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Surah Joseph [Yusuf] in Hindi

Surah Joseph [Yusuf] Ayah 111 Location Maccah Number 12

الٓر ۚ تِلْكَ ءَايَٰتُ ٱلْكِتَٰبِ ٱلْمُبِينِ ﴿١﴾

अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। ये स्पष्ट किताब की आयतें हैं

إِنَّآ أَنزَلْنَٰهُ قُرْءَٰنًا عَرَبِيًّۭا لَّعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ ﴿٢﴾

हमने इसे अरबी क़ुरआन के रूप में उतारा है, ताकि तुम समझो

نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ أَحْسَنَ ٱلْقَصَصِ بِمَآ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ هَٰذَا ٱلْقُرْءَانَ وَإِن كُنتَ مِن قَبْلِهِۦ لَمِنَ ٱلْغَٰفِلِينَ ﴿٣﴾

इस क़ुरआन की तुम्हारी ओर प्रकाशना करके इसके द्वारा हम तुम्हें एक बहुत ही अच्छा बयान सुनाते है, यद्यपि इससे पहले तुम बेख़बर थे

إِذْ قَالَ يُوسُفُ لِأَبِيهِ يَٰٓأَبَتِ إِنِّى رَأَيْتُ أَحَدَ عَشَرَ كَوْكَبًۭا وَٱلشَّمْسَ وَٱلْقَمَرَ رَأَيْتُهُمْ لِى سَٰجِدِينَ ﴿٤﴾

जब यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा, \"ऐ मेरे बाप! मैंने स्वप्न में ग्यारह सितारे देखे और सूर्य और चाँद। मैंने उन्हें देखा कि वे मुझे सजदा कर रहे है।\"

قَالَ يَٰبُنَىَّ لَا تَقْصُصْ رُءْيَاكَ عَلَىٰٓ إِخْوَتِكَ فَيَكِيدُوا۟ لَكَ كَيْدًا ۖ إِنَّ ٱلشَّيْطَٰنَ لِلْإِنسَٰنِ عَدُوٌّۭ مُّبِينٌۭ ﴿٥﴾

उसने कहा, \"ऐ मेरे बेटे! अपना स्वप्न अपने भाइयों को मत बताना, अन्यथा वे तेरे विरुद्ध कोई चाल चलेंगे। शैतान तो मनुष्य का खुला हुआ शत्रु है

وَكَذَٰلِكَ يَجْتَبِيكَ رَبُّكَ وَيُعَلِّمُكَ مِن تَأْوِيلِ ٱلْأَحَادِيثِ وَيُتِمُّ نِعْمَتَهُۥ عَلَيْكَ وَعَلَىٰٓ ءَالِ يَعْقُوبَ كَمَآ أَتَمَّهَا عَلَىٰٓ أَبَوَيْكَ مِن قَبْلُ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْحَٰقَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ عَلِيمٌ حَكِيمٌۭ ﴿٦﴾

और ऐसा ही होगा, तेरा रब तुझे चुन लेगा और तुझे बातों की तथ्य तक पहुँचना सिखाएगा और अपना अनुग्रह तुझपर और याकूब के घरवालों पर उसी प्रकार पूरा करेगा, जिस प्रकार इससे पहले वह तेरे पूर्वज इबराहीम और इसहाक़ पर पूरा कर चुका है। निस्संदेह तेरा रब सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।\"

۞ لَّقَدْ كَانَ فِى يُوسُفَ وَإِخْوَتِهِۦٓ ءَايَٰتٌۭ لِّلسَّآئِلِينَ ﴿٧﴾

निश्चय ही यूसुफ़ और उनके भाइयों में सवाल करनेवालों के लिए निशानियाँ है

إِذْ قَالُوا۟ لَيُوسُفُ وَأَخُوهُ أَحَبُّ إِلَىٰٓ أَبِينَا مِنَّا وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّ أَبَانَا لَفِى ضَلَٰلٍۢ مُّبِينٍ ﴿٨﴾

जबकि उन्होंने कहा, \"यूसुफ़ और उसका भाई हमारे बाप को हमसे अधिक प्रिय है, हालाँकि हम एक पूरा जत्था है। वासत्व में हमारे बाप स्पष्ट तः बहक गए है

ٱقْتُلُوا۟ يُوسُفَ أَوِ ٱطْرَحُوهُ أَرْضًۭا يَخْلُ لَكُمْ وَجْهُ أَبِيكُمْ وَتَكُونُوا۟ مِنۢ بَعْدِهِۦ قَوْمًۭا صَٰلِحِينَ ﴿٩﴾

यूसुफ़ को मार डालो या उसे किसी भूभाग में फेंक आओ, ताकि तुम्हारे बाप का ध्यान केवल तुम्हारी ही ओर हो जाए। इसके पश्चात तुम फिर नेक बन जाना।\"

قَالَ قَآئِلٌۭ مِّنْهُمْ لَا تَقْتُلُوا۟ يُوسُفَ وَأَلْقُوهُ فِى غَيَٰبَتِ ٱلْجُبِّ يَلْتَقِطْهُ بَعْضُ ٱلسَّيَّارَةِ إِن كُنتُمْ فَٰعِلِينَ ﴿١٠﴾

उनमें से एक बोलनेवाला बोल पड़ा, \"यूसुफ़ की हत्या न करो, यदि तुम्हें कुछ करना ही है तो उसे किसी कुएँ की तह में डाल दो। कोई राहगीर उसे उठा लेगा।\"

قَالُوا۟ يَٰٓأَبَانَا مَا لَكَ لَا تَأْمَ۫نَّا عَلَىٰ يُوسُفَ وَإِنَّا لَهُۥ لَنَٰصِحُونَ ﴿١١﴾

उन्होंने कहा, \"ऐ हमारे बाप! आपको क्या हो गया है कि यूसुफ़ के मामले में आप हमपर भरोसा नहीं करते, हालाँकि हम तो उसके हितैषी है?

أَرْسِلْهُ مَعَنَا غَدًۭا يَرْتَعْ وَيَلْعَبْ وَإِنَّا لَهُۥ لَحَٰفِظُونَ ﴿١٢﴾

हमारे साथ कल उसे भेज दीजिए कि वह कुछ चर-चुग और खेल ले। उसकी रक्षा के लिए तो हम हैं ही।\"

قَالَ إِنِّى لَيَحْزُنُنِىٓ أَن تَذْهَبُوا۟ بِهِۦ وَأَخَافُ أَن يَأْكُلَهُ ٱلذِّئْبُ وَأَنتُمْ عَنْهُ غَٰفِلُونَ ﴿١٣﴾

उसने कहा, यह बात कि तुम उसे ले जाओ, मुझे दुखी कर देती है। कहीं ऐसा न हो कि तुम उसका ध्यान न रख सको और भेड़िया उसे खा जाए।\"

قَالُوا۟ لَئِنْ أَكَلَهُ ٱلذِّئْبُ وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّآ إِذًۭا لَّخَٰسِرُونَ ﴿١٤﴾

वे बोले, \"हमारे एक जत्थे के होते हुए भी यदि उसे भेड़िए ने खा लिया, तब तो निश्चय ही हम सब कुछ गँवा बैठे।\"

فَلَمَّا ذَهَبُوا۟ بِهِۦ وَأَجْمَعُوٓا۟ أَن يَجْعَلُوهُ فِى غَيَٰبَتِ ٱلْجُبِّ ۚ وَأَوْحَيْنَآ إِلَيْهِ لَتُنَبِّئَنَّهُم بِأَمْرِهِمْ هَٰذَا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ ﴿١٥﴾

फिर जब वे उसे ले गए और सभी इस बात पर सहमत हो गए कि उसे एक कुएँ की गहराई में डाल दें (तो उन्होंने वह किया जो करना चाहते थे), और हमने उसकी ओर प्रकाशना का, \"तू उन्हें उनके इस कर्म से अवगत कराएगा और वे जानते न होंगे।\"

وَجَآءُوٓ أَبَاهُمْ عِشَآءًۭ يَبْكُونَ ﴿١٦﴾

कुछ रात बीते वे रोते हुए अपने बाप के पास आए

قَالُوا۟ يَٰٓأَبَانَآ إِنَّا ذَهَبْنَا نَسْتَبِقُ وَتَرَكْنَا يُوسُفَ عِندَ مَتَٰعِنَا فَأَكَلَهُ ٱلذِّئْبُ ۖ وَمَآ أَنتَ بِمُؤْمِنٍۢ لَّنَا وَلَوْ كُنَّا صَٰدِقِينَ ﴿١٧﴾

कहने लगे, \"ऐ मेरे बाप! हम परस्पर दौड़ में मुक़ाबला करते हुए दूर चले गए और यूसफ़ को हमने अपने सामान के साथ छोड़ दिया था कि इतने में भेड़िया उसे खा गया। आप तो हमपर विश्वास करेंगे नहीं, यद्यपि हम सच्चे है।\"

وَجَآءُو عَلَىٰ قَمِيصِهِۦ بِدَمٍۢ كَذِبٍۢ ۚ قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنفُسُكُمْ أَمْرًۭا ۖ فَصَبْرٌۭ جَمِيلٌۭ ۖ وَٱللَّهُ ٱلْمُسْتَعَانُ عَلَىٰ مَا تَصِفُونَ ﴿١٨﴾

वे उसके कुर्ते पर झूठमूठ का ख़ून लगा लाए थे। उसने कहा, \"नहीं, बल्कि तुम्हारे जी ने बहकाकर तुम्हारे लिए एक बात बना दी है। अब धैर्य से काम लेना ही उत्तम है! जो बात तुम बता रहे हो उसमें अल्लाह ही सहायक हो सकता है।\"

وَجَآءَتْ سَيَّارَةٌۭ فَأَرْسَلُوا۟ وَارِدَهُمْ فَأَدْلَىٰ دَلْوَهُۥ ۖ قَالَ يَٰبُشْرَىٰ هَٰذَا غُلَٰمٌۭ ۚ وَأَسَرُّوهُ بِضَٰعَةًۭ ۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِمَا يَعْمَلُونَ ﴿١٩﴾

एक क़ाफ़िला आया। फिर उसने पनिहारा को भेजा। उसने अपना डोल ज्यों ही डाला तो पुकार उठा, \"अरे! कितनी ख़ुशी की बात है। यह तो एक लड़का है।\" उन्होंने उसे व्यापार का माल समझकर छुपा लिया। किन्तु जो कुछ वे कर रहे थे, अल्लाह तो उसे जानता ही था

وَشَرَوْهُ بِثَمَنٍۭ بَخْسٍۢ دَرَٰهِمَ مَعْدُودَةٍۢ وَكَانُوا۟ فِيهِ مِنَ ٱلزَّٰهِدِينَ ﴿٢٠﴾

उन्होंने उसे सस्ते दाम, गिनती के कुछ दिरहमों में बेच दिया, क्योंकि वे उसके मामलें में बेपरवाह थे

وَقَالَ ٱلَّذِى ٱشْتَرَىٰهُ مِن مِّصْرَ لِٱمْرَأَتِهِۦٓ أَكْرِمِى مَثْوَىٰهُ عَسَىٰٓ أَن يَنفَعَنَآ أَوْ نَتَّخِذَهُۥ وَلَدًۭا ۚ وَكَذَٰلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِى ٱلْأَرْضِ وَلِنُعَلِّمَهُۥ مِن تَأْوِيلِ ٱلْأَحَادِيثِ ۚ وَٱللَّهُ غَالِبٌ عَلَىٰٓ أَمْرِهِۦ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ ﴿٢١﴾

मिस्र के जिस व्यक्ति ने उसे ख़रीदा, उसने अपनी स्त्री से कहा, \"इसको अच्छी तरह रखना। बहुत सम्भव है कि यह हमारे काम आए या हम इसे बेटा बना लें।\" इस प्रकार हमने उस भूभाग में यूसुफ़ के क़दम जमाने की राह निकाली (ताकि उसे प्रतिष्ठा प्रदान करें) और ताकि मामलों और बातों के परिणाम से हम उसे अवगत कराएँ। अल्लाह तो अपना काम करके रहता है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं

وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُۥٓ ءَاتَيْنَٰهُ حُكْمًۭا وَعِلْمًۭا ۚ وَكَذَٰلِكَ نَجْزِى ٱلْمُحْسِنِينَ ﴿٢٢﴾

और जब वह अपनी जवानी को पहुँचा तो हमने उसे निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया। उत्तमकार लोगों को हम इसी प्रकार बदला देते है

وَرَٰوَدَتْهُ ٱلَّتِى هُوَ فِى بَيْتِهَا عَن نَّفْسِهِۦ وَغَلَّقَتِ ٱلْأَبْوَٰبَ وَقَالَتْ هَيْتَ لَكَ ۚ قَالَ مَعَاذَ ٱللَّهِ ۖ إِنَّهُۥ رَبِّىٓ أَحْسَنَ مَثْوَاىَ ۖ إِنَّهُۥ لَا يُفْلِحُ ٱلظَّٰلِمُونَ ﴿٢٣﴾

जिस स्त्री के घर में वह रहता था, वह उस पर डोरे डालने लगी। उसने दरवाज़े बन्द कर दिए और कहने लगी, \"लो, आ जाओ!\" उसने कहा, \"अल्लाह की पनाह! मेरे रब ने मुझे अच्छा स्थान दिया है। अत्याचारी कभी सफल नहीं होते।\"

وَلَقَدْ هَمَّتْ بِهِۦ ۖ وَهَمَّ بِهَا لَوْلَآ أَن رَّءَا بُرْهَٰنَ رَبِّهِۦ ۚ كَذَٰلِكَ لِنَصْرِفَ عَنْهُ ٱلسُّوٓءَ وَٱلْفَحْشَآءَ ۚ إِنَّهُۥ مِنْ عِبَادِنَا ٱلْمُخْلَصِينَ ﴿٢٤﴾

उसने उसका इरादा कर लिया था। यदि वह अपने रब का स्पष्ट॥ प्रमाण न देख लेता तो वह भी उसका इरादा कर लेता। ऐसा इसलिए हुआ ताकि हम बुराई और अश्लीलता को उससे दूर रखें। निस्संदेह वह हमारे चुने हुए बन्दों में से था

وَٱسْتَبَقَا ٱلْبَابَ وَقَدَّتْ قَمِيصَهُۥ مِن دُبُرٍۢ وَأَلْفَيَا سَيِّدَهَا لَدَا ٱلْبَابِ ۚ قَالَتْ مَا جَزَآءُ مَنْ أَرَادَ بِأَهْلِكَ سُوٓءًا إِلَّآ أَن يُسْجَنَ أَوْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ ﴿٢٥﴾

वे दोनों दरवाज़े की ओर झपटे और उस स्त्री ने उसका कुर्ता पीछे से फाड़ डाला। दरवाज़े पर दोनों ने उस स्त्री के पति को उपस्थित पाया। वह बोली, \"जो कोई तुम्हारी घरवाली के साथ बुरा इरादा करे, उसका बदला इसके सिवा और क्या होगा कि उसे बन्दी बनाया जाए या फिर कोई दुखद यातना दी जाए?\"

قَالَ هِىَ رَٰوَدَتْنِى عَن نَّفْسِى ۚ وَشَهِدَ شَاهِدٌۭ مِّنْ أَهْلِهَآ إِن كَانَ قَمِيصُهُۥ قُدَّ مِن قُبُلٍۢ فَصَدَقَتْ وَهُوَ مِنَ ٱلْكَٰذِبِينَ ﴿٢٦﴾

उसने कहा, \"यही मुझपर डोरे डाल रही थी।\" उस स्त्री के लोगों में से एक गवाह ने गवाही दी, \"यदि इसका कुर्ता आगे से फटा है तो यह सच्ची है और यह झूठा है,

وَإِن كَانَ قَمِيصُهُۥ قُدَّ مِن دُبُرٍۢ فَكَذَبَتْ وَهُوَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ ﴿٢٧﴾

और यदि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो यह झूठी है और यह सच्चा है।\"

فَلَمَّا رَءَا قَمِيصَهُۥ قُدَّ مِن دُبُرٍۢ قَالَ إِنَّهُۥ مِن كَيْدِكُنَّ ۖ إِنَّ كَيْدَكُنَّ عَظِيمٌۭ ﴿٢٨﴾

फिर जब देखा कि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो उसने कहा, \"यह तुम स्त्रियों की चाल है। निश्चय ही तुम्हारी चाल बड़े ग़ज़ब की होती है

يُوسُفُ أَعْرِضْ عَنْ هَٰذَا ۚ وَٱسْتَغْفِرِى لِذَنۢبِكِ ۖ إِنَّكِ كُنتِ مِنَ ٱلْخَاطِـِٔينَ ﴿٢٩﴾

यूसुफ़! इस मामले को जाने दे और स्त्री तू अपने गुनाह की माफ़ी माँग। निस्संदेह ख़ता तेरी ही है।\"

۞ وَقَالَ نِسْوَةٌۭ فِى ٱلْمَدِينَةِ ٱمْرَأَتُ ٱلْعَزِيزِ تُرَٰوِدُ فَتَىٰهَا عَن نَّفْسِهِۦ ۖ قَدْ شَغَفَهَا حُبًّا ۖ إِنَّا لَنَرَىٰهَا فِى ضَلَٰلٍۢ مُّبِينٍۢ ﴿٣٠﴾

नगर की स्त्रियाँ कहने लगी, \"अज़ीज़ की पत्नी अपने नवयुवक ग़ुलाम पर डोरे डालना चाहती है। वह प्रेम-प्रेरणा से उसके मन में घर कर गया है। हम तो उसे देख रहे हैं कि वह खुली ग़लती में पड़ गई है।\"

فَلَمَّا سَمِعَتْ بِمَكْرِهِنَّ أَرْسَلَتْ إِلَيْهِنَّ وَأَعْتَدَتْ لَهُنَّ مُتَّكَـًۭٔا وَءَاتَتْ كُلَّ وَٰحِدَةٍۢ مِّنْهُنَّ سِكِّينًۭا وَقَالَتِ ٱخْرُجْ عَلَيْهِنَّ ۖ فَلَمَّا رَأَيْنَهُۥٓ أَكْبَرْنَهُۥ وَقَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ وَقُلْنَ حَٰشَ لِلَّهِ مَا هَٰذَا بَشَرًا إِنْ هَٰذَآ إِلَّا مَلَكٌۭ كَرِيمٌۭ ﴿٣١﴾

उसने जब उनकी मक्करी की बातें सुनी तो उन्हें बुला भेजा और उनमें से हरेक के लिए आसन सुसज्जित किया और उनमें से हरेक को एक छुरी दी। उसने (यूसुफ़ से) कहा, \"इनके सामने आ जाओ।\" फिर जब स्त्रियों ने देखा तो वे उसकी बड़ाई से दंग रह गई। उन्होंने अपने हाथ घायल कर लिए और कहने लगी, \"अल्लाह की पनाह! यह कोई मनुष्य नहीं। यह तो कोई प्रतिष्ठित फ़रिश्ता है।‍\"

قَالَتْ فَذَٰلِكُنَّ ٱلَّذِى لُمْتُنَّنِى فِيهِ ۖ وَلَقَدْ رَٰوَدتُّهُۥ عَن نَّفْسِهِۦ فَٱسْتَعْصَمَ ۖ وَلَئِن لَّمْ يَفْعَلْ مَآ ءَامُرُهُۥ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُونًۭا مِّنَ ٱلصَّٰغِرِينَ ﴿٣٢﴾

वह बोली, \"यह वही है जिसके विषय में तुम मुझे मलामत कर रही थीं। हाँ, मैंने इसे रिझाना चाहा था, किन्तु यह बचा रहा। और यदि इसने न किया जो मैं इससे कहती तो यह अवश्य क़ैद किया जाएगा और अपमानित होगा।\"

قَالَ رَبِّ ٱلسِّجْنُ أَحَبُّ إِلَىَّ مِمَّا يَدْعُونَنِىٓ إِلَيْهِ ۖ وَإِلَّا تَصْرِفْ عَنِّى كَيْدَهُنَّ أَصْبُ إِلَيْهِنَّ وَأَكُن مِّنَ ٱلْجَٰهِلِينَ ﴿٣٣﴾

उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! जिसकी ओर ये सब मुझे बुला रही हैं, उससे अधिक तो मुझे क़ैद ही पसन्द है यदि तूने उनके दाँव-घात को मुझसे न टाला तो मैं उनकी और झुक जाऊँगा और निरे आवेग के वशीभूत हो जाऊँगा।\"

فَٱسْتَجَابَ لَهُۥ رَبُّهُۥ فَصَرَفَ عَنْهُ كَيْدَهُنَّ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ ﴿٣٤﴾

अतः उसने रब ने उसकी सुन ली और उसकी ओर से उन स्त्रियों के दाँव-घात को टाल दिया। निस्संदेह वह सब कुछ सुनता, जानता है

ثُمَّ بَدَا لَهُم مِّنۢ بَعْدِ مَا رَأَوُا۟ ٱلْءَايَٰتِ لَيَسْجُنُنَّهُۥ حَتَّىٰ حِينٍۢ ﴿٣٥﴾

फिर उन्हें, इसके पश्चात कि वे निशानियाँ देख चुके थे, यह सूझा कि उसे एक अवधि के लिए क़ैद कर दें

وَدَخَلَ مَعَهُ ٱلسِّجْنَ فَتَيَانِ ۖ قَالَ أَحَدُهُمَآ إِنِّىٓ أَرَىٰنِىٓ أَعْصِرُ خَمْرًۭا ۖ وَقَالَ ٱلْءَاخَرُ إِنِّىٓ أَرَىٰنِىٓ أَحْمِلُ فَوْقَ رَأْسِى خُبْزًۭا تَأْكُلُ ٱلطَّيْرُ مِنْهُ ۖ نَبِّئْنَا بِتَأْوِيلِهِۦٓ ۖ إِنَّا نَرَىٰكَ مِنَ ٱلْمُحْسِنِينَ ﴿٣٦﴾

कारागार में दो नव युवकों ने भी उसके साथ प्रवेश किया। उनमें से एक ने कहा, \"मैंने स्वप्न देखा है कि मैं शराब निचोड़ रहा हूँ।\" दूसरे ने कहा, \"मैंने देखा कि मैं अपने सिर पर रोटियाँ उठाए हुए हूँ, जिनको पक्षी खा रहे है। हमें इसका अर्थ बता दीजिए। हमें तो आप बहुत ही नेक नज़र आते है।\"

قَالَ لَا يَأْتِيكُمَا طَعَامٌۭ تُرْزَقَانِهِۦٓ إِلَّا نَبَّأْتُكُمَا بِتَأْوِيلِهِۦ قَبْلَ أَن يَأْتِيَكُمَا ۚ ذَٰلِكُمَا مِمَّا عَلَّمَنِى رَبِّىٓ ۚ إِنِّى تَرَكْتُ مِلَّةَ قَوْمٍۢ لَّا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَهُم بِٱلْءَاخِرَةِ هُمْ كَٰفِرُونَ ﴿٣٧﴾

उसने कहा, \"जो भोजन तुम्हें मिला करता है वह तुम्हारे पास नहीं आ पाएगा, उसके तुम्हारे पास आने से पहले ही मैं तुम्हें इसका अर्थ बता दूँगा। यह उन बातों में से है, जो मेरे रब ने मुझे सिखाई है। मैं तो उन लोगों का तरीक़ा छोड़कर, जो अल्लाह को नहीं मानते और जो आख़िरत (परलोक) का इनकार करते हैं,

وَٱتَّبَعْتُ مِلَّةَ ءَابَآءِىٓ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْحَٰقَ وَيَعْقُوبَ ۚ مَا كَانَ لَنَآ أَن نُّشْرِكَ بِٱللَّهِ مِن شَىْءٍۢ ۚ ذَٰلِكَ مِن فَضْلِ ٱللَّهِ عَلَيْنَا وَعَلَى ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ ﴿٣٨﴾

अपने पूर्वज इबराहीम, इसहाक़ और याक़ूब का तरीक़ा अपनाया है। इमसे यह नहीं हो सकता कि हम अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ। यह हमपर और लोगों पर अल्लाह का अनुग्रह है। किन्तु अधिकतर लोग आभार नहीं प्रकट करते

يَٰصَىٰحِبَىِ ٱلسِّجْنِ ءَأَرْبَابٌۭ مُّتَفَرِّقُونَ خَيْرٌ أَمِ ٱللَّهُ ٱلْوَٰحِدُ ٱلْقَهَّارُ ﴿٣٩﴾

ऐ कारागर के मेरे साथियों! क्या अलग-अलग बहुत-से रह अच्छे है या अकेला अल्लाह जिसका प्रभुत्व सबपर है?

مَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِهِۦٓ إِلَّآ أَسْمَآءًۭ سَمَّيْتُمُوهَآ أَنتُمْ وَءَابَآؤُكُم مَّآ أَنزَلَ ٱللَّهُ بِهَا مِن سُلْطَٰنٍ ۚ إِنِ ٱلْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۚ أَمَرَ أَلَّا تَعْبُدُوٓا۟ إِلَّآ إِيَّاهُ ۚ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلْقَيِّمُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ ﴿٤٠﴾

तुम उसके सिवा जिनकी भी बन्दगी करते हो वे तो बस निरे नाम हैं जो तुमने रख छोड़े है और तुम्हारे बाप-दादा ने। उनके लिए अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा। सत्ता और अधिकार तो बस अल्लाह का है। उसने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो। यही सीधा, सच्चा दीन (धर्म) हैं, किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते

يَٰصَىٰحِبَىِ ٱلسِّجْنِ أَمَّآ أَحَدُكُمَا فَيَسْقِى رَبَّهُۥ خَمْرًۭا ۖ وَأَمَّا ٱلْءَاخَرُ فَيُصْلَبُ فَتَأْكُلُ ٱلطَّيْرُ مِن رَّأْسِهِۦ ۚ قُضِىَ ٱلْأَمْرُ ٱلَّذِى فِيهِ تَسْتَفْتِيَانِ ﴿٤١﴾

ऐ कारागार के मेरे दोनों साथियों! तुममें से एक तो अपने स्वामी को मद्यपान कराएगा; रहा दूसरा तो उसे सूली पर चढ़ाया जाएगा और पक्षी उसका सिर खाएँगे। फ़ैसला हो चुका उस बात का जिसके विषय में तुम मुझसे पूछ रहे हो।\"

وَقَالَ لِلَّذِى ظَنَّ أَنَّهُۥ نَاجٍۢ مِّنْهُمَا ٱذْكُرْنِى عِندَ رَبِّكَ فَأَنسَىٰهُ ٱلشَّيْطَٰنُ ذِكْرَ رَبِّهِۦ فَلَبِثَ فِى ٱلسِّجْنِ بِضْعَ سِنِينَ ﴿٤٢﴾

उन दोनों में से जिसके विषय में उसने समझा था कि वह रिहा हो जाएगा, उससे कहा, \"अपने स्वामी से मेरी चर्चा करना।\" किन्तु शैतान ने अपने स्वामी से उसकी चर्चा करना भुलवा दिया। अतः वह (यूसुफ़) कई वर्ष तक कारागार ही में रहा

وَقَالَ ٱلْمَلِكُ إِنِّىٓ أَرَىٰ سَبْعَ بَقَرَٰتٍۢ سِمَانٍۢ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌۭ وَسَبْعَ سُنۢبُلَٰتٍ خُضْرٍۢ وَأُخَرَ يَابِسَٰتٍۢ ۖ يَٰٓأَيُّهَا ٱلْمَلَأُ أَفْتُونِى فِى رُءْيَٰىَ إِن كُنتُمْ لِلرُّءْيَا تَعْبُرُونَ ﴿٤٣﴾

फिर ऐसा हुआ कि सम्राट ने कहा, \"मैं एक स्वप्न देखा कि सात मोटी गायों को सात दुबली गायें खा रही है और सात बालें हरी है और दूसरी (सात सूखी) । ऐ सरदारों! यदि तुम स्वप्न का अर्थ बताते हो, तो मुझे मेरे इस स्वप्न के सम्बन्ध में बताओ।\"

قَالُوٓا۟ أَضْغَٰثُ أَحْلَٰمٍۢ ۖ وَمَا نَحْنُ بِتَأْوِيلِ ٱلْأَحْلَٰمِ بِعَٰلِمِينَ ﴿٤٤﴾

उन्होंने कहा, \"ये तो सम्भ्रमित स्वप्न है। हम ऐसे स्वप्न का अर्थ नहीं जानते।\"

وَقَالَ ٱلَّذِى نَجَا مِنْهُمَا وَٱدَّكَرَ بَعْدَ أُمَّةٍ أَنَا۠ أُنَبِّئُكُم بِتَأْوِيلِهِۦ فَأَرْسِلُونِ ﴿٤٥﴾

इतने में दोनों में सो जो रिहा हो गया था और एक अर्से के बाद उसे याद आया तो वह बोला, \"मैं इसका अर्थ तुम्हें बताता हूँ। ज़रा मुझे (यूसुफ़ के पास) भेज दीजिए।\"

يُوسُفُ أَيُّهَا ٱلصِّدِّيقُ أَفْتِنَا فِى سَبْعِ بَقَرَٰتٍۢ سِمَانٍۢ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌۭ وَسَبْعِ سُنۢبُلَٰتٍ خُضْرٍۢ وَأُخَرَ يَابِسَٰتٍۢ لَّعَلِّىٓ أَرْجِعُ إِلَى ٱلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَعْلَمُونَ ﴿٤٦﴾

\"यूसुफ़, ऐ सत्यवान! हमें इसका अर्थ बता कि सात मोटी गायें है, जिन्हें सात दुबली गायें खा रही है और सात हरी बालें है और दूसरी (सात) सूखी, ताकि मैं लोगों के पास लौटकर जाऊँ कि वे जान लें।\"

قَالَ تَزْرَعُونَ سَبْعَ سِنِينَ دَأَبًۭا فَمَا حَصَدتُّمْ فَذَرُوهُ فِى سُنۢبُلِهِۦٓ إِلَّا قَلِيلًۭا مِّمَّا تَأْكُلُونَ ﴿٤٧﴾

उसने कहा, \"सात वर्ष तक तुम व्यवहारतः खेती करते रहोगे। फिर तुम जो फ़सल काटो तो थोड़े हिस्से के सिवा जो तुम्हारे खाने के काम आए शेष को उसकी बाली में रहने देना

ثُمَّ يَأْتِى مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ سَبْعٌۭ شِدَادٌۭ يَأْكُلْنَ مَا قَدَّمْتُمْ لَهُنَّ إِلَّا قَلِيلًۭا مِّمَّا تُحْصِنُونَ ﴿٤٨﴾

फिर उसके पश्चात सात कठिन वर्ष आएँगे जो वे सब खा जाएँगे जो तुमने उनके लिए पहले से इकट्ठा कर रखा होगा, सिवाय उस थोड़े-से हिस्से के जो तुम सुरक्षित कर लोगे

ثُمَّ يَأْتِى مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ عَامٌۭ فِيهِ يُغَاثُ ٱلنَّاسُ وَفِيهِ يَعْصِرُونَ ﴿٤٩﴾

फिर उसके पश्चात एक वर्ष ऐसा आएगा, जिसमें वर्षा द्वारा लोगों की फ़रियाद सुन ली जाएगी और उसमें वे रस निचोड़ेगे।\"

وَقَالَ ٱلْمَلِكُ ٱئْتُونِى بِهِۦ ۖ فَلَمَّا جَآءَهُ ٱلرَّسُولُ قَالَ ٱرْجِعْ إِلَىٰ رَبِّكَ فَسْـَٔلْهُ مَا بَالُ ٱلنِّسْوَةِ ٱلَّٰتِى قَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ ۚ إِنَّ رَبِّى بِكَيْدِهِنَّ عَلِيمٌۭ ﴿٥٠﴾

सम्राट ने कहा, \"उसे मेरे पास ले आओ।\" किन्तु जब दूत उसके पास पहुँचा तो उसने कहा, \"अपने स्वामी के पास वापस जाओ और उससे पूछो कि उन स्त्रियों का क्या मामला है, जिन्होंने अपने हाथ घायल कर लिए थे। निस्संदेह मेरा रब उनकी मक्कारी को भली-भाँति जानता है।\"

قَالَ مَا خَطْبُكُنَّ إِذْ رَٰوَدتُّنَّ يُوسُفَ عَن نَّفْسِهِۦ ۚ قُلْنَ حَٰشَ لِلَّهِ مَا عَلِمْنَا عَلَيْهِ مِن سُوٓءٍۢ ۚ قَالَتِ ٱمْرَأَتُ ٱلْعَزِيزِ ٱلْـَٰٔنَ حَصْحَصَ ٱلْحَقُّ أَنَا۠ رَٰوَدتُّهُۥ عَن نَّفْسِهِۦ وَإِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ ﴿٥١﴾

उसने कहा, \"तुम स्त्रियों का क्या हाल था, जब तुमने यूसुफ़ को रिझाने की चेष्टा की थी?\" उन्होंने कहा, \"पाक है अल्लाह! हम उसमें कोई बुराई नहीं जानते है।\" अज़ीज़ की स्त्री बोल उठी, \"अब तो सत्य प्रकट हो गया है। मैंने ही उसे रिझाना चाहा था। वह तो बिलकुल सच्चा है।\"

ذَٰلِكَ لِيَعْلَمَ أَنِّى لَمْ أَخُنْهُ بِٱلْغَيْبِ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى كَيْدَ ٱلْخَآئِنِينَ ﴿٥٢﴾

\"यह इसलिए कि वह जान ले कि मैंने गुप्त॥ रूप से उसके साथ विश्वासघात नहीं किया और यह कि अल्लाह विश्वासघातियों का चाल को चलने नहीं देता

۞ وَمَآ أُبَرِّئُ نَفْسِىٓ ۚ إِنَّ ٱلنَّفْسَ لَأَمَّارَةٌۢ بِٱلسُّوٓءِ إِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّىٓ ۚ إِنَّ رَبِّى غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ ﴿٥٣﴾

मैं यह नहीं कहता कि मैं बुरी हूँ - जी तो बुराई पर उभारता ही है - यदि मेरा रब ही दया करे तो बात और है। निश्चय ही मेरा रब बहुत क्षमाशील, दयावान है।\"

وَقَالَ ٱلْمَلِكُ ٱئْتُونِى بِهِۦٓ أَسْتَخْلِصْهُ لِنَفْسِى ۖ فَلَمَّا كَلَّمَهُۥ قَالَ إِنَّكَ ٱلْيَوْمَ لَدَيْنَا مَكِينٌ أَمِينٌۭ ﴿٥٤﴾

सम्राट ने कहा, \"उसे मेरे पास ले आओ! मैं उसे अपने लिए ख़ास कर लूँगा।\" जब उसने उससे बात-चीक करी तो उसने कहा, \"निस्संदेह आज तुम हमारे यहाँ विश्व सनीय अधिकार प्राप्त व्यक्ति हो।\"

قَالَ ٱجْعَلْنِى عَلَىٰ خَزَآئِنِ ٱلْأَرْضِ ۖ إِنِّى حَفِيظٌ عَلِيمٌۭ ﴿٥٥﴾

उसने कहा, \"इस भू-भाग के ख़जानों पर मुझे नियुक्त कर दीजिए। निश्चय ही मैं रक्षक और ज्ञानवान हूँ।\"

وَكَذَٰلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِى ٱلْأَرْضِ يَتَبَوَّأُ مِنْهَا حَيْثُ يَشَآءُ ۚ نُصِيبُ بِرَحْمَتِنَا مَن نَّشَآءُ ۖ وَلَا نُضِيعُ أَجْرَ ٱلْمُحْسِنِينَ ﴿٥٦﴾

इस प्रकार हमने यूसुफ़ को उस भू-भाग में अधिकार प्रदान किया कि वह उसमें जहाँ चाहे अपनी जगह बनाए। हम जिसे चाहते हैं उसे अपनी दया का पात्र बनाते है। उत्तमकारों का बदला हम अकारथ नहीं जाने देते

وَلَأَجْرُ ٱلْءَاخِرَةِ خَيْرٌۭ لِّلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَكَانُوا۟ يَتَّقُونَ ﴿٥٧﴾

और ईमान लानेवालों और डर रखनेवालों के लिए आख़िरत का बदला इससे कहीं उत्तम है

وَجَآءَ إِخْوَةُ يُوسُفَ فَدَخَلُوا۟ عَلَيْهِ فَعَرَفَهُمْ وَهُمْ لَهُۥ مُنكِرُونَ ﴿٥٨﴾

फिर ऐसा हुआ कि यूसुफ़ के भाई आए और उसके सामने उपस्थित हुए, उसने तो उन्हें पहचान लिया, किन्तु वे उससे अपरिचित रहे

وَلَمَّا جَهَّزَهُم بِجَهَازِهِمْ قَالَ ٱئْتُونِى بِأَخٍۢ لَّكُم مِّنْ أَبِيكُمْ ۚ أَلَا تَرَوْنَ أَنِّىٓ أُوفِى ٱلْكَيْلَ وَأَنَا۠ خَيْرُ ٱلْمُنزِلِينَ ﴿٥٩﴾

जब उसने उनके लिए उनका सामान तैयार करा दिया तो कहा, \"बाप की ओर सो तुम्हारा भाई है, उसे मेरे पास लाना। क्या देखते नहीं कि मैं पूरी माप से देता हूँ और मैं अच्छा आतिशेय भी हूँ?\"

فَإِن لَّمْ تَأْتُونِى بِهِۦ فَلَا كَيْلَ لَكُمْ عِندِى وَلَا تَقْرَبُونِ ﴿٦٠﴾

किन्तु यदि तुम उसे मेरे पास न लाए तो फिर तुम्हारे लिए मेरे यहाँ कोई माप (ग़ल्ला) नहीं और तुम मेरे पास आना भी मत।\"

قَالُوا۟ سَنُرَٰوِدُ عَنْهُ أَبَاهُ وَإِنَّا لَفَٰعِلُونَ ﴿٦١﴾

वे बोले, \"हम उसके लिए उसके बाप को राज़ी करने की कोशिश करेंगे और हम यह काम अवश्य करेंगे।\"

وَقَالَ لِفِتْيَٰنِهِ ٱجْعَلُوا۟ بِضَٰعَتَهُمْ فِى رِحَالِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَعْرِفُونَهَآ إِذَا ٱنقَلَبُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَهْلِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ ﴿٦٢﴾

उसने अपने सेवकों से कहा, \"इनका दिया हुआ माल इनके सामान में रख दो कि जब ये अपने घरवालों की ओर लौटें तो इसे पहचान लें, ताकि ये फिर लौटकर आएँ।\"

فَلَمَّا رَجَعُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَبِيهِمْ قَالُوا۟ يَٰٓأَبَانَا مُنِعَ مِنَّا ٱلْكَيْلُ فَأَرْسِلْ مَعَنَآ أَخَانَا نَكْتَلْ وَإِنَّا لَهُۥ لَحَٰفِظُونَ ﴿٦٣﴾

फिर जब वे अपने बाप के पास लौटकर गए तो कहा, \"ऐ मेरे बाप! (अनाज की) माप हमसे रोक दी गई है। अतः हमारे भाई को हमारे साथ भेज दीजिए, ताकि हम माप भर लाएँ; और हम उसकी रक्षा के लिए तो मौजूद ही हैं।\"

قَالَ هَلْ ءَامَنُكُمْ عَلَيْهِ إِلَّا كَمَآ أَمِنتُكُمْ عَلَىٰٓ أَخِيهِ مِن قَبْلُ ۖ فَٱللَّهُ خَيْرٌ حَٰفِظًۭا ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ ٱلرَّٰحِمِينَ ﴿٦٤﴾

उसने कहा, \"क्या मैं उसके मामले में तुमपर वैसा ही भरोसा करूँ जैसा इससे पहले उसके भाई के मामले में तुमपर भरोसा कर चुका हूँ? हाँ, अल्लाह ही सबसे अच्छ रक्षक है और वह सबसे बढ़कर दयावान है।\"

وَلَمَّا فَتَحُوا۟ مَتَٰعَهُمْ وَجَدُوا۟ بِضَٰعَتَهُمْ رُدَّتْ إِلَيْهِمْ ۖ قَالُوا۟ يَٰٓأَبَانَا مَا نَبْغِى ۖ هَٰذِهِۦ بِضَٰعَتُنَا رُدَّتْ إِلَيْنَا ۖ وَنَمِيرُ أَهْلَنَا وَنَحْفَظُ أَخَانَا وَنَزْدَادُ كَيْلَ بَعِيرٍۢ ۖ ذَٰلِكَ كَيْلٌۭ يَسِيرٌۭ ﴿٦٥﴾

जब उन्होंने अपना सामान खोला, तो उन्होंने अपने माल अपनी ओर वापस किया हुआ पाया। वे बोले, \"ऐ मेरे बाप, हमें और क्या चाहिए! यह हमारा माल भी तो हमें लौटा दिया गया है। अब हम अपने घरवालों के लिए खाद्य-सामग्री लाएँगे और अपने भाई की रक्षा भी करेंगे। और एक ऊँट के बोझभर और अधिक लेंगे। इतना माप (ग़ल्ला) मिल जाना तो बिलकुल आसान है।\"

قَالَ لَنْ أُرْسِلَهُۥ مَعَكُمْ حَتَّىٰ تُؤْتُونِ مَوْثِقًۭا مِّنَ ٱللَّهِ لَتَأْتُنَّنِى بِهِۦٓ إِلَّآ أَن يُحَاطَ بِكُمْ ۖ فَلَمَّآ ءَاتَوْهُ مَوْثِقَهُمْ قَالَ ٱللَّهُ عَلَىٰ مَا نَقُولُ وَكِيلٌۭ ﴿٦٦﴾

उसने कहा, \"मैं उसे तुम्हारे साथ कदापि नहीं भेज सकता। जब तक कि तुम अल्लाह को गवाह बनाकर मुझे पक्का वचन न दो कि तुम उसे मेरे पास अवश्य लाओगे, यह और बात है कि तुम घिर जाओ।\" फिर जब उन्होंने उसे अपना वचन दे दिया तो उसने कहा, \"हम जो कुछ कर रहे है वह अल्लाह के हवाले है।\"

وَقَالَ يَٰبَنِىَّ لَا تَدْخُلُوا۟ مِنۢ بَابٍۢ وَٰحِدٍۢ وَٱدْخُلُوا۟ مِنْ أَبْوَٰبٍۢ مُّتَفَرِّقَةٍۢ ۖ وَمَآ أُغْنِى عَنكُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن شَىْءٍ ۖ إِنِ ٱلْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَعَلَيْهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُتَوَكِّلُونَ ﴿٦٧﴾

उसने यह भी कहा, \"ऐ मेरे बेटो! एक द्वार से प्रवेश न करना, बल्कि विभिन्न द्वारों से प्रवेश करना यद्यपि मैं अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे काम नहीं आ सकता आदेश तो बस अल्लाह ही का चलता है। उसी पर मैंने भरोसा किया और भरोसा करनेवालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए।\"

وَلَمَّا دَخَلُوا۟ مِنْ حَيْثُ أَمَرَهُمْ أَبُوهُم مَّا كَانَ يُغْنِى عَنْهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن شَىْءٍ إِلَّا حَاجَةًۭ فِى نَفْسِ يَعْقُوبَ قَضَىٰهَا ۚ وَإِنَّهُۥ لَذُو عِلْمٍۢ لِّمَا عَلَّمْنَٰهُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ ﴿٦٨﴾

और जब उन्होंने प्रवेश किया जिस तरह से उनके बाप ने उन्हें आदेश दिया था - अल्लाह की ओर से होनेवाली किसी चीज़ को वह उनसे हटा नहीं सकता था। बस याक़ूब के जी की एक इच्छा थी, जो उसने पूरी कर ली। और निस्संदेह वह ज्ञानवान था, क्योंकि हमने उसे ज्ञान प्रदान किया था; किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं -

وَلَمَّا دَخَلُوا۟ عَلَىٰ يُوسُفَ ءَاوَىٰٓ إِلَيْهِ أَخَاهُ ۖ قَالَ إِنِّىٓ أَنَا۠ أَخُوكَ فَلَا تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ ﴿٦٩﴾

और जब उन्होंने यूसुफ़ के यहाँ प्रवेश किया तो उसने अपने भाई को अपने पास जगह दी और कहा, \"मैं तेरा भाई हूँ। जो कुछ ये करते रहे हैं, अब तू उसपर दुखी न हो।\"

فَلَمَّا جَهَّزَهُم بِجَهَازِهِمْ جَعَلَ ٱلسِّقَايَةَ فِى رَحْلِ أَخِيهِ ثُمَّ أَذَّنَ مُؤَذِّنٌ أَيَّتُهَا ٱلْعِيرُ إِنَّكُمْ لَسَٰرِقُونَ ﴿٧٠﴾

फिर जब उनका सामान तैयार कर दिया तो अपने भाई के सामान में पानी पीने का प्याला रख दिया। फिर एक पुकारनेवाले ने पुकारकर कहा, \"ऐ क़ाफ़िलेवालो! निश्चय ही तुम चोर हो।\"

قَالُوا۟ وَأَقْبَلُوا۟ عَلَيْهِم مَّاذَا تَفْقِدُونَ ﴿٧١﴾

वे उनकी ओर रुख़ करते हुए बोले, \"तुम्हारी क्या चीज़ खो गई है?\"

قَالُوا۟ نَفْقِدُ صُوَاعَ ٱلْمَلِكِ وَلِمَن جَآءَ بِهِۦ حِمْلُ بَعِيرٍۢ وَأَنَا۠ بِهِۦ زَعِيمٌۭ ﴿٧٢﴾

उन्होंने कहा, \"शाही पैमाना हमें नहीं मिल रहा है। जो व्यक्ति उसे ला दे उसको एक ऊँट का बोझभर ग़ल्ला इनाम मिलेगा। मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ।\"

قَالُوا۟ تَٱللَّهِ لَقَدْ عَلِمْتُم مَّا جِئْنَا لِنُفْسِدَ فِى ٱلْأَرْضِ وَمَا كُنَّا سَٰرِقِينَ ﴿٧٣﴾

वे कहने लगे, \"अल्लाह की क़सम! तुम लोग जानते ही हो कि हम इस भू-भाग में बिगाड़ पैदा करने नहीं आए है और न हम चोर है।\"

قَالُوا۟ فَمَا جَزَٰٓؤُهُۥٓ إِن كُنتُمْ كَٰذِبِينَ ﴿٧٤﴾

उन्होंने कहा, \"यदि तुम झूठे सिद्ध हुए तो फिर उसका दंड क्या है?\"

قَالُوا۟ جَزَٰٓؤُهُۥ مَن وُجِدَ فِى رَحْلِهِۦ فَهُوَ جَزَٰٓؤُهُۥ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِى ٱلظَّٰلِمِينَ ﴿٧٥﴾

वे बोले, \"उसका दंड यह है कि जिसके सामान में वह मिले वही उसका बदला ठहराया जाए। हम अत्याचारियों को ऐसा ही दंड देते है।\"

فَبَدَأَ بِأَوْعِيَتِهِمْ قَبْلَ وِعَآءِ أَخِيهِ ثُمَّ ٱسْتَخْرَجَهَا مِن وِعَآءِ أَخِيهِ ۚ كَذَٰلِكَ كِدْنَا لِيُوسُفَ ۖ مَا كَانَ لِيَأْخُذَ أَخَاهُ فِى دِينِ ٱلْمَلِكِ إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُ ۚ نَرْفَعُ دَرَجَٰتٍۢ مَّن نَّشَآءُ ۗ وَفَوْقَ كُلِّ ذِى عِلْمٍ عَلِيمٌۭ ﴿٧٦﴾

फिर उसके भाई की खुरजी से पहले उनकी ख़ुरजियाँ देखनी शुरू की; फिर उसके भाई की ख़ुरजी से उसे बरामद कर लिया। इस प्रकार हमने यूसुफ़ का उपाय किया। वह शाही क़ानून के अनुसार अपने भाई को प्राप्त नहीं कर सकता था। बल्कि अल्लाह ही की इच्छा लागू है। हम जिसको चाहे उसके दर्जे ऊँचे कर दें। और प्रत्येक ज्ञानवान से ऊपर एक ज्ञानवान मौजूद है

۞ قَالُوٓا۟ إِن يَسْرِقْ فَقَدْ سَرَقَ أَخٌۭ لَّهُۥ مِن قَبْلُ ۚ فَأَسَرَّهَا يُوسُفُ فِى نَفْسِهِۦ وَلَمْ يُبْدِهَا لَهُمْ ۚ قَالَ أَنتُمْ شَرٌّۭ مَّكَانًۭا ۖ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا تَصِفُونَ ﴿٧٧﴾

उन्होंने कहा, \"यदि यह चोरी करता है तो चोरी तो इससे पहले इसका एक भाई भी कर चुका है।\" किन्तु यूसुफ़ ने इसे अपने जी ही में रखा और उनपर प्रकट नहीं किया। उसने कहा, \"मक़ाम की दृष्टि से तुम अत्यन्त बुरे हो। जो कुछ तुम बताते हो, अल्लाह को उसका पूरा ज्ञान है।\"

قَالُوا۟ يَٰٓأَيُّهَا ٱلْعَزِيزُ إِنَّ لَهُۥٓ أَبًۭا شَيْخًۭا كَبِيرًۭا فَخُذْ أَحَدَنَا مَكَانَهُۥٓ ۖ إِنَّا نَرَىٰكَ مِنَ ٱلْمُحْسِنِينَ ﴿٧٨﴾

उन्होंने कहा, \"ऐ अज़ीज़! इसका बाप बहुत ही बूढ़ा है। इसलिए इसके स्थान पर हममें से किसी को रख लीजिए। हमारी स्पष्ट में तो आप बड़े ही सुकर्मी है।\"

قَالَ مَعَاذَ ٱللَّهِ أَن نَّأْخُذَ إِلَّا مَن وَجَدْنَا مَتَٰعَنَا عِندَهُۥٓ إِنَّآ إِذًۭا لَّظَٰلِمُونَ ﴿٧٩﴾

उसने कहा, \"इस बात से अल्लाह पनाह में रखे कि जिसके पास हमने अपना माल पाया है, उसे छोड़कर हम किसी दूसरे को रखें। फिर तो हम अत्याचारी ठहगेंगे।\"

فَلَمَّا ٱسْتَيْـَٔسُوا۟ مِنْهُ خَلَصُوا۟ نَجِيًّۭا ۖ قَالَ كَبِيرُهُمْ أَلَمْ تَعْلَمُوٓا۟ أَنَّ أَبَاكُمْ قَدْ أَخَذَ عَلَيْكُم مَّوْثِقًۭا مِّنَ ٱللَّهِ وَمِن قَبْلُ مَا فَرَّطتُمْ فِى يُوسُفَ ۖ فَلَنْ أَبْرَحَ ٱلْأَرْضَ حَتَّىٰ يَأْذَنَ لِىٓ أَبِىٓ أَوْ يَحْكُمَ ٱللَّهُ لِى ۖ وَهُوَ خَيْرُ ٱلْحَٰكِمِينَ ﴿٨٠﴾

तो जब से वे उससे निराश हो गए तो परामर्श करने के लिए अलग जा बैठे। उनमें जो बड़ा था, वह कहने लगा, \"क्या तुम जानते नहीं कि तुम्हारा बाप अल्लाह के नाम पर तुमसे वचन ले चुका है और उसको जो इससे पहले यूसुफ़ के मामले में तुमसे क़सूर हो चुका है? मैं तो इस भू-भाग से कदापि टलने का नहीं जब तक कि मेरे बाप मुझे अनुमति न दें या अल्लाह ही मेरे हक़ में कोई फ़ैसला कर दे। और वही सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है

ٱرْجِعُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَبِيكُمْ فَقُولُوا۟ يَٰٓأَبَانَآ إِنَّ ٱبْنَكَ سَرَقَ وَمَا شَهِدْنَآ إِلَّا بِمَا عَلِمْنَا وَمَا كُنَّا لِلْغَيْبِ حَٰفِظِينَ ﴿٨١﴾

तुम अपने बाप के पास लौटकर जाओ और कहो, \"ऐ हमारे बाप! आपके बेटे ने चोरी की है। हमने तो वही कहा जो हमें मालूम हो सका, परोक्ष तो हमारी दृष्टि में था नहीं

وَسْـَٔلِ ٱلْقَرْيَةَ ٱلَّتِى كُنَّا فِيهَا وَٱلْعِيرَ ٱلَّتِىٓ أَقْبَلْنَا فِيهَا ۖ وَإِنَّا لَصَٰدِقُونَ ﴿٨٢﴾

आप उस बस्ती से पूछ लीजिए जहाँ हम थे और उस क़ाफ़िलें से भी जिसके साथ होकर हम आए। निस्संदेह हम बिलकुल सच्चे है।\"

قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنفُسُكُمْ أَمْرًۭا ۖ فَصَبْرٌۭ جَمِيلٌ ۖ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَأْتِيَنِى بِهِمْ جَمِيعًا ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلْعَلِيمُ ٱلْحَكِيمُ ﴿٨٣﴾

उसने कहा, \"नहीं, बल्कि तुम्हारे जी ही ने तुम्हे पट्टी पढ़ाकर एक बात बना दी है। अब धैर्य से काम लेना ही उत्तम है! बहुत सम्भव है कि अल्लाह उन सबको मेरे पास ले आए। वह तो सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है।\"

وَتَوَلَّىٰ عَنْهُمْ وَقَالَ يَٰٓأَسَفَىٰ عَلَىٰ يُوسُفَ وَٱبْيَضَّتْ عَيْنَاهُ مِنَ ٱلْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيمٌۭ ﴿٨٤﴾

उसने उनकी ओर से मुख फेर लिया और कहने लगा, \"हाय अफ़सोस, यूसुफ़ की जुदाई पर!\" और ग़म के मारे उसकी आँखें सफ़ेद पड़ गई और वह घुटा जा रहा था

قَالُوا۟ تَٱللَّهِ تَفْتَؤُا۟ تَذْكُرُ يُوسُفَ حَتَّىٰ تَكُونَ حَرَضًا أَوْ تَكُونَ مِنَ ٱلْهَٰلِكِينَ ﴿٨٥﴾

उन्होंने कहा, \"अल्लाह की क़सम! आप तो यूसुफ़ ही की याद में लगे रहेंगे, यहाँ तक कि घुलकर रहेंगे या प्राण ही त्याग देंगे।\"

قَالَ إِنَّمَآ أَشْكُوا۟ بَثِّى وَحُزْنِىٓ إِلَى ٱللَّهِ وَأَعْلَمُ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ ﴿٨٦﴾

उसने कहा, \"मैं तो अपनी परेशानी और अपने ग़म की शिकायत अल्लाह ही से करता हूँ और अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नही जानते

يَٰبَنِىَّ ٱذْهَبُوا۟ فَتَحَسَّسُوا۟ مِن يُوسُفَ وَأَخِيهِ وَلَا تَا۟يْـَٔسُوا۟ مِن رَّوْحِ ٱللَّهِ ۖ إِنَّهُۥ لَا يَا۟يْـَٔسُ مِن رَّوْحِ ٱللَّهِ إِلَّا ٱلْقَوْمُ ٱلْكَٰفِرُونَ ﴿٨٧﴾

ऐ मेरे बेटों! जाओ और यूसुफ़ और उसके भाई की टोह लगाओ और अल्लाह की सदयता से निराश न हो। अल्लाह की सदयता से तो केवल कुफ़्र करनेवाले ही निराश होते है।\"

فَلَمَّا دَخَلُوا۟ عَلَيْهِ قَالُوا۟ يَٰٓأَيُّهَا ٱلْعَزِيزُ مَسَّنَا وَأَهْلَنَا ٱلضُّرُّ وَجِئْنَا بِبِضَٰعَةٍۢ مُّزْجَىٰةٍۢ فَأَوْفِ لَنَا ٱلْكَيْلَ وَتَصَدَّقْ عَلَيْنَآ ۖ إِنَّ ٱللَّهَ يَجْزِى ٱلْمُتَصَدِّقِينَ ﴿٨٨﴾

फिर जब वे उसके पास उपस्थित हुए तो कहा, \"ऐ अज़ीज़! हमें और हमारे घरवालों को बहुत तकलीफ़ पहुँची हैं और हम कुछ तुच्छ-सी पूँजी लेकर आए है, किन्तु आप हमें पूरी-पूरी माप प्रदान करें। और हमें दान दें। निश्चय ही दान करनेवालों को बदला अल्लाह देता है।\"

قَالَ هَلْ عَلِمْتُم مَّا فَعَلْتُم بِيُوسُفَ وَأَخِيهِ إِذْ أَنتُمْ جَٰهِلُونَ ﴿٨٩﴾

उसने कहा, \"क्या तुम्हें यह भी मालूम है कि जब तुम आवेग के वशीभूत थे तो यूसुफ़ और उसके भाई के साथ तुमने क्या किया था?\"

قَالُوٓا۟ أَءِنَّكَ لَأَنتَ يُوسُفُ ۖ قَالَ أَنَا۠ يُوسُفُ وَهَٰذَآ أَخِى ۖ قَدْ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَيْنَآ ۖ إِنَّهُۥ مَن يَتَّقِ وَيَصْبِرْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ ٱلْمُحْسِنِينَ ﴿٩٠﴾

वे बोल पड़े, \"क्या यूसुफ़ आप ही है?\" उसने कहा, \"मैं ही यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई है। अल्लाह ने हमपर उपकार किया है। सच तो यह है कि जो कोई डर रखे और धैर्य से काम ले तो अल्लाह भी उत्तमकारों का बदला अकारथ नहीं करता।\"

قَالُوا۟ تَٱللَّهِ لَقَدْ ءَاثَرَكَ ٱللَّهُ عَلَيْنَا وَإِن كُنَّا لَخَٰطِـِٔينَ ﴿٩١﴾

उन्होंने कहा, \"अल्लाह की क़सम! आपको अल्लाह ने हमारे मुक़ाबले में पसन्द किया और निश्चय ही चूक तो हमसे हुई।\"

قَالَ لَا تَثْرِيبَ عَلَيْكُمُ ٱلْيَوْمَ ۖ يَغْفِرُ ٱللَّهُ لَكُمْ ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ ٱلرَّٰحِمِينَ ﴿٩٢﴾

उसने कहा, \"आज तुमपर कोई आरोप नहीं। अल्लाह तुम्हें क्षमा करे। वह सबसे बढ़कर दयावान है।

ٱذْهَبُوا۟ بِقَمِيصِى هَٰذَا فَأَلْقُوهُ عَلَىٰ وَجْهِ أَبِى يَأْتِ بَصِيرًۭا وَأْتُونِى بِأَهْلِكُمْ أَجْمَعِينَ ﴿٩٣﴾

मेरा यह कुर्ता ले जाओ और इसे मेरे बाप के मुख पर डाल दो। उनकी नेत्र-ज्योति लौट आएगी, फिर अपने सब घरवालों को मेरे यहाँ ले आओ।\"

وَلَمَّا فَصَلَتِ ٱلْعِيرُ قَالَ أَبُوهُمْ إِنِّى لَأَجِدُ رِيحَ يُوسُفَ ۖ لَوْلَآ أَن تُفَنِّدُونِ ﴿٩٤﴾

इधर जब क़ाफ़िला चला तो उनके बाप ने कहा, \"यदि तुम मुझे बहकी बातें करनेवाला न समझो तो मुझे तो यूसुफ़ की महक आ रही है।\"

قَالُوا۟ تَٱللَّهِ إِنَّكَ لَفِى ضَلَٰلِكَ ٱلْقَدِيمِ ﴿٩٥﴾

वे बोले, \"अल्लाह की क़सम! आप तो अभी तक अपनी उसी पुरानी भ्रांति में पड़े हुए है।\"

فَلَمَّآ أَن جَآءَ ٱلْبَشِيرُ أَلْقَىٰهُ عَلَىٰ وَجْهِهِۦ فَٱرْتَدَّ بَصِيرًۭا ۖ قَالَ أَلَمْ أَقُل لَّكُمْ إِنِّىٓ أَعْلَمُ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ ﴿٩٦﴾

फिर जब शुभ सूचना देनेवाला आया तो उसने उस (कुर्ते) को उसके मुँह पर डाल दिया और तत्क्षण उसकी नेत्र-ज्योति लौट आई। उसने कहा, \"क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नहीं जानते।\"

قَالُوا۟ يَٰٓأَبَانَا ٱسْتَغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَآ إِنَّا كُنَّا خَٰطِـِٔينَ ﴿٩٧﴾

वे बोले, \"ऐ मेरे बाप! आप हमारे गुनाहों की क्षमा के लिए प्रार्थना करें। वास्तव में चूक हमसे ही हुई।\"

قَالَ سَوْفَ أَسْتَغْفِرُ لَكُمْ رَبِّىٓ ۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلْغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ﴿٩٨﴾

उसने कहा, \"मैं अपने रब से तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा। वह बहुत क्षमाशील, दयावान है।\"

فَلَمَّا دَخَلُوا۟ عَلَىٰ يُوسُفَ ءَاوَىٰٓ إِلَيْهِ أَبَوَيْهِ وَقَالَ ٱدْخُلُوا۟ مِصْرَ إِن شَآءَ ٱللَّهُ ءَامِنِينَ ﴿٩٩﴾

फिर जब वे यूसुफ़ के पास पहुँचे तो उसने अपने माँ-बाप को ख़ास अपने पास जगह दी औऱ कहा, \"तुम सब नगर में प्रवेश करो। अल्लाह ने चाहा तो यह प्रवेश निश्चिन्तता के साथ होगा।\"

وَرَفَعَ أَبَوَيْهِ عَلَى ٱلْعَرْشِ وَخَرُّوا۟ لَهُۥ سُجَّدًۭا ۖ وَقَالَ يَٰٓأَبَتِ هَٰذَا تَأْوِيلُ رُءْيَٰىَ مِن قَبْلُ قَدْ جَعَلَهَا رَبِّى حَقًّۭا ۖ وَقَدْ أَحْسَنَ بِىٓ إِذْ أَخْرَجَنِى مِنَ ٱلسِّجْنِ وَجَآءَ بِكُم مِّنَ ٱلْبَدْوِ مِنۢ بَعْدِ أَن نَّزَغَ ٱلشَّيْطَٰنُ بَيْنِى وَبَيْنَ إِخْوَتِىٓ ۚ إِنَّ رَبِّى لَطِيفٌۭ لِّمَا يَشَآءُ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلْعَلِيمُ ٱلْحَكِيمُ ﴿١٠٠﴾

उसने अपने माँ-बाप को ऊँची जगह सिंहासन पर बिठाया और सब उसके आगे सजदे मे गिर पड़े। इस अवसर पर उसने कहा, \"ऐ मेरे बाप! यह मेरे विगत स्वप्न का साकार रूप है। इसे मेरे रब ने सच बना दिया। और उसने मुझपर उपकार किया जब मुझे क़ैदख़ाने से निकाला और आप भाइयों के बीच फ़साद डलवा दिया था। निस्संदेह मेरा रब जो चाहता है उसके लिए सूक्ष्म उपाय करता है। वास्तव में वही सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है

۞ رَبِّ قَدْ ءَاتَيْتَنِى مِنَ ٱلْمُلْكِ وَعَلَّمْتَنِى مِن تَأْوِيلِ ٱلْأَحَادِيثِ ۚ فَاطِرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ أَنتَ وَلِىِّۦ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ ۖ تَوَفَّنِى مُسْلِمًۭا وَأَلْحِقْنِى بِٱلصَّٰلِحِينَ ﴿١٠١﴾

मेरे रब! तुने मुझे राज्य प्रदान किया और मुझे घटनाओं और बातों के निष्कर्ष तक पहुँचना सिखाया। आकाश और धरती के पैदा करनेवाले! दुनिया और आख़िरत में तू ही मेरा संरक्षक मित्र है। तू मुझे इस दशा से उठा कि मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ और मुझे अच्छे लोगों के साथ मिला।\"

ذَٰلِكَ مِنْ أَنۢبَآءِ ٱلْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيْكَ ۖ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ أَجْمَعُوٓا۟ أَمْرَهُمْ وَهُمْ يَمْكُرُونَ ﴿١٠٢﴾

ये परोक्ष की ख़बरे हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे है। तुम तो उनके पास नहीं थे, जब उन्होंने अपने मामले को पक्का करके षड्यंत्र किया था

وَمَآ أَكْثَرُ ٱلنَّاسِ وَلَوْ حَرَصْتَ بِمُؤْمِنِينَ ﴿١٠٣﴾

किन्तु चाहे तुम कितना ही चाहो, अधिकतर लोग तो मानेंगे नहीं

وَمَا تَسْـَٔلُهُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌۭ لِّلْعَٰلَمِينَ ﴿١٠٤﴾

तुम उनसे इसका कोई बदला भी नहीं माँगते। यह तो सारे संसार के लिए बस एक अनुस्मरण है

وَكَأَيِّن مِّنْ ءَايَةٍۢ فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ يَمُرُّونَ عَلَيْهَا وَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُونَ ﴿١٠٥﴾

आकाशों और धरती में कितनी ही निशानियाँ हैं, जिनपर से वे इस तरह गुज़र जाते है कि उनकी ओर वे ध्यान ही नहीं देते

وَمَا يُؤْمِنُ أَكْثَرُهُم بِٱللَّهِ إِلَّا وَهُم مُّشْرِكُونَ ﴿١٠٦﴾

इनमें अधिकतर लोग अल्लाह को मानते भी है तो इस तरह कि वे साझी भी ठहराते है

أَفَأَمِنُوٓا۟ أَن تَأْتِيَهُمْ غَٰشِيَةٌۭ مِّنْ عَذَابِ ٱللَّهِ أَوْ تَأْتِيَهُمُ ٱلسَّاعَةُ بَغْتَةًۭ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ ﴿١٠٧﴾

क्या वे इस बात से निश्चिन्त है कि अल्लाह की कोई यातना उन्हें ढँक ले या सहसा वह घड़ी ही उनपर आ जाए, जबकि वे बिलकुल बेख़बर हों?

قُلْ هَٰذِهِۦ سَبِيلِىٓ أَدْعُوٓا۟ إِلَى ٱللَّهِ ۚ عَلَىٰ بَصِيرَةٍ أَنَا۠ وَمَنِ ٱتَّبَعَنِى ۖ وَسُبْحَٰنَ ٱللَّهِ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ﴿١٠٨﴾

कह दो, \"यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! ृृ- और मैं कदापि बहुदेववादी नहीं।\"

وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًۭا نُّوحِىٓ إِلَيْهِم مِّنْ أَهْلِ ٱلْقُرَىٰٓ ۗ أَفَلَمْ يَسِيرُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ فَيَنظُرُوا۟ كَيْفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۗ وَلَدَارُ ٱلْءَاخِرَةِ خَيْرٌۭ لِّلَّذِينَ ٱتَّقَوْا۟ ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ ﴿١٠٩﴾

तुमसे पहले भी हमने जिनको रसूल बनाकर भेजा, वे सब बस्तियों के रहनेवाले पुरुष ही थे। हम उनकी ओर प्रकाशना करते रहे - फिर क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उनका कैसा परिणाम हुआ, जो उनसे पहले गुज़रे है? निश्चय ही आख़िरत का घर ही डर रखनेवालों के लिए सर्वोत्तम है। तो क्या तुम समझते नहीं? -

حَتَّىٰٓ إِذَا ٱسْتَيْـَٔسَ ٱلرُّسُلُ وَظَنُّوٓا۟ أَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُوا۟ جَآءَهُمْ نَصْرُنَا فَنُجِّىَ مَن نَّشَآءُ ۖ وَلَا يُرَدُّ بَأْسُنَا عَنِ ٱلْقَوْمِ ٱلْمُجْرِمِينَ ﴿١١٠﴾

यहाँ तक कि जब वे रसूल निराश होने लगे और वे समझने लगे कि उनसे झूठ कहा गया था कि सहसा उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। फिर हमने जिसे चाहा बचा लिया। किन्तु अपराधी लोगों पर से तो हमारी यातना टलती ही नहीं

لَقَدْ كَانَ فِى قَصَصِهِمْ عِبْرَةٌۭ لِّأُو۟لِى ٱلْأَلْبَٰبِ ۗ مَا كَانَ حَدِيثًۭا يُفْتَرَىٰ وَلَٰكِن تَصْدِيقَ ٱلَّذِى بَيْنَ يَدَيْهِ وَتَفْصِيلَ كُلِّ شَىْءٍۢ وَهُدًۭى وَرَحْمَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يُؤْمِنُونَ ﴿١١١﴾

निश्चय ही उनकी कथाओं में बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए एक शिक्षाप्रद सामग्री है। यह कोई घड़ी हुई बात नहीं है, बल्कि यह अपने से पूर्व की पुष्टि में है, और हर चीज़ का विस्तार और ईमान लानेवाले लोगों के लिए मार्ग-दर्शन और दयालुता है