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الۤرۚ كِتَـٰبٌ أُحۡكِمَتۡ ءَایَـٰتُهُۥ ثُمَّ فُصِّلَتۡ مِن لَّدُنۡ حَكِیمٍ خَبِیرٍ ﴿1﴾
अलिफ़ लाम रा - ये (क़ुरान) वह किताब है जिसकी आयते एक वाकिफ़कार हकीम की तरफ से (दलाएल से) खूब मुस्तहकिम (मज़बूत) कर दी गयीं
अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह एक किताब है जिसकी आयतें पक्की है, फिर सविस्तार बयान हुई हैं; उसकी ओर से जो अत्यन्त तत्वदर्शी, पूरी ख़बर रखनेवाला है
أَلَّا تَعۡبُدُوۤا۟ إِلَّا ٱللَّهَۚ إِنَّنِی لَكُم مِّنۡهُ نَذِیرࣱ وَبَشِیرࣱ ﴿2﴾
फिर तफ़सीलदार बयान कर दी गयी हैं ये कि ख़ुदा के सिवा किसी की परसतिश न करो मै तो उसकी तरफ से तुम्हें (अज़ाब से) डराने वाला और (बेहिश्त की) ख़ुशख़बरी देने वाला (रसूल) हूँ
कि \"तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मैं तो उसकी ओर से तुम्हें सचेत करनेवाला और शुभ सूचना देनेवाला हूँ।\"
وَأَنِ ٱسۡتَغۡفِرُوا۟ رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوبُوۤا۟ إِلَیۡهِ یُمَتِّعۡكُم مَّتَـٰعًا حَسَنًا إِلَىٰۤ أَجَلࣲ مُّسَمࣰّى وَیُؤۡتِ كُلَّ ذِی فَضۡلࣲ فَضۡلَهُۥۖ وَإِن تَوَلَّوۡا۟ فَإِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمࣲ كَبِیرٍ ﴿3﴾
और ये भी कि अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ मॉगों फिर उसकी बारगाह में (गुनाहों से) तौबा करो वही तुम्हें एक मुकर्रर मुद्दत तक अच्छे नुत्फ के फायदे उठाने देगा और वही हर साहबे बुर्ज़गी को उसकी बुर्जुगी (की दाद) अता फरमाएगा और अगर तुमने (उसके हुक्म से) मुँह मोड़ा तो मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े (ख़ौफनाक) दिन के अज़ाब का डर है
और यह कि \"अपने रब से क्षमा माँगो, फिर उसकी ओर पलट आओ। वह तुम्हें एक निश्चित अवधि तक सुखोपभोग की उत्तम सामग्री प्रदान करेगा। और बढ़-बढ़कर कर्म करनेवालों पर वह तदधिक अपना अनुग्रह करेगा, किन्तु यदि तुम मुँह फेरते हो तो निश्चय ही मुझे तुम्हारे विषय में एक बड़े दिन की यातना का भय है
إِلَى ٱللَّهِ مَرۡجِعُكُمۡۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿4﴾
(याद रखो) तुम सब को (आख़िरकार) ख़ुदा ही की तरफ लौटना है और वह हर चीज़ पर (अच्छी तरह) क़ादिर है
तुम्हें अल्लाह ही की ओर पलटना है, और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।\"
أَلَاۤ إِنَّهُمۡ یَثۡنُونَ صُدُورَهُمۡ لِیَسۡتَخۡفُوا۟ مِنۡهُۚ أَلَا حِینَ یَسۡتَغۡشُونَ ثِیَابَهُمۡ یَعۡلَمُ مَا یُسِرُّونَ وَمَا یُعۡلِنُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِیمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿5﴾
(ऐ रसूल) देखो ये कुफ़्फ़ार (तुम्हारी अदावत में) अपने सीनों को (गोया) दोहरा किए डालते हैं ताकि ख़ुदा से (अपनी बातों को) छिपाए रहें (मगर) देखो जब ये लोग अपने कपड़े ख़ूब लपेटते हैं (तब भी तो) ख़ुदा (उनकी बातों को) जानता है जो छिपाकर करते हैं और खुल्लम खुल्ला करते हैं इसमें शक़ नहीं कि वह सीनों के भेद तक को खूब जानता है
देखो! ये अपने सीनों को मोड़ते है, चाहिए कि उससे छिपें। देखों! जब ये अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँकते है, वह जानता है जो कुछ वे छिपाते है और जो कुछ वे प्रकट करते है। निस्संदेह वह सीनों तक की बात को जानता है
۞ وَمَا مِن دَاۤبَّةࣲ فِی ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِ رِزۡقُهَا وَیَعۡلَمُ مُسۡتَقَرَّهَا وَمُسۡتَوۡدَعَهَاۚ كُلࣱّ فِی كِتَـٰبࣲ مُّبِینࣲ ﴿6﴾
और ज़मीन पर चलने वालों में कोई ऐसा नहीं जिसकी रोज़ी ख़ुदा के ज़िम्मे न हो और ख़ुदा उनके ठिकाने और (मरने के बाद) उनके सौपे जाने की जगह (क़ब्र) को भी जानता है सब कुछ रौशन किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है
धरती में चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है। वह जानता है जहाँ उसे ठहरना है और जहाँ उसे सौपा जाना है। सब कुछ एक स्पष्ट किताब में मौजूद है
وَهُوَ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ فِی سِتَّةِ أَیَّامࣲ وَكَانَ عَرۡشُهُۥ عَلَى ٱلۡمَاۤءِ لِیَبۡلُوَكُمۡ أَیُّكُمۡ أَحۡسَنُ عَمَلࣰاۗ وَلَىِٕن قُلۡتَ إِنَّكُم مَّبۡعُوثُونَ مِنۢ بَعۡدِ ٱلۡمَوۡتِ لَیَقُولَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّا سِحۡرࣱ مُّبِینࣱ ﴿7﴾
और वह तो वही (क़ादिरे मुत्तलिक़) है जिसने आसमानों और ज़मीन को 6 दिन में पैदा किया और (उस वक्त) उसका अर्श (फलक नहुम) पानी पर था (उसने आसमान व ज़मीन) इस ग़रज़ से बनाया ताकि तुम लोगों को आज़माए कि तुममे ज्यादा अच्छी कार गुज़ारी वाला कौन है और (ऐ रसूल) अगर तुम (उनसे) कहोगे कि मरने के बाद तुम सबके सब दोबारा (क़ब्रों से) उठाए जाओगे तो काफ़िर लोग ज़रुर कह बैठेगें कि ये तो बस खुला हुआ जादू है
वही है जिसने आकाशों और धरती को छः दिनों में पैदा किया - उसका सिंहासन पानी पर था - ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें कर्म की स्पष्ट से कौन सबसे अच्छा है। और यदि तुम कहो कि \"मरने के पश्चात तुम अवश्य उठोगे।\" तो जिन्हें इनकार है, वे कहने लगेंगे, \"यह तो खुला जादू है।\"
وَلَىِٕنۡ أَخَّرۡنَا عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابَ إِلَىٰۤ أُمَّةࣲ مَّعۡدُودَةࣲ لَّیَقُولُنَّ مَا یَحۡبِسُهُۥۤۗ أَلَا یَوۡمَ یَأۡتِیهِمۡ لَیۡسَ مَصۡرُوفًا عَنۡهُمۡ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿8﴾
और अगर हम गिनती के चन्द रोज़ो तक उन पर अज़ाब करने में देर भी करें तो ये लोग (अपनी शरारत से) बेताम्मुल ज़रुर कहने लगेगें कि (हाए) अज़ाब को कौन सी चीज़ रोक रही है सुन रखो जिस दिन इन पर अज़ाब आ पडे तो (फिर) उनके टाले न टलेगा और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे वह उनको हर तरह से घेर लेगा
यदि हम एक निश्चित अवधि तक के लिए उनसे यातना को टाले रखें, तो वे कहने लगेंगे, \"आख़िर किस चीज़ ने उसे रोक रखा है?\" सुन लो! जिन दिन वह उनपर आ जाएगी तो फिर वह उनपर से टाली नहीं जाएगी। और वही चीज़ उन्हें घेर लेगी जिसका वे उपहास करते है
وَلَىِٕنۡ أَذَقۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ مِنَّا رَحۡمَةࣰ ثُمَّ نَزَعۡنَـٰهَا مِنۡهُ إِنَّهُۥ لَیَـُٔوسࣱ كَفُورࣱ ﴿9﴾
और अगर हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाएं फिर उसको हम उससे छीन लें तो (उस वक्त) यक़ीनन बड़ा बेआस और नाशुक्रा हो जाता है
यदि हम मनुष्य को अपनी दयालुता का रसास्वादन कराकर फिर उसको छीन लॆं, तॊ (वह दयालुता कॆ लिए याचना नहीं करता) निश्चय ही वह निराशावादी, कृतघ्न है
وَلَىِٕنۡ أَذَقۡنَـٰهُ نَعۡمَاۤءَ بَعۡدَ ضَرَّاۤءَ مَسَّتۡهُ لَیَقُولَنَّ ذَهَبَ ٱلسَّیِّـَٔاتُ عَنِّیۤۚ إِنَّهُۥ لَفَرِحࣱ فَخُورٌ ﴿10﴾
(और हमारी शिकायत करने लगता है) और अगर हम तकलीफ के बाद जो उसे पहुँचती थी राहत व आराम का जाएक़ा चखाए तो ज़रुर कहने लगता है कि अब तो सब सख्तियाँ मुझसे दफा हो गई इसमें शक़ नहीं कि वह बड़ा (जल्दी खुश) होने येख़ी बाज़ है
और यदि हम इसके पश्चात कि उसे तकलीफ़ पहुँची हो, उसे नेमत का रसास्वादन कराते है तो वह कहने लगता है, \"मेरे तो सारे दुख दूर हो गए।\" वह तो फूला नहीं समाता, डींगे मारने लगता है
إِلَّا ٱلَّذِینَ صَبَرُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَأَجۡرࣱ كَبِیرࣱ ﴿11﴾
मगर जिन लोगों ने सब्र किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसे नहीं) ये वह लोग हैं जिनके वास्ते (ख़ुदा की) बख़्शिस और बहुत बड़ी (खरी) मज़दूरी है
उनकी बात दूसरी है जिन्होंने धैर्य से काम लिया और सत्कर्म किए। वही है जिनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है
فَلَعَلَّكَ تَارِكُۢ بَعۡضَ مَا یُوحَىٰۤ إِلَیۡكَ وَضَاۤىِٕقُۢ بِهِۦ صَدۡرُكَ أَن یَقُولُوا۟ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡهِ كَنزٌ أَوۡ جَاۤءَ مَعَهُۥ مَلَكٌۚ إِنَّمَاۤ أَنتَ نَذِیرࣱۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ وَكِیلٌ ﴿12﴾
तो जो चीज़ तुम्हारे पास 'वही' के ज़रिए से भेजी है उनमें से बाज़ को (सुनाने के वक्त) यायद तुम फक़त इस ख्याल से छोड़ देने वाले हो और तुम तंग दिल हो कि मुबादा ये लोग कह बैंठें कि उन पर खज़ाना क्यों नहीं नाज़िल किया गया या (उनके तसदीक के लिए) उनके साथ कोई फरिश्ता क्यों न आया तो तुम सिर्फ (अज़ाब से) डराने वाले हो
तो शायद तुम उसमें से कुछ छोड़ बैठोगे, जो तुम्हारी ओर प्रकाशना रूप में भेजी जा रही है। और तुम इस बात पर तंगदिल हो रहे हो कि वे कहते है, \"उसपर कोई ख़ज़ाना क्यों नहीं उतरा या उसके साथ कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं आया?\" तुम तो केवल सचेत करनेवाले हो। हर चीज़ अल्लाह ही के हवाले है
أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ فَأۡتُوا۟ بِعَشۡرِ سُوَرࣲ مِّثۡلِهِۦ مُفۡتَرَیَـٰتࣲ وَٱدۡعُوا۟ مَنِ ٱسۡتَطَعۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿13﴾
तुम्हें उनका ख्याल न करना चाहिए और ख़ुदा हर चीज़ का ज़िम्मेदार है क्या ये लोग कहते हैं कि उस शख़्श (तुम) ने इस (क़ुरान) को अपनी तरफ से गढ़ लिया है तो तुम (उनसे साफ साफ) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (ज्यादा नहीं) ऐसे दस सूरे अपनी तरफ से गढ़ के ले आओं
(उन्हें कोई शंका है) या वे कहते है कि \"उसने इसे स्वयं घड़ लिया है?\" कह दो, \"अच्छा, यदि तुम सच्चे हो तो इस जैसी घड़ी हुई दस सूरतें ले आओ और अल्लाह से हटकर जिस किसी को बुला सकते हो बुला लो।\"
فَإِلَّمۡ یَسۡتَجِیبُوا۟ لَكُمۡ فَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّمَاۤ أُنزِلَ بِعِلۡمِ ٱللَّهِ وَأَن لَّاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَهَلۡ أَنتُم مُّسۡلِمُونَ ﴿14﴾
और ख़ुदा के सिवा जिस जिस के तुम्हे बुलाते बन पड़े मदद के वास्ते बुला लो उस पर अगर वह तुम्हारी न सुने तो समझ ले कि (ये क़ुरान) सिर्फ ख़ुदा के इल्म से नाज़िल किया गया है और ये कि ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं तो क्या तुम अब भी इस्लाम लाओगे (या नहीं)
फिर यदि वे तुम्हारी बातें न मानें तो जान लो, यह अल्लाह के ज्ञान ही के साथ अवतरित हुआ है। और यह कि उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। तो अब क्या तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते हो?
مَن كَانَ یُرِیدُ ٱلۡحَیَوٰةَ ٱلدُّنۡیَا وَزِینَتَهَا نُوَفِّ إِلَیۡهِمۡ أَعۡمَـٰلَهُمۡ فِیهَا وَهُمۡ فِیهَا لَا یُبۡخَسُونَ ﴿15﴾
नेकी करने वालों में से जो शख़्श दुनिया की ज़िन्दगी और उसके रिज़क़ का तालिब हो तो हम उन्हें उनकी कारगुज़ारियों का बदला दुनिया ही में पूरा पूरा भर देते हैं और ये लोग दुनिया में घाटे में नहीं रहेगें
जो व्यक्ति सांसारिक जीवन और उसकी शोभा का इच्छुक हो तो ऐसे लोगों को उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला हम यहीं दे देते है और इसमें उनका कोई हक़ नहीं मारा जाता
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ لَیۡسَ لَهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ إِلَّا ٱلنَّارُۖ وَحَبِطَ مَا صَنَعُوا۟ فِیهَا وَبَـٰطِلࣱ مَّا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿16﴾
मगर (हाँ) ये वह लोग हैं जिनके लिए आख़िरत में (जहन्नुम की) आग के सिवा कुछ नहीं और जो कुछ दुनिया में उन लोगों ने किया धरा था सब अकारत (बर्बाद) हो गया और जो कुछ ये लोग करते थे सब मिटियामेट हो गया
यही वे लोग है जिनके लिए आख़िरत में आग के सिवा और कुछ भी नहीं। उन्होंने जो कुछ बनाया, वह सब वहाँ उनकी जान को लागू हुआ और उनका सारा किया-धरा मिथ्या होकर रहा
أَفَمَن كَانَ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّهِۦ وَیَتۡلُوهُ شَاهِدࣱ مِّنۡهُ وَمِن قَبۡلِهِۦ كِتَـٰبُ مُوسَىٰۤ إِمَامࣰا وَرَحۡمَةًۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُؤۡمِنُونَ بِهِۦۚ وَمَن یَكۡفُرۡ بِهِۦ مِنَ ٱلۡأَحۡزَابِ فَٱلنَّارُ مَوۡعِدُهُۥۚ فَلَا تَكُ فِی مِرۡیَةࣲ مِّنۡهُۚ إِنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿17﴾
तो क्या जो शख़्श अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हो और उसके पीछे ही पीछे उनका एक गवाह हो और उसके क़बल मूसा की किताब (तौरैत) जो (लोगों के लिए) पेशवा और रहमत थी (उसकी तसदीक़ करती हो वह बेहतर है या कोई दूसरा) यही लोग सच्चे ईमान लाने वाले और तमाम फिरक़ों में से जो शख़्श भी उसका इन्कार करे तो उसका ठिकाना बस आतिश (जहन्नुम) है तो फिर तुम कहीं उसकी तरफ से शक़ में न पड़े रहना, बेशक ये क़ुरान तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है मगर बहुतेरे लोग ईमान नही लाते
फिर क्या वह व्यक्ति जो अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर है और स्वयं उसके रूप में भी एक गवाह उसके साथ-साथ रहता है - और इससे पहले मूसा की किताब भी एक मार्गदर्शक और दयालुता के रूप में उपस्थित रही है- (और वह जो प्रकाश एवं मार्गदर्शन से वंचित है, दोनों बराबर हो सकते है) ऐसे ही लोग उसपर ईमान लाते है, किन्तु इन गिरोहों में से जो उसका इनकार करेगा तो उसके लिए जिस जगह का वादा है, वह तो आग है। अतः तुम्हें इसके विषय में कोई सन्देह न हो। यह तुम्हारे रब की ओर से सत्य है, किन्तु अधिकतर लोग मानते नहीं
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًاۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُعۡرَضُونَ عَلَىٰ رَبِّهِمۡ وَیَقُولُ ٱلۡأَشۡهَـٰدُ هَـٰۤؤُلَاۤءِ ٱلَّذِینَ كَذَبُوا۟ عَلَىٰ رَبِّهِمۡۚ أَلَا لَعۡنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿18﴾
और ये जो शख़्श ख़ुदा पर झूठ मूठ बोहतान बॉधे उससे ज्यादा ज़ालिम कौन होगा ऐसे लोग अपने परवरदिगार के हुज़ूर में पेश किए जाएंगें और गवाह इज़हार करेगें कि यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार पर झूट (बोहतान) बाँधा था सुन रखो कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की फिटकार है
उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े। ऐसे लोग अपने रब के सामने पेश होंगे और गवाही देनेवाले कहेंगे, \"यही लोग है जिन्होंने अपने रब पर झूठ घड़ा।\" सुन लो! ऐसे अत्याचारियों पर अल्लाह की लानत है
ٱلَّذِینَ یَصُدُّونَ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ وَیَبۡغُونَهَا عِوَجࣰا وَهُم بِٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ كَـٰفِرُونَ ﴿19﴾
जो ख़ुदा के रास्ते से लोगों को रोकते हैं और उसमें कज़ी (टेढ़ा पन) निकालना चाहते हैं और यही लोग आख़िरत के भी मुन्किर है
जो अल्लाह के मार्ग से रोकते है और उसमें टेढ़ पैदा करना चाहते है; और वही आख़िरत का इनकार करते है
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَمۡ یَكُونُوا۟ مُعۡجِزِینَ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا كَانَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِنۡ أَوۡلِیَاۤءَۘ یُضَـٰعَفُ لَهُمُ ٱلۡعَذَابُۚ مَا كَانُوا۟ یَسۡتَطِیعُونَ ٱلسَّمۡعَ وَمَا كَانُوا۟ یُبۡصِرُونَ ﴿20﴾
ये लोग रुए ज़मीन में न ख़ुदा को हरा सकते है और न ख़ुदा के सिवा उनका कोई सरपरस्त होगा उनका अज़ाब दूना कर दिया जाएगा ये लोग (हसद के मारे) न तो (हक़ बात) सुन सकते थे न देख सकते थे
वे धरती में क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और न अल्लाह से हटकर उनका कोई समर्थक ही है। उन्हें दोहरी यातना दी जाएगी। वे न सुन ही सकते थे और न देख ही सकते थे
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُوا۟ یَفۡتَرُونَ ﴿21﴾
ये वह लोग हैं जिन्होंने कुछ अपना ही घाटा किया और जो इफ्तेरा परदाज़ियाँ (झूठी बातें) ये लोग करते थे (क़यामत में सब) उन्हें छोड़ के चल होगी
ये वही लोग है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला और जो कुछ वे घड़ा करते थे, वह सब उनमें गुम होकर रह गया
لَا جَرَمَ أَنَّهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمُ ٱلۡأَخۡسَرُونَ ﴿22﴾
इसमें शक़ नहीं कि यही लोग आख़िरत में बड़े घाटा उठाने वाले होगें
निश्चय ही वही आख़िरत में सबसे बढ़कर घाटे में रहेंगे
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَأَخۡبَتُوۤا۟ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿23﴾
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और अपने परवरदिगार के सामने आजज़ी से झुके यही लोग जन्नती हैं कि ये बेहश्त में हमेशा रहेगें
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अपने रब की ओर झूक पड़े वही जन्नतवाले है, उसमें वे सदैव रहेंगे
۞ مَثَلُ ٱلۡفَرِیقَیۡنِ كَٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡأَصَمِّ وَٱلۡبَصِیرِ وَٱلسَّمِیعِۚ هَلۡ یَسۡتَوِیَانِ مَثَلًاۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿24﴾
(काफिर, मुसलमान) दोनों फरीक़ की मसल अन्धे और बहरे और देखने वाले और सुनने वाले की सी है क्या ये दोनो मसल में बराबर हो सकते हैं तो क्या तुम लोग ग़ौर नहीं करते और हमने नूह को ज़रुर उन की क़ौम के पास भेजा
दोनों पक्षों की उपमा ऐसी है जैसे एक अन्धा और बहरा हो और एक देखने और सुननेवाला। क्या इन दोनों की दशा समान हो सकती है? तो क्या तुम होश से काम नहीं लेते?
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦۤ إِنِّی لَكُمۡ نَذِیرࣱ مُّبِینٌ ﴿25﴾
(और उन्होने अपनी क़ौम से कहा कि) मैं तो तुम्हारा (अज़ाबे ख़ुदा से) सरीही धमकाने वाला हूँ
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा। (उसने कहा,) \"मैं तुम्हें साफ़-साफ़ चेतावनी देता हूँ
أَن لَّا تَعۡبُدُوۤا۟ إِلَّا ٱللَّهَۖ إِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمٍ أَلِیمࣲ ﴿26﴾
(और) ये (समझता हूँ) कि तुम ख़ुदा के सिवा किसी की परसतिश न करो मैं तुम पर एक दर्दनाक दिन (क़यामत) के अज़ाब से डराता हूँ
यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मुझे तुम्हारे विषय में एक दुखद दिन की यातना का भय है।\"
فَقَالَ ٱلۡمَلَأُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ مِن قَوۡمِهِۦ مَا نَرَىٰكَ إِلَّا بَشَرࣰا مِّثۡلَنَا وَمَا نَرَىٰكَ ٱتَّبَعَكَ إِلَّا ٱلَّذِینَ هُمۡ أَرَاذِلُنَا بَادِیَ ٱلرَّأۡیِ وَمَا نَرَىٰ لَكُمۡ عَلَیۡنَا مِن فَضۡلِۭ بَلۡ نَظُنُّكُمۡ كَـٰذِبِینَ ﴿27﴾
तो उनके सरदार जो काफ़िर थे कहने लगे कि हम तो तुम्हें अपना ही सा एक आदमी समझते हैं और हम तो देखते हैं कि तुम्हारे पैरोकार हुए भी हैं तो बस सिर्फ हमारे चन्द रज़ील (नीच) लोग (और वह भी बे सोचे समझे सरसरी नज़र में) और हम तो अपने ऊपर तुम लोगों की कोई फज़ीलत नहीं देखते बल्कि तुम को झूठा समझते हैं
इसपर उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, \"हमारी दृष्टि में तो तुम हमारे ही जैसे आदमी हो और हम देखते है कि बस कुछ ऐसे लोग ही तुम्हारे अनुयायी है जो पहली स्पष्ट में हमारे यहाँ के नीच है। हम अपने मुक़ाबले में तुममें कोई बड़ाई नहीं देखते, बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते है।\"
قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّی وَءَاتَىٰنِی رَحۡمَةࣰ مِّنۡ عِندِهِۦ فَعُمِّیَتۡ عَلَیۡكُمۡ أَنُلۡزِمُكُمُوهَا وَأَنتُمۡ لَهَا كَـٰرِهُونَ ﴿28﴾
(नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ
उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपने पास से दयालुता भी प्रदान की है, फिर वह तुम्हें न सूझे तो क्या हम हठात उसे तुमपर चिपका दें, जबकि वह तुम्हें अप्रिय है?
وَیَـٰقَوۡمِ لَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مَالًاۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِۚ وَمَاۤ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ۚ إِنَّهُم مُّلَـٰقُوا۟ رَبِّهِمۡ وَلَـٰكِنِّیۤ أَرَىٰكُمۡ قَوۡمࣰا تَجۡهَلُونَ ﴿29﴾
और तुम हो कि उसको नापसन्द किए जाते हो और ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुमसे इसके सिले में कुछ माल का तालिब नहीं मेरी मज़दूरी तो सिर्फ ख़ुदा के ज़िम्मे है और मै तो तुम्हारे कहने से उन लोगों को जो ईमान ला चुके हैं निकाल नहीं सकता (क्योंकि) ये लोग भी ज़रुर अपने परवरदिगार के हुज़ूर में हाज़िर होगें मगर मै तो देखता हूँ कि कुछ तुम ही लोग (नाहक़) जिहालत करते हो
और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं इस काम पर कोई धन नहीं माँगता। मेरा पारिश्रमिक तो बस अल्लाह के ज़िम्मे है। मैं ईमान लानेवालो को दूर करनेवाला भी नहीं। उन्हें तो अपने रब से मिलना ही है, किन्तु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानी लोग हो
وَیَـٰقَوۡمِ مَن یَنصُرُنِی مِنَ ٱللَّهِ إِن طَرَدتُّهُمۡۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿30﴾
और मेरी क़ौम अगर मै इन (बेचारे ग़रीब) (ईमानदारों) को निकाल दूँ तो ख़ुदा (के अज़ाब) से (बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा तो क्या तुम इतना भी ग़ौर नहीं करते
और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि मैं उन्हें धुत्कार दूँ तो अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता कर सकता है? फिर क्या तुम होश से काम नहीं लेते?
وَلَاۤ أَقُولُ لَكُمۡ عِندِی خَزَاۤىِٕنُ ٱللَّهِ وَلَاۤ أَعۡلَمُ ٱلۡغَیۡبَ وَلَاۤ أَقُولُ إِنِّی مَلَكࣱ وَلَاۤ أَقُولُ لِلَّذِینَ تَزۡدَرِیۤ أَعۡیُنُكُمۡ لَن یُؤۡتِیَهُمُ ٱللَّهُ خَیۡرًاۖ ٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا فِیۤ أَنفُسِهِمۡ إِنِّیۤ إِذࣰا لَّمِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿31﴾
और मै तो तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास खुदाई ख़ज़ाने हैं और न (ये कहता हूँ कि) मै ग़ैब वॉ हूँ (गैब का जानने वाला) और ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें मै ये नहीं कहता कि ख़ुदा उनके साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात ख़ुदा ही खूब जानता है और अगर मै ऐसा कहूँ तो मै भी यक़ीनन ज़ालिम हूँ
और मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़जाने है और न मुझे परोक्ष का ज्ञान है और न मैं यह कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ और न उन लोगों के विषय में, जो तुम्हारी दृष्टि में तुच्छ है, मैं यह कहता हूँ कि अल्लाह उन्हें कोई भलाई न देगा। जो कुछ उनके जी में है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। (यदि मैं ऐसा कहूँ) तब तो मैं अवश्य ही ज़ालिमों में से हूँगा।\"
قَالُوا۟ یَـٰنُوحُ قَدۡ جَـٰدَلۡتَنَا فَأَكۡثَرۡتَ جِدَ ٰلَنَا فَأۡتِنَا بِمَا تَعِدُنَاۤ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿32﴾
वह लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से यक़ीनन झगड़े और बहुत झगड़े फिर तुम सच्चे हो तो जिस (अज़ाब) की तुम हमें धमकी देते थे हम पर ला चुको
उन्होंने कहा, \"ऐ नूह! तुम हमसे झगड़ चुके और बहुत झगड़ चुके। यदि तुम सच्चे हो तो जिसकी तुम हमें धमकी देते हो, अब उसे हम पर ले ही आओ।\"
قَالَ إِنَّمَا یَأۡتِیكُم بِهِ ٱللَّهُ إِن شَاۤءَ وَمَاۤ أَنتُم بِمُعۡجِزِینَ ﴿33﴾
नूह ने कहा अगर चाहेगा तो बस ख़ुदा ही तुम पर अज़ाब लाएगा और तुम लोग किसी तरह उसे हरा नहीं सकते और अगर मै चाहूँ तो तुम्हारी (कितनी ही) ख़ैर ख्वाही (भलाई) करुँ
उसने कहा, \"वह तो अल्लाह ही यदि चाहेगा तो तुमपर लाएगा और तुम क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते
وَلَا یَنفَعُكُمۡ نُصۡحِیۤ إِنۡ أَرَدتُّ أَنۡ أَنصَحَ لَكُمۡ إِن كَانَ ٱللَّهُ یُرِیدُ أَن یُغۡوِیَكُمۡۚ هُوَ رَبُّكُمۡ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿34﴾
अगर ख़ुदा को तुम्हारा बहकाना मंज़ूर है तो मेरी ख़ैर ख्वाही कुछ भी तुम्हारे काम नहीं आ सकती वही तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की तरफ तुम को लौट जाना है
अब जबकि अल्लाह ही ने तुम्हें विनष्ट करने का निश्चय कर लिया हो, तो यदि मैं तुम्हारा भला भी चाहूँ, तो मेरा भला चाहना तुम्हें कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकता। वही तुम्हारा रब है और उसी की ओर तुम्हें पलटना भी है।\"
أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ إِنِ ٱفۡتَرَیۡتُهُۥ فَعَلَیَّ إِجۡرَامِی وَأَنَا۠ بَرِیۤءࣱ مِّمَّا تُجۡرِمُونَ ﴿35﴾
(ऐ रसूल) क्या (कुफ्फ़ारे मक्का भी) कहते हैं कि क़ुरान को उस (तुम) ने गढ़ लिया है तुम कह दो कि अगर मैने उसको गढ़ा है तो मेरे गुनाह का वबाल मुझ पर होगा और तुम लोग जो (गुनाह करके) मुजरिम होते हो उससे मै बरीउल ज़िम्मा (अलग) हूँ
(क्या उन्हें कोई खटक है) या वे कहते है, \"उसने स्वयं इसे घड़ लिया है?\" कह दो, \"यदि मैंने इसे घड़ लिया है तो मेरे अपराध का दायित्व मुझपर ही है। और जो अपराध तुम कर रहे हो मैं उसके दायित्व से मुक्त हूँ।\"
وَأُوحِیَ إِلَىٰ نُوحٍ أَنَّهُۥ لَن یُؤۡمِنَ مِن قَوۡمِكَ إِلَّا مَن قَدۡ ءَامَنَ فَلَا تَبۡتَىِٕسۡ بِمَا كَانُوا۟ یَفۡعَلُونَ ﴿36﴾
और नूह के पास ये 'वही' भेज दी गई कि जो ईमान ला चुका उनके सिवा अब कोई शख़्श तुम्हारी क़ौम से हरगिज़ ईमान न लाएगा तो तुम ख्वाहमा ख्वाह उनकी कारस्तानियों का (कुछ) ग़म न खाओ
नूह की ओर प्रकाशना की गई कि \"जो लोग ईमान ला चुके है, उनके सिवा अब तुम्हारी क़ौम में कोई ईमान लानेवाला नहीं। अतः जो कुछ वे कर रहे है उसपर तुम दुखी न हो
وَٱصۡنَعِ ٱلۡفُلۡكَ بِأَعۡیُنِنَا وَوَحۡیِنَا وَلَا تُخَـٰطِبۡنِی فِی ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤا۟ إِنَّهُم مُّغۡرَقُونَ ﴿37﴾
और (बिस्मिल्लाह करके) हमारे रुबरु और हमारे हुक्म से कश्ती बना डालो और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके बारे में मुझसे सिफारिश न करना क्योंकि ये लोग ज़रुर डुबा दिए जाएँगें
तुम हमारे समक्ष और हमारी प्रकाशना के अनुसार नाव बनाओ और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करो। निश्चय ही वे डूबकर रहेंगे।\"
وَیَصۡنَعُ ٱلۡفُلۡكَ وَكُلَّمَا مَرَّ عَلَیۡهِ مَلَأࣱ مِّن قَوۡمِهِۦ سَخِرُوا۟ مِنۡهُۚ قَالَ إِن تَسۡخَرُوا۟ مِنَّا فَإِنَّا نَسۡخَرُ مِنكُمۡ كَمَا تَسۡخَرُونَ ﴿38﴾
और नूह कश्ती बनाने लगे और जब कभी उनकी क़ौम के सरबर आवुरदा लोग उनके पास से गुज़रते थे तो उनसे मसख़रापन करते नूह (जवाब में) कहते कि अगर इस वक्त तुम हमसे मसखरापन करते हो तो जिस तरह तुम हम पर हँसते हो हम तुम पर एक वक्त हँसेगें
जब नाव बनाने लगता है। उसकी क़ौम के सरदार जब भी उसके पास से गुज़रते तो उसका उपहास करते। उसने कहा, \"यदि तुम हमारा उपहास करते हो तो हम भी तुम्हारा उपहास करेंगे, जैसे तुम हमारा उपहास करते हो
فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ مَن یَأۡتِیهِ عَذَابࣱ یُخۡزِیهِ وَیَحِلُّ عَلَیۡهِ عَذَابࣱ مُّقِیمٌ ﴿39﴾
और तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाज़िल होता है कि (दुनिया में) उसे रुसवा कर दे और किस पर (क़यामत में) दाइमी अज़ाब नाज़िल होता है
अब शीघ्र ही तुम जान लोगे कि कौन है जिसपर ऐसी यातना आती है, जो उसे अपमानित कर देगी और जिसपर ऐसी स्थाई यातना टूट पड़ती है
حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءَ أَمۡرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ قُلۡنَا ٱحۡمِلۡ فِیهَا مِن كُلࣲّ زَوۡجَیۡنِ ٱثۡنَیۡنِ وَأَهۡلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَیۡهِ ٱلۡقَوۡلُ وَمَنۡ ءَامَنَۚ وَمَاۤ ءَامَنَ مَعَهُۥۤ إِلَّا قَلِیلࣱ ﴿40﴾
यहाँ तक कि जब हमारा हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा और तन्नूर से जोश मारने लगा तो हमने हुक्म दिया (ऐ नूह) हर किस्म के जानदारों में से (नर मादा का) जोड़ा (यानि) दो दो ले लो और जिस (की) हलाकत (तबाही) का हुक्म पहले ही हो चुका हो उसके सिवा अपने सब घर वाले और जो लोग ईमान ला चुके उन सबको कश्ती (नाँव) में बैठा लो और उनके साथ ईमान भी थोड़े ही लोग लाए थे
यहाँ तक कि जब हमारा आदेश आ गया और तंदूर उबल पड़ा तो हमने कहा, \"हर जाति में से दो-दो के जोड़े चढ़ा लो और अपने घरवालों को भी - सिवाय ऐसे व्यक्ति के जिसके बारे में बात तय पा चुकी है - और जो ईमान लाया हो उसे भी।\" किन्तु उसके साथ जो ईमान लाए थे वे थोड़े ही थे
۞ وَقَالَ ٱرۡكَبُوا۟ فِیهَا بِسۡمِ ٱللَّهِ مَجۡرٜىٰهَا وَمُرۡسَىٰهَاۤۚ إِنَّ رَبِّی لَغَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿41﴾
और नूह ने (अपने साथियों से) कहा बिस्मिल्ला मज़रीहा मुरसाहा (ख़ुदा ही के नाम से उसका बहाओ और ठहराओ है) कश्ती में सवार हो जाओ बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
उसने कहा, \"उसमें सवार हो जाओ। अल्लाह के नाम से इसका चलना भी है और इसका ठहरना भी। निस्संदेह मेरा रब अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।\"
وَهِیَ تَجۡرِی بِهِمۡ فِی مَوۡجࣲ كَٱلۡجِبَالِ وَنَادَىٰ نُوحٌ ٱبۡنَهُۥ وَكَانَ فِی مَعۡزِلࣲ یَـٰبُنَیَّ ٱرۡكَب مَّعَنَا وَلَا تَكُن مَّعَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿42﴾
और कश्ती है कि पहाड़ों की सी (ऊँची) लहरों में उन लोगों को लिए हुए चली जा रही है और नूह ने अपने बेटे को जो उनसे अलग थलग एक गोशे (कोने) में था आवाज़ दी ऐ मेरे फरज़न्द हमारी कश्ती में सवार हो लो और काफिरों के साथ न रह
और वह (नाव) उन्हें लिए हुए पहाड़ों जैसी ऊँची लहर के बीच चल रही थी। नूह ने अपने बेटे को, जो उससे अलग था, पुकारा, \"ऐ मेरे बेटे! हमारे साथ सवार हो जा। तू इनकार करनेवालों के साथ न रह।\"
قَالَ سَـَٔاوِیۤ إِلَىٰ جَبَلࣲ یَعۡصِمُنِی مِنَ ٱلۡمَاۤءِۚ قَالَ لَا عَاصِمَ ٱلۡیَوۡمَ مِنۡ أَمۡرِ ٱللَّهِ إِلَّا مَن رَّحِمَۚ وَحَالَ بَیۡنَهُمَا ٱلۡمَوۡجُ فَكَانَ مِنَ ٱلۡمُغۡرَقِینَ ﴿43﴾
(मुझे माफ कीजिए) मै तो अभी किसी पहाड़ का सहारा पकड़ता हूँ जो मुझे पानी (में डूबने) से बचा लेगा नूह ने (उससे) कहा (अरे कम्बख्त) आज ख़ुदा के अज़ाब से कोई बचाने वाला नहीं मगर ख़ुदा ही जिस पर रहम फरमाएगा और (ये बात हो रही थी कि) यकायक दोनो बाप बेटे के दरमियान एक मौज हाएल हो गई और वह डूब कर रह गया
उसने कहा, \"मैं किसी पहाड़ से जा लगूँगा, जो मुझे पानी से बचा लेगा।\" कहा, \"आज अल्लाह के आदेश (फ़ैसले) से कोई बचानेवाला नहीं है सिवाय उसके जिसपर वह दया करे।\" इतने में दोनों के बीच लहर आ पड़ी और डूबनेवालों के साथ वह भी डूब गया
وَقِیلَ یَـٰۤأَرۡضُ ٱبۡلَعِی مَاۤءَكِ وَیَـٰسَمَاۤءُ أَقۡلِعِی وَغِیضَ ٱلۡمَاۤءُ وَقُضِیَ ٱلۡأَمۡرُ وَٱسۡتَوَتۡ عَلَى ٱلۡجُودِیِّۖ وَقِیلَ بُعۡدࣰا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿44﴾
और (ग़ैब ख़ुदा की तरफ से) हुक्म दिया गया कि ऐ ज़मीन अपना पानी जज्ब (शोख) करे और ऐ आसमान (बरसने से) थम जा और पानी घट गया और (लोगों का) काम तमाम कर दिया गया और कश्ती जो वही (पहाड़) पर जा ठहरी और (चारो तरफ) पुकार दिया गया कि ज़ालिम लोगों को (ख़ुदा की रहमत से) दूरी हो
और कहा गया, \"ऐ धरती! अपना पानी निगल जा और ऐ आकाश! तू थम जा।\" अतएव पानी तह में बैठ गया और फ़ैसला चुका दिया गया और वह (नाव) जूदी पर्वत पर टिक गई औऱ कह दिया गया, \"फिटकार हो अत्याचारी लोगों पर!\"
وَنَادَىٰ نُوحࣱ رَّبَّهُۥ فَقَالَ رَبِّ إِنَّ ٱبۡنِی مِنۡ أَهۡلِی وَإِنَّ وَعۡدَكَ ٱلۡحَقُّ وَأَنتَ أَحۡكَمُ ٱلۡحَـٰكِمِینَ ﴿45﴾
और (जिस वक्त नूह का बेटा ग़रक (डूब) हो रहा था तो नूह ने अपने परवरदिगार को पुकारा और अर्ज़ की ऐ मेरे परवरदिगार इसमें तो शक़ नहीं कि मेरा बेटा मेरे अहल (घर वालों) में शामिल है और तूने वायदा किया था कि तेरे अहल को बचा लूँगा) और इसमें शक़ नहीं कि तेरा वायदा सच्चा है और तू सारे (जहान) के हाकिमों से बड़ा हाकिम है
नूह ने अपने रब को पुकारा और कहा, \"मेरे रब! मेरा बेटा मेरे घरवालों में से है और निस्संदेह तेरा वादा सच्चा है और तू सबसे बड़ा हाकिम भी है।\"
قَالَ یَـٰنُوحُ إِنَّهُۥ لَیۡسَ مِنۡ أَهۡلِكَۖ إِنَّهُۥ عَمَلٌ غَیۡرُ صَـٰلِحࣲۖ فَلَا تَسۡـَٔلۡنِ مَا لَیۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٌۖ إِنِّیۤ أَعِظُكَ أَن تَكُونَ مِنَ ٱلۡجَـٰهِلِینَ ﴿46﴾
(तू मेरे बेटे को नजात दे) ख़ुदा ने फरमाया ऐ नूह तुम (ये क्या कह रहे हो) हरगिज़ वह तुम्हारे अहल में शामिल नहीं वह बेशक बदचलन है (देखो जिसका तुम्हें इल्म नहीं है मुझसे उसके बारे में (दरख्वास्त न किया करो और नादानों की सी बातें न करो) नूह ने अर्ज़ की ऐ मेरे परवरदिगार मै तुझ ही से पनाह मागँता हूँ कि जिस चीज़ का मुझे इल्म न हो मै उसकी दरख्वास्त करुँ
कहा, \"ऐ नूह! वह तेरे घरवालों में से नहीं, वह तो सर्वथा एक बिगड़ा काम है। अतः जिसका तुझे ज्ञान नहीं, उसके विषय में मुझसे न पूछ, तेरे नादान हो जाने की आशंका से मैं तुझे नसीहत करता हूँ।\"
قَالَ رَبِّ إِنِّیۤ أَعُوذُ بِكَ أَنۡ أَسۡـَٔلَكَ مَا لَیۡسَ لِی بِهِۦ عِلۡمࣱۖ وَإِلَّا تَغۡفِرۡ لِی وَتَرۡحَمۡنِیۤ أَكُن مِّنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿47﴾
और अगर तु मुझे (मेरे कसूर न बख्श देगा और मुझ पर रहम न खाएगा तो मैं सख्त घाटा उठाने वालों में हो जाऊँगा (जब तूफान जाता रहा तो) हुक्म दिया गया ऐ नूह हमारी तरफ से सलामती और उन बरकतों के साथ कश्ती से उतरो
उसने कहा, \"मेरे रब! मैं इससे तेरी पनाह माँगता हूँ कि तुझसे उस चीज़ का सवाल करूँ जिसका मुझे कोई ज्ञान न हो। अब यदि तूने मुझे क्षमा न किया और मुझपर दया न की, तो मैं घाटे में पड़कर रहूँगा।\"
قِیلَ یَـٰنُوحُ ٱهۡبِطۡ بِسَلَـٰمࣲ مِّنَّا وَبَرَكَـٰتٍ عَلَیۡكَ وَعَلَىٰۤ أُمَمࣲ مِّمَّن مَّعَكَۚ وَأُمَمࣱ سَنُمَتِّعُهُمۡ ثُمَّ یَمَسُّهُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿48﴾
जो तुम पर हैं और जो लोग तुम्हारे साथ हैं उनमें से न कुछ लोगों पर और (तुम्हारे बाद) कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हम थोड़े ही दिन बाद बहरावर करेगें फिर हमारी तरफ से उनको दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा
कहा गया, \"ऐ नूह! हमारी ओर से सलामती और उन बरकतों के साथ उतर, जो तुझपर और उन गिरोहों पर होगी, जो तेरे साथवालों में से होंगे। कुछ गिरोह ऐसे भी होंगे जिन्हें हम थोड़े दिनों का सुखोपभोग कराएँगे। फिर उन्हें हमारी ओर से दुखद यातना आ पहुँचेगी।\"
تِلۡكَ مِنۡ أَنۢبَاۤءِ ٱلۡغَیۡبِ نُوحِیهَاۤ إِلَیۡكَۖ مَا كُنتَ تَعۡلَمُهَاۤ أَنتَ وَلَا قَوۡمُكَ مِن قَبۡلِ هَـٰذَاۖ فَٱصۡبِرۡۖ إِنَّ ٱلۡعَـٰقِبَةَ لِلۡمُتَّقِینَ ﴿49﴾
(ऐ रसूल) ये ग़ैब की चन्द ख़बरे हैं जिनको तुम्हारी तरफ वही के ज़रिए पहुँचाते हैं जो उसके क़ब्ल न तुम जानते थे और न तुम्हारी क़ौम ही (जानती थी) तो तुम सब्र करो इसमें शक़ नहीं कि आख़िारत (की खूबियाँ) परहेज़गारों ही के वास्ते हैं
ये परोक्ष की ख़बरें हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे है। इससे पहले तो न तुम्हें इनकी ख़बर थी और न तुम्हारी क़ौम को। अतः धैर्य से काम लो। निस्संदेह अन्तिम परिणाम डर रखनेवालो के पक्ष में है
وَإِلَىٰ عَادٍ أَخَاهُمۡ هُودࣰاۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۖ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا مُفۡتَرُونَ ﴿50﴾
और (हमने) क़ौमे आद के पास उनके भाई हूद को (पैग़म्बर बनाकर भेजा और) उन्होनें अपनी क़ौम से कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की परसतिश करों उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तुम बस निरे इफ़तेरा परदाज़ (झूठी बात बनाने वाले) हो
और 'आद' की ओर उनके भाई 'हूद' को भेजा। उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य प्रभु नहीं। तुमने तो बस झूठ घड़ रखा हैं
یَـٰقَوۡمِ لَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ أَجۡرًاۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَى ٱلَّذِی فَطَرَنِیۤۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿51﴾
ऐ मेरी क़ौम मै उस (समझाने पर तुमसे कुछ मज़दूरी नहीं मॉगता मेरी मज़दूरी तो बस उस शख़्श के ज़िम्मे है जिसने मुझे पैदा किया तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता। मेरा पारिश्रमिक तो बस उसके ज़िम्मे है जिसने मुझे पैदा किया। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?
وَیَـٰقَوۡمِ ٱسۡتَغۡفِرُوا۟ رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوبُوۤا۟ إِلَیۡهِ یُرۡسِلِ ٱلسَّمَاۤءَ عَلَیۡكُم مِّدۡرَارࣰا وَیَزِدۡكُمۡ قُوَّةً إِلَىٰ قُوَّتِكُمۡ وَلَا تَتَوَلَّوۡا۟ مُجۡرِمِینَ ﴿52﴾
और ऐ मेरी क़ौम अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ मॉगों फिर उसकी बारगाह में अपने (गुनाहों से) तौबा करो तो वह तुम पर मूसलाधार मेह आसमान से बरसाएगा ख़ुश्क साली न होगी और तुम्हारी क़ूवत (ताक़त) में और क़ूवत बढ़ा देगा और मुजरिम बन कर उससे मुँह न मोड़ों
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अपने रब से क्षमा याचना करो, फिर उसकी ओर पलट आओ। वह तुमपर आकाश को ख़ूब बरसता छोड़ेगा और तुममें शक्ति पर शक्ति की अभिवृद्धि करेगा। तुम अपराधी बनकर मुँह न फेरो।\"
قَالُوا۟ یَـٰهُودُ مَا جِئۡتَنَا بِبَیِّنَةࣲ وَمَا نَحۡنُ بِتَارِكِیۤ ءَالِهَتِنَا عَن قَوۡلِكَ وَمَا نَحۡنُ لَكَ بِمُؤۡمِنِینَ ﴿53﴾
वह लोग कहने लगे ऐ हूद तुम हमारे पास कोई दलील लेकर तो आए नहीं और तुम्हारे कहने से अपने ख़ुदाओं को तो छोड़ने वाले नहीं और न हम तुम पर ईमान लाने वाले हैं
उन्होंने कहा, \"ऐ हूद! तू हमारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण लेकर नहीं आया है। तेरे कहने से हम अपने इष्ट -पूज्यों को नहीं छोड़ सकते और न हम तुझपर ईमान लानेवाले है
إِن نَّقُولُ إِلَّا ٱعۡتَرَىٰكَ بَعۡضُ ءَالِهَتِنَا بِسُوۤءࣲۗ قَالَ إِنِّیۤ أُشۡهِدُ ٱللَّهَ وَٱشۡهَدُوۤا۟ أَنِّی بَرِیۤءࣱ مِّمَّا تُشۡرِكُونَ ﴿54﴾
हम तो बस ये कहते हैं कि हमारे ख़ुदाओं में से किसने तुम्हें मजनून (दीवाना) बना दिया है (इसी वजह से तुम) बहकी बहकी बातें करते हो हूद ने जवाब दिया बेशक मै ख़ुदा को गवाह करता हूँ और तुम भी गवाह रहो कि तुम ख़ुदा के सिवा (दूसरों को) उसका शरीक बनाते हो
हम तो केवल यही कहते है कि हमारे इष्ट-पूज्यों में से किसी की तुझपर मार पड़ गई है।\" उसने कहा, \"मैं तो अल्लाह को गवाह बनाता हूँ और तुम भी गवाह रहो कि उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं,
مِن دُونِهِۦۖ فَكِیدُونِی جَمِیعࣰا ثُمَّ لَا تُنظِرُونِ ﴿55﴾
इसमे मै बेज़ार हूँ तो तुम सब के सब मेरे साथ मक्कारी करो और मुझे (दम मारने की) मोहलत भी न दो तो मुझे परवाह नहीं
जिनको तुम साझी ठहराकर उसके सिवा पूज्य मानते हो। अतः तुम सब मिलकर मेरे साथ दाँव-घात लगाकर देखो और मुझे मुहलत न दो
إِنِّی تَوَكَّلۡتُ عَلَى ٱللَّهِ رَبِّی وَرَبِّكُمۚ مَّا مِن دَاۤبَّةٍ إِلَّا هُوَ ءَاخِذُۢ بِنَاصِیَتِهَاۤۚ إِنَّ رَبِّی عَلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿56﴾
मै तो सिर्फ ख़ुदा पर भरोसा रखता हूँ जो मेरा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है और रुए ज़मीन पर जितने चलने वाले हैं सबकी चोटी उसी के साथ है इसमें तो शक़ ही नहीं कि मेरा परवरदिगार (इन्साफ की) सीधी राह पर है
मेरा भरोसा तो अल्लाह, अपने रब और तुम्हारे रब, पर है। चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है, उसकी चोटी तो उसी के हाथ में है। निस्संदेह मेरा रब सीधे मार्ग पर है
فَإِن تَوَلَّوۡا۟ فَقَدۡ أَبۡلَغۡتُكُم مَّاۤ أُرۡسِلۡتُ بِهِۦۤ إِلَیۡكُمۡۚ وَیَسۡتَخۡلِفُ رَبِّی قَوۡمًا غَیۡرَكُمۡ وَلَا تَضُرُّونَهُۥ شَیۡـًٔاۚ إِنَّ رَبِّی عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءٍ حَفِیظࣱ ﴿57﴾
इस पर भी अगर तुम उसके हुक्म से मुँह फेरे रहो तो जो हुक्म दे कर मैं तुम्हारे पास भेजा गया था उसे तो मैं यक़ीनन पहुँचा चुका और मेरा परवरदिगार (तुम्हारी नाफरमानी पर तुम्हें हलाक करें) तुम्हारे सिवा दूसरी क़ौम को तुम्हारा जानशीन करेगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते इसमें तो शक़ नहीं है कि मेरा परवरदिगार हर चीज़ का निगेहबान है
किन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो जो कुछ देकर मुझे तुम्हारी ओर भेजा गया था, वह तो मैं तुम्हें पहुँचा ही चुका। मेरा रब तुम्हारे स्थान पर दूसरी किसी क़ौम को लाएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। निस्संदेह मेरा रब हर चीज़ की देख-भाल कर रहा है।\"
وَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا نَجَّیۡنَا هُودࣰا وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ بِرَحۡمَةࣲ مِّنَّا وَنَجَّیۡنَـٰهُم مِّنۡ عَذَابٍ غَلِیظࣲ ﴿58﴾
और जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने हूद को और जो लोग उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से नजात दिया और उन सबको सख्त अज़ाब से बचा लिया
और जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने हूद और उसके साथ के ईमान लानेवालों को अपनी दयालुता से बचा लिया। और एक कठोर यातना से हमने उन्हें छुटकारा दिया
وَتِلۡكَ عَادࣱۖ جَحَدُوا۟ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ وَعَصَوۡا۟ رُسُلَهُۥ وَٱتَّبَعُوۤا۟ أَمۡرَ كُلِّ جَبَّارٍ عَنِیدࣲ ﴿59﴾
(ऐ रसूल) ये हालात क़ौमे आद के हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयतों से इन्कार किया और उसके पैग़म्बरों की नाफ़रमानी की और हर सरकश (दुश्मने ख़ुदा) के हुक्म पर चलते रहें
ये आद है, जिन्होंने अपने रब की आयतों का इनकार किया; उसके रसूलों की अवज्ञा की और हर सरकश विरोधी के पीछे चलते रहे
وَأُتۡبِعُوا۟ فِی هَـٰذِهِ ٱلدُّنۡیَا لَعۡنَةࣰ وَیَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ أَلَاۤ إِنَّ عَادࣰا كَفَرُوا۟ رَبَّهُمۡۗ أَلَا بُعۡدࣰا لِّعَادࣲ قَوۡمِ هُودࣲ ﴿60﴾
और इस दुनिया में भी लानत उनके पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी) देख क़ौमे आद ने अपने परवरदिगार का इन्कार किया देखो हूद की क़ौमे आद (हमारी बारगाह से) धुत्कारी पड़ी है
इस संसार में भी लानत ने उनका पीछा किया और क़ियामत के दिन भी, \"सुन लो! निस्संदेह आद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया। सुनो! विनष्ट हो आद, हूद की क़ौम।\"
۞ وَإِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمۡ صَـٰلِحࣰاۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۖ هُوَ أَنشَأَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ وَٱسۡتَعۡمَرَكُمۡ فِیهَا فَٱسۡتَغۡفِرُوهُ ثُمَّ تُوبُوۤا۟ إِلَیۡهِۚ إِنَّ رَبِّی قَرِیبࣱ مُّجِیبࣱ ﴿61﴾
और (हमने) क़ौमे समूद के पास उनके भाई सालेह को (पैग़म्बर बनाकर भेजा) तो उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की परसतिश करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं उसी ने तुमको ज़मीन (की मिट्टी) से पैदा किया और तुमको उसमें बसाया तो उससे मग़फिरत की दुआ मॉगों फिर उसकी बारगाह में तौबा करो (बेशक मेरा परवरदिगार (हर शख़्श के) क़रीब और सबकी सुनता और दुआ क़ुबूल करता है
समूद को और उसके भाई सालेह को भेजा। उसने कहा, \"ऐ मेरी क़़ौम के लोगों! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई अन्य पूज्य-प्रभु नहीं। उसी ने तुम्हें धरती से पैदा किया और उसमें तुम्हें बसायाय़ अतः उससे क्षमा माँगो; फिर उसकी ओर पलट आओ। निस्संदेह मेरा रब निकट है, प्रार्थनाओं को स्वीकार करनेवाला भी।\"
قَالُوا۟ یَـٰصَـٰلِحُ قَدۡ كُنتَ فِینَا مَرۡجُوࣰّا قَبۡلَ هَـٰذَاۤۖ أَتَنۡهَىٰنَاۤ أَن نَّعۡبُدَ مَا یَعۡبُدُ ءَابَاۤؤُنَا وَإِنَّنَا لَفِی شَكࣲّ مِّمَّا تَدۡعُونَاۤ إِلَیۡهِ مُرِیبࣲ ﴿62﴾
वह लोग कहने लगे ऐ सालेह इसके पहले तो तुमसे हमारी उम्मीदें वाबस्ता थी तो क्या अब तुम जिस चीज़ की परसतिश हमारे बाप दादा करते थे उसकी परसतिश से हमें रोकते हो और जिस दीन की तरफ तुम हमें बुलाते हो हम तो उसकी निस्बत ऐसे शक़ में पड़े हैं
उन्होंने कहा, \"ऐ सालेह! इससे पहले तू हमारे बीच ऐसा व्यक्ति था जिससे बड़ी आशाएँ थीं। क्या तू हमें उनको पूजने से रोकता है जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे है? जिनकी ओर तू हमें बुला रहा है उसके विषय में तो हमें संदेह है जो हमें दुविधा में डाले हुए है।\"
قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّی وَءَاتَىٰنِی مِنۡهُ رَحۡمَةࣰ فَمَن یَنصُرُنِی مِنَ ٱللَّهِ إِنۡ عَصَیۡتُهُۥۖ فَمَا تَزِیدُونَنِی غَیۡرَ تَخۡسِیرࣲ ﴿63﴾
कि उसने हैरत में डाल दिया है सालेह ने जवाब दिया ऐ मेरी क़ौम भला देखो तो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे अपनी (बारगाह) मे रहमत (नबूवत) अता की है इस पर भी अगर मै उसकी नाफ़रमानी करुँ तो ख़ुदा (के अज़ाब से बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा-फिर तुम सिवा नुक़सान के मेरा कुछ बढ़ा दोगे नहीं
उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगों! क्या तुमने सोचा? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी ओर से दयालुता प्रदान की है, तो यदि मैं उसकी अवज्ञा करूँ तो अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता करेगा? तुम तो और अधिक घाटे में डाल देने के अतिरिक्त मेरे हक़ में और कोई अभिवृद्धि नहीं करोगे
وَیَـٰقَوۡمِ هَـٰذِهِۦ نَاقَةُ ٱللَّهِ لَكُمۡ ءَایَةࣰۖ فَذَرُوهَا تَأۡكُلۡ فِیۤ أَرۡضِ ٱللَّهِۖ وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوۤءࣲ فَیَأۡخُذَكُمۡ عَذَابࣱ قَرِیبࣱ ﴿64﴾
ऐ मेरी क़ौम ये ख़ुदा की (भेजी हुई) ऊँटनी है तुम्हारे वास्ते (मेरी नबूवत का) एक मौजिज़ा है तो इसको (उसके हाल पर) छोड़ दो कि ख़ुदा की ज़मीन में (जहाँ चाहे) खाए और उसे कोई तकलीफ न पहुँचाओ
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी है। इसे छोड़ दो कि अल्लाह की धरती में खाए और इसे तकलीफ़ देने के लिए हाथ न लगाना अन्यथा समीपस्थ यातना तुम्हें आ लेगी।\"
فَعَقَرُوهَا فَقَالَ تَمَتَّعُوا۟ فِی دَارِكُمۡ ثَلَـٰثَةَ أَیَّامࣲۖ ذَ ٰلِكَ وَعۡدٌ غَیۡرُ مَكۡذُوبࣲ ﴿65﴾
(वरना) फिर तुम्हें फौरन ही (ख़ुदा का) अज़ाब ले डालेगा इस पर भी उन लोगों ने उसकी कूँचे काटकर (मार) डाला तब सालेह ने कहा अच्छा तीन दिन तक (और) अपने अपने घर में चैन (उड़ा लो)
किन्तु उन्होंने उसकी कूंचे काट डाली। इसपर उसने कहा, \"अपने घरों में तीन दिन और मज़े ले लो। यह ऐसा वादा है, जो झूठा सिद्ध न होगा।\"
فَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا نَجَّیۡنَا صَـٰلِحࣰا وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ بِرَحۡمَةࣲ مِّنَّا وَمِنۡ خِزۡیِ یَوۡمِىِٕذٍۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ ٱلۡقَوِیُّ ٱلۡعَزِیزُ ﴿66﴾
यही ख़ुदा का वायदा है जो कभी झूठा नहीं होता फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने सालेह और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से नजात दी और उस दिन की रुसवाई से बचा लिया इसमें शक़ नहीं कि तेरा परवरदिगार ज़बरदस्त ग़ालिब है
फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा, तो हमने अपनी दयालुता से सालेह को और उसके साथ के ईमान लानेवालों को बचा लिया, और उस दिन के अपमान से उन्हें सुरक्षित रखा। वास्तव में, तुम्हारा रब बड़ा शक्तिवान, प्रभुत्वशाली है
وَأَخَذَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ ٱلصَّیۡحَةُ فَأَصۡبَحُوا۟ فِی دِیَـٰرِهِمۡ جَـٰثِمِینَ ﴿67﴾
और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक सख्त चिघाड़ ने ले डाला तो वह लोग अपने अपने घरों में औंधें पड़े रह गये
और अत्याचार करनेवालों को एक भयंकर चिंघार ने आ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए,
كَأَن لَّمۡ یَغۡنَوۡا۟ فِیهَاۤۗ أَلَاۤ إِنَّ ثَمُودَا۟ كَفَرُوا۟ رَبَّهُمۡۗ أَلَا بُعۡدࣰا لِّثَمُودَ ﴿68﴾
और ऐसे मर मिटे कि गोया उनमें कभी बसे ही न थे तो देखो क़ौमे समूद ने अपने परवरदिगार की नाफरमानी की और (सज़ा दी गई) सुन रखो कि क़ौमे समूद (उसकी बारगाह से) धुत्कारी हुईहै
मानो वे वहाँ कभी बसे ही न थे। \"सुनो! समूद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया। सुन लो! फिटकार हो समूद पर!\"
وَلَقَدۡ جَاۤءَتۡ رُسُلُنَاۤ إِبۡرَ ٰهِیمَ بِٱلۡبُشۡرَىٰ قَالُوا۟ سَلَـٰمࣰاۖ قَالَ سَلَـٰمࣱۖ فَمَا لَبِثَ أَن جَاۤءَ بِعِجۡلٍ حَنِیذࣲ ﴿69﴾
और हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) इबराहीम के पास खुशख़बरी लेकर आए और उन्होंने (इबराहीम को) सलाम किया (इबराहीम ने) सलाम का जवाब दिया फिर इबराहीम एक बछड़े का भुना हुआ (गोश्त) ले आए
और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) इबराहीम के पास शुभ सूचना लेकर पहुँचे। उन्होंने कहा, \"सलाम हो!\" उसने भी कहा, \"सलाम हो।\" फिर उसने कुछ विलम्भ न किया, एक भुना हुआ बछड़ा ले आया
فَلَمَّا رَءَاۤ أَیۡدِیَهُمۡ لَا تَصِلُ إِلَیۡهِ نَكِرَهُمۡ وَأَوۡجَسَ مِنۡهُمۡ خِیفَةࣰۚ قَالُوا۟ لَا تَخَفۡ إِنَّاۤ أُرۡسِلۡنَاۤ إِلَىٰ قَوۡمِ لُوطࣲ ﴿70﴾
(और साथ खाने बैठें) फिर जब देखा कि उनके हाथ उसकी तरफ नहीं बढ़ते तो उनकी तरफ से बदगुमान हुए और जी ही जी में डर गए (उसको वह फरिश्ते समझे) और कहने लगे आप डरे नहीं हम तो क़ौम लूत की तरफ (उनकी सज़ा के लिए) भेजे गए हैं
किन्तु जब देखा कि उनके हाथ उसकी ओर नहीं बढ़ रहे है तो उसने उन्हें अजनबी समझा और दिल में उनसे डरा। वे बोले, \"डरो नहीं, हम तो लूत की क़ौम की ओर से भेजे गए है।\"
وَٱمۡرَأَتُهُۥ قَاۤىِٕمَةࣱ فَضَحِكَتۡ فَبَشَّرۡنَـٰهَا بِإِسۡحَـٰقَ وَمِن وَرَاۤءِ إِسۡحَـٰقَ یَعۡقُوبَ ﴿71﴾
और इबराहीम की बीबी (सायरा) खड़ी हुई थी वह (ये ख़बर सुनकर) हॅस पड़ी तो हमने (उन्हेंफ़रिश्तों के ज़रिए से) इसहाक़ के पैदा होने की खुशख़बरी दी और इसहाक़ के बाद याक़ूब की
उसकी स्त्री भी खड़ी थी। वह इसपर हँस पड़ी। फिर हमने उसको इसहाक़ और इसहाक़ के बाद याक़ूब की शुभ सूचना दी
قَالَتۡ یَـٰوَیۡلَتَىٰۤ ءَأَلِدُ وَأَنَا۠ عَجُوزࣱ وَهَـٰذَا بَعۡلِی شَیۡخًاۖ إِنَّ هَـٰذَا لَشَیۡءٌ عَجِیبࣱ ﴿72﴾
वह कहने लगी ऐ है क्या अब मै बच्चा जनने बैठॅूगी मैं तो बुढ़िया हूँ और ये मेरे मियॉ भी बूढे है ये तो एक बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है
वह बोली, \"हाय मेरा हतभाग्य! क्या मैं बच्चे को जन्म दूँगी, जबकि मैं वृद्धा और ये मेरे पति है बूढें? यह तो बड़ी ही अद्भुपत बात है!\"
قَالُوۤا۟ أَتَعۡجَبِینَ مِنۡ أَمۡرِ ٱللَّهِۖ رَحۡمَتُ ٱللَّهِ وَبَرَكَـٰتُهُۥ عَلَیۡكُمۡ أَهۡلَ ٱلۡبَیۡتِۚ إِنَّهُۥ حَمِیدࣱ مَّجِیدࣱ ﴿73﴾
वह फरिश्ते बोले (हाए) तुम ख़ुदा की कुदरत से ताज्जुब करती हो ऐ अहले बैत (नबूवत) तुम पर ख़ुदा की रहमत और उसकी बरकते (नाज़िल हो) इसमें शक़ नहीं कि वह क़ाबिल हम्द (वासना) बुज़ुर्ग हैं
वे बोले, \"क्या अल्लाह के आदेश पर तुम आश्चर्य करती हो? घरवालो! तुम लोगों पर तो अल्लाह की दयालुता और उसकी बरकतें है। वह निश्चय ही प्रशंसनीय, गौरववाला है।\"
فَلَمَّا ذَهَبَ عَنۡ إِبۡرَ ٰهِیمَ ٱلرَّوۡعُ وَجَاۤءَتۡهُ ٱلۡبُشۡرَىٰ یُجَـٰدِلُنَا فِی قَوۡمِ لُوطٍ ﴿74﴾
फिर जब इबराहीम (के दिल) से ख़ौफ जाता रहा और उनके पास (औलाद की) खुशख़बरी भी आ चुकी तो हम से क़ौमे लूत के बारे में झगड़ने लगे
फिर जब इबराहीम की घबराहट दूर हो गई और उसे शुभ सूचना भी मिली तो वह लूत की क़ौम के विषय में हम से झगड़ने लगा
إِنَّ إِبۡرَ ٰهِیمَ لَحَلِیمٌ أَوَّ ٰهࣱ مُّنِیبࣱ ﴿75﴾
बेशक इबराहीम बुर्दबार नरम दिल (हर बात में ख़ुदा की तरफ) रुजू (ध्यान) करने वाले थे
निस्संदेह इबराहीम बड़ा ही सहनशील, कोमल हृदय, हमारी ओर रुजू (प्रवृत्त) होनेवाला था
یَـٰۤإِبۡرَ ٰهِیمُ أَعۡرِضۡ عَنۡ هَـٰذَاۤۖ إِنَّهُۥ قَدۡ جَاۤءَ أَمۡرُ رَبِّكَۖ وَإِنَّهُمۡ ءَاتِیهِمۡ عَذَابٌ غَیۡرُ مَرۡدُودࣲ ﴿76﴾
(हमने कहा) ऐ इबराहीम इस बात में हट मत करो (इस बार में) जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार का था वह क़तअन आ चुका और इसमें शक़ नहीं कि उन पर ऐसा अज़ाब आने वाले वाला है
\"ऐ ईबराहीम! इसे छोड़ दो। तुम्हारे रब का आदेश आ चुका है और निश्चय ही उनपर न टलनेवाली यातना आनेवाली है।\"
وَلَمَّا جَاۤءَتۡ رُسُلُنَا لُوطࣰا سِیۤءَ بِهِمۡ وَضَاقَ بِهِمۡ ذَرۡعࣰا وَقَالَ هَـٰذَا یَوۡمٌ عَصِیبࣱ ﴿77﴾
जो किसी तरह टल नहीं सकता और जब हमारे भेजे हुए फरिश्ते (लड़को की सूरत में) लूत के पास आए तो उनके ख्याल से रजीदा हुए और उनके आने से तंग दिल हो गए और कहने लगे कि ये (आज का दिन) सख्त मुसीबत का दिन है
और जब हमारे दूत लूत के पास पहुँचे तो वह उनके कारण अप्रसन्न हुआ और उनके मामले में दिल तंग पाया। कहने लगा, \"यह तो बड़ा ही कठिन दिन है।\"
وَجَاۤءَهُۥ قَوۡمُهُۥ یُهۡرَعُونَ إِلَیۡهِ وَمِن قَبۡلُ كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ٱلسَّیِّـَٔاتِۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ هَـٰۤؤُلَاۤءِ بَنَاتِی هُنَّ أَطۡهَرُ لَكُمۡۖ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَلَا تُخۡزُونِ فِی ضَیۡفِیۤۖ أَلَیۡسَ مِنكُمۡ رَجُلࣱ رَّشِیدࣱ ﴿78﴾
और उनकी क़ौम (लड़को की आवाज़ सुनकर बुरे इरादे से) उनके पास दौड़ती हुई आई और ये लोग उसके क़ब्ल भी बुरे काम किया करते थे लूत ने (जब उनको) आते देखा तो कहा ऐ मेरी क़ौम ये मारी क़ौम की बेटियाँ (मौजूद हैं) उनसे निकाह कर लो ये तुम्हारीे वास्ते जायज़ और ज्यादा साफ सुथरी हैं तो खुदा से डरो और मुझे मेरे मेहमान के बारे में रुसवा न करो क्या तुम में से कोई भी समझदार आदमी नहीं है
उसकी क़ौम के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ पहुँचे। वे पहले से ही दुष्कर्म किया करते थे। उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधिवत विवाह के लिए) मौजूड है। ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र है। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरे अतिथियों के विषय में मुझे अपमानित न करो। क्या तुममें एक भी अच्छी समझ का आदमी नहीं?\"
قَالُوا۟ لَقَدۡ عَلِمۡتَ مَا لَنَا فِی بَنَاتِكَ مِنۡ حَقࣲّ وَإِنَّكَ لَتَعۡلَمُ مَا نُرِیدُ ﴿79﴾
उन (कम्बख्तो) न जवाब दिया तुम को खूब मालूम है कि तुम्हारी क़ौम की लड़कियों की हमें कुछ हाजत (जरूरत) नही है और जो बात हम चाहते है वह तो तुम ख़ूब जानते हो
उन्होंने कहा, \"तुझे तो मालूम है कि तेरी बेटियों से हमें कोई मतलब नहीं। और हम जो चाहते है, उसे तू भली-भाँति जानता है।\"
قَالَ لَوۡ أَنَّ لِی بِكُمۡ قُوَّةً أَوۡ ءَاوِیۤ إِلَىٰ رُكۡنࣲ شَدِیدࣲ ﴿80﴾
लूत ने कहा काश मुझमें तुम्हारे मुक़ाबले की कूवत होती या मै किसी मज़बूत क़िले मे पनाह ले सकता
उसने कहा, \"क्या ही अच्छा होता मुझमें तुमसे मुक़ाबले की शक्ति होती या मैं किसी सुदृढ़ आश्रय की शरण ही ले सकता।\"
قَالُوا۟ یَـٰلُوطُ إِنَّا رُسُلُ رَبِّكَ لَن یَصِلُوۤا۟ إِلَیۡكَۖ فَأَسۡرِ بِأَهۡلِكَ بِقِطۡعࣲ مِّنَ ٱلَّیۡلِ وَلَا یَلۡتَفِتۡ مِنكُمۡ أَحَدٌ إِلَّا ٱمۡرَأَتَكَۖ إِنَّهُۥ مُصِیبُهَا مَاۤ أَصَابَهُمۡۚ إِنَّ مَوۡعِدَهُمُ ٱلصُّبۡحُۚ أَلَیۡسَ ٱلصُّبۡحُ بِقَرِیبࣲ ﴿81﴾
वह फरिश्ते बोले ऐ लूत हम तुम्हारे परवरदिगार के भेजे हुए (फरिश्ते हैं तुम घबराओ नहीं) ये लोग तुम तक हरगिज़ (नहीं पहुँच सकते तो तुम कुछ रात रहे अपने लड़कों बालों समैत निकल भागो और तुममें से कोई इधर मुड़ कर भी न देखे मगर तुम्हारी बीबी कि उस पर भी यक़ीनन वह अज़ाब नाज़िल होने वाला है जो उन लोगों पर नाज़िल होगा और उन (के अज़ाब का) वायदा बस सुबह है क्या सुबह क़रीब नहीं
उन्होंने कहा, \"ऐ लूत! हम तुम्हारे रब के भेजे हुए है। वे तुम तक कदापि नहीं पहुँच सकते। अतः तुम रात के किसी हिस्सेमें अपने घरवालों को लेकर निकल जाओ और तुममें से कोई पीछे पलटकर न देखे। हाँ, तुम्हारी स्त्री का मामला और है। उनपर भी वही कुछ बीतनेवाला है, जो उनपर बीतेगा। निर्धारित समय उनके लिए प्रातःकाल का है। तो क्या प्रातःकाल निकट नहीं?\"
فَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا جَعَلۡنَا عَـٰلِیَهَا سَافِلَهَا وَأَمۡطَرۡنَا عَلَیۡهَا حِجَارَةࣰ مِّن سِجِّیلࣲ مَّنضُودࣲ ﴿82﴾
फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने (बस्ती की ज़मीन के तबके) उलट कर उसके ऊपर के हिस्से को नीचे का बना दिया और उस पर हमने खरन्जेदार पत्थर ताबड़ तोड़ बरसाए
फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने उसको तलपट कर दिया और उसपर ककरीले पत्थर ताबड़-तोड़ बरसाए,
مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَۖ وَمَا هِیَ مِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ بِبَعِیدࣲ ﴿83﴾
जिन पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से निशान बनाए हुए थे और वह बस्ती (उन) ज़ालिमों (कुफ्फ़ारे मक्का) से कुछ दूर नहीं
जो तुम्हारे रब के यहाँ चिन्हित थे। और वे अत्याचारियों से कुछ दूर भी नहीं
۞ وَإِلَىٰ مَدۡیَنَ أَخَاهُمۡ شُعَیۡبࣰاۚ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۖ وَلَا تَنقُصُوا۟ ٱلۡمِكۡیَالَ وَٱلۡمِیزَانَۖ إِنِّیۤ أَرَىٰكُم بِخَیۡرࣲ وَإِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمࣲ مُّحِیطࣲ ﴿84﴾
और हमने मदयन वालों के पास उनके भाई शुएब को पैग़म्बर बना कर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं और नाप और तौल में कोई कमी न किया करो मै तो तुम को आसूदगी (ख़ुशहाली) में देख रहा हूँ (फिर घटाने की क्या ज़रुरत है) और मै तो तुम पर उस दिन के अज़ाब से डराता हूँ जो (सबको) घेर लेगा
मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दही करो, उनके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। और नाप और तौल में कमी न करो। मैं तो तुम्हें अच्छी दशा में देख रहा हूँ, किन्तु मुझे तुम्हारे विषय में एक घेर लेनेवाले दिन की यातना का भय है
وَیَـٰقَوۡمِ أَوۡفُوا۟ ٱلۡمِكۡیَالَ وَٱلۡمِیزَانَ بِٱلۡقِسۡطِۖ وَلَا تَبۡخَسُوا۟ ٱلنَّاسَ أَشۡیَاۤءَهُمۡ وَلَا تَعۡثَوۡا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِینَ ﴿85﴾
और ऐ मेरी क़ौम पैमाने और तराज़ू ऌन्साफ़ के साथ पूरे पूरे रखा करो और लोगों को उनकी चीज़े कम न दिया करो और रुए ज़मीन में फसाद न फैलाते फिरो
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! इनसाफ़ के साथ नाप और तौल को पूरा रखो। और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ पैदा करनेवाले बनकर अपने मुँह को कुलषित न करो
بَقِیَّتُ ٱللَّهِ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَۚ وَمَاۤ أَنَا۠ عَلَیۡكُم بِحَفِیظࣲ ﴿86﴾
अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो ख़ुदा का बक़िया तुम्हारे वास्ते कही अच्छा है और मैं तो कुछ तुम्हारा निगेहबान नहीं
यदि तुम मोमिन हो तो जो अल्लाह के पास शेष रहता है वही तुम्हारे लिए उत्तम है। मैं तुम्हारे ऊपर कोई नियुक्त रखवाला नहीं हूँ।\"
قَالُوا۟ یَـٰشُعَیۡبُ أَصَلَوٰتُكَ تَأۡمُرُكَ أَن نَّتۡرُكَ مَا یَعۡبُدُ ءَابَاۤؤُنَاۤ أَوۡ أَن نَّفۡعَلَ فِیۤ أَمۡوَ ٰلِنَا مَا نَشَـٰۤؤُا۟ۖ إِنَّكَ لَأَنتَ ٱلۡحَلِیمُ ٱلرَّشِیدُ ﴿87﴾
वह लोग कहने लगे ऐ शुएब क्या तुम्हारी नमाज़ (जिसे तुम पढ़ा करते हो) तुम्हें ये सिखाती है कि जिन (बुतों) की परसतिश हमारे बाप दादा करते आए उन्हें हम छोड़ बैठें या हम अपने मालों में जो कुछ चाहे कर बैठें तुम ही तो बस एक बुर्दबार और समझदार (रह गए) हो
वे बोले, \"ऐ शुऐब! क्या तेरी नमाज़ तुझे यही सिखाती है कि उन्हें हम छोड़ दें जिन्हें हमारे बाप-दादा पूजते आए है या यह कि हम अपने माल का उपभोग अपनी इच्छानुसार न करें? बस एक तू ही तो बड़ा सहनशील, समझदार रह गया है!\"
قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّی وَرَزَقَنِی مِنۡهُ رِزۡقًا حَسَنࣰاۚ وَمَاۤ أُرِیدُ أَنۡ أُخَالِفَكُمۡ إِلَىٰ مَاۤ أَنۡهَىٰكُمۡ عَنۡهُۚ إِنۡ أُرِیدُ إِلَّا ٱلۡإِصۡلَـٰحَ مَا ٱسۡتَطَعۡتُۚ وَمَا تَوۡفِیقِیۤ إِلَّا بِٱللَّهِۚ عَلَیۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَإِلَیۡهِ أُنِیبُ ﴿88﴾
शुएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मै अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे (हलाल) रोज़ी खाने को दी है (तो मै भी तुम्हारी तरह हराम खाने लगूँ) और मै तो ये नहीं चाहता कि जिस काम से तुम को रोकूँ तुम्हारे बर ख़िलाफ (बदले) आप उसको करने लगूं मैं तो जहाँ तक मुझे बन पड़े इसलाह (भलाई) के सिवा (कुछ और) चाहता ही नहीं और मेरी ताईद तो ख़ुदा के सिवा और किसी से हो ही नहीं सकती इस पर मैने भरोसा कर लिया है और उसी की तरफ रुज़ू करता हूँ
उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी ओर से अच्छी आजीविका भी प्रदान की (तो झुठलाना मेरे लिए कितना हानिकारक होगा!) और मैं नहीं चाहता कि जिन बातों से मैं तुम्हें रोकता हूँ स्वयं स्वयं तुम्हारे विपरीत उनको करने लगूँ। मैं तो अपने बस भर केवल सुधार चाहता हूँ। मेरा काम बनना तो अल्लाह ही की सहायता से सम्भव है। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मैं रुजू करता हूँ
وَیَـٰقَوۡمِ لَا یَجۡرِمَنَّكُمۡ شِقَاقِیۤ أَن یُصِیبَكُم مِّثۡلُ مَاۤ أَصَابَ قَوۡمَ نُوحٍ أَوۡ قَوۡمَ هُودٍ أَوۡ قَوۡمَ صَـٰلِحࣲۚ وَمَا قَوۡمُ لُوطࣲ مِّنكُم بِبَعِیدࣲ ﴿89﴾
और ऐ मेरी क़ौमे मेरी ज़िद कही तुम से ऐसा जुर्म न करा दे जैसी मुसीबत क़ौम नूह या हूद या सालेह पर नाज़िल हुई थी वैसी ही मुसीबत तुम पर भी आ पड़े और लूत की क़ौम (का ज़माना) तो (कुछ ऐसा) तुमसे दूर नहीं (उन्हीं के इबरत हासिल करो
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मेरे प्रति तुम्हारा विरोध कहीं तुम्हें उस अपराध पर न उभारे कि तुमपर वही बीते जो नूह की क़ौम या हूद की क़ौम या सालेह की क़ौम पर बीत चुका है, और लूत की क़ौम तो तुमसे कुछ दूर भी नहीं।
وَٱسۡتَغۡفِرُوا۟ رَبَّكُمۡ ثُمَّ تُوبُوۤا۟ إِلَیۡهِۚ إِنَّ رَبِّی رَحِیمࣱ وَدُودࣱ ﴿90﴾
और अपने परवरदिगार से अपनी मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसी की बारगाह में तौबा करो बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा मोहब्बत वाला मेहरबान है
अपने रब से क्षमा माँगो और फिर उसकी ओर पलट आओ। मेरा रब तो बड़ा दयावन्त, बहुत प्रेम करनेवाला हैं।\"
قَالُوا۟ یَـٰشُعَیۡبُ مَا نَفۡقَهُ كَثِیرࣰا مِّمَّا تَقُولُ وَإِنَّا لَنَرَىٰكَ فِینَا ضَعِیفࣰاۖ وَلَوۡلَا رَهۡطُكَ لَرَجَمۡنَـٰكَۖ وَمَاۤ أَنتَ عَلَیۡنَا بِعَزِیزࣲ ﴿91﴾
और वह लोग कहने लगे ऐ शुएब जो बाते तुम कहते हो उनमें से अक्सर तो हमारी समझ ही में नहीं आयी और इसमें तो शक नहीं कि हम तुम्हें अपने लोगों में बहुत कमज़ोर समझते है और अगर तुम्हारा क़बीला न होता तो हम तुम को (कब का) संगसार कर चुके होते और तुम तो हम पर किसी तरह ग़ालिब नहीं आ सकते
उन्होंने कहा, \"ऐ शुऐब! तेरी बहुत-सी बातों को समझने में तो हम असमर्थ है। और हम तो तुझे देखते है कि तू हमारे मध्य अत्यन्त निर्बल है। यदि तेरे भाई-बन्धु न होते तो हम पत्थर मार-मारकर कभी का तुझे समाप्त कर चुके होते। तू इतने बल-बूतेवाला तो नहीं कि हमपर भारी हो।\"
قَالَ یَـٰقَوۡمِ أَرَهۡطِیۤ أَعَزُّ عَلَیۡكُم مِّنَ ٱللَّهِ وَٱتَّخَذۡتُمُوهُ وَرَاۤءَكُمۡ ظِهۡرِیًّاۖ إِنَّ رَبِّی بِمَا تَعۡمَلُونَ مُحِیطࣱ ﴿92﴾
शुएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम क्या मेरे कबीले का दबाव तुम पर ख़ुदा से भी बढ़ कर है (कि तुम को उसका ये ख्याल) और ख़ुदा को तुम लोगों ने अपने वास्ते पीछे डाल दिया है बेशक मेरा परवरदिगार तुम्हारे सब आमाल पर अहाता किए हुए है
उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! क्या मेरे भाई-बन्धु तुमपर अल्लाह से भी ज़्यादा भारी है कि तुमने उसे अपने पीछे डाल दिया? तुम जो कुछ भी करते हो निश्चय ही मेरे रब ने उसे अपने घेरे में ले रखा है
وَیَـٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُوا۟ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّی عَـٰمِلࣱۖ سَوۡفَ تَعۡلَمُونَ مَن یَأۡتِیهِ عَذَابࣱ یُخۡزِیهِ وَمَنۡ هُوَ كَـٰذِبࣱۖ وَٱرۡتَقِبُوۤا۟ إِنِّی مَعَكُمۡ رَقِیبࣱ ﴿93﴾
और ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) करो मैं भी (बजाए खुद) कुछ करता हू अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाज़िल होता है जा उसको (लोगों की नज़रों में) रुसवा कर देगा और (ये भी मालूम हो जाएगा कि) कौन झूठा है तुम भी मुन्तिज़र रहो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तेज़ार करता हूँ
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम अपनी जगह कर्म करते रहो, मैं भी कर रहा हूँ। शीघ्र ही तुमको ज्ञात हो जाएगा कि किसपर वह यातना आती है, जो उसे अपमानित करके रहेगी, और कौन है जो झूठा है! प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा कर रहा हूँ।\"
وَلَمَّا جَاۤءَ أَمۡرُنَا نَجَّیۡنَا شُعَیۡبࣰا وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ بِرَحۡمَةࣲ مِّنَّا وَأَخَذَتِ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ ٱلصَّیۡحَةُ فَأَصۡبَحُوا۟ فِی دِیَـٰرِهِمۡ جَـٰثِمِینَ ﴿94﴾
और जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने शुएब और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से बचा लिया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक चिंघाड़ ने ले डाला फिर तो वह सबके सब अपने घरों में औंधे पड़े रह गए
अन्ततः जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने अपनी दयालुता से शुऐब और उसके साथ के ईमान लानेवालों को बचा लिया। और अत्याचार करनेवालों को एक प्रचंड चिंघार ने आ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए,
كَأَن لَّمۡ یَغۡنَوۡا۟ فِیهَاۤۗ أَلَا بُعۡدࣰا لِّمَدۡیَنَ كَمَا بَعِدَتۡ ثَمُودُ ﴿95﴾
(और वह ऐसे मर मिटे) कि गोया उन बस्तियों में कभी बसे ही न थे सुन रखो कि जिस तरह समूद (ख़ुदा की बारगाह से) धुत्कारे गए उसी तरह अहले मदियन की भी धुत्कारी हुई
मानो वे वहाँ कभी बसे ही न थे। \"सुन लो! फिटकार है मदयनवालों पर, जैसे समूद पर फिटकार हुई!\"
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔایَـٰتِنَا وَسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینٍ ﴿96﴾
और बेशक हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और रौशन दलील देकर
और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और स्पष्ट प्रमाण के साथ
إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِی۟هِۦ فَٱتَّبَعُوۤا۟ أَمۡرَ فِرۡعَوۡنَۖ وَمَاۤ أَمۡرُ فِرۡعَوۡنَ بِرَشِیدࣲ ﴿97﴾
फिरऔन और उसके अम्र (सरदारों) के पास (पैग़म्बर बना कर) भेजा तो लोगों ने फिरऔन ही का हुक्म मान लिया (और मूसा की एक न सुनी) हालॉकि फिरऔन का हुक्म कुछ जॅचा समझा हुआ न था
फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा, किन्तु वे फ़िरऔन ही के कहने पर चले, हालाँकि फ़िरऔन की बात कोई ठीक बात न थी।
یَقۡدُمُ قَوۡمَهُۥ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فَأَوۡرَدَهُمُ ٱلنَّارَۖ وَبِئۡسَ ٱلۡوِرۡدُ ٱلۡمَوۡرُودُ ﴿98﴾
क़यामत के दिन वह अपनी क़ौम के आगे आगे चलेगा और उनको दोज़ख़ में ले जाकर झोंक देगा और ये लोग किस क़दर बड़े घाट उतारे गए
क़ियामत के दिन वह अपनी क़ौम के लोगों के आगे होगा - और उसने उन्हें आग में जा उतारा, और बहुत ही बुरा घाट है वह उतरने का!
وَأُتۡبِعُوا۟ فِی هَـٰذِهِۦ لَعۡنَةࣰ وَیَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۚ بِئۡسَ ٱلرِّفۡدُ ٱلۡمَرۡفُودُ ﴿99﴾
और (इस दुनिया) में भी लानत उनके पीछे पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी) क्या बुरा इनाम है जो उन्हें मिला
यहाँ भी लानत ने उनका पीछा किया और क़ियामत के दिन भी - बहुत ही बुरा पुरस्कार है यह जो किसी को दिया जाए!
ذَ ٰلِكَ مِنۡ أَنۢبَاۤءِ ٱلۡقُرَىٰ نَقُصُّهُۥ عَلَیۡكَۖ مِنۡهَا قَاۤىِٕمࣱ وَحَصِیدࣱ ﴿100﴾
(ऐ रसूल) ये चन्द बस्तियों के हालात हैं जो हम तुम से बयान करते हैं उनमें से बाज़ तो (उस वक्त तक) क़ायम हैं और बाज़ का तहस नहस हो गया
ये बस्तियों के कुछ वृत्तान्त हैं, जो हम तुम्हें सुना रहे है। इनमें कुछ तो खड़ी है और कुछ की फ़सल कट चुकी है
وَمَا ظَلَمۡنَـٰهُمۡ وَلَـٰكِن ظَلَمُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡۖ فَمَاۤ أَغۡنَتۡ عَنۡهُمۡ ءَالِهَتُهُمُ ٱلَّتِی یَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مِن شَیۡءࣲ لَّمَّا جَاۤءَ أَمۡرُ رَبِّكَۖ وَمَا زَادُوهُمۡ غَیۡرَ تَتۡبِیبࣲ ﴿101﴾
और हमने किसी तरह उन पर ज़ल्म नहीं किया बल्कि उन लोगों ने आप अपने ऊपर (नाफरमानी करके) ज़ुल्म किया फिर जब तुम्हारे परवरदिगार का (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो न उसके वह माबूद ही काम आए जिन्हें ख़ुदा को छोड़कर पुकारा करते थें और न उन माबूदों ने हलाक करने के सिवा कुछ फायदा ही पहुँचाया बल्कि उन्हीं की परसतिश की बदौलत अज़ाब आया
हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, बल्कि उन्होंने स्वयं अपने आप पर अत्याचार किया। फिर जब तेरे रब का आदेश आ गया तो उसके वे पूज्य, जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारा करते थे, उनके कुछ भी काम न आ सके। उन्होंने विनाश के अतिरिक्त उनके लिए किसी और चीज़ में अभिवृद्धि नहीं की
وَكَذَ ٰلِكَ أَخۡذُ رَبِّكَ إِذَاۤ أَخَذَ ٱلۡقُرَىٰ وَهِیَ ظَـٰلِمَةٌۚ إِنَّ أَخۡذَهُۥۤ أَلِیمࣱ شَدِیدٌ ﴿102﴾
और (ऐ रसूल) बस्तियों के लोगों की सरकशी से जब तुम्हारा परवरदिगार अज़ाब में पकड़ता है तो उसकी पकड़ ऐसी ही होती है बेशक पकड़ तो दर्दनाक (और सख्त) होती है
तेरे रब की पकड़ ऐसी ही होती है, जब वह किसी ज़ालिम बस्ती को पकड़ता है। निस्संदेह उसकी पकड़ बड़ी दुखद, अत्यन्त कठोर होती है
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّمَنۡ خَافَ عَذَابَ ٱلۡـَٔاخِرَةِۚ ذَ ٰلِكَ یَوۡمࣱ مَّجۡمُوعࣱ لَّهُ ٱلنَّاسُ وَذَ ٰلِكَ یَوۡمࣱ مَّشۡهُودࣱ ﴿103﴾
इसमें तो शक़ नहीं कि उस शख़्श के वास्ते जो अज़ाब आख़िरत से डरता है (हमारी कुदरत की) एक निशानी है ये वह रोज़ होगा कि सारे (जहाँन) के लोग जमा किए जाएंगें और यही वह दिन होगा कि (हमारी बारगाह में) सब हाज़िर किए जाएंगें
निश्चय ही इसमें उस व्यक्ति के लिए एक निशानी है जो आख़िरत की यातना से डरता हो। वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सारे ही लोग एकत्र किए जाएँगे और वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सब कुछ आँखों के सामने होगा,
وَمَا نُؤَخِّرُهُۥۤ إِلَّا لِأَجَلࣲ مَّعۡدُودࣲ ﴿104﴾
और हम बस एक मुअय्युन मुद्दत तक इसमें देर कर रहे है
हम उसे केवल थोड़ी अवधि के लिए ही लग रहे है;
یَوۡمَ یَأۡتِ لَا تَكَلَّمُ نَفۡسٌ إِلَّا بِإِذۡنِهِۦۚ فَمِنۡهُمۡ شَقِیࣱّ وَسَعِیدࣱ ﴿105﴾
जिस दिन वह आ पहुँचेगा तो बग़ैर हुक्मे ख़ुदा कोई शख़्श बात भी तो नहीं कर सकेगा फिर कुछ लोग उनमे से बदबख्त होगें और कुछ लोग नेक बख्त
जिस दिन वह आएगा, तो उसकी अनुमति के बिना कोई व्यक्ति बात तक न कर सकेगा। फिर (मानवों में) कोई तो उनमें अभागा होगा और कोई भाग्यशाली
فَأَمَّا ٱلَّذِینَ شَقُوا۟ فَفِی ٱلنَّارِ لَهُمۡ فِیهَا زَفِیرࣱ وَشَهِیقٌ ﴿106﴾
तो जो लोग बदबख्त है वह दोज़ख़ में होगें और उसी में उनकी हाए वाए और चीख़ पुकार होगी
तो जो अभागे होंगे, वे आग में होंगे; जहाँ उन्हें आर्तनाद करना और फुँकार मारना है
خَـٰلِدِینَ فِیهَا مَا دَامَتِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ إِلَّا مَا شَاۤءَ رَبُّكَۚ إِنَّ رَبَّكَ فَعَّالࣱ لِّمَا یُرِیدُ ﴿107﴾
वह लोग जब तक आसमान और ज़मीन में है हमेशा उसी मे रहेगें मगर जब तुम्हारा परवरदिगार (नजात देना) चाहे बेशक तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है कर ही डालता है
वहाँ वे सदैव रहेंगे, जब तक आकाश और धरती स्थिर रहें, बात यह है कि तुम्हारे रब की इच्छा ही चलेगी। तुम्हारा रब जो चाहे करे
۞ وَأَمَّا ٱلَّذِینَ سُعِدُوا۟ فَفِی ٱلۡجَنَّةِ خَـٰلِدِینَ فِیهَا مَا دَامَتِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ إِلَّا مَا شَاۤءَ رَبُّكَۖ عَطَاۤءً غَیۡرَ مَجۡذُوذࣲ ﴿108﴾
और जो लोग नेक बख्त हैं वह तो बेहश्त में होगें (और) जब तक आसमान व ज़मीन (बाक़ी) है वह हमेशा उसी में रहेगें मगर जब तेरा परवरदिगार चाहे (सज़ा देकर आख़िर में जन्नत में ले जाए
रहे वे जो भाग्यशाली होंगे तो वे जन्नत में होंगे, जहाँ वे सदैव रहेंगे जब तक आकाश और धरती स्थिर रहें। बात यह है कि तुम्हारे रब की इच्छा ही चलेगी। यह एक ऐसा उपहार है, जिसका सिलसिला कभी न टूटेगा
فَلَا تَكُ فِی مِرۡیَةࣲ مِّمَّا یَعۡبُدُ هَـٰۤؤُلَاۤءِۚ مَا یَعۡبُدُونَ إِلَّا كَمَا یَعۡبُدُ ءَابَاۤؤُهُم مِّن قَبۡلُۚ وَإِنَّا لَمُوَفُّوهُمۡ نَصِیبَهُمۡ غَیۡرَ مَنقُوصࣲ ﴿109﴾
ये वह बख़्शिस है जो कभी मनक़तआ (खत्म) न होगी तो ये लोग (ख़ुदा के अलावा) जिसकी परसतिश करते हैं तुम उससे शक़ में न पड़ना ये लोग तो बस वैसी इबादत करते हैं जैसी उनसे पहले उनके बाप दादा करते थे और हम ज़रुर (क़यामत के दिन) उनको (अज़ाब का) पूरा पूरा हिस्सा बग़ैर कम किए देगें
अतः जिनको ये पूज रहे है, उनके विषय में तुझे कोई संदेह न हो। ये तो बस उसी तरह पूजा किए जा रहे है, जिस तरह इससे पहले इनके बाप-दादा पूजा करते रहे हैं। हम तो इन्हें इनका हिस्सा बिना किसी कमी के पूरा-पूरा देनेवाले हैं
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ فَٱخۡتُلِفَ فِیهِۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَفِی شَكࣲّ مِّنۡهُ مُرِیبࣲ ﴿110﴾
और हमने मूसा को किताब तौरैत अता की तो उसमें (भी) झगड़े डाले गए और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हुक्म कोइ पहले ही न हो चुका होता तो उनके दरमियान (कब का) फैसला यक़ीनन हो गया होता और ये लोग (कुफ्फ़ारे मक्का) भी इस (क़ुरान) की तरफ से बहुत गहरे शक़ में पड़े हैं
हम मूसा को भी किताब दे चुके है। फिर उसमें भी विभेद किया गया था। यदि तुम्हारे रब की ओर से एक बात पहले ही निश्चित न कर दी गई होती तो उनके बीच कभी का फ़ैसला कर दिया गया होता। ये उसकी ओर से असमंजस में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए है
وَإِنَّ كُلࣰّا لَّمَّا لَیُوَفِّیَنَّهُمۡ رَبُّكَ أَعۡمَـٰلَهُمۡۚ إِنَّهُۥ بِمَا یَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿111﴾
और इसमें तो शक़ ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनकी कारस्तानियों का बदला भरपूर देगा (क्योंकि) जो उनकी करतूतें हैं उससे वह खूब वाक़िफ है
निश्चय ही समय आने पर एक-एक को, जितने भी है उनको तुम्हारा रब उनका किया पूरा-पूरा देकर रहेगा। वे जो कुछ कर रहे हैं, निस्संदेह उसे उसकी पूरी ख़बर है
فَٱسۡتَقِمۡ كَمَاۤ أُمِرۡتَ وَمَن تَابَ مَعَكَ وَلَا تَطۡغَوۡا۟ۚ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿112﴾
तो (ऐ रसूल) जैसा तुम्हें हुक्म दिया है तुम और वह लोग भी जिन्होंने तुम्हारे साथ (कुफ्र से) तौबा की है ठीक साबित क़दम रहो और सरकशी न करो (क्योंकि) तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह यक़ीनन देख रहा है
अतः जैसा तुम्हें आदेश हुआ है, जमें रहो और तुम्हारे साथ के तौबा करनेवाले भी जमें रहें, और सीमोल्लंघन न करना। जो कुछ भी तुम करते हो, निश्चय ही वह उसे देख रहा है
وَلَا تَرۡكَنُوۤا۟ إِلَى ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ فَتَمَسَّكُمُ ٱلنَّارُ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِنۡ أَوۡلِیَاۤءَ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ ﴿113﴾
और (मुसलमानों) जिन लोगों ने (हमारी नाफरमानी करके) अपने ऊपर ज़ुल्म किया है उनकी तरफ माएल (झुकना) न होना और वरना तुम तक भी (दोज़ख़) की आग आ लपटेगी और ख़ुदा के सिवा और लोग तुम्हारे सरपरस्त भी नहीं हैं फिर तुम्हारी मदद कोई भी नहीं करेगा
उन लोगों की ओर तनिक भी न झुकना, जिन्होंने अत्याचार की नीति अपनाई हैं, अन्यथा आग तुम्हें आ लिपटेगी - और अल्लाह से हटकर तुम्हारा कोई संरक्षक मित्र नहीं - फिर तुम्हें कोई सहायता भी न मिलेगी
وَأَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ طَرَفَیِ ٱلنَّهَارِ وَزُلَفࣰا مِّنَ ٱلَّیۡلِۚ إِنَّ ٱلۡحَسَنَـٰتِ یُذۡهِبۡنَ ٱلسَّیِّـَٔاتِۚ ذَ ٰلِكَ ذِكۡرَىٰ لِلذَّ ٰكِرِینَ ﴿114﴾
और (ऐ रसूल) दिन के दोनो किनारे और कुछ रात गए नमाज़ पढ़ा करो (क्योंकि) नेकियाँ यक़ीनन गुनाहों को दूर कर देती हैं और (हमारी) याद करने वालो के लिए ये (बातें) नसीहत व इबरत हैं
और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों सिरों पर और रात के कुछ हिस्से में। निस्संदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती है। यह याद रखनेवालों के लिए एक अनुस्मरण है
وَٱصۡبِرۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا یُضِیعُ أَجۡرَ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿115﴾
और (ऐ रसूल) तुम सब्र करो क्योंकि ख़ुदा नेकी करने वालों का अज्र बरबाद नहीं करता
और धैर्य से काम लो, इसलिए कि अल्लाह सुकर्मियों को बदला अकारथ नहीं करता;
فَلَوۡلَا كَانَ مِنَ ٱلۡقُرُونِ مِن قَبۡلِكُمۡ أُو۟لُوا۟ بَقِیَّةࣲ یَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡفَسَادِ فِی ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّمَّنۡ أَنجَیۡنَا مِنۡهُمۡۗ وَٱتَّبَعَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ مَاۤ أُتۡرِفُوا۟ فِیهِ وَكَانُوا۟ مُجۡرِمِینَ ﴿116﴾
फिर जो लोग तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनमें कुछ लोग ऐसे अक़ल वाले क्यों न हुए जो (लोगों को) रुए ज़मीन पर फसाद फैलाने से रोका करते (ऐसे लोग थे तो) मगर बहुत थोड़े से और ये उन्हीं लोगों से थे जिनको हमने अज़ाब से बचा लिया और जिन लोगों ने नाफरमानी की थी वह उन्हीं (लज्ज़तों) के पीछे पड़े रहे और जो उन्हें दी गई थी और ये लोग मुजरिम थे ही
फिर तुमसे पहले जो नस्लें गुज़र चुकी है उनमें ऐसे भले-समझदार क्यों न हुए जो धरती में बिगाड़ से रोकते, उन थोड़े-से लोगों के सिवा जिनको उनमें से हमने बचा लिया। अत्याचारी लोग तो उसी सुख-सामग्री के पीछे पड़े रहे, जिसमें वे रखे गए थे। वे तो थे ही अपराधी
وَمَا كَانَ رَبُّكَ لِیُهۡلِكَ ٱلۡقُرَىٰ بِظُلۡمࣲ وَأَهۡلُهَا مُصۡلِحُونَ ﴿117﴾
और तुम्हारा परवरदिगार ऐसा (बे इन्साफ) कभी न था कि बस्तियों को जबरदस्ती उजाड़ देता और वहाँ के लोग नेक चलन हों
तुम्हारा रब तो ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अकारण विनष्ट कर दे, जबकि वहाँ के निवासी बनाव और सुधार में लगे हों
وَلَوۡ شَاۤءَ رَبُّكَ لَجَعَلَ ٱلنَّاسَ أُمَّةࣰ وَ ٰحِدَةࣰۖ وَلَا یَزَالُونَ مُخۡتَلِفِینَ ﴿118﴾
और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो बेशक तमाम लोगों को एक ही (किस्म की) उम्मत बना देता (मगर) उसने न चाहा इसी (वजह से) लोग हमेशा आपस में फूट डाला करेगें
और यदि तुम्हारा रब चाहता तो वह सारे मनुष्यों को एक समुदाय बना देता, किन्तु अब तो वे सदैव विभेद करते ही रहेंगे,
إِلَّا مَن رَّحِمَ رَبُّكَۚ وَلِذَ ٰلِكَ خَلَقَهُمۡۗ وَتَمَّتۡ كَلِمَةُ رَبِّكَ لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ ٱلۡجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِینَ ﴿119﴾
मगर जिस पर तुम्हारा परवरदिगार रहम फरमाए और इसलिए तो उसने उन लोगों को पैदा किया (और इसी वजह से तो) तुम्हारा परवरदिगार का हुक्म क़तई पूरा होकर रहा कि हम यक़ीनन जहन्नुम को तमाम जिन्नात और आदमियों से भर देगें
सिवाय उनके जिनपर तुम्हारा रब दया करे और इसी के लिए उसने उन्हें पैदा किया है, और तुम्हारे रब की यह बात पूरी होकर रही कि \"मैं जहन्नम को अपराधी जिन्नों और मनुष्यों सबसे भरकर रहूँगा।\"
وَكُلࣰّا نَّقُصُّ عَلَیۡكَ مِنۡ أَنۢبَاۤءِ ٱلرُّسُلِ مَا نُثَبِّتُ بِهِۦ فُؤَادَكَۚ وَجَاۤءَكَ فِی هَـٰذِهِ ٱلۡحَقُّ وَمَوۡعِظَةࣱ وَذِكۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿120﴾
और (ऐ रसूल) पैग़म्बरों के हालत में से हम उन तमाम क़िस्सों को तुम से बयान किए देते हैं जिनसे हम तुम्हारे दिल को मज़बूत कर देगें और उन्हीं क़िस्सों में तुम्हारे पास हक़ (क़ुरान) और मोमिनीन के लिए नसीहत और याद दहानी भी आ गई
रसूलों के वृत्तान्तों में से हर वह कथा जो हम तुम्हें सुनाते है उसके द्वारा हम तुम्हारे हृदय को सुदृढ़ करते हैं। और इसमें तुम्हारे पास सत्य आ गया है और मोमिनों के लिए उपदेश और अनुस्मरण भी
وَقُل لِّلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ ٱعۡمَلُوا۟ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنَّا عَـٰمِلُونَ ﴿121﴾
और (ऐ रसूल) जो लोग ईमान नहीं लाते उनसे कहो कि तुम बजाए ख़ुद अमल करो हम भी कुछ (अमल) करते हैं
जो लोग ईमान नहीं ला रहे हैं उनसे कह दो, \"तुम अपनी जगह कर्म किए जाओ, हम भी कर्म कर रहे है
وَٱنتَظِرُوۤا۟ إِنَّا مُنتَظِرُونَ ﴿122﴾
(नतीजे का) तुम भी इन्तज़ार करो हम (भी) मुन्तिज़िर है
तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी प्रतीक्षा कर रहे है।\"
وَلِلَّهِ غَیۡبُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَإِلَیۡهِ یُرۡجَعُ ٱلۡأَمۡرُ كُلُّهُۥ فَٱعۡبُدۡهُ وَتَوَكَّلۡ عَلَیۡهِۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿123﴾
और सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों का इल्म ख़ास ख़ुदा ही को है और उसी की तरफ हर काम हिर फिर कर लौटता है तुम उसी की इबादत करो और उसी पर भरोसा रखो और जो कुछ तुम लोग करते हो उससे ख़ुदा बेख़बर नहीं
अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों और धरती में छिपा है, और हर मामला उसी की ओर पलटता है। अतः उसी की बन्दगी करो और उसी पर भरोसा रखो। जो कुछ तुम करते हो, उससे तुम्हारा रब बेख़बर नहीं है