Settings
Surah The cloaked one [Al-Muddathir] in Hindi
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلۡمُدَّثِّرُ ﴿1﴾
ऐ (मेरे) कपड़ा ओढ़ने वाले (रसूल) उठो
ऐ ओढ़ने लपेटनेवाले!
وَلَا تَمۡنُن تَسۡتَكۡثِرُ ﴿6﴾
और इसी तरह एहसान न करो कि ज्यादा के ख़ास्तगार बनो
अपनी कोशिशों को अधिक समझकर उसके क्रम को भंग न करो
وَلِرَبِّكَ فَٱصۡبِرۡ ﴿7﴾
और अपने परवरदिगार के लिए सब्र करो
और अपने रब के लिए धैर्य ही से काम लो
فَإِذَا نُقِرَ فِی ٱلنَّاقُورِ ﴿8﴾
फिर जब सूर फूँका जाएगा
जब सूर में फूँक मारी जाएगी
فَذَ ٰلِكَ یَوۡمَىِٕذࣲ یَوۡمٌ عَسِیرٌ ﴿9﴾
तो वह दिन काफ़िरों पर सख्त दिन होगा
तो जिस दिन ऐसा होगा, वह दिन बड़ा ही कठोर होगा,
عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ غَیۡرُ یَسِیرࣲ ﴿10﴾
आसान नहीं होगा
इनकार करनेवालो पर आसान न होगा
ذَرۡنِی وَمَنۡ خَلَقۡتُ وَحِیدࣰا ﴿11﴾
(ऐ रसूल) मुझे और उस शख़्श को छोड़ दो जिसे मैने अकेला पैदा किया
छोड़ दो मुझे और उसको जिसे मैंने अकेला पैदा किया,
وَجَعَلۡتُ لَهُۥ مَالࣰا مَّمۡدُودࣰا ﴿12﴾
और उसे बहुत सा माल दिया
और उसे माल दिया दूर तक फैला हुआ,
وَبَنِینَ شُهُودࣰا ﴿13﴾
और नज़र के सामने रहने वाले बेटे (दिए)
और उसके पास उपस्थित रहनेवाले बेटे दिए,
وَمَهَّدتُّ لَهُۥ تَمۡهِیدࣰا ﴿14﴾
और उसे हर तरह के सामान से वुसअत दी
और मैंने उसके लिए अच्छी तरह जीवन-मार्ग समतल किया
ثُمَّ یَطۡمَعُ أَنۡ أَزِیدَ ﴿15﴾
फिर उस पर भी वह तमाअ रखता है कि मैं और बढ़ाऊँ
फिर वह लोभ रखता है कि मैं उसके लिए और अधिक दूँगा
كَلَّاۤۖ إِنَّهُۥ كَانَ لِـَٔایَـٰتِنَا عَنِیدࣰا ﴿16﴾
ये हरगिज़ न होगा ये तो मेरी आयतों का दुश्मन था
कदापि नहीं, वह हमारी आयतों का दुश्मन है,
سَأُرۡهِقُهُۥ صَعُودًا ﴿17﴾
तो मैं अनक़रीब उस सख्त अज़ाब में मुब्तिला करूँगा
शीघ्र ही मैं उसे घेरकर कठिन चढ़ाई चढ़वाऊँगा
إِنَّهُۥ فَكَّرَ وَقَدَّرَ ﴿18﴾
उसने फिक्र की और ये तजवीज़ की
उसने सोचा और अटकल से एक बात बनाई
فَقُتِلَ كَیۡفَ قَدَّرَ ﴿19﴾
तो ये (कम्बख्त) मार डाला जाए
तो विनष्ट हो, कैसी बात बनाई!
ثُمَّ قُتِلَ كَیۡفَ قَدَّرَ ﴿20﴾
उसने क्यों कर तजवीज़ की
फिर विनष्ट हो, कैसी बात बनाई!
ثُمَّ عَبَسَ وَبَسَرَ ﴿22﴾
फिर त्योरी चढ़ाई और मुँह बना लिया
फिर त्योरी चढ़ाई और मुँह बनाया,
ثُمَّ أَدۡبَرَ وَٱسۡتَكۡبَرَ ﴿23﴾
फिर पीठ फेर कर चला गया और अकड़ बैठा
फिर पीठ फेरी और घमंड किया
فَقَالَ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّا سِحۡرࣱ یُؤۡثَرُ ﴿24﴾
फिर कहने लगा ये बस जादू है जो (अगलों से) चला आता है
अन्ततः बोला, \"यह तो बस एक जादू है, जो पहले से चला आ रहा है
إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّا قَوۡلُ ٱلۡبَشَرِ ﴿25﴾
ये तो बस आदमी का कलाम है
\"यह तो मात्र मनुष्य की वाणी है।\"
سَأُصۡلِیهِ سَقَرَ ﴿26﴾
(ख़ुदा का नहीं) मैं उसे अनक़रीब जहन्नुम में झोंक दूँगा
मैं शीघ्र ही उसे 'सक़र' (जहन्नम की आग) में झोंक दूँगा
وَمَاۤ أَدۡرَىٰكَ مَا سَقَرُ ﴿27﴾
और तुम क्या जानों कि जहन्नुम क्या है
और तुम्हें क्या पता की सक़र क्या है?
لَا تُبۡقِی وَلَا تَذَرُ ﴿28﴾
वह न बाक़ी रखेगी न छोड़ देगी
वह न तरस खाएगी और न छोड़ेगी,
لَوَّاحَةࣱ لِّلۡبَشَرِ ﴿29﴾
और बदन को जला कर सियाह कर देगी
खाल को झुलसा देनेवाली है,
عَلَیۡهَا تِسۡعَةَ عَشَرَ ﴿30﴾
उस पर उन्नीस (फ़रिश्ते मुअय्यन) हैं
उसपर उन्नीस (कार्यकर्ता) नियुक्त है
وَمَا جَعَلۡنَاۤ أَصۡحَـٰبَ ٱلنَّارِ إِلَّا مَلَـٰۤىِٕكَةࣰۖ وَمَا جَعَلۡنَا عِدَّتَهُمۡ إِلَّا فِتۡنَةࣰ لِّلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لِیَسۡتَیۡقِنَ ٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡكِتَـٰبَ وَیَزۡدَادَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِیمَـٰنࣰا وَلَا یَرۡتَابَ ٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَلِیَقُولَ ٱلَّذِینَ فِی قُلُوبِهِم مَّرَضࣱ وَٱلۡكَـٰفِرُونَ مَاذَاۤ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَـٰذَا مَثَلࣰاۚ كَذَ ٰلِكَ یُضِلُّ ٱللَّهُ مَن یَشَاۤءُ وَیَهۡدِی مَن یَشَاۤءُۚ وَمَا یَعۡلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَۚ وَمَا هِیَ إِلَّا ذِكۡرَىٰ لِلۡبَشَرِ ﴿31﴾
और हमने जहन्नुम का निगेहबान तो बस फरिश्तों को बनाया है और उनका ये शुमार भी काफिरों की आज़माइश के लिए मुक़र्रर किया ताकि अहले किताब (फौरन) यक़ीन कर लें और मोमिनो का ईमान और ज्यादा हो और अहले किताब और मोमिनीन (किसी तरह) शक़ न करें और जिन लोगों के दिल में (निफ़ाक का) मर्ज़ है (वह) और काफिर लोग कह बैठे कि इस मसल (के बयान करने) से ख़ुदा का क्या मतलब है यूँ ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत करता है और तुम्हारे परवरदिगार के लशकरों को उसके सिवा कोई नहीं जानता और ये तो आदमियों के लिए बस नसीहत है
और हमने उस आग पर नियुक्त रहनेवालों को फ़रिश्ते ही बनाया है, और हमने उनकी संख्या को इनकार करनेवालों के लिए मुसीबत और आज़माइश ही बनाकर रखा है। ताकि वे लोग जिन्हें किताब प्रदान की गई थी पूर्ण विश्वास प्राप्त करें, और वे लोग जो ईमान ले आए वे ईमान में और आगे बढ़ जाएँ। और जिन लोगों को किताब प्रदान की गई वे और ईमानवाले किसी संशय मे न पड़े, और ताकि जिनके दिलों मे रोग है वे और इनकार करनेवाले कहें, \"इस वर्णन से अल्लाह का क्या अभिप्राय है?\" इस प्रकार अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है और जिसे चाहता हैं संमार्ग प्रदान करता है। और तुम्हारे रब की सेनाओं को स्वयं उसके सिवा कोई नहीं जानता, और यह तो मनुष्य के लिए मात्र एक शिक्षा-सामग्री है
وَٱلَّیۡلِ إِذۡ أَدۡبَرَ ﴿33﴾
और रात की जब जाने लगे
और साक्षी है रात जबकि वह पीठ फेर चुकी,
وَٱلصُّبۡحِ إِذَاۤ أَسۡفَرَ ﴿34﴾
और सुबह की जब रौशन हो जाए
और प्रातःकाल जबकि वह पूर्णरूपेण प्रकाशित हो जाए।
إِنَّهَا لَإِحۡدَى ٱلۡكُبَرِ ﴿35﴾
कि वह (जहन्नुम) भी एक बहुत बड़ी (आफ़त) है
निश्चय ही वह भारी (भयंकर) चीज़ों में से एक है,
نَذِیرࣰا لِّلۡبَشَرِ ﴿36﴾
(और) लोगों के डराने वाली है
मनुष्यों के लिए सावधानकर्ता के रूप में,
لِمَن شَاۤءَ مِنكُمۡ أَن یَتَقَدَّمَ أَوۡ یَتَأَخَّرَ ﴿37﴾
(सबके लिए नहीें बल्कि) तुममें से वह जो शख़्श (नेकी की तरफ़) आगे बढ़ना
तुममें से उस व्यक्ति के लिए जो आगे बढ़ना या पीछे हटना चाहे
كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡ رَهِینَةٌ ﴿38﴾
और (बुराई से) पीछे हटना चाहे हर शख़्श अपने आमाल के बदले गिर्द है
प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ उसने कमाया उसके बदले रेहन (गिरवी) है,
إِلَّاۤ أَصۡحَـٰبَ ٱلۡیَمِینِ ﴿39﴾
मगर दाहिने हाथ (में नामए अमल लेने) वाले
सिवाय दाएँवालों के
فِی جَنَّـٰتࣲ یَتَسَاۤءَلُونَ ﴿40﴾
(बेहिश्त के) बाग़ों में गुनेहगारों से बाहम पूछ रहे होंगे
वे बाग़ों में होंगे, पूछ-ताछ कर रहे होंगे
عَنِ ٱلۡمُجۡرِمِینَ ﴿41﴾
कि आख़िर तुम्हें दोज़ख़ में कौन सी चीज़ (घसीट) लायी
अपराधियों के विषय में
مَا سَلَكَكُمۡ فِی سَقَرَ ﴿42﴾
वह लोग कहेंगे
\"तुम्हे क्या चीज़ सकंर (जहन्नम) में ले आई?\"
قَالُوا۟ لَمۡ نَكُ مِنَ ٱلۡمُصَلِّینَ ﴿43﴾
कि हम न तो नमाज़ पढ़ा करते थे
वे कहेंगे, \"हम नमाज़ अदा करनेवालों में से न थे।
وَلَمۡ نَكُ نُطۡعِمُ ٱلۡمِسۡكِینَ ﴿44﴾
और न मोहताजों को खाना खिलाते थे
और न हम मुहताज को खाना खिलाते थे
وَكُنَّا نَخُوضُ مَعَ ٱلۡخَاۤىِٕضِینَ ﴿45﴾
और अहले बातिल के साथ हम भी बड़े काम में घुस पड़ते थे
\"और व्यर्थ बात और कठ-हुज्जती में पड़े रहनेवालों के साथ हम भी उसी में लगे रहते थे।
وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِیَوۡمِ ٱلدِّینِ ﴿46﴾
और रोज़ जज़ा को झुठलाया करते थे (और यूँ ही रहे)
और हम बदला दिए जाने के दिन को झुठलाते थे,
حَتَّىٰۤ أَتَىٰنَا ٱلۡیَقِینُ ﴿47﴾
यहाँ तक कि हमें मौत आ गयी
\"यहाँ तक कि विश्वसनीय चीज़ (प्रलय-दिवस) में हमें आ लिया।\"
فَمَا تَنفَعُهُمۡ شَفَـٰعَةُ ٱلشَّـٰفِعِینَ ﴿48﴾
तो (उस वक्त) उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश कुछ काम न आएगी
अतः सिफ़ारिश करनेवालों को कोई सिफ़ारिश उनको कुछ लाभ न पहुँचा सकेगी
فَمَا لَهُمۡ عَنِ ٱلتَّذۡكِرَةِ مُعۡرِضِینَ ﴿49﴾
और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुँह मोड़े हुए हैं
आख़िर उन्हें क्या हुआ है कि वे नसीहत से कतराते है,
كَأَنَّهُمۡ حُمُرࣱ مُّسۡتَنفِرَةࣱ ﴿50﴾
गोया वह वहशी गधे हैं
मानो वे बिदके हुए जंगली गधे है
فَرَّتۡ مِن قَسۡوَرَةِۭ ﴿51﴾
कि येर से (दुम दबा कर) भागते हैं
जो शेर से (डरकर) भागे है?
بَلۡ یُرِیدُ كُلُّ ٱمۡرِئࣲ مِّنۡهُمۡ أَن یُؤۡتَىٰ صُحُفࣰا مُّنَشَّرَةࣰ ﴿52﴾
असल ये है कि उनमें से हर शख़्श इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुई (आसमानी) किताबें अता की जाएँ
नहीं, बल्कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे खुली किताबें दी जाएँ
كَلَّاۖ بَل لَّا یَخَافُونَ ٱلۡـَٔاخِرَةَ ﴿53﴾
ये तो हरगिज़ न होगा बल्कि ये तो आख़ेरत ही से नहीं डरते
कदापि नहीं, बल्कि ले आख़िरत से डरते नहीं
كَلَّاۤ إِنَّهُۥ تَذۡكِرَةࣱ ﴿54﴾
हाँ हाँ बेशक ये (क़ुरान सरा सर) नसीहत है
कुछ नहीं, वह तो एक अनुस्मति है
فَمَن شَاۤءَ ذَكَرَهُۥ ﴿55﴾
तो जो चाहे उसे याद रखे
अब जो कोई चाहे इससे नसीहत हासिल करे,
وَمَا یَذۡكُرُونَ إِلَّاۤ أَن یَشَاۤءَ ٱللَّهُۚ هُوَ أَهۡلُ ٱلتَّقۡوَىٰ وَأَهۡلُ ٱلۡمَغۡفِرَةِ ﴿56﴾
और ख़ुदा की मशीयत के बग़ैर ये लोग याद रखने वाले नहीं वही (बन्दों के) डराने के क़ाबिल और बख्यिश का मालिक है
और वे नसीहत हासिल नहीं करेंगे। यह और बात है कि अल्लाह ही ऐसा चाहे। वही इस योग्य है कि उसका डर रखा जाए और इस योग्य भी कि क्षमा करे