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Surah Explained in detail [Fussilat] in Hindi
تَنزِیلࣱ مِّنَ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِیمِ ﴿2﴾
(ये किताब) रहमान व रहीम ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुई है ये (वह) किताब अरबी क़ुरान है
यह अवतरण है बड़े कृपाशील, अत्यन्त दयावान की ओर से,
كِتَـٰبࣱ فُصِّلَتۡ ءَایَـٰتُهُۥ قُرۡءَانًا عَرَبِیࣰّا لِّقَوۡمࣲ یَعۡلَمُونَ ﴿3﴾
जिसकी आयतें समझदार लोगें के वास्ते तफ़सील से बयान कर दी गयीं हैं
एक किताब, जिसकी आयतें खोल-खोलकर बयान हुई है; अरबी क़ुरआन के रूप में, उन लोगों के लिए जो जानना चाहें;
بَشِیرࣰا وَنَذِیرࣰا فَأَعۡرَضَ أَكۡثَرُهُمۡ فَهُمۡ لَا یَسۡمَعُونَ ﴿4﴾
ं(नेको कारों को) ख़़ुशख़बरी देने वाली और (बदकारों को) डराने वाली है इस पर भी उनमें से अक्सर ने मुँह फेर लिया और वह सुनते ही नहीं
शुभ सूचक एवं सचेतकर्त्ता किन्तु उनमें से अधिकतर कतरा गए तो वे सुनते ही नहीं
وَقَالُوا۟ قُلُوبُنَا فِیۤ أَكِنَّةࣲ مِّمَّا تَدۡعُونَاۤ إِلَیۡهِ وَفِیۤ ءَاذَانِنَا وَقۡرࣱ وَمِنۢ بَیۡنِنَا وَبَیۡنِكَ حِجَابࣱ فَٱعۡمَلۡ إِنَّنَا عَـٰمِلُونَ ﴿5﴾
और कहने लगे जिस चीज़ की तरफ तुम हमें बुलाते हो उससे तो हमारे दिल पर्दों में हैं (कि दिल को नहीं लगती) और हमारे कानों में गिर्दानी (बहरापन है) कि कुछ सुनायी नहीं देता और हमारे तुम्हारे दरमियान एक पर्दा (हायल) है तो तुम (अपना) काम करो हम (अपना) काम करते हैं
और उनका कहना है कि \"जिसकी ओर तुम हमें बुलाते हो उसके लिए तो हमारे दिल आवरणों में है। और हमारे कानों में बोझ है। और हमारे और तुम्हारे बीच एक ओट है; अतः तुम अपना काम करो, हम तो अपना काम करते है।\"
قُلۡ إِنَّمَاۤ أَنَا۠ بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُوحَىٰۤ إِلَیَّ أَنَّمَاۤ إِلَـٰهُكُمۡ إِلَـٰهࣱ وَ ٰحِدࣱ فَٱسۡتَقِیمُوۤا۟ إِلَیۡهِ وَٱسۡتَغۡفِرُوهُۗ وَوَیۡلࣱ لِّلۡمُشۡرِكِینَ ﴿6﴾
(ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी बस तुम्हारा ही सा आदमी हूँ (मगर फ़र्क ये है कि) मुझ पर 'वही' आती है कि तुम्हारा माबूद बस (वही) यकता ख़ुदा है तो सीधे उसकी तरफ मुतावज्जे रहो और उसी से बख़शिश की दुआ माँगो, और मुशरेकों पर अफसोस है
कह दो, \"मैं तो तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः तुम सीधे उसी का रुख करो और उसी से क्षमा-याचना करो - साझी ठहरानेवालों के लिए तो बड़ी तबाही है,
ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ كَـٰفِرُونَ ﴿7﴾
जो ज़कात नहीं देते और आखेरत के भी क़ायल नहीं
जो ज़कात नहीं देते और वही है जो आख़िरत का इनकार करते है। -
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَهُمۡ أَجۡرٌ غَیۡرُ مَمۡنُونࣲ ﴿8﴾
बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे और उनके लिए वह सवाब है जो कभी ख़त्म होने वाला नहीं
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके लिए ऐसा बदला है जिसका क्रम टूटनेवाला नहीं।\"
۞ قُلۡ أَىِٕنَّكُمۡ لَتَكۡفُرُونَ بِٱلَّذِی خَلَقَ ٱلۡأَرۡضَ فِی یَوۡمَیۡنِ وَتَجۡعَلُونَ لَهُۥۤ أَندَادࣰاۚ ذَ ٰلِكَ رَبُّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿9﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम उस (ख़ुदा) से इन्कार करते हो जिसने ज़मीन को दो दिन में पैदा किया और तुम (औरों को) उसका हमसर बनाते हो, यही तो सारे जहाँ का सरपरस्त है
कहो, \"क्या तुम उसका इनकार करते हो, जिसने धरती को दो दिनों (काल) में पैदा किया और तुम उसके समकक्ष ठहराते हो? वह तो सारे संसार का रब है
وَجَعَلَ فِیهَا رَوَ ٰسِیَ مِن فَوۡقِهَا وَبَـٰرَكَ فِیهَا وَقَدَّرَ فِیهَاۤ أَقۡوَ ٰتَهَا فِیۤ أَرۡبَعَةِ أَیَّامࣲ سَوَاۤءࣰ لِّلسَّاۤىِٕلِینَ ﴿10﴾
और उसी ने ज़मीन में उसके ऊपर से पहाड़ पैदा किए और उसी ने इसमें बरकत अता की और उसी ने एक मुनासिब अन्दाज़ पर इसमें सामाने माईशत का बन्दोबस्त किया (ये सब कुछ) चार दिन में और तमाम तलबगारों के लिए बराबर है
और उसने उस (धरती) में उसके ऊपर से पहाड़ जमाए और उसमें बरकत रखी और उसमें उसकी ख़ुराकों को ठीक अंदाज़े से रखा। माँग करनेवालों के लिए समान रूप से यह सब चार दिन में हुआ
ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰۤ إِلَى ٱلسَّمَاۤءِ وَهِیَ دُخَانࣱ فَقَالَ لَهَا وَلِلۡأَرۡضِ ٱئۡتِیَا طَوۡعًا أَوۡ كَرۡهࣰا قَالَتَاۤ أَتَیۡنَا طَاۤىِٕعِینَ ﴿11﴾
फिर आसमान की तरफ मुतावज्जे हुआ और (उस वक्त) धुएँ (का सा) था उसने उससे और ज़मीन से फरमाया कि तुम दोनों आओ ख़़ुशी से ख्वाह कराहत से, दोनों ने अर्ज़ की हम ख़़ुशी ख़़ुशी हाज़िर हैं
फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह मात्र धुआँ था- और उसने उससे और धरती से कहा, 'आओ, स्वेच्छा के साथ या अनिच्छा के साथ।' उन्होंने कहा, 'हम स्वेच्छा के साथ आए।' -
فَقَضَىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَـٰوَاتࣲ فِی یَوۡمَیۡنِ وَأَوۡحَىٰ فِی كُلِّ سَمَاۤءٍ أَمۡرَهَاۚ وَزَیَّنَّا ٱلسَّمَاۤءَ ٱلدُّنۡیَا بِمَصَـٰبِیحَ وَحِفۡظࣰاۚ ذَ ٰلِكَ تَقۡدِیرُ ٱلۡعَزِیزِ ٱلۡعَلِیمِ ﴿12﴾
(और हुक्म के पाबन्द हैं) फिर उसने दोनों में उस (धुएँ) के सात आसमान बनाए और हर आसमान में उसके (इन्तेज़ाम) का हुक्म (कार कुनान कज़ा व क़दर के पास) भेज दिया और हमने नीचे वाले आसमान को (सितारों के) चिराग़ों से मज़य्यन किया और (शैतानों से महफूज़) रखा ये वाक़िफ़कार ग़ालिब ख़ुदा के (मुक़र्रर किए हुए) अन्दाज़ हैं
फिर दो दिनों में उनको अर्थात सात आकाशों को बनाकर पूरा किया और प्रत्येक आकाश में उससे सम्बन्धित आदेश की प्रकाशना कर दी औऱ दुनिया के (निकटवर्ती) आकाश को हमने दीपों से सजाया (रात के यात्रियों के दिशा-निर्देश आदि के लिए) और सुरक्षित करने के उद्देश्य से। यह अत्.न्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ का ठहराया हुआ है।\"
فَإِنۡ أَعۡرَضُوا۟ فَقُلۡ أَنذَرۡتُكُمۡ صَـٰعِقَةࣰ مِّثۡلَ صَـٰعِقَةِ عَادࣲ وَثَمُودَ ﴿13﴾
फिर अगर हम पर भी ये कुफ्फार मुँह फेरें तो कह दो कि मैं तुम को ऐसी बिजली गिरने (के अज़ाब से) डराता हूँ जैसी क़ौम आद व समूद की बिजली की कड़क
अब यदि वे लोग ध्यान में न लाएँ तो कह दो, \"मैं तुम्हें उसी तरह के कड़का (वज्रवात) से डराता हूँ, जैसा कड़का आद और समूद पर हुआ था।\"
إِذۡ جَاۤءَتۡهُمُ ٱلرُّسُلُ مِنۢ بَیۡنِ أَیۡدِیهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ أَلَّا تَعۡبُدُوۤا۟ إِلَّا ٱللَّهَۖ قَالُوا۟ لَوۡ شَاۤءَ رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَـٰۤىِٕكَةࣰ فَإِنَّا بِمَاۤ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَـٰفِرُونَ ﴿14﴾
जब उनके पास उनके आगे से और पीछे से पैग़म्बर (ये ख़बर लेकर) आए कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार चाहता तो फ़रिश्ते नाज़िल करता और जो (बातें) देकर तुम लोग भेजे गए हो हम तो उसे नहीं मानते
जब उनके पास रसूल उनके आगे और उनके पीछे से आए कि \"अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो।\" तो उन्होंने कहा, \"यदि हमारा रब चाहता तो फ़रिश्तों को उतार देता। अतः जिस चीज़ के साथ तुम्हें भेजा गया है, हम उसे नहीं मानते।\"
فَأَمَّا عَادࣱ فَٱسۡتَكۡبَرُوا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّ وَقَالُوا۟ مَنۡ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةًۖ أَوَلَمۡ یَرَوۡا۟ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِی خَلَقَهُمۡ هُوَ أَشَدُّ مِنۡهُمۡ قُوَّةࣰۖ وَكَانُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَا یَجۡحَدُونَ ﴿15﴾
तो आद नाहक़ रूए ज़मीन में ग़ुरूर करने लगे और कहने लगे कि हम से बढ़ के क़ूवत में कौन है, क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर न किया कि ख़ुदा जिसने उनको पैदा किया है वह उनसे क़ूवत में कहीं बढ़ के है, ग़रज़ वह लोग हमारी आयतों से इन्कार ही करते रहे
रहे आद, तो उन्होंने नाहक़ धरती में घमंड किया और कहा, \"कौन हमसे शक्ति में बढ़कर है?\" क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उन्हें पैदा किया, वह उनसे शक्ति में बढ़कर है? वे तो हमारी आयतों का इनकार ही करते रहे
فَأَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمۡ رِیحࣰا صَرۡصَرࣰا فِیۤ أَیَّامࣲ نَّحِسَاتࣲ لِّنُذِیقَهُمۡ عَذَابَ ٱلۡخِزۡیِ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡـَٔاخِرَةِ أَخۡزَىٰۖ وَهُمۡ لَا یُنصَرُونَ ﴿16﴾
तो हमने भी (तो उनके) नहूसत के दिनों में उन पर बड़ी ज़ोरों की ऑंधी चलाई ताकि दुनिया की ज़िन्दगी में भी उनको रूसवाई के अज़ाब का मज़ा चखा दें और आखेरत का अज़ाब तो और ज्यादा रूसवा करने वाला ही होगा और (फिर) उनको कहीं से मदद भी न मिलेगी
अन्ततः हमने कुछ अशुभ दिनों में उनपर एक शीत-झंझावात चलाई, ताकि हम उन्हें सांसारिक जीवन में अपमान और रुसवाई की यातना का मज़ा चखा दें। और आख़िरत की यातना तो इससे कहीं बढ़कर रुसवा करनेवाली है। और उनको कोई सहायता भी न मिल सकेगी
وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَیۡنَـٰهُمۡ فَٱسۡتَحَبُّوا۟ ٱلۡعَمَىٰ عَلَى ٱلۡهُدَىٰ فَأَخَذَتۡهُمۡ صَـٰعِقَةُ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡهُونِ بِمَا كَانُوا۟ یَكۡسِبُونَ ﴿17﴾
और रहे समूद तो हमने उनको सीधा रास्ता दिखाया, मगर उन लोगों ने हिदायत के मुक़ाबले में गुमराही को पसन्द किया तो उन की करतूतों की बदौलत ज़िल्लत के अज़ाब की बिजली ने उनको ले डाला
और रहे समूद, तो हमने उनके सामने सीधा मार्ग दिखाया, किन्तु मार्गदर्शन के मुक़ाबले में उन्होंने अन्धा रहना ही पसन्द किया। परिणामतः जो कुछ वे कमाई करते रहे थे उसके बदले में अपमानजनक यातना के कड़के ने उन्हें आ पकड़ा
وَنَجَّیۡنَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَكَانُوا۟ یَتَّقُونَ ﴿18﴾
और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते थे उनको हमने (इस) मुसीबत से बचा लिया
और हमने उन लोगों को बचा लिया जो ईमान लाए थे और डर रखते थे
وَیَوۡمَ یُحۡشَرُ أَعۡدَاۤءُ ٱللَّهِ إِلَى ٱلنَّارِ فَهُمۡ یُوزَعُونَ ﴿19﴾
और जिस दिन ख़ुदा के दुशमन दोज़ख़ की तरफ हकाए जाएँगे तो ये लोग तरतीब वार खड़े किए जाएँगे
और विचार करो जिस दिन अल्लाह के शत्रु आग की ओर एकत्र करके लाए जाएँगे, फिर उन्हें श्रेणियों में क्रमबद्ध किया जाएगा, यहाँ तक की जब वे उसके पास पहुँच जाएँगे
حَتَّىٰۤ إِذَا مَا جَاۤءُوهَا شَهِدَ عَلَیۡهِمۡ سَمۡعُهُمۡ وَأَبۡصَـٰرُهُمۡ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿20﴾
यहाँ तक की जब सब के सब जहन्नुम के पास जाएँगे तो उनके कान और उनकी ऑंखें और उनके (गोश्त पोस्त) उनके ख़िलाफ उनके मुक़ाबले में उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें
तो उनके कान और उनकी आँखें और उनकी खालें उनके विरुद्ध उन बातों की गवाही देंगी, जो कुछ वे करते रहे होंगे
وَقَالُوا۟ لِجُلُودِهِمۡ لِمَ شَهِدتُّمۡ عَلَیۡنَاۖ قَالُوۤا۟ أَنطَقَنَا ٱللَّهُ ٱلَّذِیۤ أَنطَقَ كُلَّ شَیۡءࣲۚ وَهُوَ خَلَقَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةࣲ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿21﴾
और ये लोग अपने आज़ा से कहेंगे कि तुमने हमारे ख़िलाफ क्यों गवाही दी तो वह जवाब देंगे कि जिस ख़ुदा ने हर चीज़ को गोया किया उसने हमको भी (अपनी क़ुदरत से) गोया किया और उसी ने तुमको पहली बार पैदा किया था और (आख़िर) उसी की तरफ लौट कर जाओगे
वे अपनी खालों से कहेंगे, \"तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी?\" वे कहेंगी, \"हमें उसी अल्लाह ने वाक्-शक्ति प्रदान की है, जिसने प्रत्येक चीज़ को वाक्-शक्ति प्रदान की।\" - उसी ने तुम्हें पहली बार पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटना है
وَمَا كُنتُمۡ تَسۡتَتِرُونَ أَن یَشۡهَدَ عَلَیۡكُمۡ سَمۡعُكُمۡ وَلَاۤ أَبۡصَـٰرُكُمۡ وَلَا جُلُودُكُمۡ وَلَـٰكِن ظَنَنتُمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَا یَعۡلَمُ كَثِیرࣰا مِّمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿22﴾
और (तुम्हारी तो ये हालत थी कि) तुम लोग इस ख्याल से (अपने गुनाहों की) पर्दा दारी भी तो नहीं करते थे कि तुम्हारे कान और तुम्हारी ऑंखे और तुम्हारे आज़ा तुम्हारे बरख़िलाफ गवाही देंगे बल्कि तुम इस ख्याल मे (भूले हुए) थे कि ख़ुदा को तुम्हारे बहुत से कामों की ख़बर ही नहीं
तुम इस भय से छिपते न थे कि तुम्हारे कान तुम्हारे विरुद्ध गवाही देंगे, और न इसलिए कि तुम्हारी आँखें गवाही देंगी और न इस कारण से कि तुम्हारी खाले गवाही देंगी, बल्कि तुमने तो यह समझ रखा था कि अल्लाह तुम्हारे बहुत-से कामों को जानता ही नहीं
وَذَ ٰلِكُمۡ ظَنُّكُمُ ٱلَّذِی ظَنَنتُم بِرَبِّكُمۡ أَرۡدَىٰكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم مِّنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿23﴾
और तुम्हारी इस बदख्याली ने जो तुम अपने परवरदिगार के बारे में रखते थे तुम्हें तबाह कर छोड़ा आख़िर तुम घाटे में रहे
और तुम्हारे उस गुमान ने तुम्हे बरबाद किया जो तुमने अपने रब के साथ किया; अतः तुम घाटे में पड़कर रहे
فَإِن یَصۡبِرُوا۟ فَٱلنَّارُ مَثۡوࣰى لَّهُمۡۖ وَإِن یَسۡتَعۡتِبُوا۟ فَمَا هُم مِّنَ ٱلۡمُعۡتَبِینَ ﴿24﴾
फिर अगर ये लोग सब्र भी करें तो भी इनका ठिकाना दोज़ख़ ही है और अगर तौबा करें तो भी इनकी तौबा क़ुबूल न की जाएगी
अब यदि वे धैर्य दिखाएँ तब भी आग ही उनका ठिकाना है। और यदि वे किसी प्रकार (उसके) क्रोध को दूर करना चाहें, तब भी वे ऐसे नहीं कि वे राज़ी कर सकें
۞ وَقَیَّضۡنَا لَهُمۡ قُرَنَاۤءَ فَزَیَّنُوا۟ لَهُم مَّا بَیۡنَ أَیۡدِیهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَحَقَّ عَلَیۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ فِیۤ أُمَمࣲ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ خَـٰسِرِینَ ﴿25﴾
और हमने (गोया ख़ुद शैतान को) उनका हमनशीन मुक़र्रर कर दिया था तो उन्होने उनके अगले पिछले तमाम उमूर उनकी नज़रों में भले कर दिखाए तो जिन्नात और इन्सानो की उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी थीं उनके शुमूल (साथ) में (अज़ाब का) वायदा उनके हक़ में भी पूरा हो कर रहा बेशक ये लोग अपने घाटे के दरपै थे
हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए थे। फिर उन्होंने उनके आगे और उनके पीछे जो कुछ था उसे सुहाना बनाकर उन्हें दिखाया। अन्ततः उनपर भी जिन्नों और मनुष्यों के उन गिरोहों के साथ फ़ैसला सत्यापित होकर रहा, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे। निश्चय ही वे घाटा उठानेवाले थे
وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لَا تَسۡمَعُوا۟ لِهَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَٱلۡغَوۡا۟ فِیهِ لَعَلَّكُمۡ تَغۡلِبُونَ ﴿26﴾
और कुफ्फ़ार कहने लगे कि इस क़ुरान को सुनो ही नहीं और जब पढ़ें (तो) इसके (बीच) में ग़ुल मचा दिया करो ताकि (इस तरकीब से) तुम ग़ालिब आ जाओ
जिन लोगों ने इनकार किया उन्होंने कहा, \"इस क़ुरआन को सुनो ही मत और इसके बीच में शोर-गुल मचाओ, ताकि तुम प्रभावी रहो।\"
فَلَنُذِیقَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ عَذَابࣰا شَدِیدࣰا وَلَنَجۡزِیَنَّهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِی كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿27﴾
तो हम भी काफ़िरों को सख्त अज़ाब के मज़े चखाएँगे और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा ये दोज़ख़ है
अतः हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मजा चखाएँगे, और हम अवश्य उन्हें उसका बदला देंगे, जो निकृष्टतम कर्म वे करते रहे है
ذَ ٰلِكَ جَزَاۤءُ أَعۡدَاۤءِ ٱللَّهِ ٱلنَّارُۖ لَهُمۡ فِیهَا دَارُ ٱلۡخُلۡدِ جَزَاۤءَۢ بِمَا كَانُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَا یَجۡحَدُونَ ﴿28﴾
ख़ुदा के दुशमनों का बदला है कि वह जो हमरी आयतों से इन्कार करते थे उसकी सज़ा में उनके लिए उसमें हमेशा (रहने) का घर है,
वह है अल्लाह के शत्रुओं का बदला - आग। उसी में उसका सदा का घर है, उसके बदले में जो वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे
وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ رَبَّنَاۤ أَرِنَا ٱلَّذَیۡنِ أَضَلَّانَا مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ نَجۡعَلۡهُمَا تَحۡتَ أَقۡدَامِنَا لِیَكُونَا مِنَ ٱلۡأَسۡفَلِینَ ﴿29﴾
और (क़यामत के दिन) कुफ्फ़ार कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार जिनों और इन्सानों में से जिन लोगों ने हमको गुमराह किया था (एक नज़र) उनको हमें दिखा दे कि हम उनको पाँव तले (रौन्द) डालें ताकि वह ख़ूब ज़लील हों
और जिन लोगों ने इनकार किया वे कहेंगे, \"ऐ हमारे रब! हमें दिखा दे उन जिन्नों और मनुष्यों को, जिन्होंने हमको पथभ्रष़्ट किया कि हम उन्हें अपने पैरों तले डाल दे ताकि वे सबसे नीचे जा पड़े
إِنَّ ٱلَّذِینَ قَالُوا۟ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَـٰمُوا۟ تَتَنَزَّلُ عَلَیۡهِمُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ أَلَّا تَخَافُوا۟ وَلَا تَحۡزَنُوا۟ وَأَبۡشِرُوا۟ بِٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِی كُنتُمۡ تُوعَدُونَ ﴿30﴾
और जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) कहा कि हमारा परवरदिगार तो (बस) ख़ुदा है, फिर वह उसी पर भी क़ायम भी रहे उन पर मौत के वक्त (रहमत के) फ़रिश्ते नाज़िल होंगे (और कहेंगे) कि कुछ ख़ौफ न करो और न ग़म खाओ और जिस बेहिश्त का तुमसे वायदा किया गया था उसकी ख़ुशियां मनाओ
जिन लोगों ने कहा कि \"हमारा रब अल्लाह है।\" फिर इस पर दृढ़तापूर्वक जमें रहे, उनपर फ़रिश्ते उतरते है कि \"न डरो और न शोकाकुल हो, और उस जन्नत की शुभ सूचना लो जिसका तुमसे वादा किया गया है
نَحۡنُ أَوۡلِیَاۤؤُكُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَفِی ٱلۡـَٔاخِرَةِۖ وَلَكُمۡ فِیهَا مَا تَشۡتَهِیۤ أَنفُسُكُمۡ وَلَكُمۡ فِیهَا مَا تَدَّعُونَ ﴿31﴾
हम दुनिया की ज़िन्दगी में तुम्हारे दोस्त थे और आखेरत में भी तुम्हारे (रफ़ीक़) हैं और जिस चीज़ का भी तुम्हार जी चाहे बेहिश्त में तुम्हारे वास्ते मौजूद है और जो चीज़ तलब करोगे वहाँ तुम्हारे लिए (हाज़िर) होगी
हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहचर मित्र है और आख़िरत में भी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ है, जिसकी इच्छा तुम्हारे जी को होगी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ होगा, जिसका तुम माँग करोगे
نُزُلࣰا مِّنۡ غَفُورࣲ رَّحِیمࣲ ﴿32﴾
(ये) बख्शने वाले मेहरबान (ख़ुदा) की तरफ़ से (तुम्हारी मेहमानी है)
आतिथ्य के रूप में क्षमाशील, दयावान सत्ता की ओर से\"
وَمَنۡ أَحۡسَنُ قَوۡلࣰا مِّمَّن دَعَاۤ إِلَى ٱللَّهِ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا وَقَالَ إِنَّنِی مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿33﴾
और इस से बेहतर किसकी बात हो सकती है जो (लोगों को) ख़ुदा की तरफ बुलाए और अच्छे अच्छे काम करे और कहे कि मैं भी यक़ीनन (ख़ुदा के) फरमाबरदार बन्दों में हूं
और उस व्यक्ति से बात में अच्छा कौन हो सकता है जो अल्लाह की ओर बुलाए और अच्छे कर्म करे और कहे, \"निस्संदेह मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ?\"
وَلَا تَسۡتَوِی ٱلۡحَسَنَةُ وَلَا ٱلسَّیِّئَةُۚ ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُ فَإِذَا ٱلَّذِی بَیۡنَكَ وَبَیۡنَهُۥ عَدَ ٰوَةࣱ كَأَنَّهُۥ وَلِیٌّ حَمِیمࣱ ﴿34﴾
और भलाई बुराई (कभी) बराबर नहीं हो सकती तो (सख्त कलामी का) ऐसे तरीके से जवाब दो जो निहायत अच्छा हो (ऐसा करोगे) तो (तुम देखोगे) जिस में और तुममें दुशमनी थी गोया वह तुम्हारा दिल सोज़ दोस्त है
भलाई और बुराई समान नहीं है। तुम (बुरे आचरण की बुराई को) अच्छे से अच्छे आचरण के द्वारा दूर करो। फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति तुम्हारे और जिसके बीच वैर पड़ा हुआ था, जैसे वह कोई घनिष्ठ मित्र है
وَمَا یُلَقَّىٰهَاۤ إِلَّا ٱلَّذِینَ صَبَرُوا۟ وَمَا یُلَقَّىٰهَاۤ إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِیمࣲ ﴿35﴾
ये बात बस उन्हीं लोगों को हासिल हुईहै जो सब्र करने वाले हैं और उन्हीं लोगों को हासिल होती है जो बड़े नसीबवर हैं
किन्तु यह चीज़ केवल उन लोगों को प्राप्त होती है जो धैर्य से काम लेते है, और यह चीज़ केवल उसको प्राप्त होती है जो बड़ा भाग्यशाली होता है
وَإِمَّا یَنزَغَنَّكَ مِنَ ٱلشَّیۡطَـٰنِ نَزۡغࣱ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿36﴾
और अगर तुम्हें शैतान की तरफ से वसवसा पैदा हो तो ख़ुदा की पनाह माँग लिया करो बेशक वह (सबकी) सुनता जानता है
और यदि शैतान की ओर से कोई उकसाहट तुम्हें चुभे तो अल्लाह की शरण माँग लो। निश्चय ही वह सबकुछ सुनता, जानता है
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِ ٱلَّیۡلُ وَٱلنَّهَارُ وَٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُۚ لَا تَسۡجُدُوا۟ لِلشَّمۡسِ وَلَا لِلۡقَمَرِ وَٱسۡجُدُوا۟ لِلَّهِ ٱلَّذِی خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمۡ إِیَّاهُ تَعۡبُدُونَ ﴿37﴾
और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और अगर तुम ख़ुदा ही की इबादत करनी मंज़ूर रहे तो बस उसी को सजदा करो जिसने इन चीज़ों को पैदा किया है
रात और दिन और सूर्य और चन्द्रमा उसकी निशानियों में से है। तुम न तो सूर्य को सजदा करो और न चन्द्रमा को, बल्कि अल्लाह को सजदा करो जिसने उन्हें पैदा किया, यदि तुम उसी की बन्दगी करनेवाले हो
فَإِنِ ٱسۡتَكۡبَرُوا۟ فَٱلَّذِینَ عِندَ رَبِّكَ یُسَبِّحُونَ لَهُۥ بِٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَهُمۡ لَا یَسۡـَٔمُونَ ۩ ﴿38﴾
पस अगर ये लोग सरकशी करें तो (ख़ुदा को भी उनकी परवाह नहीं) वो लोग (फ़रिश्ते) तुम्हारे परवरदिगार की बारगाह में हैं वह रात दिन उसकी तसबीह करते रहते हैं और वह लोग उकताते भी नहीं
लेकिन यदि वे घमंड करें (और अल्लाह को याद न करें), तो जो फ़रिश्ते तुम्हारे रब के पास है वे तो रात और दिन उसकी तसबीह करते ही रहते है और वे उकताते नहीं
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦۤ أَنَّكَ تَرَى ٱلۡأَرۡضَ خَـٰشِعَةࣰ فَإِذَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَیۡهَا ٱلۡمَاۤءَ ٱهۡتَزَّتۡ وَرَبَتۡۚ إِنَّ ٱلَّذِیۤ أَحۡیَاهَا لَمُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰۤۚ إِنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿39﴾
उसकी क़ुदरत की निशानियों में से एक ये भी है कि तुम ज़मीन को ख़़ुश्क और बेआब ओ गयाह देखते हो फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने लगती है और फूल जाती है जिस ख़ुदा ने (मुर्दा) ज़मीन को ज़िन्दा किया वह यक़ीनन मुर्दों को भी जिलाएगा बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है
और यह चीज़ भी उसकी निशानियों में से है कि तुम देखते हो कि धरती दबी पड़ी है; फिर ज्यों ही हमने उसपर पानी बरसाया कि वह फबक उठी और फूल गई। निश्चय ही जिसने उसे जीवित किया, वही मुर्दों को जीवित करनेवाला है। निस्संदेह उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है
إِنَّ ٱلَّذِینَ یُلۡحِدُونَ فِیۤ ءَایَـٰتِنَا لَا یَخۡفَوۡنَ عَلَیۡنَاۤۗ أَفَمَن یُلۡقَىٰ فِی ٱلنَّارِ خَیۡرٌ أَم مَّن یَأۡتِیۤ ءَامِنࣰا یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۚ ٱعۡمَلُوا۟ مَا شِئۡتُمۡ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرٌ ﴿40﴾
जो लोग हमारी आयतों में हेर फेर पैदा करते हैं वह हरगिज़ हमसे पोशीदा नहीं हैं भला जो शख्स दोज़ख़ में डाला जाएगा वह बेहतर है या वह शख्स जो क़यामत के दिन बेख़ौफ व ख़तर आएगा (ख़ैर) जो चाहो सो करो (मगर) जो कुछ तुम करते हो वह (ख़ुदा) उसको देख रहा है
जो लोग हमारी आयतों में कुटिलता की नीति अपनाते है वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं, तो क्या जो व्यक्ति आग में डाला जाए वह अच्छा है या वह जो क़ियामत के दिन निश्चिन्त होकर आएगा? जो चाहो कर लो, तुम जो कुछ करते हो वह तो उसे देख ही रहा है
إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ بِٱلذِّكۡرِ لَمَّا جَاۤءَهُمۡۖ وَإِنَّهُۥ لَكِتَـٰبٌ عَزِیزࣱ ﴿41﴾
जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उनके पास आयी न माना (वह अपना नतीजा देख लेंगे) और ये क़ुरान तो यक़ीनी एक आली मरतबा किताब है
जिन लोगों ने अनुस्मृति का इनकार किया, जबकि वह उनके पास आई, हालाँकि वह एक प्रभुत्वशाली किताब है, (तो न पूछो कि उनका कितना बुरा परिणाम होगा)
لَّا یَأۡتِیهِ ٱلۡبَـٰطِلُ مِنۢ بَیۡنِ یَدَیۡهِ وَلَا مِنۡ خَلۡفِهِۦۖ تَنزِیلࣱ مِّنۡ حَكِیمٍ حَمِیدࣲ ﴿42﴾
कि झूठ न तो उसके आगे फटक सकता है और न उसके पीछे से और खूबियों वाले दाना (ख़ुदा) की बारगाह से नाज़िल हुई है
असत्य उस तक न उसके आगे से आ सकता है और न उसके पीछे से; अवतरण है उसकी ओर से जो अत्यन्त तत्वदर्शी, प्रशंसा के योग्य है
مَّا یُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدۡ قِیلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبۡلِكَۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةࣲ وَذُو عِقَابٍ أَلِیمࣲ ﴿43﴾
(ऐ रसूल) तुमसे से भी बस वही बातें कहीं जाती हैं जो तुमसे और रसूलों से कही जा चुकी हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है
तुम्हें बस वही कहा जा रहा है, जो उन रसूलों को कहा जा चुका है, जो तुमसे पहले गुज़र चुके है। निस्संदेह तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील है और दुखद दंड देनेवाला भी
وَلَوۡ جَعَلۡنَـٰهُ قُرۡءَانًا أَعۡجَمِیࣰّا لَّقَالُوا۟ لَوۡلَا فُصِّلَتۡ ءَایَـٰتُهُۥۤۖ ءَا۬عۡجَمِیࣱّ وَعَرَبِیࣱّۗ قُلۡ هُوَ لِلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ هُدࣰى وَشِفَاۤءࣱۚ وَٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ فِیۤ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرࣱ وَهُوَ عَلَیۡهِمۡ عَمًىۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُنَادَوۡنَ مِن مَّكَانِۭ بَعِیدࣲ ﴿44﴾
और अगर हम इस क़ुरान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी क्या (खूब क़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कुरान अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कुरान) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है
यदि हम उसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते तो वे कहते कि \"उसकी आयतें क्यों नहीं (हमारी भाषा में) खोलकर बयान की गई? यह क्या कि वाणी तो ग़ैर अरबी है और व्यक्ति अरबी?\" कहो, \"वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए मार्गदर्शन और आरोग्य है, किन्तु जो लोग ईमान नहीं ला रहे है उनके कानों में बोझ है और वह (क़ुरआन) उनके लिए अन्धापन (सिद्ध हो रहा) है, वे ऐसे है जिनको किसी दूर के स्थान से पुकारा जा रहा हो।\"
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ فَٱخۡتُلِفَ فِیهِۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَفِی شَكࣲّ مِّنۡهُ مُرِیبࣲ ﴿45﴾
(और नहीं सुनते) और हम ही ने मूसा को भी किताब (तौरैत) अता की थी तो उसमें भी इसमें एख्तेलाफ किया गया और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात पहले न हो चुकी होती तो उनमें कब का फैसला कर दिया गया होता, और ये लोग ऐसे शक़ में पड़े हुए हैं जिसने उन्हें बेचैन कर दिया है
हमने मूसा को भी किताब प्रदान की थी, फिर उसमें भी विभेद किया गया। यदि तुम्हारे रब की ओर से पहले ही से एक बात निश्चित न हो चुकी होती तो उनके बीत फ़ैसला चुका दिया जाता। हालाँकि वे उसकी ओर से उलझन में डाल देनेवाले सन्देह में पड़े हुए है
مَّنۡ عَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَسَاۤءَ فَعَلَیۡهَاۗ وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّـٰمࣲ لِّلۡعَبِیدِ ﴿46﴾
जिसने अच्छे अच्छे काम किये तो अपने नफे क़े लिए और जो बुरा काम करे उसका वबाल भी उसी पर है और तुम्हारा परवरदिगार तो बन्दों पर (कभी) ज़ुल्म करने वाला नहीं
जिस किसी ने अच्छा कर्म किया तो अपने ही लिए और जिस किसी ने बुराई की, तो उसका वबाल भी उसी पर पड़ेगा। वास्तव में तुम्हारा रब अपने बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म नहीं करता
۞ إِلَیۡهِ یُرَدُّ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِۚ وَمَا تَخۡرُجُ مِن ثَمَرَ ٰتࣲ مِّنۡ أَكۡمَامِهَا وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَیَوۡمَ یُنَادِیهِمۡ أَیۡنَ شُرَكَاۤءِی قَالُوۤا۟ ءَاذَنَّـٰكَ مَا مِنَّا مِن شَهِیدࣲ ﴿47﴾
क़यामत के इल्म का हवाला उसी की तरफ है (यानि वही जानता है) और बगैर उसके इल्म व (इरादे) के न तो फल अपने पौरों से निकलते हैं और न किसी औरत को हमल रखता है और न वह बच्चा जनती है और जिस दिन (ख़ुदा) उन (मुशरेकीन) को पुकारेगा और पूछेगा कि मेरे शरीक कहाँ हैं- वह कहेंगे हम तो तुझ से अर्ज़ कर चूके हैं कि हम में से कोई (उनसे) वाकिफ़ ही नहीं
उस घड़ी का ज्ञान अल्लाह की ओर फिरता है। जो फल भी अपने कोषों से निकलते है और जो मादा भी गर्भवती होती है और बच्चा जनती है, अनिवार्यतः उसे इन सबका ज्ञान होता है। जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा, \"कहाँ है मेरे साझीदार?\" वे कहेंगे, \"हम तेरे समक्ष खुल्लम-ख़ुल्ला कह चुके है कि हममें से कोई भी इसका गवाह नहीं।\"
وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُوا۟ یَدۡعُونَ مِن قَبۡلُۖ وَظَنُّوا۟ مَا لَهُم مِّن مَّحِیصࣲ ﴿48﴾
और इससे पहले जिन माबूदों की परसतिश करते थे वह ग़ायब हो गये और ये लोग समझ जाएगें कि उनके लिए अब मुख़लिसी नहीं
और जिन्हें वे पहले पुकारा करते थे वे उनसे गुम हो जाएँगे। और वे समझ लेंगे कि उनके लिए कोई भी भागने की जगह नहीं है
لَّا یَسۡـَٔمُ ٱلۡإِنسَـٰنُ مِن دُعَاۤءِ ٱلۡخَیۡرِ وَإِن مَّسَّهُ ٱلشَّرُّ فَیَـُٔوسࣱ قَنُوطࣱ ﴿49﴾
इन्सान भलाई की दुआए मांगने से तो कभी उकताता नहीं और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाए तो (फौरन) न उम्मीद और बेआस हो जाता है
मनुष्य भलाई माँगने से नहीं उकताता, किन्तु यदि उसे कोई तकलीफ़ छू जाती है तो वह निराश होकर आस छोड़ बैठता है
وَلَىِٕنۡ أَذَقۡنَـٰهُ رَحۡمَةࣰ مِّنَّا مِنۢ بَعۡدِ ضَرَّاۤءَ مَسَّتۡهُ لَیَقُولَنَّ هَـٰذَا لِی وَمَاۤ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَاۤىِٕمَةࣰ وَلَىِٕن رُّجِعۡتُ إِلَىٰ رَبِّیۤ إِنَّ لِی عِندَهُۥ لَلۡحُسۡنَىٰۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ بِمَا عَمِلُوا۟ وَلَنُذِیقَنَّهُم مِّنۡ عَذَابٍ غَلِیظࣲ ﴿50﴾
और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें
और यदि उस तकलीफ़ के बाद, जो उसे पहुँची, हम उसे अपनी दयालुता का आस्वादन करा दें तो वह निश्चय ही कहेंगा, \"यह तो मेरा हक़ ही है। मैं तो यह नहीं समझता कि वह, क़ियामत की घड़ी, घटित होगी और यदि मैं अपने रब की ओर लौटाया भी गया तो अवश्य ही उसके पास मेरे लिए अच्छा पारितोषिक होगा।\" फिर हम उन लोगों को जिन्होंने इनकार किया, अवश्य बताकर रहेंगे, जो कुछ उन्होंने किया होगा। और हम उन्हें अवश्य ही कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे
وَإِذَاۤ أَنۡعَمۡنَا عَلَى ٱلۡإِنسَـٰنِ أَعۡرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ فَذُو دُعَاۤءٍ عَرِیضࣲ ﴿51﴾
(वह अलग) और जब हम इन्सान पर एहसान करते हैं तो (हमारी तरफ से) मुँह फेर लेता है और मुँह बदलकर चल देता है और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चौड़ी दुआएँ करने लगता है
जब हम मनुष्य पर अनुकम्पा करते है तो वह ध्यान में नहीं लाता और अपना पहलू फेर लेता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ छू जाती है, तो वह लम्बी-चौड़ी प्रार्थनाएँ करने लगता है
قُلۡ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كَانَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ثُمَّ كَفَرۡتُم بِهِۦ مَنۡ أَضَلُّ مِمَّنۡ هُوَ فِی شِقَاقِۭ بَعِیدࣲ ﴿52﴾
(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि अगर ये (क़ुरान) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो और फिर तुम उससे इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दर्जे की मुख़ालेफत में (पड़ा) हो उससे बढ़कर और कौन गुमराह हो सकता है
कह दो, \"क्या तुमने विचार किया, यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर सो ही हुआ और तुमने उसका इनकार किया तो उससे बढ़कर भटका हुआ और कौन होगा जो विरोध में बहुत दूर जा पड़ा हो?\"
سَنُرِیهِمۡ ءَایَـٰتِنَا فِی ٱلۡـَٔافَاقِ وَفِیۤ أَنفُسِهِمۡ حَتَّىٰ یَتَبَیَّنَ لَهُمۡ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّۗ أَوَلَمۡ یَكۡفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ شَهِیدٌ ﴿53﴾
हम अनक़रीब ही अपनी (क़ुदरत) की निशानियाँ अतराफ (आलम) में और ख़़ुद उनमें भी दिखा देगें यहाँ तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है क्या तुम्हारा परवरदिगार इसके लिए काफी नहीं कि वह हर चीज़ पर क़ाबू रखता है
शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ वाह्य क्षेत्रों में दिखाएँगे और स्वयं उनके अपने भीतर भी, यहाँ तक कि उनपर स्पष्टा हो जाएगा कि वह (क़ुरआन) सत्य है। क्या तुम्हारा रब इस दृष्टि, से काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ का साक्षी है
أَلَاۤ إِنَّهُمۡ فِی مِرۡیَةࣲ مِّن لِّقَاۤءِ رَبِّهِمۡۗ أَلَاۤ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَیۡءࣲ مُّحِیطُۢ ﴿54﴾
देखो ये लोग अपने परवरदिगार के रूबरू हाज़िर होने से शक़ में (पड़े) हैं सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है
जान लो कि वे लोग अपने रब से मिलन के बारे में संदेह में पड़े हुए है। जान लो कि निश्चय ही वह हर चीज़ को अपने घेरे में लिए हुए है