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قَدۡ أَفۡلَحَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ﴿1﴾

सफल हो गए ईमानवाले,

ٱلَّذِینَ هُمۡ فِی صَلَاتِهِمۡ خَـٰشِعُونَ ﴿2﴾

जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता अपनाते है;

وَٱلَّذِینَ هُمۡ عَنِ ٱللَّغۡوِ مُعۡرِضُونَ ﴿3﴾

और जो व्यर्थ बातों से पहलू बचाते है;

وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِلزَّكَوٰةِ فَـٰعِلُونَ ﴿4﴾

और जो ज़कात अदा करते है;

وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِفُرُوجِهِمۡ حَـٰفِظُونَ ﴿5﴾

और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है-

إِلَّا عَلَىٰۤ أَزۡوَ ٰ⁠جِهِمۡ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُهُمۡ فَإِنَّهُمۡ غَیۡرُ مَلُومِینَ ﴿6﴾

सिवाय इस सूरत के कि अपनी पत्नि यों या लौंडियों के पास जाएँ कि इसपर वे निन्दनीय नहीं है

فَمَنِ ٱبۡتَغَىٰ وَرَاۤءَ ذَ ٰ⁠لِكَ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡعَادُونَ ﴿7﴾

परन्तु जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा उल्लंघन करनेवाले है।-

وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِأَمَـٰنَـٰتِهِمۡ وَعَهۡدِهِمۡ رَ ٰ⁠عُونَ ﴿8﴾

और जो अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते है;

وَٱلَّذِینَ هُمۡ عَلَىٰ صَلَوَ ٰ⁠تِهِمۡ یُحَافِظُونَ ﴿9﴾

और जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं;

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡوَ ٰ⁠رِثُونَ ﴿10﴾

वही वारिस होने वाले है

ٱلَّذِینَ یَرِثُونَ ٱلۡفِرۡدَوۡسَ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿11﴾

जो फ़िरदौस की विरासत पाएँगे। वे उसमें सदैव रहेंगे

وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ مِن سُلَـٰلَةࣲ مِّن طِینࣲ ﴿12﴾

हमने मनुष्य को मिट्टी के सत से बनाया

ثُمَّ جَعَلۡنَـٰهُ نُطۡفَةࣰ فِی قَرَارࣲ مَّكِینࣲ ﴿13﴾

फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बूँद बनाकर रखा

ثُمَّ خَلَقۡنَا ٱلنُّطۡفَةَ عَلَقَةࣰ فَخَلَقۡنَا ٱلۡعَلَقَةَ مُضۡغَةࣰ فَخَلَقۡنَا ٱلۡمُضۡغَةَ عِظَـٰمࣰا فَكَسَوۡنَا ٱلۡعِظَـٰمَ لَحۡمࣰا ثُمَّ أَنشَأۡنَـٰهُ خَلۡقًا ءَاخَرَۚ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ أَحۡسَنُ ٱلۡخَـٰلِقِینَ ﴿14﴾

फिर हमने उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया; फिर हमने उस लोथड़े को बोटी का रूप दिया; फिर हमने उन हड्डियों पर मांस चढाया; फिर हमने उसे एक दूसरा ही सर्जन रूप देकर खड़ा किया। अतः बहुत ही बरकतवाला है अल्लाह, सबसे उत्तम स्रष्टा!

ثُمَّ إِنَّكُم بَعۡدَ ذَ ٰ⁠لِكَ لَمَیِّتُونَ ﴿15﴾

फिर तुम अवश्य मरनेवाले हो

ثُمَّ إِنَّكُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ تُبۡعَثُونَ ﴿16﴾

फिर क़ियामत के दिन तुम निश्चय ही उठाए जाओगे

وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا فَوۡقَكُمۡ سَبۡعَ طَرَاۤىِٕقَ وَمَا كُنَّا عَنِ ٱلۡخَلۡقِ غَـٰفِلِینَ ﴿17﴾

और हमने तुम्हारे ऊपर सात रास्ते बनाए है। और हम सृष्टि-कार्य से ग़ाफ़िल नहीं

وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءَۢ بِقَدَرࣲ فَأَسۡكَنَّـٰهُ فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَإِنَّا عَلَىٰ ذَهَابِۭ بِهِۦ لَقَـٰدِرُونَ ﴿18﴾

और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है

فَأَنشَأۡنَا لَكُم بِهِۦ جَنَّـٰتࣲ مِّن نَّخِیلࣲ وَأَعۡنَـٰبࣲ لَّكُمۡ فِیهَا فَوَ ٰ⁠كِهُ كَثِیرَةࣱ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ﴿19﴾

फिर हमने उसके द्वारा तुम्हारे लिए खजूरो और अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फल है (जिनमें तुम्हारे लिए कितने ही लाभ है) और उनमें से तुम खाते हो

وَشَجَرَةࣰ تَخۡرُجُ مِن طُورِ سَیۡنَاۤءَ تَنۢبُتُ بِٱلدُّهۡنِ وَصِبۡغࣲ لِّلۡـَٔاكِلِینَ ﴿20﴾

और वह वृक्ष भी जो सैना पर्वत से निकलता है, जो तेल और खानेवालों के लिए सालन लिए हुए उगता है

وَإِنَّ لَكُمۡ فِی ٱلۡأَنۡعَـٰمِ لَعِبۡرَةࣰۖ نُّسۡقِیكُم مِّمَّا فِی بُطُونِهَا وَلَكُمۡ فِیهَا مَنَـٰفِعُ كَثِیرَةࣱ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ﴿21﴾

और निश्चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते है। औऱ तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे है और उन्हें तुम खाते भी हो

وَعَلَیۡهَا وَعَلَى ٱلۡفُلۡكِ تُحۡمَلُونَ ﴿22﴾

और उनपर और नौकाओं पर तुम सवार होते हो

وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَقَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿23﴾

हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा तो उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा और कोई इष्ट-पूज्य नहीं है तो क्या तुम डर नहीं रखते?\"

فَقَالَ ٱلۡمَلَؤُا۟ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ مِن قَوۡمِهِۦ مَا هَـٰذَاۤ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُرِیدُ أَن یَتَفَضَّلَ عَلَیۡكُمۡ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَأَنزَلَ مَلَـٰۤىِٕكَةࣰ مَّا سَمِعۡنَا بِهَـٰذَا فِیۤ ءَابَاۤىِٕنَا ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿24﴾

इसपर उनकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, \"यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। चाहता है कि तुमपर श्रेष्ठता प्राप्त करे।\"\"अल्लाह यदि चाहता तो फ़रिश्ते उतार देता। यह बात तो हमने अपने अगले बाप-दादा के समयों से सुनी ही नहीं

إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلُۢ بِهِۦ جِنَّةࣱ فَتَرَبَّصُوا۟ بِهِۦ حَتَّىٰ حِینࣲ ﴿25﴾

यह तो बस एक उन्मादग्रस्त व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो।\"

قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی بِمَا كَذَّبُونِ ﴿26﴾

उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! इन्होंने मुझे जो झुठलाया है, इसपर तू मेरी सहायता कर।\"

فَأَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡهِ أَنِ ٱصۡنَعِ ٱلۡفُلۡكَ بِأَعۡیُنِنَا وَوَحۡیِنَا فَإِذَا جَاۤءَ أَمۡرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ فَٱسۡلُكۡ فِیهَا مِن كُلࣲّ زَوۡجَیۡنِ ٱثۡنَیۡنِ وَأَهۡلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَیۡهِ ٱلۡقَوۡلُ مِنۡهُمۡۖ وَلَا تُخَـٰطِبۡنِی فِی ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤا۟ إِنَّهُم مُّغۡرَقُونَ ﴿27﴾

तब हमने उसकी ओर प्रकाशना की कि \"हमारी आँखों के सामने और हमारी प्रकाशना के अनुसार नौका बना और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तूफ़ान उमड़ पड़े तो प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख ले और अपने लोगों को भी, सिवाय उनके जिनके विरुद्ध पहले फ़ैसला हो चुका है। और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करना। वे तो डूबकर रहेंगे

فَإِذَا ٱسۡتَوَیۡتَ أَنتَ وَمَن مَّعَكَ عَلَى ٱلۡفُلۡكِ فَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِی نَجَّىٰنَا مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿28﴾

फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी तो कह, प्रशंसा है अल्लाह की, जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया

وَقُل رَّبِّ أَنزِلۡنِی مُنزَلࣰا مُّبَارَكࣰا وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلۡمُنزِلِینَ ﴿29﴾

और कह, ऐ मेरे रब! मुझे बरकतवाली जगह उतार। और तू सबसे अच्छा मेज़बान है।\"

إِنَّ فِی ذَ ٰ⁠لِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ وَإِن كُنَّا لَمُبۡتَلِینَ ﴿30﴾

निस्संदेह इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं और परीक्षा तो हम करते ही है

ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قَرۡنًا ءَاخَرِینَ ﴿31﴾

फिर उनके पश्चात हमने एक दूसरी नस्ल को उठाया;

فَأَرۡسَلۡنَا فِیهِمۡ رَسُولࣰا مِّنۡهُمۡ أَنِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿32﴾

और उनमें हमने स्वयं उन्हीं में से एक रसूल भेजा कि \"अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। तो क्या तुम डर नहीं रखते?\"

وَقَالَ ٱلۡمَلَأُ مِن قَوۡمِهِ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِلِقَاۤءِ ٱلۡـَٔاخِرَةِ وَأَتۡرَفۡنَـٰهُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا مَا هَـٰذَاۤ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یَأۡكُلُ مِمَّا تَأۡكُلُونَ مِنۡهُ وَیَشۡرَبُ مِمَّا تَشۡرَبُونَ ﴿33﴾

उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया और आख़िरत के मिलन को झूठलाया और जिन्हें हमने सांसारिक जीवन में सुख प्रदान किया था, कहने लगे, \"यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। जो कुछ तुम खाते हो, वही यह भी खाता है और जो कुछ तुम पीते हो, वही यह भी पीता है

وَلَىِٕنۡ أَطَعۡتُم بَشَرࣰا مِّثۡلَكُمۡ إِنَّكُمۡ إِذࣰا لَّخَـٰسِرُونَ ﴿34﴾

यदि तुम अपने ही जैसे एक मनुष्य के आज्ञाकारी हुए तो निश्चय ही तुम घाटे में पड़ गए

أَیَعِدُكُمۡ أَنَّكُمۡ إِذَا مِتُّمۡ وَكُنتُمۡ تُرَابࣰا وَعِظَـٰمًا أَنَّكُم مُّخۡرَجُونَ ﴿35﴾

क्या यह तुमसे वादा करता है कि जब तुम मरकर मिट्टी और हड़्डियाँ होकर रह जाओगे तो तुम निकाले जाओगे?

۞ هَیۡهَاتَ هَیۡهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ ﴿36﴾

दूर की बात है, बहुत दूर की, जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है!

إِنۡ هِیَ إِلَّا حَیَاتُنَا ٱلدُّنۡیَا نَمُوتُ وَنَحۡیَا وَمَا نَحۡنُ بِمَبۡعُوثِینَ ﴿37﴾

वह तो बस हमारा सांसारिक जीवन ही है। (यहीं) हम मरते और जीते है। हम कोई दोबारा उठाए जानेवाले नहीं है

إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰا وَمَا نَحۡنُ لَهُۥ بِمُؤۡمِنِینَ ﴿38﴾

वह तो बस एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अल्लाह पर झूठ घड़ा है। हम उसे कदापि माननेवाले नहीं।\"

قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی بِمَا كَذَّبُونِ ﴿39﴾

उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! उन्होंने जो मुझे झुठलाया, उसपर तू मेरी सहायता कर।\"

قَالَ عَمَّا قَلِیلࣲ لَّیُصۡبِحُنَّ نَـٰدِمِینَ ﴿40﴾

कहा, \"शीघ्र ही वे पछताकर रहेंगे।\"

فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّیۡحَةُ بِٱلۡحَقِّ فَجَعَلۡنَـٰهُمۡ غُثَاۤءࣰۚ فَبُعۡدࣰا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿41﴾

फिर घटित होनेवाली बात के अनुसार उन्हें एक प्रचंड आवाज़ ने आ लिया और हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बनाकर रख दिया। अतः फिटकार है, ऐसे अत्याचारी लोगों पर!

ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قُرُونًا ءَاخَرِینَ ﴿42﴾

फिर हमने उनके पश्चात दूसरी नस्लों को उठाया

مَا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا یَسۡتَـٔۡخِرُونَ ﴿43﴾

कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है

ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا تَتۡرَاۖ كُلَّ مَا جَاۤءَ أُمَّةࣰ رَّسُولُهَا كَذَّبُوهُۖ فَأَتۡبَعۡنَا بَعۡضَهُم بَعۡضࣰا وَجَعَلۡنَـٰهُمۡ أَحَادِیثَۚ فَبُعۡدࣰا لِّقَوۡمࣲ لَّا یُؤۡمِنُونَ ﴿44﴾

फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ

ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَـٰرُونَ بِـَٔایَـٰتِنَا وَسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینٍ ﴿45﴾

फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा।

إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِی۟هِۦ فَٱسۡتَكۡبَرُوا۟ وَكَانُوا۟ قَوۡمًا عَالِینَ ﴿46﴾

किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग

فَقَالُوۤا۟ أَنُؤۡمِنُ لِبَشَرَیۡنِ مِثۡلِنَا وَقَوۡمُهُمَا لَنَا عَـٰبِدُونَ ﴿47﴾

तो व कहने लगे, \"क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?\"

فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُوا۟ مِنَ ٱلۡمُهۡلَكِینَ ﴿48﴾

अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे

وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ لَعَلَّهُمۡ یَهۡتَدُونَ ﴿49﴾

और हमने मूसा को किताब प्रदान की, ताकि वे लोग मार्ग पा सकें

وَجَعَلۡنَا ٱبۡنَ مَرۡیَمَ وَأُمَّهُۥۤ ءَایَةࣰ وَءَاوَیۡنَـٰهُمَاۤ إِلَىٰ رَبۡوَةࣲ ذَاتِ قَرَارࣲ وَمَعِینࣲ ﴿50﴾

और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतबाली ऊँची जगह शरण दी,

یَـٰۤأَیُّهَا ٱلرُّسُلُ كُلُوا۟ مِنَ ٱلطَّیِّبَـٰتِ وَٱعۡمَلُوا۟ صَـٰلِحًاۖ إِنِّی بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِیمࣱ ﴿51﴾

\"ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़े खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ

وَإِنَّ هَـٰذِهِۦۤ أُمَّتُكُمۡ أُمَّةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰ وَأَنَا۠ رَبُّكُمۡ فَٱتَّقُونِ ﴿52﴾

और निश्चय ही यह तुम्हारा समुदाय, एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।\"

فَتَقَطَّعُوۤا۟ أَمۡرَهُم بَیۡنَهُمۡ زُبُرࣰاۖ كُلُّ حِزۡبِۭ بِمَا لَدَیۡهِمۡ فَرِحُونَ ﴿53﴾

किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर खुश है, जो कुछ उसके पास है

فَذَرۡهُمۡ فِی غَمۡرَتِهِمۡ حَتَّىٰ حِینٍ ﴿54﴾

अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो

أَیَحۡسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُم بِهِۦ مِن مَّالࣲ وَبَنِینَ ﴿55﴾

क्या वे समझते है कि हम जो उनकी धन और सन्तान से सहायता किए जा रहे है,

نُسَارِعُ لَهُمۡ فِی ٱلۡخَیۡرَ ٰ⁠تِۚ بَل لَّا یَشۡعُرُونَ ﴿56﴾

तो यह उनके भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे है?

إِنَّ ٱلَّذِینَ هُم مِّنۡ خَشۡیَةِ رَبِّهِم مُّشۡفِقُونَ ﴿57﴾

नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं;

وَٱلَّذِینَ هُم بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ یُؤۡمِنُونَ ﴿58﴾

और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते है;

وَٱلَّذِینَ هُم بِرَبِّهِمۡ لَا یُشۡرِكُونَ ﴿59﴾

और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते;

وَٱلَّذِینَ یُؤۡتُونَ مَاۤ ءَاتَوا۟ وَّقُلُوبُهُمۡ وَجِلَةٌ أَنَّهُمۡ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ رَ ٰ⁠جِعُونَ ﴿60﴾

और जो लोग देते है, जो कुछ देते है और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते है, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है;

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُسَـٰرِعُونَ فِی ٱلۡخَیۡرَ ٰ⁠تِ وَهُمۡ لَهَا سَـٰبِقُونَ ﴿61﴾

यही वे लोग है, जो भलाइयों में जल्दी करते है और यही उनके लिए अग्रसर रहनेवाले है।

وَلَا نُكَلِّفُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ وَلَدَیۡنَا كِتَـٰبࣱ یَنطِقُ بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿62﴾

हम किसी व्यक्ति पर उसकी समाई (क्षमता) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालते और हमारे पास एक किताब है, जो ठीक-ठीक बोलती है, और उनपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा

بَلۡ قُلُوبُهُمۡ فِی غَمۡرَةࣲ مِّنۡ هَـٰذَا وَلَهُمۡ أَعۡمَـٰلࣱ مِّن دُونِ ذَ ٰ⁠لِكَ هُمۡ لَهَا عَـٰمِلُونَ ﴿63﴾

बल्कि उनके दिल इसकी (सत्य धर्म की) ओर से हटकर (वसवसों और गफ़लतों आदि के) भँवर में पडे हुए है और उससे (ईमानवालों की नीति से) हटकर उनके कुछ और ही काम है। वे उन्हीं को करते रहेंगे;

حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَخَذۡنَا مُتۡرَفِیهِم بِٱلۡعَذَابِ إِذَا هُمۡ یَجۡـَٔرُونَ ﴿64﴾

यहाँ तक कि जब हम उनके खुशहाल लोगों को यातना में पकड़ेगे तो क्या देखते है कि वे विलाप और फ़रियाद कर रहे है

لَا تَجۡـَٔرُوا۟ ٱلۡیَوۡمَۖ إِنَّكُم مِّنَّا لَا تُنصَرُونَ ﴿65﴾

(कहा जाएगा,) \"आज चिल्लाओ मत, तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता मिलनेवाली नहीं

قَدۡ كَانَتۡ ءَایَـٰتِی تُتۡلَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَكُنتُمۡ عَلَىٰۤ أَعۡقَـٰبِكُمۡ تَنكِصُونَ ﴿66﴾

तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाते थे।

مُسۡتَكۡبِرِینَ بِهِۦ سَـٰمِرࣰا تَهۡجُرُونَ ﴿67﴾

हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे

أَفَلَمۡ یَدَّبَّرُوا۟ ٱلۡقَوۡلَ أَمۡ جَاۤءَهُم مَّا لَمۡ یَأۡتِ ءَابَاۤءَهُمُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿68﴾

क्या उन्होंने इस वाणी पर विचार नहीं किया या उनके पास वह चीज़ आ गई जो उनके पहले बाप-दादा के पास न आई थी?

أَمۡ لَمۡ یَعۡرِفُوا۟ رَسُولَهُمۡ فَهُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ ﴿69﴾

या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं, इसलिए उसका इनकार कर रहे है?

أَمۡ یَقُولُونَ بِهِۦ جِنَّةُۢۚ بَلۡ جَاۤءَهُم بِٱلۡحَقِّ وَأَكۡثَرُهُمۡ لِلۡحَقِّ كَـٰرِهُونَ ﴿70﴾

या वे कहते है, \"उसे उन्माद हो गया है।\" नहीं, बल्कि वह उनके पास सत्य लेकर आया है। किन्तु उनमें अधिकांश को सत्य अप्रिय है

وَلَوِ ٱتَّبَعَ ٱلۡحَقُّ أَهۡوَاۤءَهُمۡ لَفَسَدَتِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِیهِنَّۚ بَلۡ أَتَیۡنَـٰهُم بِذِكۡرِهِمۡ فَهُمۡ عَن ذِكۡرِهِم مُّعۡرِضُونَ ﴿71﴾

और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए है। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे है

أَمۡ تَسۡـَٔلُهُمۡ خَرۡجࣰا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَیۡرࣱۖ وَهُوَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰ⁠زِقِینَ ﴿72﴾

या तुम उनसे कुथ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है

وَإِنَّكَ لَتَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَ ٰ⁠طࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿73﴾

और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो

وَإِنَّ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ عَنِ ٱلصِّرَ ٰ⁠طِ لَنَـٰكِبُونَ ﴿74﴾

किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते है

۞ وَلَوۡ رَحِمۡنَـٰهُمۡ وَكَشَفۡنَا مَا بِهِم مِّن ضُرࣲّ لَّلَجُّوا۟ فِی طُغۡیَـٰنِهِمۡ یَعۡمَهُونَ ﴿75﴾

यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते

وَلَقَدۡ أَخَذۡنَـٰهُم بِٱلۡعَذَابِ فَمَا ٱسۡتَكَانُوا۟ لِرَبِّهِمۡ وَمَا یَتَضَرَّعُونَ ﴿76﴾

यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे

حَتَّىٰۤ إِذَا فَتَحۡنَا عَلَیۡهِم بَابࣰا ذَا عَذَابࣲ شَدِیدٍ إِذَا هُمۡ فِیهِ مُبۡلِسُونَ ﴿77﴾

यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है

وَهُوَ ٱلَّذِیۤ أَنشَأَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَـٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِیلࣰا مَّا تَشۡكُرُونَ ﴿78﴾

और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो!

وَهُوَ ٱلَّذِی ذَرَأَكُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَإِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿79﴾

वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे

وَهُوَ ٱلَّذِی یُحۡیِۦ وَیُمِیتُ وَلَهُ ٱخۡتِلَـٰفُ ٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿80﴾

और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?

بَلۡ قَالُوا۟ مِثۡلَ مَا قَالَ ٱلۡأَوَّلُونَ ﴿81﴾

नहीं, बल्कि वे लोग वहीं कुछ करते है जो उनके पहले के लोग कह चुके है

قَالُوۤا۟ أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابࣰا وَعِظَـٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ﴿82﴾

उन्होंने कहा, \"क्या जब हम मरकर मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे , तो क्या हमें दोबारा जीवित करके उठाया जाएगा?

لَقَدۡ وُعِدۡنَا نَحۡنُ وَءَابَاۤؤُنَا هَـٰذَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿83﴾

यह वादा तो हमसे और इससे पहले हमारे बाप-दादा से होता आ रहा है। कुछ नहीं, यह तो बस अगलों की कहानियाँ है।\"

قُل لِّمَنِ ٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِیهَاۤ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿84﴾

कहो, \"यह धरती और जो भी इसमें आबाद है, वे किसके है, बताओ यदि तुम जानते हो?\"

سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿85﴾

वे बोल पड़ेगे, \"अल्लाह के!\" कहो, \"फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?\"

قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ ٱلسَّبۡعِ وَرَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿86﴾

कहो, \"सातों आकाशों का मालिक और महान राजासन का स्वामीकौन है?\"

سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿87﴾

वे कहेंगे, \"सब अल्लाह के है।\" कहो, \"फिर डर क्यों नहीं रखते?\"

قُلۡ مَنۢ بِیَدِهِۦ مَلَكُوتُ كُلِّ شَیۡءࣲ وَهُوَ یُجِیرُ وَلَا یُجَارُ عَلَیۡهِ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿88﴾

कहो, \"हर चीज़ की बादशाही किसके हाथ में है, वह जो शरण देता है औऱ जिसके मुक़ाबले में कोई शरण नहीं मिल सकती, बताओ यजि तुम जानते हो?\"

سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ فَأَنَّىٰ تُسۡحَرُونَ ﴿89﴾

वे बोल पड़ेगे, \"अल्लाह की।\" कहो, \"फिर कहाँ से तुमपर जादू चल जाता है?\"

بَلۡ أَتَیۡنَـٰهُم بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّهُمۡ لَكَـٰذِبُونَ ﴿90﴾

नहीं, बल्कि हम उनके पास सत्य लेकर आए है और निश्चय ही वे झूठे है

مَا ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ مِن وَلَدࣲ وَمَا كَانَ مَعَهُۥ مِنۡ إِلَـٰهٍۚ إِذࣰا لَّذَهَبَ كُلُّ إِلَـٰهِۭ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضࣲۚ سُبۡحَـٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا یَصِفُونَ ﴿91﴾

अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु है। ऐसा होता तो प्रत्येक पूज्य-प्रभु अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक-दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और उच्च है अल्लाह उन बातों से, जो वे बयान करते है;

عَـٰلِمِ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ فَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿92﴾

जाननेवाला है छुपे और खुले का। सो वह उच्चतर है वह शिर्क से जो वे करते है!

قُل رَّبِّ إِمَّا تُرِیَنِّی مَا یُوعَدُونَ ﴿93﴾

कहो, \"ऐ मेरे रब! जिस चीज़ का वादा उनसे किया जा रहा है, वह यदि तू मुझे दिखाए

رَبِّ فَلَا تَجۡعَلۡنِی فِی ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿94﴾

तो मेरे रब! मुझे उन अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।\"

وَإِنَّا عَلَىٰۤ أَن نُّرِیَكَ مَا نَعِدُهُمۡ لَقَـٰدِرُونَ ﴿95﴾

निश्चय ही हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि हम उनसे जो वादा कर रहे है, वह तुम्हें दिखा दें।

ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُ ٱلسَّیِّئَةَۚ نَحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا یَصِفُونَ ﴿96﴾

बुराई को उस ढंग से दूर करो, जो सबसे उत्तम हो। हम भली-भाँति जानते है जो कुछ बातें वे बनाते है

وَقُل رَّبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنۡ هَمَزَ ٰ⁠تِ ٱلشَّیَـٰطِینِ ﴿97﴾

और कहो, \"ऐ मेरे रब! मैं शैतान की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ

وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَن یَحۡضُرُونِ ﴿98﴾

और मेरे रब! मैं इससे भी तेरी शरण चाहता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।\" -

حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءَ أَحَدَهُمُ ٱلۡمَوۡتُ قَالَ رَبِّ ٱرۡجِعُونِ ﴿99﴾

यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु आ गई तो वह कहेगा, \"ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे। - ताकि जिस (संसार) को मैं छोड़ आया हूँ

لَعَلِّیۤ أَعۡمَلُ صَـٰلِحࣰا فِیمَا تَرَكۡتُۚ كَلَّاۤۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَاۤىِٕلُهَاۖ وَمِن وَرَاۤىِٕهِم بَرۡزَخٌ إِلَىٰ یَوۡمِ یُبۡعَثُونَ ﴿100﴾

उसमें अच्छा कर्म करूँ।\" कुछ नहीं, यह तो बस एक (व्यर्थ) बात है जो वह कहेगा और उनके पीछे से लेकर उस दिन तक एक रोक लगी हुई है, जब वे दोबारा उठाए जाएँगे

فَإِذَا نُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَلَاۤ أَنسَابَ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ وَلَا یَتَسَاۤءَلُونَ ﴿101﴾

फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी तो उस दिन उनके बीच रिश्ते-नाते शेष न रहेंगे, और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे

فَمَن ثَقُلَتۡ مَوَ ٰ⁠زِینُهُۥ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿102﴾

फिर जिनके पलड़े भारी हुए तॊ वही हैं जो सफल।

وَمَنۡ خَفَّتۡ مَوَ ٰ⁠زِینُهُۥ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡ فِی جَهَنَّمَ خَـٰلِدُونَ ﴿103﴾

रहे वे लोग जिनके पलड़े हल्के हुए, तो वही है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। वे सदैव जहन्नम में रहेंगे

تَلۡفَحُ وُجُوهَهُمُ ٱلنَّارُ وَهُمۡ فِیهَا كَـٰلِحُونَ ﴿104﴾

आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और उसमें उनके मुँह विकृत हो रहे होंगे

أَلَمۡ تَكُنۡ ءَایَـٰتِی تُتۡلَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَكُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ﴿105﴾

(कहा जाएगा,) \"क्या तुम्हें मेरी आयातें सुनाई नहीं जाती थी, तो तुम उन्हें झुठलाते थे?\"

قَالُوا۟ رَبَّنَا غَلَبَتۡ عَلَیۡنَا شِقۡوَتُنَا وَكُنَّا قَوۡمࣰا ضَاۤلِّینَ ﴿106﴾

वे कहेंगे, \"ऐ हमारे रब! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हुआ और हम भटके हुए लोग थे

رَبَّنَاۤ أَخۡرِجۡنَا مِنۡهَا فَإِنۡ عُدۡنَا فَإِنَّا ظَـٰلِمُونَ ﴿107﴾

हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे! फिर हम दोबारा ऐसा करें तो निश्चय ही हम अत्याचारी होंगे।\"

قَالَ ٱخۡسَـُٔوا۟ فِیهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ ﴿108﴾

वह कहेगा, \"फिटकारे हुए तिरस्कृत, इसी में पड़े रहो और मुझसे बात न करो

إِنَّهُۥ كَانَ فَرِیقࣱ مِّنۡ عِبَادِی یَقُولُونَ رَبَّنَاۤ ءَامَنَّا فَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَا وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰ⁠حِمِینَ ﴿109﴾

मेरे बन्दों में कुछ लोग थे, जो कहते थे, हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू सबसे अच्छा दया करनेवाला है

فَٱتَّخَذۡتُمُوهُمۡ سِخۡرِیًّا حَتَّىٰۤ أَنسَوۡكُمۡ ذِكۡرِی وَكُنتُم مِّنۡهُمۡ تَضۡحَكُونَ ﴿110﴾

तो तुमने उनका उपहास किया, यहाँ तक कि उनके कारण तुम मेरी याद को भुला बैठे और तुम उनपर हँसते रहे

إِنِّی جَزَیۡتُهُمُ ٱلۡیَوۡمَ بِمَا صَبَرُوۤا۟ أَنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡفَاۤىِٕزُونَ ﴿111﴾

आज मैंने उनके धैर्य का यह बदला प्रदान किया कि वही है जो सफलता को प्राप्त हुए।\"

قَـٰلَ كَمۡ لَبِثۡتُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ عَدَدَ سِنِینَ ﴿112﴾

वह कहेगाः “तुम धरती में कितने वर्ष रहे”?

قَالُوا۟ لَبِثۡنَا یَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ یَوۡمࣲ فَسۡـَٔلِ ٱلۡعَاۤدِّینَ ﴿113﴾

वॆ कहेंगेः , \"एक दिन या एक दिन का कुछ भाग। गणना करनेवालों से पूछ लीजिए।?\"

قَـٰلَ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا قَلِیلࣰاۖ لَّوۡ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿114﴾

वह कहेगा, \"तुम ठहरे थोड़े ही, क्या अच्छा होता तुम जानते होते!

أَفَحَسِبۡتُمۡ أَنَّمَا خَلَقۡنَـٰكُمۡ عَبَثࣰا وَأَنَّكُمۡ إِلَیۡنَا لَا تُرۡجَعُونَ ﴿115﴾

तो क्या तुमने यह समझा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और यह कि तुम्हें हमारी और लौटना नहीं है?\"

فَتَعَـٰلَى ٱللَّهُ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡحَقُّۖ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡكَرِیمِ ﴿116﴾

तो सर्वोच्च है अल्लाह, सच्चा सम्राट! उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, स्वामी है महिमाशाली सिंहासन का

وَمَن یَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ لَا بُرۡهَـٰنَ لَهُۥ بِهِۦ فَإِنَّمَا حِسَابُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦۤۚ إِنَّهُۥ لَا یُفۡلِحُ ٱلۡكَـٰفِرُونَ ﴿117﴾

और जो कोई अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को पुकारे, जिसके लिए उसके पास कोई प्रमाम नहीं, तो बस उसका हिसाब उसके रब के पास है। निश्चय ही इनकार करनेवाले कभी सफल नहीं होगे

وَقُل رَّبِّ ٱغۡفِرۡ وَٱرۡحَمۡ وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰ⁠حِمِینَ ﴿118﴾

और कहो, \"मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और दया कर। तू तो सबसे अच्छा दया करनेवाला है।\"