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الۤمۤ ﴿1﴾

अलीफ़॰ लाम॰ मीम॰

ذَ ٰ⁠لِكَ ٱلۡكِتَـٰبُ لَا رَیۡبَۛ فِیهِۛ هُدࣰى لِّلۡمُتَّقِینَ ﴿2﴾

वह किताब यही हैं, जिसमें कोई सन्देह नहीं, मार्गदर्शन हैं डर रखनेवालों के लिए,

ٱلَّذِینَ یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡغَیۡبِ وَیُقِیمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿3﴾

जो अनदेखे ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया हैं उसमें से कुछ खर्च करते हैं;

وَٱلَّذِینَ یُؤۡمِنُونَ بِمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡكَ وَمَاۤ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَ وَبِٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ یُوقِنُونَ ﴿4﴾

और जो उस पर ईमान लाते हैं जो तुम पर उतरा और जो तुमसे पहले अवतरित हुआ हैं और आख़िरत पर वही लोग विश्वास रखते हैं;

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ عَلَىٰ هُدࣰى مِّن رَّبِّهِمۡۖ وَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿5﴾

वही लोग हैं जो अपने रब के सीधे मार्ग पर हैं और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं

إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ سَوَاۤءٌ عَلَیۡهِمۡ ءَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿6﴾

जिन लोगों ने कुफ़्र (इनकार) किया उनके लिए बराबर हैं, चाहे तुमने उन्हें सचेत किया हो या सचेत न किया हो, वे ईमान नहीं लाएँगे

خَتَمَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَعَلَىٰ سَمۡعِهِمۡۖ وَعَلَىٰۤ أَبۡصَـٰرِهِمۡ غِشَـٰوَةࣱۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿7﴾

अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आँखों पर परदा पड़ा है, और उनके लिए बड़ी यातना है

وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَقُولُ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِ وَمَا هُم بِمُؤۡمِنِینَ ﴿8﴾

कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हैं, हालाँकि वे ईमान नहीं रखते

یُخَـٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَمَا یَخۡدَعُونَ إِلَّاۤ أَنفُسَهُمۡ وَمَا یَشۡعُرُونَ ﴿9﴾

वे अल्लाह और ईमानवालों के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, हालाँकि धोखा वे स्वयं अपने-आपको ही दे रहे हैं, परन्तु वे इसको महसूस नहीं करते

فِی قُلُوبِهِم مَّرَضࣱ فَزَادَهُمُ ٱللَّهُ مَرَضࣰاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمُۢ بِمَا كَانُوا۟ یَكۡذِبُونَ ﴿10﴾

उनके दिलों में रोग था तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और उनके लिए झूठ बोलते रहने के कारण उनके लिए एक दुखद यातना है

وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ لَا تُفۡسِدُوا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ قَالُوۤا۟ إِنَّمَا نَحۡنُ مُصۡلِحُونَ ﴿11﴾

और जब उनसे कहा जाता है कि \"ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो\", तो कहते हैं, \"हम तो केवल सुधारक है।\"\"

أَلَاۤ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡمُفۡسِدُونَ وَلَـٰكِن لَّا یَشۡعُرُونَ ﴿12﴾

जान लो! वही हैं जो बिगाड़ पैदा करते हैं, परन्तु उन्हें एहसास नहीं होता

وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ ءَامِنُوا۟ كَمَاۤ ءَامَنَ ٱلنَّاسُ قَالُوۤا۟ أَنُؤۡمِنُ كَمَاۤ ءَامَنَ ٱلسُّفَهَاۤءُۗ أَلَاۤ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلسُّفَهَاۤءُ وَلَـٰكِن لَّا یَعۡلَمُونَ ﴿13﴾

और जब उनसे कहा जाता है, \"ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए हैं\", कहते हैं, \"क्या हम ईमान लाए जैसे कम समझ लोग ईमान लाए हैं?\" जान लो, वही कम समझ हैं परन्तु जानते नहीं

وَإِذَا لَقُوا۟ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ قَالُوۤا۟ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوۡا۟ إِلَىٰ شَیَـٰطِینِهِمۡ قَالُوۤا۟ إِنَّا مَعَكُمۡ إِنَّمَا نَحۡنُ مُسۡتَهۡزِءُونَ ﴿14﴾

और जब ईमान लानेवालों से मिलते हैं तो कहते, \"हम भी ईमान लाए हैं,\" और जब एकान्त में अपने शैतानों के पास पहुँचते हैं, तो कहते हैं, \"हम तो तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं।\"

ٱللَّهُ یَسۡتَهۡزِئُ بِهِمۡ وَیَمُدُّهُمۡ فِی طُغۡیَـٰنِهِمۡ یَعۡمَهُونَ ﴿15﴾

अल्लाह उनके साथ परिहास कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकते फिर रहे हैं

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ ٱشۡتَرَوُا۟ ٱلضَّلَـٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ فَمَا رَبِحَت تِّجَـٰرَتُهُمۡ وَمَا كَانُوا۟ مُهۡتَدِینَ ﴿16﴾

यही वे लोग हैं, जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार में न कोई लाभ पहुँचाया, और न ही वे सीधा मार्ग पा सके

مَثَلُهُمۡ كَمَثَلِ ٱلَّذِی ٱسۡتَوۡقَدَ نَارࣰا فَلَمَّاۤ أَضَاۤءَتۡ مَا حَوۡلَهُۥ ذَهَبَ ٱللَّهُ بِنُورِهِمۡ وَتَرَكَهُمۡ فِی ظُلُمَـٰتࣲ لَّا یُبۡصِرُونَ ﴿17﴾

उनकी मिसाल ऐसी हैं जैसे किसी व्यक्ति ने आग जलाई, फिर जब उसने उसके वातावरण को प्रकाशित कर दिया, तो अल्लाह ने उसका प्रकाश ही छीन लिया और उन्हें अँधेरों में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा हैं

صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡیࣱ فَهُمۡ لَا یَرۡجِعُونَ ﴿18﴾

वे बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धे हैं, अब वे लौटने के नहीं

أَوۡ كَصَیِّبࣲ مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ فِیهِ ظُلُمَـٰتࣱ وَرَعۡدࣱ وَبَرۡقࣱ یَجۡعَلُونَ أَصَـٰبِعَهُمۡ فِیۤ ءَاذَانِهِم مِّنَ ٱلصَّوَ ٰ⁠عِقِ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِۚ وَٱللَّهُ مُحِیطُۢ بِٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿19﴾

या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपने कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हों - और अल्लाह ने तो इनकार करनेवालों को घेर रखा हैं

یَكَادُ ٱلۡبَرۡقُ یَخۡطَفُ أَبۡصَـٰرَهُمۡۖ كُلَّمَاۤ أَضَاۤءَ لَهُم مَّشَوۡا۟ فِیهِ وَإِذَاۤ أَظۡلَمَ عَلَیۡهِمۡ قَامُوا۟ۚ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَذَهَبَ بِسَمۡعِهِمۡ وَأَبۡصَـٰرِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿20﴾

मानो शीघ्र ही बिजली उनकी आँखों की रौशनी उचक लेने को है; जब भी उनपर चमकती हो, वे चल पड़ते हो और जब उनपर अँधेरा छा जाता हैं तो खड़े हो जाते हो; अगर अल्लाह चाहता तो उनकी सुनने और देखने की शक्ति बिलकुल ही छीन लेता। निस्सन्देह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ ٱعۡبُدُوا۟ رَبَّكُمُ ٱلَّذِی خَلَقَكُمۡ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿21﴾

ऐ लोगो! बन्दगी करो अपने रब की जिसने तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच सको;

ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فِرَ ٰ⁠شࣰا وَٱلسَّمَاۤءَ بِنَاۤءࣰ وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَخۡرَجَ بِهِۦ مِنَ ٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِ رِزۡقࣰا لَّكُمۡۖ فَلَا تَجۡعَلُوا۟ لِلَّهِ أَندَادࣰا وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿22﴾

वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फर्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार की और फल तुम्हारी रोजी के लिए पैदा किए, अतः जब तुम जानते हो तो अल्लाह के समकक्ष न ठहराओ

وَإِن كُنتُمۡ فِی رَیۡبࣲ مِّمَّا نَزَّلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا فَأۡتُوا۟ بِسُورَةࣲ مِّن مِّثۡلِهِۦ وَٱدۡعُوا۟ شُهَدَاۤءَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿23﴾

और अगर उसके विषय में जो हमने अपने बन्दे पर उतारा हैं, तुम किसी सन्देह में न हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास हैं, यदि तुम सच्चे हो

فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُوا۟ وَلَن تَفۡعَلُوا۟ فَٱتَّقُوا۟ ٱلنَّارَ ٱلَّتِی وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلۡحِجَارَةُۖ أُعِدَّتۡ لِلۡكَـٰفِرِینَ ﴿24﴾

फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन इनसान और पत्थर हैं, जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार की गई है

وَبَشِّرِ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أَنَّ لَهُمۡ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُۖ كُلَّمَا رُزِقُوا۟ مِنۡهَا مِن ثَمَرَةࣲ رِّزۡقࣰا قَالُوا۟ هَـٰذَا ٱلَّذِی رُزِقۡنَا مِن قَبۡلُۖ وَأُتُوا۟ بِهِۦ مُتَشَـٰبِهࣰاۖ وَلَهُمۡ فِیهَاۤ أَزۡوَ ٰ⁠جࣱ مُّطَهَّرَةࣱۖ وَهُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿25﴾

जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें शुभ सूचना दे दो कि उनके लिए ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी; जब भी उनमें से कोई फल उन्हें रोजी के रूप में मिलेगा, तो कहेंगे, \"यह तो वही हैं जो पहले हमें मिला था,\" और उन्हें मिलता-जुलता ही (फल) मिलेगा; उनके लिए वहाँ पाक-साफ़ पत्नि याँ होगी, और वे वहाँ सदैव रहेंगे

۞ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یَسۡتَحۡیِۦۤ أَن یَضۡرِبَ مَثَلࣰا مَّا بَعُوضَةࣰ فَمَا فَوۡقَهَاۚ فَأَمَّا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ فَیَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۖ وَأَمَّا ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ فَیَقُولُونَ مَاذَاۤ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَـٰذَا مَثَلࣰاۘ یُضِلُّ بِهِۦ كَثِیرࣰا وَیَهۡدِی بِهِۦ كَثِیرࣰاۚ وَمَا یُضِلُّ بِهِۦۤ إِلَّا ٱلۡفَـٰسِقِینَ ﴿26﴾

निस्संदेह अल्लाह नहीं शरमाता कि वह कोई मिसाल पेश करे चाहे वह हो मच्छर की, बल्कि उससे भी बढ़कर किसी तुच्छ चीज़ की। फिर जो ईमान लाए है वे तो जानते है कि वह उनके रब की ओर से सत्य हैं; रहे इनकार करनेवाले तो वे कहते है, \"इस मिसाल से अल्लाह का अभिप्राय क्या है?\" इससे वह बहुतों को भटकने देता है और बहुतों को सीधा मार्ग दिखा देता है, मगर इससे वह केवल अवज्ञाकारियों ही को भटकने देता है

ٱلَّذِینَ یَنقُضُونَ عَهۡدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مِیثَـٰقِهِۦ وَیَقۡطَعُونَ مَاۤ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦۤ أَن یُوصَلَ وَیُفۡسِدُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿27﴾

जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे सुदृढ़ करने के पश्चात भंग कर देते हैं और जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है उसे काट डालते हैं, और ज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं, वही हैं जो घाटे में हैं

كَیۡفَ تَكۡفُرُونَ بِٱللَّهِ وَكُنتُمۡ أَمۡوَ ٰ⁠تࣰا فَأَحۡیَـٰكُمۡۖ ثُمَّ یُمِیتُكُمۡ ثُمَّ یُحۡیِیكُمۡ ثُمَّ إِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿28﴾

तुम अल्लाह के साथ अविश्वास की नीति कैसे अपनाते हो, जबकि तुम निर्जीव थे तो उसने तुम्हें जीवित किया, फिर वही तुम्हें मौत देता हैं, फिर वही तुम्हें जीवित करेगा, फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना हैं?

هُوَ ٱلَّذِی خَلَقَ لَكُم مَّا فِی ٱلۡأَرۡضِ جَمِیعࣰا ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰۤ إِلَى ٱلسَّمَاۤءِ فَسَوَّىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَـٰوَ ٰ⁠تࣲۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿29﴾

वही तो है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन की सारी चीज़े पैदा की, फिर आकाश की ओर रुख़ किया और ठीक तौर पर सात आकाश बनाए और वह हर चीज़ को जानता है

وَإِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ إِنِّی جَاعِلࣱ فِی ٱلۡأَرۡضِ خَلِیفَةࣰۖ قَالُوۤا۟ أَتَجۡعَلُ فِیهَا مَن یُفۡسِدُ فِیهَا وَیَسۡفِكُ ٱلدِّمَاۤءَ وَنَحۡنُ نُسَبِّحُ بِحَمۡدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَۖ قَالَ إِنِّیۤ أَعۡلَمُ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿30﴾

और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि \"मैं धरती में (मनुष्य को) खलीफ़ा (सत्ताधारी) बनानेवाला हूँ।\" उन्होंने कहा, \"क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्तपात करे और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?\" उसने कहा, \"मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।\"

وَعَلَّمَ ءَادَمَ ٱلۡأَسۡمَاۤءَ كُلَّهَا ثُمَّ عَرَضَهُمۡ عَلَى ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ فَقَالَ أَنۢبِـُٔونِی بِأَسۡمَاۤءِ هَـٰۤؤُلَاۤءِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿31﴾

उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, \"अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।\"

قَالُوا۟ سُبۡحَـٰنَكَ لَا عِلۡمَ لَنَاۤ إِلَّا مَا عَلَّمۡتَنَاۤۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَلِیمُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿32﴾

वे बोले, \"पाक और महिमावान है तू! तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।\"

قَالَ یَـٰۤـَٔادَمُ أَنۢبِئۡهُم بِأَسۡمَاۤىِٕهِمۡۖ فَلَمَّاۤ أَنۢبَأَهُم بِأَسۡمَاۤىِٕهِمۡ قَالَ أَلَمۡ أَقُل لَّكُمۡ إِنِّیۤ أَعۡلَمُ غَیۡبَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَأَعۡلَمُ مَا تُبۡدُونَ وَمَا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ ﴿33﴾

उसने कहा, \"ऐ आदम! उन्हें उन लोगों के नाम बताओ।\" फिर जब उसने उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, \"क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।\"

وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ ٱسۡجُدُوا۟ لِـَٔادَمَ فَسَجَدُوۤا۟ إِلَّاۤ إِبۡلِیسَ أَبَىٰ وَٱسۡتَكۡبَرَ وَكَانَ مِنَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿34﴾

और याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि \"आदम को सजदा करो\" तो, उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलील के; उसने इनकार कर दिया और लगा बड़ा बनने और काफ़िर हो रहा

وَقُلۡنَا یَـٰۤـَٔادَمُ ٱسۡكُنۡ أَنتَ وَزَوۡجُكَ ٱلۡجَنَّةَ وَكُلَا مِنۡهَا رَغَدًا حَیۡثُ شِئۡتُمَا وَلَا تَقۡرَبَا هَـٰذِهِ ٱلشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿35﴾

और हमने कहा, \"ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में रहो और वहाँ जी भर बेरोक-टोक जहाँ से तुम दोनों का जी चाहे खाओ, लेकिन इस वृक्ष के पास न जाना, अन्यथा तुम ज़ालिम ठहरोगे।\"

فَأَزَلَّهُمَا ٱلشَّیۡطَـٰنُ عَنۡهَا فَأَخۡرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِیهِۖ وَقُلۡنَا ٱهۡبِطُوا۟ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوࣱّۖ وَلَكُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُسۡتَقَرࣱّ وَمَتَـٰعٌ إِلَىٰ حِینࣲ ﴿36﴾

अन्ततः शैतान ने उन्हें वहाँ से फिसला दिया, फिर उन दोनों को वहाँ से निकलवाकर छोड़ा, जहाँ वे थे। हमने कहा कि \"उतरो, तुम एक-दूसरे के शत्रु होगे और तुम्हें एक समय तक धरती में ठहरना और बिसलना है।\"

فَتَلَقَّىٰۤ ءَادَمُ مِن رَّبِّهِۦ كَلِمَـٰتࣲ فَتَابَ عَلَیۡهِۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿37﴾

फिर आदम ने अपने रब से कुछ शब्द पा लिए, तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़बूल कर ली; निस्संदेह वही तौबा क़बूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है

قُلۡنَا ٱهۡبِطُوا۟ مِنۡهَا جَمِیعࣰاۖ فَإِمَّا یَأۡتِیَنَّكُم مِّنِّی هُدࣰى فَمَن تَبِعَ هُدَایَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿38﴾

हमने कहा, \"तुम सब यहाँ से उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहुँचे तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया, तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।\"

وَٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَاۤ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿39﴾

और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वहीं आग में पड़नेवाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे

یَـٰبَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ ٱذۡكُرُوا۟ نِعۡمَتِیَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ وَأَوۡفُوا۟ بِعَهۡدِیۤ أُوفِ بِعَهۡدِكُمۡ وَإِیَّـٰیَ فَٱرۡهَبُونِ ﴿40﴾

ऐ इसराईल का सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था। और मेरी प्रतिज्ञा को पूरा करो, मैं तुमसे की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करूँगा और हाँ मुझी से डरो

وَءَامِنُوا۟ بِمَاۤ أَنزَلۡتُ مُصَدِّقࣰا لِّمَا مَعَكُمۡ وَلَا تَكُونُوۤا۟ أَوَّلَ كَافِرِۭ بِهِۦۖ وَلَا تَشۡتَرُوا۟ بِـَٔایَـٰتِی ثَمَنࣰا قَلِیلࣰا وَإِیَّـٰیَ فَٱتَّقُونِ ﴿41﴾

और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करनेवाले न बनो। और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो

وَلَا تَلۡبِسُوا۟ ٱلۡحَقَّ بِٱلۡبَـٰطِلِ وَتَكۡتُمُوا۟ ٱلۡحَقَّ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿42﴾

और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बुझते सत्य को छिपाओ मत

وَأَقِیمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱرۡكَعُوا۟ مَعَ ٱلرَّ ٰ⁠كِعِینَ ﴿43﴾

और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और (मेरे समक्ष) झुकनेवालों के साथ झुको

۞ أَتَأۡمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلۡبِرِّ وَتَنسَوۡنَ أَنفُسَكُمۡ وَأَنتُمۡ تَتۡلُونَ ٱلۡكِتَـٰبَۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿44﴾

क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो? फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?

وَٱسۡتَعِینُوا۟ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ وَإِنَّهَا لَكَبِیرَةٌ إِلَّا عَلَى ٱلۡخَـٰشِعِینَ ﴿45﴾

धैर्य और नमाज़ से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिनके दिल पिघले हुए हो;

ٱلَّذِینَ یَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَـٰقُوا۟ رَبِّهِمۡ وَأَنَّهُمۡ إِلَیۡهِ رَ ٰ⁠جِعُونَ ﴿46﴾

जो समझते है कि उन्हें अपने रब से मिलना हैं और उसी की ओर उन्हें पलटकर जाना है

یَـٰبَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ ٱذۡكُرُوا۟ نِعۡمَتِیَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ وَأَنِّی فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿47﴾

ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी;

وَٱتَّقُوا۟ یَوۡمࣰا لَّا تَجۡزِی نَفۡسٌ عَن نَّفۡسࣲ شَیۡـࣰٔا وَلَا یُقۡبَلُ مِنۡهَا شَفَـٰعَةࣱ وَلَا یُؤۡخَذُ مِنۡهَا عَدۡلࣱ وَلَا هُمۡ یُنصَرُونَ ﴿48﴾

और डरो उस दिन से जब न कोई किसी भी ओर से कुछ तावान भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफ़ारिश ही क़बूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फ़िद्‌या (अर्थदंड) लिया जाएगा और न वे सहायता ही पा सकेंगे।

وَإِذۡ نَجَّیۡنَـٰكُم مِّنۡ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ یَسُومُونَكُمۡ سُوۤءَ ٱلۡعَذَابِ یُذَبِّحُونَ أَبۡنَاۤءَكُمۡ وَیَسۡتَحۡیُونَ نِسَاۤءَكُمۡۚ وَفِی ذَ ٰ⁠لِكُم بَلَاۤءࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ عَظِیمࣱ ﴿49﴾

और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे; और इसमं तुम्हारे रब की ओर से बड़ी परीक्षा थी

وَإِذۡ فَرَقۡنَا بِكُمُ ٱلۡبَحۡرَ فَأَنجَیۡنَـٰكُمۡ وَأَغۡرَقۡنَاۤ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ ﴿50﴾

याद करो जब हमने तुम्हें सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फ़िरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया

وَإِذۡ وَ ٰ⁠عَدۡنَا مُوسَىٰۤ أَرۡبَعِینَ لَیۡلَةࣰ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَـٰلِمُونَ ﴿51﴾

और याद करो जब हमने मूसा से चालीस रातों का वादा ठहराया तो उसके पीछे तुम बछड़े को अपना देवता बना बैठे, तुम अत्याचारी थे

ثُمَّ عَفَوۡنَا عَنكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَ ٰ⁠لِكَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿52﴾

फिर इसके पश्चात भी हमने तुम्हें क्षमा किया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखालाओ

وَإِذۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡفُرۡقَانَ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ﴿53﴾

और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको

وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ یَـٰقَوۡمِ إِنَّكُمۡ ظَلَمۡتُمۡ أَنفُسَكُم بِٱتِّخَاذِكُمُ ٱلۡعِجۡلَ فَتُوبُوۤا۟ إِلَىٰ بَارِىِٕكُمۡ فَٱقۡتُلُوۤا۟ أَنفُسَكُمۡ ذَ ٰ⁠لِكُمۡ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ عِندَ بَارِىِٕكُمۡ فَتَابَ عَلَیۡكُمۡۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿54﴾

और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, \"ऐ मेरी कौम के लोगो! बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करनेवाले की ओर पलटो, अतः अपने लोगों को स्वयं क़त्ल करो। यही तुम्हारे पैदा करनेवाले की स्पष्ट में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा क़बूल कर ली। निस्संदेह वह बड़ी तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।\"

وَإِذۡ قُلۡتُمۡ یَـٰمُوسَىٰ لَن نُّؤۡمِنَ لَكَ حَتَّىٰ نَرَى ٱللَّهَ جَهۡرَةࣰ فَأَخَذَتۡكُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ ﴿55﴾

और याद करो जब तुमने कहा था, \"ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख लें।\" फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा, तुम देखते रहे

ثُمَّ بَعَثۡنَـٰكُم مِّنۢ بَعۡدِ مَوۡتِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿56﴾

फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ

وَظَلَّلۡنَا عَلَیۡكُمُ ٱلۡغَمَامَ وَأَنزَلۡنَا عَلَیۡكُمُ ٱلۡمَنَّ وَٱلسَّلۡوَىٰۖ كُلُوا۟ مِن طَیِّبَـٰتِ مَا رَزَقۡنَـٰكُمۡۚ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَـٰكِن كَانُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿57﴾

और हमने तुमपर बादलों की छाया की और तुमपर 'मन्न' और 'सलबा' उतारा - \"खाओ, जो अच्छी पाक चीजें हमने तुम्हें प्रदान की है।\" उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे

وَإِذۡ قُلۡنَا ٱدۡخُلُوا۟ هَـٰذِهِ ٱلۡقَرۡیَةَ فَكُلُوا۟ مِنۡهَا حَیۡثُ شِئۡتُمۡ رَغَدࣰا وَٱدۡخُلُوا۟ ٱلۡبَابَ سُجَّدࣰا وَقُولُوا۟ حِطَّةࣱ نَّغۡفِرۡ لَكُمۡ خَطَـٰیَـٰكُمۡۚ وَسَنَزِیدُ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿58﴾

और जब हमने कहा था, \"इस बस्ती में प्रवेश करो फिर उसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और बस्ती के द्वार में सजदागुज़ार बनकर प्रवेश करो और कहो, \"छूट हैं।\" हम तुम्हारी खताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करनेवालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे।\"

فَبَدَّلَ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ قَوۡلًا غَیۡرَ ٱلَّذِی قِیلَ لَهُمۡ فَأَنزَلۡنَا عَلَى ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ رِجۡزࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ بِمَا كَانُوا۟ یَفۡسُقُونَ ﴿59﴾

फिर जो बात उनसे कहीं गई थी ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात से बदल दिया। अन्ततः ज़ालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश से यातना उतारी

۞ وَإِذِ ٱسۡتَسۡقَىٰ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ فَقُلۡنَا ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡحَجَرَۖ فَٱنفَجَرَتۡ مِنۡهُ ٱثۡنَتَا عَشۡرَةَ عَیۡنࣰاۖ قَدۡ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسࣲ مَّشۡرَبَهُمۡۖ كُلُوا۟ وَٱشۡرَبُوا۟ مِن رِّزۡقِ ٱللَّهِ وَلَا تَعۡثَوۡا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِینَ ﴿60﴾

और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी की प्रार्थना को तो हमने कहा, \"चट्टान पर अपनी लाठी मारो,\" तो उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - \"खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।\"

وَإِذۡ قُلۡتُمۡ یَـٰمُوسَىٰ لَن نَّصۡبِرَ عَلَىٰ طَعَامࣲ وَ ٰ⁠حِدࣲ فَٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُخۡرِجۡ لَنَا مِمَّا تُنۢبِتُ ٱلۡأَرۡضُ مِنۢ بَقۡلِهَا وَقِثَّاۤىِٕهَا وَفُومِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَاۖ قَالَ أَتَسۡتَبۡدِلُونَ ٱلَّذِی هُوَ أَدۡنَىٰ بِٱلَّذِی هُوَ خَیۡرٌۚ ٱهۡبِطُوا۟ مِصۡرࣰا فَإِنَّ لَكُم مَّا سَأَلۡتُمۡۗ وَضُرِبَتۡ عَلَیۡهِمُ ٱلذِّلَّةُ وَٱلۡمَسۡكَنَةُ وَبَاۤءُو بِغَضَبࣲ مِّنَ ٱللَّهِۗ ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانُوا۟ یَكۡفُرُونَ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ وَیَقۡتُلُونَ ٱلنَّبِیِّـۧنَ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّۗ ذَ ٰ⁠لِكَ بِمَا عَصَوا۟ وَّكَانُوا۟ یَعۡتَدُونَ ﴿61﴾

और याद करो जब तुमने कहा था, \"ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि हमारे वास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककड़ियाँ और लहसुन और मसूर और प्याज़ निकाले।\" और मूसा ने कहा, \"क्या तुम जो घटिया चीज़ है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तम है? किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा हैं, तुम्हें मिल जाएगा\" - और उनपर अपमान और हीन दशा थोप दी गई, और अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे

إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَٱلَّذِینَ هَادُوا۟ وَٱلنَّصَـٰرَىٰ وَٱلصَّـٰبِـِٔینَ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿62﴾

निस्संदेह, ईमानवाले और जो यहूदी हुए और ईसाई और साबिई, जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगों का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे -

وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُوا۟ مَاۤ ءَاتَیۡنَـٰكُم بِقُوَّةࣲ وَٱذۡكُرُوا۟ مَا فِیهِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿63﴾

और याद करो जब हमने इस हाल में कि तूर पर्वत को तुम्हारे ऊपर ऊँचा कर रखा था, तुमसे दृढ़ वचन लिया था, \"जो चीज़ हमने तुम्हें दी हैं उसे मजबूती के साथ पकड़ो और जो कुछ उसमें हैं उसे याद रखो ताकि तुम बच सको।\"

ثُمَّ تَوَلَّیۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَ ٰ⁠لِكَۖ فَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ لَكُنتُم مِّنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ﴿64﴾

फिर इसके पश्चात भी तुम फिर गए, तो यदि अल्लाह की कृपा और उसकी दयालुता तुम पर न होती, तो तुम घाटे में पड़ गए होते

وَلَقَدۡ عَلِمۡتُمُ ٱلَّذِینَ ٱعۡتَدَوۡا۟ مِنكُمۡ فِی ٱلسَّبۡتِ فَقُلۡنَا لَهُمۡ كُونُوا۟ قِرَدَةً خَـٰسِـِٔینَ ﴿65﴾

और तुम उन लोगों के विषय में तो जानते ही हो जिन्होंने तुममें से 'सब्त' के दिन के मामले में मर्यादा का उल्लंघन किया था, तो हमने उनसे कह दिया, \"बन्दर हो जाओ, धिक्कारे और फिटकारे हुए!\"

فَجَعَلۡنَـٰهَا نَكَـٰلࣰا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡهَا وَمَا خَلۡفَهَا وَمَوۡعِظَةࣰ لِّلۡمُتَّقِینَ ﴿66﴾

फिर हमने इसे सामनेवालों और बाद के लोगों के लिए शिक्षा-सामग्री और डर रखनेवालों के लिए नसीहत बनाकर छोड़ा

وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦۤ إِنَّ ٱللَّهَ یَأۡمُرُكُمۡ أَن تَذۡبَحُوا۟ بَقَرَةࣰۖ قَالُوۤا۟ أَتَتَّخِذُنَا هُزُوࣰاۖ قَالَ أَعُوذُ بِٱللَّهِ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡجَـٰهِلِینَ ﴿67﴾

और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, \"निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय जब्ह करो।\" कहने लगे, \"क्या तुम हमसे परिहास करते हो?\" उसने कहा, \"मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ।\"

قَالُوا۟ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُبَیِّن لَّنَا مَا هِیَۚ قَالَ إِنَّهُۥ یَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةࣱ لَّا فَارِضࣱ وَلَا بِكۡرٌ عَوَانُۢ بَیۡنَ ذَ ٰ⁠لِكَۖ فَٱفۡعَلُوا۟ مَا تُؤۡمَرُونَ ﴿68﴾

बोले, \"हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्टा कर दे कि वह गाय कौन-सी है?\" उसने कहा, \"वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो न बूढ़ी है, न बछिया, इनके बीच की रास है; तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है, करो।\"

قَالُوا۟ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُبَیِّن لَّنَا مَا لَوۡنُهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ یَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةࣱ صَفۡرَاۤءُ فَاقِعࣱ لَّوۡنُهَا تَسُرُّ ٱلنَّـٰظِرِینَ ﴿69﴾

कहने लगे, \"हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा है?\" कहा, \"वह कहता है कि वह गाय सुनहरी है, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न कर देती है।\"

قَالُوا۟ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ یُبَیِّن لَّنَا مَا هِیَ إِنَّ ٱلۡبَقَرَ تَشَـٰبَهَ عَلَیۡنَا وَإِنَّاۤ إِن شَاۤءَ ٱللَّهُ لَمُهۡتَدُونَ ﴿70﴾

बोले, \"हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कौन-सी है, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य। पता लगा लेंगे।\"

قَالَ إِنَّهُۥ یَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةࣱ لَّا ذَلُولࣱ تُثِیرُ ٱلۡأَرۡضَ وَلَا تَسۡقِی ٱلۡحَرۡثَ مُسَلَّمَةࣱ لَّا شِیَةَ فِیهَاۚ قَالُوا۟ ٱلۡـَٔـٰنَ جِئۡتَ بِٱلۡحَقِّۚ فَذَبَحُوهَا وَمَا كَادُوا۟ یَفۡعَلُونَ ﴿71﴾

उसने कहा, \" वह कहता हैं कि वह ऐसा गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।\" बोले, \"अब तुमने ठीक बात बताई है।\" फिर उन्होंने उसे ज़ब्ह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते थे

وَإِذۡ قَتَلۡتُمۡ نَفۡسࣰا فَٱدَّ ٰ⁠رَ ٰٔۡ ⁠تُمۡ فِیهَاۖ وَٱللَّهُ مُخۡرِجࣱ مَّا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ ﴿72﴾

और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया - जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था

فَقُلۡنَا ٱضۡرِبُوهُ بِبَعۡضِهَاۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ یُحۡیِ ٱللَّهُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَیُرِیكُمۡ ءَایَـٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ﴿73﴾

तो हमने कहा, \"उसे उसके एक हिस्से से मारो।\" इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो

ثُمَّ قَسَتۡ قُلُوبُكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَ ٰ⁠لِكَ فَهِیَ كَٱلۡحِجَارَةِ أَوۡ أَشَدُّ قَسۡوَةࣰۚ وَإِنَّ مِنَ ٱلۡحِجَارَةِ لَمَا یَتَفَجَّرُ مِنۡهُ ٱلۡأَنۡهَـٰرُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا یَشَّقَّقُ فَیَخۡرُجُ مِنۡهُ ٱلۡمَاۤءُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا یَهۡبِطُ مِنۡ خَشۡیَةِ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿74﴾

फिर इसके पश्चात भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए बल्कि उनसे भी अधिक कठोर; क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते है जिनसे नहरें फूट निकलती है, और कुछ ऐसे भी होते है कि फट जाते है तो उनमें से पानी निकलने लगता है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है जो अल्लाह के भय से गिर जाते है। और अल्लाह, जो कुछ तुम कर रहे हो, उससे बेखबर नहीं है

۞ أَفَتَطۡمَعُونَ أَن یُؤۡمِنُوا۟ لَكُمۡ وَقَدۡ كَانَ فَرِیقࣱ مِّنۡهُمۡ یَسۡمَعُونَ كَلَـٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ یُحَرِّفُونَهُۥ مِنۢ بَعۡدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمۡ یَعۡلَمُونَ ﴿75﴾

तो क्या तुम इस लालच में हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे हैं, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे?

وَإِذَا لَقُوا۟ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ قَالُوۤا۟ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَا بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضࣲ قَالُوۤا۟ أَتُحَدِّثُونَهُم بِمَا فَتَحَ ٱللَّهُ عَلَیۡكُمۡ لِیُحَاۤجُّوكُم بِهِۦ عِندَ رَبِّكُمۡۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿76﴾

और जब वे ईमान लानेवाले से मिलते है तो कहते हैं, \"हम भी ईमान रखते हैं\", और जब आपस में एक-दूसरे से एकान्त में मिलते है तो कहते है, \"क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोली, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुक़ाबिला करें? तो क्या तुम समझते नहीं!\"

أَوَلَا یَعۡلَمُونَ أَنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا یُسِرُّونَ وَمَا یُعۡلِنُونَ ﴿77﴾

क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है, जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं?

وَمِنۡهُمۡ أُمِّیُّونَ لَا یَعۡلَمُونَ ٱلۡكِتَـٰبَ إِلَّاۤ أَمَانِیَّ وَإِنۡ هُمۡ إِلَّا یَظُنُّونَ ﴿78﴾

और उनमें सामान्य बेपढ़े भी हैं जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते हैं, और वे तो बस अटकल से काम लेते हैं

فَوَیۡلࣱ لِّلَّذِینَ یَكۡتُبُونَ ٱلۡكِتَـٰبَ بِأَیۡدِیهِمۡ ثُمَّ یَقُولُونَ هَـٰذَا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ لِیَشۡتَرُوا۟ بِهِۦ ثَمَنࣰا قَلِیلࣰاۖ فَوَیۡلࣱ لَّهُم مِّمَّا كَتَبَتۡ أَیۡدِیهِمۡ وَوَیۡلࣱ لَّهُم مِّمَّا یَكۡسِبُونَ ﴿79﴾

तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिए जो अपने हाथों से किताब लिखते हैं फिर कहते हैं, \"यह अल्लाह की ओर से है\", ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर लें। तो तबाही है उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे हैं

وَقَالُوا۟ لَن تَمَسَّنَا ٱلنَّارُ إِلَّاۤ أَیَّامࣰا مَّعۡدُودَةࣰۚ قُلۡ أَتَّخَذۡتُمۡ عِندَ ٱللَّهِ عَهۡدࣰا فَلَن یُخۡلِفَ ٱللَّهُ عَهۡدَهُۥۤۖ أَمۡ تَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿80﴾

वे कहते है, \"जहन्नम की आग हमें नहीं छू सकती, हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों की बात और है।\" कहो, \"क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले रखा है? फिर तो अल्लाह कदापि अपने वचन के विरुद्ध नहीं जा सकता? या तुम अल्लाह के ज़िम्मे डालकर ऐसी बात कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं?

بَلَىٰۚ مَن كَسَبَ سَیِّئَةࣰ وَأَحَـٰطَتۡ بِهِۦ خَطِیۤـَٔتُهُۥ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿81﴾

क्यों नहीं; जिसने भी कोई बदी कमाई और उसकी खताकारी ने उसे अपने घरे में ले लिया, तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है; वे उसी में सदैव रहेंगे

وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿82﴾

रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वही जन्नतवाले हैं, वे सदैव उसी में रहेंगे।\"

وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ لَا تَعۡبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ وَبِٱلۡوَ ٰ⁠لِدَیۡنِ إِحۡسَانࣰا وَذِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینِ وَقُولُوا۟ لِلنَّاسِ حُسۡنࣰا وَأَقِیمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ ثُمَّ تَوَلَّیۡتُمۡ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّنكُمۡ وَأَنتُم مُّعۡرِضُونَ ﴿83﴾

और याद करो जब इसराईल की सन्तान से हमने वचन लिया, \"अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करोगे; और माँ-बाप के साथ और नातेदारों के साथ और अनाथों और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे; और यह कि लोगों से भली बात कहो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो।\" तो तुम फिर गए, बस तुममें से बचे थोड़े ही, और तुम उपेक्षा की नीति ही अपनाए रहे

وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَكُمۡ لَا تَسۡفِكُونَ دِمَاۤءَكُمۡ وَلَا تُخۡرِجُونَ أَنفُسَكُم مِّن دِیَـٰرِكُمۡ ثُمَّ أَقۡرَرۡتُمۡ وَأَنتُمۡ تَشۡهَدُونَ ﴿84﴾

और याद करो जब तुमसे वचन लिया, \"अपने ख़ून न बहाओगे और न अपने लोगों को अपनी बस्तियों से निकालोगे।\" फिर तुमने इक़रार किया और तुम स्वयं इसके गवाह हो

ثُمَّ أَنتُمۡ هَـٰۤؤُلَاۤءِ تَقۡتُلُونَ أَنفُسَكُمۡ وَتُخۡرِجُونَ فَرِیقࣰا مِّنكُم مِّن دِیَـٰرِهِمۡ تَظَـٰهَرُونَ عَلَیۡهِم بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَ ٰ⁠نِ وَإِن یَأۡتُوكُمۡ أُسَـٰرَىٰ تُفَـٰدُوهُمۡ وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَیۡكُمۡ إِخۡرَاجُهُمۡۚ أَفَتُؤۡمِنُونَ بِبَعۡضِ ٱلۡكِتَـٰبِ وَتَكۡفُرُونَ بِبَعۡضࣲۚ فَمَا جَزَاۤءُ مَن یَفۡعَلُ ذَ ٰ⁠لِكَ مِنكُمۡ إِلَّا خِزۡیࣱ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ وَیَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ یُرَدُّونَ إِلَىٰۤ أَشَدِّ ٱلۡعَذَابِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿85﴾

फिर तुम वही हो कि अपने लोगों की हत्या करते हो और अपने ही एक गिरोह के लोगों को उनकी बस्तियों से निकालते हो; तुम गुनाह और ज़्यादती के साथ उनके विरुद्ध एक-दूसरे के पृष्ठपोषक बन जाते हो; और यदि वे बन्दी बनकर तुम्हारे पास आते है, तो उनकी रिहाई के लिए फिद्ए (अर्थदंड) का लेन-देन करते हो जबकि उनको उनके घरों से निकालना ही तुम पर हराम था, तो क्या तुम किताब के एक हिस्से को मानते हो और एक को नहीं मानते? फिर तुममें जो ऐसा करें उसका बदला इसके सिवा और क्या हो सकता है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो? और क़यामत के दिन ऐसे लोगों को कठोर से कठोर यातना की ओर फेर दिया जाएगा। अल्लाह उससे बेखबर नहीं है जो कुछ तुम कर रहे हो

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ ٱشۡتَرَوُا۟ ٱلۡحَیَوٰةَ ٱلدُّنۡیَا بِٱلۡـَٔاخِرَةِۖ فَلَا یُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ یُنصَرُونَ ﴿86﴾

यही वे लोग है जो आख़िरात के बदले सांसारिक जीवन के ख़रीदार हुए, तो न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें कोई सहायता पहुँच सकेगी

وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ وَقَفَّیۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِۦ بِٱلرُّسُلِۖ وَءَاتَیۡنَا عِیسَى ٱبۡنَ مَرۡیَمَ ٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَأَیَّدۡنَـٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ أَفَكُلَّمَا جَاۤءَكُمۡ رَسُولُۢ بِمَا لَا تَهۡوَىٰۤ أَنفُسُكُمُ ٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡ فَفَرِیقࣰا كَذَّبۡتُمۡ وَفَرِیقࣰا تَقۡتُلُونَ ﴿87﴾

और हमने मूसा को किताब दी थी, और उसके पश्चात आगे-पीछे निरन्तर रसूल भेजते रहे; और मरयम के बेटे ईसा को खुली-खुली निशानियाँ प्रदान की और पवित्र-आत्मा के द्वारा उसे शक्ति प्रदान की; तो यही तो हुआ कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह कुछ लेकर आया जो तुम्हारे जी को पसन्द न था, तो तुम अकड़ बैठे, तो एक गिरोह को तो तुमने झुठलाया और एक गिरोह को क़त्ल करते हो?

وَقَالُوا۟ قُلُوبُنَا غُلۡفُۢۚ بَل لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفۡرِهِمۡ فَقَلِیلࣰا مَّا یُؤۡمِنُونَ ﴿88﴾

वे कहते हैं, \"हमारे दिलों पर तो प्राकृतिक आवरण चढ़े है\" नहीं, बल्कि उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनपर लानत की है; अतः वे ईमान थोड़े ही लाएँगे

وَلَمَّا جَاۤءَهُمۡ كِتَـٰبࣱ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقࣱ لِّمَا مَعَهُمۡ وَكَانُوا۟ مِن قَبۡلُ یَسۡتَفۡتِحُونَ عَلَى ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ فَلَمَّا جَاۤءَهُم مَّا عَرَفُوا۟ كَفَرُوا۟ بِهِۦۚ فَلَعۡنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿89﴾

और जब उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकी पुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है - और इससे पहले तो वे न माननेवाले लोगों पर विजय पाने के इच्छुक रहे है - फिर जब वह चीज़ उनके पास आ गई जिसे वे पहचान भी गए हैं, तो उसका इनकार कर बैठे; तो अल्लाह की फिटकार इनकार करने वालों पर!

بِئۡسَمَا ٱشۡتَرَوۡا۟ بِهِۦۤ أَنفُسَهُمۡ أَن یَكۡفُرُوا۟ بِمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ بَغۡیًا أَن یُنَزِّلَ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ عَلَىٰ مَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۖ فَبَاۤءُو بِغَضَبٍ عَلَىٰ غَضَبࣲۚ وَلِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابࣱ مُّهِینࣱ ﴿90﴾

क्या ही बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसे सरकशी और इस अप्रियता के कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फ़ज़्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है क्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए है। और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है

وَإِذَا قِیلَ لَهُمۡ ءَامِنُوا۟ بِمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُوا۟ نُؤۡمِنُ بِمَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡنَا وَیَكۡفُرُونَ بِمَا وَرَاۤءَهُۥ وَهُوَ ٱلۡحَقُّ مُصَدِّقࣰا لِّمَا مَعَهُمۡۗ قُلۡ فَلِمَ تَقۡتُلُونَ أَنۢبِیَاۤءَ ٱللَّهِ مِن قَبۡلُ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿91﴾

जब उनसे कहा जाता है, \"अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उस पर ईमान लाओ\", तो कहते है, \"हम तो उसपर ईमान रखते है जो हम पर उतरा है,\" और उसे मानने से इनकार करते हैं जो उसके पीछे है, जबकि वही सत्य है, उसकी पुष्टि करता है जो उसके पास है। कहो, \"अच्छा तो इससे पहले अल्लाह के पैग़म्बरों की हत्या क्यों करते रहे हो, यदि तुम ईमानवाले हो?\"

۞ وَلَقَدۡ جَاۤءَكُم مُّوسَىٰ بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَـٰلِمُونَ ﴿92﴾

तुम्हारे पास मूसा खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया, फिर भी उसके बाद तुम ज़ालिम बनकर बछड़े को देवता बना बैठे

وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِیثَـٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُوا۟ مَاۤ ءَاتَیۡنَـٰكُم بِقُوَّةࣲ وَٱسۡمَعُوا۟ۖ قَالُوا۟ سَمِعۡنَا وَعَصَیۡنَا وَأُشۡرِبُوا۟ فِی قُلُوبِهِمُ ٱلۡعِجۡلَ بِكُفۡرِهِمۡۚ قُلۡ بِئۡسَمَا یَأۡمُرُكُم بِهِۦۤ إِیمَـٰنُكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿93﴾

कहो, \"यदि अल्लाह के निकट आख़िरत का घर सारे इनसानों को छोड़कर केवल तुम्हारे ही लिए है, फिर तो मृत्यु की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।\"

قُلۡ إِن كَانَتۡ لَكُمُ ٱلدَّارُ ٱلۡـَٔاخِرَةُ عِندَ ٱللَّهِ خَالِصَةࣰ مِّن دُونِ ٱلنَّاسِ فَتَمَنَّوُا۟ ٱلۡمَوۡتَ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿94﴾

अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है

وَلَن یَتَمَنَّوۡهُ أَبَدَۢا بِمَا قَدَّمَتۡ أَیۡدِیهِمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِیمُۢ بِٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿95﴾

अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो जालिमों को भली-भाँति जानता है

وَلَتَجِدَنَّهُمۡ أَحۡرَصَ ٱلنَّاسِ عَلَىٰ حَیَوٰةࣲ وَمِنَ ٱلَّذِینَ أَشۡرَكُوا۟ۚ یَوَدُّ أَحَدُهُمۡ لَوۡ یُعَمَّرُ أَلۡفَ سَنَةࣲ وَمَا هُوَ بِمُزَحۡزِحِهِۦ مِنَ ٱلۡعَذَابِ أَن یُعَمَّرَۗ وَٱللَّهُ بَصِیرُۢ بِمَا یَعۡمَلُونَ ﴿96﴾

तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर जीवन का लोभी पाओगे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में शिर्क करनेवालो से भी बढ़े हुए है। उनका तो प्रत्येक व्यक्ति यह इच्छा रखता है कि क्या ही अच्छा होता कि उस हज़ार वर्ष की आयु मिले, जबकि यदि उसे यह आयु प्राप्त भी जाए, तो भी वह अपने आपको यातना से नहीं बचा सकता। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे कर रहे है

قُلۡ مَن كَانَ عَدُوࣰّا لِّجِبۡرِیلَ فَإِنَّهُۥ نَزَّلَهُۥ عَلَىٰ قَلۡبِكَ بِإِذۡنِ ٱللَّهِ مُصَدِّقࣰا لِّمَا بَیۡنَ یَدَیۡهِ وَهُدࣰى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿97﴾

कहो, \"जो कोई जिबरील का शत्रु हो, (तो वह अल्लाह का शत्रु है) क्योंकि उसने तो उसे अल्लाह ही के हुक्म से तम्हारे दिल पर उतारा है, जो उन (भविष्यवाणियों) के सर्वथा अनुकूल है जो उससे पहले से मौजूद हैं; और ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और शुभ-सूचना है

مَن كَانَ عَدُوࣰّا لِّلَّهِ وَمَلَـٰۤىِٕكَتِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَجِبۡرِیلَ وَمِیكَىٰلَ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَدُوࣱّ لِّلۡكَـٰفِرِینَ ﴿98﴾

जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।\"

وَلَقَدۡ أَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكَ ءَایَـٰتِۭ بَیِّنَـٰتࣲۖ وَمَا یَكۡفُرُ بِهَاۤ إِلَّا ٱلۡفَـٰسِقُونَ ﴿99﴾

और हमने तुम्हारी ओर खुली-खुली आयतें उतारी है और उनका इनकार तो बस वही लोग करते हैस जो उल्लंघनकारी हैं

أَوَكُلَّمَا عَـٰهَدُوا۟ عَهۡدࣰا نَّبَذَهُۥ فَرِیقࣱ مِّنۡهُمۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿100﴾

क्या यह एक निश्चित नीति है कि जब कि उन्होंने कोई वचन दिया तो उनके एक गिरोह ने उसे उठा फेंका? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान ही नहीं रखते

وَلَمَّا جَاۤءَهُمۡ رَسُولࣱ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقࣱ لِّمَا مَعَهُمۡ نَبَذَ فَرِیقࣱ مِّنَ ٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡكِتَـٰبَ كِتَـٰبَ ٱللَّهِ وَرَاۤءَ ظُهُورِهِمۡ كَأَنَّهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿101﴾

और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल आया, जिससे उस (भविष्यवाणी) की पुष्टि हो रही है जो उनके पास थी, तो उनके एक गिरोह ने, जिन्हें किताब मिली थी, अल्लाह की किताब को अपने पीठ पीछे डाल दिया, मानो वे कुछ जानते ही नही

وَٱتَّبَعُوا۟ مَا تَتۡلُوا۟ ٱلشَّیَـٰطِینُ عَلَىٰ مُلۡكِ سُلَیۡمَـٰنَۖ وَمَا كَفَرَ سُلَیۡمَـٰنُ وَلَـٰكِنَّ ٱلشَّیَـٰطِینَ كَفَرُوا۟ یُعَلِّمُونَ ٱلنَّاسَ ٱلسِّحۡرَ وَمَاۤ أُنزِلَ عَلَى ٱلۡمَلَكَیۡنِ بِبَابِلَ هَـٰرُوتَ وَمَـٰرُوتَۚ وَمَا یُعَلِّمَانِ مِنۡ أَحَدٍ حَتَّىٰ یَقُولَاۤ إِنَّمَا نَحۡنُ فِتۡنَةࣱ فَلَا تَكۡفُرۡۖ فَیَتَعَلَّمُونَ مِنۡهُمَا مَا یُفَرِّقُونَ بِهِۦ بَیۡنَ ٱلۡمَرۡءِ وَزَوۡجِهِۦۚ وَمَا هُم بِضَاۤرِّینَ بِهِۦ مِنۡ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَیَتَعَلَّمُونَ مَا یَضُرُّهُمۡ وَلَا یَنفَعُهُمۡۚ وَلَقَدۡ عَلِمُوا۟ لَمَنِ ٱشۡتَرَىٰهُ مَا لَهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ مِنۡ خَلَـٰقࣲۚ وَلَبِئۡسَ مَا شَرَوۡا۟ بِهِۦۤ أَنفُسَهُمۡۚ لَوۡ كَانُوا۟ یَعۡلَمُونَ ﴿102﴾

और जो वे उस चीज़ के पीछे पड़ गए जिसे शैतान सुलैमान की बादशाही पर थोपकर पढ़ते थे - हालाँकि सुलैमान ने कोई कुफ़्र नहीं किया था, बल्कि कुफ़्र तो शैतानों ने किया था; वे लोगों को जादू सिखाते थे - और उस चीज़ में पड़ गए जो बाबिल में दोनों फ़रिश्तों हारूत और मारूत पर उतारी गई थी। और वे किसी को भी सिखाते न थे जब तक कि कह न देते, \"हम तो बस एक परीक्षा है; तो तुम कुफ़्र में न पड़ना।\" तो लोग उन दोनों से वह कुछ सीखते है, जिसके द्वारा पति और पत्नी में अलगाव पैदा कर दे - यद्यपि वे उससे किसी को भी हानि नहीं पहुँचा सकते थे। हाँ, यह और बात है कि अल्लाह के हुक्म से किसी को हानि पहुँचनेवाली ही हो - और वह कुछ सीखते है जो उन्हें हानि ही पहुँचाए और उन्हें कोई लाभ न पहुँचाए। और उन्हें भली-भाँति मालूम है कि जो उसका ग्राहक बना, उसका आखिरत में कोई हिस्सा नहीं। कितनी बुरी चीज़ के बदले उन्होंने प्राणों का सौदा किया, यदि वे जानते (तो ठीक मार्ग अपनाते)

وَلَوۡ أَنَّهُمۡ ءَامَنُوا۟ وَٱتَّقَوۡا۟ لَمَثُوبَةࣱ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ خَیۡرࣱۚ لَّوۡ كَانُوا۟ یَعۡلَمُونَ ﴿103﴾

और यदि वे ईमान लाते और डर रखते, तो अल्लाह के यहाँ से मिलनेवाला बदला कहीं अच्छा था, यदि वे जानते (तो इसे समझ सकते)

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَا تَقُولُوا۟ رَ ٰ⁠عِنَا وَقُولُوا۟ ٱنظُرۡنَا وَٱسۡمَعُوا۟ۗ وَلِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿104﴾

ऐ ईमान लानेवालो! 'राइना' न कहा करो, बल्कि 'उनज़ुरना' कहा और सुना करो। और इनकार करनेवालों के लिए दुखद यातना है

مَّا یَوَدُّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَـٰبِ وَلَا ٱلۡمُشۡرِكِینَ أَن یُنَزَّلَ عَلَیۡكُم مِّنۡ خَیۡرࣲ مِّن رَّبِّكُمۡۚ وَٱللَّهُ یَخۡتَصُّ بِرَحۡمَتِهِۦ مَن یَشَاۤءُۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿105﴾

इनकार करनेवाले नहीं चाहते, न किताबवाले और न मुशरिक (बहुदेववादी) कि तुम्हारे रब की ओर से तुमपर कोई भलाई उतरे, हालाँकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता के लिए ख़ास कर ले; अल्लाह बड़ा अनुग्रह करनेवाला है

۞ مَا نَنسَخۡ مِنۡ ءَایَةٍ أَوۡ نُنسِهَا نَأۡتِ بِخَیۡرࣲ مِّنۡهَاۤ أَوۡ مِثۡلِهَاۤۗ أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿106﴾

हम जिस आयत (और निशान) को भी मिटा दें या उसे भुला देते है, तो उससे बेहतर लाते है या उस जैसा दूसरा ही। क्या तुम नहीं जानते हो कि अल्लाह को हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है?

أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرٍ ﴿107﴾

क्या तुम नहीं जानते कि आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है और अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक?

أَمۡ تُرِیدُونَ أَن تَسۡـَٔلُوا۟ رَسُولَكُمۡ كَمَا سُىِٕلَ مُوسَىٰ مِن قَبۡلُۗ وَمَن یَتَبَدَّلِ ٱلۡكُفۡرَ بِٱلۡإِیمَـٰنِ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَاۤءَ ٱلسَّبِیلِ ﴿108﴾

(ऐ ईमानवालों! तुम अपने रसूल के आदर का ध्यान रखो) या तुम चाहते हो कि अपने रसूल से उसी प्रकार से प्रश्न और बात करो, जिस प्रकार इससे पहले मूसा से बात की गई है? हालाँकि जिस व्यक्ति न ईमान के बदले इनकार की नीति अपनाई, तो वह सीधे रास्ते से भटक गया

وَدَّ كَثِیرࣱ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَـٰبِ لَوۡ یَرُدُّونَكُم مِّنۢ بَعۡدِ إِیمَـٰنِكُمۡ كُفَّارًا حَسَدࣰا مِّنۡ عِندِ أَنفُسِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُمُ ٱلۡحَقُّۖ فَٱعۡفُوا۟ وَٱصۡفَحُوا۟ حَتَّىٰ یَأۡتِیَ ٱللَّهُ بِأَمۡرِهِۦۤۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿109﴾

बहुत-से किताबवाले अपने भीतर की ईर्ष्या से चाहते है कि किसी प्रकार वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फेरकर तुम्हे इनकार कर देनेवाला बना दें, यद्यपि सत्य उनपर प्रकट हो चुका है, तो तुम दरगुज़र (क्षमा) से काम लो और जाने दो यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला लागू न कर दे। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

وَأَقِیمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَۚ وَمَا تُقَدِّمُوا۟ لِأَنفُسِكُم مِّنۡ خَیۡرࣲ تَجِدُوهُ عِندَ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿110﴾

और नमाज़ कायम करो और ज़कात दो और तुम स्वयं अपने लिए जो भलाई भी पेश करोगे, उसे अल्लाह के यहाँ मौजूद पाओगे। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है

وَقَالُوا۟ لَن یَدۡخُلَ ٱلۡجَنَّةَ إِلَّا مَن كَانَ هُودًا أَوۡ نَصَـٰرَىٰۗ تِلۡكَ أَمَانِیُّهُمۡۗ قُلۡ هَاتُوا۟ بُرۡهَـٰنَكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿111﴾

और उनका कहना है, \"कोई व्यक्ति जन्नत में प्रवेश नहीं करता सिवाय उससे जो यहूदी है या ईसाई है।\" ये उनकी अपनी निराधार कामनाएँ है। कहो, \"यदि तुम सच्चे हो तो अपने प्रमाण पेश करो।\"

بَلَىٰۚ مَنۡ أَسۡلَمَ وَجۡهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنࣱ فَلَهُۥۤ أَجۡرُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿112﴾

क्यों नहीं, जिसने भी अपने-आपको अल्लाह के प्रति समर्पित कर दिया और उसका कर्म भी अच्छे से अच्छा हो तो उसका प्रतिदान उसके रब के पास है और ऐसे लोगो के लिए न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे

وَقَالَتِ ٱلۡیَهُودُ لَیۡسَتِ ٱلنَّصَـٰرَىٰ عَلَىٰ شَیۡءࣲ وَقَالَتِ ٱلنَّصَـٰرَىٰ لَیۡسَتِ ٱلۡیَهُودُ عَلَىٰ شَیۡءࣲ وَهُمۡ یَتۡلُونَ ٱلۡكِتَـٰبَۗ كَذَ ٰ⁠لِكَ قَالَ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡلَمُونَ مِثۡلَ قَوۡلِهِمۡۚ فَٱللَّهُ یَحۡكُمُ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ فِیمَا كَانُوا۟ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿113﴾

यहूदियों ने कहा, \"ईसाईयों की कोई बुनियाद नहीं।\" और ईसाइयों ने कहा, \"यहूदियों की कोई बुनियाद नहीं।\" हालाँकि वे किताब का पाठ करते है। इसी तरह की बात उन्होंने भी कही है जो ज्ञान से वंचित है। तो अल्लाह क़यामत के दिन उनके बीच उस चीज़ के विषय में निर्णय कर देगा, जिसके विषय में वे विभेद कर रहे है

وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن مَّنَعَ مَسَـٰجِدَ ٱللَّهِ أَن یُذۡكَرَ فِیهَا ٱسۡمُهُۥ وَسَعَىٰ فِی خَرَابِهَاۤۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ مَا كَانَ لَهُمۡ أَن یَدۡخُلُوهَاۤ إِلَّا خَاۤىِٕفِینَۚ لَهُمۡ فِی ٱلدُّنۡیَا خِزۡیࣱ وَلَهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿114﴾

और उससे बढ़कर अत्याचारी और कौन होगा जिसने अल्लाह की मस्जिदों को उसके नाम के स्मरण से वंचित रखा और उन्हें उजाडने पर उतारू रहा? ऐसे लोगों को तो बस डरते हुए ही उसमें प्रवेश करना चाहिए था। उनके लिए संसार में रुसवाई (अपमान) है और उनके लिए आख़िरत में बड़ी यातना नियत है

وَلِلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ فَأَیۡنَمَا تُوَلُّوا۟ فَثَمَّ وَجۡهُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ وَ ٰ⁠سِعٌ عَلِیمࣱ ﴿115﴾

पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, अतः जिस ओर भी तुम रुख करो उसी ओर अल्लाह का रुख़ है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा समाईवाला (सर्वव्यापी) सर्वज्ञ है

وَقَالُوا۟ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدࣰاۗ سُبۡحَـٰنَهُۥۖ بَل لَّهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۖ كُلࣱّ لَّهُۥ قَـٰنِتُونَ ﴿116﴾

कहते है, अल्लाह औलाद रखता है - महिमावाला है वह! (पूरब और पश्चिम हीं नहीं, बल्कि) आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, उसी का है। सभी उसके आज्ञाकारी है

بَدِیعُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَإِذَا قَضَىٰۤ أَمۡرࣰا فَإِنَّمَا یَقُولُ لَهُۥ كُن فَیَكُونُ ﴿117﴾

वह आकाशों और धरती का प्रथमतः पैदा करनेवाला है। वह तो जब किसी काम का निर्णय करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि \"हो जा\" और वह हो जाता है

وَقَالَ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡلَمُونَ لَوۡلَا یُكَلِّمُنَا ٱللَّهُ أَوۡ تَأۡتِینَاۤ ءَایَةࣱۗ كَذَ ٰ⁠لِكَ قَالَ ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِم مِّثۡلَ قَوۡلِهِمۡۘ تَشَـٰبَهَتۡ قُلُوبُهُمۡۗ قَدۡ بَیَّنَّا ٱلۡـَٔایَـٰتِ لِقَوۡمࣲ یُوقِنُونَ ﴿118﴾

जिन्हें ज्ञान नहीं हैं, वे कहते है, \"अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता? या कोई निशानी हमारे पास आ जाए।\" इसी प्रकार इनसे पहले के लोग भी कह चुके है। इन सबके दिल एक जैसे है। हम खोल-खोलकर निशानियाँ उन लोगों के लिए बयान कर चुके है जो विश्वास करें

إِنَّاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ بِٱلۡحَقِّ بَشِیرࣰا وَنَذِیرࣰاۖ وَلَا تُسۡـَٔلُ عَنۡ أَصۡحَـٰبِ ٱلۡجَحِیمِ ﴿119﴾

निश्चित रूप से हमने तुम्हें हक़ के साथ शुभ-सूचना देनेवाला और डरानेवाला बनाकर भेजा। भड़कती आग में पड़नेवालों के विषय में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा

وَلَن تَرۡضَىٰ عَنكَ ٱلۡیَهُودُ وَلَا ٱلنَّصَـٰرَىٰ حَتَّىٰ تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمۡۗ قُلۡ إِنَّ هُدَى ٱللَّهِ هُوَ ٱلۡهُدَىٰۗ وَلَىِٕنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَاۤءَهُم بَعۡدَ ٱلَّذِی جَاۤءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرٍ ﴿120﴾

न यहूदी तुमसे कभी राज़ी होनेवाले है और न ईसाई जब तक कि तुम अनके पंथ पर न चलने लग जाओ। कह दो, \"अल्लाह का मार्गदर्शन ही वास्तविक मार्गदर्शन है।\" और यदि उस ज्ञान के पश्चात जो तुम्हारे पास आ चुका है, तुमने उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो अल्लाह से बचानेवाला न तो तुम्हारा कोई मित्र होगा और न सहायक

ٱلَّذِینَ ءَاتَیۡنَـٰهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ یَتۡلُونَهُۥ حَقَّ تِلَاوَتِهِۦۤ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُؤۡمِنُونَ بِهِۦۗ وَمَن یَكۡفُرۡ بِهِۦ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿121﴾

जिन लोगों को हमने किताब दी है उनमें वे लोग जो उसे उस तरह पढ़ते है जैसा कि उसके पढ़ने का हक़ है, वही उसपर ईमान ला रहे है, और जो उसका इनकार करेंगे, वही घाटे में रहनेवाले है

یَـٰبَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ ٱذۡكُرُوا۟ نِعۡمَتِیَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ وَأَنِّی فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿122﴾

ऐ इसराईल की सन्तान! मेरी उस कृपा को याद करो जो मैंने तुमपर की थी और यह कि मैंने तुम्हें संसारवालों पर श्रेष्ठता प्रदान की

وَٱتَّقُوا۟ یَوۡمࣰا لَّا تَجۡزِی نَفۡسٌ عَن نَّفۡسࣲ شَیۡـࣰٔا وَلَا یُقۡبَلُ مِنۡهَا عَدۡلࣱ وَلَا تَنفَعُهَا شَفَـٰعَةࣱ وَلَا هُمۡ یُنصَرُونَ ﴿123﴾

और उस दिन से डरो, जब कोई न किसी के काम आएगा, न किसी की ओर से अर्थदंड स्वीकार किया जाएगा, और न कोई सिफ़ारिश ही उसे लाभ पहुँचा सकेगी, और न उनको कोई सहायता ही पहुँच सकेगी

۞ وَإِذِ ٱبۡتَلَىٰۤ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ رَبُّهُۥ بِكَلِمَـٰتࣲ فَأَتَمَّهُنَّۖ قَالَ إِنِّی جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامࣰاۖ قَالَ وَمِن ذُرِّیَّتِیۖ قَالَ لَا یَنَالُ عَهۡدِی ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿124﴾

और याद करो जब इबराहीम की उसके रब से कुछ बातों में परीक्षा ली तो उसने उसको पूरा कर दिखाया। उसने कहा, \"मैं तुझे सारे इनसानों का पेशवा बनानेवाला हूँ।\" उसने निवेदन किया, \" और मेरी सन्तान में भी।\" उसने कहा, \"ज़ालिम मेरे इस वादे के अन्तर्गत नहीं आ सकते।\"

وَإِذۡ جَعَلۡنَا ٱلۡبَیۡتَ مَثَابَةࣰ لِّلنَّاسِ وَأَمۡنࣰا وَٱتَّخِذُوا۟ مِن مَّقَامِ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ مُصَلࣰّىۖ وَعَهِدۡنَاۤ إِلَىٰۤ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ أَن طَهِّرَا بَیۡتِیَ لِلطَّاۤىِٕفِینَ وَٱلۡعَـٰكِفِینَ وَٱلرُّكَّعِ ٱلسُّجُودِ ﴿125﴾

और याद करो जब हमने इस घर (काबा) को लोगों को लिए केन्द्र और शान्तिस्थल बनाया - और, \"इबराहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो!\" - और इबराहीम और इसमाईल को ज़िम्मेदार बनाया। \"तुम मेरे इस घर को तवाफ़ करनेवालों और एतिकाफ़ करनेवालों के लिए और रुकू और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखो।\"

وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمُ رَبِّ ٱجۡعَلۡ هَـٰذَا بَلَدًا ءَامِنࣰا وَٱرۡزُقۡ أَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِ مَنۡ ءَامَنَ مِنۡهُم بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۚ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُۥ قَلِیلࣰا ثُمَّ أَضۡطَرُّهُۥۤ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلنَّارِۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿126﴾

और याद करो जब इबराहीम ने कहा, \"ऐ मेरे रब! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासियों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएँ।\" कहा, \"और जो इनकार करेगा थोड़ा फ़ायदा तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत-ही बुरा ठिकाना है!\"

وَإِذۡ یَرۡفَعُ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمُ ٱلۡقَوَاعِدَ مِنَ ٱلۡبَیۡتِ وَإِسۡمَـٰعِیلُ رَبَّنَا تَقَبَّلۡ مِنَّاۤۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿127﴾

और याद करो जब इबराहीम और इसमाईल इस घर की बुनियादें उठा रहे थे, (तो उन्होंने प्रार्थना की), \"ऐ हमारे रब! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले, निस्संदेह तू सुनता-जानता है

رَبَّنَا وَٱجۡعَلۡنَا مُسۡلِمَیۡنِ لَكَ وَمِن ذُرِّیَّتِنَاۤ أُمَّةࣰ مُّسۡلِمَةࣰ لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبۡ عَلَیۡنَاۤۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿128﴾

ऐ हमारे रब! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना; और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा क़बूल कर। निस्संदेह तू तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है

رَبَّنَا وَٱبۡعَثۡ فِیهِمۡ رَسُولࣰا مِّنۡهُمۡ یَتۡلُوا۟ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتِكَ وَیُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَیُزَكِّیهِمۡۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿129﴾

ऐ हमारे रब! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे। निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

وَمَن یَرۡغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ إِلَّا مَن سَفِهَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَقَدِ ٱصۡطَفَیۡنَـٰهُ فِی ٱلدُّنۡیَاۖ وَإِنَّهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿130﴾

कौन है जो इबराहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने दुनिया में चुन लिया था और निस्संदेह आख़िरत में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी

إِذۡ قَالَ لَهُۥ رَبُّهُۥۤ أَسۡلِمۡۖ قَالَ أَسۡلَمۡتُ لِرَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿131﴾

क्योंकि जब उससे रब ने कहा, \"मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो जा।\" उसने कहा, \"मैं सारे संसार के रब का मुस्लिम हो गया।\"

وَوَصَّىٰ بِهَاۤ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمُ بَنِیهِ وَیَعۡقُوبُ یَـٰبَنِیَّ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰ لَكُمُ ٱلدِّینَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسۡلِمُونَ ﴿132﴾

और इसी की वसीयत इबराहीम ने अपने बेटों को की और याक़ूब ने भी (अपनी सन्तानों को की) कि, \"ऐ मेरे बेटों! अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही दीन (धर्म) चुना है, तो इस्लाम (ईश-आज्ञापालन) को अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारी मृत्यु न हो।\"

أَمۡ كُنتُمۡ شُهَدَاۤءَ إِذۡ حَضَرَ یَعۡقُوبَ ٱلۡمَوۡتُ إِذۡ قَالَ لِبَنِیهِ مَا تَعۡبُدُونَ مِنۢ بَعۡدِیۖ قَالُوا۟ نَعۡبُدُ إِلَـٰهَكَ وَإِلَـٰهَ ءَابَاۤىِٕكَ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ وَإِسۡحَـٰقَ إِلَـٰهࣰا وَ ٰ⁠حِدࣰا وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ﴿133﴾

(क्या तुम इबराहीम के वसीयत करते समय मौजूद थे? या तुम मौजूद थे जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया? जब उसने बेटों से कहा, \"तुम मेरे पश्चात किसकी इबादत करोगे?\" उन्होंने कहा, \"हम आपके इष्ट-पूज्य और आपके पूर्वज इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ के इष्ट-पूज्य की बन्दगी करेंगे - जो अकेला इष्ट-पूज्य है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।\"

تِلۡكَ أُمَّةࣱ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿134﴾

वह एक गिरोह था जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसका है, और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारा है। और जो कुछ वे करते रहे उसके विषय में तुमसे कोई पूछताछ न की जाएगी

وَقَالُوا۟ كُونُوا۟ هُودًا أَوۡ نَصَـٰرَىٰ تَهۡتَدُوا۟ۗ قُلۡ بَلۡ مِلَّةَ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ حَنِیفࣰاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِینَ ﴿135﴾

वे कहते हैं, \"यहूदी या ईसाई हो जाओ तो मार्ग पर लोगे।\" कहो, \"नहीं, बल्कि इबराहीम का पंथ अपनाओ जो एक (अल्लाह) का हो गया था, और वह बहुदेववादियों में से न था।\"

قُولُوۤا۟ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡنَا وَمَاۤ أُنزِلَ إِلَىٰۤ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ وَإِسۡحَـٰقَ وَیَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَمَاۤ أُوتِیَ مُوسَىٰ وَعِیسَىٰ وَمَاۤ أُوتِیَ ٱلنَّبِیُّونَ مِن رَّبِّهِمۡ لَا نُفَرِّقُ بَیۡنَ أَحَدࣲ مِّنۡهُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ﴿136﴾

कहो, \"हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमारी ओर से उतरी और जो इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उसकी संतान की ओर उतरी, और जो मूसा और ईसा को मिली, और जो सभी नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान की गई। हम उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम केवल उसी के आज्ञाकारी हैं।\"

فَإِنۡ ءَامَنُوا۟ بِمِثۡلِ مَاۤ ءَامَنتُم بِهِۦ فَقَدِ ٱهۡتَدَوا۟ۖ وَّإِن تَوَلَّوۡا۟ فَإِنَّمَا هُمۡ فِی شِقَاقࣲۖ فَسَیَكۡفِیكَهُمُ ٱللَّهُۚ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿137﴾

फिर यदि वे उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो उन्होंने मार्ग पा लिया। और यदि वे मुँह मोड़े, तो फिर वही विरोध में पड़े हुए है। अतः तुम्हारी जगह स्वयं अल्लाह उनसे निबटने के लिए काफ़ी है; वह सब कुछ सुनता, जानता है

صِبۡغَةَ ٱللَّهِ وَمَنۡ أَحۡسَنُ مِنَ ٱللَّهِ صِبۡغَةࣰۖ وَنَحۡنُ لَهُۥ عَـٰبِدُونَ ﴿138﴾

(कहो,) \"अल्लाह का रंग ग्रहण करो, उसके रंग से अच्छा और किसका रंह हो सकता है? और हम तो उसी की बन्दगी करते हैं।\"

قُلۡ أَتُحَاۤجُّونَنَا فِی ٱللَّهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمۡ وَلَنَاۤ أَعۡمَـٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَـٰلُكُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُخۡلِصُونَ ﴿139﴾

कहो, \"क्या तुम अल्लाह के विषय में हमसे झगड़ते हो, हालाँकि वही हमारा रब भी है, और तुम्हारा रब भी? और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। और हम तो बस निरे उसी के है।\"

أَمۡ تَقُولُونَ إِنَّ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ وَإِسۡمَـٰعِیلَ وَإِسۡحَـٰقَ وَیَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطَ كَانُوا۟ هُودًا أَوۡ نَصَـٰرَىٰۗ قُلۡ ءَأَنتُمۡ أَعۡلَمُ أَمِ ٱللَّهُۗ وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَتَمَ شَهَـٰدَةً عِندَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿140﴾

या तुम कहते हो कि इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उनकी संतान सब के सब यहूदी या ईसाई थे? कहो, \"तुम अधिक जानते हो या अल्लाह? और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जिसके पास अल्लाह की ओर से आई हुई कोई गवाही हो, और वह उसे छिपाए? और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेखबर नहीं है।\"

تِلۡكَ أُمَّةࣱ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿141﴾

वह एक गिरोह थो जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसके लिए है और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारे लिए है। और तुमसे उसके विषय में न पूछा जाएगा, जो कुछ वे करते रहे है

۞ سَیَقُولُ ٱلسُّفَهَاۤءُ مِنَ ٱلنَّاسِ مَا وَلَّىٰهُمۡ عَن قِبۡلَتِهِمُ ٱلَّتِی كَانُوا۟ عَلَیۡهَاۚ قُل لِّلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ یَهۡدِی مَن یَشَاۤءُ إِلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿142﴾

मूर्ख लोग अब कहेंगे, \"उन्हें उनके उस क़िबले (उपासना-दिशा) से, जिस पर वे थे किस ची़ज़ ने फेर दिया?\" कहो, \"पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, वह जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है।\"

وَكَذَ ٰ⁠لِكَ جَعَلۡنَـٰكُمۡ أُمَّةࣰ وَسَطࣰا لِّتَكُونُوا۟ شُهَدَاۤءَ عَلَى ٱلنَّاسِ وَیَكُونَ ٱلرَّسُولُ عَلَیۡكُمۡ شَهِیدࣰاۗ وَمَا جَعَلۡنَا ٱلۡقِبۡلَةَ ٱلَّتِی كُنتَ عَلَیۡهَاۤ إِلَّا لِنَعۡلَمَ مَن یَتَّبِعُ ٱلرَّسُولَ مِمَّن یَنقَلِبُ عَلَىٰ عَقِبَیۡهِۚ وَإِن كَانَتۡ لَكَبِیرَةً إِلَّا عَلَى ٱلَّذِینَ هَدَى ٱللَّهُۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِیُضِیعَ إِیمَـٰنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِٱلنَّاسِ لَرَءُوفࣱ رَّحِیمࣱ ﴿143﴾

और इसी प्रकार हमने तुम्हें बीच का एक उत्तम समुदाय बनाया है, ताकि तुम सारे मनुष्यों पर गवाह हो, और रसूल तुमपर गवाह हो। और जिस (क़िबले) पर तुम रहे हो उसे तो हमने केवल इसलिए क़िबला बनाया था कि जो लोग पीठ-पीछे फिर जानेवाले है, उनसे हम उनको अलग जान लें जो रसूल का अनुसरण करते है। और यह बात बहुत भारी (अप्रिय) है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिन्हें अल्लाह ने मार्ग दिखाया है। और अल्लाह ऐसा नहीं कि वह तुम्हारे ईमान को अकारथ कर दे, अल्लाह तो इनसानों के लिए अत्यन्त करूणामय, दयावान है

قَدۡ نَرَىٰ تَقَلُّبَ وَجۡهِكَ فِی ٱلسَّمَاۤءِۖ فَلَنُوَلِّیَنَّكَ قِبۡلَةࣰ تَرۡضَىٰهَاۚ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَیۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّوا۟ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥۗ وَإِنَّ ٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡكِتَـٰبَ لَیَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا یَعۡمَلُونَ ﴿144﴾

हम आकाश में तुम्हारे मुँह की गर्दिश देख रहे है, तो हम अवश्य ही तुम्हें उसी क़िबले का अधिकारी बना देंगे जिसे तुम पसन्द करते हो। अतः मस्जिदे हराम (काबा) की ओर अपना रूख़ करो। और जहाँ कहीं भी हो अपने मुँह उसी की ओर करो - निश्चय ही जिन लोगों को किताब मिली थी, वे भली-भाँति जानते है कि वही उनके रब की ओर से हक़ है, इसके बावजूद जो कुछ वे कर रहे है अल्लाह उससे बेखबर नहीं है

وَلَىِٕنۡ أَتَیۡتَ ٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡكِتَـٰبَ بِكُلِّ ءَایَةࣲ مَّا تَبِعُوا۟ قِبۡلَتَكَۚ وَمَاۤ أَنتَ بِتَابِعࣲ قِبۡلَتَهُمۡۚ وَمَا بَعۡضُهُم بِتَابِعࣲ قِبۡلَةَ بَعۡضࣲۚ وَلَىِٕنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَاۤءَهُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ إِنَّكَ إِذࣰا لَّمِنَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿145﴾

यदि तुम उन लोगों के पास, जिन्हें किताब दी गई थी, कोई भी निशानी ले आओ, फिर भी वे तुम्हारे क़िबले का अनुसरण नहीं करेंगे और तुम भी उसके क़िबले का अनुसरण करने वाले नहीं हो। और वे स्वयं परस्पर एक-दूसरे के क़िबले का अनुसरण करनेवाले नहीं हैं। और यदि तुमने उस ज्ञान के पश्चात, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो निश्चय ही तुम्हारी गणना ज़ालिमों में होगी

ٱلَّذِینَ ءَاتَیۡنَـٰهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ یَعۡرِفُونَهُۥ كَمَا یَعۡرِفُونَ أَبۡنَاۤءَهُمۡۖ وَإِنَّ فَرِیقࣰا مِّنۡهُمۡ لَیَكۡتُمُونَ ٱلۡحَقَّ وَهُمۡ یَعۡلَمُونَ ﴿146﴾

जिन लोगों को हमने किताब दी है वे उसे पहचानते है, जैसे अपने बेटों को पहचानते है और उनमें से कुछ सत्य को जान-बूझकर छिपा रहे हैं

ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُمۡتَرِینَ ﴿147﴾

सत्य तुम्हारे रब की ओर से है। अतः तुम सन्देह करनेवालों में से कदापि न होगा

وَلِكُلࣲّ وِجۡهَةٌ هُوَ مُوَلِّیهَاۖ فَٱسۡتَبِقُوا۟ ٱلۡخَیۡرَ ٰ⁠تِۚ أَیۡنَ مَا تَكُونُوا۟ یَأۡتِ بِكُمُ ٱللَّهُ جَمِیعًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿148﴾

प्रत्येक की एक ही दिशा है, वह उसी की ओर मुख किेए हुए है, तो तुम भलाईयों में अग्रसरता दिखाओ। जहाँ कहीं भी तुम होगे अल्लाह तुम सबको एकत्र करेगा। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

وَمِنۡ حَیۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۖ وَإِنَّهُۥ لَلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿149﴾

और जहाँ से भी तुम निकलों, 'मस्जिदे हराम' (काबा) की ओर अपना मुँह फेर लिया करो। निस्संदेह यही तुम्हारे रब की ओर से हक़ है। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है

وَمِنۡ حَیۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَیۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّوا۟ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥ لِئَلَّا یَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَیۡكُمۡ حُجَّةٌ إِلَّا ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ مِنۡهُمۡ فَلَا تَخۡشَوۡهُمۡ وَٱخۡشَوۡنِی وَلِأُتِمَّ نِعۡمَتِی عَلَیۡكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ﴿150﴾

जहाँ से भी तुम निकलो, 'मस्जिदे हराम' की ओर अपना मुँह फेर लिया करो, और जहाँ कहीं भी तुम हो उसी की ओर मुँह कर लिया करो, ताकि लोगों के पास तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई हुज्जत बाक़ी न रहे - सिवाय उन लोगों के जो उनमें ज़ालिम हैं, तुम उनसे न डरो, मुझसे ही डरो - और ताकि मैं तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दूँ, और ताकि तुम सीधी राह चलो

كَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا فِیكُمۡ رَسُولࣰا مِّنكُمۡ یَتۡلُوا۟ عَلَیۡكُمۡ ءَایَـٰتِنَا وَیُزَكِّیكُمۡ وَیُعَلِّمُكُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَیُعَلِّمُكُم مَّا لَمۡ تَكُونُوا۟ تَعۡلَمُونَ ﴿151﴾

जैसाकि हमने तुम्हारे बीच एक रसूल तुम्हीं में से भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है, तुम्हें निखारता है, और तुम्हें किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है और तुम्हें वह कुछ सिखाता है, जो तुम जानते न थे

فَٱذۡكُرُونِیۤ أَذۡكُرۡكُمۡ وَٱشۡكُرُوا۟ لِی وَلَا تَكۡفُرُونِ ﴿152﴾

अतः तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूँगा। और मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञता न दिखलाना

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ ٱسۡتَعِینُوا۟ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿153﴾

ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य और नमाज़ से मदद प्राप्त। करो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दृढ़ता से काम लेते है

وَلَا تَقُولُوا۟ لِمَن یُقۡتَلُ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ أَمۡوَ ٰ⁠تُۢۚ بَلۡ أَحۡیَاۤءࣱ وَلَـٰكِن لَّا تَشۡعُرُونَ ﴿154﴾

और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित है, परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता

وَلَنَبۡلُوَنَّكُم بِشَیۡءࣲ مِّنَ ٱلۡخَوۡفِ وَٱلۡجُوعِ وَنَقۡصࣲ مِّنَ ٱلۡأَمۡوَ ٰ⁠لِ وَٱلۡأَنفُسِ وَٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِۗ وَبَشِّرِ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿155﴾

और हम अवश्य ही कुछ भय से, और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे। और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो

ٱلَّذِینَ إِذَاۤ أَصَـٰبَتۡهُم مُّصِیبَةࣱ قَالُوۤا۟ إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّاۤ إِلَیۡهِ رَ ٰ⁠جِعُونَ ﴿156﴾

जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते है, \"निस्संदेह हम अल्लाह ही के है और हम उसी की ओर लौटने वाले है।\"

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ عَلَیۡهِمۡ صَلَوَ ٰ⁠تࣱ مِّن رَّبِّهِمۡ وَرَحۡمَةࣱۖ وَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُهۡتَدُونَ ﴿157﴾

यही लोग है जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ है और दयालुता भी; और यही लोग है जो सीधे मार्ग पर हैं

۞ إِنَّ ٱلصَّفَا وَٱلۡمَرۡوَةَ مِن شَعَاۤىِٕرِ ٱللَّهِۖ فَمَنۡ حَجَّ ٱلۡبَیۡتَ أَوِ ٱعۡتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِ أَن یَطَّوَّفَ بِهِمَاۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَیۡرࣰا فَإِنَّ ٱللَّهَ شَاكِرٌ عَلِیمٌ ﴿158﴾

निस्संदेह सफ़ा और मरवा अल्लाह की विशेष निशानियों में से हैं; अतः जो इस घर (काबा) का हज या उमपा करे, उसके लिए इसमें कोई दोष नहीं कि वह इन दोनों (पहाडियों) के बीच फेरा लगाए। और जो कोई स्वेच्छा और रुचि से कोई भलाई का कार्य करे तो अल्लाह भी गुणग्राहक, सर्वज्ञ है

إِنَّ ٱلَّذِینَ یَكۡتُمُونَ مَاۤ أَنزَلۡنَا مِنَ ٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَٱلۡهُدَىٰ مِنۢ بَعۡدِ مَا بَیَّنَّـٰهُ لِلنَّاسِ فِی ٱلۡكِتَـٰبِ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یَلۡعَنُهُمُ ٱللَّهُ وَیَلۡعَنُهُمُ ٱللَّـٰعِنُونَ ﴿159﴾

जो लोग हमारी उतारी हुई खुली निशानियों और मार्गदर्शन को छिपाते है, इसके बाद कि हम उन्हें लोगों के लिए किताब में स्पष्ट कर चुके है; वही है जिन्हें अल्लाह धिक्कारता है - और सभी धिक्कारने वाले भी उन्हें धिक्कारते है

إِلَّا ٱلَّذِینَ تَابُوا۟ وَأَصۡلَحُوا۟ وَبَیَّنُوا۟ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَتُوبُ عَلَیۡهِمۡ وَأَنَا ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِیمُ ﴿160﴾

सिवाय उनके जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया, और साफ़-साफ़ बयान कर दिया, तो उनकी तौबा मैं क़बूल करूँगा; मैं बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान हूँ

إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَمَاتُوا۟ وَهُمۡ كُفَّارٌ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ عَلَیۡهِمۡ لَعۡنَةُ ٱللَّهِ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِینَ ﴿161﴾

जिन लोगों ने कुफ़्र किया और काफ़िर (इनकार करनेवाले) ही रहकर मरे, वही हैं जिनपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और सारे मनुष्यों की, सबकी फिटकार है

خَـٰلِدِینَ فِیهَا لَا یُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ یُنظَرُونَ ﴿162﴾

इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी

وَإِلَـٰهُكُمۡ إِلَـٰهࣱ وَ ٰ⁠حِدࣱۖ لَّاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلرَّحۡمَـٰنُ ٱلرَّحِیمُ ﴿163﴾

तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है, उस कृपाशील और दयावान के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं

إِنَّ فِی خَلۡقِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَـٰفِ ٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَٱلۡفُلۡكِ ٱلَّتِی تَجۡرِی فِی ٱلۡبَحۡرِ بِمَا یَنفَعُ ٱلنَّاسَ وَمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مِن مَّاۤءࣲ فَأَحۡیَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَبَثَّ فِیهَا مِن كُلِّ دَاۤبَّةࣲ وَتَصۡرِیفِ ٱلرِّیَـٰحِ وَٱلسَّحَابِ ٱلۡمُسَخَّرِ بَیۡنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿164﴾

निस्संदेह आकाशों और धरती की संरचना में, और रात और दिन की अदला-बदली में, और उन नौकाओं में जो लोगों की लाभप्रद चीज़े लेकर समुद्र (और नदी) में चलती है, और उस पानी में जिसे अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर जिसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के पश्चात जीवित किया और उसमें हर एक (प्रकार के) जीवधारी को फैलाया और हवाओं को गर्दिश देने में और उन बादलों में जो आकाश और धरती के बीच (काम पर) नियुक्त होते है, उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ है जो बुद्धि से काम लें

وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَتَّخِذُ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَندَادࣰا یُحِبُّونَهُمۡ كَحُبِّ ٱللَّهِۖ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَشَدُّ حُبࣰّا لِّلَّهِۗ وَلَوۡ یَرَى ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤا۟ إِذۡ یَرَوۡنَ ٱلۡعَذَابَ أَنَّ ٱلۡقُوَّةَ لِلَّهِ جَمِیعࣰا وَأَنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعَذَابِ ﴿165﴾

कुछ लोग ऐसे भी है जो अल्लाह से हटकर दूसरों को उसके समकक्ष ठहराते है, उनसे ऐसा प्रेम करते है जैसा अल्लाह से प्रेम करना चाहिए। और कुछ ईमानवाले है उन्हें सबसे बढ़कर अल्लाह से प्रेम होता है। और ये अत्याचारी (बहुदेववादी) जबकि यातना देखते है, यदि इस तथ्य को जान लेते कि शक्ति सारी की सारी अल्लाह ही को प्राप्त हो और यह कि अल्लाह अत्यन्त कठोर यातना देनेवाला है (तो इनकी नीति कुछ और होती)

إِذۡ تَبَرَّأَ ٱلَّذِینَ ٱتُّبِعُوا۟ مِنَ ٱلَّذِینَ ٱتَّبَعُوا۟ وَرَأَوُا۟ ٱلۡعَذَابَ وَتَقَطَّعَتۡ بِهِمُ ٱلۡأَسۡبَابُ ﴿166﴾

जब वे लोग जिनके पीछे वे चलते थे, यातना को देखकर अपने अनुयायियों से विरक्त हो जाएँगे और उनके सम्बन्ध और सम्पर्क टूट जाएँगे

وَقَالَ ٱلَّذِینَ ٱتَّبَعُوا۟ لَوۡ أَنَّ لَنَا كَرَّةࣰ فَنَتَبَرَّأَ مِنۡهُمۡ كَمَا تَبَرَّءُوا۟ مِنَّاۗ كَذَ ٰ⁠لِكَ یُرِیهِمُ ٱللَّهُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ حَسَرَ ٰ⁠تٍ عَلَیۡهِمۡۖ وَمَا هُم بِخَـٰرِجِینَ مِنَ ٱلنَّارِ ﴿167﴾

वे लोग जो उनके पीछे चले थे कहेंगे, \"काश! हमें एक बार (फिर संसार में लौटना होता तो जिस तरह आज ये हमसे विरक्त हो रहे हैं, हम भी इनसे विरक्त हो जाते।\" इस प्रकार अल्लाह उनके लिए संताप बनाकर उन्हें कर्म दिखाएगा और वे आग (जहन्नम) से निकल न सकेंगे

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ كُلُوا۟ مِمَّا فِی ٱلۡأَرۡضِ حَلَـٰلࣰا طَیِّبࣰا وَلَا تَتَّبِعُوا۟ خُطُوَ ٰ⁠تِ ٱلشَّیۡطَـٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوࣱّ مُّبِینٌ ﴿168﴾

ऐ लोगों! धरती में जो हलाल और अच्छी-सुथरी चीज़ें हैं उन्हें खाओ और शैतान के पदचिन्हों पर न चलो। निस्संदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है

إِنَّمَا یَأۡمُرُكُم بِٱلسُّوۤءِ وَٱلۡفَحۡشَاۤءِ وَأَن تَقُولُوا۟ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ﴿169﴾

वह तो बस तुम्हें बुराई और अश्लीलता पर उकसाता है और इसपर कि तुम अल्लाह पर थोपकर वे बातें कहो जो तुम नहीं जानते

وَإِذَا قِیلَ لَهُمُ ٱتَّبِعُوا۟ مَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُوا۟ بَلۡ نَتَّبِعُ مَاۤ أَلۡفَیۡنَا عَلَیۡهِ ءَابَاۤءَنَاۤۚ أَوَلَوۡ كَانَ ءَابَاۤؤُهُمۡ لَا یَعۡقِلُونَ شَیۡـࣰٔا وَلَا یَهۡتَدُونَ ﴿170﴾

और जब उनसे कहा जाता है, \"अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसका अनुसरण करो।\" तो कहते है, \"नहीं बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।\" क्या उस दशा में भी जबकि उनके बाप-दादा कुछ भी बुद्धि से काम न लेते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों?

وَمَثَلُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ كَمَثَلِ ٱلَّذِی یَنۡعِقُ بِمَا لَا یَسۡمَعُ إِلَّا دُعَاۤءࣰ وَنِدَاۤءࣰۚ صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡیࣱ فَهُمۡ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿171﴾

इन इनकार करनेवालों की मिसाल ऐसी है जैसे कोई ऐसी चीज़ों को पुकारे जो पुकार और आवाज़ के सिवा कुछ न सुनती और समझती हो। ये बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धें हैं; इसलिए ये कुछ भी नहीं समझ सकते

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ كُلُوا۟ مِن طَیِّبَـٰتِ مَا رَزَقۡنَـٰكُمۡ وَٱشۡكُرُوا۟ لِلَّهِ إِن كُنتُمۡ إِیَّاهُ تَعۡبُدُونَ ﴿172﴾

ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी-सुथरी चीज़ें हमने तुम्हें प्रदान की हैं उनमें से खाओ और अल्लाह के आगे कृतज्ञता दिखलाओ, यदि तुम उसी की बन्दगी करते हो

إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡمَیۡتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِیرِ وَمَاۤ أُهِلَّ بِهِۦ لِغَیۡرِ ٱللَّهِۖ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَیۡرَ بَاغࣲ وَلَا عَادࣲ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمٌ ﴿173﴾

उसने तो तुमपर केवल मुर्दार और ख़ून और सूअर का माँस और जिस पर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। इसपर भी जो बहुत मजबूर और विवश हो जाए, वह अवज्ञा करनेवाला न हो और न सीमा से आगे बढ़नेवाला हो तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है

إِنَّ ٱلَّذِینَ یَكۡتُمُونَ مَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلۡكِتَـٰبِ وَیَشۡتَرُونَ بِهِۦ ثَمَنࣰا قَلِیلًا أُو۟لَـٰۤىِٕكَ مَا یَأۡكُلُونَ فِی بُطُونِهِمۡ إِلَّا ٱلنَّارَ وَلَا یُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَلَا یُزَكِّیهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمٌ ﴿174﴾

जो लोग उस चीज़ को छिपाते है जो अल्लाह ने अपनी किताब में से उतारी है और उसके बदले थोड़े मूल्य का सौदा करते है, वे तो बस आग खाकर अपने पेट भर रहे है; और क़ियामत के दिन अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न उन्हें निखारेगा; और उनके लिए दुखद यातना है

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ ٱشۡتَرَوُا۟ ٱلضَّلَـٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡعَذَابَ بِٱلۡمَغۡفِرَةِۚ فَمَاۤ أَصۡبَرَهُمۡ عَلَى ٱلنَّارِ ﴿175﴾

यहीं लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले पथभ्रष्टका मोल ली; और क्षमा के बदले यातना के ग्राहक बने। तो आग को सहन करने के लिए उनका उत्साह कितना बढ़ा हुआ है!

ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ نَزَّلَ ٱلۡكِتَـٰبَ بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلَّذِینَ ٱخۡتَلَفُوا۟ فِی ٱلۡكِتَـٰبِ لَفِی شِقَاقِۭ بَعِیدࣲ ﴿176﴾

वह (यातना) इसलिए होगी कि अल्लाह ने तो हक़ के साथ किताब उतारी, किन्तु जिन लोगों ने किताब के मामले में विभेद किया वे हठ और विरोध में बहुत दूर निकल गए

۞ لَّیۡسَ ٱلۡبِرَّ أَن تُوَلُّوا۟ وُجُوهَكُمۡ قِبَلَ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَلَـٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ وَٱلۡكِتَـٰبِ وَٱلنَّبِیِّـۧنَ وَءَاتَى ٱلۡمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِۦ ذَوِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِیلِ وَٱلسَّاۤىِٕلِینَ وَفِی ٱلرِّقَابِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُوفُونَ بِعَهۡدِهِمۡ إِذَا عَـٰهَدُوا۟ۖ وَٱلصَّـٰبِرِینَ فِی ٱلۡبَأۡسَاۤءِ وَٱلضَّرَّاۤءِ وَحِینَ ٱلۡبَأۡسِۗ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ صَدَقُوا۟ۖ وَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ ﴿177﴾

नेकी केवल यह नहीं है कि तुम अपने मुँह पूरब और पश्चिम की ओर कर लो, बल्कि नेकी तो उसकी नेकी है जो अल्लाह अन्तिम दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाया और माल, उसके प्रति प्रेम के बावजूद नातेदारों, अनाथों, मुहताजों, मुसाफ़िरों और माँगनेवालों को दिया और गर्दनें छुड़ाने में भी, और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अपने वचन को ऐसे लोग पूरा करनेवाले है जब वचन दें; और तंगी और विशेष रूप से शारीरिक कष्टों में और लड़ाई के समय में जमनेवाले हैं, तो ऐसे ही लोग है जो सच्चे सिद्ध हुए और वही लोग डर रखनेवाले हैं

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡقِصَاصُ فِی ٱلۡقَتۡلَىۖ ٱلۡحُرُّ بِٱلۡحُرِّ وَٱلۡعَبۡدُ بِٱلۡعَبۡدِ وَٱلۡأُنثَىٰ بِٱلۡأُنثَىٰۚ فَمَنۡ عُفِیَ لَهُۥ مِنۡ أَخِیهِ شَیۡءࣱ فَٱتِّبَاعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَأَدَاۤءٌ إِلَیۡهِ بِإِحۡسَـٰنࣲۗ ذَ ٰ⁠لِكَ تَخۡفِیفࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ وَرَحۡمَةࣱۗ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ بَعۡدَ ذَ ٰ⁠لِكَ فَلَهُۥ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿178﴾

ऐ ईमान लानेवालो! मारे जानेवालों के विषय में हत्यादंड (क़िसास) तुमपर अनिवार्य किया गया, स्वतंत्र-स्वतंत्र बराबर है और ग़़ुलाम-ग़ुलाम बराबर है और औरत-औरत बराबर है। फिर यदि किसी को उसके भाई की ओर से कुछ छूट मिल जाए तो सामान्य रीति का पालन करना चाहिए; और भले तरीके से उसे अदा करना चाहिए। यह तुम्हारें रब की ओर से एक छूट और दयालुता है। फिर इसके बाद भो जो ज़्यादती करे तो उसके लिए दुखद यातना है

وَلَكُمۡ فِی ٱلۡقِصَاصِ حَیَوٰةࣱ یَـٰۤأُو۟لِی ٱلۡأَلۡبَـٰبِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿179﴾

ऐ बुद्धि और समझवालों! तुम्हारे लिए हत्यादंड (क़िसास) में जीवन है, ताकि तुम बचो

كُتِبَ عَلَیۡكُمۡ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ إِن تَرَكَ خَیۡرًا ٱلۡوَصِیَّةُ لِلۡوَ ٰ⁠لِدَیۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِینَ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿180﴾

जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए, यदि वह कुछ माल छोड़ रहा हो, तो माँ-बाप और नातेदारों को भलाई की वसीयत करना तुमपर अनिवार्य किया गया। यह हक़ है डर रखनेवालों पर

فَمَنۢ بَدَّلَهُۥ بَعۡدَ مَا سَمِعَهُۥ فَإِنَّمَاۤ إِثۡمُهُۥ عَلَى ٱلَّذِینَ یُبَدِّلُونَهُۥۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿181﴾

तो जो कोई उसके सुनने के पश्चात उसे बदल डाले तो उसका गुनाह उन्हीं लोगों पर होगा जो इसे बदलेंगे। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ सुननेवाला और जाननेवाला है

فَمَنۡ خَافَ مِن مُّوصࣲ جَنَفًا أَوۡ إِثۡمࣰا فَأَصۡلَحَ بَیۡنَهُمۡ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿182﴾

फिर जिस किसी वसीयत करनेवाले को न्याय से किसी प्रकार के हटने या हक़़ मारने की आशंका हो, इस कारण उनके (वारिसों के) बीच सुधार की व्यवस्था कर दें, तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلصِّیَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ﴿183﴾

ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ

أَیَّامࣰا مَّعۡدُودَ ٰ⁠تࣲۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِیضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرࣲ فَعِدَّةࣱ مِّنۡ أَیَّامٍ أُخَرَۚ وَعَلَى ٱلَّذِینَ یُطِیقُونَهُۥ فِدۡیَةࣱ طَعَامُ مِسۡكِینࣲۖ فَمَن تَطَوَّعَ خَیۡرࣰا فَهُوَ خَیۡرࣱ لَّهُۥۚ وَأَن تَصُومُوا۟ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿184﴾

गिनती के कुछ दिनों के लिए - इसपर भी तुममें कोई बीमार हो, या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में संख्या पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफ़िरों) को इसकी (मुहताजों को खिलाने की) सामर्थ्य हो, उनके ज़िम्मे बदलें में एक मुहताज का खाना है। फिर जो अपनी ख़ुशी से कुछ और नेकी करे तो यह उसी के लिए अच्छा है और यह कि तुम रोज़ा रखो तो तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जानो

شَهۡرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِیۤ أُنزِلَ فِیهِ ٱلۡقُرۡءَانُ هُدࣰى لِّلنَّاسِ وَبَیِّنَـٰتࣲ مِّنَ ٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡفُرۡقَانِۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ ٱلشَّهۡرَ فَلۡیَصُمۡهُۖ وَمَن كَانَ مَرِیضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرࣲ فَعِدَّةࣱ مِّنۡ أَیَّامٍ أُخَرَۗ یُرِیدُ ٱللَّهُ بِكُمُ ٱلۡیُسۡرَ وَلَا یُرِیدُ بِكُمُ ٱلۡعُسۡرَ وَلِتُكۡمِلُوا۟ ٱلۡعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا۟ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَىٰكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿185﴾

रमज़ान का महीना जिसमें कुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए, और मार्गदर्शन और सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथा। अतः तुममें जो कोई इस महीने में मौजूद हो उसे चाहिए कि उसके रोज़े रखे और जो बीमार हो या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में गिनती पूरी कर ले। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख़्ती और कठिनाई नहीं चाहता, (वह तुम्हारे लिए आसानी पैदा कर रहा है) और चाहता है कि तुम संख्या पूरी कर लो और जो सीधा मार्ग तुम्हें दिखाया गया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई प्रकट करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो

وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِی عَنِّی فَإِنِّی قَرِیبٌۖ أُجِیبُ دَعۡوَةَ ٱلدَّاعِ إِذَا دَعَانِۖ فَلۡیَسۡتَجِیبُوا۟ لِی وَلۡیُؤۡمِنُوا۟ بِی لَعَلَّهُمۡ یَرۡشُدُونَ ﴿186﴾

और जब तुमसे मेरे बन्दे मेरे सम्बन्ध में पूछें, तो मैं तो निकट ही हूँ, पुकार का उत्तर देता हूँ, जब वह मुझे पुकारता है, तो उन्हें चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझपर ईमान रखें, ताकि वे सीधा मार्ग पा लें

أُحِلَّ لَكُمۡ لَیۡلَةَ ٱلصِّیَامِ ٱلرَّفَثُ إِلَىٰ نِسَاۤىِٕكُمۡۚ هُنَّ لِبَاسࣱ لَّكُمۡ وَأَنتُمۡ لِبَاسࣱ لَّهُنَّۗ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَخۡتَانُونَ أَنفُسَكُمۡ فَتَابَ عَلَیۡكُمۡ وَعَفَا عَنكُمۡۖ فَٱلۡـَٔـٰنَ بَـٰشِرُوهُنَّ وَٱبۡتَغُوا۟ مَا كَتَبَ ٱللَّهُ لَكُمۡۚ وَكُلُوا۟ وَٱشۡرَبُوا۟ حَتَّىٰ یَتَبَیَّنَ لَكُمُ ٱلۡخَیۡطُ ٱلۡأَبۡیَضُ مِنَ ٱلۡخَیۡطِ ٱلۡأَسۡوَدِ مِنَ ٱلۡفَجۡرِۖ ثُمَّ أَتِمُّوا۟ ٱلصِّیَامَ إِلَى ٱلَّیۡلِۚ وَلَا تُبَـٰشِرُوهُنَّ وَأَنتُمۡ عَـٰكِفُونَ فِی ٱلۡمَسَـٰجِدِۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَقۡرَبُوهَاۗ كَذَ ٰ⁠لِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ ءَایَـٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ یَتَّقُونَ ﴿187﴾

तुम्हारे लिए रोज़ो की रातों में अपनी औरतों के पास जाना जायज़ (वैध) हुआ। वे तुम्हारे परिधान (लिबास) हैं और तुम उनका परिधान हो। अल्लाह को मालूम हो गया कि तुम लोग अपने-आपसे कपट कर रहे थे, तो उसने तुमपर कृपा की और तुम्हें क्षमा कर दिया। तो अब तुम उनसे मिलो-जुलो और अल्लाह ने जो कुछ तुम्हारे लिए लिख रखा है, उसे तलब करो। और खाओ और पियो यहाँ तक कि तुम्हें उषाकाल की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से स्पष्टा दिखाई दे जाए। फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और जब तुम मस्जिदों में 'एतकाफ़' की हालत में हो, तो तुम उनसे न मिलो। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं। अतः इनके निकट न जाना। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे डर रखनेवाले बनें

وَلَا تَأۡكُلُوۤا۟ أَمۡوَ ٰ⁠لَكُم بَیۡنَكُم بِٱلۡبَـٰطِلِ وَتُدۡلُوا۟ بِهَاۤ إِلَى ٱلۡحُكَّامِ لِتَأۡكُلُوا۟ فَرِیقࣰا مِّنۡ أَمۡوَ ٰ⁠لِ ٱلنَّاسِ بِٱلۡإِثۡمِ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿188﴾

और आपस में तुम एक-दूसरे के माल को अवैध रूप से न खाओ, और न उन्हें हाकिमों के आगे ले जाओ कि (हक़ मारकर) लोगों के कुछ माल जानते-बूझते हड़प सको

۞ یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡأَهِلَّةِۖ قُلۡ هِیَ مَوَ ٰ⁠قِیتُ لِلنَّاسِ وَٱلۡحَجِّۗ وَلَیۡسَ ٱلۡبِرُّ بِأَن تَأۡتُوا۟ ٱلۡبُیُوتَ مِن ظُهُورِهَا وَلَـٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَأۡتُوا۟ ٱلۡبُیُوتَ مِنۡ أَبۡوَ ٰ⁠بِهَاۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ ﴿189﴾

वे तुमसे (प्रतिष्ठित) महीनों के विषय में पूछते है। कहो, \"वे तो लोगों के लिए और हज के लिए नियत है। और यह कोई ख़ूबी और नेकी नहीं हैं कि तुम घरों में उनके पीछे से आओ, बल्कि नेकी तो उसकी है जो (अल्लाह का) डर रखे। तुम घरों में उनके दरवाड़ों से आओ और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो

وَقَـٰتِلُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِینَ یُقَـٰتِلُونَكُمۡ وَلَا تَعۡتَدُوۤا۟ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یُحِبُّ ٱلۡمُعۡتَدِینَ ﴿190﴾

और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता

وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَیۡثُ ثَقِفۡتُمُوهُمۡ وَأَخۡرِجُوهُم مِّنۡ حَیۡثُ أَخۡرَجُوكُمۡۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَشَدُّ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۚ وَلَا تُقَـٰتِلُوهُمۡ عِندَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ حَتَّىٰ یُقَـٰتِلُوكُمۡ فِیهِۖ فَإِن قَـٰتَلُوكُمۡ فَٱقۡتُلُوهُمۡۗ كَذَ ٰ⁠لِكَ جَزَاۤءُ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿191﴾

और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है

فَإِنِ ٱنتَهَوۡا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿192﴾

फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, अत्यन्त दयावान है

وَقَـٰتِلُوهُمۡ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتۡنَةࣱ وَیَكُونَ ٱلدِّینُ لِلَّهِۖ فَإِنِ ٱنتَهَوۡا۟ فَلَا عُدۡوَ ٰ⁠نَ إِلَّا عَلَى ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿193﴾

तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं

ٱلشَّهۡرُ ٱلۡحَرَامُ بِٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ وَٱلۡحُرُمَـٰتُ قِصَاصࣱۚ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَٱعۡتَدُوا۟ عَلَیۡهِ بِمِثۡلِ مَا ٱعۡتَدَىٰ عَلَیۡكُمۡۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿194﴾

प्रतिष्ठित महीना बराबर है प्रतिष्ठित महिने के, और समस्त प्रतिष्ठाओं का भी बराबरी का बदला है। अतः जो तुमपर ज़्यादती करे, तो जैसी ज़्यादती वह तुम पर के, तुम भी उसी प्रकार उससे ज़्यादती का बदला लो। और अल्लाह का डर रखो और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है

وَأَنفِقُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَلَا تُلۡقُوا۟ بِأَیۡدِیكُمۡ إِلَى ٱلتَّهۡلُكَةِ وَأَحۡسِنُوۤا۟ۚ إِنَّ ٱللَّهَ یُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿195﴾

और अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करो और अपने ही हाथों से अपने-आपकोतबाही में न डालो, और अच्छे से अच्छा तरीक़ा अपनाओ। निस्संदेह अल्लाह अच्छे से अच्छा काम करनेवालों को पसन्द करता है

وَأَتِمُّوا۟ ٱلۡحَجَّ وَٱلۡعُمۡرَةَ لِلَّهِۚ فَإِنۡ أُحۡصِرۡتُمۡ فَمَا ٱسۡتَیۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡیِۖ وَلَا تَحۡلِقُوا۟ رُءُوسَكُمۡ حَتَّىٰ یَبۡلُغَ ٱلۡهَدۡیُ مَحِلَّهُۥۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِیضًا أَوۡ بِهِۦۤ أَذࣰى مِّن رَّأۡسِهِۦ فَفِدۡیَةࣱ مِّن صِیَامٍ أَوۡ صَدَقَةٍ أَوۡ نُسُكࣲۚ فَإِذَاۤ أَمِنتُمۡ فَمَن تَمَتَّعَ بِٱلۡعُمۡرَةِ إِلَى ٱلۡحَجِّ فَمَا ٱسۡتَیۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡیِۚ فَمَن لَّمۡ یَجِدۡ فَصِیَامُ ثَلَـٰثَةِ أَیَّامࣲ فِی ٱلۡحَجِّ وَسَبۡعَةٍ إِذَا رَجَعۡتُمۡۗ تِلۡكَ عَشَرَةࣱ كَامِلَةࣱۗ ذَ ٰ⁠لِكَ لِمَن لَّمۡ یَكُنۡ أَهۡلُهُۥ حَاضِرِی ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿196﴾

और हज और उमरा जो कि अल्लाह के लिए है, पूरे करो। फिर यदि तुम घिर जाओ, तो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश कर दो। और अपने सिर न मूड़ो जब तक कि क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुँच जाए, किन्तु जो व्यक्ति तुममें बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो, तो रोज़े या सदक़ा या क़रबानी के रूप में फ़िद्याी देना होगा। फिर जब तुम पर से ख़तरा टल जाए, तो जो व्यक्ति हज तक उमरा से लाभान्वित हो, जो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश करे, और जिसको उपलब्ध न हो तो हज के दिनों में तीन दिन के रोज़े रखे और सात दिन के रोज़े जब तुम वापस हो, ये पूरे दस हुए। यह उसके लिए है जिसके बाल-बच्चे मस्जिदे हराम के निकट न रहते हों। अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है

ٱلۡحَجُّ أَشۡهُرࣱ مَّعۡلُومَـٰتࣱۚ فَمَن فَرَضَ فِیهِنَّ ٱلۡحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِی ٱلۡحَجِّۗ وَمَا تَفۡعَلُوا۟ مِنۡ خَیۡرࣲ یَعۡلَمۡهُ ٱللَّهُۗ وَتَزَوَّدُوا۟ فَإِنَّ خَیۡرَ ٱلزَّادِ ٱلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُونِ یَـٰۤأُو۟لِی ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿197﴾

हज के महीने जाने-पहचाने और निश्चित हैं, तो जो इनमें हज करने का निश्चय करे, को हज में न तो काम-वासना की बातें हो सकती है और न अवज्ञा और न लड़ाई-झगड़े की कोई बात। और जो भलाई के काम भी तुम करोंगे अल्लाह उसे जानता होगा। और (ईश-भय) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय ईश-भय है। और ऐ बुद्धि और समझवालो! मेरा डर रखो

لَیۡسَ عَلَیۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَبۡتَغُوا۟ فَضۡلࣰا مِّن رَّبِّكُمۡۚ فَإِذَاۤ أَفَضۡتُم مِّنۡ عَرَفَـٰتࣲ فَٱذۡكُرُوا۟ ٱللَّهَ عِندَ ٱلۡمَشۡعَرِ ٱلۡحَرَامِۖ وَٱذۡكُرُوهُ كَمَا هَدَىٰكُمۡ وَإِن كُنتُم مِّن قَبۡلِهِۦ لَمِنَ ٱلضَّاۤلِّینَ ﴿198﴾

इसमे तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने रब का अनुग्रह तलब करो। फिर जब तुम अरफ़ात से चलो तो 'मशअरे हराम' (मुज़दल्फ़ा) के निकट ठहरकर अल्लाह को याद करो, और उसे याद करो जैसाकि उसने तुम्हें बताया है, और इससे पहले तुम पथभ्रष्ट थे

ثُمَّ أَفِیضُوا۟ مِنۡ حَیۡثُ أَفَاضَ ٱلنَّاسُ وَٱسۡتَغۡفِرُوا۟ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿199﴾

इसके पश्चात जहाँ से और सब लोग चलें, वहीं से तुम भी चलो, और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है

فَإِذَا قَضَیۡتُم مَّنَـٰسِكَكُمۡ فَٱذۡكُرُوا۟ ٱللَّهَ كَذِكۡرِكُمۡ ءَابَاۤءَكُمۡ أَوۡ أَشَدَّ ذِكۡرࣰاۗ فَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَقُولُ رَبَّنَاۤ ءَاتِنَا فِی ٱلدُّنۡیَا وَمَا لَهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ مِنۡ خَلَـٰقࣲ ﴿200﴾

फिर जब तुम अपनी हज सम्बन्धी रीतियों को पूरा कर चुको तो अल्लाह को याद करो जैसे अपने बाप-दादा को याद करते रहे हो, बल्कि उससे भी बढ़कर याद करो। फिर लोगों सें कोई तो ऐसा है जो कहता है, \"हमारे रब! हमें दुनिया में दे दो।\" ऐसी हालत में आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं

وَمِنۡهُم مَّن یَقُولُ رَبَّنَاۤ ءَاتِنَا فِی ٱلدُّنۡیَا حَسَنَةࣰ وَفِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ حَسَنَةࣰ وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ ﴿201﴾

और उनमें कोई ऐसा है जो कहता है, \"हमारे रब! हमें प्रदान कर दुनिया में भी अच्छी दशा और आख़िरत में भी अच्छा दशा, और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।\"

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ نَصِیبࣱ مِّمَّا كَسَبُوا۟ۚ وَٱللَّهُ سَرِیعُ ٱلۡحِسَابِ ﴿202﴾

ऐसे ही लोग है कि उन्होंने जो कुछ कमाया है उसकी जिन्स का हिस्सा उनके लिए नियत है। और अल्लाह जल्द ही हिसाब चुकानेवाला है

۞ وَٱذۡكُرُوا۟ ٱللَّهَ فِیۤ أَیَّامࣲ مَّعۡدُودَ ٰ⁠تࣲۚ فَمَن تَعَجَّلَ فِی یَوۡمَیۡنِ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِ وَمَن تَأَخَّرَ فَلَاۤ إِثۡمَ عَلَیۡهِۖ لِمَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّكُمۡ إِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿203﴾

और अल्लाह की याद में गिनती के ये कुछ दिन व्यतीत करो। फिर जो कोई जल्दी करके दो ही दिन में कूच करे तो इसमें उसपर कोई गुनाह नहीं। और जो ठहरा रहे तो इसमें भी उसपर कोई गुनाह नहीं। यह उसके लिेए है जो अल्लाह का डर रखे। और अल्लाह का डर रखो और जान रखो कि उसी के पास तुम इकट्ठा होगे

وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یُعۡجِبُكَ قَوۡلُهُۥ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا وَیُشۡهِدُ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا فِی قَلۡبِهِۦ وَهُوَ أَلَدُّ ٱلۡخِصَامِ ﴿204﴾

लोगों में कोई तो ऐसा है कि इस सांसारिक जीवन के विषय में उसकी बाते तुम्हें बहुत भाती है, उस (खोट) के बावजूद जो उसके दिल में होती है, वह अल्लाह को गवाह ठहराता है और झगड़े में वह बड़ा हठी है

وَإِذَا تَوَلَّىٰ سَعَىٰ فِی ٱلۡأَرۡضِ لِیُفۡسِدَ فِیهَا وَیُهۡلِكَ ٱلۡحَرۡثَ وَٱلنَّسۡلَۚ وَٱللَّهُ لَا یُحِبُّ ٱلۡفَسَادَ ﴿205﴾

और जब वह लौटता है, तो धरती में इसलिए दौड़-धूप करता है कि इसमें बिगाड़ पैदा करे और खेती और नस्ल को तबाह करे, जबकि अल्लाह बिगाड़ को पसन्द नहीं करता

وَإِذَا قِیلَ لَهُ ٱتَّقِ ٱللَّهَ أَخَذَتۡهُ ٱلۡعِزَّةُ بِٱلۡإِثۡمِۚ فَحَسۡبُهُۥ جَهَنَّمُۖ وَلَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ﴿206﴾

और जब उससे कहा जाता है, \"अल्लाह से डर\", तो अहंकार उसे और गुनाह पर जमा देता है। अतः उसके लिए तो जहन्नम ही काफ़ी है, और वह बहुत-ही बुरी शय्या है!

وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَشۡرِی نَفۡسَهُ ٱبۡتِغَاۤءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ رَءُوفُۢ بِٱلۡعِبَادِ ﴿207﴾

और लोगों में वह भी है जो अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधन की चाह में अपनी जान खता देता है। अल्लाह भी अपने ऐसे बन्दों के प्रति अत्यन्त करुणाशील है

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ ٱدۡخُلُوا۟ فِی ٱلسِّلۡمِ كَاۤفَّةࣰ وَلَا تَتَّبِعُوا۟ خُطُوَ ٰ⁠تِ ٱلشَّیۡطَـٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوࣱّ مُّبِینࣱ ﴿208﴾

ऐ ईमान लानेवालो! तुम सब इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान के पदचिन्ह पर न चलो। वह तो तुम्हारा खुला हुआ शत्रु है

فَإِن زَلَلۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡكُمُ ٱلۡبَیِّنَـٰتُ فَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمٌ ﴿209﴾

फिर यदि तुम उन स्पष्टा दलीलों के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुकी है, फिसल गए, तो भली-भाँति जान रखो कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

هَلۡ یَنظُرُونَ إِلَّاۤ أَن یَأۡتِیَهُمُ ٱللَّهُ فِی ظُلَلࣲ مِّنَ ٱلۡغَمَامِ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ وَقُضِیَ ٱلۡأَمۡرُۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ﴿210﴾

क्या वे (इसराईल की सन्तान) बस इसकी प्रतीक्षा कर रहे है कि अल्लाह स्वयं ही बादलों की छायों में उनके सामने आ जाए और फ़रिश्ते भी, हालाँकि बात तय कर दी गई है? मामले तो अल्लाह ही की ओर लौटते है

سَلۡ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ كَمۡ ءَاتَیۡنَـٰهُم مِّنۡ ءَایَةِۭ بَیِّنَةࣲۗ وَمَن یُبَدِّلۡ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡهُ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿211﴾

इसराईल की सन्तान से पूछो, हमने उन्हें कितनी खुली-खुली निशानियाँ प्रदान की। और जो अल्लाह की नेमत को इसके बाद कि वह उसे पहुँच चुकी हो बदल डाले, तो निस्संदेह अल्लाह भी कठोर दंड देनेवाला है

زُیِّنَ لِلَّذِینَ كَفَرُوا۟ ٱلۡحَیَوٰةُ ٱلدُّنۡیَا وَیَسۡخَرُونَ مِنَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ۘ وَٱلَّذِینَ ٱتَّقَوۡا۟ فَوۡقَهُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ وَٱللَّهُ یَرۡزُقُ مَن یَشَاۤءُ بِغَیۡرِ حِسَابࣲ ﴿212﴾

इनकार करनेवाले सांसारिक जीवन पर रीझे हुए है और ईमानवालों का उपहास करते है, जबकि जो लोग अल्लाह का डर रखते है, वे क़ियामत के दिन उनसे ऊपर होंगे। अल्लाह जिस चाहता है बेहिसाब देता है

كَانَ ٱلنَّاسُ أُمَّةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ فَبَعَثَ ٱللَّهُ ٱلنَّبِیِّـۧنَ مُبَشِّرِینَ وَمُنذِرِینَ وَأَنزَلَ مَعَهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ بِٱلۡحَقِّ لِیَحۡكُمَ بَیۡنَ ٱلنَّاسِ فِیمَا ٱخۡتَلَفُوا۟ فِیهِۚ وَمَا ٱخۡتَلَفَ فِیهِ إِلَّا ٱلَّذِینَ أُوتُوهُ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡهُمُ ٱلۡبَیِّنَـٰتُ بَغۡیَۢا بَیۡنَهُمۡۖ فَهَدَى ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لِمَا ٱخۡتَلَفُوا۟ فِیهِ مِنَ ٱلۡحَقِّ بِإِذۡنِهِۦۗ وَٱللَّهُ یَهۡدِی مَن یَشَاۤءُ إِلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمٍ ﴿213﴾

सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे (उन्होंने विभेद किया) तो अल्लाह ने नबियों को भेजा, जो शुभ-सूचना देनेवाले और डरानवाले थे; और उनके साथ हक़ पर आधारित किताब उतारी, ताकि लोगों में उन बातों का जिनमें वे विभेद कर रहे है, फ़ैसला कर दे। इसमें विभेद तो बस उन्हीं लोगों ने, जिन्हें वह मिली थी, परस्पर ज़्यादती करने के लिए इसके पश्चात किया, जबकि खुली निशानियाँ उनके पास आ चुकी थी। अतः ईमानवालों को अल्लाह ने अपनी अनूज्ञा से उस सत्य के विषय में मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विभेद किया था। अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे मार्ग पर चलाता है

أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُوا۟ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا یَأۡتِكُم مَّثَلُ ٱلَّذِینَ خَلَوۡا۟ مِن قَبۡلِكُمۖ مَّسَّتۡهُمُ ٱلۡبَأۡسَاۤءُ وَٱلضَّرَّاۤءُ وَزُلۡزِلُوا۟ حَتَّىٰ یَقُولَ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ مَتَىٰ نَصۡرُ ٱللَّهِۗ أَلَاۤ إِنَّ نَصۡرَ ٱللَّهِ قَرِیبࣱ ﴿214﴾

क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश पा जाओगे, जबकि अभी तुम पर वह सब कुछ नहीं बीता है जो तुमसे पहले के लोगों पर बीत चुका? उनपर तंगियाँ और तकलीफ़े आई और उन्हें हिला मारा गया यहाँ तक कि रसूल बोल उठे और उनके साथ ईमानवाले भी कि अल्लाह की सहायता कब आएगी? जान लो! अल्लाह की सहायता निकट है

یَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا یُنفِقُونَۖ قُلۡ مَاۤ أَنفَقۡتُم مِّنۡ خَیۡرࣲ فَلِلۡوَ ٰ⁠لِدَیۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِینَ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِیلِۗ وَمَا تَفۡعَلُوا۟ مِنۡ خَیۡرࣲ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِیمࣱ ﴿215﴾

वे तुमसे पूछते है, \"कितना ख़र्च करें?\" कहो, \"(पहले यह समझ लो कि) जो माल भी तुमने ख़र्च किया है, वह तो माँ-बाप, नातेदारों और अनाथों, और मुहताजों और मुसाफ़िरों के लिए ख़र्च हुआ है। और जो भलाई भी तुम करो, निस्संदेह अल्लाह उसे भली-भाँति जान लेगा।

كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ وَهُوَ كُرۡهࣱ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰۤ أَن تَكۡرَهُوا۟ شَیۡـࣰٔا وَهُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰۤ أَن تُحِبُّوا۟ شَیۡـࣰٔا وَهُوَ شَرࣱّ لَّكُمۡۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿216﴾

तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।\"

یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ قِتَالࣲ فِیهِۖ قُلۡ قِتَالࣱ فِیهِ كَبِیرࣱۚ وَصَدٌّ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِ وَكُفۡرُۢ بِهِۦ وَٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَإِخۡرَاجُ أَهۡلِهِۦ مِنۡهُ أَكۡبَرُ عِندَ ٱللَّهِۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَكۡبَرُ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۗ وَلَا یَزَالُونَ یُقَـٰتِلُونَكُمۡ حَتَّىٰ یَرُدُّوكُمۡ عَن دِینِكُمۡ إِنِ ٱسۡتَطَـٰعُوا۟ۚ وَمَن یَرۡتَدِدۡ مِنكُمۡ عَن دِینِهِۦ فَیَمُتۡ وَهُوَ كَافِرࣱ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ حَبِطَتۡ أَعۡمَـٰلُهُمۡ فِی ٱلدُّنۡیَا وَٱلۡـَٔاخِرَةِۖ وَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿217﴾

वे तुमसे आदरणीय महीने में युद्ध के विषय में पूछते है। कहो, \"उसमें लड़ना बड़ी गम्भीर बात है, परन्तु अल्लाह के मार्ग से रोकना, उसके साथ अविश्वास करना, मस्जिदे हराम (काबा) से रोकना और उसके लोगों को उससे निकालना, अल्लाह की स्पष्ट में इससे भी अधिक गम्भीर है और फ़ितना (उत्पीड़न), रक्तपात से भी बुरा है।\" और उसका बस चले तो वे तो तुमसे बराबर लड़ते रहे, ताकि तुम्हें तुम्हारे दीन (धर्म) से फेर दें। और तुममे से जो कोई अपने दीन से फिर जाए और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे ही लोग है जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो गए, और वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है, वे उसी में सदैव रहेंगे

إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَٱلَّذِینَ هَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یَرۡجُونَ رَحۡمَتَ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿218﴾

रहे वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह के मार्ग में घर-बार छोड़ा और जिहाद किया, वहीं अल्लाह की दयालुता की आशा रखते है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है

۞ یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡخَمۡرِ وَٱلۡمَیۡسِرِۖ قُلۡ فِیهِمَاۤ إِثۡمࣱ كَبِیرࣱ وَمَنَـٰفِعُ لِلنَّاسِ وَإِثۡمُهُمَاۤ أَكۡبَرُ مِن نَّفۡعِهِمَاۗ وَیَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا یُنفِقُونَۖ قُلِ ٱلۡعَفۡوَۗ كَذَ ٰ⁠لِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ ﴿219﴾

तुमसे शराब और जुए के विषय में पूछते है। कहो, \"उन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है, यद्यपि लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी है, परन्तु उनका गुनाह उनके फ़ायदे से कहीं बढकर है।\" और वे तुमसे पूछते है, \"कितना ख़र्च करें?\" कहो, \"जो आवश्यकता से अधिक हो।\" इस प्रकार अल्लाह दुनिया और आख़िरत के विषय में तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो।

فِی ٱلدُّنۡیَا وَٱلۡـَٔاخِرَةِۗ وَیَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡیَتَـٰمَىٰۖ قُلۡ إِصۡلَاحࣱ لَّهُمۡ خَیۡرࣱۖ وَإِن تُخَالِطُوهُمۡ فَإِخۡوَ ٰ⁠نُكُمۡۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ ٱلۡمُفۡسِدَ مِنَ ٱلۡمُصۡلِحِۚ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَأَعۡنَتَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿220﴾

और वे तुमसे अनाथों के विषय में पूछते है। कहो, \"उनके सुधार की जो रीति अपनाई जाए अच्छी है। और यदि तुम उन्हें अपने साथ सम्मिलित कर लो तो वे तुम्हारे भाई-बन्धु ही हैं। और अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवाले को बचाव पैदा करनेवाले से अलग पहचानता है। और यदि अल्लाह चाहता तो तुमको ज़हमत (कठिनाई) में डाल देता। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।\"

وَلَا تَنكِحُوا۟ ٱلۡمُشۡرِكَـٰتِ حَتَّىٰ یُؤۡمِنَّۚ وَلَأَمَةࣱ مُّؤۡمِنَةٌ خَیۡرࣱ مِّن مُّشۡرِكَةࣲ وَلَوۡ أَعۡجَبَتۡكُمۡۗ وَلَا تُنكِحُوا۟ ٱلۡمُشۡرِكِینَ حَتَّىٰ یُؤۡمِنُوا۟ۚ وَلَعَبۡدࣱ مُّؤۡمِنٌ خَیۡرࣱ مِّن مُّشۡرِكࣲ وَلَوۡ أَعۡجَبَكُمۡۗ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یَدۡعُونَ إِلَى ٱلنَّارِۖ وَٱللَّهُ یَدۡعُوۤا۟ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ وَٱلۡمَغۡفِرَةِ بِإِذۡنِهِۦۖ وَیُبَیِّنُ ءَایَـٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ یَتَذَكَّرُونَ ﴿221﴾

और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करो जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानदारी बांदी (दासी), मुशरिक स्त्री से कहीं उत्तम है; चाहे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी क्यों न लगे। और न (ईमानवाली स्त्रियाँ) मुशरिक पुरुषों से विवाह करो, जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानवाला गुलाम आज़ाद मुशरिक से कहीं उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न लगे। ऐसे लोग आग (जहन्नम) की ओर बुलाते है और अल्लाह अपनी अनुज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है। और वह अपनी आयतें लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे चेतें

وَیَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡمَحِیضِۖ قُلۡ هُوَ أَذࣰى فَٱعۡتَزِلُوا۟ ٱلنِّسَاۤءَ فِی ٱلۡمَحِیضِ وَلَا تَقۡرَبُوهُنَّ حَتَّىٰ یَطۡهُرۡنَۖ فَإِذَا تَطَهَّرۡنَ فَأۡتُوهُنَّ مِنۡ حَیۡثُ أَمَرَكُمُ ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ یُحِبُّ ٱلتَّوَّ ٰ⁠بِینَ وَیُحِبُّ ٱلۡمُتَطَهِّرِینَ ﴿222﴾

और वे तुमसे मासिक-धर्म के विषय में पूछते है। कहो, \"वह एक तकलीफ़ और गन्दगी की चीज़ है। अतः मासिक-धर्म के दिनों में स्त्रियों से अलग रहो और उनके पास न जाओ, जबतक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएँ। फिर जब वे भली-भाँति पाक-साफ़ हो जाए, तो जिस प्रकार अल्लाह ने तुम्हें बताया है, उनके पास आओ। निस्संदेह अल्लाह बहुत तौबा करनेवालों को पसन्द करता है और वह उन्हें पसन्द करता है जो स्वच्छता को पसन्द करते है

نِسَاۤؤُكُمۡ حَرۡثࣱ لَّكُمۡ فَأۡتُوا۟ حَرۡثَكُمۡ أَنَّىٰ شِئۡتُمۡۖ وَقَدِّمُوا۟ لِأَنفُسِكُمۡۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّكُم مُّلَـٰقُوهُۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿223﴾

तुम्हारी स्त्रियों तुम्हारी खेती है। अतः जिस प्रकार चाहो तुम अपनी खेती में आओ और अपने लिए आगे भेजो; और अल्लाह से डरते रहो; भली-भाँति जान ले कि तुम्हें उससे मिलना है; और ईमान लानेवालों को शुभ-सूचना दे दो

وَلَا تَجۡعَلُوا۟ ٱللَّهَ عُرۡضَةࣰ لِّأَیۡمَـٰنِكُمۡ أَن تَبَرُّوا۟ وَتَتَّقُوا۟ وَتُصۡلِحُوا۟ بَیۡنَ ٱلنَّاسِۚ وَٱللَّهُ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿224﴾

अपने नेक और धर्मपरायण होने और लोगों के मध्य सुधारक होने के सिलसिले में अपनी क़समों के द्वारा अल्लाह को आड़ और निशाना न बनाओ कि इन कामों को छोड़ दो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है

لَّا یُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغۡوِ فِیۤ أَیۡمَـٰنِكُمۡ وَلَـٰكِن یُؤَاخِذُكُم بِمَا كَسَبَتۡ قُلُوبُكُمۡۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ حَلِیمࣱ ﴿225﴾

अल्लाह तुम्हें तुम्हारी ऐसी कसमों पर नहीं पकड़ेगा जो यूँ ही मुँह से निकल गई हो, लेकिन उन क़समों पर वह तुम्हें अवश्य पकड़ेगा जो तुम्हारे दिल के इरादे का नतीजा हों। अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है

لِّلَّذِینَ یُؤۡلُونَ مِن نِّسَاۤىِٕهِمۡ تَرَبُّصُ أَرۡبَعَةِ أَشۡهُرࣲۖ فَإِن فَاۤءُو فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿226﴾

जो लोग अपनी स्त्रियों से अलग रहने की क़सम खा बैठें, उनके लिए चार महीने की प्रतिक्षा है। फिर यदि वे पलट आएँ, तो अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है

وَإِنۡ عَزَمُوا۟ ٱلطَّلَـٰقَ فَإِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿227﴾

और यदि वे तलाक़ ही की ठान लें, तो अल्लाह भी सुननेवाला भली-भाँति जाननेवाला है

وَٱلۡمُطَلَّقَـٰتُ یَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ ثَلَـٰثَةَ قُرُوۤءࣲۚ وَلَا یَحِلُّ لَهُنَّ أَن یَكۡتُمۡنَ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ فِیۤ أَرۡحَامِهِنَّ إِن كُنَّ یُؤۡمِنَّ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۚ وَبُعُولَتُهُنَّ أَحَقُّ بِرَدِّهِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ إِنۡ أَرَادُوۤا۟ إِصۡلَـٰحࣰاۚ وَلَهُنَّ مِثۡلُ ٱلَّذِی عَلَیۡهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ وَلِلرِّجَالِ عَلَیۡهِنَّ دَرَجَةࣱۗ وَٱللَّهُ عَزِیزٌ حَكِیمٌ ﴿228﴾

और तलाक़ पाई हुई स्त्रियाँ तीन हैज़ (मासिक-धर्म) गुज़रने तक अपने-आप को रोके रखे, और यदि वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखती है तो उनके लिए यह वैध न होगा कि अल्लाह ने उनके गर्भाशयों में जो कुछ पैदा किया हो उसे छिपाएँ। इस बीच उनके पति, यदि सम्बन्धों को ठीक कर लेने का इरादा रखते हों, तो वे उन्हें लौटा लेने के ज़्यादा हक़दार है। और उन पत्नियों के भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं, जैसी उन पर ज़िम्मेदारियाँ डाली गई है। और पतियों को उनपर एक दर्जा प्राप्त है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

ٱلطَّلَـٰقُ مَرَّتَانِۖ فَإِمۡسَاكُۢ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ تَسۡرِیحُۢ بِإِحۡسَـٰنࣲۗ وَلَا یَحِلُّ لَكُمۡ أَن تَأۡخُذُوا۟ مِمَّاۤ ءَاتَیۡتُمُوهُنَّ شَیۡـًٔا إِلَّاۤ أَن یَخَافَاۤ أَلَّا یُقِیمَا حُدُودَ ٱللَّهِۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا یُقِیمَا حُدُودَ ٱللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِمَا فِیمَا ٱفۡتَدَتۡ بِهِۦۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَعۡتَدُوهَاۚ وَمَن یَتَعَدَّ حُدُودَ ٱللَّهِ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿229﴾

तलाक़ दो बार है। फिर सामान्य नियम के अनुसार (स्त्री को) रोक लिया जाए या भले तरीक़े से विदा कर दिया जाए। और तुम्हारे लिए वैध नहीं है कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो, उसमें से कुछ ले लो, सिवाय इस स्थिति के कि दोनों को डर हो कि अल्लाह की (निर्धारित) सीमाओं पर क़ायम न रह सकेंगे तो यदि तुमको यह डर हो कि वे अल्लाह की सीमाओ पर क़ायम न रहेंगे तो स्त्री जो कुछ देकर छुटकारा प्राप्त करना चाहे उसमें उन दोनो के लिए कोई गुनाह नहीं। ये अल्लाह की सीमाएँ है। अतः इनका उल्लंघन न करो। और जो कोई अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो ऐसे लोग अत्याचारी है

فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُۥ مِنۢ بَعۡدُ حَتَّىٰ تَنكِحَ زَوۡجًا غَیۡرَهُۥۗ فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِمَاۤ أَن یَتَرَاجَعَاۤ إِن ظَنَّاۤ أَن یُقِیمَا حُدُودَ ٱللَّهِۗ وَتِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ یُبَیِّنُهَا لِقَوۡمࣲ یَعۡلَمُونَ ﴿230﴾

(दो तलाक़ो के पश्चात) फिर यदि वह उसे तलाक़ दे दे, तो इसके पश्चात वह उसके लिए वैध न होगी, जबतक कि वह उसके अतिरिक्त किसी दूसरे पति से निकाह न कर ले। अतः यदि वह उसे तलाक़ दे दे तो फिर उन दोनों के लिए एक-दूसरे को पलट आने में कोई गुनाह न होगा, यदि वे समझते हो कि अल्लाह की सीमाओं पर क़ायम रह सकते है। और ये अल्लाह कि निर्धारित की हुई सीमाएँ है, जिन्हें वह उन लोगों के लिए बयान कर रहा है जो जानना चाहते हो

وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَاۤءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمۡسِكُوهُنَّ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ سَرِّحُوهُنَّ بِمَعۡرُوفࣲۚ وَلَا تُمۡسِكُوهُنَّ ضِرَارࣰا لِّتَعۡتَدُوا۟ۚ وَمَن یَفۡعَلۡ ذَ ٰ⁠لِكَ فَقَدۡ ظَلَمَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَا تَتَّخِذُوۤا۟ ءَایَـٰتِ ٱللَّهِ هُزُوࣰاۚ وَٱذۡكُرُوا۟ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَیۡكُمۡ وَمَاۤ أَنزَلَ عَلَیۡكُم مِّنَ ٱلۡكِتَـٰبِ وَٱلۡحِكۡمَةِ یَعِظُكُم بِهِۦۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿231﴾

और यदि जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निश्चित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, जो सामान्य नियम के अनुसार उन्हें रोक लो या सामान्य नियम के अनुसार उन्हें विदा कर दो। और तुम उन्हें नुक़सान पहुँचाने के ध्येय से न रोको कि ज़्यादती करो। और जो ऐसा करेगा, तो उसने स्वयं अपने ही ऊपर ज़ुल्म किया। और अल्लाह की आयतों को परिहास का विषय न बनाओ, और अल्लाह की कृपा जो तुम पर हुई है उसे याद रखो और उस किताब और तत्वदर्शिता (हिकमत) को याद रखो जो उसने तुम पर उतारी है, जिसके द्वारा वह तुम्हें नसीहत करता है। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह हर चीज को जाननेवाला है

وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَاۤءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعۡضُلُوهُنَّ أَن یَنكِحۡنَ أَزۡوَ ٰ⁠جَهُنَّ إِذَا تَرَ ٰ⁠ضَوۡا۟ بَیۡنَهُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ ذَ ٰ⁠لِكَ یُوعَظُ بِهِۦ مَن كَانَ مِنكُمۡ یُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۗ ذَ ٰ⁠لِكُمۡ أَزۡكَىٰ لَكُمۡ وَأَطۡهَرُۚ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ﴿232﴾

और जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें अपने होनेवाले दूसरे पतियों से विवाह करने से न रोको, जबकि वे सामान्य नियम के अनुसार परस्पर रज़ामन्दी से मामला तय करें। यह नसीहत तुममें से उसको की जा रही है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखता है। यही तुम्हारे लिए ज़्यादा बरकतवाला और सुथरा तरीक़ा है। और अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते

۞ وَٱلۡوَ ٰ⁠لِدَ ٰ⁠تُ یُرۡضِعۡنَ أَوۡلَـٰدَهُنَّ حَوۡلَیۡنِ كَامِلَیۡنِۖ لِمَنۡ أَرَادَ أَن یُتِمَّ ٱلرَّضَاعَةَۚ وَعَلَى ٱلۡمَوۡلُودِ لَهُۥ رِزۡقُهُنَّ وَكِسۡوَتُهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ لَا تُكَلَّفُ نَفۡسٌ إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَا تُضَاۤرَّ وَ ٰ⁠لِدَةُۢ بِوَلَدِهَا وَلَا مَوۡلُودࣱ لَّهُۥ بِوَلَدِهِۦۚ وَعَلَى ٱلۡوَارِثِ مِثۡلُ ذَ ٰ⁠لِكَۗ فَإِنۡ أَرَادَا فِصَالًا عَن تَرَاضࣲ مِّنۡهُمَا وَتَشَاوُرࣲ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡهِمَاۗ وَإِنۡ أَرَدتُّمۡ أَن تَسۡتَرۡضِعُوۤا۟ أَوۡلَـٰدَكُمۡ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ إِذَا سَلَّمۡتُم مَّاۤ ءَاتَیۡتُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿233﴾

और जो कोई पूरी अवधि तक (बच्चे को) दूध पिलवाना चाहे, तो माएँ अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष तक दूध पिलाएँ। और वह जिसका बच्चा है, सामान्य नियम के अनुसार उनके खाने और उनके कपड़े का ज़िम्मेदार है। किसी पर बस उसकी अपनी समाई भर ही ज़िम्मेदारी है, न तो कोई माँ अपने बच्चे के कारण (बच्चे के बाप को) नुक़सान पहुँचाए और न बाप अपने बच्चे के कारण (बच्चे की माँ को) नुक़सान पहुँचाए। और इसी प्रकार की ज़िम्मेदारी उसके वारिस पर भी आती है। फिर यदि दोनों पारस्परिक स्वेच्छा और परामर्श से दूध छुड़ाना चाहें तो उनपर कोई गुनाह नहीं। और यदि तुम अपनी संतान को किसी अन्य स्त्री से दूध पिलवाना चाहो तो इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं, जबकि तुमने जो कुछ बदले में देने का वादा किया हो, सामान्य नियम के अनुसार उसे चुका दो। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है

وَٱلَّذِینَ یُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَیَذَرُونَ أَزۡوَ ٰ⁠جࣰا یَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ أَرۡبَعَةَ أَشۡهُرࣲ وَعَشۡرࣰاۖ فَإِذَا بَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ فِیمَا فَعَلۡنَ فِیۤ أَنفُسِهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿234﴾

और तुममें से जो लोग मर जाएँ और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाएँ, तो वे पत्नियों अपने-आपको चार महीने और दस दिन तक रोके रखें। फिर जब वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो सामान्य नियम के अनुसार वे अपने लिए जो कुछ करें, उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है

وَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ فِیمَا عَرَّضۡتُم بِهِۦ مِنۡ خِطۡبَةِ ٱلنِّسَاۤءِ أَوۡ أَكۡنَنتُمۡ فِیۤ أَنفُسِكُمۡۚ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ سَتَذۡكُرُونَهُنَّ وَلَـٰكِن لَّا تُوَاعِدُوهُنَّ سِرًّا إِلَّاۤ أَن تَقُولُوا۟ قَوۡلࣰا مَّعۡرُوفࣰاۚ وَلَا تَعۡزِمُوا۟ عُقۡدَةَ ٱلنِّكَاحِ حَتَّىٰ یَبۡلُغَ ٱلۡكِتَـٰبُ أَجَلَهُۥۚ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا فِیۤ أَنفُسِكُمۡ فَٱحۡذَرُوهُۚ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ حَلِیمࣱ ﴿235﴾

और इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं जो तुम उन औरतों को विवाह के सन्देश सांकेतिक रूप से दो या अपने मन में छिपाए रखो। अल्लाह जानता है कि तुम उन्हें याद करोगे, परन्तु छिपकर उन्हें वचन न देना, सिवाय इसके कि सामान्य नियम के अनुसार कोई बात कह दो। और जब तक निर्धारित अवधि (इद्दत) पूरी न हो जाए, विवाह का नाता जोड़ने का निश्चय न करो। जान रखो कि अल्लाह तुम्हारे मन की बात भी जानता है। अतः उससे सावधान रहो और अल्लाह अत्यन्त क्षमा करनेवाला, सहनशील है

لَّا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ إِن طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَاۤءَ مَا لَمۡ تَمَسُّوهُنَّ أَوۡ تَفۡرِضُوا۟ لَهُنَّ فَرِیضَةࣰۚ وَمَتِّعُوهُنَّ عَلَى ٱلۡمُوسِعِ قَدَرُهُۥ وَعَلَى ٱلۡمُقۡتِرِ قَدَرُهُۥ مَتَـٰعَۢا بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿236﴾

यदि तुम स्त्रियों को इस स्थिति मे तलाक़ दे दो कि यह नौबत पेश न आई हो कि तुमने उन्हें हाथ लगाया हो और उनका कुछ हक़ (मह्रन) निश्चित किया हो, तो तुमपर कोई भार नहीं। हाँ, सामान्य नियम के अनुसार उन्हें कुछ ख़र्च दो - समाई रखनेवाले पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार और तंगदस्त पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार अनिवार्य है - यह अच्छे लोगों पर एक हक़ है

وَإِن طَلَّقۡتُمُوهُنَّ مِن قَبۡلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ وَقَدۡ فَرَضۡتُمۡ لَهُنَّ فَرِیضَةࣰ فَنِصۡفُ مَا فَرَضۡتُمۡ إِلَّاۤ أَن یَعۡفُونَ أَوۡ یَعۡفُوَا۟ ٱلَّذِی بِیَدِهِۦ عُقۡدَةُ ٱلنِّكَاحِۚ وَأَن تَعۡفُوۤا۟ أَقۡرَبُ لِلتَّقۡوَىٰۚ وَلَا تَنسَوُا۟ ٱلۡفَضۡلَ بَیۡنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرٌ ﴿237﴾

और यदि तुम उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो, किन्तु उसका मह्र- निश्चित कर चुके हो, तो जो मह्रह तुमने निश्चित किया है उसका आधा अदा करना होगा, यह और बात है कि वे स्वयं छोड़ दे या पुरुष जिसके हाथ में विवाह का सूत्र है, वह नर्मी से काम ले (और मह्र पूरा अदा कर दे) । और यह कि तुम नर्मी से काम लो तो यह परहेज़गारी से ज़्यादा क़रीब है और तुम एक-दूसरे को हक़ से बढ़कर देना न भूलो। निश्चय ही अल्लाह उसे देख रहा है, जो तुम करते हो

حَـٰفِظُوا۟ عَلَى ٱلصَّلَوَ ٰ⁠تِ وَٱلصَّلَوٰةِ ٱلۡوُسۡطَىٰ وَقُومُوا۟ لِلَّهِ قَـٰنِتِینَ ﴿238﴾

सदैव नमाज़ो की और अच्छी नमाज़ों की पाबन्दी करो, और अल्लाह के आगे पूरे विनीत और शान्तभाव से खड़े हुआ करो

فَإِنۡ خِفۡتُمۡ فَرِجَالًا أَوۡ رُكۡبَانࣰاۖ فَإِذَاۤ أَمِنتُمۡ فَٱذۡكُرُوا۟ ٱللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُم مَّا لَمۡ تَكُونُوا۟ تَعۡلَمُونَ ﴿239﴾

फिर यदि तुम्हें (शत्रु आदि का) भय हो, तो पैदल या सवार जिस तरह सम्भव हो नमाज़ पढ़ लो। फिर जब निश्चिन्त हो तो अल्लाह को उस प्रकार याद करो जैसाकि उसने तुम्हें सिखाया है, जिसे तुम नहीं जानते थे

وَٱلَّذِینَ یُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَیَذَرُونَ أَزۡوَ ٰ⁠جࣰا وَصِیَّةࣰ لِّأَزۡوَ ٰ⁠جِهِم مَّتَـٰعًا إِلَى ٱلۡحَوۡلِ غَیۡرَ إِخۡرَاجࣲۚ فَإِنۡ خَرَجۡنَ فَلَا جُنَاحَ عَلَیۡكُمۡ فِی مَا فَعَلۡنَ فِیۤ أَنفُسِهِنَّ مِن مَّعۡرُوفࣲۗ وَٱللَّهُ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿240﴾

और तुममें से जिन लोगों की मृत्यु हो जाए और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाए, अर्थात अपनी पत्नियों के हक़ में यह वसीयत छोड़ जाए कि घर से निकाले बिना एक वर्ष तक उन्हें ख़र्च दिया जाए, तो यदि वे निकल जाएँ तो अपने लिए सामान्य नियम के अनुसार वे जो कुछ भी करें उसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है

وَلِلۡمُطَلَّقَـٰتِ مَتَـٰعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِینَ ﴿241﴾

और तलाक़ पाई हुई स्त्रियों को सामान्य नियम के अनुसार (इद्दत की अवधि में) ख़र्च भी मिलना चाहिए। यह डर रखनेवालो पर एक हक़ है

كَذَ ٰ⁠لِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَایَـٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ﴿242﴾

इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोलकर बयान करता है, ताकि तुम समझ से काम लो

۞ أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِینَ خَرَجُوا۟ مِن دِیَـٰرِهِمۡ وَهُمۡ أُلُوفٌ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِ فَقَالَ لَهُمُ ٱللَّهُ مُوتُوا۟ ثُمَّ أَحۡیَـٰهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا یَشۡكُرُونَ ﴿243﴾

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो हज़ारों की संख्या में होने पर भी मृत्यु के भय से अपने घर-बार छोड़कर निकले थे? तो अल्लाह ने उनसे कहा, \"मृत्यु प्राय हो जाओ तुम।\" फिर उसने उन्हें जीवन प्रदान किया। अल्लाह तो लोगों के लिए उदार अनुग्राही है, किन्तु अधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखलाते

وَقَـٰتِلُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿244﴾

और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुननेवाला, जाननेवाले है

مَّن ذَا ٱلَّذِی یُقۡرِضُ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنࣰا فَیُضَـٰعِفَهُۥ لَهُۥۤ أَضۡعَافࣰا كَثِیرَةࣰۚ وَٱللَّهُ یَقۡبِضُ وَیَبۡصُۜطُ وَإِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿245﴾

कौन है जो अल्लाह को अच्छा ऋण दे कि अल्लाह उसे उसके लिए कई गुना बढ़ा दे? और अल्लाह ही तंगी भी देता है और कुशादगी भी प्रदान करता है, और उसी की ओर तुम्हें लौटना है

أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ مِنۢ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰ⁠ۤءِیلَ مِنۢ بَعۡدِ مُوسَىٰۤ إِذۡ قَالُوا۟ لِنَبِیࣲّ لَّهُمُ ٱبۡعَثۡ لَنَا مَلِكࣰا نُّقَـٰتِلۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِۖ قَالَ هَلۡ عَسَیۡتُمۡ إِن كُتِبَ عَلَیۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ أَلَّا تُقَـٰتِلُوا۟ۖ قَالُوا۟ وَمَا لَنَاۤ أَلَّا نُقَـٰتِلَ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَقَدۡ أُخۡرِجۡنَا مِن دِیَـٰرِنَا وَأَبۡنَاۤىِٕنَاۖ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَیۡهِمُ ٱلۡقِتَالُ تَوَلَّوۡا۟ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّنۡهُمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِیمُۢ بِٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿246﴾

क्या तुमने मूसा के पश्चात इसराईल की सन्तान के सरदारों को नहीं देखा, जब उन्होंने अपने एक नबी से कहा, \"हमारे लिए एक सम्राट नियुक्त कर दो ताकि हम अल्लाह के मार्ग में युद्ध करें?\" उसने कहा, \"यदि तुम्हें लड़ाई का आदेश दिया जाए तो क्या तुम्हारे बारे में यह सम्भावना नहीं है कि तुम न लड़ो?\" वे कहने लगे, \"हम अल्लाह के मार्ग में क्यों न लड़े, जबकि हम अपने घरों से निकाल दिए गए है और अपने बाल-बच्चों से भी अलग कर दिए गए है?\" - फिर जब उनपर युद्ध अनिवार्य कर दिया गया तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सब फिर गए। और अल्लाह ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है। -

وَقَالَ لَهُمۡ نَبِیُّهُمۡ إِنَّ ٱللَّهَ قَدۡ بَعَثَ لَكُمۡ طَالُوتَ مَلِكࣰاۚ قَالُوۤا۟ أَنَّىٰ یَكُونُ لَهُ ٱلۡمُلۡكُ عَلَیۡنَا وَنَحۡنُ أَحَقُّ بِٱلۡمُلۡكِ مِنۡهُ وَلَمۡ یُؤۡتَ سَعَةࣰ مِّنَ ٱلۡمَالِۚ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰهُ عَلَیۡكُمۡ وَزَادَهُۥ بَسۡطَةࣰ فِی ٱلۡعِلۡمِ وَٱلۡجِسۡمِۖ وَٱللَّهُ یُؤۡتِی مُلۡكَهُۥ مَن یَشَاۤءُۚ وَٱللَّهُ وَ ٰ⁠سِعٌ عَلِیمࣱ ﴿247﴾

उनसे नबी ने उनसे कहा, \"अल्लाह ने तुम्हारे लिए तालूत को सम्राट नियुक्त किया है।\" बोले, \"उसकी बादशाही हम पर कैसे हो सकती है, जबबकि हम उसके मुक़ाबले में बादशाही के ज़्यादा हक़दार है और जबकि उस माल की कुशादगी भी प्राप्त नहीं है?\" उसने कहा, \"अल्लाह ने तुम्हारे मुक़ाबले में उसको ही चुना है और उसे ज्ञान में और शारीरिक क्षमता में ज़्यादा कुशादगी प्रदान की है। अल्लाह जिसको चाहे अपना राज्य प्रदान करे। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है।\"

وَقَالَ لَهُمۡ نَبِیُّهُمۡ إِنَّ ءَایَةَ مُلۡكِهِۦۤ أَن یَأۡتِیَكُمُ ٱلتَّابُوتُ فِیهِ سَكِینَةࣱ مِّن رَّبِّكُمۡ وَبَقِیَّةࣱ مِّمَّا تَرَكَ ءَالُ مُوسَىٰ وَءَالُ هَـٰرُونَ تَحۡمِلُهُ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُۚ إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَةࣰ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿248﴾

उनके नबी ने उनसे कहा, \"उसकी बादशाही की निशानी यह है कि वह संदूक तुम्हारे पर आ जाएगा, जिसमें तुम्हारे रह की ओर से सकीनत (प्रशान्ति) और मूसा के लोगों और हारून के लोगों की छोड़ी हुई यादगारें हैं, जिसको फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे। यदि तुम ईमानवाले हो तो, निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी है।\"

فَلَمَّا فَصَلَ طَالُوتُ بِٱلۡجُنُودِ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ مُبۡتَلِیكُم بِنَهَرࣲ فَمَن شَرِبَ مِنۡهُ فَلَیۡسَ مِنِّی وَمَن لَّمۡ یَطۡعَمۡهُ فَإِنَّهُۥ مِنِّیۤ إِلَّا مَنِ ٱغۡتَرَفَ غُرۡفَةَۢ بِیَدِهِۦۚ فَشَرِبُوا۟ مِنۡهُ إِلَّا قَلِیلࣰا مِّنۡهُمۡۚ فَلَمَّا جَاوَزَهُۥ هُوَ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ قَالُوا۟ لَا طَاقَةَ لَنَا ٱلۡیَوۡمَ بِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦۚ قَالَ ٱلَّذِینَ یَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَـٰقُوا۟ ٱللَّهِ كَم مِّن فِئَةࣲ قَلِیلَةٍ غَلَبَتۡ فِئَةࣰ كَثِیرَةَۢ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿249﴾

फिर तब तालूत सेनाएँ लेकर चला तो उनने कहा, \"अल्लाह निश्चित रूप से एक नदी द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेनेवाला है। तो जिसने उसका पानी पी लिया, वह मुझमें से नहीं है और जिसने उसको नहीं चखा, वही मुझमें से है। यह और बात है कि कोई अपने हाथ से एक चुल्लू भर ले ले।\" फिर उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सभी ने उसका पानी पी लिया, फिर जब तालूत और ईमानवाले जो उसके साथ थे नदी पार कर गए तो कहने लगे, \"आज हममें जालूत और उसकी सेनाओं का मुक़ाबला करने की शक्ति नहीं हैं।\" इस पर लोगों ने, जो समझते थे कि उन्हें अल्लाह से मिलना है, कहा, \"कितनी ही बार एक छोटी-सी टुकड़ी ने अल्लाह की अनुज्ञा से एक बड़े गिरोह पर विजय पाई है। अल्लाह तो जमनेवालो के साथ है।\"

وَلَمَّا بَرَزُوا۟ لِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦ قَالُوا۟ رَبَّنَاۤ أَفۡرِغۡ عَلَیۡنَا صَبۡرࣰا وَثَبِّتۡ أَقۡدَامَنَا وَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿250﴾

और जब वे जालूत और उसकी सेनाओं के मुक़ाबले पर आए तो कहा, \"ऐ हमारे रब! हमपर धैर्य उडेल दे और हमारे क़दम जमा दे और इनकार करनेवाले लोगों पर हमें विजय प्रदान कर।\"

فَهَزَمُوهُم بِإِذۡنِ ٱللَّهِ وَقَتَلَ دَاوُۥدُ جَالُوتَ وَءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَعَلَّمَهُۥ مِمَّا یَشَاۤءُۗ وَلَوۡلَا دَفۡعُ ٱللَّهِ ٱلنَّاسَ بَعۡضَهُم بِبَعۡضࣲ لَّفَسَدَتِ ٱلۡأَرۡضُ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ ذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿251﴾

अन्ततः अल्लाह की अनुज्ञा से उन्होंने उनको पराजित कर दिया और दाऊद ने जालूत को क़त्ल कर दिया, और अल्लाह ने उसे राज्य और तत्वदर्शिता (हिकमत) प्रदान की, जो कुछ वह (दाऊद) चाहे, उससे उसको अवगत कराया। और यदि अल्लाह मनुष्यों के एक गिरोह को दूसरे गिरोह के द्वारा हटाता न रहता तो धरती की व्यवस्था बिगड़ जाती, किन्तु अल्लाह संसारवालों के लिए उदार अनुग्राही है

تِلۡكَ ءَایَـٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَیۡكَ بِٱلۡحَقِّۚ وَإِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿252﴾

ये अल्लाह की सच्ची आयतें है जो हम तुम्हें (सोद्देश्य) सुना रहे है और निश्चय ही तुम उन लोगों में से हो, जो रसूस बनाकर भेजे गए है

۞ تِلۡكَ ٱلرُّسُلُ فَضَّلۡنَا بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضࣲۘ مِّنۡهُم مَّن كَلَّمَ ٱللَّهُۖ وَرَفَعَ بَعۡضَهُمۡ دَرَجَـٰتࣲۚ وَءَاتَیۡنَا عِیسَى ٱبۡنَ مَرۡیَمَ ٱلۡبَیِّنَـٰتِ وَأَیَّدۡنَـٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلَ ٱلَّذِینَ مِنۢ بَعۡدِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَتۡهُمُ ٱلۡبَیِّنَـٰتُ وَلَـٰكِنِ ٱخۡتَلَفُوا۟ فَمِنۡهُم مَّنۡ ءَامَنَ وَمِنۡهُم مَّن كَفَرَۚ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلُوا۟ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ یَفۡعَلُ مَا یُرِیدُ ﴿253﴾

ये रसूल ऐसे हुए है कि इनमें हमने कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की। इनमें कुछ से तो अल्लाह ने बातचीत की और इनमें से कुछ को दर्जों की स्पष्ट से उच्चता प्रदान की। और मरयम के बेटे ईसा को हमने खुली निशानियाँ दी और पवित्र आत्मा से उसकी सहायता की। और यदि अल्लाह चाहता तो वे लोग, जो उनके पश्चात हुए, खुली निशानियाँ पा लेने के बाद परस्पर न लड़ते। किन्तु वे विभेद में पड़ गए तो उनमें से कोई तो ईमान लाया और उनमें से किसी ने इनकार की नीति अपनाई। और यदि अल्लाह चाहता तो वे परस्पर न लड़ते, परन्तु अल्लाह जो चाहता है, करता है

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَنفِقُوا۟ مِمَّا رَزَقۡنَـٰكُم مِّن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَ یَوۡمࣱ لَّا بَیۡعࣱ فِیهِ وَلَا خُلَّةࣱ وَلَا شَفَـٰعَةࣱۗ وَٱلۡكَـٰفِرُونَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿254﴾

ऐ ईमान लानेवालो! हमने जो कुछ तुम्हें प्रदान किया है उसमें से ख़र्च करो, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई मित्रता होगी और न कोई सिफ़ारिश। ज़ालिम वही है, जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई है

ٱللَّهُ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡحَیُّ ٱلۡقَیُّومُۚ لَا تَأۡخُذُهُۥ سِنَةࣱ وَلَا نَوۡمࣱۚ لَّهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۗ مَن ذَا ٱلَّذِی یَشۡفَعُ عِندَهُۥۤ إِلَّا بِإِذۡنِهِۦۚ یَعۡلَمُ مَا بَیۡنَ أَیۡدِیهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡۖ وَلَا یُحِیطُونَ بِشَیۡءࣲ مِّنۡ عِلۡمِهِۦۤ إِلَّا بِمَا شَاۤءَۚ وَسِعَ كُرۡسِیُّهُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَۖ وَلَا یَـُٔودُهُۥ حِفۡظُهُمَاۚ وَهُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡعَظِیمُ ﴿255﴾

अल्लाह कि जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, वह जीवन्त-सत्ता है, सबको सँभालने और क़ायम रखनेवाला है। उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा। उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कौन है जो उसके यहाँ उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा। उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्त है और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह उच्च, महान है

لَاۤ إِكۡرَاهَ فِی ٱلدِّینِۖ قَد تَّبَیَّنَ ٱلرُّشۡدُ مِنَ ٱلۡغَیِّۚ فَمَن یَكۡفُرۡ بِٱلطَّـٰغُوتِ وَیُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱسۡتَمۡسَكَ بِٱلۡعُرۡوَةِ ٱلۡوُثۡقَىٰ لَا ٱنفِصَامَ لَهَاۗ وَٱللَّهُ سَمِیعٌ عَلِیمٌ ﴿256﴾

धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं। सही बात नासमझी की बात से अलग होकर स्पष्ट हो गई है। तो अब जो कोई बढ़े हुए सरकश को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान लाए, उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटनेवाला नहीं। अल्लाह सब कुछ सुनने, जाननेवाला है

ٱللَّهُ وَلِیُّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ یُخۡرِجُهُم مِّنَ ٱلظُّلُمَـٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۖ وَٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ أَوۡلِیَاۤؤُهُمُ ٱلطَّـٰغُوتُ یُخۡرِجُونَهُم مِّنَ ٱلنُّورِ إِلَى ٱلظُّلُمَـٰتِۗ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿257﴾

जो लोग ईमान लाते है, अल्लाह उनका रक्षक और सहायक है। वह उन्हें अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया तो उनके संरक्षक बढ़े हुए सरकश है। वे उन्हें प्रकाश से निकालकर अँधेरों की ओर ले जाते है। वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। वे उसी में सदैव रहेंगे

أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِی حَاۤجَّ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمَ فِی رَبِّهِۦۤ أَنۡ ءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ إِذۡ قَالَ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمُ رَبِّیَ ٱلَّذِی یُحۡیِۦ وَیُمِیتُ قَالَ أَنَا۠ أُحۡیِۦ وَأُمِیتُۖ قَالَ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمُ فَإِنَّ ٱللَّهَ یَأۡتِی بِٱلشَّمۡسِ مِنَ ٱلۡمَشۡرِقِ فَأۡتِ بِهَا مِنَ ٱلۡمَغۡرِبِ فَبُهِتَ ٱلَّذِی كَفَرَۗ وَٱللَّهُ لَا یَهۡدِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿258﴾

क्या तुमने उनको नहीं देखा, जिसने इबराहीम से उसके 'रब' के सिलसिले में झगड़ा किया था, इस कारण कि अल्लाह ने उसको राज्य दे रखा था? जब इबराहीम ने कहा, \"मेरा 'रब' वह है जो जिलाता और मारता है।\" उसने कहा, \"मैं भी तो जिलाता और मारता हूँ।\" इबराहीम ने कहा, \"अच्छा तो अल्लाह सूर्य को पूरब से लाता है, तो तू उसे पश्चिम से ले आ।\" इसपर वह अधर्मी चकित रह गया। अल्लाह ज़ालिम लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता

أَوۡ كَٱلَّذِی مَرَّ عَلَىٰ قَرۡیَةࣲ وَهِیَ خَاوِیَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا قَالَ أَنَّىٰ یُحۡیِۦ هَـٰذِهِ ٱللَّهُ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۖ فَأَمَاتَهُ ٱللَّهُ مِا۟ئَةَ عَامࣲ ثُمَّ بَعَثَهُۥۖ قَالَ كَمۡ لَبِثۡتَۖ قَالَ لَبِثۡتُ یَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ یَوۡمࣲۖ قَالَ بَل لَّبِثۡتَ مِا۟ئَةَ عَامࣲ فَٱنظُرۡ إِلَىٰ طَعَامِكَ وَشَرَابِكَ لَمۡ یَتَسَنَّهۡۖ وَٱنظُرۡ إِلَىٰ حِمَارِكَ وَلِنَجۡعَلَكَ ءَایَةࣰ لِّلنَّاسِۖ وَٱنظُرۡ إِلَى ٱلۡعِظَامِ كَیۡفَ نُنشِزُهَا ثُمَّ نَكۡسُوهَا لَحۡمࣰاۚ فَلَمَّا تَبَیَّنَ لَهُۥ قَالَ أَعۡلَمُ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿259﴾

या उस जैसे (व्यक्ति) को नहीं देखा, जिसका एक ऐसी बस्ती पर से गुज़र हुआ, जो अपनी छतों के बल गिरी हुई थी। उसने कहा, \"अल्लाह इसके विनष्ट हो जाने के पश्चात इसे किस प्रकार जीवन प्रदान करेगा?\" तो अल्लाह ने उसे सौ वर्ष की मृत्यु दे दी, फिर उसे उठा खड़ा किया। कहा, \"तू कितनी अवधि तक इस अवस्था नें रहा।\" उसने कहा, \"मैं एक या दिन का कुछ हिस्सा रहा।\" कहा, \"नहीं, बल्कि तू सौ वर्ष रहा है। अब अपने खाने और पीने की चीज़ों को देख ले, उन पर समय का कोई प्रभाव नहीं, और अपने गधे को भी देख, और यह इसलिए कह रहे है ताकि हम तुझे लोगों के लिए एक निशानी बना दें और हड्डियों को देख कि किस प्रकार हम उन्हें उभारते है, फिर, उनपर माँस चढ़ाते है।\" तो जब वास्तविकता उस पर प्रकट हो गई तो वह पुकार उठा, \" मैं जानता हूँ कि अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।\"

وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَ ٰ⁠هِـۧمُ رَبِّ أَرِنِی كَیۡفَ تُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰۖ قَالَ أَوَلَمۡ تُؤۡمِنۖ قَالَ بَلَىٰ وَلَـٰكِن لِّیَطۡمَىِٕنَّ قَلۡبِیۖ قَالَ فَخُذۡ أَرۡبَعَةࣰ مِّنَ ٱلطَّیۡرِ فَصُرۡهُنَّ إِلَیۡكَ ثُمَّ ٱجۡعَلۡ عَلَىٰ كُلِّ جَبَلࣲ مِّنۡهُنَّ جُزۡءࣰا ثُمَّ ٱدۡعُهُنَّ یَأۡتِینَكَ سَعۡیࣰاۚ وَٱعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿260﴾

और याद करो जब इबराहीम ने कहा, \"ऐ मेरे रब! मुझे दिखा दे, तू मुर्दों को कैसे जीवित करेगा?\" कहा,\" क्या तुझे विश्वास नहीं?\" उसने कहा,\"क्यों नहीं, किन्तु निवेदन इसलिए है कि मेरा दिल संतुष्ट हो जाए।\" कहा, \"अच्छा, तो चार पक्षी ले, फिर उन्हें अपने साथ भली-भाँति हिला-मिला से, फिर उनमें से प्रत्येक को एक-एक पर्वत पर रख दे, फिर उनको पुकार, वे तेरे पास लपककर आएँगे। और जान ले कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।\"

مَّثَلُ ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰ⁠لَهُمۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنۢبَتَتۡ سَبۡعَ سَنَابِلَ فِی كُلِّ سُنۢبُلَةࣲ مِّا۟ئَةُ حَبَّةࣲۗ وَٱللَّهُ یُضَـٰعِفُ لِمَن یَشَاۤءُۚ وَٱللَّهُ وَ ٰ⁠سِعٌ عَلِیمٌ ﴿261﴾

जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, उनकी उपमा ऐसी है, जैसे एक दाना हो, जिससे सात बालें निकलें और प्रत्येक बाल में सौ दाने हो। अल्लाह जिसे चाहता है बढ़ोतरी प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, जाननेवाला है

ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰ⁠لَهُمۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ ثُمَّ لَا یُتۡبِعُونَ مَاۤ أَنفَقُوا۟ مَنࣰّا وَلَاۤ أَذࣰى لَّهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿262﴾

जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, फिर ख़र्च करके उसका न एहसान जताते है और न दिल दुखाते है, उनका बदला उनके अपने रब के पास है। और न तो उनके लिए कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे

۞ قَوۡلࣱ مَّعۡرُوفࣱ وَمَغۡفِرَةٌ خَیۡرࣱ مِّن صَدَقَةࣲ یَتۡبَعُهَاۤ أَذࣰىۗ وَٱللَّهُ غَنِیٌّ حَلِیمࣱ ﴿263﴾

एक भली बात कहनी और क्षमा से काम लेना उस सदक़े से अच्छा है, जिसके पीछे दुख हो। और अल्लाह अत्यन्कृत निस्पृह (बेनियाज़), सहनशील है

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَا تُبۡطِلُوا۟ صَدَقَـٰتِكُم بِٱلۡمَنِّ وَٱلۡأَذَىٰ كَٱلَّذِی یُنفِقُ مَالَهُۥ رِئَاۤءَ ٱلنَّاسِ وَلَا یُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۖ فَمَثَلُهُۥ كَمَثَلِ صَفۡوَانٍ عَلَیۡهِ تُرَابࣱ فَأَصَابَهُۥ وَابِلࣱ فَتَرَكَهُۥ صَلۡدࣰاۖ لَّا یَقۡدِرُونَ عَلَىٰ شَیۡءࣲ مِّمَّا كَسَبُوا۟ۗ وَٱللَّهُ لَا یَهۡدِی ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿264﴾

ऐ ईमानवालो! अपने सदक़ो को एहसान जताकर और दुख देकर उस व्यक्ति की तरह नष्ट न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल ख़र्च करता है और अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान नहीं रखता। तो उसकी हालत उस चट्टान जैसी है जिसपर कुछ मिट्टी पड़ी हुई थी, फिर उस पर ज़ोर की वर्षा हुई और उसे साफ़ चट्टान की दशा में छोड़ गई। ऐसे लोग अपनी कमाई कुछ भी प्राप्त नहीं करते। और अल्लाह इनकार की नीति अपनानेवालों को मार्ग नहीं दिखाता

وَمَثَلُ ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰ⁠لَهُمُ ٱبۡتِغَاۤءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِ وَتَثۡبِیتࣰا مِّنۡ أَنفُسِهِمۡ كَمَثَلِ جَنَّةِۭ بِرَبۡوَةٍ أَصَابَهَا وَابِلࣱ فَـَٔاتَتۡ أُكُلَهَا ضِعۡفَیۡنِ فَإِن لَّمۡ یُصِبۡهَا وَابِلࣱ فَطَلࣱّۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرٌ ﴿265﴾

और जो लोग अपने माल अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधनों की तलब में और अपने दिलों को जमाव प्रदान करने के कारण ख़र्च करते है उनकी हालत उस बाग़़ की तरह है जो किसी अच्छी और उर्वर भूमि पर हो। उस पर घोर वर्षा हुई तो उसमें दुगुने फल आए। फिर यदि घोर वर्षा उस पर नहीं हुई, तो फुहार ही पर्याप्त होगी। तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उसे देख रहा है

أَیَوَدُّ أَحَدُكُمۡ أَن تَكُونَ لَهُۥ جَنَّةࣱ مِّن نَّخِیلࣲ وَأَعۡنَابࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ لَهُۥ فِیهَا مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَ ٰ⁠تِ وَأَصَابَهُ ٱلۡكِبَرُ وَلَهُۥ ذُرِّیَّةࣱ ضُعَفَاۤءُ فَأَصَابَهَاۤ إِعۡصَارࣱ فِیهِ نَارࣱ فَٱحۡتَرَقَتۡۗ كَذَ ٰ⁠لِكَ یُبَیِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡـَٔایَـٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ ﴿266﴾

क्या तुममें से कोई यह चाहेगा कि उसके पास ख़जूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो, जिसके नीचे नहरें बह रही हो, वहाँ उसे हर प्रकार के फल प्राप्त हो और उसका बुढ़ापा आ गया हो और उसके बच्चे अभी कमज़ोर ही हों कि उस बाग़ पर एक आग भरा बगूला आ गया, और वह जलकर रह गया? इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे सामने आयतें खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि सोच-विचार करो

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَنفِقُوا۟ مِن طَیِّبَـٰتِ مَا كَسَبۡتُمۡ وَمِمَّاۤ أَخۡرَجۡنَا لَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِۖ وَلَا تَیَمَّمُوا۟ ٱلۡخَبِیثَ مِنۡهُ تُنفِقُونَ وَلَسۡتُم بِـَٔاخِذِیهِ إِلَّاۤ أَن تُغۡمِضُوا۟ فِیهِۚ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ غَنِیٌّ حَمِیدٌ ﴿267﴾

ऐ ईमान लानेवालो! अपनी कमाई को पाक और अच्छी चीज़ों में से ख़र्च करो और उन चीज़ों में से भी जो हमने धरती से तुम्हारे लिए निकाली है। और देने के लिए उसके ख़राब हिस्से (के देने) का इरादा न करो, जबकि तुम स्वयं उसे कभी न लोगे। यह और बात है कि उसको लेने में देखी-अनदेखी कर जाओ। और जान लो कि अल्लाह निस्पृह, प्रशंसनीय है

ٱلشَّیۡطَـٰنُ یَعِدُكُمُ ٱلۡفَقۡرَ وَیَأۡمُرُكُم بِٱلۡفَحۡشَاۤءِۖ وَٱللَّهُ یَعِدُكُم مَّغۡفِرَةࣰ مِّنۡهُ وَفَضۡلࣰاۗ وَٱللَّهُ وَ ٰ⁠سِعٌ عَلِیمࣱ ﴿268﴾

शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता के कामों पर उभारता है, जबकि अल्लाह अपनी क्षमा और उदार कृपा का तुम्हें वचन देता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है

یُؤۡتِی ٱلۡحِكۡمَةَ مَن یَشَاۤءُۚ وَمَن یُؤۡتَ ٱلۡحِكۡمَةَ فَقَدۡ أُوتِیَ خَیۡرࣰا كَثِیرࣰاۗ وَمَا یَذَّكَّرُ إِلَّاۤ أُو۟لُوا۟ ٱلۡأَلۡبَـٰبِ ﴿269﴾

वह जिसे चाहता है तत्वदर्शिता प्रदान करता है और जिसे तत्वदर्शिता प्राप्त हुई उसे बड़ी दौलत मिल गई। किन्तु चेतते वही है जो बुद्धि और समझवाले है

وَمَاۤ أَنفَقۡتُم مِّن نَّفَقَةٍ أَوۡ نَذَرۡتُم مِّن نَّذۡرࣲ فَإِنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُهُۥۗ وَمَا لِلظَّـٰلِمِینَ مِنۡ أَنصَارٍ ﴿270﴾

और तुमने जो कुछ भी ख़र्च किया और जो कुछ भी नज़र (मन्नत) की हो, निस्सन्देह अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा

إِن تُبۡدُوا۟ ٱلصَّدَقَـٰتِ فَنِعِمَّا هِیَۖ وَإِن تُخۡفُوهَا وَتُؤۡتُوهَا ٱلۡفُقَرَاۤءَ فَهُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡۚ وَیُكَفِّرُ عَنكُم مِّن سَیِّـَٔاتِكُمۡۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِیرࣱ ﴿271﴾

यदि तुम खुले रूप मे सदक़े दो तो यह भी अच्छा है और यदि उनको छिपाकर मुहताजों को दो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है। और यह तुम्हारे कितने ही गुनाहों को मिटा देगा। और अल्लाह को उसकी पूरी ख़बर है, जो कुछ तुम करते हो

۞ لَّیۡسَ عَلَیۡكَ هُدَىٰهُمۡ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ یَهۡدِی مَن یَشَاۤءُۗ وَمَا تُنفِقُوا۟ مِنۡ خَیۡرࣲ فَلِأَنفُسِكُمۡۚ وَمَا تُنفِقُونَ إِلَّا ٱبۡتِغَاۤءَ وَجۡهِ ٱللَّهِۚ وَمَا تُنفِقُوا۟ مِنۡ خَیۡرࣲ یُوَفَّ إِلَیۡكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تُظۡلَمُونَ ﴿272﴾

उन्हें मार्ग पर ला देने का दायित्व तुम पर नहीं है, बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है। और जो कुछ भी माल तुम ख़र्च करोगे, वह तुम्हारे अपने ही भले के लिए होगा और तुम अल्लाह के (बताए हुए) उद्देश्य के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य से ख़र्च न करो। और जो माल भी तुम्हें तुम ख़र्च करोगे, वह पूरा-पूरा तुम्हें चुका दिया जाएगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा

لِلۡفُقَرَاۤءِ ٱلَّذِینَ أُحۡصِرُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ لَا یَسۡتَطِیعُونَ ضَرۡبࣰا فِی ٱلۡأَرۡضِ یَحۡسَبُهُمُ ٱلۡجَاهِلُ أَغۡنِیَاۤءَ مِنَ ٱلتَّعَفُّفِ تَعۡرِفُهُم بِسِیمَـٰهُمۡ لَا یَسۡـَٔلُونَ ٱلنَّاسَ إِلۡحَافࣰاۗ وَمَا تُنفِقُوا۟ مِنۡ خَیۡرࣲ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِیمٌ ﴿273﴾

यह उन मुहताजों के लिए है जो अल्लाह के मार्ग में घिर गए कि धरती में (जीविकोपार्जन के लिए) कोई दौड़-धूप नहीं कर सकते। उनके स्वाभिमान के कारण अपरिचित व्यक्ति उन्हें धनवान समझता है। तुम उन्हें उनके लक्षणो से पहचान सकते हो। वे लिपटकर लोगों से नहीं माँगते। जो माल भी तुम ख़र्च करोगे, वह अल्लाह को ज्ञात होगा

ٱلَّذِینَ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰ⁠لَهُم بِٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِ سِرࣰّا وَعَلَانِیَةࣰ فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿274﴾

जो लोग अपने माल रात-दिन छिपे और खुले ख़र्च करें, उनका बदला तो उनके रब के पास है, और न उन्हें कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे

ٱلَّذِینَ یَأۡكُلُونَ ٱلرِّبَوٰا۟ لَا یَقُومُونَ إِلَّا كَمَا یَقُومُ ٱلَّذِی یَتَخَبَّطُهُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ مِنَ ٱلۡمَسِّۚ ذَ ٰ⁠لِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُوۤا۟ إِنَّمَا ٱلۡبَیۡعُ مِثۡلُ ٱلرِّبَوٰا۟ۗ وَأَحَلَّ ٱللَّهُ ٱلۡبَیۡعَ وَحَرَّمَ ٱلرِّبَوٰا۟ۚ فَمَن جَاۤءَهُۥ مَوۡعِظَةࣱ مِّن رَّبِّهِۦ فَٱنتَهَىٰ فَلَهُۥ مَا سَلَفَ وَأَمۡرُهُۥۤ إِلَى ٱللَّهِۖ وَمَنۡ عَادَ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ أَصۡحَـٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿275﴾

और लोग ब्याज खाते है, वे बस इस प्रकार उठते है जिस प्रकार वह क्यक्ति उठता है जिसे शैतान ने छूकर बावला कर दिया हो और यह इसलिए कि उनका कहना है, \"व्यापार भी तो ब्याज के सदृश है,\" जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध और ब्याज को अवैध ठहराया है। अतः जिसको उसके रब की ओर से नसीहत पहुँची और वह बाज़ आ गया, तो जो कुछ पहले ले चुका वह उसी का रहा और मामला उसका अल्लाह के हवाले है। और जिसने फिर यही कर्म किया तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। उसमें वे सदैव रहेंगे

یَمۡحَقُ ٱللَّهُ ٱلرِّبَوٰا۟ وَیُرۡبِی ٱلصَّدَقَـٰتِۗ وَٱللَّهُ لَا یُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِیمٍ ﴿276﴾

अल्लाह ब्याज को घटाता और मिटाता है और सदक़ों को बढ़ाता है। और अल्लाह किसी अकृतज्ञ, हक़ मारनेवाले को पसन्द नहीं करता

إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ لَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَیۡهِمۡ وَلَا هُمۡ یَحۡزَنُونَ ﴿277﴾

निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और नमाज़ क़ायम की्य और ज़कात दी, उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है, और उन्हें न कोई भय हो और न वे शोकाकुल होंगे

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَذَرُوا۟ مَا بَقِیَ مِنَ ٱلرِّبَوٰۤا۟ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿278﴾

ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और जो कुछ ब्याज बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमानवाले हो

فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُوا۟ فَأۡذَنُوا۟ بِحَرۡبࣲ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَإِن تُبۡتُمۡ فَلَكُمۡ رُءُوسُ أَمۡوَ ٰ⁠لِكُمۡ لَا تَظۡلِمُونَ وَلَا تُظۡلَمُونَ ﴿279﴾

फिर यदि तुमने ऐसा न किया तो अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध के लिए ख़बरदार हो जाओ। और यदि तौबा कर लो तो अपना मूलधन लेने का तुम्हें अधिकार है। न तुम अन्याय करो और न तुम्हारे साथ अन्याय किया जाए

وَإِن كَانَ ذُو عُسۡرَةࣲ فَنَظِرَةٌ إِلَىٰ مَیۡسَرَةࣲۚ وَأَن تَصَدَّقُوا۟ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿280﴾

और यदि कोई तंगी में हो तो हाथ खुलने तक मुहलत देनी होगी; और सदक़ा कर दो (अर्थात मूलधन भी न लो) तो यह तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जान सको

وَٱتَّقُوا۟ یَوۡمࣰا تُرۡجَعُونَ فِیهِ إِلَى ٱللَّهِۖ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسࣲ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿281﴾

और उस दिन का डर रखो जबकि तुम अल्लाह की ओर लौटोगे, फिर प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कदापि कोई अन्याय न होगा

۞ وَإِن كُنتُمۡ عَلَىٰ سَفَرࣲ وَلَمۡ تَجِدُوا۟ كَاتِبࣰا فَرِهَـٰنࣱ مَّقۡبُوضَةࣱۖ فَإِنۡ أَمِنَ بَعۡضُكُم بَعۡضࣰا فَلۡیُؤَدِّ ٱلَّذِی ٱؤۡتُمِنَ أَمَـٰنَتَهُۥ وَلۡیَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥۗ وَلَا تَكۡتُمُوا۟ ٱلشَّهَـٰدَةَۚ وَمَن یَكۡتُمۡهَا فَإِنَّهُۥۤ ءَاثِمࣱ قَلۡبُهُۥۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِیمࣱ ﴿283﴾

और यदि तुम किसी सफ़र में हो और किसी लिखनेवाले को न पा सको, तो गिरवी रखकर मामला करो। फिर यदि तुममें से एक-दूसरे पर भरोसा के, तो जिस पर भरोसा किया है उसे चाहिए कि वह यह सच कर दिखाए कि वह विश्वासपात्र है और अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखे। और गवाही को न छिपाओ। जो उसे छिपाता है तो निश्चय ही उसका दिल गुनाहगार है, और तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है

لِّلَّهِ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۗ وَإِن تُبۡدُوا۟ مَا فِیۤ أَنفُسِكُمۡ أَوۡ تُخۡفُوهُ یُحَاسِبۡكُم بِهِ ٱللَّهُۖ فَیَغۡفِرُ لِمَن یَشَاۤءُ وَیُعَذِّبُ مَن یَشَاۤءُۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿284﴾

अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और जो कुछ तुम्हारे मन है, यदि तुम उसे व्यक्त करो या छिपाओं, अल्लाह तुमसे उसका हिसाब लेगा। फिर वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है

ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَـٰۤىِٕكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَیۡنَ أَحَدࣲ مِّن رُّسُلِهِۦۚ وَقَالُوا۟ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَاۖ غُفۡرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَیۡكَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿285﴾

रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (और उनका कहना यह है,) \"हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।\" और उनका कहना है, \"हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।\"

لَا یُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَعَلَیۡهَا مَا ٱكۡتَسَبَتۡۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذۡنَاۤ إِن نَّسِینَاۤ أَوۡ أَخۡطَأۡنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تَحۡمِلۡ عَلَیۡنَاۤ إِصۡرࣰا كَمَا حَمَلۡتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلۡنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦۖ وَٱعۡفُ عَنَّا وَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَاۤۚ أَنتَ مَوۡلَىٰنَا فَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿286﴾

अल्लाह किसी जीव पर बस उसकी सामर्थ्य और समाई के अनुसार ही दायित्व का भार डालता है। उसका है जो उसने कमाया और उसी पर उसका वबाल (आपदा) भी है जो उसने किया। \"हमारे रब! यदि हम भूलें या चूक जाएँ तो हमें न पकड़ना। हमारे रब! और हम पर ऐसा बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले के लोगों पर डाला था। हमारे रब! और हमसे वह बोझ न उठवा, जिसकी हमें शक्ति नहीं। और हमें क्षमा कर और हमें ढाँक ले, और हमपर दया कर। तू ही हमारा संरक्षक है, अतएव इनकार करनेवालों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।\"