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ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِی لَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَهُ ٱلۡحَمۡدُ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِۚ وَهُوَ ٱلۡحَكِیمُ ٱلۡخَبِیرُ ﴿1﴾

हर क़िस्म की तारीफ उसी खुदा के लिए (दुनिया में भी) सज़ावार है कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और आख़ेरत में (भी हर तरफ) उसी की तारीफ है और वही वाक़िफकार हकीम है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जिसका वह सब कुछ है जो आकाशों और धरती में है। और आख़िरत में भी उसी के लिए प्रशंसा है। और वही तत्वदर्शी, ख़बर रखनेवाला है

یَعۡلَمُ مَا یَلِجُ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا یَخۡرُجُ مِنۡهَا وَمَا یَنزِلُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَمَا یَعۡرُجُ فِیهَاۚ وَهُوَ ٱلرَّحِیمُ ٱلۡغَفُورُ ﴿2﴾

(जो) चीज़ें (बीज वग़ैरह) ज़मीन में दाख़िल हुई है और जो चीज़ (दरख्त वग़ैरह) इसमें से निकलती है और जो चीज़ (पानी वग़ैरह) आसामन से नाज़िल होती है और जो चीज़ (नज़ारात फरिश्ते वग़ैरह) उस पर चढ़ती है (सब) को जानता है और वही बड़ा बख्शने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वह जानता है जो कुछ धरती में प्रविष्ट होता है और जो कुथ उससे निकलता है और जो कुछ आकाश से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है। और वही अत्यन्त दयावान, क्षमाशील है

وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لَا تَأۡتِینَا ٱلسَّاعَةُۖ قُلۡ بَلَىٰ وَرَبِّی لَتَأۡتِیَنَّكُمۡ عَـٰلِمِ ٱلۡغَیۡبِۖ لَا یَعۡزُبُ عَنۡهُ مِثۡقَالُ ذَرَّةࣲ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَلَا فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَاۤ أَصۡغَرُ مِن ذَ ٰ⁠لِكَ وَلَاۤ أَكۡبَرُ إِلَّا فِی كِتَـٰبࣲ مُّبِینࣲ ﴿3﴾

और कुफ्फार कहने लगे कि हम पर तो क़यामत आएगी ही नहीं (ऐ रसूल) तुम कह दो हॉ (हॉ) मुझ को अपने उस आलेमुल ग़ैब परवरदिगार की क़सम है जिससे ज़र्रा बराबर (कोई चीज़) न आसमान में छिपी हुई है और न ज़मीन में कि क़यामत ज़रूर आएगी और ज़र्रे से छोटी चीज़ और ज़र्रे से बडी (ग़रज़ जितनी चीज़े हैं सब) वाजेए व रौशन किताब लौहे महफूज़ में महफूज़ हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि \"हमपर क़ियामत की घड़ी नहीं आएगी।\" कह दो, \"क्यों नहीं, मेरे परोक्ष ज्ञाता रब की क़सम! वह तो तुमपर आकर रहेगी - उससे कणभर भी कोई चीज़ न तो आकाशों में ओझल है और न धरती में, और न इससे छोटी कोई चीज़ और न बड़ी। किन्तु वह एक स्पष्ट किताब में अंकित है। -

لِّیَجۡزِیَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَرِزۡقࣱ كَرِیمࣱ ﴿4﴾

ताकि जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और (अच्छे) काम किए उनको खुदा जज़ाए खैर दे यही वह लोग हैं जिनके लिए (गुनाहों की) मग़फेरत और (बहुत ही) इज्ज़त की रोज़ी है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"ताकि वह उन लोगों को बदला दे, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। वहीं है जिनके लिए क्षमा और प्रतिष्ठामय आजीविका है

وَٱلَّذِینَ سَعَوۡ فِیۤ ءَایَـٰتِنَا مُعَـٰجِزِینَ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ عَذَابࣱ مِّن رِّجۡزٍ أَلِیمࣱ ﴿5﴾

और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के तोड़) में मुक़ाबिले की दौड़-धूप की उन ही के लिए दर्दनाक अज़ाब की सज़ा होगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"रहे वे लोग जिन्होंने हमारी आयतों को मात करने का प्रयास किया, वह है जिनके लिए बहुत ही बुरे प्रकार की दुखद यातना है।\"

وَیَرَى ٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡعِلۡمَ ٱلَّذِیۤ أُنزِلَ إِلَیۡكَ مِن رَّبِّكَ هُوَ ٱلۡحَقَّ وَیَهۡدِیۤ إِلَىٰ صِرَ ٰ⁠طِ ٱلۡعَزِیزِ ٱلۡحَمِیدِ ﴿6﴾

और (ऐ रसूल) जिन लोगों को (हमारी बारगाह से) इल्म अता किया गया है वह जानते हैं कि जो (क़ुरान) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाज़िल हुआ है बिल्कुल ठीक है और सज़ावार हम्द (व सना) ग़ालिब (खुदा) की राह दिखाता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों को ज्ञान प्राप्त हुआ है वे स्वयं देखते है कि जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है वही सत्य है, और वह उसका मार्ग दिखाता है जो प्रभुत्वशाली, प्रशंसा का अधिकारी है

وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ هَلۡ نَدُلُّكُمۡ عَلَىٰ رَجُلࣲ یُنَبِّئُكُمۡ إِذَا مُزِّقۡتُمۡ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّكُمۡ لَفِی خَلۡقࣲ جَدِیدٍ ﴿7﴾

और कुफ्फ़ार (मसख़रेपन से बाहम) कहते हैं कि कहो तो हम तुम्हें ऐसा आदमी (मोहम्मद) बता दें जो तुम से बयान करेगा कि जब तुम (मर कर सड़ ग़ल जाओगे और) बिल्कुल रेज़ा रेज़ा हो जाओगे तो तुम यक़ीनन एक नए जिस्म में आओगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है कि \"क्या हम तुम्हें एक ऐसा आदमी बताएँ जो तुम्हें ख़बर देता है कि जब तुम बिलकुल चूर्ण-विचूर्ण हो जाओगे तो तुम नवीन काय में जीवित होगे?\"

أَفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَم بِهِۦ جِنَّةُۢۗ بَلِ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ فِی ٱلۡعَذَابِ وَٱلضَّلَـٰلِ ٱلۡبَعِیدِ ﴿8﴾

क्या उस शख्स (मोहम्मद) ने खुदा पर झूठ तूफान बाँधा है या उसे जुनून (हो गया) है (न मोहम्मद झूठा है न उसे जुनून है) बल्कि खुद वह लोग जो आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते अज़ाब और पहले दरजे की गुमराही में पड़े हुए हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या उसने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है, या उसे कुछ उन्माद है? नहीं, बल्कि जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे यातना और परले दरजे की गुमराही में हैं

أَفَلَمۡ یَرَوۡا۟ إِلَىٰ مَا بَیۡنَ أَیۡدِیهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُم مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِن نَّشَأۡ نَخۡسِفۡ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضَ أَوۡ نُسۡقِطۡ عَلَیۡهِمۡ كِسَفࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّكُلِّ عَبۡدࣲ مُّنِیبࣲ ﴿9﴾

तो क्या उन लोगों ने आसमान और ज़मीन की तरफ भी जो उनके आगे और उनके पीछे (सब तरफ से घेरे) हैं ग़ौर नहीं किया कि अगर हम चाहे तो उन लोगों को ज़मीन में धँसा दें या उन पर आसमान का कोई टुकड़ा ही गिरा दें इसमें शक नहीं कि इसमें हर रूजू करने वाले बन्दे के लिए यक़ीनी बड़ी इबरत है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या उन्होंने आकाश और धरती को नहीं देखा, जो उनके आगे भी है और उनके पीछे भी? यदि हम चाहें तो उन्हें धरती में धँसा दें या उनपर आकाश से कुछ टुकड़े गिरा दें। निश्चय ही इसमें एक निशानी है हर उस बन्दे के लिए जो रुजू करनेवाला हो

۞ وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا دَاوُۥدَ مِنَّا فَضۡلࣰاۖ یَـٰجِبَالُ أَوِّبِی مَعَهُۥ وَٱلطَّیۡرَۖ وَأَلَنَّا لَهُ ٱلۡحَدِیدَ ﴿10﴾

और हमने यक़ीनन दाऊद को अपनी बारगाह से बुर्जुग़ी इनायत की थी (और पहाड़ों को हुक्म दिया) कि ऐ पहाड़ों तसबीह करने में उनका साथ दो और परिन्द को (ताबेए कर दिया) और उनके वास्ते लोहे को (मोम की तरह) नरम कर दिया था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने दाऊद को अपनी ओर से श्रेष्ठ ता प्रदान की, \"ऐ पर्वतों! उसके साथ तसबीह को प्रतिध्वनित करो, और पक्षियों तुम भी!\" और हमने उसके लिए लोहे को नर्म कर दिया

أَنِ ٱعۡمَلۡ سَـٰبِغَـٰتࣲ وَقَدِّرۡ فِی ٱلسَّرۡدِۖ وَٱعۡمَلُوا۟ صَـٰلِحًاۖ إِنِّی بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿11﴾

कि फँराख़ व कुशादा जिरह बनाओ और (कड़ियों के) जोड़ने में अन्दाज़े का ख्याल रखो और तुम सब के सब अच्छे (अच्छे) काम करो वो कुछ तुम लोग करते हो मैं यक़ीनन देख रहा हूँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कि \"पूरी कवचें बना और कड़ियों को ठीक अंदाज़ें से जोड।\" - और तुम अच्छा कर्म करो। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो उसे मैं देखता हूँ

وَلِسُلَیۡمَـٰنَ ٱلرِّیحَ غُدُوُّهَا شَهۡرࣱ وَرَوَاحُهَا شَهۡرࣱۖ وَأَسَلۡنَا لَهُۥ عَیۡنَ ٱلۡقِطۡرِۖ وَمِنَ ٱلۡجِنِّ مَن یَعۡمَلُ بَیۡنَ یَدَیۡهِ بِإِذۡنِ رَبِّهِۦۖ وَمَن یَزِغۡ مِنۡهُمۡ عَنۡ أَمۡرِنَا نُذِقۡهُ مِنۡ عَذَابِ ٱلسَّعِیرِ ﴿12﴾

और हवा को सुलेमान का (ताबेइदार बना दिया था) कि उसकी सुबह की रफ्तार एक महीने (मुसाफ़त) की थी और इसी तरह उसकी शाम की रफ्तार एक महीने (के मुसाफत) की थी और हमने उनके लिए तांबे (को पिघलाकर) उसका चश्मा जारी कर दिया था और जिन्नात (को उनका ताबेदार कर दिया था कि उन) में कुछ लोग उनके परवरदिगार के हुक्म से उनके सामने काम काज करते थे और उनमें से जिसने हमारे हुक्म से इनहराफ़ किया है उसे हम (क़यामत में) जहन्नुम के अज़ाब का मज़ा चख़ाँएगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और सुलैमान के लिए वायु को वशीभुत कर दिया था। प्रातः समय उसका चलना एक महीने की राह तक और सायंकाल को उसका चलना एक महीने की राह तक - और हमने उसके लिए पिघले हुए ताँबे का स्रोत बहा दिया - और जिन्नों में से भी कुछ को (उसके वशीभूत कर दिया था,) जो अपने रब की अनुज्ञा से उसके आगे काम करते थे। (हमारा आदेशा था,) \"उनमें से जो हमारे हुक्म से फिरेगा उसे हम भडकती आग का मज़ा चखाएँगे।\"

یَعۡمَلُونَ لَهُۥ مَا یَشَاۤءُ مِن مَّحَـٰرِیبَ وَتَمَـٰثِیلَ وَجِفَانࣲ كَٱلۡجَوَابِ وَقُدُورࣲ رَّاسِیَـٰتٍۚ ٱعۡمَلُوۤا۟ ءَالَ دَاوُۥدَ شُكۡرࣰاۚ وَقَلِیلࣱ مِّنۡ عِبَادِیَ ٱلشَّكُورُ ﴿13﴾

ग़रज़ सुलेमान को जो बनवाना मंज़ूर होता ये जिन्नात उनके लिए बनाते थे (जैसे) मस्जिदें, महल, क़िले और (फरिश्ते अम्बिया की) तस्वीरें और हौज़ों के बराबर प्याले और (एक जगह) गड़ी हुई (बड़ी बड़ी) देग़ें (कि एक हज़ार आदमी का खाना पक सके) ऐ दाऊद की औलाद शुक्र करते रहो और मेरे बन्दों में से शुक्र करने वाले (बन्दे) थोड़े से हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे उसके लिए बनाते, जो कुछ वह चाहता - बड़े-बड़े भवन, प्रतिमाएँ, बड़े हौज़ जैसे थाल और जमी रहनेवाली देगें - \"ऐ दाऊद के लोगों! कर्म करो, कृतज्ञता दिखाने रूप में। मेरे बन्दों में कृतज्ञ थोड़े ही हैं।\"

فَلَمَّا قَضَیۡنَا عَلَیۡهِ ٱلۡمَوۡتَ مَا دَلَّهُمۡ عَلَىٰ مَوۡتِهِۦۤ إِلَّا دَاۤبَّةُ ٱلۡأَرۡضِ تَأۡكُلُ مِنسَأَتَهُۥۖ فَلَمَّا خَرَّ تَبَیَّنَتِ ٱلۡجِنُّ أَن لَّوۡ كَانُوا۟ یَعۡلَمُونَ ٱلۡغَیۡبَ مَا لَبِثُوا۟ فِی ٱلۡعَذَابِ ٱلۡمُهِینِ ﴿14﴾

फिर जब हमने सुलेमान पर मौत का हुक्म जारी किया तो (मर गए) मगर लकड़ी के सहारे खड़े थे और जिन्नात को किसी ने उनके मरने का पता न बताया मगर ज़मीन की दीमक ने कि वह सुलेमान के असा को खा रही थी फिर (जब खोखला होकर टूट गया और) सुलेमान (की लाश) गिरी तो जिन्नात ने जाना कि अगर वह लोग ग़ैब वॉ (ग़ैब के जानने वाले) होते तो (इस) ज़लील करने वाली (काम करने की) मुसीबत में न मुब्तिला रहते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर जब हमने उसके लिए मौत का फ़ैसला लागू किया तो फिर उन जिन्नों को उसकी मौत का पता बस भूमि के उस कीड़े ने दिया जो उसकी लाठी को खा रहा था। फिर जब वह गिर पड़ा, तब जिन्नों पर प्रकट हुआ कि यदि वे परोक्ष के जाननेवाले होते तो इस अपमानजनक यातना में पड़े न रहते

لَقَدۡ كَانَ لِسَبَإࣲ فِی مَسۡكَنِهِمۡ ءَایَةࣱۖ جَنَّتَانِ عَن یَمِینࣲ وَشِمَالࣲۖ كُلُوا۟ مِن رِّزۡقِ رَبِّكُمۡ وَٱشۡكُرُوا۟ لَهُۥۚ بَلۡدَةࣱ طَیِّبَةࣱ وَرَبٌّ غَفُورࣱ ﴿15﴾

और (क़ौम) सबा के लिए तो यक़ीनन ख़ुद उन्हीं के घरों में (कुदरते खुदा की) एक बड़ी निशानी थी कि उनके शहर के दोनों तरफ दाहिने बाएं (हरे-भरे) बाग़ात थे (और उनको हुक्म था) कि अपने परवरदिगार की दी हुई रोज़ी Âाओ (पियो) और उसका शुक्र अदा करो (दुनिया में) ऐसा पाकीज़ा शहर और (आख़ेरत में) परवरदिगार सा बख्शने वाला

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

सबा के लिए उनके निवास-स्थान ही में एक निशानी थी - दाएँ और बाएँ दो बाग, \"खाओ अपने रब की रोज़ी, और उसके प्रति आभार प्रकट करो। भूमि भी अच्छी-सी और रब भी क्षमाशील।\"

فَأَعۡرَضُوا۟ فَأَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمۡ سَیۡلَ ٱلۡعَرِمِ وَبَدَّلۡنَـٰهُم بِجَنَّتَیۡهِمۡ جَنَّتَیۡنِ ذَوَاتَیۡ أُكُلٍ خَمۡطࣲ وَأَثۡلࣲ وَشَیۡءࣲ مِّن سِدۡرࣲ قَلِیلࣲ ﴿16﴾

इस पर भी उन लोगों ने मुँह फेर लिया (और पैग़म्बरों का कहा न माना) तो हमने (एक ही बन्द तोड़कर) उन पर बड़े ज़ोरों का सैलाब भेज दिया और (उनको तबाह करके) उनके दोनों बाग़ों के बदले ऐसे दो बाग़ दिए जिनके फल बदमज़ा थे और उनमें झाऊ था और कुछ थोड़ी सी बेरियाँ थी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

किन्तु वे ध्यान में न लाए तो हमने उनपर बँध-तोड़ बाढ़ भेज दी और उनके दोनों बाग़ों के बदले में उन्हें दो दूसरे बाग़ दिए, जिनमें कड़वे-कसैले फल और झाड़ थे, और कुछ थोड़ी-सी झड़-बेरियाँ

ذَ ٰ⁠لِكَ جَزَیۡنَـٰهُم بِمَا كَفَرُوا۟ۖ وَهَلۡ نُجَـٰزِیۤ إِلَّا ٱلۡكَفُورَ ﴿17﴾

ये हमने उनकी नाशुक्री की सज़ा दी और हम तो बड़े नाशुक्रों ही की सज़ा किया करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह बदला हमने उन्हें इसलिए दिया कि उन्होंने कृतध्नता दिखाई। ऐसा बदला तो हम कृतध्न लोगों को ही देते है

وَجَعَلۡنَا بَیۡنَهُمۡ وَبَیۡنَ ٱلۡقُرَى ٱلَّتِی بَـٰرَكۡنَا فِیهَا قُرࣰى ظَـٰهِرَةࣰ وَقَدَّرۡنَا فِیهَا ٱلسَّیۡرَۖ سِیرُوا۟ فِیهَا لَیَالِیَ وَأَیَّامًا ءَامِنِینَ ﴿18﴾

और हम अहले सबा और (शाम) की उन बस्तियों के दरमियान जिनमें हमने बरकत अता की थी और चन्द बस्तियाँ (सरे राह) आबाद की थी जो बाहम नुमाया थीं और हमने उनमें आमद व रफ्त की राह मुक़र्रर की थी कि उनमें रातों को दिनों को (जब जी चाहे) बेखटके चलो फिरो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने उनके और उन बस्तियों के बीच जिनमें हमने बरकत रखी थी प्रत्यक्ष बस्तियाँ बसाई और उनमें सफ़र की मंज़िलें ख़ास अंदाज़े पर रखीं, \"उनमें रात-दिन निश्चिन्त होकर चलो फिरो!\"

فَقَالُوا۟ رَبَّنَا بَـٰعِدۡ بَیۡنَ أَسۡفَارِنَا وَظَلَمُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡ فَجَعَلۡنَـٰهُمۡ أَحَادِیثَ وَمَزَّقۡنَـٰهُمۡ كُلَّ مُمَزَّقٍۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّكُلِّ صَبَّارࣲ شَكُورࣲ ﴿19﴾

तो वह लोग ख़ुद कहने लगे परवरदिगार (क़रीब के सफर में लुत्फ नहीं) तो हमारे सफ़रों में दूरी पैदा कर दे और उन लोगों ने खुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया तो हमने भी उनको (तबाह करके उनके) अफसाने बना दिए - और उनकी धज्जियाँ उड़ा के उनको तितिर बितिर कर दिया बेशक उनमें हर सब्र व शुक्र करने वालोंके वास्ते बड़ी इबरते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

किन्तु उन्होंने कहा, \"ऐ हमारे रब! हमारी यात्राओं में दूरी कर दे।\" उन्होंने स्वयं अपने ही ऊपर ज़ुल्म किया। अन्ततः हम उन्हें (अतीत की) कहानियाँ बनाकर रहे, औऱ उन्हें बिल्कुल छिन्न-भिन्न कर डाला। निश्चय ही इसमें निशानियाँ है प्रत्येक बड़े धैर्यवान, कृतज्ञ के लिए

وَلَقَدۡ صَدَّقَ عَلَیۡهِمۡ إِبۡلِیسُ ظَنَّهُۥ فَٱتَّبَعُوهُ إِلَّا فَرِیقࣰا مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿20﴾

और शैतान ने अपने ख्याल को (जो उनके बारे में किया था) सच कर दिखाया तो उन लोगों ने उसकी पैरवी की मगर ईमानवालों का एक गिरोह (न भटका)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

इबलीस ने उनके विषय में अपना गुमान सत्य पाया और ईमानवालो के एक गिरोह के सिवा उन्होंने उसी का अनुसरण किया

وَمَا كَانَ لَهُۥ عَلَیۡهِم مِّن سُلۡطَـٰنٍ إِلَّا لِنَعۡلَمَ مَن یُؤۡمِنُ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ مِمَّنۡ هُوَ مِنۡهَا فِی شَكࣲّۗ وَرَبُّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءٍ حَفِیظࣱ ﴿21﴾

और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे में शक में (पड़े) हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हर चीज़ का निगरॉ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यद्यपि उसको उनपर कोई ज़ोर और अधिकार प्राप्त न था, किन्तु यह इसलिए कि हम उन लोगों को जो आख़िरत पर ईमान रखते है उन लोगों से अलग जान ले जो उसकी ओर से किसी सन्देह में पड़े हुए है। तुम्हारा रब हर चीज़ का अभिरक्षक है

قُلِ ٱدۡعُوا۟ ٱلَّذِینَ زَعَمۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ لَا یَمۡلِكُونَ مِثۡقَالَ ذَرَّةࣲ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَلَا فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا لَهُمۡ فِیهِمَا مِن شِرۡكࣲ وَمَا لَهُۥ مِنۡهُم مِّن ظَهِیرࣲ ﴿22﴾

(ऐ रसूल इनसे) कह दो कि जिन लोगों को तुम खुद ख़ुदा के सिवा (माबूद) समझते हो पुकारो (तो मालूम हो जाएगा कि) वह लोग ज़र्रा बराबर न आसमानों में कुछ इख़तेयार रखते हैं और न ज़मीन में और न उनकी उन दोनों में शिरकत है और न उनमें से कोई खुदा का (किसी चीज़ में) मद्दगार है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, \"अल्लाह को छोड़कर जिनका तुम्हें (उपास्य होने का) दावा है, उन्हें पुकार कर देखो। वे न अल्लाह में कणभर चीज़ के मालिक है और न धरती में और न उन दोनों में उनका कोई साझी है और न उनमें से कोई उसका सहायक है।\"

وَلَا تَنفَعُ ٱلشَّفَـٰعَةُ عِندَهُۥۤ إِلَّا لِمَنۡ أَذِنَ لَهُۥۚ حَتَّىٰۤ إِذَا فُزِّعَ عَن قُلُوبِهِمۡ قَالُوا۟ مَاذَا قَالَ رَبُّكُمۡۖ قَالُوا۟ ٱلۡحَقَّۖ وَهُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡكَبِیرُ ﴿23﴾

जिसके लिए वह खुद इजाज़त अता फ़रमाए उसके सिवा कोई सिफारिश उसकी बारगाह में काम न आएगी (उसके दरबार की हैबत) यहाँ तक (है) कि जब (शिफ़ाअत का) हुक्म होता है तो शिफ़ाअत करने वाले बेहोश हो जाते हैं फिर तब उनके दिलों की घबराहट दूर कर दी जाती है तो पूछते हैं कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या हुक्म दिया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और उसके यहाँ कोई सिफ़ारिश काम नहीं आएगी, किन्तु उसी की जिसे उसने (सिफ़ारिश करने की) अनुमति दी हो। यहाँ तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर हो जाएगी, तो वे कहेंगे, \"तुम्हारे रब ने क्या कहा?\" वे कहेंगे, \"सर्वथा सत्य। और वह अत्यन्त उच्च, महान है।\"

۞ قُلۡ مَن یَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۖ قُلِ ٱللَّهُۖ وَإِنَّاۤ أَوۡ إِیَّاكُمۡ لَعَلَىٰ هُدًى أَوۡ فِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینࣲ ﴿24﴾

तो मुक़र्रिब फरिश्ते कहते हैं कि जो वाजिबी था (ऐ रसूल) तुम (इनसे) पूछो तो कि भला तुमको सारे आसमान और ज़मीन से कौन रोज़ी देता है (वह क्या कहेंगे) तुम खुद कह दो कि खुदा और मैं या तुम (दोनों में से एक तो) ज़रूर राहे रास्त पर है (और दूसरा गुमराह) या वह सरीही गुमराही में पड़ा है (और दूसरा राहे रास्त पर)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"कौन तुम्हें आकाशों और धरती में रोज़ी देता है?\" कहो, \"अल्लाह!\" अब अवश्य ही हम है या तुम ही हो मार्ग पर, या खुली गुमराही में

قُل لَّا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّاۤ أَجۡرَمۡنَا وَلَا نُسۡـَٔلُ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿25﴾

(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो न हमारे गुनाहों की तुमसे पूछ गछ होगी और न तुम्हारी कारस्तानियों की हम से बाज़ पुर्स

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"जो अपराध हमने किए, उसकी पूछ तुमसे न होगी और न उसकी पूछ हमसे होगी जो तुम कर रहे हो।\"

قُلۡ یَجۡمَعُ بَیۡنَنَا رَبُّنَا ثُمَّ یَفۡتَحُ بَیۡنَنَا بِٱلۡحَقِّ وَهُوَ ٱلۡفَتَّاحُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿26﴾

(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो कि हमारा परवरदिगार (क़यामत में) हम सबको इकट्ठा करेगा फिर हमारे दरमियान (ठीक) फैसला कर देगा और वह तो ठीक-ठीक फैसला करने वाला वाक़िफकार है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, \"हमारा रब हम सबको इकट्ठा करेगा। फिर हमारे बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर देगा। वही ख़ूब फ़ैसला करनेवाला, अत्यन्त ज्ञानवान है।\"

قُلۡ أَرُونِیَ ٱلَّذِینَ أَلۡحَقۡتُم بِهِۦ شُرَكَاۤءَۖ كَلَّاۚ بَلۡ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿27﴾

(ऐ रसूल तुम कह दो कि जिनको तुम ने खुदा का शरीक बनाकर) खुदा के साथ मिलाया है ज़रा उन्हें मुझे भी तो दिखा दो हरगिज़ (कोई शरीक नहीं) बल्कि खुदा ग़ालिब हिकमत वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"मुझे उनको दिखाओ तो, जिनको तुमने साझीदार बनाकर उसके साथ जोड रखा है। कुछ नहीं, बल्कि बही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।\"

وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ إِلَّا كَاۤفَّةࣰ لِّلنَّاسِ بَشِیرࣰا وَنَذِیرࣰا وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿28﴾

(ऐ रसूल) हमने तुमको तमाम (दुनिया के) लोगों के लिए (नेकों को बेहश्त की) खुशखबरी देने वाला और (बन्दों को अज़ाब से) डराने वाला (पैग़म्बर) बनाकर भेजा मगर बहुतेरे लोग (इतना भी) नहीं जानते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने तो तुम्हें सारे ही मनुष्यों को शुभ-सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं

وَیَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿29﴾

और (उलटे) कहते हैं कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (आख़िर) ये क़यामत का वायदा कब पूरा होगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे कहते है, \"यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?\"

قُل لَّكُم مِّیعَادُ یَوۡمࣲ لَّا تَسۡتَـٔۡخِرُونَ عَنۡهُ سَاعَةࣰ وَلَا تَسۡتَقۡدِمُونَ ﴿30﴾

(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि तुम लोगों के वास्ते एक ख़ास दिन की मीयाद मुक़र्रर है कि न तुम उससे एक घड़ी पीछे रह सकते हो और न आगे ही बड़ सकते हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, \"तुम्हारे लिए एक विशेष दिन की अवधि नियत है, जिससे न एक घड़ी भर पीछे हटोगे और न आगे बढ़ोगे।\"

وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لَن نُّؤۡمِنَ بِهَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَلَا بِٱلَّذِی بَیۡنَ یَدَیۡهِۗ وَلَوۡ تَرَىٰۤ إِذِ ٱلظَّـٰلِمُونَ مَوۡقُوفُونَ عِندَ رَبِّهِمۡ یَرۡجِعُ بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٍ ٱلۡقَوۡلَ یَقُولُ ٱلَّذِینَ ٱسۡتُضۡعِفُوا۟ لِلَّذِینَ ٱسۡتَكۡبَرُوا۟ لَوۡلَاۤ أَنتُمۡ لَكُنَّا مُؤۡمِنِینَ ﴿31﴾

और जो लोग काफिर हों बैठे कहते हैं कि हम तो न इस क़ुरान पर हरगिज़ ईमान लाएँगे और न उस (किताब) पर जो इससे पहले नाज़िल हो चुकी और (ऐ रसूल तुमको बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखो कि जब ये ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जायेंगे (और) उनमें का एक दूसरे की तरफ (अपनी) बात को फेरता होगा कि कमज़ोर अदना (दरजे के) लोग बड़े (सरकश) लोगों से कहते होगें कि अगर तुम (हमें) न (बहकाए) होते तो हम ज़रूर ईमानवाले होते (इस मुसीबत में न पड़ते)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है, \"हम इस क़ुरआन को कदापि न मानेंगे और न उसको जो इसके आगे है।\" और यदि तुम देख पाते जब ज़ालिम अपने रब के सामने खड़े कर दिए जाएँगे। वे आपस में एक-दूसरे पर इल्ज़ाम डाल रहे होंगे। जो लोग कमज़ोर समझे गए वे उन लोगों से जो बड़े बनते थे कहेंगे, \"यदि तुम न होते तो हम अवश्य ही ईमानवाले होते।\"

قَالَ ٱلَّذِینَ ٱسۡتَكۡبَرُوا۟ لِلَّذِینَ ٱسۡتُضۡعِفُوۤا۟ أَنَحۡنُ صَدَدۡنَـٰكُمۡ عَنِ ٱلۡهُدَىٰ بَعۡدَ إِذۡ جَاۤءَكُمۖ بَلۡ كُنتُم مُّجۡرِمِینَ ﴿32﴾

तो सरकश लोग कमज़ोरों से (मुख़ातिब होकर) कहेंगे कि जब तुम्हारे पास (खुदा की तरफ़ से) हिदायत आयी तो थी तो क्या उसके आने के बाद हमने तुमको (ज़बरदस्ती अम्ल करने से) रोका था (हरगिज़ नहीं) बल्कि तुम तो खुद मुजरिम थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे लोग जो बड़े बनते थे उन लोगों से जो कमज़ोर समझे गए थे, कहेंगे, \"क्या हमने तुम्हे उस मार्गदर्शन से रोका था, वह तुम्हारे पास आया था? नहीं, बल्कि तुम स्वयं ही अपराधी हो।\"

وَقَالَ ٱلَّذِینَ ٱسۡتُضۡعِفُوا۟ لِلَّذِینَ ٱسۡتَكۡبَرُوا۟ بَلۡ مَكۡرُ ٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ إِذۡ تَأۡمُرُونَنَاۤ أَن نَّكۡفُرَ بِٱللَّهِ وَنَجۡعَلَ لَهُۥۤ أَندَادࣰاۚ وَأَسَرُّوا۟ ٱلنَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا۟ ٱلۡعَذَابَۚ وَجَعَلۡنَا ٱلۡأَغۡلَـٰلَ فِیۤ أَعۡنَاقِ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ۖ هَلۡ یُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿33﴾

और कमज़ोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे (कि ज़बरदस्ती तो नहीं की मगर हम खुद भी गुमराह नहीं हुए) बल्कि (तुम्हारी) रात-दिन की फरेबदेही ने (गुमराह किया कि) तुम लोग हमको खुदा न मानने और उसका शरीक ठहराने का बराबर हुक्म देते रहे (तो हम क्या करते) और जब ये लोग अज़ाब को (अपनी ऑंखों से) देख लेंगे तो दिल ही दिल में पछताएँगे और जो लोग काफिर हो बैठे हम उनकी गर्दनों में तौक़ डाल देंगे जो कारस्तानियां ये लोग (दुनिया में) करते थे उसी के मुवाफिक़ तो सज़ा दी जाएगी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे लोग कमज़ोर समझे गए थे बड़े बननेवालों से कहेंगे, \"नहीं, बल्कि रात-दिन की मक्कारी थी जब तुम हमसे कहते थे कि हम अल्लाह के साथ कुफ़्र करें और दूसरों को उसका समकक्ष ठहराएँ।\" जब वे यातना देखेंगे तो मन ही मन पछताएँगे और हम उन लोगों की गरदनों में जिन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई, तौक़ डाल देंगे। वे वही तो बदले में पाएँगे, जो वे करते रहे थे?

وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا فِی قَرۡیَةࣲ مِّن نَّذِیرٍ إِلَّا قَالَ مُتۡرَفُوهَاۤ إِنَّا بِمَاۤ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَـٰفِرُونَ ﴿34﴾

और हमने किसी बस्ती में कोई डराने वाला पैग़म्बर नहीं भेजा मगर वहाँ के लोग ये ज़रूर बोल उठेंगे कि जो एहकाम देकर तुम भेजे गए हो हम उनको नहीं मानते

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने जिस बस्ती में भी कोई सचेतकर्ता भेजा तो वहाँ के सम्पन्न लोगों ने यही कहा कि \"जो कुछ देकर तुम्हें भेजा गया है, हम तो उसको नहीं मानते।\"

وَقَالُوا۟ نَحۡنُ أَكۡثَرُ أَمۡوَ ٰ⁠لࣰا وَأَوۡلَـٰدࣰا وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِینَ ﴿35﴾

और ये भी कहने लगे कि हम तो (ईमानदारों से) माल और औलाद में कहीं ज्यादा है और हम पर आख़ेरत में (अज़ाब) भी नहीं किया जाएगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्होंने यह भी कहा कि \"हम तो धन और संतान में तुमसे बढ़कर है और हम यातनाग्रस्त होनेवाले नहीं।\"

قُلۡ إِنَّ رَبِّی یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ وَیَقۡدِرُ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿36﴾

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिऐ चाहता है) तंग करता है मगर बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"निस्संदेह मेरा रब जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है। किन्तु अधिकांश लोग जानते नहीं।\"

وَمَاۤ أَمۡوَ ٰ⁠لُكُمۡ وَلَاۤ أَوۡلَـٰدُكُم بِٱلَّتِی تُقَرِّبُكُمۡ عِندَنَا زُلۡفَىٰۤ إِلَّا مَنۡ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ جَزَاۤءُ ٱلضِّعۡفِ بِمَا عَمِلُوا۟ وَهُمۡ فِی ٱلۡغُرُفَـٰتِ ءَامِنُونَ ﴿37﴾

और (याद रखो) तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद की ये हस्ती नहीं कि तुम को हमारी बारगाह में मुक़र्रिब बना दें मगर (हाँ) जिसने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए उन लोगों के लिए तो उनकी कारगुज़ारियों की दोहरी जज़ा है और वह लोग (बेहश्त के) झरोखों में इत्मेनान से रहेंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वह चीज़ न तुम्हारे धन है और न तुम्हारी सन्तान, जो तुम्हें हमसे निकट कर दे। अलबता, जो कोई ईमान लाया और उसने अच्छा कर्म किया, तो ऐसे ही लोग है जिनके लिए उसका कई गुना बदला है, जो उन्होंने किया। और वे ऊपरी मंजिल के कक्षों में निश्चिन्तता-पूर्वक रहेंगे

وَٱلَّذِینَ یَسۡعَوۡنَ فِیۤ ءَایَـٰتِنَا مُعَـٰجِزِینَ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ فِی ٱلۡعَذَابِ مُحۡضَرُونَ ﴿38﴾

और जो लोग हमारी आयतों (की तोड़) में मुक़ाबले की नीयत से दौड़ द्दूप करते हैं वही लोग (जहन्नुम के) अज़ाब में झोक दिए जाएॅगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

रहे वे लोग जो हमारी आयतों को मात करने के लिए प्रयासरत है, वे लाकर यातनाग्रस्त किए जाएँगे

قُلۡ إِنَّ رَبِّی یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦ وَیَقۡدِرُ لَهُۥۚ وَمَاۤ أَنفَقۡتُم مِّن شَیۡءࣲ فَهُوَ یُخۡلِفُهُۥۖ وَهُوَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰ⁠زِقِینَ ﴿39﴾

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग कर देता है और जो कुछ भी तुम लोग (उसकी राह में) ख़र्च करते हो वह उसका ऐवज देगा और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देनेवाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, \"मेरा रब ही है जो अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। और जो कुछ भी तुमने ख़र्च किया, उसकी जगह वह तुम्हें और देगा। वह सबसे अच्छा रोज़ी देनेवाला है।\"

وَیَوۡمَ یَحۡشُرُهُمۡ جَمِیعࣰا ثُمَّ یَقُولُ لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ أَهَـٰۤؤُلَاۤءِ إِیَّاكُمۡ كَانُوا۟ یَعۡبُدُونَ ﴿40﴾

और (वह दिन याद करो) जिस दिन सब लोगों को इकट्ठा करेगा फिर फरिश्तों से पूछेगा कि क्या ये लोग तुम्हारी परसतिश करते थे फरिश्ते अर्ज़ करेंगे (बारे इलाहा) तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

याद करो जिस दिन वह उन सबको इकट्ठा करेगा, फिर फ़रिश्तों से कहेगा, \"क्या तुम्ही को ये पूजते रहे है?\"

قَالُوا۟ سُبۡحَـٰنَكَ أَنتَ وَلِیُّنَا مِن دُونِهِمۖ بَلۡ كَانُوا۟ یَعۡبُدُونَ ٱلۡجِنَّۖ أَكۡثَرُهُم بِهِم مُّؤۡمِنُونَ ﴿41﴾

तू ही हमारा मालिक है न ये लोग (ये लोग हमारी नहीं) बल्कि जिन्नात (खबाएस भूत-परेत) की परसतिश करते थे कि उनमें के अक्सर लोग उन्हीं पर ईमान रखते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे कहेंगे, \"महान है तू, हमारा निकटता का मधुर सम्बन्ध तो तुझी से है, उनसे नहीं; बल्कि बात यह है कि वे जिन्नों को पूजते थे। उनमें से अधिकतर उन्हीं पर ईमान रखते थे।\"

فَٱلۡیَوۡمَ لَا یَمۡلِكُ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضࣲ نَّفۡعࣰا وَلَا ضَرࣰّا وَنَقُولُ لِلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ ذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلنَّارِ ٱلَّتِی كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ﴿42﴾

तब (खुदा फरमाएगा) आज तो तुममें से कोई न दूसरे के फायदे ही पहुँचाने का इख्तेयार रखता है और न ज़रर का और हम सरकशों से कहेंगे कि (आज) उस अज़ाब के मज़े चखो जिसे तुम (दुनिया में) झुठलाया करते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"अतः आज न तो तुम परस्पर एक-दूसरे के लाभ का अधिकार रखते हो और न हानि का।\" और हम उन ज़ालिमों से कहेंगे, \"अब उस आग की यातना का मज़ा चखो, जिसे तुम झुठलाते रहे हो।\"

وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتُنَا بَیِّنَـٰتࣲ قَالُوا۟ مَا هَـٰذَاۤ إِلَّا رَجُلࣱ یُرِیدُ أَن یَصُدَّكُمۡ عَمَّا كَانَ یَعۡبُدُ ءَابَاۤؤُكُمۡ وَقَالُوا۟ مَا هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ إِفۡكࣱ مُّفۡتَرࣰىۚ وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لِلۡحَقِّ لَمَّا جَاۤءَهُمۡ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّا سِحۡرࣱ مُّبِینࣱ ﴿43﴾

और जब उनके सामने हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें पढ़ी जाती थीं तो बाहम कहते थे कि ये (रसूल) भी तो बस (हमारा ही जैसा) आदमी है ये चाहता है कि जिन चीज़ों को तुम्हारे बाप-दादा पूजते थे (उनकी परसतिश) से तुम को रोक दें और कहने लगे कि ये (क़ुरान) तो बस निरा झूठ है और अपने जी का गढ़ा हुआ है और जो लोग काफ़िर हो बैठो जब उनके पास हक़ बात आयी तो उसके बारे में कहने लगे कि ये तो बस खुला हुआ जादू है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्हें जब हमारी स्पष्ट़ आयतें पढ़कर सुनाई जाती है तो वे कहते है, \"यह तो बस ऐसा व्यक्ति है जो चाहता है कि तुम्हें उनसे रोक दें जिनको तुम्हारे बाप-दादा पूजते रहे है।\" और कहते है, \"यह तो एक घड़ा हुआ झूठ है।\" जिन लोगों ने इनकार किया उन्होंने सत्य के विषय में, जबकि वह उनके पास आया, कह दिया, \"यह तो बस एक प्रत्यक्ष जादू है।\"

وَمَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُم مِّن كُتُبࣲ یَدۡرُسُونَهَاۖ وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَاۤ إِلَیۡهِمۡ قَبۡلَكَ مِن نَّذِیرࣲ ﴿44﴾

और (ऐ रसूल) हमने तो उन लोगों को न (आसमानी) किताबें अता की तुम्हें जिन्हें ये लोग पढ़ते और न तुमसे पहले इन लोगों के पास कोई डरानेवाला (पैग़म्बर) भेजा (उस पर भी उन्होंने क़द्र न की)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने उन्हें न तो किताबे दी थीं, जिनको वे पढ़ते हों और न तुमसे पहले उनकी ओर कोई सावधान करनेवाला ही भेजा था

وَكَذَّبَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡ وَمَا بَلَغُوا۟ مِعۡشَارَ مَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُمۡ فَكَذَّبُوا۟ رُسُلِیۖ فَكَیۡفَ كَانَ نَكِیرِ ﴿45﴾

और जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया था हालॉकि हमने जितना उन लोगों को दिया था ये लोग (अभी) उसके दसवें हिस्सा को (भी) नहीं पहुँचे उस पर उन लोगों न मेरे (पैग़म्बरों को) झुठलाया था तो तुमने देखा कि मेरा (अज़ाब उन पर) कैसा सख्त हुआ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और झूठलाया उन लोगों ने भी जो उनसे पहले थे। और जो कुछ हमने उन्हें दिया था ये तो उसके दसवें भाग को भी नहीं पहुँचे है। तो उन्होंने मेरे रसूलों को झुठलाया। तो फिर कैसी रही मेरी यातना!

۞ قُلۡ إِنَّمَاۤ أَعِظُكُم بِوَ ٰ⁠حِدَةٍۖ أَن تَقُومُوا۟ لِلَّهِ مَثۡنَىٰ وَفُرَ ٰ⁠دَىٰ ثُمَّ تَتَفَكَّرُوا۟ۚ مَا بِصَاحِبِكُم مِّن جِنَّةٍۚ إِنۡ هُوَ إِلَّا نَذِیرࣱ لَّكُم بَیۡنَ یَدَیۡ عَذَابࣲ شَدِیدࣲ ﴿46﴾

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुमसे नसीहत की बस एक बात कहता हूँ (वह) ये (है) कि तुम लोग बाज़ खुदा के वास्ते एक-एक और दो-दो उठ खड़े हो और अच्छी तरह ग़ौर करो तो (देख लोगे कि) तुम्हारे रफीक़ (मोहम्मद स0) को किसी तरह का जुनून नहीं वह तो बस तुम्हें एक सख्त अज़ाब (क़यामत) के सामने (आने) से डराने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"मैं तुम्हें बस एक बात की नसीहत करता हूँ कि अल्लाह के लिए दो-दो औऱ एक-एक करके उठ रखे हो; फिर विचार करो। तुम्हारे साथी को कोई उन्माद नहीं है। वह तो एक कठोर यातना से पहले तुम्हें सचेत करनेवाला ही है।\"

قُلۡ مَا سَأَلۡتُكُم مِّنۡ أَجۡرࣲ فَهُوَ لَكُمۡۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ شَهِیدࣱ ﴿47﴾

(ऐ रसूल) तुम (ये भी) कह दो कि (तबलीख़े रिसालत की) मैंने तुमसे कुछ उजरत माँगी हो तो वह तुम्हीं को (मुबारक) हो मेरी उजरत तो बस खुदा पर है और वही (तुम्हारे आमाल अफआल) हर चीज़ से खूब वाक़िफ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"मैं तुमसे कोई बदला नहीं माँगता वह तुम्हें ही मुबारक हो। मेरा बदला तो बस अल्लाह के ज़िम्मे है और वह हर चीज का साक्षी है।\"

قُلۡ إِنَّ رَبِّی یَقۡذِفُ بِٱلۡحَقِّ عَلَّـٰمُ ٱلۡغُیُوبِ ﴿48﴾

(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि मेरा बड़ा गैबवाँ परवरदिगार (मेरे दिल में) दीन हक़ को बराबर ऊपर से उतारता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"निश्चय ही मेरा रब सत्य को असत्य पर ग़ालिब करता है। वह परोक्ष की बातें भली-भाँथि जानता है।\"

قُلۡ جَاۤءَ ٱلۡحَقُّ وَمَا یُبۡدِئُ ٱلۡبَـٰطِلُ وَمَا یُعِیدُ ﴿49﴾

(अब उनसे) कह दो दीने हक़ आ गया और इतना तो भी (समझो की) बातिल (माबूद) शुरू-शुरू कुछ पैदा करता है न (मरने के बाद) दोबारा ज़िन्दा कर सकता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, \"सत्य आ गया (असत्य मिट गया) और असत्य न तो आरम्भ करता है और न पुनरावृत्ति ही।\"

قُلۡ إِن ضَلَلۡتُ فَإِنَّمَاۤ أَضِلُّ عَلَىٰ نَفۡسِیۖ وَإِنِ ٱهۡتَدَیۡتُ فَبِمَا یُوحِیۤ إِلَیَّ رَبِّیۤۚ إِنَّهُۥ سَمِیعࣱ قَرِیبࣱ ﴿50﴾

(ऐ रसूल) तुम ये भी कह दो कि अगर मैं गुमराह हो गया हूँ तो अपनी ही जान पर मेरी गुमराही (का वबाल) है और अगर मैं राहे रास्त पर हूँ तो इस ''वही'' के तुफ़ैल से जो मेरा परवरदिगार मेरी तरफ़ भेजता है बेशक वह सुनने वाला (और बहुत) क़रीब है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"यदि मैं पथभ्रष्ट॥ हो जाऊँ तो पथभ्रष्ट होकर मैं अपना ही बुरा करूँगा, और यदि मैं सीधे मार्ग पर हूँ, तो इसका कारण वह प्रकाशना है जो मेरा रब मेरी ओर करता है। निस्संदेह वह सब कुछ सुनता है, निकट है।\"

وَلَوۡ تَرَىٰۤ إِذۡ فَزِعُوا۟ فَلَا فَوۡتَ وَأُخِذُوا۟ مِن مَّكَانࣲ قَرِیبࣲ ﴿51﴾

और (ऐ रसूल) काश तुम देखते (तो सख्त ताज्जुब करते) जब ये कुफ्फार (मैदाने हशर में) घबराए-घबराए फिरते होंगे तो भी छुटकारा न होगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और यदि तुम देख लेते जब वे घबराए हुए होंगे; फिर बचकर भाग न सकेंगे और निकट स्थान ही से पकड़ लिए जाएँगे

وَقَالُوۤا۟ ءَامَنَّا بِهِۦ وَأَنَّىٰ لَهُمُ ٱلتَّنَاوُشُ مِن مَّكَانِۭ بَعِیدࣲ ﴿52﴾

और आस ही पास से (बाआसानी) गिरफ्तार कर लिए जाएँगे और (उस वक्त बेबसी में) कहेंगे कि अब हम रसूलों पर ईमान लाए और इतनी दूर दराज़ जगह से (ईमान पर) उनका दसतरस (पहुँचना) कहाँ मुमकिन है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और कहेंगे, \"हम उसपर ईमान ले आए।\" हालाँकि उनके लिए कहाँ सम्भव है कि इतने दूरस्थ स्थान से उसको पास सकें

وَقَدۡ كَفَرُوا۟ بِهِۦ مِن قَبۡلُۖ وَیَقۡذِفُونَ بِٱلۡغَیۡبِ مِن مَّكَانِۭ بَعِیدࣲ ﴿53﴾

हालॉकि ये लोग उससे पहले ही जब उनका दसतरस था इन्कार कर चुके और (दुनिया में तमाम उम्र) बे देखे भाले (अटकल के) तके बड़ी-बड़ी दूर से चलाते रहे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

इससे पहले तो उन्होंने उसका इनकार किया और दूरस्थ स्थान से बिन देखे तीर-तूक्के चलाते रहे

وَحِیلَ بَیۡنَهُمۡ وَبَیۡنَ مَا یَشۡتَهُونَ كَمَا فُعِلَ بِأَشۡیَاعِهِم مِّن قَبۡلُۚ إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ فِی شَكࣲّ مُّرِیبِۭ ﴿54﴾

और अब तो उनके और उनकी तमन्नाओं के दरमियान (उसी तरह) पर्दा डाल दिया गया है जिस तरह उनसे पहले उनके हमरंग लोगों के साथ (यही बरताव) किया जा चुका इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बेचैन करने वाले शक में पड़े हुए थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उनके और उनकी चाहतों के बीच रोक लगा दी जाएगी; जिस प्रकार इससे पहले उनके सहमार्गी लोगों के साथ मामला किया गया। निश्चय ही वे डाँवाडोल कर देनेवाले संदेह में पड़े रहे हैं