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Surah The Prostration [As-Sajda] in Hindi
تَنزِیلُ ٱلۡكِتَـٰبِ لَا رَیۡبَ فِیهِ مِن رَّبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿2﴾
इसमे कुछ शक नहीं कि किताब क़ुरान का नाज़िल करना सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ से है
इस किताब का अवतरण - इसमें सन्देह नहीं - सारे संसार के रब की ओर से है
أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۚ بَلۡ هُوَ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوۡمࣰا مَّاۤ أَتَىٰهُم مِّن نَّذِیرࣲ مِّن قَبۡلِكَ لَعَلَّهُمۡ یَهۡتَدُونَ ﴿3﴾
क्या ये लोग (ये कहते हैं कि इसको इस शख्स (रसूल) ने अपनी जी से गढ़ लिया है नहीं ये बिल्कुल तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बरहक़ है ताकि तुम उन लोगों को (ख़ुदा के अज़ाब से) डराओ जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं ताकि ये लोग राह पर आएँ
(क्या वे इसपर विश्वास नहीं रखते) या वे कहते है कि \"इस व्यक्ति ने इसे स्वयं ही घड़ लिया है?\" नहीं, बल्कि वह सत्य है तेरे रब की ओर से, ताकि तू उन लोगों को सावधान कर दे जिनके पास तुझसे पहले कोई सावधान करनेवाला नहीं आया। कदाचित वे मार्ग पाएँ
ٱللَّهُ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَیۡنَهُمَا فِی سِتَّةِ أَیَّامࣲ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ مَا لَكُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَلِیࣲّ وَلَا شَفِیعٍۚ أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ ﴿4﴾
ख़ुदा ही तो है जिसने सारे आसमान और ज़मीन और जितनी चीज़े इन दोनो के दरमियान हैं छह: दिन में पैदा की फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ उसके सिवा न कोई तुम्हारा सरपरस्त है न कोई सिफारिशी तो क्या तुम (इससे भी) नसीहत व इबरत हासिल नहीं करते
अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती को और जो कुछ दोनों के बीच है छह दिनों में पैदा किया। फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। उससे हटकर न तो तुम्हारा कोई संरक्षक मित्र है और न उसके मुक़ाबले में कोई सिफ़ारिस करनेवाला। फिर क्या तुम होश में न आओगे?
یُدَبِّرُ ٱلۡأَمۡرَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ یَعۡرُجُ إِلَیۡهِ فِی یَوۡمࣲ كَانَ مِقۡدَارُهُۥۤ أَلۡفَ سَنَةࣲ مِّمَّا تَعُدُّونَ ﴿5﴾
आसमान से ज़मीन तक के हर अम्र का वही मुद्ब्बिर (व मुन्तज़िम) है फिर ये बन्दोबस्त उस दिन जिस की मिक़दार तुम्हारे शुमार से हज़ार बरस से होगी उसी की बारगाह में पेश होगा
वह कार्य की व्यवस्था करता है आकाश से धरती तक - फिर सारे मामले उसी की तरफ़ लौटते है - एक दिन में, जिसकी माप तुम्हारी गणना के अनुसार एक हज़ार वर्ष है
ذَ ٰلِكَ عَـٰلِمُ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿6﴾
वही (मुदब्बिर) पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है
वही है परोक्ष और प्रत्यक्ष का जाननेवाला अत्यन्त प्रभुत्वशाली, दयावान है
ٱلَّذِیۤ أَحۡسَنَ كُلَّ شَیۡءٍ خَلَقَهُۥۖ وَبَدَأَ خَلۡقَ ٱلۡإِنسَـٰنِ مِن طِینࣲ ﴿7﴾
वह (क़ादिर) जिसने जो चीज़ बनाई (निख सुख से) ख़ूब (दुरुस्त) बनाई और इन्सान की इबतेदाई ख़िलक़त मिट्टी से की
जिसने हरेक चीज़, जो बनाई ख़ूब ही बनाई और उसने मनुष्य की संरचना का आरम्भ गारे से किया
ثُمَّ جَعَلَ نَسۡلَهُۥ مِن سُلَـٰلَةࣲ مِّن مَّاۤءࣲ مَّهِینࣲ ﴿8﴾
उसकी नस्ल (इन्सानी जिस्म के) खुलासा यानी (नुत्फे के से) ज़लील पानी से बनाई
फिर उसकी सन्तति एक तुच्छ पानी के सत से चलाई
ثُمَّ سَوَّىٰهُ وَنَفَخَ فِیهِ مِن رُّوحِهِۦۖ وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَـٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِیلࣰا مَّا تَشۡكُرُونَ ﴿9﴾
फिर उस (के पुतले) को दुरुस्त किया और उसमें अपनी तरफ से रुह फूँकी और तुम लोगों के (सुनने के) लिए कान और (देखने के लिए) ऑंखें और (समझने के लिए) दिल बनाएँ (इस पर भी) तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो
फिर उसे ठीक-ठीक किया और उसमें अपनी रूह (आत्मा) फूँकी। और तुम्हें कान और आँखें और दिल दिए। तुम आभारी थोड़े ही होते हो
وَقَالُوۤا۟ أَءِذَا ضَلَلۡنَا فِی ٱلۡأَرۡضِ أَءِنَّا لَفِی خَلۡقࣲ جَدِیدِۭۚ بَلۡ هُم بِلِقَاۤءِ رَبِّهِمۡ كَـٰفِرُونَ ﴿10﴾
और ये लोग कहते हैं कि जब हम ज़मीन में नापैद हो जाएँगे तो क्या हम फिर नया जन्म लेगे (क़यामत से नही) बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार के (सामने हुज़ूरी ही) से इन्कार रखते हैं
और उन्होंने कहा, \"जब हम धरती में रल-मिल जाएँगे तो फिर क्या हम वास्तब में नवीन काय में जीवित होंगे?\" नहीं, बल्कि उन्हें अपने रब से मिलने का इनकार है
۞ قُلۡ یَتَوَفَّىٰكُم مَّلَكُ ٱلۡمَوۡتِ ٱلَّذِی وُكِّلَ بِكُمۡ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ تُرۡجَعُونَ ﴿11﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मल्कुलमौत जो तुम्हारे ऊपर तैनात है वही तुम्हारी रुहें क़ब्ज़ करेगा उसके बाद तुम सबके सब अपने परवरदिगार की तरफ लौटाए जाओगे
कहो, \"मृत्यु का फ़रिश्ता जो तुमपर नियुक्त है, वह तुम्हें पूर्ण रूप से अपने क़ब्जे में ले लेता है। फिर तुम अपने रब की ओर वापस होंगे।\"
وَلَوۡ تَرَىٰۤ إِذِ ٱلۡمُجۡرِمُونَ نَاكِسُوا۟ رُءُوسِهِمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ رَبَّنَاۤ أَبۡصَرۡنَا وَسَمِعۡنَا فَٱرۡجِعۡنَا نَعۡمَلۡ صَـٰلِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ ﴿12﴾
और (ऐ रसूल) तुम को बहुत अफसोस होगा अगर तुम मुजरिमों को देखोगे कि वह (हिसाब के वक्त) अपने परवरदिगार की बारगाह में अपने सर झुकाए खड़े हैं और(अर्ज़ कर रहे हैं) परवरदिगार हमने (अच्छी तरह देखा और सुन लिया तू हमें दुनिया में एक दफा फिर लौटा दे कि हम नेक काम करें
और यदि कहीं तुम देखते जब वे अपराधी अपने रब के सामने अपने सिर झुकाए होंगे कि \"हमारे रब! हमने देख लिया और सुन लिया। अब हमें वापस भेज दे, ताकि हम अच्छे कर्म करें। निस्संदेह अब हमें विश्वास हो गया।\"
وَلَوۡ شِئۡنَا لَـَٔاتَیۡنَا كُلَّ نَفۡسٍ هُدَىٰهَا وَلَـٰكِنۡ حَقَّ ٱلۡقَوۡلُ مِنِّی لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ ٱلۡجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِینَ ﴿13﴾
और अब तो हमको (क़यामत का)े पूरा पूरा यक़ीन है और (ख़ुदा फरमाएगा कि) अगर हम चाहते तो दुनिया ही में हर शख़्श को (मजबूर करके) राहे रास्त पर ले आते मगर मेरी तरफ से (रोजे अज़ा) ये बात क़रार पा चुकी है कि मै जहन्नुम को जिन्नात और आदमियों से भर दूँगा
यदि हम चाहते तो प्रत्येक व्यक्ति को उसका अपना संमार्ग दिखा देते, तिन्तु मेरी ओर से बात सत्यापित हो चुकी है कि \"मैं जहन्नम को जिन्नों और मनुष्यों, सबसे भरकर रहूँगा।\"
فَذُوقُوا۟ بِمَا نَسِیتُمۡ لِقَاۤءَ یَوۡمِكُمۡ هَـٰذَاۤ إِنَّا نَسِینَـٰكُمۡۖ وَذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلۡخُلۡدِ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿14﴾
तो चूँकि तुम आज के दिन हुज़ूरी को भूले बैठे थे तो अब उसका मज़ा चखो हमने तुमको क़सदन भुला दिया और जैसी जैसी तुम्हारी करतूतें थीं (उनके बदले) अब हमेशा के अज़ाब के मज़े चखो
अतः अब चखो मज़ा, इसका कि तुमने अपने इस दिन के मिलन को भुलाए रखा। तो हमने भी तुम्हें भुला दिया। शाश्वत यातना का रसास्वादन करो, उसके बदले में जो तुम करते रहे हो
إِنَّمَا یُؤۡمِنُ بِـَٔایَـٰتِنَا ٱلَّذِینَ إِذَا ذُكِّرُوا۟ بِهَا خَرُّوا۟ سُجَّدࣰا وَسَبَّحُوا۟ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَهُمۡ لَا یَسۡتَكۡبِرُونَ ۩ ﴿15﴾
हमारी आयतों पर ईमान बस वही लोग लाते हैं कि जिस वक्त उन्हें वह (आयते) याद दिलायी गयीं तो फौरन सजदे में गिर पड़ने और अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह पढ़ने लगे और ये लोग तकब्बुर नही करते (15) (सजदा)
हमारी आयतों पर जो बस वही लोग ईमान लाते है, जिन्हें उनके द्वारा जब याद दिलाया जाता है तो सजदे में गिर पड़ते है और अपने रब का गुणगान करते है और घमंड नहीं करते
تَتَجَافَىٰ جُنُوبُهُمۡ عَنِ ٱلۡمَضَاجِعِ یَدۡعُونَ رَبَّهُمۡ خَوۡفࣰا وَطَمَعࣰا وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿16﴾
(रात) के वक्त उनके पहलू बिस्तरों से आशना नहीं होते और (अज़ाब के) ख़ौफ और (रहमत की) उम्मीद पर अपने परवरदिगार की इबादत करते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है उसमें से (ख़ुदा की) राह में ख़र्च करते हैं
उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते है कि वे अपने रब को भय और लालसा के साथ पुकारते है, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते है
فَلَا تَعۡلَمُ نَفۡسࣱ مَّاۤ أُخۡفِیَ لَهُم مِّن قُرَّةِ أَعۡیُنࣲ جَزَاۤءَۢ بِمَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿17﴾
उन लोगों की कारगुज़ारियों के बदले में कैसी कैसी ऑंखों की ठन्डक उनके लिए ढकी छिपी रखी है उसको कोई शख़्श जानता ही नहीं
फिर कोई प्राणी नहीं जानता आँखों की जो ठंडक उसके लिए छिपा रखी गई है उसके बदले में देने के ध्येय से जो वे करते रहे होंगे
أَفَمَن كَانَ مُؤۡمِنࣰا كَمَن كَانَ فَاسِقࣰاۚ لَّا یَسۡتَوُۥنَ ﴿18﴾
तो क्या जो शख़्श ईमानदार है उस शख़्श के बराबर हो जाएगा जो बदकार है (हरगिज़ नहीं) ये दोनों बराबर नही हो सकते
भला जो व्यक्ति ईमानवाला हो वह उस व्यक्ति जैसा हो सकता है जो अवज्ञाकारी हो? वे बराबर नहीं हो सकते
أَمَّا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فَلَهُمۡ جَنَّـٰتُ ٱلۡمَأۡوَىٰ نُزُلَۢا بِمَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿19﴾
लेकिन जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम किए उनके लिए तो रहने सहने के लिए (बेहश्त के) बाग़ात हैं ये सामाने ज़ियाफ़त उन कारगुज़ारियों का बदला है जो वह (दुनिया में) कर चुके थे
रहे वे लोग जा ईमान लाए और उन्हें अच्छे कर्म किए, उनके लिए जो कर्म वे करते रहे उसके बदले में आतिथ्य स्वरूप रहने के बाग़ है
وَأَمَّا ٱلَّذِینَ فَسَقُوا۟ فَمَأۡوَىٰهُمُ ٱلنَّارُۖ كُلَّمَاۤ أَرَادُوۤا۟ أَن یَخۡرُجُوا۟ مِنۡهَاۤ أُعِیدُوا۟ فِیهَا وَقِیلَ لَهُمۡ ذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلنَّارِ ٱلَّذِی كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ﴿20﴾
और जिन लोगों ने बदकारी की उनका ठिकाना तो (बस) जहन्नुम है वह जब उसमें से निकल जाने का इरादा करेंगे तो उसी में फिर ढकेल दिए जाएँगे और उन से कहा जाएगा कि दोज़ख़ के जिस अज़ाब को तुम झुठलाते थे अब उसके मज़े चखो
रहे वे लोग जिन्होंने सीमा का उल्लंघन किया, उनका ठिकाना आग है। जब कभी भी वे चाहेंगे कि उससे निकल जाएँ तो उसी में लौटा दिए जाएँगे और उनसे कहा जाएगा, \"चखो उस आग की यातना का मज़ा, जिसे तुम झूठ समझते थे।\"
وَلَنُذِیقَنَّهُم مِّنَ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡأَدۡنَىٰ دُونَ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡأَكۡبَرِ لَعَلَّهُمۡ یَرۡجِعُونَ ﴿21﴾
और हम यक़ीनी (क़यामत के) बड़े अज़ाब से पहले दुनिया के (मामूली) अज़ाब का मज़ा चखाएँगें जो अनक़रीब होगा ताकि ये लोग अब भी (मेरी तरफ) रुज़ू करें
हम बड़ी यातना से इतर उन्हें छोटी यातना का मज़ा चखाएँगे, कदाचित वे पलट आएँ
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِۦ ثُمَّ أَعۡرَضَ عَنۡهَاۤۚ إِنَّا مِنَ ٱلۡمُجۡرِمِینَ مُنتَقِمُونَ ﴿22﴾
और जिस शख़्श को उसके परवरदिगार की आयतें याद दिलायी जाएँ और वह उनसे मुँह फेर उससे बढ़कर और ज़ालिम कौन होगा हम गुनाहगारों से इन्तक़ाम लेगें और ज़रुर लेंगे
और उस व्यक्ति से बढकर अत्याचारी कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा याद दिलाया जाए,फिर वह उनसे मुँह फेर ले? निश्चय ही हम अपराधियों से बदला लेकर रहेंगे
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ فَلَا تَكُن فِی مِرۡیَةࣲ مِّن لِّقَاۤىِٕهِۦۖ وَجَعَلۡنَـٰهُ هُدࣰى لِّبَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ﴿23﴾
और (ऐ रसूल) हमने तो मूसा को भी (आसमानी किताब) तौरेत अता की थी तुम भी इस किताब (कुरान) के (अल्लाह की तरफ से) मिलने में शक में न पड़े रहो और हमने इस (तौरेत) तो तुम को भी बनी इसराईल के लिए रहनुमा क़रार दिया था
हमने मूसा को किताब प्रदान की थी - अतः उसके मिलने के प्रति तुम किसी सन्देह में न रहना और हमने इसराईल की सन्तान के लिए उस (किताब) को मार्गदर्शन बनाया था
وَجَعَلۡنَا مِنۡهُمۡ أَىِٕمَّةࣰ یَهۡدُونَ بِأَمۡرِنَا لَمَّا صَبَرُوا۟ۖ وَكَانُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَا یُوقِنُونَ ﴿24﴾
और उन्ही (बनी इसराईल) में से हमने कुछ लोगों को चूंकि उन्होंने (मुसीबतों पर) सब्र किया था पेशवा बनाया जो हमारे हुक्म से (लोगो की) हिदायत करते थे और (इसके अलावा) हमारी आयतो का दिल से यक़ीन रखते थे
और जब वे जमे रहे और उन्हें हमारी आयतों पर विश्वास था, तो हमने उनमें ऐसे नायक बनाए जो हमारे आदेश से मार्ग दिखाते थे
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ یَفۡصِلُ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فِیمَا كَانُوا۟ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿25﴾
(ऐ रसूल) हसमें शक़ नहीं कि जिन बातों में लोग (दुनिया में) बाहम झगड़ते रहते हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार क़तई फैसला कर देगा
निश्चय ही तेरा रब ही क़ियामत के दिन उनके बीच उन बातों का फ़ैसला करेगा, जिनमें वे मतभेद करते रहे है
أَوَلَمۡ یَهۡدِ لَهُمۡ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡقُرُونِ یَمۡشُونَ فِی مَسَـٰكِنِهِمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتٍۚ أَفَلَا یَسۡمَعُونَ ﴿26﴾
क्या उन लोगों को ये मालूम नहीं कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला जिन के घरों में ये लोग चल फिर रहें हैं बेशक उसमे (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं तो क्या ये लोग सुनते नहीं हैं
क्या उनके लिए यह चीज़ भी मार्गदर्शक सिद्ध नहीं हुई कि उनसे पहले कितनी ही नस्लों को हम विनष्ट कर चुके है, जिनके रहने-बसने की जगहों में वे चलते-फिरते है? निस्संदेह इसमें बहुत-सी निशानियाँ है। फिर क्या वे सुनने नहीं?
أَوَلَمۡ یَرَوۡا۟ أَنَّا نَسُوقُ ٱلۡمَاۤءَ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلۡجُرُزِ فَنُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعࣰا تَأۡكُلُ مِنۡهُ أَنۡعَـٰمُهُمۡ وَأَنفُسُهُمۡۚ أَفَلَا یُبۡصِرُونَ ﴿27﴾
क्या इन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम चटियल मैदान (इफ़तादा) ज़मीन की तरफ पानी को जारी करते हैं फिर उसके ज़रिए से हम घास पात लगाते हैं जिसे उनके जानवर और ये ख़ुद भी खाते हैं तो क्या ये लोग इतना भी नहीं देखते
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम सूखी पड़ी भूमि की ओर पानी ले जाते है। फिर उससे खेती उगाते है, जिसमें से उनके चौपाए भी खाते है और वे स्वयं भी? तो क्या उन्हें सूझता नहीं?
وَیَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلۡفَتۡحُ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿28﴾
और ये लोग कहते है कि अगर तुम लोग सच्चे हो (कि क़यामत आएगी) तो (आख़िर) ये फैसला कब होगा
वे कहते है कि \"यह फ़ैसला कब होगा, यदि तुम सच्चे हो?\"
قُلۡ یَوۡمَ ٱلۡفَتۡحِ لَا یَنفَعُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ إِیمَـٰنُهُمۡ وَلَا هُمۡ یُنظَرُونَ ﴿29﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि फैसले के दिन कुफ्फ़ार को उनका ईमान लाना कुछ काम न आएगा और न उनको (इसकी) मोहलत दी जाएगी
कह दो कि \"फ़ैसले के दिन इनकार करनेवालों का ईमान उनके लिए कुछ लाभदायक न होगा और न उन्हें ठील ही दी जाएगी।\"
فَأَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ وَٱنتَظِرۡ إِنَّهُم مُّنتَظِرُونَ ﴿30﴾
ग़रज़ तुम उनकी बातों का ख्याल छोड़ दो और तुम मुन्तज़िर रहो (आख़िर) वह लोग भी तो इन्तज़ार कर रहे हैं
अच्छा, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो और प्रतीक्षा करो। वे भी परीक्षारत है
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