में तुमसे सहायता माँगे तो तुमपर अनिवार्य है कि सहायता करो, सिवाय इसके कि सहायता किसी ऐसी क़ौम के मुक़ाबले में हो जिससे तुम्हारी कोई संधि हो। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे देखता है

وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍ ۚ إِلَّا تَفْعَلُوهُ تَكُن فِتْنَةٌۭ فِى ٱلْأَرْضِ وَفَسَادٌۭ كَبِيرٌۭ ﴿٧٣﴾

और जो लोग काफ़िर हैं वह भी (बाहम) एक दूसरे के सरपरस्त हैं अगर तुम (इस तरह) वायदा न करोगे तो रूए ज़मीन पर फ़ितना (फ़साद) बरपा हो जाएगा और बड़ा फ़साद होगा

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जो इनकार करनेवाले लोग है, वे आपस में एक-दूसरे के मित्र और सहायक है। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो धरती में फ़ितना और बड़ा फ़साद फैलेगा

وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَٰهَدُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ ءَاوَوا۟ وَّنَصَرُوٓا۟ أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُؤْمِنُونَ حَقًّۭا ۚ لَّهُم مَّغْفِرَةٌۭ وَرِزْقٌۭ كَرِيمٌۭ ﴿٧٤﴾

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और ख़ुदा की राह में लड़े भिड़े और जिन लोगों ने (ऐसे नाज़ुक वक्त में मुहाजिरीन को जगह ही और उनकी हर तरह ख़बरगीरी (मदद) की यही लोग सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के वास्ते मग़फिरत और इज्ज़त व आबरु वाली रोज़ी है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की वही सच्चे मोमिन हैं। उनके क्षमा और सम्मानित - उत्तम आजीविका है

وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مِنۢ بَعْدُ وَهَاجَرُوا۟ وَجَٰهَدُوا۟ مَعَكُمْ فَأُو۟لَٰٓئِكَ مِنكُمْ ۚ وَأُو۟لُوا۟ ٱلْأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَىٰ بِبَعْضٍۢ فِى كِتَٰبِ ٱللَّهِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌۢ ﴿٧٥﴾

और जिन लोगों ने (सुलह हुदैबिया के) बाद ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया वह लोग भी तुम्हीं में से हैं और साहबाने क़राबत ख़ुदा की किताब में बाहम एक दूसरे के (बनिस्बत औरों के) ज्यादा हक़दार हैं बेशक ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ हैं

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और जो लोग बाद में ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया तो ऐसे लोग भी तुम में ही से हैं। किन्तु अल्लाह की किताब मे ख़ून के रिश्तेदार एक-दूसरे के ज़्यादा हक़दार है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है