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Surah She that disputes [Al-Mujadila] in Hindi
قَدۡ سَمِعَ ٱللَّهُ قَوۡلَ ٱلَّتِی تُجَـٰدِلُكَ فِی زَوۡجِهَا وَتَشۡتَكِیۤ إِلَى ٱللَّهِ وَٱللَّهُ یَسۡمَعُ تَحَاوُرَكُمَاۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعُۢ بَصِیرٌ ﴿1﴾
ऐ रसूल जो औरत (ख़ुला) तुमसे अपने शौहर (उस) के बारे में तुमसे झगड़ती और ख़ुदा से गिले शिकवे करती है ख़ुदा ने उसकी बात सुन ली और ख़ुदा तुम दोनों की ग़ुफ्तगू सुन रहा है बेशक ख़ुदा बड़ा सुनने वाला देखने वाला है
अल्लाह ने उस स्त्री की बात सुन ली जो अपने पति के विषय में तुमसे झगड़ रही है और अल्लाह से शिकायत किए जाती है। अल्लाह तुम दोनों की बातचीत सुन रहा है। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ सुननेवाला, देखनेवाला है
ٱلَّذِینَ یُظَـٰهِرُونَ مِنكُم مِّن نِّسَاۤىِٕهِم مَّا هُنَّ أُمَّهَـٰتِهِمۡۖ إِنۡ أُمَّهَـٰتُهُمۡ إِلَّا ٱلَّـٰۤـِٔی وَلَدۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَیَقُولُونَ مُنكَرࣰا مِّنَ ٱلۡقَوۡلِ وَزُورࣰاۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورࣱ ﴿2﴾
तुम में से जो लोग अपनी बीवियों के साथ ज़हार करते हैं अपनी बीवी को माँ कहते हैं वह कुछ उनकी माएँ नहीं (हो जातीं) उनकी माएँ तो बस वही हैं जो उनको जनती हैं और वह बेशक एक नामाक़ूल और झूठी बात कहते हैं और ख़ुदा बेशक माफ करने वाला और बड़ा बख्शने वाला है
तुममें से जो लोग अपनी स्त्रियों से ज़िहार करते हैं, उनकी माएँ वे नहीं है, उनकी माएँ तो वही है जिन्होंने उनको जन्म दिया है। यह अवश्य है कि वे लोग एक अनुचित बात और झूठ कहते है। और निश्चय ही अल्लाह टाल जानेवाला अत्यन्त क्षमाशील है
وَٱلَّذِینَ یُظَـٰهِرُونَ مِن نِّسَاۤىِٕهِمۡ ثُمَّ یَعُودُونَ لِمَا قَالُوا۟ فَتَحۡرِیرُ رَقَبَةࣲ مِّن قَبۡلِ أَن یَتَمَاۤسَّاۚ ذَ ٰلِكُمۡ تُوعَظُونَ بِهِۦۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿3﴾
और जो लोग अपनी बीवियों से ज़हार कर बैठे फिर अपनी बात वापस लें तो दोनों के हमबिस्तर होने से पहले (कफ्फ़ारे में) एक ग़ुलाम का आज़ाद करना (ज़रूरी) है उसकी तुमको नसीहत की जाती है और तुम जो कुछ भी करते हो (ख़ुदा) उससे आगाह है
जो लोग अपनी स्त्रियों से ज़िहार करते हैं; फिर जो बात उन्होंने कही थी उससे रुजू करते है, तो इससे पहले कि दोनों एक-दूसरे को हाथ लगाएँ एक गर्दन आज़ाद करनी होगी। यह वह बात है जिसकी तुम्हें नसीहत की जाती है, और तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है
فَمَن لَّمۡ یَجِدۡ فَصِیَامُ شَهۡرَیۡنِ مُتَتَابِعَیۡنِ مِن قَبۡلِ أَن یَتَمَاۤسَّاۖ فَمَن لَّمۡ یَسۡتَطِعۡ فَإِطۡعَامُ سِتِّینَ مِسۡكِینࣰاۚ ذَ ٰلِكَ لِتُؤۡمِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۚ وَتِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِۗ وَلِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابٌ أَلِیمٌ ﴿4﴾
फिर जिसको ग़ुलाम न मिले तो दोनों की मुक़ारबत के क़ब्ल दो महीने के पै दर पै रोज़े रखें और जिसको इसकी भी क़ुदरत न हो साठ मोहताजों को खाना खिलाना फर्ज़ है ये (हुक्म इसलिए है) ताकि तुम ख़ुदा और उसके रसूल की (पैरवी) तसदीक़ करो और ये ख़ुदा की मुक़र्रर हदें हैं और काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है
किन्तु जिस किसी को ग़ुलाम प्राप्त न हो तो वह निरन्तर दो माह रोज़े रखे, इससे पहले कि वे दोनों एक-दूसरे को हाथ लगाएँ और जिस किसी को इसकी भी सामर्थ्य न हो तो साठ मुहताजों को भोजन कराना होगा। यह इसलिए कि तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमानवाले सिद्ध हो सको। ये अल्लाह की निर्धारित की हुई सीमाएँ है। और इनकार करनेवाले के लिए दुखद यातना है
إِنَّ ٱلَّذِینَ یُحَاۤدُّونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ كُبِتُوا۟ كَمَا كُبِتَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ وَقَدۡ أَنزَلۡنَاۤ ءَایَـٰتِۭ بَیِّنَـٰتࣲۚ وَلِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابࣱ مُّهِینࣱ ﴿5﴾
बेशक जो लोग ख़ुदा की और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त करते हैं वह (उसी तरह) ज़लील किए जाएँगे जिस तरह उनके पहले लोग किए जा चुके हैं और हम तो अपनी साफ़ और सरीही आयतें नाज़िल कर चुके और काफिरों के लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते हैं, वे अपमानित और तिरस्कृत होकर रहेंगे, जैसे उनसे पहले के लोग अपमानित और तिरस्कृत हो चुके है। हमने स्पष्ट आयतें अवतरित कर दी है और इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है
یَوۡمَ یَبۡعَثُهُمُ ٱللَّهُ جَمِیعࣰا فَیُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوۤا۟ۚ أَحۡصَىٰهُ ٱللَّهُ وَنَسُوهُۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ شَهِیدٌ ﴿6﴾
जिस दिन ख़ुदा उन सबको दोबारा उठाएगा तो उनके आमाल से उनको आगाह कर देगा ये लोग (अगरचे) उनको भूल गये हैं मगर ख़ुदा ने उनको याद रखा है और ख़ुदा तो हर चीज़ का गवाह है
जिस दिन अल्लाह उन सबको उठा खड़ा करेगा और जो कुछ उन्होंने किया होगा, उससे उन्हें अवगत करा देगा। अल्लाह ने उसकी गणना कर रखी है, और वे उसे भूले हुए है, और अल्लाह हर चीज़ का साक्षी है
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۖ مَا یَكُونُ مِن نَّجۡوَىٰ ثَلَـٰثَةٍ إِلَّا هُوَ رَابِعُهُمۡ وَلَا خَمۡسَةٍ إِلَّا هُوَ سَادِسُهُمۡ وَلَاۤ أَدۡنَىٰ مِن ذَ ٰلِكَ وَلَاۤ أَكۡثَرَ إِلَّا هُوَ مَعَهُمۡ أَیۡنَ مَا كَانُوا۟ۖ ثُمَّ یُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوا۟ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمٌ ﴿7﴾
क्या तुमको मालूम नहीं कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा जानता है जब तीन (आदमियों) का ख़ुफिया मशवेरा होता है तो वह (ख़ुद) उनका ज़रूर चौथा है और जब पाँच का मशवेरा होता है तो वह उनका छठा है और उससे कम हो या ज्यादा और चाहे जहाँ कहीं हो वह उनके साथ ज़रूर होता है फिर जो कुछ वह (दुनिया में) करते रहे क़यामत के दिन उनको उससे आगाह कर देगा बेशक ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ़ है
क्या तुमने इसको नहीं देखा कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कभी ऐसा नहीं होता कि तीन आदमियों की गुप्त वार्ता हो और उनके बीच चौथा वह (अल्लाह) न हो। और न पाँच आदमियों की होती है जिसमें छठा वह न होता हो। और न इससे कम की कोई होती है और न इससे अधिक की भी, किन्तु वह उनके साथ होता है, जहाँ कहीं भी वे हो; फिर जो कुछ भी उन्होंने किया होगा क़ियामत के दिन उससे वह उन्हें अवगत करा देगा। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِینَ نُهُوا۟ عَنِ ٱلنَّجۡوَىٰ ثُمَّ یَعُودُونَ لِمَا نُهُوا۟ عَنۡهُ وَیَتَنَـٰجَوۡنَ بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَ ٰنِ وَمَعۡصِیَتِ ٱلرَّسُولِۖ وَإِذَا جَاۤءُوكَ حَیَّوۡكَ بِمَا لَمۡ یُحَیِّكَ بِهِ ٱللَّهُ وَیَقُولُونَ فِیۤ أَنفُسِهِمۡ لَوۡلَا یُعَذِّبُنَا ٱللَّهُ بِمَا نَقُولُۚ حَسۡبُهُمۡ جَهَنَّمُ یَصۡلَوۡنَهَاۖ فَبِئۡسَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿8﴾
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनको सरगोशियाँ करने से मना किया गया ग़रज़ जिस काम की उनको मुमानिअत की गयी थी उसी को फिर करते हैं और (लुत्फ़ तो ये है कि) गुनाह और (बेजा) ज्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशियाँ करते हैं और जब तुम्हारे पास आते हैं तो जिन लफ्ज़ों से ख़ुदा ने भी तुम को सलाम नहीं किया उन लफ्ज़ों से सलाम करते हैं और अपने जी में कहते हैं कि (अगर ये वाक़ई पैग़म्बर हैं तो) जो कुछ हम कहते हैं ख़ुदा हमें उसकी सज़ा क्यों नहीं देता (ऐ रसूल) उनको दोज़ख़ ही (की सज़ा) काफी है जिसमें ये दाख़िल होंगे तो वह (क्या) बुरी जगह है
क्या तुमने नहीं देखा जिन्हें कानाफूसी से रोका गया था, फिर वे वही करते रहे जिससे उन्हें रोका गया था। वे आपस में गुनाह और ज़्यादती और रसूल की अवज्ञा की कानाफूसी करते है। और जब तुम्हारे पास आते है तो तुम्हारे प्रति अभिवादन के ऐसे शब्द प्रयोग में लाते है जो शब्द अल्लाह ने तुम्हारे लिए अभिवादन के लिए नहीं कहे। और अपने जी में कहते है, \"जो कुछ हम कहते है उसपर अल्लाह हमें यातना क्यों नहीं देता?\" उनके लिए जहन्नम ही काफ़ी है जिसमें वे प्रविष्ट होंगे। वह तो बहुत बुरी जगह है, अन्त नें पहुँचने की!
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِذَا تَنَـٰجَیۡتُمۡ فَلَا تَتَنَـٰجَوۡا۟ بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَ ٰنِ وَمَعۡصِیَتِ ٱلرَّسُولِ وَتَنَـٰجَوۡا۟ بِٱلۡبِرِّ وَٱلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ٱلَّذِیۤ إِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿9﴾
ऐ ईमानदारों जब तुम आपस में सरगोशी करो तो गुनाह और ज्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशी न करो बल्कि नेकीकारी और परहेज़गारी की सरगोशी करो और ख़ुदा से डरते रहो जिसके सामने (एक दिन) जमा किए जाओगे
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम आपस में गुप्त॥ वार्ता करो तो गुनाह और ज़्यादती और रसूल की अवज्ञा की गुप्त वार्ता न करो, बल्कि नेकी और परहेज़गारी के विषय में आपस में एकान्त वार्ता करो। और अल्लाह का डर रखो, जिसके पास तुम इकट्ठे होगे
إِنَّمَا ٱلنَّجۡوَىٰ مِنَ ٱلشَّیۡطَـٰنِ لِیَحۡزُنَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَلَیۡسَ بِضَاۤرِّهِمۡ شَیۡـًٔا إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡیَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ﴿10﴾
(बरी बातों की) सरगोशी तो बस एक शैतानी काम है (और इसलिए करते हैं) ताकि ईमानदारों को उससे रंज पहुँचे हालॉकि ख़ुदा की तरफ से आज़ादी दिए बग़ैर सरगोशी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती और मोमिनीन को तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए
वह कानाफूसी तो केवल शैतान की ओर से है, ताकि वह उन्हें ग़म में डाले जो ईमान लाए है। हालाँकि अल्लाह की अवज्ञा के बिना उसे कुछ भी हानि पहुँचाने की सामर्थ्य प्राप्त नहीं। और ईमानवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِذَا قِیلَ لَكُمۡ تَفَسَّحُوا۟ فِی ٱلۡمَجَـٰلِسِ فَٱفۡسَحُوا۟ یَفۡسَحِ ٱللَّهُ لَكُمۡۖ وَإِذَا قِیلَ ٱنشُزُوا۟ فَٱنشُزُوا۟ یَرۡفَعِ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مِنكُمۡ وَٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡعِلۡمَ دَرَجَـٰتࣲۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿11﴾
ऐ ईमानदारों जब तुमसे कहा जाए कि मजलिस में जगह कुशादा करो वह तो कुशादा कर दिया करो ख़ुदा तुमको कुशादगी अता करेगा और जब तुमसे कहा जाए कि उठ खड़े हो तो उठ खड़े हुआ करो जो लोग तुमसे ईमानदार हैं और जिनको इल्म अता हुआ है ख़ुदा उनके दर्जे बुलन्द करेगा और ख़ुदा तुम्हारे सब कामों से बेख़बर है
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुमसे कहा जाए कि मजलिसों में जगह कुशादा कर दे, तो कुशादगी पैदा कर दो। अल्लाह तुम्हारे लिए कुशादगी पैदा करेगा। और जब कहा जाए कि उठ जाओ, तो उठ जाया करो। तुममें से जो लोग ईमान लाए है और उन्हें ज्ञान प्रदान किया गया है, अल्लाह उनके दरजों को उच्चता प्रदान करेगा। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِذَا نَـٰجَیۡتُمُ ٱلرَّسُولَ فَقَدِّمُوا۟ بَیۡنَ یَدَیۡ نَجۡوَىٰكُمۡ صَدَقَةࣰۚ ذَ ٰلِكَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ وَأَطۡهَرُۚ فَإِن لَّمۡ تَجِدُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمٌ ﴿12﴾
ऐ ईमानदारों जब पैग़म्बर से कोई बात कान में कहनी चाहो तो कुछ ख़ैरात अपनी सरगोशी से पहले दे दिया करो यही तुम्हारे वास्ते बेहतर और पाकीज़ा बात है पस अगर तुमको इसका मुक़दूर न हो तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम रसूल से अकेले में बात करो तो अपनी गुप्त वार्ता से पहले सदक़ा दो। यह तुम्हारे लिए अच्छा और अधिक पवित्र है। फिर यदि तुम अपने को इसमें असमर्थ पाओ, तो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
ءَأَشۡفَقۡتُمۡ أَن تُقَدِّمُوا۟ بَیۡنَ یَدَیۡ نَجۡوَىٰكُمۡ صَدَقَـٰتࣲۚ فَإِذۡ لَمۡ تَفۡعَلُوا۟ وَتَابَ ٱللَّهُ عَلَیۡكُمۡ فَأَقِیمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ وَٱللَّهُ خَبِیرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ ﴿13﴾
(मुसलमानों) क्या तुम इस बात से डर गए कि (रसूल के) कान में बात कहने से पहले ख़ैरात कर लो तो जब तुम लोग (इतना सा काम) न कर सके और ख़ुदा ने तुम्हें माफ़ कर दिया तो पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा उसके रसूल की इताअत करो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे बाख़बर है
क्या तुम इससे डर गए कि अपनी गुप्त वार्ता से पहले सदक़े दो? जो जब तुमने यह न किया और अल्लाह ने तुम्हें क्षमा कर दिया. तो नमाज़ क़ायम करो, ज़कात देते रहो और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो। और तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है
۞ أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِینَ تَوَلَّوۡا۟ قَوۡمًا غَضِبَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِم مَّا هُم مِّنكُمۡ وَلَا مِنۡهُمۡ وَیَحۡلِفُونَ عَلَى ٱلۡكَذِبِ وَهُمۡ یَعۡلَمُونَ ﴿14﴾
क्या तुमने उन लोगों की हालत पर ग़ौर नहीं किया जो उन लोगों से दोस्ती करते हैं जिन पर ख़ुदा ने ग़ज़ब ढाया है तो अब वह न तुम मे हैं और न उनमें ये लोग जानबूझ कर झूठी बातो पर क़समें खाते हैं और वह जानते हैं
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने ऐसे लोगों को मित्र बनाया जिनपर अल्लाह का प्रकोप हुआ है? वे न तुममें से है और न उनमें से। और वे जानते-बूझते झूठी बात पर क़सम खाते है
أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُمۡ عَذَابࣰا شَدِیدًاۖ إِنَّهُمۡ سَاۤءَ مَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿15﴾
ख़ुदा ने उनके लिए सख्त अज़ाब तैयार कर रखा है इसमें शक़ नहीं कि ये लोग जो कुछ करते हैं बहुत ही बुरा है
अल्लाह ने उनके लिए कठोर यातना तैयार कर रखी है। निश्चय ही बुरा है जो वे कर रहे है
ٱتَّخَذُوۤا۟ أَیۡمَـٰنَهُمۡ جُنَّةࣰ فَصَدُّوا۟ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ فَلَهُمۡ عَذَابࣱ مُّهِینࣱ ﴿16﴾
उन लोगों ने अपनी क़समों को सिपर बना लिया है और (लोगों को) ख़ुदा की राह से रोक दिया तो उनके लिए रूसवा करने वाला अज़ाब है
उन्होंने अपनी क़समों को ढाल बना रखा है। अतः वे अल्लाह के मार्ग से (लोगों को) रोकते है। तो उनके लिए रुसवा करनेवाली यातना है
لَّن تُغۡنِیَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَ ٰلُهُمۡ وَلَاۤ أَوۡلَـٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَیۡـًٔاۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿17﴾
ख़ुदा सामने हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएँगे और न उनकी औलाद ही काम आएगी यही लोग जहन्नुमी हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे
अल्लाह से बचाने के लिए न उनके माल उनके कुछ काम आएँगे और न उनकी सन्तान। वे आगवाले हैं। उसी में वे सदैव रहेंगे
یَوۡمَ یَبۡعَثُهُمُ ٱللَّهُ جَمِیعࣰا فَیَحۡلِفُونَ لَهُۥ كَمَا یَحۡلِفُونَ لَكُمۡ وَیَحۡسَبُونَ أَنَّهُمۡ عَلَىٰ شَیۡءٍۚ أَلَاۤ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡكَـٰذِبُونَ ﴿18﴾
जिस दिन ख़ुदा उन सबको दोबार उठा खड़ा करेगा तो ये लोग जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं उसी तरह उसके सामने भी क़समें खाएँगे और ख्याल करते हैं कि वह राहे सवाब पर हैं आगाह रहो ये लोग यक़ीनन झूठे हैं
जिस दिन अल्लाह उन सबको उठाएगा तो वे उसके सामने भी इसी तरह क़समें खाएँगे, जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते है और समझते हैं कि वे किसी बुनियाद पर है। सावधान रहो, निश्चय ही वही झूठे है!
ٱسۡتَحۡوَذَ عَلَیۡهِمُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ فَأَنسَىٰهُمۡ ذِكۡرَ ٱللَّهِۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ حِزۡبُ ٱلشَّیۡطَـٰنِۚ أَلَاۤ إِنَّ حِزۡبَ ٱلشَّیۡطَـٰنِ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿19﴾
शैतान ने इन पर क़ाबू पा लिया है और ख़ुदा की याद उनसे भुला दी है ये लोग शैतान के गिरोह है सुन रखो कि शैतान का गिरोह घाटा उठाने वाला है
उनपर शैतान ने पूरी तरह अपना प्रभाव जमा लिया है। अतः उसने अल्लाह की याद को उनसे भुला दिया। वे शैतान की पार्टीवाले हैं। सावधान रहो शैतान की पार्टीवाले ही घाटे में रहनेवाले हैं!
إِنَّ ٱلَّذِینَ یُحَاۤدُّونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۤ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ فِی ٱلۡأَذَلِّینَ ﴿20﴾
जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से मुख़ालेफ़त करते हैं वह सब ज़लील लोगों में हैं
निश्चय ही जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते है वे अत्यन्त अपमानित लोगों में से है
كَتَبَ ٱللَّهُ لَأَغۡلِبَنَّ أَنَا۠ وَرُسُلِیۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِیٌّ عَزِیزࣱ ﴿21﴾
ख़ुदा ने हुक्म नातिक दे दिया है कि मैं और मेरे पैग़म्बर ज़रूर ग़ालिब रहेंगे बेशक ख़ुदा बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है
अल्लाह ने लिए दिया है, \"मैं और मेरे रसूल ही विजयी होकर रहेंगे।\" निस्संदेह अल्लाह शक्तिमान, प्रभुत्वशाली है
لَّا تَجِدُ قَوْمًا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ يُوَآدُّونَ مَنْ حَآدَّ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَوْ كَانُوٓا۟ ءَابَآءَهُمْ أَوْ أَبْنَآءَهُمْ أَوْ إِخْوَٰنَهُمْ أَوْ عَشِيرَتَهُمْ أُو۟لَٰٓئِكَ كَتَبَ فِى قُلُوبِهِمُ ٱلْإِيمَٰنَ وَأَيَّدَهُم بِرُوحٍ مِّنْهُ وَيُدْخِلُهُمْ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا رَضِىَ ٱللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا۟ عَنْهُ أُو۟لَٰٓئِكَ حِزْبُ ٱللَّهِ أَلَآ إِنَّ حِزْبَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ ﴿22﴾
जो लोग ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हैं तुम उनको ख़ुदा और उसके रसूल के दुश्मनों से दोस्ती करते हुए न देखोगे अगरचे वह उनके बाप या बेटे या भाई या ख़ानदान ही के लोग (क्यों न हों) यही वह लोग हैं जिनके दिलों में ख़ुदा ने ईमान को साबित कर दिया है और ख़ास अपने नूर से उनकी ताईद की है और उनको (बेहिश्त में) उन (हरे भरे) बाग़ों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरे जारी है (और वह) हमेश उसमें रहेंगे ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़ुदा से ख़ुश यही ख़ुदा का गिरोह है सुन रखो कि ख़ुदा के गिरोग के लोग दिली मुरादें पाएँगे
तुम उन लोगों को ऐसा कभी नहीं पाओगे जो अल्लाह और अन्तिम दि पर ईमान रखते है कि वे उन लोगों से प्रेम करते हो जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया, यद्यपि वे उनके अपने बाप हों या उनके अपने बेटे हो या उनके अपने भाई या उनके अपने परिवारवाले ही हो। वही लोग हैं जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान को अंकित कर दिया है और अपनी ओर से एक आत्मा के द्वारा उन्हें शक्ति दी है। और उन्हें वह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी; जहाँ वे सदैव रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे भी उससे राज़ी हुए। वे अल्लाह की पार्टी के लोग है। सावधान रहो, निश्चय ही अल्लाह की पार्टीवाले ही सफल है