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Surah Ya Seen [Ya Seen] in Hindi
إِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿3﴾
(ऐ रसूल) तुम बिलाशक यक़ीनी पैग़म्बरों में से हो
- कि तुम निश्चय ही रसूलों में से हो
عَلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿4﴾
(और दीन के बिल्कुल) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम) हो
एक सीधे मार्ग पर
تَنزِیلَ ٱلۡعَزِیزِ ٱلرَّحِیمِ ﴿5﴾
जो बड़े मेहरबान (और) ग़ालिब (खुदा) का नाज़िल किया हुआ (है)
- क्या ही ख़ूब है, प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावाल का इसको अवतरित करना!
لِتُنذِرَ قَوۡمࣰا مَّاۤ أُنذِرَ ءَابَاۤؤُهُمۡ فَهُمۡ غَـٰفِلُونَ ﴿6﴾
ताकि तुम उन लोगों को (अज़ाबे खुदा से) डराओ जिनके बाप दादा (तुमसे पहले किसी पैग़म्बर से) डराए नहीं गए
ताकि तुम ऐसे लोगों को सावधान करो, जिनके बाप-दादा को सावधान नहीं किया गया; इस कारण वे गफ़लत में पड़े हुए है
لَقَدۡ حَقَّ ٱلۡقَوۡلُ عَلَىٰۤ أَكۡثَرِهِمۡ فَهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿7﴾
तो वह दीन से बिल्कुल बेख़बर हैं उन में अक्सर तो (अज़ाब की) बातें यक़ीनन बिल्कुल ठीक पूरी उतरे ये लोग तो ईमान लाएँगे नहीं
उनमें से अधिकतर लोगों पर बात सत्यापित हो चुकी है। अतः वे ईमान नहीं लाएँगे।
إِنَّا جَعَلۡنَا فِیۤ أَعۡنَـٰقِهِمۡ أَغۡلَـٰلࣰا فَهِیَ إِلَى ٱلۡأَذۡقَانِ فَهُم مُّقۡمَحُونَ ﴿8﴾
हमने उनकी गर्दनों में (भारी-भारी लोहे के) तौक़ डाल दिए हैं और ठुड्डियों तक पहुँचे हुए हैं कि वह गर्दनें उठाए हुए हैं (सर झुका नहीं सकते)
हमने उनकी गर्दनों में तौक़ डाल दिए है जो उनकी ठोड़ियों से लगे है। अतः उनके सिर ऊपर को उचके हुए है
وَجَعَلۡنَا مِنۢ بَیۡنِ أَیۡدِیهِمۡ سَدࣰّا وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ سَدࣰّا فَأَغۡشَیۡنَـٰهُمۡ فَهُمۡ لَا یُبۡصِرُونَ ﴿9﴾
हमने एक दीवार उनके आगे बना दी है और एक दीवार उनके पीछे फिर ऊपर से उनको ढाँक दिया है तो वह कुछ देख नहीं सकते
और हमने उनके आगे एक दीवार खड़ी कर दी है और एक दीवार उनके पीछे भी। इस तरह हमने उन्हें ढाँक दिया है। अतः उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता
وَسَوَاۤءٌ عَلَیۡهِمۡ ءَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿10﴾
और (ऐ रसूल) उनके लिए बराबर है ख्वाह तुम उन्हें डराओ या न डराओ ये (कभी) ईमान लाने वाले नहीं हैं
उनके लिए बराबर है तुमने सचेत किया या उन्हें सचेत नहीं किया, वे ईमान नहीं लाएँगे
إِنَّمَا تُنذِرُ مَنِ ٱتَّبَعَ ٱلذِّكۡرَ وَخَشِیَ ٱلرَّحۡمَـٰنَ بِٱلۡغَیۡبِۖ فَبَشِّرۡهُ بِمَغۡفِرَةࣲ وَأَجۡرࣲ كَرِیمٍ ﴿11﴾
तुम तो बस उसी शख्स को डरा सकते हो जो नसीहत माने और बेदेखे भाले खुदा का ख़ौफ़ रखे तो तुम उसको (गुनाहों की) माफी और एक बाइज्ज़त (व आबरू) अज्र की खुशख़बरी दे दो
तुम तो बस सावधान कर रहे हो। जो कोई अनुस्मृति का अनुसरण करे और परोक्ष में रहते हुए रहमान से डरे, अतः क्षमा और प्रतिष्ठामय बदले की शुभ सूचना दे दो
إِنَّا نَحۡنُ نُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَنَكۡتُبُ مَا قَدَّمُوا۟ وَءَاثَـٰرَهُمۡۚ وَكُلَّ شَیۡءٍ أَحۡصَیۡنَـٰهُ فِیۤ إِمَامࣲ مُّبِینࣲ ﴿12﴾
हम ही यक़ीनन मुर्दों को ज़िन्दा करते हैं और जो कुछ लोग पहले कर चुके हैं (उनको) और उनकी (अच्छी या बुरी बाक़ी माँदा) निशानियों को लिखते जाते हैं और हमने हर चीज़ का एक सरीह व रौशन पेशवा में घेर दिया है
निस्संदेह हम मुर्दों को जीवित करेंगे और हम लिखेंगे जो कुछ उन्होंने आगे के लिए भेजा और उनके चिन्हों को (जो पीछे रहा) । हर चीज़ हमने एक स्पष्ट किताब में गिन रखी है
وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلًا أَصۡحَـٰبَ ٱلۡقَرۡیَةِ إِذۡ جَاۤءَهَا ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿13﴾
और (ऐ रसूल) तुम (इनसे) मिसाल के तौर पर एक गाँव (अता किया) वालों का क़िस्सा बयान करो जब वहाँ (हमारे) पैग़म्बर आए
उनके लिए बस्तीवालों की एक मिसाल पेश करो, जबकि वहाँ भेजे हुए दूत आए
إِذۡ أَرۡسَلۡنَاۤ إِلَیۡهِمُ ٱثۡنَیۡنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزۡنَا بِثَالِثࣲ فَقَالُوۤا۟ إِنَّاۤ إِلَیۡكُم مُّرۡسَلُونَ ﴿14﴾
इस तरह कि जब हमने उनके पास दो (पैग़म्बर योहना और यूनुस) भेजे तो उन लोगों ने दोनों को झुठलाया जब हमने एक तीसरे (पैग़म्बर शमऊन) से (उन दोनों को) मद्द दी तो इन तीनों ने कहा कि हम तुम्हारे पास खुदा के भेजे हुए (आए) हैं
जबकि हमने उनकी ओर दो दूत भेजे, तो उन्होंने झुठला दिया। तब हमने तीसरे के द्वारा शक्ति पहुँचाई, तो उन्होंने कहा, \"हम तुम्हारी ओर भेजे गए हैं।\"
قَالُوا۟ مَاۤ أَنتُمۡ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُنَا وَمَاۤ أَنزَلَ ٱلرَّحۡمَـٰنُ مِن شَیۡءٍ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا تَكۡذِبُونَ ﴿15﴾
वह लोग कहने लगे कि तुम लोग भी तो बस हमारे ही जैसे आदमी हो और खुदा ने कुछ नाज़िल (वाज़िल) नहीं किया है तुम सब के सब बस बिल्कुल झूठे हो
वे बोले, \"तुम तो बस हमारे ही जैसे मनुष्य हो। रहमान ने तो कोई भी चीज़ अवतरित नहीं की है। तुम केवल झूठ बोलते हो।\"
قَالُوا۟ رَبُّنَا یَعۡلَمُ إِنَّاۤ إِلَیۡكُمۡ لَمُرۡسَلُونَ ﴿16﴾
तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीनन उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो)
उन्होंने कहा, \"हमारा रब जानता है कि हम निश्चय ही तुम्हारी ओर भेजे गए है
وَمَا عَلَیۡنَاۤ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُ ٱلۡمُبِینُ ﴿17﴾
हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे खुदा का पहुँचा देना फर्ज़ है
औऱ हमारी ज़िम्मेदारी तो केवल स्पष्ट रूप से संदेश पहुँचा देने की हैं।\"
قَالُوۤا۟ إِنَّا تَطَیَّرۡنَا بِكُمۡۖ لَىِٕن لَّمۡ تَنتَهُوا۟ لَنَرۡجُمَنَّكُمۡ وَلَیَمَسَّنَّكُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿18﴾
वह बोले हमने तुम लोगों को बहुत नहस क़दम पाया कि (तुम्हारे आते ही क़हत में मुबतेला हुए) तो अगर तुम (अपनी बातों से) बाज़ न आओगे तो हम लोग तुम्हें ज़रूर संगसार कर देगें और तुमको यक़ीनी हमारा दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा
वे बोले, \"हम तो तुम्हें अपशकुन समझते है, यदि तुम बाज न आए तो हम तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें अवश्य हमारी ओर से दुखद यातना पहुँचेगी।\"
قَالُوا۟ طَـٰۤىِٕرُكُم مَّعَكُمۡ أَىِٕن ذُكِّرۡتُمۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمࣱ مُّسۡرِفُونَ ﴿19﴾
पैग़म्बरों ने कहा कि तुम्हारी बद शुगूनी (तुम्हारी करनी से) तुम्हारे साथ है क्या जब नसीहत की जाती है (तो तुम उसे बदफ़ाली कहते हो नहीं) बल्कि तुम खुद (अपनी) हद से बढ़ गए हो
उन्होंने कहा, \"तुम्हारा अवशकुन तो तुम्हारे अपने ही साथ है। क्या यदि तुम्हें याददिहानी कराई जाए (तो यह कोई क्रुद्ध होने की बात है)? नहीं, बल्कि तुम मर्यादाहीन लोग हो।\"
وَجَاۤءَ مِنۡ أَقۡصَا ٱلۡمَدِینَةِ رَجُلࣱ یَسۡعَىٰ قَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱتَّبِعُوا۟ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿20﴾
और (इतने में) शहर के उस सिरे से एक शख्स (हबीब नज्जार) दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम (इन) पैग़म्बरों का कहना मानो
इतने में नगर के दूरवर्ती सिरे से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! उनका अनुवर्तन करो, जो भेजे गए है।
ٱتَّبِعُوا۟ مَن لَّا یَسۡـَٔلُكُمۡ أَجۡرࣰا وَهُم مُّهۡتَدُونَ ﴿21﴾
ऐसे लोगों का (ज़रूर) कहना मानो जो तुमसे (तबलीख़े रिसालत की) कुछ मज़दूरी नहीं माँगते और वह लोग हिदायत याफ्ता भी हैं
उसका अनुवर्तन करो जो तुमसे कोई बदला नहीं माँगते और वे सीधे मार्ग पर है
وَمَا لِیَ لَاۤ أَعۡبُدُ ٱلَّذِی فَطَرَنِی وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿22﴾
और मुझे क्या (ख़ब्त) हुआ है कि जिसने मुझे पैदा किया है उसकी इबादत न करूँ हालाँकि तुम सब के बस (आख़िर) उसी की तरफ लौटकर जाओगे
\"और मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी बन्दगी न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटकर जाना है?
ءَأَتَّخِذُ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةً إِن یُرِدۡنِ ٱلرَّحۡمَـٰنُ بِضُرࣲّ لَّا تُغۡنِ عَنِّی شَفَـٰعَتُهُمۡ شَیۡـࣰٔا وَلَا یُنقِذُونِ ﴿23﴾
क्या मैं उसे छोड़कर दूसरों को माबूद बना लूँ अगर खुदा मुझे कोई तकलीफ पहुँचाना चाहे तो न उनकी सिफारिश ही मेरे कुछ काम आएगी और न ये लोग मुझे (इस मुसीबत से) छुड़ा ही सकेंगें
\"क्या मैं उससे इतर दूसरे उपास्य बना लूँ? यदि रहमान मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम नहीं आ सकती और न वे मुझे छुडा ही सकते है
إِنِّیۤ إِذࣰا لَّفِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینٍ ﴿24﴾
(अगर ऐसा करूँ) तो उस वक्त मैं यक़ीनी सरीही गुमराही में हूँ
\"तब तो मैं अवश्य स्पष्ट गुमराही में पड़ जाऊँगा
إِنِّیۤ ءَامَنتُ بِرَبِّكُمۡ فَٱسۡمَعُونِ ﴿25﴾
मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूँ मेरी बात सुनो और मानो; मगर उन लोगों ने उसे संगसार कर डाला
\"मैं तो तुम्हारे रब पर ईमान ले आया, अतः मेरी सुनो!\"
قِیلَ ٱدۡخُلِ ٱلۡجَنَّةَۖ قَالَ یَـٰلَیۡتَ قَوۡمِی یَعۡلَمُونَ ﴿26﴾
तब उसे खुदा का हुक्म हुआ कि बेहिश्त में जा (उस वक्त भी उसको क़ौम का ख्याल आया तो कहा)
कहा गया, \"प्रवेश करो जन्नत में!\" उसने कहा, \"ऐ काश! मेरी क़ौम के लोग जानते
بِمَا غَفَرَ لِی رَبِّی وَجَعَلَنِی مِنَ ٱلۡمُكۡرَمِینَ ﴿27﴾
मेरे परवरदिगार ने जो मुझे बख्श दिया और मुझे बुर्ज़ुग लोगों में शामिल कर दिया काश इसको मेरी क़ौम के लोग जान लेते और ईमान लाते
कि मेरे रब ने मुझे क्षमा कर दिया और मुझे प्रतिष्ठित लोगों में सम्मिलित कर दिया।\"
۞ وَمَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَىٰ قَوۡمِهِۦ مِنۢ بَعۡدِهِۦ مِن جُندࣲ مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَمَا كُنَّا مُنزِلِینَ ﴿28﴾
और हमने उसके मरने के बाद उसकी क़ौम पर उनकी तबाही के लिए न तो आसमान से कोई लशकर उतारा और न हम कभी इतनी सी बात के वास्ते लशकर उतारने वाले थे
उसके पश्चात उसकी क़ौम पर हमने आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और हम इस तरह उतारा नहीं करते
إِن كَانَتۡ إِلَّا صَیۡحَةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ فَإِذَا هُمۡ خَـٰمِدُونَ ﴿29﴾
वह तो सिर्फ एक चिंघाड थी (जो कर दी गयी बस) फिर तो वह फौरन चिराग़े सहरी की तरह बुझ के रह गए
वह तो केवल एक प्रचंड चीत्कार थी। तो सहसा क्या देखते है कि वे बुझकर रह गए
یَـٰحَسۡرَةً عَلَى ٱلۡعِبَادِۚ مَا یَأۡتِیهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا كَانُوا۟ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿30﴾
हाए अफसोस बन्दों के हाल पर कि कभी उनके पास कोई रसूल नहीं आया मगर उन लोगों ने उसके साथ मसख़रापन ज़रूर किया
ऐ अफ़सोस बन्दो पर! जो रसूल भी उनके पास आया, वे उसका परिहास ही करते रहे
أَلَمۡ یَرَوۡا۟ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّنَ ٱلۡقُرُونِ أَنَّهُمۡ إِلَیۡهِمۡ لَا یَرۡجِعُونَ ﴿31﴾
क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला और वह लोग उनके पास हरगिज़ पलट कर नहीं आ सकते
क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले कितनी ही नस्लों को हमने विनष्ट किया कि वे उनकी ओर पलटकर नहीं आएँगे?
وَإِن كُلࣱّ لَّمَّا جَمِیعࣱ لَّدَیۡنَا مُحۡضَرُونَ ﴿32﴾
(हाँ) अलबत्ता सब के सब इकट्ठा हो कर हमारी बारगाह में हाज़िर किए जाएँगे
और जितने भी है, सबके सब हमारे ही सामने उपस्थित किए जाएँगे
وَءَایَةࣱ لَّهُمُ ٱلۡأَرۡضُ ٱلۡمَیۡتَةُ أَحۡیَیۡنَـٰهَا وَأَخۡرَجۡنَا مِنۡهَا حَبࣰّا فَمِنۡهُ یَأۡكُلُونَ ﴿33﴾
और उनके (समझने) के लिए मेरी कुदरत की एक निशानी मुर्दा (परती) ज़मीन है कि हमने उसको (पानी से) ज़िन्दा कर दिया और हम ही ने उससे दाना निकाला तो उसे ये लोग खाया करते हैं
और एक निशानी उनके लिए मृत भूमि है। हमने उसे जीवित किया और उससे अनाज निकाला, तो वे खाते है
وَجَعَلۡنَا فِیهَا جَنَّـٰتࣲ مِّن نَّخِیلࣲ وَأَعۡنَـٰبࣲ وَفَجَّرۡنَا فِیهَا مِنَ ٱلۡعُیُونِ ﴿34﴾
और हम ही ने ज़मीन में छुहारों और अंगूरों के बाग़ लगाए और हमही ने उसमें पानी के चशमें जारी किए
और हमने उसमें खजूरों और अंगूरों के बाग लगाए और उसमें स्रोत प्रवाहित किए;
لِیَأۡكُلُوا۟ مِن ثَمَرِهِۦ وَمَا عَمِلَتۡهُ أَیۡدِیهِمۡۚ أَفَلَا یَشۡكُرُونَ ﴿35﴾
ताकि लोग उनके फल खाएँ और कुछ उनके हाथों ने उसे नहीं बनाया (बल्कि खुदा ने) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते
ताकि वे उसके फल खाएँ - हालाँकि यह सब कुछ उनके हाथों का बनाया हुआ नहीं है। - तो क्या वे आभार नहीं प्रकट करते?
سُبۡحَـٰنَ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلۡأَزۡوَ ٰجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنۢبِتُ ٱلۡأَرۡضُ وَمِنۡ أَنفُسِهِمۡ وَمِمَّا لَا یَعۡلَمُونَ ﴿36﴾
वह (हर ऐब से) पाक साफ है जिसने ज़मीन से उगने वाली चीज़ों और खुद उन लोगों के और उन चीज़ों के जिनकी उन्हें ख़बर नहीं सबके जोड़े पैदा किए
महिमावान है वह जिसने सबके जोड़े पैदा किए धरती जो चीजें उगाती है उनमें से भी और स्वयं उनकी अपनी जाति में से भी और उन चीज़ो में से भी जिनको वे नहीं जानते
وَءَایَةࣱ لَّهُمُ ٱلَّیۡلُ نَسۡلَخُ مِنۡهُ ٱلنَّهَارَ فَإِذَا هُم مُّظۡلِمُونَ ﴿37﴾
और मेरी क़ुदरत की एक निशानी रात है जिससे हम दिन को खींच कर निकाल लेते (जाएल कर देते) हैं तो उस वक्त ये लोग अंधेरे में रह जाते हैं
और एक निशानी उनके लिए रात है। हम उसपर से दिन को खींच लेते है। फिर क्या देखते है कि वे अँधेरे में रह गए
وَٱلشَّمۡسُ تَجۡرِی لِمُسۡتَقَرࣲّ لَّهَاۚ ذَ ٰلِكَ تَقۡدِیرُ ٱلۡعَزِیزِ ٱلۡعَلِیمِ ﴿38﴾
और (एक निशानी) आफताब है जो अपने एक ठिकाने पर चल रहा है ये (सबसे) ग़ालिब वाक़िफ (खुदा) का (बाँद्दा हुआ) अन्दाज़ा है
और सूर्य अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है। यह बाँधा हुआ हिसाब है प्रभुत्वशाली, ज्ञानवान का
وَٱلۡقَمَرَ قَدَّرۡنَـٰهُ مَنَازِلَ حَتَّىٰ عَادَ كَٱلۡعُرۡجُونِ ٱلۡقَدِیمِ ﴿39﴾
और हमने चाँद के लिए मंज़िलें मुक़र्रर कर दीं हैं यहाँ तक कि हिर फिर के (आख़िर माह में) खजूर की पुरानी टहनी का सा (पतला टेढ़ा) हो जाता है
और रहा चन्द्रमा, तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पूरानी टेढ़ी टहनी के सदृश हो जाता है
لَا ٱلشَّمۡسُ یَنۢبَغِی لَهَاۤ أَن تُدۡرِكَ ٱلۡقَمَرَ وَلَا ٱلَّیۡلُ سَابِقُ ٱلنَّهَارِۚ وَكُلࣱّ فِی فَلَكࣲ یَسۡبَحُونَ ﴿40﴾
न तो आफताब ही से ये बन पड़ता है कि वह माहताब को जा ले और न रात ही दिन से आगे बढ़ सकती है (चाँद, सूरज, सितारे) हर एक अपने-अपने आसमान (मदार) में चक्कर लगा रहें हैं
न सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं
وَءَایَةࣱ لَّهُمۡ أَنَّا حَمَلۡنَا ذُرِّیَّتَهُمۡ فِی ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ ﴿41﴾
और उनके लिए (मेरी कुदरत) की एक निशानी ये है कि उनके बुर्ज़ुगों को (नूह की) भरी हुई कश्ती में सवार किया
और एक निशानी उनके लिए यह है कि हमने उनके अनुवर्तियों को भरी हुई नौका में सवार किया
وَخَلَقۡنَا لَهُم مِّن مِّثۡلِهِۦ مَا یَرۡكَبُونَ ﴿42﴾
और उस कशती के मिसल उन लोगों के वास्ते भी वह चीज़े (कशतियाँ) जहाज़ पैदा कर दी
और उनके लिए उसी के सदृश और भी ऐसी चीज़े पैदा की, जिनपर वे सवार होते है
وَإِن نَّشَأۡ نُغۡرِقۡهُمۡ فَلَا صَرِیخَ لَهُمۡ وَلَا هُمۡ یُنقَذُونَ ﴿43﴾
जिन पर ये लोग सवार हुआ करते हैं और अगर हम चाहें तो उन सब लोगों को डुबा मारें फिर न कोई उन का फरियाद रस होगा और न वह लोग छुटकारा ही पा सकते हैं
और यदि हम चाहें तो उन्हें डूबो दें। फिर न तो उनकी कोई चीख-पुकार हो और न उन्हें बचाया जा सके
إِلَّا رَحۡمَةࣰ مِّنَّا وَمَتَـٰعًا إِلَىٰ حِینࣲ ﴿44﴾
मगर हमारी मेहरबानी से और चूँकि एक (ख़ास) वक्त तक (उनको) चैन करने देना (मंज़ूर) है
यह तो बस हमारी दयालुता और एक नियत समय तक की सुख-सामग्री है
وَإِذَا قِیلَ لَهُمُ ٱتَّقُوا۟ مَا بَیۡنَ أَیۡدِیكُمۡ وَمَا خَلۡفَكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ﴿45﴾
और जब उन कुफ्फ़ार से कहा जाता है कि इस (अज़ाब से) बचो (हर वक्त तुम्हारे साथ-साथ) तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे (मौजूद) है ताकि तुम पर रहम किया जाए
और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ का डर रखो, जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपर दया कि जाए! (तो चुप्पी साझ लेते है)
وَمَا تَأۡتِیهِم مِّنۡ ءَایَةࣲ مِّنۡ ءَایَـٰتِ رَبِّهِمۡ إِلَّا كَانُوا۟ عَنۡهَا مُعۡرِضِینَ ﴿46﴾
(तो परवाह नहीं करते) और उनकी हालत ये है कि जब उनके परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उनके पास आयी तो ये लोग मुँह मोड़े बग़ैर कभी नहीं रहे
उनके पास उनके रब की आयतों में से जो आयत भी आती है, वे उससे कतराते ही है
وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ أَنفِقُوا۟ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ قَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لِلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَنُطۡعِمُ مَن لَّوۡ یَشَاۤءُ ٱللَّهُ أَطۡعَمَهُۥۤ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا فِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینࣲ ﴿47﴾
और जब उन (कुफ्फ़ार) से कहा जाता है कि (माले दुनिया से) जो खुदा ने तुम्हें दिया है उसमें से कुछ (खुदा की राह में भी) ख़र्च करो तो (ये) कुफ्फ़ार ईमानवालों से कहते हैं कि भला हम उस शख्स को खिलाएँ जिसे (तुम्हारे ख्याल के मुवाफ़िक़) खुदा चाहता तो उसको खुद खिलाता कि तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो
और जब उनसे कहा जाता है कि \"अल्लाह ने जो कुछ रोज़ी तुम्हें दी है उनमें से ख़र्च करो।\" तो जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उन लोगों से, जो ईमान लाए है, कहते है, \"क्या हम उसको खाना खिलाएँ जिसे .दि अल्लाह चाहता तो स्वयं खिला देता? तुम तो बस खुली गुमराही में पड़े हो।\"
وَیَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿48﴾
और कहते हैं कि (भला) अगर तुम लोग (अपने दावे में सच्चे हो) तो आख़िर ये (क़यामत का) वायदा कब पूरा होगा
और वे कहते है कि \"यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?\"
مَا یَنظُرُونَ إِلَّا صَیۡحَةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ تَأۡخُذُهُمۡ وَهُمۡ یَخِصِّمُونَ ﴿49﴾
(ऐ रसूल) ये लोग एक सख्त चिंघाड़ (सूर) के मुनतज़िर हैं जो उन्हें (उस वक्त) ले डालेगी
वे तो बस एक प्रचंड चीत्कार की प्रतीक्षा में है, जो उन्हें आ पकड़ेगी, जबकि वे झगड़ते होंगे
فَلَا یَسۡتَطِیعُونَ تَوۡصِیَةࣰ وَلَاۤ إِلَىٰۤ أَهۡلِهِمۡ یَرۡجِعُونَ ﴿50﴾
जब ये लोग बाहम झगड़ रहे होगें फिर न तो ये लोग वसीयत ही करने पायेंगे और न अपने लड़के बालों ही की तरफ लौट कर जा सकेगें
फिर न तो वे कोई वसीयत कर पाएँगे और न अपने घरवालों की ओर लौट ही सकेंगे
وَنُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَإِذَا هُم مِّنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ یَنسِلُونَ ﴿51﴾
और फिर (जब दोबारा) सूर फूँका जाएगा तो उसी दम ये सब लोग (अपनी-अपनी) क़ब्रों से (निकल-निकल के) अपने परवरदिगार की बारगाह की तरफ चल खड़े होगे
और नरसिंघा में फूँक मारी जाएगी। फिर क्या देखेंगे कि वे क़ब्रों से निकलकर अपने रब की ओर चल पड़े हैं
قَالُوا۟ یَـٰوَیۡلَنَا مَنۢ بَعَثَنَا مِن مَّرۡقَدِنَاۜۗ هَـٰذَا مَا وَعَدَ ٱلرَّحۡمَـٰنُ وَصَدَقَ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿52﴾
और (हैरान होकर) कहेगें हाए अफसोस हम तो पहले सो रहे थे हमें ख्वाबगाह से किसने उठाया (जवाब आएगा) कि ये वही (क़यामत का) दिन है जिसका खुदा ने (भी) वायदा किया था
कहेंगे, \"ऐ अफ़सोस हम पर! किसने हमें सोते से जगा दिया? यह वही चीज़ है जिसका रहमान ने वादा किया था और रसूलों ने सच कहा था।\"
إِن كَانَتۡ إِلَّا صَیۡحَةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ فَإِذَا هُمۡ جَمِیعࣱ لَّدَیۡنَا مُحۡضَرُونَ ﴿53﴾
और पैग़म्बरों ने भी सच कहा था (क़यामत तो) बस एक सख्त चिंघाड़ होगी फिर एका एकी ये लोग सब के सब हमारे हुजूर में हाज़िर किए जाएँगे
बस एक ज़ोर की चिंघाड़ होगी। फिर क्या देखेंगे कि वे सबके-सब हमारे सामने उपस्थित कर दिए गए
فَٱلۡیَوۡمَ لَا تُظۡلَمُ نَفۡسࣱ شَیۡـࣰٔا وَلَا تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿54﴾
फिर आज (क़यामत के दिन) किसी शख्स पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम लोगों को तो उसी का बदला दिया जाएगा जो तुम लोग (दुनिया में) किया करते थे
अब आज किसी जीव पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम्हें बदले में वही मिलेगा जो कुछ तुम करते रहे हो
إِنَّ أَصۡحَـٰبَ ٱلۡجَنَّةِ ٱلۡیَوۡمَ فِی شُغُلࣲ فَـٰكِهُونَ ﴿55﴾
बेहश्त के रहने वाले आज (रोजे क़यामत) एक न एक मशग़ले में जी बहला रहे हैं
निश्चय ही जन्नतवाले आज किसी न किसी काम नें व्यस्त आनन्द ले रहे है
هُمۡ وَأَزۡوَ ٰجُهُمۡ فِی ظِلَـٰلٍ عَلَى ٱلۡأَرَاۤىِٕكِ مُتَّكِـُٔونَ ﴿56﴾
वह अपनी बीवियों के साथ (ठन्डी) छाँव में तकिया लगाए तख्तों पर (चैन से) बैठे हुए हैं
वे और उनकी पत्नियों छायों में मसहरियों पर तकिया लगाए हुए है,
لَهُمۡ فِیهَا فَـٰكِهَةࣱ وَلَهُم مَّا یَدَّعُونَ ﴿57﴾
बेिहश्त में उनके लिए (ताज़ा) मेवे (तैयार) हैं और जो वह चाहें उनके लिए (हाज़िर) है
उनके लिए वहाँ मेवे है। औऱ उनके लिए वह सब कुछ मौजूद है, जिसकी वे माँग करें
سَلَـٰمࣱ قَوۡلࣰا مِّن رَّبࣲّ رَّحِیمࣲ ﴿58﴾
मेहरबान परवरदिगार की तरफ से सलाम का पैग़ाम आएगा
(उनपर) सलाम है, दयामय रब का उच्चारित किया हुआ
وَٱمۡتَـٰزُوا۟ ٱلۡیَوۡمَ أَیُّهَا ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿59﴾
और (एक आवाज़ आएगी कि) ऐ गुनाहगारों तुम लोग (इनसे) अलग हो जाओ
\"और ऐ अपराधियों! आज तुम छँटकर अलग हो जाओ
۞ أَلَمۡ أَعۡهَدۡ إِلَیۡكُمۡ یَـٰبَنِیۤ ءَادَمَ أَن لَّا تَعۡبُدُوا۟ ٱلشَّیۡطَـٰنَۖ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوࣱّ مُّبِینࣱ ﴿60﴾
ऐ आदम की औलाद क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की परसतिश न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है
क्या मैंने तुम्हें ताकीद नहीं की थी, ऐ आदम के बेटो! कि शैतान की बन्दगी न करे। वास्तव में वह तुम्हारा खुला शत्रु है
وَأَنِ ٱعۡبُدُونِیۚ هَـٰذَا صِرَ ٰطࣱ مُّسۡتَقِیمࣱ ﴿61﴾
और ये कि (देखो) सिर्फ मेरी इबादत करना यही (नजात की) सीधी राह है
और यह कि मेरी बन्दगी करो? यही सीधा मार्ग है
وَلَقَدۡ أَضَلَّ مِنكُمۡ جِبِلࣰّا كَثِیرًاۖ أَفَلَمۡ تَكُونُوا۟ تَعۡقِلُونَ ﴿62﴾
और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे
उसने तो तुममें से बहुत-से गिरोहों को पथभ्रष्ट कर दिया। तो क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे?
هَـٰذِهِۦ جَهَنَّمُ ٱلَّتِی كُنتُمۡ تُوعَدُونَ ﴿63﴾
ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था
यह वही जहन्नम है जिसकी तुम्हें धमकी दी जाती रही है
ٱصۡلَوۡهَا ٱلۡیَوۡمَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ ﴿64﴾
तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ
जो इनकार तुम करते रहे हो, उसके बदले में आज इसमें प्रविष्ट हो जाओ।\"
ٱلۡیَوۡمَ نَخۡتِمُ عَلَىٰۤ أَفۡوَ ٰهِهِمۡ وَتُكَلِّمُنَاۤ أَیۡدِیهِمۡ وَتَشۡهَدُ أَرۡجُلُهُم بِمَا كَانُوا۟ یَكۡسِبُونَ ﴿65﴾
आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खुद उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें
आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे बोलेंगे और जो कुछ वे कमाते रहे है, उनके पाँव उसकी गवाही देंगे
وَلَوۡ نَشَاۤءُ لَطَمَسۡنَا عَلَىٰۤ أَعۡیُنِهِمۡ فَٱسۡتَبَقُوا۟ ٱلصِّرَ ٰطَ فَأَنَّىٰ یُبۡصِرُونَ ﴿66﴾
और अगर हम चाहें तो उनकी ऑंखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे
यदि हम चाहें तो उनकी आँखें मेट दें क्योंकि वे (अपने रूढ़) मार्ग की और लपके हुए है। फिर उन्हें सुझाई कहाँ से देगा?
وَلَوۡ نَشَاۤءُ لَمَسَخۡنَـٰهُمۡ عَلَىٰ مَكَانَتِهِمۡ فَمَا ٱسۡتَطَـٰعُوا۟ مُضِیࣰّا وَلَا یَرۡجِعُونَ ﴿67﴾
और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें
यदि हम चाहें तो उनकी जगह पर ही उनके रूप बिगाड़कर रख दें क्योंकि वे सत्य की ओर न चल सके और वे (गुमराही से) बाज़ नहीं आते।
وَمَن نُّعَمِّرۡهُ نُنَكِّسۡهُ فِی ٱلۡخَلۡقِۚ أَفَلَا یَعۡقِلُونَ ﴿68﴾
और हम जिस शख्स को (बहुत) ज्यादा उम्र देते हैं तो उसे ख़िलक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं
जिसको हम दीर्धायु देते है, उसको उसकी संरचना में उल्टा फेर देते है। तो क्या वे बुद्धि से काम नहीं लेते?
وَمَا عَلَّمۡنَـٰهُ ٱلشِّعۡرَ وَمَا یَنۢبَغِی لَهُۥۤۚ إِنۡ هُوَ إِلَّا ذِكۡرࣱ وَقُرۡءَانࣱ مُّبِینࣱ ﴿69﴾
और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कुरान है
हमने उस (नबी) को कविता नहीं सिखाई और न वह उसके लिए शोभनीय है। वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट क़ुरआन है;
لِّیُنذِرَ مَن كَانَ حَیࣰّا وَیَحِقَّ ٱلۡقَوۡلُ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿70﴾
ताकि जो ज़िन्दा (दिल आक़िल) हों उसे (अज़ाब से) डराए और काफ़िरों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे)
ताकि वह उसे सचेत कर दे जो जीवन्त हो और इनकार करनेवालों पर (यातना की) बात स्थापित हो जाए
أَوَلَمۡ یَرَوۡا۟ أَنَّا خَلَقۡنَا لَهُم مِّمَّا عَمِلَتۡ أَیۡدِینَاۤ أَنۡعَـٰمࣰا فَهُمۡ لَهَا مَـٰلِكُونَ ﴿71﴾
क्या उन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनके फायदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किए जिसे हमारी ही क़ुदरत ने बनाया तो ये लोग (ख्वाहमाख्वाह) उनके मालिक बन गए
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने उनके लिए अपने हाथों की बनाई हुई चीज़ों में से चौपाए पैदा किए और अब वे उनके मालिक है?
وَذَلَّلۡنَـٰهَا لَهُمۡ فَمِنۡهَا رَكُوبُهُمۡ وَمِنۡهَا یَأۡكُلُونَ ﴿72﴾
और हम ही ने चार पायों को उनका मुतीय बना दिया तो बाज़ उनकी सवारियां हैं और बाज़ को खाते हैं
और उन्हें उनके बस में कर दिया कि उनमें से कुछ तो उनकी सवारियाँ हैं और उनमें से कुछ को खाते है।
وَلَهُمۡ فِیهَا مَنَـٰفِعُ وَمَشَارِبُۚ أَفَلَا یَشۡكُرُونَ ﴿73﴾
और चार पायों में उनके (और) बहुत से फायदे हैं और पीने की चीज़ (दूध) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते
और उनके लिए उनमें कितने ही लाभ है और पेय भी है। तो क्या वे कृतज्ञता नहीं दिखलाते?
وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِ ٱللَّهِ ءَالِهَةࣰ لَّعَلَّهُمۡ یُنصَرُونَ ﴿74﴾
और लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर (फर्ज़ी माबूद बनाए हैं ताकि उन्हें उनसे कुछ मद्द मिले हालाँकि वह लोग उनकी किसी तरह मद्द कर ही नहीं सकते
उन्होंने अल्लाह से इतर कितने ही उपास्य बना लिए है कि शायद उन्हें मदद पहुँचे।
لَا یَسۡتَطِیعُونَ نَصۡرَهُمۡ وَهُمۡ لَهُمۡ جُندࣱ مُّحۡضَرُونَ ﴿75﴾
और ये कुफ्फ़ार उन माबूदों के लशकर हैं (और क़यामत में) उन सबकी हाज़िरी ली जाएगी
वे उनकी सहायता करने की सामर्थ्य नहीं रखते, हालाँकि वे (बहुदेववादियों की अपनी स्पष्ट में) उनके लिए उपस्थित सेनाएँ हैं
فَلَا یَحۡزُنكَ قَوۡلُهُمۡۘ إِنَّا نَعۡلَمُ مَا یُسِرُّونَ وَمَا یُعۡلِنُونَ ﴿76﴾
तो (ऐ रसूल) तुम इनकी बातों से आज़ुरदा ख़ातिर (पेरशान) न हो जो कुछ ये लोग छिपा कर करते हैं और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हैं-हम सबको यक़ीनी जानते हैं
अतः उनकी बात तुम्हें शोकाकुल न करे। हम जानते है जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ व्यक्त करते है
أَوَلَمۡ یَرَ ٱلۡإِنسَـٰنُ أَنَّا خَلَقۡنَـٰهُ مِن نُّطۡفَةࣲ فَإِذَا هُوَ خَصِیمࣱ مُّبِینࣱ ﴿77﴾
क्या आदमी ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने इसको एक ज़लील नुत्फे से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है
क्या (इनकार करनेवाले) मनुष्य को नहीं देखा कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया? फिर क्या देखते है कि वह प्रत्क्षय विरोधी झगड़ालू बन गया
وَضَرَبَ لَنَا مَثَلࣰا وَنَسِیَ خَلۡقَهُۥۖ قَالَ مَن یُحۡیِ ٱلۡعِظَـٰمَ وَهِیَ رَمِیمࣱ ﴿78﴾
और हमारी निसबत बातें बनाने लगा और अपनी ख़िलक़त (की हालत) भूल गया और कहने लगा कि भला जब ये हड्डियां (सड़गल कर) ख़ाक हो जाएँगी तो (फिर) कौन (दोबारा) ज़िन्दा कर सकता है
और उसने हमपर फबती कसी और अपनी पैदाइश को भूल गया। कहता है, \"कौन हड्डियों में जान डालेगा, जबकि वे जीर्ण-शीर्ण हो चुकी होंगी?\"
قُلۡ یُحۡیِیهَا ٱلَّذِیۤ أَنشَأَهَاۤ أَوَّلَ مَرَّةࣲۖ وَهُوَ بِكُلِّ خَلۡقٍ عَلِیمٌ ﴿79﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि उसको वही ज़िन्दा करेगा जिसने उनको (जब ये कुछ न थे) पहली बार ज़िन्दा कर (रखा)
कह दो, \"उनमें वही जाल डालेगा जिसने उनको पहली बार पैदा किया। वह तो प्रत्येक संसृति को भली-भाँति जानता है
ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلشَّجَرِ ٱلۡأَخۡضَرِ نَارࣰا فَإِذَاۤ أَنتُم مِّنۡهُ تُوقِدُونَ ﴿80﴾
और वह हर तरह की पैदाइश से वाक़िफ है जिसने तुम्हारे वास्ते (मिर्ख़ और अफ़ार के) हरे दरख्त से आग पैदा कर दी फिर तुम उससे (और) आग सुलगा लेते हो
वही है जिसने तुम्हारे लिए हरे-भरे वृक्ष से आग पैदा कर दी। तो लगे हो तुम उससे जलाने।\"
أَوَلَیۡسَ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِقَـٰدِرٍ عَلَىٰۤ أَن یَخۡلُقَ مِثۡلَهُمۚ بَلَىٰ وَهُوَ ٱلۡخَلَّـٰقُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿81﴾
(भला) जिस (खुदा) ने सारे आसमान और ज़मीन पैदा किए क्या वह इस पर क़ाबू नहीं रखता कि उनके मिस्ल (दोबारा) पैदा कर दे हाँ (ज़रूर क़ाबू रखता है) और वह तो पैदा करने वाला वाक़िफ़कार है
क्या जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया उसे इसकी सामर्थ्य नहीं कि उन जैसों को पैदा कर दे? क्यों नहीं, जबकि वह महान स्रष्टा , अत्यन्त ज्ञानवान है
إِنَّمَاۤ أَمۡرُهُۥۤ إِذَاۤ أَرَادَ شَیۡـًٔا أَن یَقُولَ لَهُۥ كُن فَیَكُونُ ﴿82﴾
उसकी शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि ''हो जा'' तो (फौरन) हो जाती है
उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करता है तो उससे कहता है, \"हो जा!\" और वह हो जाती है
فَسُبۡحَـٰنَ ٱلَّذِی بِیَدِهِۦ مَلَكُوتُ كُلِّ شَیۡءࣲ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿83﴾
तो वह ख़ुद (हर नफ्स से) पाक साफ़ है जिसके क़ब्ज़े कुदरत में हर चीज़ की हिकमत है और तुम लोग उसी की तरफ लौट कर जाओगे
अतः महिमा है उसकी, जिसके हाथ में हर चीज़ का पूरा अधिकार है। और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे