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Surah The cave [Al-Kahf] in Hindi
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِیۤ أَنزَلَ عَلَىٰ عَبۡدِهِ ٱلۡكِتَـٰبَ وَلَمۡ یَجۡعَل لَّهُۥ عِوَجَاۜ ﴿1﴾
हर तरह की तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर किताब (क़ुरान) नाज़िल की और उसमें किसी तरह की कज़ी (ख़राबी) न रखी
प्रशंसा अल्लाह के लिए है जिसने अपने बन्दे पर यह किताब अवतरित की और उसमें (अर्थात उस बन्दे में) कोई टेढ़ नहीं रखी,
قَیِّمࣰا لِّیُنذِرَ بَأۡسࣰا شَدِیدࣰا مِّن لَّدُنۡهُ وَیُبَشِّرَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ٱلَّذِینَ یَعۡمَلُونَ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أَنَّ لَهُمۡ أَجۡرًا حَسَنࣰا ﴿2﴾
बल्कि हर तरह से सधा ताकि जो सख्त अज़ाब ख़ुदा की बारगाह से काफिरों पर नाज़िल होने वाला है उससे लोगों को डराए और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम किए हैं उनको इस बात की खुशख़बरी दे की उनके लिए बहुत अच्छा अज्र (व सवाब) मौजूद है
ठीक और दूरुस्त, ताकि एक कठोर आपदा से सावधान कर दे जो उसकी और से आ पड़ेगी। और मोमिनों को, जो अच्छे कर्म करते है, शुभ सूचना दे दे कि उनके लिए अच्छा बदला है;
مَّـٰكِثِینَ فِیهِ أَبَدࣰا ﴿3﴾
जिसमें वह हमेशा (बाइत्मेनान) तमाम रहेगें
जिसमें वे सदैव रहेंगे
وَیُنذِرَ ٱلَّذِینَ قَالُوا۟ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدࣰا ﴿4﴾
और जो लोग इसके क़ाएल हैं कि ख़ुदा औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ
और उनको सावधान कर दे, जो कहते है, \"अल्लाह सन्तानवाला है।\"
مَّا لَهُم بِهِۦ مِنۡ عِلۡمࣲ وَلَا لِـَٔابَاۤىِٕهِمۡۚ كَبُرَتۡ كَلِمَةࣰ تَخۡرُجُ مِنۡ أَفۡوَ ٰهِهِمۡۚ إِن یَقُولُونَ إِلَّا كَذِبࣰا ﴿5﴾
न तो उन्हीं को उसकी कुछ खबर है और न उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी सख्त बात है जो उनके मुँह से निकलती है ये लोग झूठ मूठ के सिवा (कुछ और) बोलते ही नहीं
इसका न उन्हें कोई ज्ञान है और न उनके बाप-दादा ही को था। बड़ी बात है जो उनके मुँह से निकलती है। वे केवल झूठ बोलते है
فَلَعَلَّكَ بَـٰخِعࣱ نَّفۡسَكَ عَلَىٰۤ ءَاثَـٰرِهِمۡ إِن لَّمۡ یُؤۡمِنُوا۟ بِهَـٰذَا ٱلۡحَدِیثِ أَسَفًا ﴿6﴾
तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग इस बात को न माने तो यायद तुम मारे अफसोस के उनके पीछे अपनी जान दे डालोगे
अच्छा, शायद उनके पीछे, यदि उन्होंने यह बात न मानी तो तुम अफ़सोस के मारे अपने प्राण ही खो दोगे!
إِنَّا جَعَلۡنَا مَا عَلَى ٱلۡأَرۡضِ زِینَةࣰ لَّهَا لِنَبۡلُوَهُمۡ أَیُّهُمۡ أَحۡسَنُ عَمَلࣰا ﴿7﴾
और जो कुछ रुए ज़मीन पर है हमने उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हम लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें से कौन सबसे अच्छा चलन का है
धरती पर जो कुछ है उसे तो हमने उसकी शोभा बनाई है, ताकि हम उनकी परीक्षा लें कि उनमें कर्म की दृष्टि से कौन उत्तम है
وَإِنَّا لَجَـٰعِلُونَ مَا عَلَیۡهَا صَعِیدࣰا جُرُزًا ﴿8﴾
और (फिर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी इस पर है (सबको मिटा करके) चटियल मैदान बना देगें
और जो कुछ उसपर है उसे तो हम एक चटियल मैदान बना देनेवाले है
أَمۡ حَسِبۡتَ أَنَّ أَصۡحَـٰبَ ٱلۡكَهۡفِ وَٱلرَّقِیمِ كَانُوا۟ مِنۡ ءَایَـٰتِنَا عَجَبًا ﴿9﴾
(ऐ रसूल) क्या तुम ये ख्याल करते हो कि असहाब कहफ व रक़ीम (खोह) और (तख्ती वाले) हमारी (क़ुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे
क्या तुम समझते हो कि गुफा और रक़ीमवाले हमारी अद्भु त निशानियों में से थे?
إِذۡ أَوَى ٱلۡفِتۡیَةُ إِلَى ٱلۡكَهۡفِ فَقَالُوا۟ رَبَّنَاۤ ءَاتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحۡمَةࣰ وَهَیِّئۡ لَنَا مِنۡ أَمۡرِنَا رَشَدࣰا ﴿10﴾
कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर
जब उन नवयुवकों ने गुफ़ा में जाकर शरण ली तो कहा, \"हमारे रब! हमें अपने यहाँ से दयालुता प्रदान कर और हमारे लिए हमारे अपने मामले को ठीक कर दे।\"
فَضَرَبۡنَا عَلَىٰۤ ءَاذَانِهِمۡ فِی ٱلۡكَهۡفِ سِنِینَ عَدَدࣰا ﴿11﴾
तब हमने कई बरस तक ग़ार में उनके कानों पर पर्दे डाल दिए (उन्हें सुला दिया)
फिर हमने उस गुफा में कई वर्षो के लिए उनके कानों पर परदा डाल दिया
ثُمَّ بَعَثۡنَـٰهُمۡ لِنَعۡلَمَ أَیُّ ٱلۡحِزۡبَیۡنِ أَحۡصَىٰ لِمَا لَبِثُوۤا۟ أَمَدࣰا ﴿12﴾
फिर हमने उन्हें चौकाया ताकि हम देखें कि दो गिरोहों में से किसी को (ग़ार में) ठहरने की मुद्दत खूब याद है
फिर हमने उन्हें भेजा, ताकि मालूम करें कि दोनों गिरोहों में से किसने याद रखा है कि कितनी अवधि तक वे रहे
نَّحۡنُ نَقُصُّ عَلَیۡكَ نَبَأَهُم بِٱلۡحَقِّۚ إِنَّهُمۡ فِتۡیَةٌ ءَامَنُوا۟ بِرَبِّهِمۡ وَزِدۡنَـٰهُمۡ هُدࣰى ﴿13﴾
(ऐ रसूल) अब हम उनका हाल तुमसे बिल्कुल ठीक तहक़ीक़ातन (यक़ीन के साथ) बयान करते हैं वह चन्द जवान थे कि अपने (सच्चे) परवरदिगार पर ईमान लाए थे और हम ने उनकी सोच समझ और ज्यादा कर दी है
हम तुन्हें ठीक-ठीक उनका वृत्तान्त सुनाते है। वे कुछ नवयुवक थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, और हमने उन्हें मार्गदर्शन में बढ़ोत्तरी प्रदान की
وَرَبَطۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ إِذۡ قَامُوا۟ فَقَالُوا۟ رَبُّنَا رَبُّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ لَن نَّدۡعُوَا۟ مِن دُونِهِۦۤ إِلَـٰهࣰاۖ لَّقَدۡ قُلۡنَاۤ إِذࣰا شَطَطًا ﴿14﴾
और हमने उनकी दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिराह लगा दी (कि जब दक़ियानूस बादशाह ने कुफ्र पर मजबूर किया) तो उठ खड़े हुए (और बे ताम्मुल (खटके)) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेगें
और हमने उनके दिलों को सुदृढ़ कर दिया। जब वे उठे तो उन्होंने कहा, \"हमारा रब तो वही है जो आकाशों और धरती का रब है। हम उससे इतर किसी अन्य पूज्य को कदापि न पुकारेंगे। यदि हमने ऐसा किया तब तो हमारी बात हक़ से बहुत हटी हुई होगी
هَـٰۤؤُلَاۤءِ قَوۡمُنَا ٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةࣰۖ لَّوۡلَا یَأۡتُونَ عَلَیۡهِم بِسُلۡطَـٰنِۭ بَیِّنࣲۖ فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰا ﴿15﴾
अगर हम ऐसा करे तो यक़ीनन हमने अक़ल से दूर की बात कही (अफसोस एक) ये हमारी क़ौम के लोग हैं कि जिन्होनें ख़ुदा को छोड़कर (दूसरे) माबूद बनाए हैं (फिर) ये लोग उनके (माबूद होने) की कोई सरीही (खुली) दलील क्यों नहीं पेश करते और जो शख़्श ख़ुदा पर झूट बोहतान बाँधे उससे ज्यादा ज़ालिम और कौन होगा
ये हमारी क़ौम के लोग है, जिन्होंने उससे इतर कुछ अन्य पूज्य-प्रभु बना लिए है। आख़िर ये उनके हक़ में कोई स्पष्ट, प्रमाण क्यों नहीं लाते! भला उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो झूठ घड़कर अल्लाह पर थोपे?
وَإِذِ ٱعۡتَزَلۡتُمُوهُمۡ وَمَا یَعۡبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ فَأۡوُۥۤا۟ إِلَى ٱلۡكَهۡفِ یَنشُرۡ لَكُمۡ رَبُّكُم مِّن رَّحۡمَتِهِۦ وَیُهَیِّئۡ لَكُم مِّنۡ أَمۡرِكُم مِّرۡفَقࣰا ﴿16﴾
(फिर बाहम कहने लगे कि) जब तुमने उन लोगों से और ख़ुदा के सिवा जिन माबूदों की ये लोग परसतिश करते हैं उनसे किनारा कशी करली तो चलो (फलॉ) ग़ार में जा बैठो और तुम्हारा परवरदिगार अपनी रहमत तुम पर वसीह कर देगा और तुम्हारा काम में तुम्हारे लिए आसानी के सामान मुहय्या करेगा
और जबकि इनसे तुम अलग हो गए हो और उनसे भी जिनको अल्लाह के सिवा ये पूजते है, तो गुफा में चलकर शरण लो। तुम्हारा रब तुम्हारे लिए अपनी दयालुता का दामन फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे अपने काम से सम्बन्ध में सुगमता का उपकरण उपलब्ध कराएगा।\"
۞ وَتَرَى ٱلشَّمۡسَ إِذَا طَلَعَت تَّزَ ٰوَرُ عَن كَهۡفِهِمۡ ذَاتَ ٱلۡیَمِینِ وَإِذَا غَرَبَت تَّقۡرِضُهُمۡ ذَاتَ ٱلشِّمَالِ وَهُمۡ فِی فَجۡوَةࣲ مِّنۡهُۚ ذَ ٰلِكَ مِنۡ ءَایَـٰتِ ٱللَّهِۗ مَن یَهۡدِ ٱللَّهُ فَهُوَ ٱلۡمُهۡتَدِۖ وَمَن یُضۡلِلۡ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ وَلِیࣰّا مُّرۡشِدࣰا ﴿17﴾
(ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है और जब ग़ुरुब (डुबता) होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ (बड़ी) जगह में (लेटे) हैं ये ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे
और तुम सूर्य को उसके उदित होते समय देखते तो दिखाई देता कि वह उनकी गुफा से दाहिनी ओर को बचकर निकल जाता है और जब अस्त होता है तो उनकी बाई ओर से कतराकर निकल जाता है। और वे है कि उस (गुफा) के एक विस्तृत स्थान में हैं। यह अल्लाह की निशानियों में से है। जिसे अल्लाह मार्ग दिखाए, वही मार्ग पानेवाला है और जिसे वह भटकता छोड़ दे उसका तुम कोई सहायक मार्गदर्शक कदापि न पाओगे
وَتَحۡسَبُهُمۡ أَیۡقَاظࣰا وَهُمۡ رُقُودࣱۚ وَنُقَلِّبُهُمۡ ذَاتَ ٱلۡیَمِینِ وَذَاتَ ٱلشِّمَالِۖ وَكَلۡبُهُم بَـٰسِطࣱ ذِرَاعَیۡهِ بِٱلۡوَصِیدِۚ لَوِ ٱطَّلَعۡتَ عَلَیۡهِمۡ لَوَلَّیۡتَ مِنۡهُمۡ فِرَارࣰا وَلَمُلِئۡتَ مِنۡهُمۡ رُعۡبࣰا ﴿18﴾
तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हालॉकि वह (गहरी नींद में) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ और कभी बायीं तरफ उनकी करवट बदलवा देते हैं और उनका कुत्ताा अपने आगे के दोनो पाँव फैलाए चौखट पर डटा बैठा है (उनकी ये हालत है कि) अगर कहीं तू उनको झाक कर देखे तो उलटे पाँव ज़रुर भाग खड़े हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए
और तुम समझते कि वे जाग रहे है, हालाँकि वे सोए हुए होते। हम उन्हें दाएँ और बाएँ फेरते और उनका कुत्ता ड्योढ़ी पर अपनी दोनों भुजाएँ फैलाए हुए होता। यदि तुम उन्हें कहीं झाँककर देखते तो उनके पास से उलटे पाँव भाग खड़े होते और तुममें उसका भय समा जाता
وَكَذَ ٰلِكَ بَعَثۡنَـٰهُمۡ لِیَتَسَاۤءَلُوا۟ بَیۡنَهُمۡۚ قَالَ قَاۤىِٕلࣱ مِّنۡهُمۡ كَمۡ لَبِثۡتُمۡۖ قَالُوا۟ لَبِثۡنَا یَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ یَوۡمࣲۚ قَالُوا۟ رَبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِمَا لَبِثۡتُمۡ فَٱبۡعَثُوۤا۟ أَحَدَكُم بِوَرِقِكُمۡ هَـٰذِهِۦۤ إِلَى ٱلۡمَدِینَةِ فَلۡیَنظُرۡ أَیُّهَاۤ أَزۡكَىٰ طَعَامࣰا فَلۡیَأۡتِكُم بِرِزۡقࣲ مِّنۡهُ وَلۡیَتَلَطَّفۡ وَلَا یُشۡعِرَنَّ بِكُمۡ أَحَدًا ﴿19﴾
और (जिस तरह अपनी कुदरत से उनको सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भई आख़िर इस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे (अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारे परवरदिगार ही (कुछ तुम से) बेहतर जानता है (अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रुपया देकर शहर की तरफ भेजो तो वह (जाकर) देखभाल ले कि वहाँ कौन सा खाना बहुत अच्छा है फिर उसमें से (ज़रुरत भर) खाना तुम्हारे वास्ते ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे
और इसी तरह हमने उन्हें उठा खड़ा किया कि वे आपस में पूछताछ करें। उनमें एक कहनेवाले ने कहा, \"तुम कितना ठहरे रहे?\" वे बोले, \"हम यही कोई एक दिन या एक दिन से भी कम ठहरें होंगे।\" उन्होंने कहा, \"जितना तुम यहाँ ठहरे हो उसे तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है। अब अपने में से किसी को यह चाँदी का सिक्का देकर नगर की ओर भेजो। फिर वह देख ले कि उसमें सबसे अच्छा खाना किस जगह मिलता है। तो उसमें से वह तुम्हारे लिए कुछ खाने को ले आए और चाहिए की वह नरमी और होशियारी से काम ले और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे
إِنَّهُمۡ إِن یَظۡهَرُوا۟ عَلَیۡكُمۡ یَرۡجُمُوكُمۡ أَوۡ یُعِیدُوكُمۡ فِی مِلَّتِهِمۡ وَلَن تُفۡلِحُوۤا۟ إِذًا أَبَدࣰا ﴿20﴾
इसमें शक़ नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेलाअ हो गई तो बस फिर तुम को संगसार ही कर देंगें या फिर तुम को अपने दीन की तरफ फेर कर ले जाएँगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होगे
यदि वे कहीं तुम्हारी ख़बर पा जाएँगे तो पथराव करके तुम्हें मार डालेंगे या तुम्हें अपने पंथ में लौटा ले जाएँगे और तब तो तुम कभी भी सफल न पो सकोगे।\"
وَكَذَ ٰلِكَ أَعۡثَرۡنَا عَلَیۡهِمۡ لِیَعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقࣱّ وَأَنَّ ٱلسَّاعَةَ لَا رَیۡبَ فِیهَاۤ إِذۡ یَتَنَـٰزَعُونَ بَیۡنَهُمۡ أَمۡرَهُمۡۖ فَقَالُوا۟ ٱبۡنُوا۟ عَلَیۡهِم بُنۡیَـٰنࣰاۖ رَّبُّهُمۡ أَعۡلَمُ بِهِمۡۚ قَالَ ٱلَّذِینَ غَلَبُوا۟ عَلَىٰۤ أَمۡرِهِمۡ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَیۡهِم مَّسۡجِدࣰا ﴿21﴾
और हमने यूँ उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेलाअ (ख़बर) कराई ताकि वह लोग देख लें कि ख़ुदा को वायदा यक़ीनन सच्चा है और ये (भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुबहा नहीं अब (इत्तिलाआ होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाक़िफ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें
इस तरह हमने लोगों को उनकी सूचना दे दी, ताकि वे जान लें कि अल्लाह का वादा सच्चा है और यह कि क़ियामत की घड़ी में कोई सन्देह नहीं है। वह समय भी उल्लेखनीय है जब वे आपस में उनके मामले में छीन-झपट कर रहे थे। फिर उन्होंने कहा, \"उनपर एक भवन बना दे। उनका रब उन्हें भली-भाँति जानता है।\" और जो लोग उनके मामले में प्रभावी रहे उन्होंने कहा, \"हम तो उनपर अवश्य एक उपासना गृह बनाएँगे।\"
سَیَقُولُونَ ثَلَـٰثَةࣱ رَّابِعُهُمۡ كَلۡبُهُمۡ وَیَقُولُونَ خَمۡسَةࣱ سَادِسُهُمۡ كَلۡبُهُمۡ رَجۡمَۢا بِٱلۡغَیۡبِۖ وَیَقُولُونَ سَبۡعَةࣱ وَثَامِنُهُمۡ كَلۡبُهُمۡۚ قُل رَّبِّیۤ أَعۡلَمُ بِعِدَّتِهِم مَّا یَعۡلَمُهُمۡ إِلَّا قَلِیلࣱۗ فَلَا تُمَارِ فِیهِمۡ إِلَّا مِرَاۤءࣰ ظَـٰهِرࣰا وَلَا تَسۡتَفۡتِ فِیهِم مِّنۡهُمۡ أَحَدࣰا ﴿22﴾
क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चौथा उनका कुत्ताा (क़तमीर) है और कुछ लोग (आक़िब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ताा है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ताा है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं
अब वे कहेंगे, \"वे तीन थे और उनमें चौथा कुत्ता था।\" और वे यह भी कहेंगे, \"वे पाँच थे और उनमें छठा उनका कुत्ता था।\" यह बिना निशाना देखे पत्थर चलाना है। और वे यह भी कहेंगे, \"वे सात थे और उनमें आठवाँ उनका कुत्ता था।\" कह दो, \"मेरा रब उनकी संख्या को भली-भाँति जानता है।\" उनको तो थोड़े ही जानते है। तुम ज़ाहिरी बात के सिवा उनके सम्बन्ध में न झगड़ो और न उनमें से किसी से उनके विषय में कुछ पूछो
وَلَا تَقُولَنَّ لِشَا۟یۡءٍ إِنِّی فَاعِلࣱ ذَ ٰلِكَ غَدًا ﴿23﴾
और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा
और न किसी चीज़ के विषय में कभी यह कहो, \"मैं कल इसे कर दूँगा।\"
إِلَّاۤ أَن یَشَاۤءَ ٱللَّهُۚ وَٱذۡكُر رَّبَّكَ إِذَا نَسِیتَ وَقُلۡ عَسَىٰۤ أَن یَهۡدِیَنِ رَبِّی لِأَقۡرَبَ مِنۡ هَـٰذَا رَشَدࣰا ﴿24﴾
मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज्यादा क़रीब हो
बल्कि अल्लाह की इच्छा ही लागू होती है। और जब तुम भूल जाओ तो अपने रब को याद कर लो और कहो, \"आशा है कि मेरा रब इससे भी क़रीब सही बात ही ओर मार्गदर्शन कर दे।\"
وَلَبِثُوا۟ فِی كَهۡفِهِمۡ ثَلَـٰثَ مِا۟ئَةࣲ سِنِینَ وَٱزۡدَادُوا۟ تِسۡعࣰا ﴿25﴾
और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे
और वे अपनी गुफा में तीन सौ वर्ष रहे और नौ वर्ष उससे अधिक
قُلِ ٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا لَبِثُوا۟ۖ لَهُۥ غَیۡبُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ أَبۡصِرۡ بِهِۦ وَأَسۡمِعۡۚ مَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَلِیࣲّ وَلَا یُشۡرِكُ فِی حُكۡمِهِۦۤ أَحَدࣰا ﴿26﴾
(ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाक़िफ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील (शरीक) नहीं बनाता
कह दो, \"अल्लाह भली-भाँति जानता है जितना वे ठहरे।\" आकाशों और धरती की छिपी बात का सम्बन्ध उसी से है। वह क्या ही देखनेवाला और सुननेवाला है! उससे इतर न तो उनका कोई संरक्षक है और न वह अपने प्रभुत्व और सत्ता में किसी को साझीदार बनाता है
وَٱتۡلُ مَاۤ أُوحِیَ إِلَیۡكَ مِن كِتَابِ رَبِّكَۖ لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَـٰتِهِۦ وَلَن تَجِدَ مِن دُونِهِۦ مُلۡتَحَدࣰا ﴿27﴾
और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वही के ज़रिए से नाज़िल हुईहै उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे
अपने रब की क़िताब, जो कुछ तुम्हारी ओर प्रकाशना (वह्यस) हुई, पढ़ो। कोई नहीं जो उनके बोलो को बदलनेवाला हो और न तुम उससे हटकर क शरण लेने की जगह पाओगे
وَٱصۡبِرۡ نَفۡسَكَ مَعَ ٱلَّذِینَ یَدۡعُونَ رَبَّهُم بِٱلۡغَدَوٰةِ وَٱلۡعَشِیِّ یُرِیدُونَ وَجۡهَهُۥۖ وَلَا تَعۡدُ عَیۡنَاكَ عَنۡهُمۡ تُرِیدُ زِینَةَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَلَا تُطِعۡ مَنۡ أَغۡفَلۡنَا قَلۡبَهُۥ عَن ذِكۡرِنَا وَٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ وَكَانَ أَمۡرُهُۥ فُرُطࣰا ﴿28﴾
और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में ज़िन्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने ज़िक्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना
अपने आपको उन लोगों के साथ थाम रखो, जो प्रातःकाल और सायंकाल अपने रब को उसकी प्रसन्नता चाहते हुए पुकारते है और सांसारिक जीवन की शोभा की चाह में तुम्हारी आँखें उनसे न फिरें। और ऐसे व्यक्ति की बात न मानना जिसके दिल को हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल पाया है और वह अपनी इच्छा और वासना के पीछे लगा हुआ है और उसका मामला हद से आगे बढ़ गया है
وَقُلِ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكُمۡۖ فَمَن شَاۤءَ فَلۡیُؤۡمِن وَمَن شَاۤءَ فَلۡیَكۡفُرۡۚ إِنَّاۤ أَعۡتَدۡنَا لِلظَّـٰلِمِینَ نَارًا أَحَاطَ بِهِمۡ سُرَادِقُهَاۚ وَإِن یَسۡتَغِیثُوا۟ یُغَاثُوا۟ بِمَاۤءࣲ كَٱلۡمُهۡلِ یَشۡوِی ٱلۡوُجُوهَۚ بِئۡسَ ٱلشَّرَابُ وَسَاۤءَتۡ مُرۡتَفَقًا ﴿29﴾
और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाज़िल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हें घेर लेगी और अगर वह लोग दोहाई करेगें तो उनकी फरियाद रसी खौलते हुए पानी से की जाएगी जो मसलन पिघले हुए ताबें की तरह होगा (और) वह मुँह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है
कह दो, \"वह सत्य है तुम्हारे रब की ओर से। तो अब जो कोई चाहे माने और जो चाहे इनकार कर दे।\" हमने तो अत्याचारियों के लिए आग तैयार कर रखी है, जिसकी क़नातों ने उन्हें घेर लिया है। यदि वे फ़रियाद करेंगे तो फ़रियाद के प्रत्युत्तर में उन्हें ऐसा पानी मिलेगा जो तेल की तलछट जैसा होगा; वह उनके मुँह भून डालेगा। बहुत ही बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्रामस्थल!
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ إِنَّا لَا نُضِیعُ أَجۡرَ مَنۡ أَحۡسَنَ عَمَلًا ﴿30﴾
इसमें शक़ नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वालो के अज्र को अकारत नहीं करते
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, तो निश्चय ही किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतिदान जिसने अच्छे कर्म किया हो, हम अकारथ नहीं करते
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ جَنَّـٰتُ عَدۡنࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهِمُ ٱلۡأَنۡهَـٰرُ یُحَلَّوۡنَ فِیهَا مِنۡ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبࣲ وَیَلۡبَسُونَ ثِیَابًا خُضۡرࣰا مِّن سُندُسࣲ وَإِسۡتَبۡرَقࣲ مُّتَّكِـِٔینَ فِیهَا عَلَى ٱلۡأَرَاۤىِٕكِۚ نِعۡمَ ٱلثَّوَابُ وَحَسُنَتۡ مُرۡتَفَقࣰا ﴿31﴾
ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होगीं वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन से सँवारे जाँएगें और उन्हें बारीक रेशम (क्रेब) और दबीज़ रेश्म (वाफते)के धानी जोड़े पहनाए जाएँगें और तख्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होगें क्या ही अच्छा बदला है और (बेहश्त भी आसाइश की) कैसी अच्छी जगह है
ऐसे ही लोगों के लिए सदाबहार बाग़ है। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहाँ उन्हें सोने के कंगन पहनाए जाएँगे और वे हरे पतले और गाढ़े रेशमी कपड़े पहनेंगे और ऊँचे तख़्तों पर तकिया लगाए होंगे। क्या ही अच्छा बदला है और क्या ही अच्छा विश्रामस्थल!
۞ وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلࣰا رَّجُلَیۡنِ جَعَلۡنَا لِأَحَدِهِمَا جَنَّتَیۡنِ مِنۡ أَعۡنَـٰبࣲ وَحَفَفۡنَـٰهُمَا بِنَخۡلࣲ وَجَعَلۡنَا بَیۡنَهُمَا زَرۡعࣰا ﴿32﴾
और (ऐ रसूल) इन लोगों से उन दो शख़्शों की मिसाल बयान करो कि उनमें से एक को हमने अंगूर के दो बाग़ दे रखे है और हमने चारो ओर खजूर के पेड़ लगा दिये है और उन दोनों बाग़ के दरमियान खेती भी लगाई है
उनके समक्ष एक उपमा प्रस्तुत करो, दो व्यक्ति है। उनमें से एक को हमने अंगूरों के दो बाग़ दिए और उनके चारों ओर हमने खजूरो के वृक्षो की बाड़ लगाई और उन दोनों के बीच हमने खेती-बाड़ी रखी
كِلۡتَا ٱلۡجَنَّتَیۡنِ ءَاتَتۡ أُكُلَهَا وَلَمۡ تَظۡلِم مِّنۡهُ شَیۡـࣰٔاۚ وَفَجَّرۡنَا خِلَـٰلَهُمَا نَهَرࣰا ﴿33﴾
वह दोनों बाग़ खूब फल लाए और फल लाने में कुछ कमी नहीं की और हमने उन दोनों बाग़ों के दरमियान नहर भी जारी कर दी है
दोनों में से प्रत्येक बाग़ अपने फल लाया और इसमें कोई कमी नहीं की। और उन दोनों के बीच हमने एक नहर भी प्रवाहित कर दी
وَكَانَ لَهُۥ ثَمَرࣱ فَقَالَ لِصَـٰحِبِهِۦ وَهُوَ یُحَاوِرُهُۥۤ أَنَا۠ أَكۡثَرُ مِنكَ مَالࣰا وَأَعَزُّ نَفَرࣰا ﴿34﴾
और उसे फल मिला तो अपने साथी से जो उससे बातें कर रहा था बोल उठा कि मै तो तुझसे माल में (भी) ज्यादा हूँ और जत्थे में भी बढ़ कर हूँ
उसे ख़ूब फल और पैदावार प्राप्त हुई। इसपर वह अपने साथी से, जबकि वह उससे बातचीत कर रहा था, कहने लगा, \"मैं तुझसे माल और दौलत में बढ़कर हूँ और मुझे जनशक्ति भी अधिक प्राप्त है।\"
وَدَخَلَ جَنَّتَهُۥ وَهُوَ ظَالِمࣱ لِّنَفۡسِهِۦ قَالَ مَاۤ أَظُنُّ أَن تَبِیدَ هَـٰذِهِۦۤ أَبَدࣰا ﴿35﴾
और ये बातें करता हुआ अपने बाग़ मे भी जा पहुँचा हालॉकि उसकी आदत ये थी कि (कुफ्र की वजह से) अपने ऊपर आप ज़ुल्म कर रहा था (ग़रज़ वह कह बैठा) कि मुझे तो इसका गुमान नहीं तो कि कभी भी ये बाग़ उजड़ जाए
वह अपने हकड में ज़ालिम बनकर बाग़ में प्रविष्ट हुआ। कहने लगा, \"मैं ऐसा नहीं समझता कि वह कभी विनष्ट होगा
وَمَاۤ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَاۤىِٕمَةࣰ وَلَىِٕن رُّدِدتُّ إِلَىٰ رَبِّی لَأَجِدَنَّ خَیۡرࣰا مِّنۡهَا مُنقَلَبࣰا ﴿36﴾
और मै तो ये भी नहीं ख्याल करता कि क़यामत क़ायम होगी और (बिलग़रज़ हुई भी तो) जब मै अपने परवरदिगार की तरफ लौटाया जाऊँगा तो यक़ीनन इससे कहीं अच्छी जगह पाऊँगा
और मैं नहीं समझता कि वह (क़ियामत की) घड़ी कभी आएगी। और यदि मैं वास्तव में अपने रब के पास पलटा भी तो निश्चय ही पलटने की जगह इससे भी उत्तम पाऊँगा।\"
قَالَ لَهُۥ صَاحِبُهُۥ وَهُوَ یُحَاوِرُهُۥۤ أَكَفَرۡتَ بِٱلَّذِی خَلَقَكَ مِن تُرَابࣲ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةࣲ ثُمَّ سَوَّىٰكَ رَجُلࣰا ﴿37﴾
उसका साथी जो उससे बातें कर रहा था कहने लगा कि क्या तू उस परवरदिगार का मुन्किर है जिसने (पहले) तुझे मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुझे बिल्कुल ठीक मर्द (आदमी) बना दिया
उसके साथी ने उससे बातचीत करते हुए कहा, \"क्या तू उस सत्ता के साथ कुफ़्र करता है जिसने तुझे मिट्टी से, फिर वीर्य से पैदा किया, फिर तुझे एक पूरा आदमी बनाया?
لَّـٰكِنَّا۠ هُوَ ٱللَّهُ رَبِّی وَلَاۤ أُشۡرِكُ بِرَبِّیۤ أَحَدࣰا ﴿38﴾
हम तो (कहते हैं कि) वही ख़ुदा मेरा परवरदिगार है और मै तो अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाता
लेकिन मेरा रब तो वही अल्लाह है और मैं किसी को अपने रब के साथ साझीदार नहीं बनाता
وَلَوۡلَاۤ إِذۡ دَخَلۡتَ جَنَّتَكَ قُلۡتَ مَا شَاۤءَ ٱللَّهُ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِٱللَّهِۚ إِن تَرَنِ أَنَا۠ أَقَلَّ مِنكَ مَالࣰا وَوَلَدࣰا ﴿39﴾
और जब तू अपने बाग़ में आया तो (ये) क्यों न कहा कि ये सब (माशा अल्लाह ख़ुदा ही के चाहने से हुआ है (मेरा कुछ भी नहीं क्योंकि) बग़ैर ख़ुदा की (मदद) के (किसी में) कुछ सकत नहीं अगर माल और औलाद की राह से तू मुझे कम समझता है
और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तूने अपने बाग़ में प्रवेश किया तो कहता, 'जो अल्लाह चाहे, बिना अल्लाह के कोई शक्ति नहीं?' यदि तू देखता है कि मैं धन और संतति में तुझसे कम हूँ,
فَعَسَىٰ رَبِّیۤ أَن یُؤۡتِیَنِ خَیۡرࣰا مِّن جَنَّتِكَ وَیُرۡسِلَ عَلَیۡهَا حُسۡبَانࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ فَتُصۡبِحَ صَعِیدࣰا زَلَقًا ﴿40﴾
तो अनक़ीरब ही मेरा परवरदिगार मुझे वह बाग़ अता फरमाएगा जो तेरे बाग़ से कहीं बेहतर होगा और तेरे बाग़ पर कोई ऐसी आफत आसमान से नाज़िल करे कि (ख़ाक सियाह) होकर चटियल चिकना सफ़ाचट मैदान हो जाए
तो आशा है कि मेरा रब मुझे तेरे बाग़ से अच्छा प्रदान करें और तेरे इस बाग़ पर आकाश से कोई क़ुर्क़ी (आपदा) भेज दे। फिर वह साफ़ मैदान होकर रह जाए
أَوۡ یُصۡبِحَ مَاۤؤُهَا غَوۡرࣰا فَلَن تَسۡتَطِیعَ لَهُۥ طَلَبࣰا ﴿41﴾
उसका पानी नीचे उतर (के खुश्क) हो जाए फिर तो उसको किसी तरह तलब न कर सके
या उसका पानी बिलकुल नीचे उतर जाए। फिर तू उसे ढूँढ़कर न ला सके।\"
وَأُحِیطَ بِثَمَرِهِۦ فَأَصۡبَحَ یُقَلِّبُ كَفَّیۡهِ عَلَىٰ مَاۤ أَنفَقَ فِیهَا وَهِیَ خَاوِیَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَیَقُولُ یَـٰلَیۡتَنِی لَمۡ أُشۡرِكۡ بِرَبِّیۤ أَحَدࣰا ﴿42﴾
(चुनान्चे अज़ाब नाज़िल हुआ) और उसके (बाग़ के) फल (आफत में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ (ख़र्च) किया था (अफसोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी कि अपनी टहनियों पर औंधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश मै अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता
हुआ भी यही कि उसका सारा फल घिराव में आ गया। उसने उसमें जो कुछ लागत लगाई थी, उसपर वह अपनी हथेलियों को नचाता रह गया. और स्थिति यह थी कि बाग़ अपनी टट्टियों पर हा पड़ा था और वह कह रहा था, \"क्या ही अच्छा होता कि मैंने अपने रब के साथ किसी को साझीदार न बनाया होता!\"
وَلَمۡ تَكُن لَّهُۥ فِئَةࣱ یَنصُرُونَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَمَا كَانَ مُنتَصِرًا ﴿43﴾
और ख़ुदा के सिवा उसका कोई जत्था भी न था कि उसकी मदद करता और न वह बदला ले सकता था इसी जगह से (साबित हो गया
उसका कोई जत्था न हुआ जो उसके और अल्लाह के बीच पड़कर उसकी सहायता करता और न उसे स्वयं बदला लेने की सामर्थ्य प्राप्त थी
هُنَالِكَ ٱلۡوَلَـٰیَةُ لِلَّهِ ٱلۡحَقِّۚ هُوَ خَیۡرࣱ ثَوَابࣰا وَخَیۡرٌ عُقۡبࣰا ﴿44﴾
कि सरपरस्ती ख़ास ख़ुदा ही के लिए है जो सच्चा है वही बेहतर सवाब (देने) वाला है और अन्जाम के जंगल से भी वही बेहतर है
ऐसे अवसर पर काम बनाने का सारा अधिकार परम सत्य अल्लाह ही को प्राप्त है। वही बदला देने में सबसे अच्छा है और वही अच्छा परिणाम दिखाने की स्पष्ट से भी सर्वोत्तम है
وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلَ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا كَمَاۤءٍ أَنزَلۡنَـٰهُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ فَٱخۡتَلَطَ بِهِۦ نَبَاتُ ٱلۡأَرۡضِ فَأَصۡبَحَ هَشِیمࣰا تَذۡرُوهُ ٱلرِّیَـٰحُۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ مُّقۡتَدِرًا ﴿45﴾
और (ऐ रसूल) इनसे दुनिया की ज़िन्दगी की मसल भी बयान कर दो कि उसके हालत पानी की सी है जिसे हमने आसमान से बरसाया तो ज़मीन की उगाने की ताक़त उसमें मिल गई और (खूब फली फूली) फिर आख़िर रेज़ा रेज़ा (भूसा) हो गई कि उसको हवाएँ उड़ाए फिरती है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है
और उनके समक्ष सांसारिक जीवन की उपमा प्रस्तुत करो, यह ऐसी है जैसे पानी हो, जिसे हमने आकाश से उतारा तो उससे धरती की पौध घनी होकर परस्पर गुँथ गई। फिर वह चूरा-चूरा होकर रह गई, जिसे हवाएँ उड़ाए लिए फिरती है। अल्लाह को तो हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है
ٱلۡمَالُ وَٱلۡبَنُونَ زِینَةُ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَٱلۡبَـٰقِیَـٰتُ ٱلصَّـٰلِحَـٰتُ خَیۡرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابࣰا وَخَیۡرٌ أَمَلࣰا ﴿46﴾
(ऐ रसूल) माल और औलाद (इस ज़रा सी) दुनिया की ज़िन्दगी की ज़ीनत हैं और बाक़ी रहने वाली नेकियाँ तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब में उससे कही ज्यादा अच्छी हैं और तमन्नाएँ व आरजू की राह से (भी) बेहतर हैं
माल और बेटे तो केवल सांसारिक जीवन की शोभा है, जबकि बाक़ी रहनेवाली नेकियाँ ही तुम्हारे रब के यहाँ परिणाम की दृष्टि से भी उत्तम है और आशा की दृष्टि से भी वही उत्तम है
وَیَوۡمَ نُسَیِّرُ ٱلۡجِبَالَ وَتَرَى ٱلۡأَرۡضَ بَارِزَةࣰ وَحَشَرۡنَـٰهُمۡ فَلَمۡ نُغَادِرۡ مِنۡهُمۡ أَحَدࣰا ﴿47﴾
और (उस दिन से डरो) जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगें और तुम ज़मीन को खुला मैदान (पहाड़ों से) खाली देखोगे और हम इन सभी को इकट्ठा करेगे तो उनमें से एक को न छोड़ेगें
जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगे और तुम धरती को बिलकुल नग्न देखोगे और हम उन्हें इकट्ठा करेंगे तो उनमें से किसी एक को भी न छोड़ेंगे
وَعُرِضُوا۟ عَلَىٰ رَبِّكَ صَفࣰّا لَّقَدۡ جِئۡتُمُونَا كَمَا خَلَقۡنَـٰكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةِۭۚ بَلۡ زَعَمۡتُمۡ أَلَّن نَّجۡعَلَ لَكُم مَّوۡعِدࣰا ﴿48﴾
सबके सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने कतार पे क़तार पेश किए जाएँगें और (उस वक्त हम याद दिलाएँगे कि जिस तरह हमने तुमको पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) तुम लोगों को (आख़िर) हमारे पास आना पड़ा मगर तुम तो ये ख्याल करते थे कि हम तुम्हारे (दोबारा पैदा करने के) लिए कोई वक्त ही न ठहराएँगें
वे तुम्हारे रब के सामने पंक्तिबद्ध उपस्थित किए जाएँगे - \"तुम हमारे सामने आ पहुँचे, जैसा हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। नहीं, बल्कि तुम्हारा तो यह दावा था कि हम तुम्हारे लिए वादा किया हुआ कोई समय लाएँगे ही नहीं।\"
وَوُضِعَ ٱلۡكِتَـٰبُ فَتَرَى ٱلۡمُجۡرِمِینَ مُشۡفِقِینَ مِمَّا فِیهِ وَیَقُولُونَ یَـٰوَیۡلَتَنَا مَالِ هَـٰذَا ٱلۡكِتَـٰبِ لَا یُغَادِرُ صَغِیرَةࣰ وَلَا كَبِیرَةً إِلَّاۤ أَحۡصَىٰهَاۚ وَوَجَدُوا۟ مَا عَمِلُوا۟ حَاضِرࣰاۗ وَلَا یَظۡلِمُ رَبُّكَ أَحَدࣰا ﴿49﴾
और लोगों के आमाल की किताब (सामने) रखी जाएँगी तो तुम गुनेहगारों को देखोगे कि जो कुछ उसमें (लिखा) है (देख देख कर) सहमे हुए हैं और कहते जाते हैं हाए हमारी यामत ये कैसी किताब है कि न छोटे ही गुनाह को बे क़लमबन्द किए छोड़ती है न बड़े गुनाह को और जो कुछ इन लोगों ने (दुनिया में) किया था वह सब (लिखा हुआ) मौजूद पाएँगें और तेरा परवरदिगार किसी पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म न करेगा
किताब (कर्मपत्रिका) रखी जाएगी तो अपराधियों को देखोंगे कि जो कुछ उसमें होगा उससे डर रहे है और कह रहे है, \"हाय, हमारा दुर्भाग्य! यह कैसी किताब है कि यह न कोई छोटी बात छोड़ती है न बड़ी, बल्कि सभी को इसने अपने अन्दर समाहित कर रखा है।\" जो कुछ उन्होंने किया होगा सब मौजूद पाएँगे। तुम्हारा रब किसी पर ज़ुल्म न करेगा
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ ٱسۡجُدُوا۟ لِـَٔادَمَ فَسَجَدُوۤا۟ إِلَّاۤ إِبۡلِیسَ كَانَ مِنَ ٱلۡجِنِّ فَفَسَقَ عَنۡ أَمۡرِ رَبِّهِۦۤۗ أَفَتَتَّخِذُونَهُۥ وَذُرِّیَّتَهُۥۤ أَوۡلِیَاۤءَ مِن دُونِی وَهُمۡ لَكُمۡ عَدُوُّۢۚ بِئۡسَ لِلظَّـٰلِمِینَ بَدَلࣰا ﴿50﴾
और (वह वक्त याद करो) जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया (ये इबलीस) जिन्नात से था तो अपने परवरदिगार के हुक्म से निकल भागा तो (लोगों) क्या मुझे छोड़कर उसको और उसकी औलाद को अपना दोस्त बनाते हो हालॉकि वह तुम्हारा (क़दीमी) दुश्मन हैं ज़ालिमों (ने ख़ुदा के बदले शैतान को अपना दोस्त बनाया ये उन) का क्या बुरा ऐवज़ है
याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, \"आदम को सजदा करो।\" तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया। वह जिन्नों में से था। तो उसने अपने रब के आदेश का उल्लंघन किया। अब क्या तुम मुझसे इतर उसे और उसकी सन्तान को संरक्षक मित्र बनाते हो? हालाँकि वे तुम्हारे शत्रु है। क्या ही बुरा विकल्प है, जो ज़ालिमों के हाथ आया!
۞ مَّاۤ أَشۡهَدتُّهُمۡ خَلۡقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَا خَلۡقَ أَنفُسِهِمۡ وَمَا كُنتُ مُتَّخِذَ ٱلۡمُضِلِّینَ عَضُدࣰا ﴿51﴾
मैने न तो आसमान व ज़मीन के पैदा करने के वक्त उनको (मदद के लिए) बुलाया था और न खुद उनके पैदा करने के वक्त अौर मै (ऐसा गया गुज़रा) न था कि मै गुमराह करने वालों को मददगार बनाता
मैंने न तो आकाशों और धरती को उन्हें दिखाकर पैदा किया और न स्वयं उनको बनाने और पैदा करने के समय ही उन्हें बुलाया। मैं ऐसा नहीं हूँ कि गुमराह करनेवालों को अपनी बाहु-भुजा बनाऊँ
وَیَوۡمَ یَقُولُ نَادُوا۟ شُرَكَاۤءِیَ ٱلَّذِینَ زَعَمۡتُمۡ فَدَعَوۡهُمۡ فَلَمۡ یَسۡتَجِیبُوا۟ لَهُمۡ وَجَعَلۡنَا بَیۡنَهُم مَّوۡبِقࣰا ﴿52﴾
और (उस दिन से डरो) जिस दिन ख़ुदा फरमाएगा कि अब तुम जिन लोगों को मेरा शरीक़ ख्याल करते थे उनको (मदद के लिए) पुकारो तो वह लोग उनको पुकारेगें मगर वह लोग उनकी कुछ न सुनेगें और हम उन दोनों के बीच में महलक (खतरनाक) आड़ बना देंगे
याद करो जिस दिन वह कहेगा, \"बुलाओ मेरे साझीदारों को, जिनके साझीदार होने का तुम्हें दावा था।\" तो वे उनको पुकारेंगे, किन्तु वे उन्हें कोई उत्तर न देंगे और हम उनके बीच सामूहिक विनाश-स्थल निर्धारित कर देंगे
وَرَءَا ٱلۡمُجۡرِمُونَ ٱلنَّارَ فَظَنُّوۤا۟ أَنَّهُم مُّوَاقِعُوهَا وَلَمۡ یَجِدُوا۟ عَنۡهَا مَصۡرِفࣰا ﴿53﴾
और गुनेहगार लोग (देखकर समझ जाएँगें कि ये इसमें सोके जाएँगे और उससे गरीज़ (बचने की) की राह न पाएँगें
अपराधी लोग आग को देखेंगे तो समझ लेंगे कि वे उसमें पड़नेवाले है और उससे बच निकलने की कोई जगह न पाएँगे
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا فِی هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ لِلنَّاسِ مِن كُلِّ مَثَلࣲۚ وَكَانَ ٱلۡإِنسَـٰنُ أَكۡثَرَ شَیۡءࣲ جَدَلࣰا ﴿54﴾
और हमने तो इस क़ुरान में लोगों (के समझाने) के वास्ते हर तरह की मिसालें फेर बदल कर बयान कर दी है मगर इन्सान तो तमाम मख़लूक़ात से ज्यादा झगड़ालू है
हमने लोगों के लिए इस क़ुरआन में हर प्रकार के उत्तम विषयों को तरह-तरह से बयान किया है, किन्तु मनुष्य सबसे बढ़कर झगड़ालू है
وَمَا مَنَعَ ٱلنَّاسَ أَن یُؤۡمِنُوۤا۟ إِذۡ جَاۤءَهُمُ ٱلۡهُدَىٰ وَیَسۡتَغۡفِرُوا۟ رَبَّهُمۡ إِلَّاۤ أَن تَأۡتِیَهُمۡ سُنَّةُ ٱلۡأَوَّلِینَ أَوۡ یَأۡتِیَهُمُ ٱلۡعَذَابُ قُبُلࣰا ﴿55﴾
और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो (फिर) उनको ईमान लाने और अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगने से (उसके सिवा और कौन) अम्र मायने है कि अगलों की सी रीत रस्म उनको भी पेश आई या हमारा अज़ाब उनके सामने से (मौजूद) हो
आख़िर लोगों को, जबकि उनके पास मार्गदर्शन आ गया, तो इस बात से कि वे ईमान लाते और अपने रब से क्षमा चाहते, इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि उनके लिए वही कुछ सामने आए जो पूर्व जनों के सामने आ चुका है, यहाँ तक कि यातना उनके सामने आ खड़ी हो
وَمَا نُرۡسِلُ ٱلۡمُرۡسَلِینَ إِلَّا مُبَشِّرِینَ وَمُنذِرِینَۚ وَیُجَـٰدِلُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ بِٱلۡبَـٰطِلِ لِیُدۡحِضُوا۟ بِهِ ٱلۡحَقَّۖ وَٱتَّخَذُوۤا۟ ءَایَـٰتِی وَمَاۤ أُنذِرُوا۟ هُزُوࣰا ﴿56﴾
और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छों को निजात की) खुशख़बरी सुनाएंऔर (बदों को अज़ाब से) डराएंऔर जो लोग काफिर हैं झूटी झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते है ताकि उसकी बदौलत हक़ को (उसकी जगह से उखाड़ फेकें और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गए हॅसी ठ्ठ्ठा (मज़ाक) बना रखा है
रसूलों को हम केवल शुभ सूचना देनेवाले और सचेतकर्त्ता बनाकर भेजते है। किन्तु इनकार करनेवाले लोग है कि असत्य के सहारे झगड़ते है, ताकि सत्य को डिगा दें। उन्होंने मेरी आयतों का और जो चेतावनी उन्हें दी गई उसका मज़ाक बना दिया है
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِۦ فَأَعۡرَضَ عَنۡهَا وَنَسِیَ مَا قَدَّمَتۡ یَدَاهُۚ إِنَّا جَعَلۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ أَكِنَّةً أَن یَفۡقَهُوهُ وَفِیۤ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرࣰاۖ وَإِن تَدۡعُهُمۡ إِلَى ٱلۡهُدَىٰ فَلَن یَهۡتَدُوۤا۟ إِذًا أَبَدࣰا ﴿57﴾
और उससे बढ़कर और कौन ज़ालिम होगा जिसको ख़ुदा की आयतें याद दिलाई जाए और वह उनसे रद गिरदानी (मुँह फेर ले) करे और अपने पहले करतूतों को जो उसके हाथों ने किए हैं भूल बैठे (गोया) हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं कि वह (हक़ बात को) न समझ सकें और (गोया) उनके कानों में गिरानी पैदा कर दी है कि (सुन न सकें) और अगर तुम उनको राहे रास्त की तरफ़ बुलाओ भी तो ये हरगिज़ कभी रुबरु होने वाले नहीं हैं
उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा समझाया गया, तो उसने उनसे मुँह फेर लिया और उसे भूल गया, जो सामान उसके हाथ आगे बढ़ा चुके है? निश्चय ही हमने उनके दिलों पर परदे डाल दिए है कि कहीं वे उसे समझ न लें और उनके कानों में बोझ डाल दिया (कि कहीं वे सुन न ले) । यद्यपि तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुलाओ, वे कभी भी मार्ग नहीं पा सकते
وَرَبُّكَ ٱلۡغَفُورُ ذُو ٱلرَّحۡمَةِۖ لَوۡ یُؤَاخِذُهُم بِمَا كَسَبُوا۟ لَعَجَّلَ لَهُمُ ٱلۡعَذَابَۚ بَل لَّهُم مَّوۡعِدࣱ لَّن یَجِدُوا۟ مِن دُونِهِۦ مَوۡىِٕلࣰا ﴿58﴾
और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है अगर उनकी करतूतों की सज़ा में धर पकड़ करता तो फौरन (दुनिया ही में) उन पर अज़ाब नाज़िल कर देता मगर उनके लिए तो एक मियाद (मुक़र्रर) है जिससे खुदा के सिवा कहीें पनाह की जगह न पाएंगें
तुम्हारा रब अत्यन्त क्षमाशील और दयावान है। यदि वह उन्हें उसपर पकड़ता जो कुछ कि उन्होंने कमाया है तो उनपर शीघ्र ही यातना ला देता। नहीं, बल्कि उनके लिए तो वादे का एक समय निशिचत है। उससे हटकर वे बच निकलने का कोई मार्ग न पाएँगे
وَتِلۡكَ ٱلۡقُرَىٰۤ أَهۡلَكۡنَـٰهُمۡ لَمَّا ظَلَمُوا۟ وَجَعَلۡنَا لِمَهۡلِكِهِم مَّوۡعِدࣰا ﴿59﴾
और ये बस्तियाँ (जिन्हें तुम अपनी ऑंखों से देखते हो) जब उन लोगों ने सरकशी तो हमने उन्हें हलाक कर मारा और हमने उनकी हलाकत की मियाद मुक़र्रर कर दी थी
और ये बस्तियाँ वे है कि जब उन्होंने अत्याचार किया तो हमने उन्हें विनष्ट कर दिया, और हमने उनके विनाश के लिए एक समय निश्चित कर रखा था
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِفَتَىٰهُ لَاۤ أَبۡرَحُ حَتَّىٰۤ أَبۡلُغَ مَجۡمَعَ ٱلۡبَحۡرَیۡنِ أَوۡ أَمۡضِیَ حُقُبࣰا ﴿60﴾
(ऐ रसूल) वह वाक़या याद करो जब मूसा खिज़्र की मुलाक़ात को चले तो अपने जवान वसी यूशा से बोले कि जब तक में दोनों दरियाओं के मिलने की जगह न पहुँच जाऊँ (चलने से) बाज़ न आऊँगा
याद करो, जब मूसा ने अपने युवक सेवक से कहा, \"जब तक कि मैं दो दरियाओं के संगम तक न पहुँच जाऊँ चलना नहीं छोड़ूँगा, चाहे मैं यूँ ही दीर्धकाल तक सफ़र करता रहूँ।\"
فَلَمَّا بَلَغَا مَجۡمَعَ بَیۡنِهِمَا نَسِیَا حُوتَهُمَا فَٱتَّخَذَ سَبِیلَهُۥ فِی ٱلۡبَحۡرِ سَرَبࣰا ﴿61﴾
ख्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूँ ही चलता जाऊँगा फिर जब ये दोनों उन दोनों दरियाओं के मिलने की जगह पहुँचे तो अपनी (भुनी हुई) मछली छोड़ चले तो उसने दरिया में सुरंग बनाकर अपनी राह ली
फिर जब वे दोनों संगम पर पहुँचे तो वे अपनी मछली से ग़ाफ़िल हो गए और उस (मछली) ने दरिया में सुरंह बनाती अपनी राह ली
فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتَىٰهُ ءَاتِنَا غَدَاۤءَنَا لَقَدۡ لَقِینَا مِن سَفَرِنَا هَـٰذَا نَصَبࣰا ﴿62﴾
फिर जब कुछ और आगे बढ़ गए तो मूसा ने अपने जवान (वसी) से कहा (अजी हमारा नाश्ता तो हमें दे दो हमारे (आज के) इस सफर से तो हमको बड़ी थकन हो गई
फिर जब वे वहाँ से आगे बढ़ गए तो उसने अपने सेवक से कहा, \"लाओ, हमारा नाश्ता। अपने इस सफ़र में तो हमें बड़ी थकान पहुँची है।\"
قَالَ أَرَءَیۡتَ إِذۡ أَوَیۡنَاۤ إِلَى ٱلصَّخۡرَةِ فَإِنِّی نَسِیتُ ٱلۡحُوتَ وَمَاۤ أَنسَىٰنِیهُ إِلَّا ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَنۡ أَذۡكُرَهُۥۚ وَٱتَّخَذَ سَبِیلَهُۥ فِی ٱلۡبَحۡرِ عَجَبࣰا ﴿63﴾
(यूशा ने) कहा क्या आप ने देखा भी कि जब हम लोग (दरिया के किनारे) उस पत्थर के पास ठहरे तो मै (उसी जगह) मछली छोड़ आया और मुझे आप से उसका ज़िक्र करना शैतान ने भुला दिया और मछली ने अजीब तरह से दरिया में अपनी राह ली
उसने कहा, \"ज़रा देखिए तो सही, जब हम उस चट्टान के पास ठहरे हुए थे तो मैं मछली को भूल ही गया - और शैतान ही ने उसको याद रखने से मुझे ग़ाफ़िल कर दिया - और उसने आश्चर्य रूप से दरिया में अपनी राह ली।\"
قَالَ ذَ ٰلِكَ مَا كُنَّا نَبۡغِۚ فَٱرۡتَدَّا عَلَىٰۤ ءَاثَارِهِمَا قَصَصࣰا ﴿64﴾
मूसा ने कहा वही तो वह (जगह) है जिसकी हम जुस्तजू (तलाश) में थे फिर दोनों अपने क़दम के निशानों पर देखते देखते उलटे पॉव फिरे
(मूसा ने) कहा, \"यही तो है जिसे हम तलाश कर रहे थे।\" फिर वे दोनों अपने पदचिन्हों को देखते हुए वापस हुए
فَوَجَدَا عَبۡدࣰا مِّنۡ عِبَادِنَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُ رَحۡمَةࣰ مِّنۡ عِندِنَا وَعَلَّمۡنَـٰهُ مِن لَّدُنَّا عِلۡمࣰا ﴿65﴾
तो (जहाँ मछली थी) दोनों ने हमारे बन्दों में से एक (ख़ास) बन्दा खिज्र को पाया जिसको हमने अपनी बारगाह से रहमत (विलायत) का हिस्सा अता किया था
फिर उन्होंने हमारे बन्दों में से एक बन्दे को पाया, जिसे हमने अपने पास से दयालुता प्रदान की थी और जिसे अपने पास से ज्ञान प्रदान किया था
قَالَ لَهُۥ مُوسَىٰ هَلۡ أَتَّبِعُكَ عَلَىٰۤ أَن تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمۡتَ رُشۡدࣰا ﴿66﴾
और हमने उसे इल्म लदुन्नी (अपने ख़ास इल्म) में से कुछ सिखाया था मूसा ने उन (ख़िज्र) से कहा क्या (आपकी इजाज़त है कि) मै इस ग़रज़ से आपके साथ साथ रहूँ
मूसा ने उससे कहा, \"क्या मैं आपके पीछे चलूँ, ताकि आप मुझे उस ज्ञान औऱ विवेक की शिक्षा दें, जो आपको दी गई है?\"
قَالَ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِیعَ مَعِیَ صَبۡرࣰا ﴿67﴾
कि जो रहनुमाई का इल्म आपको है (ख़ुदा की तरफ से) सिखाया गया है उसमें से कुछ मुझे भी सिखा दीजिए खिज्र ने कहा (मै सिखा दूँगा मगर) आपसे मेरे साथ सब्र न हो सकेगा
उसने कहा, \"तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे,
وَكَیۡفَ تَصۡبِرُ عَلَىٰ مَا لَمۡ تُحِطۡ بِهِۦ خُبۡرࣰا ﴿68﴾
और (सच तो ये है) जो चीज़ आपके इल्मी अहाते से बाहर हो
और जो चीज़ तुम्हारे ज्ञान-परिधि से बाहर हो, उस पर तुम धैर्य कैसे रख सकते हो?\"
قَالَ سَتَجِدُنِیۤ إِن شَاۤءَ ٱللَّهُ صَابِرࣰا وَلَاۤ أَعۡصِی لَكَ أَمۡرࣰا ﴿69﴾
उस पर आप सब्र क्योंकर कर सकते हैं मूसा ने कहा (आप इत्मिनान रखिए) अगर ख़ुदा ने चाहा तो आप मुझे साबिर आदमी पाएँगें
(मूसा ने) कहा, \"यदि अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे। और मैं किसी मामले में भी आपकी अवज्ञा नहीं करूँगा।\"
قَالَ فَإِنِ ٱتَّبَعۡتَنِی فَلَا تَسۡـَٔلۡنِی عَن شَیۡءٍ حَتَّىٰۤ أُحۡدِثَ لَكَ مِنۡهُ ذِكۡرࣰا ﴿70﴾
और मै आपके किसी हुक्म की नाफरमानी न करुँगा खिज्र ने कहा अच्छा तो अगर आप को मेरे साथ रहना है तो जब तक मै खुद आपसे किसी बात का ज़िक्र न छेडँ
उसने कहा, \"अच्छा, यदि तुम मेरे साथ चलते हो तो मुझसे किसी चीज़ के विषय में न पूछना, यहाँ तक कि मैं स्वयं ही तुमसे उसकी चर्चा करूँ।\"
فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰۤ إِذَا رَكِبَا فِی ٱلسَّفِینَةِ خَرَقَهَاۖ قَالَ أَخَرَقۡتَهَا لِتُغۡرِقَ أَهۡلَهَا لَقَدۡ جِئۡتَ شَیۡـًٔا إِمۡرࣰا ﴿71﴾
आप मुझसे किसी चीज़ के बारे में न पूछियेगा ग़रज़ ये दोनो (मिलकर) चल खड़े हुए यहाँ तक कि (एक दरिया में) जब दोनों कश्ती में सवार हुए तो ख़िज्र ने कश्ती में छेद कर दिया मूसा ने कहा (आप ने तो ग़ज़ब कर दिया) क्या कश्ती में इस ग़रज़ से सुराख़ किया है
अन्ततः दोनों चले, यहाँ तक कि जब नौका में सवार हुए तो उसने उसमें दरार डाल दी। (मूसा ने) कहा, \"आपने इसमें दरार डाल दी, ताकि उसके सवारों को डुबो दें? आपने तो एक अनोखी हरकत कर डाली।\"
قَالَ أَلَمۡ أَقُلۡ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِیعَ مَعِیَ صَبۡرࣰا ﴿72﴾
कि लोगों को डुबा दीजिए ये तो आप ने बड़ी अजीब बात की है-ख़िज्र ने कहा क्या मैने आप से (पहले ही) न कह दिया था
उसने कहा, \"क्या मैंने कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोंगे?\"
قَالَ لَا تُؤَاخِذۡنِی بِمَا نَسِیتُ وَلَا تُرۡهِقۡنِی مِنۡ أَمۡرِی عُسۡرࣰا ﴿73﴾
कि आप मेरे साथ हरगिज़ सब्र न कर सकेगे-मूसा ने कहा अच्छा जो हुआ सो हुआ आप मेरी गिरफत न कीजिए और मुझ पर मेरे इस मामले में इतनी सख्ती न कीजिए
कहा, \"जो भूल-चूक मुझसे हो गई उसपर मुझे न पकड़िए और मेरे मामलें में मुझे तंगी में न डालिए।\"
فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰۤ إِذَا لَقِیَا غُلَـٰمࣰا فَقَتَلَهُۥ قَالَ أَقَتَلۡتَ نَفۡسࣰا زَكِیَّةَۢ بِغَیۡرِ نَفۡسࣲ لَّقَدۡ جِئۡتَ شَیۡـࣰٔا نُّكۡرࣰا ﴿74﴾
(ख़ैर ये तो हो गया) फिर दोनों के दोनों आगे चले यहाँ तक कि दोनों एक लड़के से मिले तो उस बन्दे ख़ुदा ने उसे जान से मार डाला मूसा ने कहा (ऐ माज़ अल्लाह) क्या आपने एक मासूम शख़्श को मार डाला और वह भी किसी के (ख़ौफ के) बदले में नहीं आपने तो यक़ीनी एक अजीब हरकत की
फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक लड़के से मिले तो उसने उसे मार डाला। कहा, \"क्या आपने एक अच्छी-भली जान की हत्या कर दी, बिना इसके कि किसी की हत्या का बदला लेना अभीष्ट हो? यह तो आपने बहुत ही बुरा किया!\"
۞ قَالَ أَلَمۡ أَقُل لَّكَ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِیعَ مَعِیَ صَبۡرࣰا ﴿75﴾
खिज्र ने कहा कि मैंने आपसे (मुक़र्रर) न कह दिया था कि आप मेरे साथ हरगिज़ नहीं सब्र कर सकेगें
उसने कहा, \"क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे?\"
قَالَ إِن سَأَلۡتُكَ عَن شَیۡءِۭ بَعۡدَهَا فَلَا تُصَـٰحِبۡنِیۖ قَدۡ بَلَغۡتَ مِن لَّدُنِّی عُذۡرࣰا ﴿76﴾
मूसा ने कहा (ख़ैर जो हुआ वह हुआ) अब अगर मैं आप से किसी चीज़ के बारे में पूछगछ करूँगा तो आप मुझे अपने साथ न रखियेगा बेशक आप मेरी तरफ से माज़रत (की हद को) पहुँच गए
कहा, \"इसके बाद यदि मैं आपसे कुछ पूछूँ तो आप मुझे साथ न रखें। अब तो मेरी ओर से आप पूरी तरह उज़ को पहुँच चुके है।\"
فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَتَیَاۤ أَهۡلَ قَرۡیَةٍ ٱسۡتَطۡعَمَاۤ أَهۡلَهَا فَأَبَوۡا۟ أَن یُضَیِّفُوهُمَا فَوَجَدَا فِیهَا جِدَارࣰا یُرِیدُ أَن یَنقَضَّ فَأَقَامَهُۥۖ قَالَ لَوۡ شِئۡتَ لَتَّخَذۡتَ عَلَیۡهِ أَجۡرࣰا ﴿77﴾
ग़रज़ (ये सब हो हुआ कर फिर) दोनों आगे चले यहाँ तक कि जब एक गाँव वालों के पास पहुँचे तो वहाँ के लोगों से कुछ खाने को माँगा तो उन लोगों ने दोनों को मेहमान बनाने से इन्कार कर दिया फिर उन दोनों ने उसी गाँव में एक दीवार को देखा कि गिरा ही चाहती थी तो खिज्र ने उसे सीधा खड़ा कर दिया उस पर मूसा ने कहा अगर आप चाहते तो (इन लोगों से) इसकी मज़दूरी ले सकते थे
फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक बस्तीवालों के पास पहुँचे और उनसे भोजन माँगा, किन्तु उन्होंने उनके आतिथ्य से इनकार कर दिया। फिर वहाँ उन्हें एक दीवार मिली जो गिरा चाहती थी, तो उस व्यक्ति ने उसको खड़ा कर दिया। (मूसा ने) कहा, \"यदि आप चाहते तो इसकी कुछ मज़दूरी ले सकते थे।\"
قَالَ هَـٰذَا فِرَاقُ بَیۡنِی وَبَیۡنِكَۚ سَأُنَبِّئُكَ بِتَأۡوِیلِ مَا لَمۡ تَسۡتَطِع عَّلَیۡهِ صَبۡرًا ﴿78﴾
(ताकि खाने का सहारा होता) खिज्र ने कहा मेरे और आपके दरमियान छुट्टम छुट्टा अब जिन बातों पर आप से सब्र न हो सका मैं अभी आप को उनकी असल हक़ीकत बताए देता हूँ
उसने कहा, \"यह मेरे और तुम्हारे बीच जुदाई का अवसर है। अब मैं तुमको उसकी वास्तविकता बताए दे रहा हूँ, जिसपर तुम धैर्य से काम न ले सके।\"
أَمَّا ٱلسَّفِینَةُ فَكَانَتۡ لِمَسَـٰكِینَ یَعۡمَلُونَ فِی ٱلۡبَحۡرِ فَأَرَدتُّ أَنۡ أَعِیبَهَا وَكَانَ وَرَاۤءَهُم مَّلِكࣱ یَأۡخُذُ كُلَّ سَفِینَةٍ غَصۡبࣰا ﴿79﴾
(लीजिए सुनिये) वह कश्ती (जिसमें मैंने सुराख़ कर दिया था) तो चन्द ग़रीबों की थी जो दरिया में मेहनत करके गुज़ारा करते थे मैंने चाहा कि उसे ऐबदार बना दूँ (क्योंकि) उनके पीछे-पीछे एक (ज़ालिम) बादशाह (आता) था कि तमाम कश्तियां ज़बरदस्ती बेगार में पकड़ लेता था
वह जो नौका थी, कुछ निर्धन लोगों की थी जो दरिया में काम करते थे, तो मैंने चाहा कि उसे ऐबदार कर दूँ, क्योंकि आगे उनके परे एक सम्राट था, जो प्रत्येक नौका को ज़बरदस्ती छीन लेता था
وَأَمَّا ٱلۡغُلَـٰمُ فَكَانَ أَبَوَاهُ مُؤۡمِنَیۡنِ فَخَشِینَاۤ أَن یُرۡهِقَهُمَا طُغۡیَـٰنࣰا وَكُفۡرࣰا ﴿80﴾
और वह जो लड़का जिसको मैंने मार डाला तो उसके माँ बाप दोनों (सच्चे) ईमानदार हैं तो मुझको ये अन्देशा हुआ कि (ऐसा न हो कि बड़ा होकर) उनको भी अपने सरकशी और कुफ़्र में फँसा दे
और रहा वह लड़का, तो उसके माँ-बाप ईमान पर थे। हमें आशंका हुई कि वह सरकशी और कुफ़्र से उन्हें तंग करेगा
فَأَرَدۡنَاۤ أَن یُبۡدِلَهُمَا رَبُّهُمَا خَیۡرࣰا مِّنۡهُ زَكَوٰةࣰ وَأَقۡرَبَ رُحۡمࣰا ﴿81﴾
तो हमने चाहा कि (हम उसको मार डाले और) उनका परवरदिगार इसके बदले में ऐसा फरज़न्द अता फरमाए जो उससे पाक नफ़सी और पाक कराबत में बेहतर हो
इसलिए हमने चाहा कि उनका रब उन्हें इसके बदले दूसरी संतान दे, जो आत्मविकास में इससे अच्छा हो और दया-करूणा से अधिक निकट हो
وَأَمَّا ٱلۡجِدَارُ فَكَانَ لِغُلَـٰمَیۡنِ یَتِیمَیۡنِ فِی ٱلۡمَدِینَةِ وَكَانَ تَحۡتَهُۥ كَنزࣱ لَّهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَـٰلِحࣰا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَن یَبۡلُغَاۤ أَشُدَّهُمَا وَیَسۡتَخۡرِجَا كَنزَهُمَا رَحۡمَةࣰ مِّن رَّبِّكَۚ وَمَا فَعَلۡتُهُۥ عَنۡ أَمۡرِیۚ ذَ ٰلِكَ تَأۡوِیلُ مَا لَمۡ تَسۡطِع عَّلَیۡهِ صَبۡرࣰا ﴿82﴾
और वह जो दीवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना (गड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाने निकाल ले और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने एख्तियार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त है उन वाक़यात की जिन पर आपसे सब्र न हो सका
और रही यह दीवार तो यह दो अनाथ बालकों की है जो इस नगर में रहते है। और इसके नीचे उनका ख़जाना मौजूद है। और उनका बाप नेक था, इसलिए तुम्हारे रब ने चाहा कि वे अपनी युवावस्था को पहुँच जाएँ और अपना ख़जाना निकाल लें। यह तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुआ। मैंने तो अपने अधिकार से कुछ नहीं किया। यह है वास्तविकता उसकी जिसपर तुम धैर्य न रख सके।\"
وَیَسۡـَٔلُونَكَ عَن ذِی ٱلۡقَرۡنَیۡنِۖ قُلۡ سَأَتۡلُوا۟ عَلَیۡكُم مِّنۡهُ ذِكۡرًا ﴿83﴾
और (ऐ रसूल) तुमसे लोग ज़ुलक़रनैन का हाल (इम्तेहान) पूछा करते हैं तुम उनके जवाब में कह दो कि मैं भी तुम्हें उसका कुछ हाल बता देता हूँ
वे तुमसे ज़ुलक़रनैन के विषय में पूछते हैं। कह दो, \"मैं तुम्हें उसका कुछ वृतान्त सुनाता हूँ।\"
إِنَّا مَكَّنَّا لَهُۥ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَءَاتَیۡنَـٰهُ مِن كُلِّ شَیۡءࣲ سَبَبࣰا ﴿84﴾
(ख़ुदा फरमाता है कि) बेशक हमने उनको ज़मीन पर कुदरतें हुकूमत अता की थी और हमने उसे हर चीज़ के साज़ व सामान दे रखे थे
हमने उसे धरती में सत्ता प्रदान की थी और उसे हर प्रकार के संसाधन दिए थे
فَأَتۡبَعَ سَبَبًا ﴿85﴾
वह एक सामान (सफर के) पीछे पड़ा
अतएव उसने एक अभियान का आयोजन किया
حَتَّىٰۤ إِذَا بَلَغَ مَغۡرِبَ ٱلشَّمۡسِ وَجَدَهَا تَغۡرُبُ فِی عَیۡنٍ حَمِئَةࣲ وَوَجَدَ عِندَهَا قَوۡمࣰاۖ قُلۡنَا یَـٰذَا ٱلۡقَرۡنَیۡنِ إِمَّاۤ أَن تُعَذِّبَ وَإِمَّاۤ أَن تَتَّخِذَ فِیهِمۡ حُسۡنࣰا ﴿86﴾
यहाँ तक कि जब (चलते-चलते) आफताब के ग़ुरूब होने की जगह पहुँचा तो आफताब उनको ऐसा दिखाई दिया कि (गोया) वह काली कीचड़ के चश्में में डूब रहा है और उसी चश्में के क़रीब एक क़ौम को भी आबाद पाया हमने कहा ऐ जुलकरनैन (तुमको एख्तियार है) ख्वाह इनके कुफ्र की वजह से इनकी सज़ा करो (कि ईमान लाए) या इनके साथ हुस्ने सुलूक का शेवा एख्तियार करो (कि खुद ईमान क़ुबूल करें)
यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, \"ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझे अधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।\"
قَالَ أَمَّا مَن ظَلَمَ فَسَوۡفَ نُعَذِّبُهُۥ ثُمَّ یُرَدُّ إِلَىٰ رَبِّهِۦ فَیُعَذِّبُهُۥ عَذَابࣰا نُّكۡرࣰا ﴿87﴾
जुलकरनैन ने अर्ज़ की जो शख्स सरकशी करेगा तो हम उसकी फौरन सज़ा कर देगें (आख़िर) फिर वह (क़यामत में) अपने परवरदिगार के सामने लौटाकर लाया ही जाएगा और वह बुरी से बुरी सज़ा देगा
उसने कहा, \"जो कोई ज़ुल्म करेगा उसे तो हम दंड देंगे। फिर वह अपने रब की ओर पलटेगा और वह उसे कठोर यातना देगा
وَأَمَّا مَنۡ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَلَهُۥ جَزَاۤءً ٱلۡحُسۡنَىٰۖ وَسَنَقُولُ لَهُۥ مِنۡ أَمۡرِنَا یُسۡرࣰا ﴿88﴾
और जो शख्स ईमान कुबूल करेगा और अच्छे काम करेगा तो (वैसा ही) उसके लिए अच्छे से अच्छा बदला है और हम बहुत जल्द उसे अपने कामों में से आसान काम (करने) को कहेंगे
किन्तु जो कोई ईमान लाया औऱ अच्छा कर्म किया, उसके लिए तो अच्छा बदला है और हम उसे अपना सहज एवं मृदुल आदेश देंगे।\"
ثُمَّ أَتۡبَعَ سَبَبًا ﴿89﴾
फिर उस ने एक दूसरी राह एख्तियार की
फिर उसने एक और अभियान का आयोजन किया
حَتَّىٰۤ إِذَا بَلَغَ مَطۡلِعَ ٱلشَّمۡسِ وَجَدَهَا تَطۡلُعُ عَلَىٰ قَوۡمࣲ لَّمۡ نَجۡعَل لَّهُم مِّن دُونِهَا سِتۡرࣰا ﴿90﴾
यहाँ तक कि जब चलते-चलते आफताब के तूलूउ होने की जगह पहुँचा तो (आफताब) से ऐसा ही दिखाई दिया (गोया) कुछ लोगों के सर पर उस तरह तुलूउ कर रहा है जिन के लिए हमने आफताब के सामने कोई आड़ नहीं बनाया था
यहाँ तक कि जब वह सूर्योदय स्थल पर जा पहुँचा तो उसने उसे ऐसे लोगों पर उदित होते पाया जिनके लिए हमने सूर्य के मुक़ाबले में कोई ओट नहीं रखी थी
كَذَ ٰلِكَۖ وَقَدۡ أَحَطۡنَا بِمَا لَدَیۡهِ خُبۡرࣰا ﴿91﴾
और था भी ऐसा ही और जुलक़रनैन के पास वो कुछ भी था हमको उससे पूरी वाकफ़ियत थी
ऐसा ही हमने किया था और जो कुछ उसके पास था, उसकी हमें पूरी ख़बर थी
ثُمَّ أَتۡبَعَ سَبَبًا ﴿92﴾
(ग़रज़) उसने फिर एक और राह एख्तियार की
उसने फिर एक अभियान का आयोजन किया,
حَتَّىٰۤ إِذَا بَلَغَ بَیۡنَ ٱلسَّدَّیۡنِ وَجَدَ مِن دُونِهِمَا قَوۡمࣰا لَّا یَكَادُونَ یَفۡقَهُونَ قَوۡلࣰا ﴿93﴾
यहाँ तक कि जब चलते-चलते रोम में एक पहाड़ के (कंगुरों के) दीवारों के बीचो बीच पहुँच गया तो उन दोनों दीवारों के इस तरफ एक क़ौम को (आबाद) पाया तो बात चीत कुछ समझ ही नहीं सकती थी
यहाँ तक कि जब वह दो पर्वतों के बीच पहुँचा तो उसे उनके इस किनारे कुछ पहुँचा तो उसे उनके इस किनारे कुछ लोग मिले, जो ऐसा लगाता नहीं था कि कोई बात समझ पाते हों
قَالُوا۟ یَـٰذَا ٱلۡقَرۡنَیۡنِ إِنَّ یَأۡجُوجَ وَمَأۡجُوجَ مُفۡسِدُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَهَلۡ نَجۡعَلُ لَكَ خَرۡجًا عَلَىٰۤ أَن تَجۡعَلَ بَیۡنَنَا وَبَیۡنَهُمۡ سَدࣰّا ﴿94﴾
उन लोगों ने मुतरज्जिम के ज़रिए से अर्ज़ की ऐ ज़ुलकरनैन (इसी घाटी के उधर याजूज माजूज की क़ौम है जो) मुल्क में फ़साद फैलाया करते हैं तो अगर आप की इजाज़त हो तो हम लोग इस ग़र्ज़ से आपसे पास चन्दा जमा करें कि आप हमारे और उनके दरमियान कोई दीवार बना दें
उन्होंने कहा, \"ऐ ज़ुलक़रनैन! याजूज और माजूज इस भूभाग में उत्पात मचाते हैं। क्या हम तुम्हें कोई कर इस बात काम के लिए दें कि तुम हमारे और उनके बीच एक अवरोध निर्मित कर दो?\"
قَالَ مَا مَكَّنِّی فِیهِ رَبِّی خَیۡرࣱ فَأَعِینُونِی بِقُوَّةٍ أَجۡعَلۡ بَیۡنَكُمۡ وَبَیۡنَهُمۡ رَدۡمًا ﴿95﴾
जुलकरनैन ने कहा कि मेरे परवरदिगार ने ख़र्च की जो कुदरत मुझे दे रखी है वह (तुम्हारे चन्दे से) कहीं बेहतर है (माल की ज़रूरत नहीं) तुम फक़त मुझे क़ूवत से मदद दो तो मैं तुम्हारे और उनके दरमियान एक रोक बना दूँ
उसने कहा, \"मेरे रब ने मुझे जो कुछ अधिकार एवं शक्ति दी है वह उत्तम है। तुम तो बस बल में मेरी सहायता करो। मैं तुम्हारे और उनके बीच एक सुदृढ़ दीवार बनाए देता हूँ
ءَاتُونِی زُبَرَ ٱلۡحَدِیدِۖ حَتَّىٰۤ إِذَا سَاوَىٰ بَیۡنَ ٱلصَّدَفَیۡنِ قَالَ ٱنفُخُوا۟ۖ حَتَّىٰۤ إِذَا جَعَلَهُۥ نَارࣰا قَالَ ءَاتُونِیۤ أُفۡرِغۡ عَلَیۡهِ قِطۡرࣰا ﴿96﴾
(अच्छा तो) मुझे (कहीं से) लोहे की सिले ला दो (चुनान्चे वह लोग) लाए और एक बड़ी दीवार बनाई यहाँ तक कि जब दोनो कंगूरो के दरमेयान (दीवार) को बुलन्द करके उनको बराबर कर दिया तो उनको हुक्म दिया कि इसके गिर्द आग लगाकर धौको यहां तक उसको (धौंकते-धौंकते) लाल अंगारा बना दिया
मुझे लोहे के टुकड़े ला दो।\" यहाँ तक कि जब दोनों पर्वतों के बीच के रिक्त स्थान को पाटकर बराबर कर दिया तो कहा, \"धौंको!\" यहाँ तक कि जब उसे आग कर दिया तो कहा, \"मुझे पिघला हुआ ताँबा ला दो, ताकि मैं उसपर उँड़ेल दूँ।\"
فَمَا ٱسۡطَـٰعُوۤا۟ أَن یَظۡهَرُوهُ وَمَا ٱسۡتَطَـٰعُوا۟ لَهُۥ نَقۡبࣰا ﴿97﴾
तो कहा कि अब हमको ताँबा दो कि इसको पिघलाकर इस दीवार पर उँडेल दें (ग़रज़) वह ऐसी ऊँची मज़बूत दीवार बनी कि न तो याजूज व माजूज उस पर चढ़ ही सकते थे और न उसमें नक़ब लगा सकते थे
तो न तो वे (याजूज, माजूज) उसपर चढ़कर आ सकते थे और न वे उसमें सेंध ही लगा सकते थे
قَالَ هَـٰذَا رَحۡمَةࣱ مِّن رَّبِّیۖ فَإِذَا جَاۤءَ وَعۡدُ رَبِّی جَعَلَهُۥ دَكَّاۤءَۖ وَكَانَ وَعۡدُ رَبِّی حَقࣰّا ﴿98﴾
जुलक़रनैन ने (दीवार को देखकर) कहा ये मेरे परवरदिगार की मेहरबानी है मगर जब मेरे परवरदिगार का वायदा (क़यामत) आयेगा तो इसे ढहा कर हमवार कर देगा और मेरे परवरदिगार का वायदा सच्चा है
उसने कहा, \"यह मेरे रब की दयालुता है, किन्तु जब मेरे रब के वादे का समय आ जाएगा तो वह उसे ढाकर बराबर कर देगा, और मेरे रब का वादा सच्चा है।\"
۞ وَتَرَكۡنَا بَعۡضَهُمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ یَمُوجُ فِی بَعۡضࣲۖ وَنُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَجَمَعۡنَـٰهُمۡ جَمۡعࣰا ﴿99﴾
और हम उस दिन (उन्हें उनकी हालत पर) छोड़ देंगे कि एक दूसरे में (टकरा के दरिया की) लहरों की तरह गुड़मुड़ हो जाएँ और सूर फूँका जाएगा तो हम सब को इकट्ठा करेंगे
उस दिन हम उन्हें छोड़ देंगे कि वे एक-दूसरे से मौज़ों की तरह परस्पर गुत्मथ-गुत्था हो जाएँगे। और \"सूर\" फूँका जाएगा। फिर हम उन सबको एक साथ इकट्ठा करेंगे
وَعَرَضۡنَا جَهَنَّمَ یَوۡمَىِٕذࣲ لِّلۡكَـٰفِرِینَ عَرۡضًا ﴿100﴾
और उसी दिन जहन्नुम को उन काफिरों के सामने खुल्लम खुल्ला पेश करेंगे
और उस दिन जहन्नम को इनकार करनेवालों के सामने कर देंगे
ٱلَّذِینَ كَانَتۡ أَعۡیُنُهُمۡ فِی غِطَاۤءٍ عَن ذِكۡرِی وَكَانُوا۟ لَا یَسۡتَطِیعُونَ سَمۡعًا ﴿101﴾
और उसी (रसूल की दुश्मनी की सच्ची बात) कुछ भी सुन ही न सकते थे
जिनके नेत्र मेरी अनुस्मृति की ओर से परदे में थे और जो कुछ सुन भी नहीं सकते थे
أَفَحَسِبَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ أَن یَتَّخِذُوا۟ عِبَادِی مِن دُونِیۤ أَوۡلِیَاۤءَۚ إِنَّاۤ أَعۡتَدۡنَا جَهَنَّمَ لِلۡكَـٰفِرِینَ نُزُلࣰا ﴿102﴾
तो क्या जिन लोगों ने कुफ्र एख्तियार किया इस ख्याल में हैं कि हमको छोड़कर हमारे बन्दों को अपना सरपरस्त बना लें (कुछ पूछगछ न होगी) (अच्छा सुनो) हमने काफिरों की मेहमानदारी के लिए जहन्नुम तैयार कर रखी है
तो क्या इनकार करनेवाले इस ख़याल में हैं कि मुझसे हटकर मेरे बन्दों को अपना हिमायती बना लें? हमने ऐसे इनकार करनेवालों के आतिथ्य-सत्कार के लिए जहन्नम तैयार कर रखा है
قُلۡ هَلۡ نُنَبِّئُكُم بِٱلۡأَخۡسَرِینَ أَعۡمَـٰلًا ﴿103﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या हम उन लोगों का पता बता दें जो लोग आमाल की हैसियत से बहुत घाटे में हैं
कहो, \"क्या हम तुम्हें उन लोगों की ख़बर दें, जो अपने कर्मों की स्पष्ट से सबसे बढ़कर घाटा उठानेवाले हैं?
ٱلَّذِینَ ضَلَّ سَعۡیُهُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَهُمۡ یَحۡسَبُونَ أَنَّهُمۡ یُحۡسِنُونَ صُنۡعًا ﴿104﴾
(ये) वह लोग (हैं) जिन की दुनियावी ज़िन्दगी की राई (कोशिश सब) अकारत हो गई और वह उस ख़ाम ख्याल में हैं कि वह यक़ीनन अच्छे-अच्छे काम कर रहे हैं
यो वे लोग है जिनका प्रयास सांसारिक जीवन में अकारथ गया और वे यही समझते है कि वे बहुत अच्छा कर्म कर रहे है
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ وَلِقَاۤىِٕهِۦ فَحَبِطَتۡ أَعۡمَـٰلُهُمۡ فَلَا نُقِیمُ لَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَزۡنࣰا ﴿105﴾
यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयातों से और (क़यामत के दिन) उसके सामने हाज़िर होने से इन्कार किया तो उनका सब किया कराया अकारत हुआ तो हम उसके लिए क़यामत के दिन मीजान हिसाब भी क़ायम न करेंगे
यही वे लोग है जिन्होंने अपने रब की आयतों का और उससे मिलन का इनकार किया। अतः उनके कर्म जान को लागू हुए, तो हम क़ियामत के दिन उन्हें कोई वज़न न देंगे
ذَ ٰلِكَ جَزَاۤؤُهُمۡ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُوا۟ وَٱتَّخَذُوۤا۟ ءَایَـٰتِی وَرُسُلِی هُزُوًا ﴿106﴾
(और सीधे जहन्नुम में झोंक देगें) ये जहन्नुम उनकी करतूतों का बदला है कि उन्होंने कुफ्र एख्तियार किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों को हँसी ठठ्ठा बना लिया
उनका बदला वही जहन्नम है, इसलिए कि उन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का उपहास किया
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ كَانَتۡ لَهُمۡ جَنَّـٰتُ ٱلۡفِرۡدَوۡسِ نُزُلًا ﴿107﴾
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किये उनकी मेहमानदारी के लिए फिरदौस (बरी) के बाग़ात होंगे जिनमें वह हमेशा रहेंगे
निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके आतिथ्य के लिए फ़िरदौस के बाग़ होंगे,
خَـٰلِدِینَ فِیهَا لَا یَبۡغُونَ عَنۡهَا حِوَلࣰا ﴿108﴾
और वहाँ से हिलने की भी ख्वाहिश न करेंगे
जिनमें वे सदैव रहेंगे, वहाँ से हटना न चाहेंगे।\"
قُل لَّوۡ كَانَ ٱلۡبَحۡرُ مِدَادࣰا لِّكَلِمَـٰتِ رَبِّی لَنَفِدَ ٱلۡبَحۡرُ قَبۡلَ أَن تَنفَدَ كَلِمَـٰتُ رَبِّی وَلَوۡ جِئۡنَا بِمِثۡلِهِۦ مَدَدࣰا ﴿109﴾
(ऐ रसूल उन लोगों से) कहो कि अगर मेरे परवरदिगार की बातों के (लिखने के) वास्ते समन्दर (का पानी) भी सियाही बन जाए तो क़ब्ल उसके कि मेरे परवरदिगार की बातें ख़त्म हों समन्दर ही ख़त्म हो जाएगा अगरचे हम वैसा ही एक समन्दर उस की मदद को लाँए
कहो, \"यदि समुद्र मेरे रब के बोल को लिखने के लिए रोशनाई हो जाए तो इससे पहले कि मेरे रब के बोल समाप्त हों, समुद्र ही समाप्त हो जाएगा। यद्यपि हम उसके सदृश्य एक और भी समुद्र उसके साथ ला मिलाएँ।\"
قُلۡ إِنَّمَاۤ أَنَا۠ بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُوحَىٰۤ إِلَیَّ أَنَّمَاۤ إِلَـٰهُكُمۡ إِلَـٰهࣱ وَ ٰحِدࣱۖ فَمَن كَانَ یَرۡجُوا۟ لِقَاۤءَ رَبِّهِۦ فَلۡیَعۡمَلۡ عَمَلࣰا صَـٰلِحࣰا وَلَا یُشۡرِكۡ بِعِبَادَةِ رَبِّهِۦۤ أَحَدَۢا ﴿110﴾
(ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी तुम्हारा ही ऐसा एक आदमी हूँ (फर्क़ इतना है) कि मेरे पास ये वही आई है कि तुम्हारे माबूद यकता माबूद हैं तो वो शख्स आरज़ूमन्द होकर अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होगा तो उसे अच्छे काम करने चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक न करें
कह दो, \"मैं तो केवल तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः जो कोई अपने रब से मिलन की आशा रखता हो, उसे चाहिए कि अच्छा कर्म करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को साझी न बनाए।\"