Settings
Surah The Event, The Inevitable [Al-Waqia] in Hindi
إِذَا وَقَعَتِ ٱلۡوَاقِعَةُ ﴿1﴾
जब क़यामत बरपा होगी और उसके वाक़िया होने में ज़रा झूट नहीं
जब घटित होनेवाली (घड़ी) घटित हो जाएगी;
لَیۡسَ لِوَقۡعَتِهَا كَاذِبَةٌ ﴿2﴾
(उस वक्त लोगों में फ़र्क ज़ाहिर होगा)
उसके घटित होने में कुछ भी झुठ नहीं;
خَافِضَةࣱ رَّافِعَةٌ ﴿3﴾
कि किसी को पस्त करेगी किसी को बुलन्द
पस्त करनेवाली होगी, ऊँचा करनेवाली थी;
إِذَا رُجَّتِ ٱلۡأَرۡضُ رَجࣰّا ﴿4﴾
जब ज़मीन बड़े ज़ोरों में हिलने लगेगी
जब धरती थरथराकर काँप उठेगी;
وَبُسَّتِ ٱلۡجِبَالُ بَسࣰّا ﴿5﴾
और पहाड़ (टकरा कर) बिल्कुल चूर चूर हो जाएँगे
और पहाड़ टूटकर चूर्ण-विचुर्ण हो जाएँगे
فَكَانَتۡ هَبَاۤءࣰ مُّنۢبَثࣰّا ﴿6﴾
फिर ज़र्रे बन कर उड़ने लगेंगे
कि वे बिखरे हुए धूल होकर रह जाएँगे
وَكُنتُمۡ أَزۡوَ ٰجࣰا ثَلَـٰثَةࣰ ﴿7﴾
और तुम लोग तीन किस्म हो जाओगे
और तुम लोग तीन प्रकार के हो जाओगे -
فَأَصۡحَـٰبُ ٱلۡمَیۡمَنَةِ مَاۤ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡمَیۡمَنَةِ ﴿8﴾
तो दाहिने हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (वाह) दाहिने हाथ वाले क्या (चैन में) हैं
तो दाहिने हाथ वाले (सौभाग्यशाली), कैसे होंगे दाहिने हाथ वाले!
وَأَصۡحَـٰبُ ٱلۡمَشۡـَٔمَةِ مَاۤ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡمَشۡـَٔمَةِ ﴿9﴾
और बाएं हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (अफ़सोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं
और बाएँ हाथ वाले (दुर्भाग्यशाली), कैसे होंगे बाएँ हाथ वाले!
وَٱلسَّـٰبِقُونَ ٱلسَّـٰبِقُونَ ﴿10﴾
और जो आगे बढ़ जाने वाले हैं (वाह क्या कहना) वह आगे ही बढ़ने वाले थे
और आगे बढ़ जानेवाले तो आगे बढ़ जानेवाले ही है
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلۡمُقَرَّبُونَ ﴿11﴾
यही लोग (ख़ुदा के) मुक़र्रिब हैं
वही (अल्लाह के) निकटवर्ती है;
فِی جَنَّـٰتِ ٱلنَّعِیمِ ﴿12﴾
आराम व आसाइश के बाग़ों में बहुत से
नेमत भरी जन्नतों में होंगे;
ثُلَّةࣱ مِّنَ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿13﴾
तो अगले लोगों में से होंगे
अगलों में से तो बहुत-से होंगे,
وَقَلِیلࣱ مِّنَ ٱلۡـَٔاخِرِینَ ﴿14﴾
और कुछ थोडे से पिछले लोगों में से मोती
किन्तु पिछलों में से कम ही
عَلَىٰ سُرُرࣲ مَّوۡضُونَةࣲ ﴿15﴾
और याक़ूत से जड़े हुए सोने के तारों से बने हुए
जड़ित तख़्तो पर;
مُّتَّكِـِٔینَ عَلَیۡهَا مُتَقَـٰبِلِینَ ﴿16﴾
तख्ते पर एक दूसरे के सामने तकिए लगाए (बैठे) होंगे
तकिया लगाए आमने-सामने होंगे;
یَطُوفُ عَلَیۡهِمۡ وِلۡدَ ٰنࣱ مُّخَلَّدُونَ ﴿17﴾
नौजवान लड़के जो (बेहिश्त में) हमेशा (लड़के ही बने) रहेंगे
उनके पास किशोर होंगे जो सदैव किशोरावस्था ही में रहेंगे,
بِأَكۡوَابࣲ وَأَبَارِیقَ وَكَأۡسࣲ مِّن مَّعِینࣲ ﴿18﴾
(शरबत वग़ैरह के) सागर और चमकदार टोंटीदार कंटर और शफ्फ़ाफ़ शराब के जाम लिए हुए उनके पास चक्कर लगाते होंगे
प्याले और आफ़ताबे (जग) और विशुद्ध पेय से भरा हुआ पात्र लिए फिर रहे होंगे
لَّا یُصَدَّعُونَ عَنۡهَا وَلَا یُنزِفُونَ ﴿19﴾
जिसके (पीने) से न तो उनको (ख़ुमार से) दर्दसर होगा और न वह बदहवास मदहोश होंगे
- जिस (के पीने) से न तो उन्हें सिर दर्द होगा और न उनकी बुद्धि में विकार आएगा
وَفَـٰكِهَةࣲ مِّمَّا یَتَخَیَّرُونَ ﴿20﴾
और जिस क़िस्म के मेवे पसन्द करें
और स्वादिष्ट॥ फल जो वे पसन्द करें;
وَلَحۡمِ طَیۡرࣲ مِّمَّا یَشۡتَهُونَ ﴿21﴾
और जिस क़िस्म के परिन्दे का गोश्त उनका जी चाहे (सब मौजूद है)
और पक्षी का मांस जो वे चाह;
كَأَمۡثَـٰلِ ٱللُّؤۡلُوِٕ ٱلۡمَكۡنُونِ ﴿23﴾
जैसे एहतेयात से रखे हुए मोती
मानो छिपाए हुए मोती हो
جَزَاۤءَۢ بِمَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿24﴾
ये बदला है उनके (नेक) आमाल का
यह सब उसके बदले में उन्हें प्राप्त होगा जो कुछ वे करते रहे
لَا یَسۡمَعُونَ فِیهَا لَغۡوࣰا وَلَا تَأۡثِیمًا ﴿25﴾
वहाँ न तो बेहूदा बात सुनेंगे और न गुनाह की बात
उसमें वे न कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न गुनाह की बात;
إِلَّا قِیلࣰا سَلَـٰمࣰا سَلَـٰمࣰا ﴿26﴾
(फहश) बस उनका कलाम सलाम ही सलाम होगा
सिवाय इस बात के कि \"सलाम हो, सलाम हो!\"
وَأَصۡحَـٰبُ ٱلۡیَمِینِ مَاۤ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡیَمِینِ ﴿27﴾
और दाहिने हाथ वाले (वाह) दाहिने हाथ वालों का क्या कहना है
रहे सौभाग्यशाली लोग, तो सौभाग्यशालियों का क्या कहना!
فِی سِدۡرࣲ مَّخۡضُودࣲ ﴿28﴾
बे काँटे की बेरो और लदे गुथे हुए
वे वहाँ होंगे जहाँ बिन काँटों के बेर होंगे;
لَّا مَقۡطُوعَةࣲ وَلَا مَمۡنُوعَةࣲ ﴿33﴾
जो न कभी खत्म होंगे और न उनकी कोई रोक टोक
जिसका सिलसिला टूटनेवाला न होगा और न उसपर कोई रोक-टोक होगी
وَفُرُشࣲ مَّرۡفُوعَةٍ ﴿34﴾
और ऊँचे ऊँचे (नरम गद्दो के) फ़र्शों में (मज़े करते) होंगे
उच्चकोटि के बिछौने होंगे;
إِنَّاۤ أَنشَأۡنَـٰهُنَّ إِنشَاۤءࣰ ﴿35﴾
(उनको) वह हूरें मिलेंगी जिसको हमने नित नया पैदा किया है
(और वहाँ उनकी पत्नियों को) निश्चय ही हमने एक विशेष उठान पर उठान पर उठाया
فَجَعَلۡنَـٰهُنَّ أَبۡكَارًا ﴿36﴾
तो हमने उन्हें कुँवारियाँ प्यारी प्यारी हमजोलियाँ बनाया
और हमने उन्हे कुँवारियाँ बनाया;
لِّأَصۡحَـٰبِ ٱلۡیَمِینِ ﴿38﴾
दाहिने हाथ (में नामए आमाल लेने) वालों के वास्ते है
सौभाग्यशाली लोगों के लिए;
ثُلَّةࣱ مِّنَ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿39﴾
(इनमें) बहुत से तो अगले लोगों में से
वे अगलों में से भी अधिक होगे
وَثُلَّةࣱ مِّنَ ٱلۡـَٔاخِرِینَ ﴿40﴾
और बहुत से पिछले लोगों में से
और पिछलों में से भी अधिक होंगे
وَأَصۡحَـٰبُ ٱلشِّمَالِ مَاۤ أَصۡحَـٰبُ ٱلشِّمَالِ ﴿41﴾
और बाएं हाथ (में नामए आमाल लेने) वाले (अफसोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं
रहे दुर्भाग्यशाली लोग, तो कैसे होंगे दुर्भाग्यशाली लोग!
فِی سَمُومࣲ وَحَمِیمࣲ ﴿42﴾
(दोज़ख़ की) लौ और खौलते हुए पानी
गर्म हवा और खौलते हुए पानी में होंगे;
وَظِلࣲّ مِّن یَحۡمُومࣲ ﴿43﴾
और काले सियाह धुएँ के साये में होंगे
और काले धुएँ की छाँव में,
لَّا بَارِدࣲ وَلَا كَرِیمٍ ﴿44﴾
जो न ठन्डा और न ख़ुश आइन्द
जो न ठंडी होगी और न उत्तम और लाभप्रद
إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ قَبۡلَ ذَ ٰلِكَ مُتۡرَفِینَ ﴿45﴾
ये लोग इससे पहले (दुनिया में) ख़ूब ऐश उड़ा चुके थे
वे इससे पहले सुख-सम्पन्न थे;
وَكَانُوا۟ یُصِرُّونَ عَلَى ٱلۡحِنثِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿46﴾
और बड़े गुनाह (शिर्क) पर अड़े रहते थे
और बड़े गुनाह पर अड़े रहते थे
وَكَانُوا۟ یَقُولُونَ أَىِٕذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابࣰا وَعِظَـٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ﴿47﴾
और कहा करते थे कि भला जब हम मर जाएँगे और (सड़ गल कर) मिटटी और हडिडयाँ (ही हडिडयाँ) रह जाएँगे
कहते थे, \"क्या जब हम मर जाएँगे और मिट्टी और हड्डियाँ होकर रहे जाएँगे, तो क्या हम वास्तव में उठाए जाएँगे?
أَوَءَابَاۤؤُنَا ٱلۡأَوَّلُونَ ﴿48﴾
तो क्या हमें या हमारे अगले बाप दादाओं को फिर उठना है
\"और क्या हमारे पहले के बाप-दादा भी?\"
قُلۡ إِنَّ ٱلۡأَوَّلِینَ وَٱلۡـَٔاخِرِینَ ﴿49﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगले और पिछले
कह दो, \"निश्चय ही अगले और पिछले भी
لَمَجۡمُوعُونَ إِلَىٰ مِیقَـٰتِ یَوۡمࣲ مَّعۡلُومࣲ ﴿50﴾
सब के सब रोजे मुअय्यन की मियाद पर ज़रूर इकट्ठे किए जाएँगे
एक नियत समय पर इकट्ठे कर दिए जाएँगे, जिसका दिन ज्ञात और नियत है
ثُمَّ إِنَّكُمۡ أَیُّهَا ٱلضَّاۤلُّونَ ٱلۡمُكَذِّبُونَ ﴿51﴾
फिर तुमको बेशक ऐ गुमराहों झुठलाने वालों
\"फिर तुम ऐ गुमराहो, झुठलानेवालो!
لَـَٔاكِلُونَ مِن شَجَرࣲ مِّن زَقُّومࣲ ﴿52﴾
यक़ीनन (जहन्नुम में) थोहड़ के दरख्तों में से खाना होगा
ज़क्कूम के वृक्ष में से खाओंगे;
فَمَالِـُٔونَ مِنۡهَا ٱلۡبُطُونَ ﴿53﴾
तो तुम लोगों को उसी से (अपना) पेट भरना होगा
\"और उसी से पेट भरोगे;
فَشَـٰرِبُونَ عَلَیۡهِ مِنَ ٱلۡحَمِیمِ ﴿54﴾
फिर उसके ऊपर खौलता हुआ पानी पीना होगा
\"और उसके ऊपर से खौलता हुआ पानी पीओगे;
فَشَـٰرِبُونَ شُرۡبَ ٱلۡهِیمِ ﴿55﴾
और पियोगे भी तो प्यासे ऊँट का सा (डग डगा के) पीना
\"और तौस लगे ऊँट की तरह पीओगे।\"
هَـٰذَا نُزُلُهُمۡ یَوۡمَ ٱلدِّینِ ﴿56﴾
क़यामत के दिन यही उनकी मेहमानी होगी
यह बदला दिए जाने के दिन उनका पहला सत्कार होगा
نَحۡنُ خَلَقۡنَـٰكُمۡ فَلَوۡلَا تُصَدِّقُونَ ﴿57﴾
तुम लोगों को (पहली बार भी) हम ही ने पैदा किया है
हमने तुम्हें पैदा किया; फिर तुम सच क्यों नहीं मानते?
أَفَرَءَیۡتُم مَّا تُمۡنُونَ ﴿58﴾
फिर तुम लोग (दोबार की) क्यों नहीं तस्दीक़ करते
तो क्या तुमने विचार किया जो चीज़ तुम टपकाते हो?
ءَأَنتُمۡ تَخۡلُقُونَهُۥۤ أَمۡ نَحۡنُ ٱلۡخَـٰلِقُونَ ﴿59﴾
तो जिस नुत्फे क़ो तुम (औरतों के रहम में डालते हो) क्या तुमने देख भाल लिया है क्या तुम उससे आदमी बनाते हो या हम बनाते हैं
क्या तुम उसे आकार देते हो, या हम है आकार देनेवाले?
نَحۡنُ قَدَّرۡنَا بَیۡنَكُمُ ٱلۡمَوۡتَ وَمَا نَحۡنُ بِمَسۡبُوقِینَ ﴿60﴾
हमने तुम लोगों में मौत को मुक़र्रर कर दिया है और हम उससे आजिज़ नहीं हैं
हमने तुम्हारे बीच मृत्यु को नियत किया है और हमारे बस से यह बाहर नहीं है
عَلَىٰۤ أَن نُّبَدِّلَ أَمۡثَـٰلَكُمۡ وَنُنشِئَكُمۡ فِی مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿61﴾
कि तुम्हारे ऐसे और लोग बदल डालें और तुम लोगों को इस (सूरत) में पैदा करें जिसे तुम मुत्तलक़ नहीं जानते
कि हम तुम्हारे जैसों को बदल दें और तुम्हें ऐसी हालत में उठा खड़ा करें जिसे तुम जानते नहीं
وَلَقَدۡ عَلِمۡتُمُ ٱلنَّشۡأَةَ ٱلۡأُولَىٰ فَلَوۡلَا تَذَكَّرُونَ ﴿62﴾
और तुमने पैहली पैदाइश तो समझ ही ली है (कि हमने की) फिर तुम ग़ौर क्यों नहीं करते
तुम तो पहली पैदाइश को जान चुके हो, फिर तुम ध्यान क्यों नहीं देते?
أَفَرَءَیۡتُم مَّا تَحۡرُثُونَ ﴿63﴾
भला देखो तो कि जो कुछ तुम लोग बोते हो क्या
फिर क्या तुमने देखा तो कुछ तुम खेती करते हो?
ءَأَنتُمۡ تَزۡرَعُونَهُۥۤ أَمۡ نَحۡنُ ٱلزَّ ٰرِعُونَ ﴿64﴾
तुम लोग उसे उगाते हो या हम उगाते हैं अगर हम चाहते
क्या उसे तुम उगाते हो या हम उसे उगाते है?
لَوۡ نَشَاۤءُ لَجَعَلۡنَـٰهُ حُطَـٰمࣰا فَظَلۡتُمۡ تَفَكَّهُونَ ﴿65﴾
तो उसे चूर चूर कर देते तो तुम बातें ही बनाते रह जाते
यदि हम चाहें तो उसे चूर-चूर कर दें। फिर तुम बातें बनाते रह जाओ
إِنَّا لَمُغۡرَمُونَ ﴿66﴾
कि (हाए) हम तो (मुफ्त) तावान में फॅसे (नहीं)
कि \"हमपर उलटा डाँड पड़ गया,
أَفَرَءَیۡتُمُ ٱلۡمَاۤءَ ٱلَّذِی تَشۡرَبُونَ ﴿68﴾
तो क्या तुमने पानी पर भी नज़र डाली जो (दिन रात) पीते हो
फिर क्या तुमने उस पानी को देखा जिसे तुम पीते हो?
ءَأَنتُمۡ أَنزَلۡتُمُوهُ مِنَ ٱلۡمُزۡنِ أَمۡ نَحۡنُ ٱلۡمُنزِلُونَ ﴿69﴾
क्या उसको बादल से तुमने बरसाया है या हम बरसाते हैं
क्या उसे बादलों से तुमने पानी बरसाया या बरसानेवाले हम है?
لَوۡ نَشَاۤءُ جَعَلۡنَـٰهُ أُجَاجࣰا فَلَوۡلَا تَشۡكُرُونَ ﴿70﴾
अगर हम चाहें तो उसे खारी बना दें तो तुम लोग यक्र क्यों नहीं करते
यदि हम चाहें तो उसे अत्यन्त खारा बनाकर रख दें। फिर तुम कृतज्ञता क्यों नहीं दिखाते?
أَفَرَءَیۡتُمُ ٱلنَّارَ ٱلَّتِی تُورُونَ ﴿71﴾
तो क्या तुमने आग पर भी ग़ौर किया जिसे तुम लोग लकड़ी से निकालते हो
फिर क्या तुमने उस आग को देखा जिसे तुम सुलगाते हो?
ءَأَنتُمۡ أَنشَأۡتُمۡ شَجَرَتَهَاۤ أَمۡ نَحۡنُ ٱلۡمُنشِـُٔونَ ﴿72﴾
क्या उसके दरख्त को तुमने पैदा किया या हम पैदा करते हैं
क्या तुमने उसके वृक्ष को पैदा किया है या पैदा करनेवाले हम है?
نَحۡنُ جَعَلۡنَـٰهَا تَذۡكِرَةࣰ وَمَتَـٰعࣰا لِّلۡمُقۡوِینَ ﴿73﴾
हमने आग को (जहन्नुम की) याद देहानी और मुसाफिरों के नफे के (वास्ते पैदा किया)
हमने उसे एक अनुस्मृति और मरुभुमि के मुसाफ़िरों और ज़रूरतमन्दों के लिए लाभप्रद बनाया
فَسَبِّحۡ بِٱسۡمِ رَبِّكَ ٱلۡعَظِیمِ ﴿74﴾
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो
अतः तुम अपने महान रब के नाम की तसबीह करो
۞ فَلَاۤ أُقۡسِمُ بِمَوَ ٰقِعِ ٱلنُّجُومِ ﴿75﴾
तो मैं तारों के मनाज़िल की क़सम खाता हूँ
अतः नहीं! मैं क़समों खाता हूँ सितारों की स्थितियों की -
وَإِنَّهُۥ لَقَسَمࣱ لَّوۡ تَعۡلَمُونَ عَظِیمٌ ﴿76﴾
और अगर तुम समझो तो ये बड़ी क़सम है
और यह बहुत बड़ी गवाही है, यदि तुम जानो -
إِنَّهُۥ لَقُرۡءَانࣱ كَرِیمࣱ ﴿77﴾
कि बेशक ये बड़े रूतबे का क़ुरान है
निश्चय ही यह प्रतिष्ठित क़ुरआन है
فِی كِتَـٰبࣲ مَّكۡنُونࣲ ﴿78﴾
जो किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है
एक सुरक्षित किताब में अंकित है।
لَّا یَمَسُّهُۥۤ إِلَّا ٱلۡمُطَهَّرُونَ ﴿79﴾
इसको बस वही लोग छूते हैं जो पाक हैं
उसे केवल पाक-साफ़ व्यक्ति ही हाथ लगाते है
تَنزِیلࣱ مِّن رَّبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿80﴾
सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ से (मोहम्मद पर) नाज़िल हुआ है
उसका अवतरण सारे संसार के रब की ओर से है।
أَفَبِهَـٰذَا ٱلۡحَدِیثِ أَنتُم مُّدۡهِنُونَ ﴿81﴾
तो क्या तुम लोग इस कलाम से इन्कार रखते हो
फिर क्या तुम उस वाणी के प्रति उपेक्षा दर्शाते हो?
وَتَجۡعَلُونَ رِزۡقَكُمۡ أَنَّكُمۡ تُكَذِّبُونَ ﴿82﴾
और तुमने अपनी रोज़ी ये करार दे ली है कि (उसको) झुठलाते हो
और तुम इसको अपनी वृत्ति बना रहे हो कि झुठलाते हो?
فَلَوۡلَاۤ إِذَا بَلَغَتِ ٱلۡحُلۡقُومَ ﴿83﴾
तो क्या जब जान गले तक पहुँचती है
फिर ऐसा क्यों नहीं होता, जबकि प्राण कंठ को आ लगते है
وَأَنتُمۡ حِینَىِٕذࣲ تَنظُرُونَ ﴿84﴾
और तुम उस वक्त (क़ी हालत) पड़े देखा करते हो
और उस समय तुम देख रहे होते हो -
وَنَحۡنُ أَقۡرَبُ إِلَیۡهِ مِنكُمۡ وَلَـٰكِن لَّا تُبۡصِرُونَ ﴿85﴾
और हम इस (मरने वाले) से तुमसे भी ज्यादा नज़दीक होते हैं लेकिन तुमको दिखाई नहीं देता
और हम तुम्हारी अपेक्षा उससे अधिक निकट होते है। किन्तु तुम देखते नहीं –
فَلَوۡلَاۤ إِن كُنتُمۡ غَیۡرَ مَدِینِینَ ﴿86﴾
तो अगर तुम किसी के दबाव में नहीं हो
फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि यदि तुम अधीन नहीं हो
تَرۡجِعُونَهَاۤ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿87﴾
तो अगर (अपने दावे में) तुम सच्चे हो तो रूह को फेर क्यों नहीं देते
तो उसे (प्राण को) लौटा दो, यदि तुम सच्चे हो
فَأَمَّاۤ إِن كَانَ مِنَ ٱلۡمُقَرَّبِینَ ﴿88﴾
पस अगर वह (मरने वाला ख़ुदा के) मुक़र्रेबीन से है
फिर यदि वह (अल्लाह के) निकटवर्तियों में से है;
فَرَوۡحࣱ وَرَیۡحَانࣱ وَجَنَّتُ نَعِیمࣲ ﴿89﴾
तो (उस के लिए) आराम व आसाइश है और ख़ुशबूदार फूल और नेअमत के बाग़
तो (उसके लिए) आराम, सुख-सामग्री और सुगंध है, और नेमतवाला बाग़ है
وَأَمَّاۤ إِن كَانَ مِنۡ أَصۡحَـٰبِ ٱلۡیَمِینِ ﴿90﴾
और अगर वह दाहिने हाथ वालों में से है
और यदि वह भाग्यशालियों में से है,
فَسَلَـٰمࣱ لَّكَ مِنۡ أَصۡحَـٰبِ ٱلۡیَمِینِ ﴿91﴾
तो (उससे कहा जाएगा कि) तुम पर दाहिने हाथ वालों की तरफ़ से सलाम हो
तो \"सलाम है तुम्हें कि तुम सौभाग्यशाली में से हो।\"
وَأَمَّاۤ إِن كَانَ مِنَ ٱلۡمُكَذِّبِینَ ٱلضَّاۤلِّینَ ﴿92﴾
और अगर झुठलाने वाले गुमराहों में से है
किन्तु यदि वह झुठलानेवालों, गुमराहों में से है;
فَنُزُلࣱ مِّنۡ حَمِیمࣲ ﴿93﴾
तो (उसकी) मेहमानी खौलता हुआ पानी है
तो उसका पहला सत्कार खौलते हुए पानी से होगा
وَتَصۡلِیَةُ جَحِیمٍ ﴿94﴾
और जहन्नुम में दाखिल कर देना
फिर भड़कती हुई आग में उन्हें झोंका जाना है
إِنَّ هَـٰذَا لَهُوَ حَقُّ ٱلۡیَقِینِ ﴿95﴾
बेशक ये (ख़बर) यक़ीनन सही है
निस्संदेह यही विश्वसनीय सत्य है
فَسَبِّحۡ بِٱسۡمِ رَبِّكَ ٱلۡعَظِیمِ ﴿96﴾
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो
अतः तुम अपने महान रब की तसबीह करो