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Surah The wind-curved sandhills [Al-Ahqaf] in Hindi

Surah The wind-curved sandhills [Al-Ahqaf] Ayah 35 Location Maccah Number 46

حمۤ ﴿1﴾

हा मीम

تَنزِیلُ ٱلۡكِتَـٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِیزِ ٱلۡحَكِیمِ ﴿2﴾

ये किताब ग़ालिब (व) हकीम ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुई है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

इस किताब का अवतरण अल्लाह की ओर से है, जो प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी है

مَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَیۡنَهُمَاۤ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَأَجَلࣲ مُّسَمࣰّىۚ وَٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ عَمَّاۤ أُنذِرُوا۟ مُعۡرِضُونَ ﴿3﴾

हमने तो सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है हिकमत ही से एक ख़ास वक्त तक के लिए ही पैदा किया है और कुफ्फ़ार जिन चीज़ों से डराए जाते हैं उन से मुँह फेर लेते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उन दोनों के मध्य है उसे केवल हक़ के साथ और एक नियत अवधि तक के लिए पैदा किया है। किन्तु जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उस चीज़ को ध्यान में नहीं लाते जिससे उन्हें सावधान किया गया है

قُلۡ أَرَءَیۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَرُونِی مَاذَا خَلَقُوا۟ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ لَهُمۡ شِرۡكࣱ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِۖ ٱئۡتُونِی بِكِتَـٰبࣲ مِّن قَبۡلِ هَـٰذَاۤ أَوۡ أَثَـٰرَةࣲ مِّنۡ عِلۡمٍ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿4﴾

(ऐ रसूल) तुम पूछो कि ख़ुदा को छोड़ कर जिनकी तुम इबादत करते हो क्या तुमने उनको देखा है मुझे भी तो दिखाओ कि उन लोगों ने ज़मीन में क्या चीज़े पैदा की हैं या आसमानों (के बनाने) में उनकी शिरकत है तो अगर तुम सच्चे हो तो उससे पहले की कोई किताब (या अगलों के) इल्म का बक़िया हो तो मेरे सामने पेश करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"क्या तुमने उनको देखा भी, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो? मुझे दिखाओ उन्होंने धरती की चीज़ों में से क्या पैदा किया है या आकाशों में उनकी कोई साझेदारी है? मेरे पास इससे पहले की कोई किताब ले आओ या ज्ञान की कोई अवशेष बात ही, यदि तुम सच्चे हो।\"

وَمَنۡ أَضَلُّ مِمَّن یَدۡعُوا۟ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَن لَّا یَسۡتَجِیبُ لَهُۥۤ إِلَىٰ یَوۡمِ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَهُمۡ عَن دُعَاۤىِٕهِمۡ غَـٰفِلُونَ ﴿5﴾

और उस शख़्श से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ख़ुदा के सिवा ऐसे शख़्श को पुकारे जो उसे क़यामत तक जवाब ही न दे और उनको उनके पुकारने की ख़बरें तक न हों

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

आख़़िर उस व्यक्ति से बढ़कर पथभ्रष्ट और कौन होगा, जो अल्लाह से हटकर उन्हें पुकारता हो जो क़ियामत के दिन तक उसकी पुकार को स्वीकार नहीं कर सकते, बल्कि वे तो उनकी पुकार से भी बेख़बर है;

وَإِذَا حُشِرَ ٱلنَّاسُ كَانُوا۟ لَهُمۡ أَعۡدَاۤءࣰ وَكَانُوا۟ بِعِبَادَتِهِمۡ كَـٰفِرِینَ ﴿6﴾

और जब लोग (क़यामत) में जमा किये जाएगें तो वह (माबूद) उनके दुशमन हो जाएंगे और उनकी परसतिश से इन्कार करेंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जब लोग इकट्ठे किए जाएँगे तो वे उनके शत्रु होंगे औऱ उनकी बन्दगी का इनकार करेंगे

وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتُنَا بَیِّنَـٰتࣲ قَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لِلۡحَقِّ لَمَّا جَاۤءَهُمۡ هَـٰذَا سِحۡرࣱ مُّبِینٌ ﴿7﴾

और जब हमारी खुली खुली आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं तो जो लोग काफिर हैं हक़ के बारे में जब उनके पास आ चुका तो कहते हैं ये तो सरीही जादू है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जब हमारी स्पष्ट आयतें उन्हें पढ़कर सुनाई जाती है तो वे लोग जिन्होंने इनकार किया, सत्य के विषय में, जबकि वह उनके पास आ गया, कहते है कि \"यह तो खुला जादू है।\"

أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ إِنِ ٱفۡتَرَیۡتُهُۥ فَلَا تَمۡلِكُونَ لِی مِنَ ٱللَّهِ شَیۡـًٔاۖ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَا تُفِیضُونَ فِیهِۚ كَفَىٰ بِهِۦ شَهِیدَۢا بَیۡنِی وَبَیۡنَكُمۡۖ وَهُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِیمُ ﴿8﴾

क्या ये कहते हैं कि इसने इसको ख़ुद गढ़ लिया है तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं इसको (अपने जी से) गढ़ लेता तो तुम ख़ुदा के सामने मेरे कुछ भी काम न आओगे जो जो बातें तुम लोग उसके बारे में करते रहते हो वह ख़ूब जानता है मेरे और तुम्हारे दरमियान वही गवाही को काफ़ी है और वही बड़ा बख्शने वाला है मेहरबान है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

(क्या ईमान लाने से उन्हें कोई चीज़ रोक रही है) या वे कहते है, \"उसने इसे स्वयं ही घड़ लिया है?\" कहो, \"यदि मैंने इसे स्वयं घड़ा है तो अल्लाह के विरुद्ध मेरे लिए तुम कुछ भी अधिकार नहीं रखते। जिसके विषय में तुम बातें बनाने में लगे हो, वह उसे भली-भाँति जानता है। और वह मेरे और तुम्हारे बीच गवाह की हैसियत से काफ़ी है। और वही बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।\"

قُلۡ مَا كُنتُ بِدۡعࣰا مِّنَ ٱلرُّسُلِ وَمَاۤ أَدۡرِی مَا یُفۡعَلُ بِی وَلَا بِكُمۡۖ إِنۡ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا یُوحَىٰۤ إِلَیَّ وَمَاۤ أَنَا۠ إِلَّا نَذِیرࣱ مُّبِینࣱ ﴿9﴾

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल तो आया नहीं हूँ और मैं कुछ नहीं जानता कि आइन्दा मेरे साथ क्या किया जाएगा और न (ये कि) तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा मैं तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरे पास वही आयी है और मैं तो बस एलानिया डराने वाला हूँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, \"मैं कोई पहला रसूल तो नहीं हूँ। और मैं नहीं जानता कि मेरे साथ क्या किया जाएगा और न यह कि तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा। मैं तो बस उसी का अनुगामी हूँ, जिसकी प्रकाशना मेरी ओर की जाती है और मैं तो केवल एक स्पष्ट सावधान करनेवाला हूँ।\"

قُلۡ أَرَءَیۡتُمۡ إِن كَانَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ وَكَفَرۡتُم بِهِۦ وَشَهِدَ شَاهِدࣱ مِّنۢ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ عَلَىٰ مِثۡلِهِۦ فَـَٔامَنَ وَٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یَهۡدِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿10﴾

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर ये (क़ुरान) ख़ुदा की तरफ से हो और तुम उससे इन्कार कर बैठे हालॉकि (बनी इसराईल में से) एक गवाह उसके मिसल की गवाही भी दे चुका और ईमान भी ले आया और तुमने सरकशी की (तो तुम्हारे ज़ालिम होने में क्या शक़ है) बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मन्ज़िल मक़सूद तक नहीं पहुँचाता

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कहो, \"क्या तुमने सोचा भी (कि तुम्हारा क्या परिणाम होगा)? यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह के यहाँ से हुआ और तुमने उसका इनकार कर दिया, हालाँकि इसराईल की सन्तान में से एक गवाह ने उसके एक भाग की गवाही भी दी। सो वह ईमान ले आया और तुम घमंड में पड़े रहे। अल्लाह तो ज़ालिम लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।\"

وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لِلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَوۡ كَانَ خَیۡرࣰا مَّا سَبَقُونَاۤ إِلَیۡهِۚ وَإِذۡ لَمۡ یَهۡتَدُوا۟ بِهِۦ فَسَیَقُولُونَ هَـٰذَاۤ إِفۡكࣱ قَدِیمࣱ ﴿11﴾

और काफिर लोग मोमिनों के बारे में कहते हैं कि अगर ये (दीन) बेहतर होता तो ये लोग उसकी तरफ हमसे पहले न दौड़ पड़ते और जब क़ुरान के ज़रिए से उनकी हिदायत न हुई तो अब भी कहेंगे ये तो एक क़दीमी झूठ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों ने इनकार किया, वे ईमान लानेवालों के बारे में कहते है, \"यदि वह अच्छा होता तो वे उसकी ओर (बढ़ने में) हमसे अग्रसर न रहते।\" औऱ जब उन्होंने उससे मार्ग ग्रहण नहीं किया तो अब अवश्य कहेंगे, \"यह तो पुराना झूठ है!\"

وَمِن قَبۡلِهِۦ كِتَـٰبُ مُوسَىٰۤ إِمَامࣰا وَرَحۡمَةࣰۚ وَهَـٰذَا كِتَـٰبࣱ مُّصَدِّقࣱ لِّسَانًا عَرَبِیࣰّا لِّیُنذِرَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُحۡسِنِینَ ﴿12﴾

और इसके क़ब्ल मूसा की किताब पेशवा और (सरासर) रहमत थी और ये (क़ुरान) वह किताब है जो अरबी ज़बान में (उसकी) तसदीक़ करती है ताकि (इसके ज़रिए से) ज़ालिमों को डराए और नेकी कारों के लिए (अज़सरतापा) ख़ुशख़बरी है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हालाँकि इससे पहले मूसा की किताब पथप्रदर्शक और दयालुता रही है। और यह किताब, जो अरबी भाषा में है, उसकी पुष्टि में है, ताकि उन लोगों को सचेत कर दे जिन्होंने ज़ु्ल्म किया और शुभ सूचना हो उत्तमकारों के लिए

إِنَّ ٱلَّذِینَ قَالُوا۟ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَـٰمُوا۟ فَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿13﴾

बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा परवरदिगार ख़ुदा है फिर वह इस पर क़ायम रहे तो (क़यामत में) उनको न कुछ ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मग़ीन होंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही जिन लोगों ने कहा, \"हमारा रब अल्लाह है।\" फिर वे उसपर जमे रहे, तो उन्हें न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होगे

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِ خَـٰلِدِینَ فِیهَا جَزَاۤءَۢ بِمَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿14﴾

यही तो अहले जन्नत हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे (ये) उसका सिला है जो ये लोग (दुनिया में) किया करते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वही जन्नतवाले है, वहाँ वे सदैव रहेंगे उसके बदले में जो वे करते रहे है

وَوَصَّیۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ بِوَ ٰ⁠لِدَیۡهِ إِحۡسَـٰنًاۖ حَمَلَتۡهُ أُمُّهُۥ كُرۡهࣰا وَوَضَعَتۡهُ كُرۡهࣰاۖ وَحَمۡلُهُۥ وَفِصَـٰلُهُۥ ثَلَـٰثُونَ شَهۡرًاۚ حَتَّىٰۤ إِذَا بَلَغَ أَشُدَّهُۥ وَبَلَغَ أَرۡبَعِینَ سَنَةࣰ قَالَ رَبِّ أَوۡزِعۡنِیۤ أَنۡ أَشۡكُرَ نِعۡمَتَكَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتَ عَلَیَّ وَعَلَىٰ وَ ٰ⁠لِدَیَّ وَأَنۡ أَعۡمَلَ صَـٰلِحࣰا تَرۡضَىٰهُ وَأَصۡلِحۡ لِی فِی ذُرِّیَّتِیۤۖ إِنِّی تُبۡتُ إِلَیۡكَ وَإِنِّی مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿15﴾

और हमने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ भलाई करने का हुक्म दिया (क्यों कि) उसकी माँ ने रंज ही की हालत में उसको पेट में रखा और रंज ही से उसको जना और उसका पेट में रहना और उसको दूध बढ़ाई के तीस महीने हुए यहाँ तक कि जब अपनी पूरी जवानी को पहुँचता और चालीस बरस (के सिन) को पहुँचता है तो (ख़ुदा से) अर्ज़ करता है परवरदिगार तो मुझे तौफ़ीक़ अता फरमा कि तूने जो एहसानात मुझ पर और मेरे वालदैन पर किये हैं मैं उन एहसानों का शुक्रिया अदा करूँ और ये (भी तौफीक दे) कि मैं ऐसा नेक काम करूँ जिसे तू पसन्द करे और मेरे लिए मेरी औलाद में सुलाह व तक़वा पैदा करे तेरी तरफ रूजू करता हूँ और मैं यक़ीनन फरमाबरदारो में हूँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने मनुष्य को अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने की ताकीद की। उसकी माँ ने उसे (पेट में) तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे जना भी तकलीफ़ के साथ। और उसके गर्भ की अवस्था में रहने और दूध छुड़ाने की अवधि तीस माह है, यहाँ तक कि जब वह अपनी पूरी शक्ति को पहुँचा और चालीस वर्ष का हुआ तो उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! मुझे सम्भाल कि मैं तेरी उस अनुकम्पा के प्रति कृतज्ञता दिखाऊँ, जो तुने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि मैं ऐसा अच्छा कर्म करूँ जो तुझे प्रिय हो और मेरे लिए मेरी संतति में भलाई रख दे। मैं तेरे आगे तौबा करता हूँ औऱ मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ।\"

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ نَتَقَبَّلُ عَنۡهُمۡ أَحۡسَنَ مَا عَمِلُوا۟ وَنَتَجَاوَزُ عَن سَیِّـَٔاتِهِمۡ فِیۤ أَصۡحَـٰبِ ٱلۡجَنَّةِۖ وَعۡدَ ٱلصِّدۡقِ ٱلَّذِی كَانُوا۟ یُوعَدُونَ ﴿16﴾

यही वह लोग हैं जिनके नेक अमल हम क़ुबूल फरमाएँगे और बेहिश्त (के जाने) वालों में उनके गुनाहों से दरग़ुज़र करेंगे (ये वह) सच्चा वायदा है जो उन से किया जाता था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐसे ही लोग जिनसे हम अच्छे कर्म, जो उन्होंने किए होंगे, स्वीकार कर लेगें और उनकी बुराइयों को टाल जाएँगे। इस हाल में कि वे जन्नतवालों में होंगे, उस सच्चे वादे के अनुरूप जो उनसे किया जाता रहा है

وَٱلَّذِی قَالَ لِوَ ٰ⁠لِدَیۡهِ أُفࣲّ لَّكُمَاۤ أَتَعِدَانِنِیۤ أَنۡ أُخۡرَجَ وَقَدۡ خَلَتِ ٱلۡقُرُونُ مِن قَبۡلِی وَهُمَا یَسۡتَغِیثَانِ ٱللَّهَ وَیۡلَكَ ءَامِنۡ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقࣱّ فَیَقُولُ مَا هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿17﴾

और जिसने अपने माँ बाप से कहा कि तुम्हारा बुरा हो, क्या तुम मुझे धमकी देते हो कि मैं दोबारा (कब्र से) निकाला जाऊँगा हालॉकि बहुत से लोग मुझसे पहले गुज़र चुके (और कोई ज़िन्दा न हुआ) और दोनों फ़रियाद कर रहे थे कि तुझ पर वाए हो ईमान ले आ ख़ुदा का वायदा ज़रूर सच्चा है तो वह बोल उठा कि ये तो बस अगले लोगों के अफ़साने हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

किन्तु वह व्यक्ति जिसने अपने माँ-बाप से कहा, \"धिक है तुम पर! क्या तुम मुझे डराते हो कि मैं (क़ब्र से) निकाला जाऊँगा, हालाँकि मुझसे पहले कितनी ही नस्लें गुज़र चुकी है?\" और वे दोनों अल्लाह से फ़रियाद करते है - \"अफ़सोस है तुमपर! मान जा। निस्संदेह अल्लाह का वादा सच्चा है।\" किन्तु वह कहता है, \"ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ है।\"

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ حَقَّ عَلَیۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ فِیۤ أُمَمࣲ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ خَـٰسِرِینَ ﴿18﴾

ये वही लोग हैं कि जिन्नात और आदमियों की (दूसरी) उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी हैं उन ही के शुमूल में उन पर भी अज़ाब का वायदा मुस्तहक़ हो चुका है ये लोग बेशक घाटा उठाने वाले थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐसे ही लोग है जिनपर उन गिरोहों के साथ यातना की बात सत्यापित होकर रही जो जिन्नों और मनुष्यों में से उनसे पहले गुज़र चुके है। निश्चय ही वे घाटे में रहे

وَلِكُلࣲّ دَرَجَـٰتࣱ مِّمَّا عَمِلُوا۟ۖ وَلِیُوَفِّیَهُمۡ أَعۡمَـٰلَهُمۡ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿19﴾

और लोगों ने जैसे काम किये होंगे उसी के मुताबिक सबके दर्जे होंगे और ये इसलिए कि ख़ुदा उनके आमाल का उनको पूरा पूरा बदला दे और उन पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उनमें से प्रत्येक के दरजे उनके अपने किए हुए कर्मों के अनुसार होंगे (ताकि अल्लाह का वादा पूरा हो) और वह उन्हें उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला चुका दे और उनपर कदापि ज़ुल्म न होगा

وَیَوۡمَ یُعۡرَضُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ عَلَى ٱلنَّارِ أَذۡهَبۡتُمۡ طَیِّبَـٰتِكُمۡ فِی حَیَاتِكُمُ ٱلدُّنۡیَا وَٱسۡتَمۡتَعۡتُم بِهَا فَٱلۡیَوۡمَ تُجۡزَوۡنَ عَذَابَ ٱلۡهُونِ بِمَا كُنتُمۡ تَسۡتَكۡبِرُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّ وَبِمَا كُنتُمۡ تَفۡسُقُونَ ﴿20﴾

और जिस दिन कुफ्फार जहन्नुम के सामने लाएँ जाएँगे (तो उनसे कहा जाएगा कि) तुमने अपनी दुनिया की ज़िन्दगी में अपने मज़े उड़ा चुके और उसमें ख़ूब चैन कर चुके तो आज तुम पर ज़िल्लत का अज़ाब किया जाएगा इसलिए कि तुम अपनी ज़मीन में अकड़ा करते थे और इसलिए कि तुम बदकारियां करते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जिस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया, आग के सामने पेश किए जाएँगे। (कहा जाएगा), \"तुम अपने सांसारिक जीवन में अच्छी रुचिकर चीज़े नष्ट कर बैठे और उनका मज़ा ले चुके। अतः आज तुम्हे अपमानजनक यातना दी जाएगी, क्योंकि तुम धरती में बिना किसी हक़ के घमंड करते रहे और इसलिए कि तुम आज्ञा का उल्लंघन करते रहे।\"

۞ وَٱذۡكُرۡ أَخَا عَادٍ إِذۡ أَنذَرَ قَوۡمَهُۥ بِٱلۡأَحۡقَافِ وَقَدۡ خَلَتِ ٱلنُّذُرُ مِنۢ بَیۡنِ یَدَیۡهِ وَمِنۡ خَلۡفِهِۦۤ أَلَّا تَعۡبُدُوۤا۟ إِلَّا ٱللَّهَ إِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمٍ عَظِیمࣲ ﴿21﴾

और (ऐ रसूल) तुम आद को भाई (हूद) को याद करो जब उन्होंने अपनी क़ौम को (सरज़मीन) अहक़ाफ में डराया और उनके पहले और उनके बाद भी बहुत से डराने वाले पैग़म्बर गुज़र चुके थे (और हूद ने अपनी क़ौम से कहा) कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो क्योंकि तुम्हारे बारे में एक बड़े सख्त दिन के अज़ाब से डरता हूँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

आद के भाई को याद करो, जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों को अहक़ाफ़ में सावधान किया, और उसके आगे और पीछे भी सावधान करनेवाले गुज़र चुके थे - कि, \"अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।\"

قَالُوۤا۟ أَجِئۡتَنَا لِتَأۡفِكَنَا عَنۡ ءَالِهَتِنَا فَأۡتِنَا بِمَا تَعِدُنَاۤ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿22﴾

वह बोले क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमको हमारे माबूदों से फेर दो तो अगर तुम सच्चे हो तो जिस अज़ाब की तुम हमें धमकी देते हो ले आओ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्होंने कहा, \"क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि झूठ बोलकर हमको अपने उपास्यों से विमुख कर दे? अच्छा, तो हमपर ले आ, जिसकी तू हमें धमकी देता है, यदि तू सच्चा है।\"

قَالَ إِنَّمَا ٱلۡعِلۡمُ عِندَ ٱللَّهِ وَأُبَلِّغُكُم مَّاۤ أُرۡسِلۡتُ بِهِۦ وَلَـٰكِنِّیۤ أَرَىٰكُمۡ قَوۡمࣰا تَجۡهَلُونَ ﴿23﴾

हूद ने कहा (इसका) इल्म तो बस ख़ुदा के पास है और (मैं जो एहकाम देकर भेजा गया हूँ) वह तुम्हें पहुँचाए देता हूँ मगर मैं तुमको देखता हूँ कि तुम जाहिल लोग हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने कहा, \"ज्ञान तो अल्लाह ही के पास है (कि वह कब यातना लाएगा) । और मैं तो तुम्हें वह संदेश पहुँचा रहा हूँ जो मुझे देकर भेजा गया है। किन्तु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानता से काम ले रहे हो।\"

فَلَمَّا رَأَوۡهُ عَارِضࣰا مُّسۡتَقۡبِلَ أَوۡدِیَتِهِمۡ قَالُوا۟ هَـٰذَا عَارِضࣱ مُّمۡطِرُنَاۚ بَلۡ هُوَ مَا ٱسۡتَعۡجَلۡتُم بِهِۦۖ رِیحࣱ فِیهَا عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿24﴾

तो जब उन लोगों ने इस (अज़ाब) को देखा कि वबाल की तरह उनके मैदानों की तरफ उम्ड़ा आ रहा है तो कहने लगे ये तो बादल है जो हम पर बरस कर रहेगा (नहीं) बल्कि ये वह (अज़ाब) जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे (ये) वह ऑंधी है जिसमें दर्दनाक (अज़ाब) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर जब उन्होंने उसे बादल के रूप में देखा, जिसका रुख़ उनकी घाटियों की ओर था, तो वे कहने लगे, \"यह बादल है जो हमपर बरसनेवाला है!' \"नहीं, बल्कि यह तो वही चीज़ है जिसके लिए तुमने जल्दी मचा रखी थी। - यह वायु है जिसमें दुखद यातना है

تُدَمِّرُ كُلَّ شَیۡءِۭ بِأَمۡرِ رَبِّهَا فَأَصۡبَحُوا۟ لَا یُرَىٰۤ إِلَّا مَسَـٰكِنُهُمۡۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ نَجۡزِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡمُجۡرِمِینَ ﴿25﴾

जो अपने परवरदिगार के हुक्म से हर चीज़ को तबाह व बरबाद कर देगी तो वह ऐसे (तबाह) हुए कि उनके घरों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता था हम गुनाहगारों की यूँ ही सज़ा किया करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हर चीज़ को अपने रब के आदेश से विनष्ट- कर देगी।\" अन्ततः वे ऐसे हो गए कि उनके रहने की जगहों के सिवा कुछ नज़र न आता था। अपराधी लोगों को हम इसी तरह बदला देते है

وَلَقَدۡ مَكَّنَّـٰهُمۡ فِیمَاۤ إِن مَّكَّنَّـٰكُمۡ فِیهِ وَجَعَلۡنَا لَهُمۡ سَمۡعࣰا وَأَبۡصَـٰرࣰا وَأَفۡـِٔدَةࣰ فَمَاۤ أَغۡنَىٰ عَنۡهُمۡ سَمۡعُهُمۡ وَلَاۤ أَبۡصَـٰرُهُمۡ وَلَاۤ أَفۡـِٔدَتُهُم مِّن شَیۡءٍ إِذۡ كَانُوا۟ یَجۡحَدُونَ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿26﴾

और हमने उनको ऐसे कामों में मक़दूर दिये थे जिनमें तुम्हें (कुछ भी) मक़दूर नहीं दिया और उन्हें कान और ऑंख और दिल (सब कुछ दिए थे) तो चूँकि वह लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार करने लगे तो न उनके कान ही कुछ काम आए और न उनकी ऑंखें और न उनके दिल और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे उसने उनको हर तरफ से घेर लिया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने उन्हें उन चीज़ों में जमाव और सामर्थ्य प्रदान की थी, जिनमें तुम्हें जमाव और सामर्थ्य नहीं प्रदान की। औऱ हमने उन्हें कान, आँखें और दिल दिए थे। किन्तु न तो उनके कान उनके कुछ काम आए औऱ न उनकी आँखे और न उनके दिल ही। क्योंकि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे और जिस चीज़ की वे हँसी उड़ाते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा

وَلَقَدۡ أَهۡلَكۡنَا مَا حَوۡلَكُم مِّنَ ٱلۡقُرَىٰ وَصَرَّفۡنَا ٱلۡـَٔایَـٰتِ لَعَلَّهُمۡ یَرۡجِعُونَ ﴿27﴾

और (ऐ अहले मक्का) हमने तुम्हारे इर्द गिर्द की बस्तियों को हलाक कर मारा और (अपनी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ तरह तरह से दिखा दी ताकि ये लोग बाज़ आएँ (मगर कौन सुनता है)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हम तुम्हारे आस-पास की बस्तियों को विनष्ट कर चुके हैं, हालाँकि हमने तरह-तरह से आयते पेश की थीं, ताकि वे रुजू करें

فَلَوۡلَا نَصَرَهُمُ ٱلَّذِینَ ٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِ ٱللَّهِ قُرۡبَانًا ءَالِهَةَۢۖ بَلۡ ضَلُّوا۟ عَنۡهُمۡۚ وَذَ ٰ⁠لِكَ إِفۡكُهُمۡ وَمَا كَانُوا۟ یَفۡتَرُونَ ﴿28﴾

तो ख़ुदा के सिवा जिन को उन लोगों ने तक़र्रुब (ख़ुदा) के लिए माबूद बना रखा था उन्होंने (अज़ाब के वक्त) उनकी क्यों न मदद की बल्कि वह तो उनसे ग़ायब हो गये और उनके झूठ और उनकी (इफ़तेरा) परदाज़ियों की ये हक़ीक़त थी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर क्यों न उन बस्तियों ने उसकी सहायता की जिनको उन्होंने अपने और अल्लाह का बीच माध्यम ठहराकर सामीप्य प्राप्त करने के लिए उपास्य बना लिया था? बल्कि वे उनसे गुम हो गए, और यह था उनका मिथ्यारोपण और वह कुछ जो वे घड़ते थे

وَإِذۡ صَرَفۡنَاۤ إِلَیۡكَ نَفَرࣰا مِّنَ ٱلۡجِنِّ یَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقُرۡءَانَ فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوۤا۟ أَنصِتُوا۟ۖ فَلَمَّا قُضِیَ وَلَّوۡا۟ إِلَىٰ قَوۡمِهِم مُّنذِرِینَ ﴿29﴾

और जब हमने जिनों में से कई शख़्शों को तुम्हारी तरफ मुतावज्जे किया कि वह दिल लगाकर क़ुरान सुनें तो जब उनके पास हाज़िर हुए तो एक दुसरे से कहने लगे ख़ामोश बैठे (सुनते) रहो फिर जब (पढ़ना) तमाम हुआ तो अपनी क़ौम की तरफ़ वापस गए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो (ऐ नबी) जब हमने कुछ जिन्नों को तुम्हारी ओर फेर दिया जो क़ुरआन सुनने लगे थे, तो जब वे वहाँ पहुँचे तो कहने लगे, \"चुप हो जाओ!\" फिर जब वह (क़ुरआन का पाठ) पूरा हुआ तो वे अपनी क़ौम की ओर सावधान करनेवाले होकर लौटे

قَالُوا۟ یَـٰقَوۡمَنَاۤ إِنَّا سَمِعۡنَا كِتَـٰبًا أُنزِلَ مِنۢ بَعۡدِ مُوسَىٰ مُصَدِّقࣰا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡهِ یَهۡدِیۤ إِلَى ٱلۡحَقِّ وَإِلَىٰ طَرِیقࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿30﴾

कि (उनको अज़ाब से) डराएं तो उन से कहना शुरू किया कि ऐ भाइयों हम एक किताब सुन आए हैं जो मूसा के बाद नाज़िल हुई है (और) जो किताबें, पहले (नाज़िल हुयीं) हैं उनकी तसदीक़ करती हैं सच्चे (दीन) और सीधी राह की हिदायत करती हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्होंने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! हमने एक किताब सुनी है, जो मूसा के पश्चात अवतरित की गई है। उसकी पुष्टि में हैं जो उससे पहले से मौजूद है, सत्य की ओर और सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन करती है

یَـٰقَوۡمَنَاۤ أَجِیبُوا۟ دَاعِیَ ٱللَّهِ وَءَامِنُوا۟ بِهِۦ یَغۡفِرۡ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمۡ وَیُجِرۡكُم مِّنۡ عَذَابٍ أَلِیمࣲ ﴿31﴾

ऐ हमारी क़ौम ख़ुदा की तरफ बुलाने वाले की बात मानों और ख़ुदा पर ईमान लाओ वह तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और (क़यामत) में तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से पनाह में रखेगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ हमारी क़ौम के लोगो! अल्लाह के आमंत्रणकर्त्ता का आमंत्रण स्वीकार करो और उसपर ईमान लाओ। अल्लाह तुम्हें क्षमा करके गुनाहों से तुम्हें पाक कर देगा और दुखद यातना से तुम्हें बचाएगा

وَمَن لَّا یُجِبۡ دَاعِیَ ٱللَّهِ فَلَیۡسَ بِمُعۡجِزࣲ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَیۡسَ لَهُۥ مِن دُونِهِۦۤ أَوۡلِیَاۤءُۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ فِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینٍ ﴿32﴾

और जिसने ख़ुदा की तरफ बुलाने वाले की बात न मानी तो (याद रहे कि) वह (ख़ुदा को रूए) ज़मीन में आजिज़ नहीं कर सकता और न उस के सिवा कोई सरपरस्त होगा यही लोग गुमराही में हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और जो कोई अल्लाह के आमंत्रणकर्त्ता का आमंत्रण स्वीकार नहीं करेगा तो वह धरती में क़ाबू से बच निकलनेवाला नहीं है और न अल्लाह से हटकर उसके संरक्षक होंगे। ऐसे ही लोग खुली गुमराही में हैं।\"

أَوَلَمۡ یَرَوۡا۟ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ وَلَمۡ یَعۡیَ بِخَلۡقِهِنَّ بِقَـٰدِرٍ عَلَىٰۤ أَن یُحۡـِۧیَ ٱلۡمَوۡتَىٰۚ بَلَىٰۤۚ إِنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿33﴾

क्या इन लोगों ने ये ग़ौर नहीं किया कि जिस ख़ुदा ने सारे आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उनके पैदा करने से ज़रा भी थका नहीं वह इस बात पर क़ादिर है कि मुर्दो को ज़िन्दा करेगा हाँ (ज़रूर) वह हर चीज़ पर क़ादिर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या उन्होंने देखा नहीं कि जिस अल्लाह ने आकाशों और धरती को पैदा किया और उनके पैदा करने से थका नहीं; क्या ऐसा नहीं कि वह मुर्दों को जीवित कर दे? क्यों नहीं, निश्चय ही उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

وَیَوۡمَ یُعۡرَضُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ عَلَى ٱلنَّارِ أَلَیۡسَ هَـٰذَا بِٱلۡحَقِّۖ قَالُوا۟ بَلَىٰ وَرَبِّنَاۚ قَالَ فَذُوقُوا۟ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ ﴿34﴾

जिस दिन कुफ्फ़ार (जहन्नुम की) आग के सामने पेश किए जाएँगे (तो उन से पूछा जाएगा) क्या अब भी ये बरहक़ नहीं है वह लोग कहेंगे अपने परवरदिगार की क़सम हाँ (हक़ है) ख़ुदा फ़रमाएगा तो लो अब अपने इन्कार व कुफ्र के बदले अज़ाब के मज़े चखो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और याद करो जिस दिन वे लोग, जिन्होंने इनकार किया, आग के सामने पेश किए जाएँगे, (कहा जाएगा) \"क्या यह सत्य नहीं है?\" वे कहेंगे, \"नहीं, हमारे रब की क़सम!\" वह कहेगा, \"तो अब यातना का मज़ा चखो, उउस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे थे।\"

فَٱصۡبِرۡ كَمَا صَبَرَ أُو۟لُوا۟ ٱلۡعَزۡمِ مِنَ ٱلرُّسُلِ وَلَا تَسۡتَعۡجِل لَّهُمۡۚ كَأَنَّهُمۡ یَوۡمَ یَرَوۡنَ مَا یُوعَدُونَ لَمۡ یَلۡبَثُوۤا۟ إِلَّا سَاعَةࣰ مِّن نَّهَارِۭۚ بَلَـٰغࣱۚ فَهَلۡ یُهۡلَكُ إِلَّا ٱلۡقَوۡمُ ٱلۡفَـٰسِقُونَ ﴿35﴾

तो (ऐ रसूल) पैग़म्बरों में से जिस तरह अव्वलुल अज्म (आली हिम्मत), सब्र करते रहे तुम भी सब्र करो और उनके लिए (अज़ाब) की ताज़ील की ख्वाहिश न करो जिस दिन यह लोग उस कयामत को देखेंगे जिसको उनसे वायदा किया जाता है तो (उनको मालूम होगा कि) गोया ये लोग (दुनिया में) बहुत रहे होगें तो सारे दिन में से एक घड़ी भर तो बस वही लोग हलाक होंगे जो बदकार थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अतः धैर्य से काम लो, जिस प्रकार संकल्पवान रसूलों ने धैर्य से काम लिया। और उनके लिए जल्दी न करो। जिस दिन वे लोग उस चीज़ को देख लेंगे जिसका उनसे वादा किया जाता है, तो वे महसूस करेंगे कि जैसे वे बस दिन की एक घड़ी भर ही ठहरे थे। यह (संदेश) साफ़-साफ़ पहुँचा देना है। अब क्या अवज्ञाकारी लोगों के अतिरिक्त कोई और विनष्ट होगा?