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Surah Muhammad [Muhammad] in Hindi

Surah Muhammad [Muhammad] Ayah 38 Location Madanah Number 47

ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوا۟ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ أَضَلَّ أَعۡمَـٰلَهُمۡ ﴿1﴾

जिन लोगों ने कुफ़्र एख्तेयार किया और (लोगों को) ख़ुदा के रास्ते से रोका ख़ुदा ने उनके आमाल अकारत कर दिए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका उनके कर्म उसने अकारथ कर दिए

وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَءَامَنُوا۟ بِمَا نُزِّلَ عَلَىٰ مُحَمَّدࣲ وَهُوَ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡ كَفَّرَ عَنۡهُمۡ سَیِّـَٔاتِهِمۡ وَأَصۡلَحَ بَالَهُمۡ ﴿2﴾

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए और जो (किताब) मोहम्मद पर उनके परवरदिगार की तरफ से नाज़िल हुई है और वह बरहक़ है उस पर ईमान लाए तो ख़ुदा ने उनके गुनाह उनसे दूर कर दिए और उनकी हालत संवार दी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और उस चीज़ पर ईमान लाए जो मुहम्मद पर अवतरित किया गया - और वही सत्य है उनके रब की ओर से - उसने उसकी बुराइयाँ उनसे दूर कर दीं और उनका हाल ठीक कर दिया

ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ ٱتَّبَعُوا۟ ٱلۡبَـٰطِلَ وَأَنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّبَعُوا۟ ٱلۡحَقَّ مِن رَّبِّهِمۡۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ یَضۡرِبُ ٱللَّهُ لِلنَّاسِ أَمۡثَـٰلَهُمۡ ﴿3﴾

ये इस वजह से कि काफिरों ने झूठी बात की पैरवी की और ईमान वालों ने अपने परवरदिगार का सच्चा दीन एख्तेयार किया यूँ ख़ुदा लोगों के समझाने के लिए मिसालें बयान करता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह इसलिए कि जिन लोगों ने इनकार किया उन्होंने असत्य का अनुसरण किया और यह कि जो लोग ईमान लाए उन्होंने सत्य का अनुसरण किया, जो उनके रब की ओर से है। इस प्रकार अल्लाह लोगों के लिए उनकी मिसालें बयान करता है

فَإِذَا لَقِیتُمُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ فَضَرۡبَ ٱلرِّقَابِ حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَثۡخَنتُمُوهُمۡ فَشُدُّوا۟ ٱلۡوَثَاقَ فَإِمَّا مَنَّۢا بَعۡدُ وَإِمَّا فِدَاۤءً حَتَّىٰ تَضَعَ ٱلۡحَرۡبُ أَوۡزَارَهَاۚ ذَ ٰ⁠لِكَۖ وَلَوۡ یَشَاۤءُ ٱللَّهُ لَٱنتَصَرَ مِنۡهُمۡ وَلَـٰكِن لِّیَبۡلُوَا۟ بَعۡضَكُم بِبَعۡضࣲۗ وَٱلَّذِینَ قُتِلُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ فَلَن یُضِلَّ أَعۡمَـٰلَهُمۡ ﴿4﴾

तो जब तुम काफिरों से भिड़ो तो (उनकी) गर्दनें मारो यहाँ तक कि जब तुम उन्हें ज़ख्मों से चूर कर डालो तो उनकी मुश्कें कस लो फिर उसके बाद या तो एहसान रख (कर छोड़ दे) या मुआवेज़ा लेकर, यहाँ तक कि (दुशमन) लड़ाई के हथियार रख दे तो (याद रखो) अगर ख़ुदा चाहता तो (और तरह) उनसे बदला लेता मगर उसने चाहा कि तुम्हारी आज़माइश एक दूसरे से (लड़वा कर) करे और जो लोग ख़ुदा की राह में यहीद किये गए उनकी कारगुज़ारियों को ख़ुदा हरगिज़ अकारत न करेगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अतः जब इनकार करनेवालो से तुम्हारी मुठभेड़ हो तो (उनकी) गरदनें मारना है, यहाँ तक कि जब उन्हें अच्छी तरह कुचल दो तो बन्धनों में जकड़ो, फिर बाद में या तो एहसान करो या फ़िदया (अर्थ-दंड) का मामला करो, यहाँ तक कि युद्ध अपने बोझ उतारकर रख दे। यह भली-भाँति समझ लो, यदि अल्लाह चाहे तो स्वयं उनसे निपट ले। किन्तु (उसने या आदेश इसलिए दिया) ताकि तुम्हारी एक-दूसरे की परीक्षा ले। और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते है उनके कर्म वह कदापि अकारथ न करेगा

سَیَهۡدِیهِمۡ وَیُصۡلِحُ بَالَهُمۡ ﴿5﴾

उन्हें अनक़रीब मंज़िले मक़सूद तक पहुँचाएगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वह उनका मार्गदर्शन करेगा और उनका हाल ठीक कर देगा

وَیُدۡخِلُهُمُ ٱلۡجَنَّةَ عَرَّفَهَا لَهُمۡ ﴿6﴾

और उनकी हालत सवार देगा और उनको उस बेहिश्त में दाख़िल करेगा जिसका उन्हें (पहले से) येनासा कर रखा है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और उन्हें जन्नत में दाख़िल करेगा, जिससे वह उन्हें परिचित करा चुका है

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِن تَنصُرُوا۟ ٱللَّهَ یَنصُرۡكُمۡ وَیُثَبِّتۡ أَقۡدَامَكُمۡ ﴿7﴾

ऐ ईमानदारों अगर तुम ख़ुदा (के दीन) की मदद करोगे तो वह भी तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें साबित क़दम रखेगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ लोगों, जो ईमान लाए हो, यदि तुम अल्लाह की सहायता करोगे तो वह तुम्हारी सहायता करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा

وَٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ فَتَعۡسࣰا لَّهُمۡ وَأَضَلَّ أَعۡمَـٰلَهُمۡ ﴿8﴾

और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिए तो डगमगाहट है और ख़ुदा (उनके) आमाल बरबाद कर देगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, तो उनके लिए तबाही है। और उनके कर्मों को अल्लाह ने अकारथ कर दिया

ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمۡ كَرِهُوا۟ مَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ فَأَحۡبَطَ أَعۡمَـٰلَهُمۡ ﴿9﴾

ये इसलिए कि ख़ुदा ने जो चीज़ नाज़िल फ़रमायी उसे उन्होने (नापसन्द किया) तो ख़ुदा ने उनकी कारस्तानियों को अकारत कर दिया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह इसलिए कि उन्होंने उस चीज़ को नापसन्द किया जिसे अल्लाह ने अवतरित किया, तो उसने उनके कर्म अकारथ कर दिए

۞ أَفَلَمۡ یَسِیرُوا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَیَنظُرُوا۟ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۖ دَمَّرَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِمۡۖ وَلِلۡكَـٰفِرِینَ أَمۡثَـٰلُهَا ﴿10﴾

तो क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं तो देखते जो लोग उनसे पहले थे उनका अन्जाम क्या (ख़राब) हुआ कि ख़ुदा ने उन पर तबाही डाल दी और इसी तरह (उन) काफिरों को भी (सज़ा मिलेगी)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ जो उनसे पहले गुज़र चुके है? अल्लाह ने उन्हें तहस-नहस कर दिया और इनकार करनेवालों के लिए ऐसे ही मामले होने है

ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ مَوۡلَى ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَأَنَّ ٱلۡكَـٰفِرِینَ لَا مَوۡلَىٰ لَهُمۡ ﴿11﴾

ये इस वजह से कि ईमानदारों का ख़ुदा सरपरस्त है और काफिरों का हरगिज़ कोई सरपरस्त नहीं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह इसलिए कि जो लोग ईमान लाए उनका संरक्षक अल्लाह है और यह कि इनकार करनेवालों को कोई संरक्षक नहीं

إِنَّ ٱللَّهَ یُدۡخِلُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُۖ وَٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ یَتَمَتَّعُونَ وَیَأۡكُلُونَ كَمَا تَأۡكُلُ ٱلۡأَنۡعَـٰمُ وَٱلنَّارُ مَثۡوࣰى لَّهُمۡ ﴿12﴾

ख़ुदा उन लोगों को जो ईमान लाए और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे ज़रूर बेहिश्त के उन बाग़ों में जा पहुँचाएगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं और जो काफ़िर हैं वह (दुनिया में) चैन करते हैं और इस तरह (बेफिक्री से खाते (पीते) हैं जैसे चारपाए खाते पीते हैं और आख़िर) उनका ठिकाना जहन्नुम है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही अल्लाह उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए ऐसे बागों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, वे कुछ दिनों का सुख भोग रहे है और खा रहे है, जिसे चौपाए खाते है। और आग उनका ठिकाना है

وَكَأَیِّن مِّن قَرۡیَةٍ هِیَ أَشَدُّ قُوَّةࣰ مِّن قَرۡیَتِكَ ٱلَّتِیۤ أَخۡرَجَتۡكَ أَهۡلَكۡنَـٰهُمۡ فَلَا نَاصِرَ لَهُمۡ ﴿13﴾

और जिस बस्ती से तुम लोगों ने निकाल दिया उससे ज़ोर में कहीं बढ़ चढ़ के बहुत सी बस्तियाँ थीं जिनको हमने तबाह बर्बाद कर दिया तो उनका कोई मददगार भी न हुआ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कितनी ही बस्तियाँ थी जो शक्ति में तुम्हारी उस बस्ती से, जिसने तुम्हें निकाल दिया, बढ़-चढ़कर थीं। हमने उन्हे विनष्टम कर दिया! फिर कोई उनका सहायक न हुआ

أَفَمَن كَانَ عَلَىٰ بَیِّنَةࣲ مِّن رَّبِّهِۦ كَمَن زُیِّنَ لَهُۥ سُوۤءُ عَمَلِهِۦ وَٱتَّبَعُوۤا۟ أَهۡوَاۤءَهُم ﴿14﴾

क्या जो शख़्श अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हो उस शख़्श के बराबर हो सकता है जिसकी बदकारियाँ उसे भली कर दिखायीं गयीं हों वह अपनी नफ़सियानी ख्वाहिशों पर चलते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तो क्या जो व्यक्ति अपने रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण पर हो वह उन लोगों जैसा हो सकता है, जिन्हें उनका बुरा कर्म ही सुहाना लगता हो और वे अपनी इच्छाओं के पीछे ही चलने लग गए हो?

مَّثَلُ ٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِی وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۖ فِیهَاۤ أَنۡهَـٰرࣱ مِّن مَّاۤءٍ غَیۡرِ ءَاسِنࣲ وَأَنۡهَـٰرࣱ مِّن لَّبَنࣲ لَّمۡ یَتَغَیَّرۡ طَعۡمُهُۥ وَأَنۡهَـٰرࣱ مِّنۡ خَمۡرࣲ لَّذَّةࣲ لِّلشَّـٰرِبِینَ وَأَنۡهَـٰرࣱ مِّنۡ عَسَلࣲ مُّصَفࣰّىۖ وَلَهُمۡ فِیهَا مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِ وَمَغۡفِرَةࣱ مِّن رَّبِّهِمۡۖ كَمَنۡ هُوَ خَـٰلِدࣱ فِی ٱلنَّارِ وَسُقُوا۟ مَاۤءً حَمِیمࣰا فَقَطَّعَ أَمۡعَاۤءَهُمۡ ﴿15﴾

जिस बेहिश्त का परहेज़गारों से वायदा किया जाता है उसकी सिफत ये है कि उसमें पानी की नहरें जिनमें ज़रा बू नहीं और दूध की नहरें हैं जिनका मज़ा तक नहीं बदला और शराब की नहरें हैं जो पीने वालों के लिए (सरासर) लज्ज़त है और साफ़ शफ्फ़ाफ़ यहद की नहरें हैं और वहाँ उनके लिए हर किस्म के मेवे हैं और उनके परवरदिगार की तरफ से बख़्शिस है (भला ये लोग) उनके बराबर हो सकते हैं जो हमेशा दोज़ख़ में रहेंगे और उनको खौलता हुआ पानी पिलाया जाएगा तो वह ऑंतों के टुकड़े टुकड़े कर डालेगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उस जन्नत की शान, जिसका वादा डर रखनेवालों से किया गया है, यह है कि ऐसे पानी की नहरें होगी जो प्रदूषित नहीं होता। और ऐसे दूध की नहरें होंगी जिसके स्वाद में तनिक भी अन्तर न आया होगा, और ऐसे पेय की नहरें होंगी जो पीनेवालों के लिए मज़ा ही मज़ा होंगी, और साफ़-सुधरे शहद की नहरें भी होंगी। और उनके लिए वहाँ हर प्रकार के फल होंगे और क्षमा उनके अपने रब की ओर से - क्या वे उन जैसे हो सकते है, जो सदैव आग में रहनेवाले है और जिन्हें खौलता हुआ पानी पिलाया जाएगा, जो उनकी आँतों को टुकड़े-टुकड़े करके रख देगा?

وَمِنۡهُم مَّن یَسۡتَمِعُ إِلَیۡكَ حَتَّىٰۤ إِذَا خَرَجُوا۟ مِنۡ عِندِكَ قَالُوا۟ لِلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡعِلۡمَ مَاذَا قَالَ ءَانِفًاۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَٱتَّبَعُوۤا۟ أَهۡوَاۤءَهُمۡ ﴿16﴾

और (ऐ रसूल) उनमें से बाज़ ऐसे भी हैं जो तुम्हारी तरफ कान लगाए रहते हैं यहाँ तक कि सब सुना कर जब तुम्हारे पास से निकलते हैं तो जिन लोगों को इल्म (कुरान) दिया गया है उनसे कहते हैं (क्यों भई) अभी उस शख़्श ने क्या कहा था ये वही लोग हैं जिनके दिलों पर ख़ुदा ने (कुफ़्र की) अलामत मुक़र्रर कर दी है और ये अपनी नफसियानी ख्वाहिशों पर चल रहे हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और उनमें कुछ लोग ऐसे है जो तुम्हारी ओर कान लगाते है, यहाँ तक कि जब वे तुम्हारे पास से निकलते है तो उन लोगों से, जिन्हें ज्ञान प्रदान हुआ है कहते है, \"उन्होंने अभी-अभी क्या कहा?\" वही वे लोग है जिनके दिलों पर अल्लाह ने ठप्पा लगा दिया है और वे अपनी इच्छाओं के पीछे चले है

وَٱلَّذِینَ ٱهۡتَدَوۡا۟ زَادَهُمۡ هُدࣰى وَءَاتَىٰهُمۡ تَقۡوَىٰهُمۡ ﴿17﴾

और जो लोग हिदायत याफ़ता हैं उनको ख़ुदा (क़ुरान के ज़रिए से) मज़ीद हिदायत करता है और उनको परहेज़गारी अता फरमाता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

रहे वे लोग जिन्होंने सीधा रास्ता अपनाया, (अल्लाह ने) उनके मार्गदर्शन में अभिवृद्धि कर दी और उन्हें उनकी परहेज़गारी प्रदान की

فَهَلۡ یَنظُرُونَ إِلَّا ٱلسَّاعَةَ أَن تَأۡتِیَهُم بَغۡتَةࣰۖ فَقَدۡ جَاۤءَ أَشۡرَاطُهَاۚ فَأَنَّىٰ لَهُمۡ إِذَا جَاۤءَتۡهُمۡ ذِكۡرَىٰهُمۡ ﴿18﴾

तो क्या ये लोग बस क़यामत ही के मुनतज़िर हैं कि उन पर एक बारगी आ जाए तो उसकी निशानियाँ आ चुकी हैं तो जिस वक्त क़यामत उन (के सर) पर आ पहुँचेगी फिर उन्हें नसीहत कहाँ मुफीद हो सकती है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अब क्या वे लोग बस उस घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे है कि वह उनपर अचानक आ जाए? उसके लक्षण तो सामने आ चुके है, जब वह स्वयं भी उनपर आ जाएगी तो फिर उनके लिए होश में आने का अवसर कहाँ शेष रहेगा?

فَٱعۡلَمۡ أَنَّهُۥ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا ٱللَّهُ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لِذَنۢبِكَ وَلِلۡمُؤۡمِنِینَ وَٱلۡمُؤۡمِنَـٰتِۗ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ مُتَقَلَّبَكُمۡ وَمَثۡوَىٰكُمۡ ﴿19﴾

तो फिर समझ लो कि ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं और (हम से) अपने और ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों के गुनाहों की माफ़ी मांगते रहो और ख़ुदा तुम्हारे चलने फिरने और ठहरने से (ख़ूब) वाक़िफ़ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अतः जान रखों कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। और अपने गुनाहों के लिए क्षमा-याचना करो और मोमिन पुरुषों और मोमिन स्त्रियों के लिए भी। अल्लाह तुम्हारी चलत-फिरत को भी जानता है और तुम्हारे ठिकाने को भी

وَیَقُولُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَوۡلَا نُزِّلَتۡ سُورَةࣱۖ فَإِذَاۤ أُنزِلَتۡ سُورَةࣱ مُّحۡكَمَةࣱ وَذُكِرَ فِیهَا ٱلۡقِتَالُ رَأَیۡتَ ٱلَّذِینَ فِی قُلُوبِهِم مَّرَضࣱ یَنظُرُونَ إِلَیۡكَ نَظَرَ ٱلۡمَغۡشِیِّ عَلَیۡهِ مِنَ ٱلۡمَوۡتِۖ فَأَوۡلَىٰ لَهُمۡ ﴿20﴾

और मोमिनीन कहते हैं कि (जेहाद के बारे में) कोई सूरा क्यों नहीं नाज़िल होता लेकिन जब कोई साफ़ सरीही मायनों का सूरा नाज़िल हुआ और उसमें जेहाद का बयान हो तो जिन लोगों के दिल में (नेफ़ाक़) का मर्ज़ है तुम उनको देखोगे कि तुम्हारी तरफ़ इस तरह देखते हैं जैसे किसी पर मौत की बेहोशी (छायी) हो (कि उसकी ऑंखें पथरा जाएं) तो उन पर वाए हो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो लोग ईमान लाए वे कहते है, \"कोई सूरा क्यों नहीं उतरी?\" किन्तु जब एक पक्की सूरा अवतरित की जाती है, जिसमें युद्ध का उल्लेख होता है, तो तुम उन लोगों को देखते हो जिनके दिलों में रोग है कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार देखते है जैसे किसी पर मृत्यु की बेहोशी छा गई हो। तो अफ़सोस है उनके हाल पर!

طَاعَةࣱ وَقَوۡلࣱ مَّعۡرُوفࣱۚ فَإِذَا عَزَمَ ٱلۡأَمۡرُ فَلَوۡ صَدَقُوا۟ ٱللَّهَ لَكَانَ خَیۡرࣰا لَّهُمۡ ﴿21﴾

(उनके लिए अच्छा काम तो) फरमाबरदारी और पसन्दीदा बात है फिर जब लड़ाई ठन जाए तो अगर ये लोग ख़ुदा से सच्चे रहें तो उनके हक़ में बहुत बेहतर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उनके लिए उचित है आज्ञापालन और अच्छी-भली बात। फिर जब (युद्ध की) बात पक्की हो जाए (तो युद्ध करना चाहिए) तो यदि वे अल्लाह के लिए सच्चे साबित होते तो उनके लिए ही अच्छा होता

فَهَلۡ عَسَیۡتُمۡ إِن تَوَلَّیۡتُمۡ أَن تُفۡسِدُوا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَتُقَطِّعُوۤا۟ أَرۡحَامَكُمۡ ﴿22﴾

(मुनाफ़िक़ों) क्या तुमसे कुछ दूर है कि अगर तुम हाक़िम बनो तो रूए ज़मीन में फसाद फैलाने और अपने रिश्ते नातों को तोड़ने लगो ये वही लोग हैं जिन पर ख़ुदा ने लानत की है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि तुम उल्टे फिर गए तो क्या तुम इससे निकट हो कि धरती में बिगाड़ पैदा करो और अपने नातों-रिश्तों को काट डालो?

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُ فَأَصَمَّهُمۡ وَأَعۡمَىٰۤ أَبۡصَـٰرَهُمۡ ﴿23﴾

और (गोया ख़ुद उसने) उन (के कानों) को बहरा और ऑंखों को अंधा कर दिया है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ये वे लोग है जिनपर अल्लाह ने लानत की और उन्हें बहरा और उनकी आँखों को अन्धा कर दिया

أَفَلَا یَتَدَبَّرُونَ ٱلۡقُرۡءَانَ أَمۡ عَلَىٰ قُلُوبٍ أَقۡفَالُهَاۤ ﴿24﴾

तो क्या लोग क़ुरान में (ज़रा भी) ग़ौर नहीं करते या (उनके) दिलों पर ताले लगे हुए हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तो क्या वे क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करते या उनके दिलों पर ताले लगे हैं?

إِنَّ ٱلَّذِینَ ٱرۡتَدُّوا۟ عَلَىٰۤ أَدۡبَـٰرِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُمُ ٱلۡهُدَى ٱلشَّیۡطَـٰنُ سَوَّلَ لَهُمۡ وَأَمۡلَىٰ لَهُمۡ ﴿25﴾

बेशक जो लोग राहे हिदायत साफ़ साफ़ मालूम होने के बाद उलटे पाँव (कुफ़्र की तरफ) फिर गये शैतान ने उन्हें (बुते देकर) ढील दे रखी है और उनकी (तमन्नाओं) की रस्सियाँ दराज़ कर दी हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे लोग जो पीठ-फेरकर पलट गए, इसके पश्चात कि उनपर मार्ग स्पष्ट॥ हो चुका था, उन्हें शैतान ने बहका दिया और उसने उन्हें ढील दे दी

ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُوا۟ لِلَّذِینَ كَرِهُوا۟ مَا نَزَّلَ ٱللَّهُ سَنُطِیعُكُمۡ فِی بَعۡضِ ٱلۡأَمۡرِۖ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ إِسۡرَارَهُمۡ ﴿26﴾

यह इसलिए जो लोग ख़ुदा की नाज़िल की हुई(किताब) से बेज़ार हैं ये उनसे कहते हैं कि बाज़ कामों में हम तुम्हारी ही बात मानेंगे और ख़ुदा उनके पोशीदा मशवरों से वाक़िफ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह इसलिए कि उन्होंने उन लोगों से, जिन्होंने उस चीज़ को नापसन्द किया जो कुछ अल्लाह ने उतारा है, कहा कि \"हम कुछ मामलों में तुम्हारी बात मान लेंगे।\" अल्लाह उनकी गुप्त बातों को भली-भाँति जानता है

فَكَیۡفَ إِذَا تَوَفَّتۡهُمُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ یَضۡرِبُونَ وُجُوهَهُمۡ وَأَدۡبَـٰرَهُمۡ ﴿27﴾

तो जब फ़रिश्तें उनकी जान निकालेंगे उस वक्त उनका क्या हाल होगा कि उनके चेहरों पर और उनकी पुश्त पर मारते जाएँगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर उस समय क्या हाल होगा जब फ़रिश्तें उनके चहरों और उनकी पीठों पर मारते हुए उनकी रूह क़ब्ज़ करेंगे?

ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمُ ٱتَّبَعُوا۟ مَاۤ أَسۡخَطَ ٱللَّهَ وَكَرِهُوا۟ رِضۡوَ ٰ⁠نَهُۥ فَأَحۡبَطَ أَعۡمَـٰلَهُمۡ ﴿28﴾

ये इस सबब से कि जिस चीज़ों से ख़ुदा नाख़ुश है उसकी तो ये लोग पैरवी करते हैं और जिसमें ख़ुदा की ख़ुशी है उससे बेज़ार हैं तो ख़ुदा ने भी उनकी कारस्तानियों को अकारत कर दिया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यह इसलिए कि उन्होंने उस चीज़ का अनुसरण किया जो अल्लाह को अप्रसन्न करनेवाली थी और उन्होंने उसकी ख़ुशी को नापसन्द किया तो उसने उनके कर्मों को अकारथ कर दिया

أَمۡ حَسِبَ ٱلَّذِینَ فِی قُلُوبِهِم مَّرَضٌ أَن لَّن یُخۡرِجَ ٱللَّهُ أَضۡغَـٰنَهُمۡ ﴿29﴾

क्या वह लोग जिनके दिलों में (नेफ़ाक़ का) मर्ज़ है ये ख्याल करते हैं कि ख़ुदा दिल के कीनों को भी न ज़ाहिर करेगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

(क्या अल्लाह से कोई चीज़ छिपी है) या जिन लोगों के दिलों में रोग है वे समझ बैठे है कि अल्लाह उनके द्वेषों को कदापि प्रकट न करेगा?

وَلَوۡ نَشَاۤءُ لَأَرَیۡنَـٰكَهُمۡ فَلَعَرَفۡتَهُم بِسِیمَـٰهُمۡۚ وَلَتَعۡرِفَنَّهُمۡ فِی لَحۡنِ ٱلۡقَوۡلِۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ أَعۡمَـٰلَكُمۡ ﴿30﴾

तो हम चाहते तो हम तुम्हें इन लोगों को दिखा देते तो तुम उनकी पेशानी ही से उनको पहचान लेते अगर तुम उन्हें उनके अन्दाज़े गुफ्तगू ही से ज़रूर पहचान लोगे और ख़ुदा तो तुम्हारे आमाल से वाक़िफ है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

यदि हम चाहें तो उन्हें तुम्हें दिखा दें, फिर तुम उन्हें उनके लक्षणों से पहचान लो; किन्तु तुम उन्हें उनकी बातचीत के ढब से अवश्य पहचान लोगे। अल्लाह तो तुम्हारे कर्मों को जानता ही है

وَلَنَبۡلُوَنَّكُمۡ حَتَّىٰ نَعۡلَمَ ٱلۡمُجَـٰهِدِینَ مِنكُمۡ وَٱلصَّـٰبِرِینَ وَنَبۡلُوَا۟ أَخۡبَارَكُمۡ ﴿31﴾

और हम तुम लोगों को ज़रूर आज़माएँगे ताकि तुममें जो लोग जेहाद करने वाले और (तकलीफ़) झेलने वाले हैं उनको देख लें और तुम्हारे हालात जाँच लें

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हम अवश्य तुम्हारी परीक्षा करेंगे, यहाँ तक कि हम तुममें से जो जिहाद करनेवाले है और जो दृढ़तापूर्वक जमे रहनेवाले है उनको जान ले और तुम्हारी हालतों को जाँच लें

إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوا۟ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ وَشَاۤقُّوا۟ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعۡدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُمُ ٱلۡهُدَىٰ لَن یَضُرُّوا۟ ٱللَّهَ شَیۡـࣰٔا وَسَیُحۡبِطُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ ﴿32﴾

बेशक जिन लोगों पर (दीन की) सीधी राह साफ़ ज़ाहिर हो गयी उसके बाद इन्कार कर बैठे और (लोगों को) ख़ुदा की राह से रोका और पैग़म्बर की मुख़ालेफ़त की तो ख़ुदा का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे और वह उनका सब किया कराया अक़ारत कर देगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिन लोगों ने इसके पश्चात कि मार्ग उनपर स्पष्ट हो चुका था, इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका और रसूल का विरोध किया, वे अल्लाह को कदापि कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे, बल्कि वही उनका सब किया-कराया उनकी जान को लागू कर देगा

۞ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُوا۟ ٱلرَّسُولَ وَلَا تُبۡطِلُوۤا۟ أَعۡمَـٰلَكُمۡ ﴿33﴾

ऐ ईमानदारों ख़ुदा का हुक्म मानों और रसूल की फरमाँबरदारी करो और अपने आमाल को ज़ाया न करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

ऐ ईमान लानेवालों! अल्लाह का आज्ञापालन करो और रसूल का आज्ञापालन करो और अपने कर्मों को विनष्ट न करो

إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوا۟ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ ثُمَّ مَاتُوا۟ وَهُمۡ كُفَّارࣱ فَلَن یَغۡفِرَ ٱللَّهُ لَهُمۡ ﴿34﴾

बेशक जो लोग काफ़िर हो गए और लोगों को ख़ुदा की राह से रोका, फिर काफिर ही मर गए तो ख़ुदा उनको हरगिज़ नहीं बख्शेगा तो तुम हिम्मत न हारो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका और इनकार करनेवाले ही रहकर मर गए, अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा न करेगा

فَلَا تَهِنُوا۟ وَتَدۡعُوۤا۟ إِلَى ٱلسَّلۡمِ وَأَنتُمُ ٱلۡأَعۡلَوۡنَ وَٱللَّهُ مَعَكُمۡ وَلَن یَتِرَكُمۡ أَعۡمَـٰلَكُمۡ ﴿35﴾

और (दुशमनों को)े सुलह की दावत न दो तुम ग़ालिब हो ही और ख़ुदा तो तुम्हारे साथ है और हरगिज़ तुम्हारे आमाल (के सवाब को कम न करेगा)

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अतः ऐसा न हो कि तुम हिम्मत हार जाओ और सुलह का निमंत्रण देने लगो, जबकि तुम ही प्रभावी हो। अल्लाह तुम्हारे साथ है और वह तुम्हारे कर्मों (के फल) में तुम्हें कदापि हानि न पहुँचाएगा

إِنَّمَا ٱلۡحَیَوٰةُ ٱلدُّنۡیَا لَعِبࣱ وَلَهۡوࣱۚ وَإِن تُؤۡمِنُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ یُؤۡتِكُمۡ أُجُورَكُمۡ وَلَا یَسۡـَٔلۡكُمۡ أَمۡوَ ٰ⁠لَكُمۡ ﴿36﴾

दुनियावी ज़िन्दगी तो बस खेल तमाशा है और अगर तुम (ख़ुदा पर) ईमान रखोगे और परहेज़गारी करोगे तो वह तुमको तुम्हारे अज्र इनायत फरमाएगा और तुमसे तुम्हारे माल नहीं तलब करेगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

सांसारिक जीवन तो बस एक खेल और तमाशा है। और यदि तुम ईमान लाओ और डर रखो तो वह तुम्हारे कर्मफल तुम्हें प्रदान करेगा और तुमसे धन नही माँगेगा। -

إِن یَسۡـَٔلۡكُمُوهَا فَیُحۡفِكُمۡ تَبۡخَلُوا۟ وَیُخۡرِجۡ أَضۡغَـٰنَكُمۡ ﴿37﴾

और अगर वह तुमसे माल तलब करे और तुमसे चिमट कर माँगे भी तो तुम (ज़रूर) बुख्ल करने लगो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और यदि वह उनको तुमसे माँगे और समेटकर तुमसे माँगे तो तुम कंजूसी करोगे। और वह तुम्हारे द्वेष को निकाल बाहर कर देगा

هَـٰۤأَنتُمۡ هَـٰۤؤُلَاۤءِ تُدۡعَوۡنَ لِتُنفِقُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ فَمِنكُم مَّن یَبۡخَلُۖ وَمَن یَبۡخَلۡ فَإِنَّمَا یَبۡخَلُ عَن نَّفۡسِهِۦۚ وَٱللَّهُ ٱلۡغَنِیُّ وَأَنتُمُ ٱلۡفُقَرَاۤءُۚ وَإِن تَتَوَلَّوۡا۟ یَسۡتَبۡدِلۡ قَوۡمًا غَیۡرَكُمۡ ثُمَّ لَا یَكُونُوۤا۟ أَمۡثَـٰلَكُم ﴿38﴾

और ख़ुदा तो तुम्हारे कीने को ज़रूर ज़ाहिर करके रहेगा देखो तुम लोग वही तो हो कि ख़ुदा की राह में ख़र्च के लिए बुलाए जाते हो तो बाज़ तुम में ऐसे भी हैं जो बुख्ल करते हैं और (याद रहे कि) जो बुख्ल करता है तो ख़ुद अपने ही से बुख्ल करता है और ख़ुदा तो बेनियाज़ है और तुम (उसके) मोहताज हो और अगर तुम (ख़ुदा के हुक्म से) मुँह फेरोगे तो ख़ुदा (तुम्हारे सिवा) दूसरों बदल देगा और वह तुम्हारे ऐसे (बख़ील) न होंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

सुनो! यह तुम्ही लोग हो कि तुम्हें आमंत्रण दिया जा रहा है कि \"अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करो।\" फिर तुमसे कुछ लोग है जो कंजूसी करते है। हालाँकि जो कंजूसी करता है वह वास्तव में अपने आप ही से कंजूसी करता है। अल्लाह तो निस्पृह है, तुम्हीं मुहताज हो। और यदि तुम फिर जाओ तो वह तुम्हारी जगह अन्य लोगों को ले आएगा; फिर वे तुम जैसे न होंगे