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Surah The moon [Al-Qamar] in Hindi

Surah The moon [Al-Qamar] Ayah 55 Location Maccah Number 54

ٱقۡتَرَبَتِ ٱلسَّاعَةُ وَٱنشَقَّ ٱلۡقَمَرُ ﴿1﴾

क़यामत क़रीब आ गयी और चाँद दो टुकड़े हो गया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वह घड़ी निकट और लगी और चाँद फट गया;

وَإِن یَرَوۡا۟ ءَایَةࣰ یُعۡرِضُوا۟ وَیَقُولُوا۟ سِحۡرࣱ مُّسۡتَمِرࣱّ ﴿2﴾

और अगर ये कुफ्फ़ार कोई मौजिज़ा देखते हैं, तो मुँह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि ये तो बड़ा ज़बरदस्त जादू है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

किन्तु हाल यह है कि यदि वे कोई निशानी देख भी लें तो टाल जाएँगे और कहेंगे, \"यह तो जादू है, पहले से चला आ रहा है!\"

وَكَذَّبُوا۟ وَٱتَّبَعُوۤا۟ أَهۡوَاۤءَهُمۡۚ وَكُلُّ أَمۡرࣲ مُّسۡتَقِرࣱّ ﴿3﴾

और उन लोगों ने झुठलाया और अपनी नफ़सियानी ख्वाहिशों की पैरवी की, और हर काम का वक्त मुक़र्रर है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्होंने झुठलाया और अपनी इच्छाओं का अनुसरण किया; किन्तु हर मामले के लिए एक नियत अवधि है।

وَلَقَدۡ جَاۤءَهُم مِّنَ ٱلۡأَنۢبَاۤءِ مَا فِیهِ مُزۡدَجَرٌ ﴿4﴾

और उनके पास तो वह हालात पहुँच चुके हैं जिनमें काफी तम्बीह थीं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उनके पास अतीत को ऐसी खबरें आ चुकी है, जिनमें ताड़ना अर्थात पूर्णतः तत्वदर्शीता है।

حِكۡمَةُۢ بَـٰلِغَةࣱۖ فَمَا تُغۡنِ ٱلنُّذُرُ ﴿5﴾

और इन्तेहा दर्जे की दानाई मगर (उनको तो) डराना कुछ फ़ायदा नहीं देता

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

किन्तु चेतावनियाँ उनके कुछ काम नहीं आ रही है! -

فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡۘ یَوۡمَ یَدۡعُ ٱلدَّاعِ إِلَىٰ شَیۡءࣲ نُّكُرٍ ﴿6﴾

तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनाराकश रहो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अतः उनसे रुख़ फेर लो - जिस दिन पुकारनेवाला एक अत्यन्त अप्रिय चीज़ की ओर पुकारेगा;

خُشَّعًا أَبۡصَـٰرُهُمۡ یَخۡرُجُونَ مِنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ كَأَنَّهُمۡ جَرَادࣱ مُّنتَشِرࣱ ﴿7﴾

तो (निदामत से) ऑंखें नीचे किए हुए कब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

वे अपनी झुकी हुई निगाहों के साथ अपनी क्रबों से निकल रहे होंगे, मानो वे बिखरी हुई टिड्डियाँ है;

مُّهۡطِعِینَ إِلَى ٱلدَّاعِۖ یَقُولُ ٱلۡكَـٰفِرُونَ هَـٰذَا یَوۡمٌ عَسِرࣱ ﴿8﴾

(और) बुलाने वाले की तरफ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे, कुफ्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख्त दिन है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

दौड़ पड़ने को पुकारनेवाले की ओर। इनकार करनेवाले कहेंगे, \"यह तो एक कठिन दिन है!\"

۞ كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحࣲ فَكَذَّبُوا۟ عَبۡدَنَا وَقَالُوا۟ مَجۡنُونࣱ وَٱزۡدُجِرَ ﴿9﴾

इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया था, तो उन्होने हमारे (ख़ास) बन्दे (नूह) को झुठलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया। उन्होंने हमारे बन्दे को झूठा ठहराया और कहा, \"यह तो दीवाना है!\" और वह बुरी तरह झिड़का गया

فَدَعَا رَبَّهُۥۤ أَنِّی مَغۡلُوبࣱ فَٱنتَصِرۡ ﴿10﴾

और उनको झिड़कियाँ भी दी गयीं, तो उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (बारे इलाहा मैं) इनके मुक़ाबले में कमज़ोर हूँ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अन्त में उसने अपने रब को पुकारा कि \"मैं दबा हुआ हूँ। अब तू बदला ले।\"

فَفَتَحۡنَاۤ أَبۡوَ ٰ⁠بَ ٱلسَّمَاۤءِ بِمَاۤءࣲ مُّنۡهَمِرࣲ ﴿11﴾

तो अब तू ही (इनसे) बदला ले तो हमने मूसलाधार पानी से आसमान के दरवाज़े खोल दिए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

तब हमने मूसलाधार बरसते हुए पानी से आकाश के द्वार खोल दिए;

وَفَجَّرۡنَا ٱلۡأَرۡضَ عُیُونࣰا فَٱلۡتَقَى ٱلۡمَاۤءُ عَلَىٰۤ أَمۡرࣲ قَدۡ قُدِرَ ﴿12﴾

और ज़मीन से चश्में जारी कर दिए, तो एक काम के लिए जो मुक़र्रर हो चुका था (दोनों) पानी मिलकर एक हो गया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और धरती को प्रवाहित स्रोतों में परिवर्तित कर दिया, और सारा पानी उस काम के लिए मिल गया जो नियत हो चुका था

وَحَمَلۡنَـٰهُ عَلَىٰ ذَاتِ أَلۡوَ ٰ⁠حࣲ وَدُسُرࣲ ﴿13﴾

और हमने एक कश्ती पर जो तख्तों और कीलों से तैयार की गयी थी सवार किया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने उसे एक तख़्तों और कीलोंवाली (नौका) पर सवार किया,

تَجۡرِی بِأَعۡیُنِنَا جَزَاۤءࣰ لِّمَن كَانَ كُفِرَ ﴿14﴾

और वह हमारी निगरानी में चल रही थी (ये) उस शख़्श (नूह) का बदला लेने के लिए जिसको लोग न मानते थे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो हमारी निगाहों के सामने चल रही थी - यह बदला था उस व्यक्ति के लिए जिसकी क़द्र नहीं की गई।

وَلَقَد تَّرَكۡنَـٰهَاۤ ءَایَةࣰ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرࣲ ﴿15﴾

और हमने उसको एक इबरत बना कर छोड़ा तो कोई है जो इबरत हासिल करे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने उसे एक निशानी बनाकर छोड़ दिया; फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला?

فَكَیۡفَ كَانَ عَذَابِی وَنُذُرِ ﴿16﴾

तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे?

وَلَقَدۡ یَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرࣲ ﴿17﴾

और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत करनेवाला?

كَذَّبَتۡ عَادࣱ فَكَیۡفَ كَانَ عَذَابِی وَنُذُرِ ﴿18﴾

आद (की क़ौम ने) (अपने पैग़म्बर) को झुठलाया तो (उनका) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था,

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

आद ने भी झुठलाया, फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरा डराना?

إِنَّاۤ أَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمۡ رِیحࣰا صَرۡصَرࣰا فِی یَوۡمِ نَحۡسࣲ مُّسۡتَمِرࣲّ ﴿19﴾

हमने उन पर बहुत सख्त मनहूस दिन में बड़े ज़न्नाटे की ऑंधी चलायी

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही हमने एक निरन्तर अशुभ दिन में तेज़ प्रचंड ठंडी हवा भेजी, उसे उनपर मुसल्लत कर दिया, तो वह लोगों को उखाड़ फेंक रही थी

تَنزِعُ ٱلنَّاسَ كَأَنَّهُمۡ أَعۡجَازُ نَخۡلࣲ مُّنقَعِرࣲ ﴿20﴾

जो लोगों को (अपनी जगह से) इस तरह उखाड़ फेकती थी गोया वह उखड़े हुए खजूर के तने हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

मानो वे उखड़े खजूर के तने हो

فَكَیۡفَ كَانَ عَذَابِی وَنُذُرِ ﴿21﴾

तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे?

وَلَقَدۡ یَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرࣲ ﴿22﴾

और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया, तो कोई है जो नसीहत हासिल करे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?

كَذَّبَتۡ ثَمُودُ بِٱلنُّذُرِ ﴿23﴾

(क़ौम) समूद ने डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

समूद ने चेतावनियों को झुठलाया;

فَقَالُوۤا۟ أَبَشَرࣰا مِّنَّا وَ ٰ⁠حِدࣰا نَّتَّبِعُهُۥۤ إِنَّاۤ إِذࣰا لَّفِی ضَلَـٰلࣲ وَسُعُرٍ ﴿24﴾

तो कहने लगे कि भला एक आदमी की जो हम ही में से हो उसकी पैरवीं करें ऐसा करें तो गुमराही और दीवानगी में पड़ गए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और कहने लगे, \"एक अकेला आदमी, जो हम ही में से है, क्या हम उसके पीछे चलेंगे? तब तो वास्तव में हम गुमराही और दीवानापन में पड़ गए!

أَءُلۡقِیَ ٱلذِّكۡرُ عَلَیۡهِ مِنۢ بَیۡنِنَا بَلۡ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرࣱ ﴿25﴾

क्या हम सबमें बस उसी पर वही नाज़िल हुई है (नहीं) बल्कि ये तो बड़ा झूठा तअल्ली करने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"क्या हमारे बीच उसी पर अनुस्मृति उतारी है? नहीं, बल्कि वह तो परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है।\"

سَیَعۡلَمُونَ غَدࣰا مَّنِ ٱلۡكَذَّابُ ٱلۡأَشِرُ ﴿26﴾

उनको अनक़रीब कल ही मालूम हो जाएगा कि कौन बड़ा झूठा तकब्बुर करने वाला है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"कल को ही वे जान लेंगे कि कौन परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है।

إِنَّا مُرۡسِلُوا۟ ٱلنَّاقَةِ فِتۡنَةࣰ لَّهُمۡ فَٱرۡتَقِبۡهُمۡ وَٱصۡطَبِرۡ ﴿27﴾

(ऐ सालेह) हम उनकी आज़माइश के लिए ऊँटनी भेजने वाले हैं तो तुम उनको देखते रहो और (थोड़ा) सब्र करो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हम ऊँटनी को उनके लिए परीक्षा के रूप में भेज रहे है। अतः तुम उन्हें देखते जाओ और धैर्य से काम लो

وَنَبِّئۡهُمۡ أَنَّ ٱلۡمَاۤءَ قِسۡمَةُۢ بَیۡنَهُمۡۖ كُلُّ شِرۡبࣲ مُّحۡتَضَرࣱ ﴿28﴾

और उनको ख़बर कर दो कि उनमें पानी की बारी मुक़र्रर कर दी गयी है हर (बारी वाले को अपनी) बारी पर हाज़िर होना चाहिए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"और उन्हें सूचित कर दो कि पानी उनके बीच बाँट दिया गया है। हर एक पीने की बारी पर बारीवाला उपस्थित होगा।\"

فَنَادَوۡا۟ صَاحِبَهُمۡ فَتَعَاطَىٰ فَعَقَرَ ﴿29﴾

तो उन लोगों ने अपने रफीक़ (क़ेदार) को बुलाया तो उसने पकड़ कर (ऊँटनी की) कूंचे काट डालीं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

अन्ततः उन्होंने अपने साथी को पुकारा, तो उसने ज़िम्मा लिया फिर उसने उसकी कूचें काट दी

فَكَیۡفَ كَانَ عَذَابِی وَنُذُرِ ﴿30﴾

तो (देखो) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे?

إِنَّاۤ أَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمۡ صَیۡحَةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ فَكَانُوا۟ كَهَشِیمِ ٱلۡمُحۡتَظِرِ ﴿31﴾

हमने उन पर एक सख्त चिंघाड़ (का अज़ाब) भेज दिया तो वह बाड़े वालो के सूखे हुए चूर चूर भूसे की तरह हो गए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने उनपर एक धमाका छोड़ा, फिर वे बाड़ लगानेवाले की रौंदी हुई बाड़ की तरह चूरा होकर रह गए

وَلَقَدۡ یَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرࣲ ﴿32﴾

और हमने क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला?

كَذَّبَتۡ قَوۡمُ لُوطِۭ بِٱلنُّذُرِ ﴿33﴾

लूत की क़ौम ने भी डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

लूत की क़ौम ने भी चेतावनियों को झुठलाया

إِنَّاۤ أَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمۡ حَاصِبًا إِلَّاۤ ءَالَ لُوطࣲۖ نَّجَّیۡنَـٰهُم بِسَحَرࣲ ﴿34﴾

तो हमने उन पर कंकर भरी हवा चलाई मगर लूत के लड़के बाले को हमने उनको अपने फज़ल व करम से पिछले ही को बचा लिया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने लूत के घरवालों के सिवा उनपर पथराव करनेवाली तेज़ वायु भेजी।

نِّعۡمَةࣰ مِّنۡ عِندِنَاۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ نَجۡزِی مَن شَكَرَ ﴿35﴾

हम शुक्र करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

हमने अपनी विशेष अनुकम्पा से प्रातःकाल उन्हें बचा लिया। हम इसी तरह उस व्यक्ति को बदला देते है जो कृतज्ञता दिखाए

وَلَقَدۡ أَنذَرَهُم بَطۡشَتَنَا فَتَمَارَوۡا۟ بِٱلنُّذُرِ ﴿36﴾

और लूत ने उनको हमारी पकड़ से भी डराया था मगर उन लोगों ने डराते ही में शक़ किया

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उसने जो उन्हें हमारी पकड़ से सावधान कर दिया था। किन्तु वे चेतावनियों के विषय में संदेह करते रहे

وَلَقَدۡ رَ ٰ⁠وَدُوهُ عَن ضَیۡفِهِۦ فَطَمَسۡنَاۤ أَعۡیُنَهُمۡ فَذُوقُوا۟ عَذَابِی وَنُذُرِ ﴿37﴾

और उनसे उनके मेहमान (फ़रिश्ते) के बारे में नाजायज़ मतलब की ख्वाहिश की तो हमने उनकी ऑंखें अन्धी कर दीं तो मेरे अज़ाब और डराने का मज़ा चखो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्होंने उसे फुसलाकर उसके पास से उसके अतिथियों को बलाना चाहा। अन्ततः हमने उसकी आँखें मेट दीं, \"लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!\"

وَلَقَدۡ صَبَّحَهُم بُكۡرَةً عَذَابࣱ مُّسۡتَقِرࣱّ ﴿38﴾

और सुबह सवेरे ही उन पर अज़ाब आ गया जो किसी तरह टल ही नहीं सकता था

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

सुबह सवेरे ही एक अटल यातना उनपर आ पहुँची,

فَذُوقُوا۟ عَذَابِی وَنُذُرِ ﴿39﴾

तो मेरे अज़ाब और डराने के (पड़े) मज़े चखो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

\"लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!\"

وَلَقَدۡ یَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرࣲ ﴿40﴾

और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया तो कोई है जो नसीहत हासिल करे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?

وَلَقَدۡ جَاۤءَ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ ٱلنُّذُرُ ﴿41﴾

और फिरऔन के पास भी डराने वाले (पैग़म्बर) आए

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और फ़िरऔनियों के पास चेतावनियाँ आई;

كَذَّبُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذۡنَـٰهُمۡ أَخۡذَ عَزِیزࣲ مُّقۡتَدِرٍ ﴿42﴾

तो उन लोगों ने हमारी कुल निशानियों को झुठलाया तो हमने उनको इस तरह सख्त पकड़ा जिस तरह एक ज़बरदस्त साहिबे क़ुदरत पकड़ा करता है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

उन्होंने हमारी सारी निशानियों को झुठला दिया। अन्ततः हमने उन्हें पकड़ लिया, जिस प्रकार एक ज़बरदस्त प्रभुत्वशाली पकड़ता है

أَكُفَّارُكُمۡ خَیۡرࣱ مِّنۡ أُو۟لَـٰۤىِٕكُمۡ أَمۡ لَكُم بَرَاۤءَةࣱ فِی ٱلزُّبُرِ ﴿43﴾

(ऐ अहले मक्का) क्या उन लोगों से भी तुम्हारे कुफ्फार बढ़ कर हैं या तुम्हारे वास्ते (पहली) किताबों में माफी (लिखी हुई) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

क्या तुम्हारे काफ़िर कुछ उन लोगो से अच्छे है या किताबों में तुम्हारे लिए कोई छुटकारा लिखा हुआ है?

أَمۡ یَقُولُونَ نَحۡنُ جَمِیعࣱ مُّنتَصِرࣱ ﴿44﴾

क्या ये लोग कहते हैं कि हम बहुत क़वी जमाअत हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

या वे कहते है, \"और हम मुक़ाबले की शक्ति रखनेवाले एक जत्था है?\"

سَیُهۡزَمُ ٱلۡجَمۡعُ وَیُوَلُّونَ ٱلدُّبُرَ ﴿45﴾

अनक़रीब ही ये जमाअत शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएँगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

शीघ्र ही वह जत्था पराजित होकर रहेगा और वे पीठ दिखा जाएँगे

بَلِ ٱلسَّاعَةُ مَوۡعِدُهُمۡ وَٱلسَّاعَةُ أَدۡهَىٰ وَأَمَرُّ ﴿46﴾

बात ये है कि इनके वायदे का वक्त क़यामत है और क़यामत बड़ी सख्त और बड़ी तल्ख़ (चीज़) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

नहीं, बल्कि वह घड़ी है, जिसका समय उनके लिए नियत है और वह बड़ी आपदावाली और कटु घड़ी है!

إِنَّ ٱلۡمُجۡرِمِینَ فِی ضَلَـٰلࣲ وَسُعُرࣲ ﴿47﴾

बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवानगी में (मुब्तिला) हैं

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निस्संदेह, अपराधी लोग गुमराही और दीवानेपन में पड़े हुए है

یَوۡمَ یُسۡحَبُونَ فِی ٱلنَّارِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ ذُوقُوا۟ مَسَّ سَقَرَ ﴿48﴾

उस रोज़ ये लोग अपने अपने मुँह के बल (जहन्नुम की) आग में घसीटे जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा) अब जहन्नुम की आग का मज़ा चखो

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जिस दिन वे अपने मुँह के बल आग में घसीटे जाएँगे, \"चखो मज़ा आग की लपट का!\"

إِنَّا كُلَّ شَیۡءٍ خَلَقۡنَـٰهُ بِقَدَرࣲ ﴿49﴾

बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अन्दाज़ से पैदा की है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही हमने हर चीज़ एक अंदाज़े के साथ पैदा की है

وَمَاۤ أَمۡرُنَاۤ إِلَّا وَ ٰ⁠حِدَةࣱ كَلَمۡحِۭ بِٱلۡبَصَرِ ﴿50﴾

और हमारा हुक्म तो बस ऑंख के झपकने की तरह एक बात होती है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हमारा आदेश (और काम) तो बस एक दम की बात होती है जैसे आँख का झपकना

وَلَقَدۡ أَهۡلَكۡنَاۤ أَشۡیَاعَكُمۡ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرࣲ ﴿51﴾

और हम तुम्हारे हम मशरबो को हलाक कर चुके हैं तो कोई है जो नसीहत हासिल करे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हम तुम्हारे जैसे लोगों को विनष्ट कर चुके है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?

وَكُلُّ شَیۡءࣲ فَعَلُوهُ فِی ٱلزُّبُرِ ﴿52﴾

और अगर चे ये लोग जो कुछ कर चुके हैं (इनके) आमाल नामों में (दर्ज) है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

जो कुछ उन्होंने किया है, वह पन्नों में अंकित है

وَكُلُّ صَغِیرࣲ وَكَبِیرࣲ مُّسۡتَطَرٌ ﴿53﴾

(यानि) हर छोटा और बड़ा काम लिख दिया गया है

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

और हर छोटी और बड़ी चीज़ लिखित है

إِنَّ ٱلۡمُتَّقِینَ فِی جَنَّـٰتࣲ وَنَهَرࣲ ﴿54﴾

बेशक परहेज़गार लोग (बेहिश्त के) बाग़ों और नहरों में

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ो और नहरों के बीच होंगे,

فِی مَقۡعَدِ صِدۡقٍ عِندَ مَلِیكࣲ مُّقۡتَدِرِۭ ﴿55﴾

(यानि) पसन्दीदा मक़ाम में हर तरह की कुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में (मुक़र्रिब) होंगे

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

प्रतिष्ठित स्थान पर, प्रभुत्वशाली सम्राट के निकट