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تَبَارَكَ ٱلَّذِی نَزَّلَ ٱلۡفُرۡقَانَ عَلَىٰ عَبۡدِهِۦ لِیَكُونَ لِلۡعَـٰلَمِینَ نَذِیرًا ﴿1﴾

बड़ी बरकतवाला है वह जिसने यह फ़ुरक़ान अपने बन्दे पर अवतरित किया, ताकि वह सारे संसार के लिए सावधान करनेवाला हो

ٱلَّذِی لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَمۡ یَتَّخِذۡ وَلَدࣰا وَلَمۡ یَكُن لَّهُۥ شَرِیكࣱ فِی ٱلۡمُلۡكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَیۡءࣲ فَقَدَّرَهُۥ تَقۡدِیرࣰا ﴿2﴾

वह जिसका राज्य है आकाशों और धरती पर, और उसने न तो किसी को अपना बेटा बनाया और न राज्य में उसका कोई साझी है। उसने हर चीज़ को पैदा किया; फिर उसे ठीक अन्दाजें पर रखा

وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةࣰ لَّا یَخۡلُقُونَ شَیۡـࣰٔا وَهُمۡ یُخۡلَقُونَ وَلَا یَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ ضَرࣰّا وَلَا نَفۡعࣰا وَلَا یَمۡلِكُونَ مَوۡتࣰا وَلَا حَیَوٰةࣰ وَلَا نُشُورࣰا ﴿3﴾

फिर भी उन्होंने उससे हटकर ऐसे इष्ट -पूज्य बना लिए जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते है। उन्हें न तो अपनी हानि का अधिकार प्राप्त है और न लाभ का। और न उन्हें मृत्यु का अधिकार प्राप्त है और न जीवन का और न दोबारा जीवित होकर उठने का

وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ إِفۡكٌ ٱفۡتَرَىٰهُ وَأَعَانَهُۥ عَلَیۡهِ قَوۡمٌ ءَاخَرُونَۖ فَقَدۡ جَاۤءُو ظُلۡمࣰا وَزُورࣰا ﴿4﴾

जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है, \"यह तो बस मनघड़ंत है जो उसने स्वयं ही घड़ लिया है। और कुछ दूसरे लोगों ने इस काम में उसकी सहायता की है।\" वे तो ज़ुल्म और झूठ ही के ध्येय से आए

وَقَالُوۤا۟ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ٱكۡتَتَبَهَا فَهِیَ تُمۡلَىٰ عَلَیۡهِ بُكۡرَةࣰ وَأَصِیلࣰا ﴿5﴾

कहते है, \"ये अगलों की कहानियाँ है, जिनको उसने लिख लिया है तो वही उसके पास प्रभात काल और सन्ध्या समय लिखाई जाती है।\"

قُلۡ أَنزَلَهُ ٱلَّذِی یَعۡلَمُ ٱلسِّرَّ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ كَانَ غَفُورࣰا رَّحِیمࣰا ﴿6﴾

कहो, \"उसे अवतरित किया है उसने, जो आकाशों और धरती के रहस्य जानता है। निश्चय ही वह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।\"

وَقَالُوا۟ مَالِ هَـٰذَا ٱلرَّسُولِ یَأۡكُلُ ٱلطَّعَامَ وَیَمۡشِی فِی ٱلۡأَسۡوَاقِ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡهِ مَلَكࣱ فَیَكُونَ مَعَهُۥ نَذِیرًا ﴿7﴾

उनका यह भी कहना है, \"इस रसूल को क्या हुआ कि यह खाना खाता है और बाज़ारों में चलता-फिरता है? क्यों न इसकी ओर कोई फ़रिश्ता उतरा कि वह इसके साथ रहकर सावधान करता?

أَوۡ یُلۡقَىٰۤ إِلَیۡهِ كَنزٌ أَوۡ تَكُونُ لَهُۥ جَنَّةࣱ یَأۡكُلُ مِنۡهَاۚ وَقَالَ ٱلظَّـٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلࣰا مَّسۡحُورًا ﴿8﴾

या इसकी ओर कोई ख़ज़ाना ही डाल दिया जाता या इसके पास कोई बाग़ होता, जिससे यह खाता।\" और इन ज़ालिमों का कहना है, \"तुम लोग तो बस एक ऐसे व्यक्ति के पीछे चल रहे हो जो जादू का मारा हुआ है!\"

ٱنظُرۡ كَیۡفَ ضَرَبُوا۟ لَكَ ٱلۡأَمۡثَـٰلَ فَضَلُّوا۟ فَلَا یَسۡتَطِیعُونَ سَبِیلࣰا ﴿9﴾

देखों, उन्होंने तुमपर कैसी-कैसी फब्तियाँ कसीं। तो वे बहक गए है। अब उनमें इसकी सामर्थ्य नहीं कि कोई मार्ग पा सकें!

تَبَارَكَ ٱلَّذِیۤ إِن شَاۤءَ جَعَلَ لَكَ خَیۡرࣰا مِّن ذَ ٰ⁠لِكَ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ وَیَجۡعَل لَّكَ قُصُورَۢا ﴿10﴾

बरकतवाला है वह जो यदि चाहे तो तुम्हारे लिए इससे भी उत्तम प्रदान करे, बहत-से बाग़ जिनके नीचे नहरें बह रही हों, और तुम्हारे लिए बहुत-से महल तैया कर दे

بَلۡ كَذَّبُوا۟ بِٱلسَّاعَةِۖ وَأَعۡتَدۡنَا لِمَن كَذَّبَ بِٱلسَّاعَةِ سَعِیرًا ﴿11﴾

नहीं, बल्कि बात यह है कि वे लोग क़ियामत की घड़ी को झुठला चुके है। और जो उस घड़ी को झुठला दे, उसके लिए दहकती आग तैयार कर रखी है

إِذَا رَأَتۡهُم مِّن مَّكَانِۭ بَعِیدࣲ سَمِعُوا۟ لَهَا تَغَیُّظࣰا وَزَفِیرࣰا ﴿12﴾

जब वह उनको दूर से देखेगी तो वे उसके बिफरने और साँस खींचने की आवाज़ें सुनेंगे

وَإِذَاۤ أُلۡقُوا۟ مِنۡهَا مَكَانࣰا ضَیِّقࣰا مُّقَرَّنِینَ دَعَوۡا۟ هُنَالِكَ ثُبُورࣰا ﴿13﴾

और जब वे उसकी किसी तंग जगह जकड़े हुए डाले जाएँगे, तो वहाँ विनाश को पुकारने लगेंगे

لَّا تَدۡعُوا۟ ٱلۡیَوۡمَ ثُبُورࣰا وَ ٰ⁠حِدࣰا وَٱدۡعُوا۟ ثُبُورࣰا كَثِیرࣰا ﴿14﴾

(कहा जाएगा,) \"आज एक विनाश को मत पुकारो, बल्कि बहुत-से विनाशों को पुकारो!\"

قُلۡ أَذَ ٰ⁠لِكَ خَیۡرٌ أَمۡ جَنَّةُ ٱلۡخُلۡدِ ٱلَّتِی وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۚ كَانَتۡ لَهُمۡ جَزَاۤءࣰ وَمَصِیرࣰا ﴿15﴾

कहो, \"यह अच्छा है या वह शाश्वत जन्नत, जिसका वादा डर रखनेवालों से किया गया है? यह उनका बदला और अन्तिम मंज़िल होगी।\"

لَّهُمۡ فِیهَا مَا یَشَاۤءُونَ خَـٰلِدِینَۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ وَعۡدࣰا مَّسۡـُٔولࣰا ﴿16﴾

उनके लिए उसमें वह सबकुछ होगा, जो वे चाहेंगे। उसमें वे सदैव रहेंगे। यह तुम्हारे रब के ज़िम्मे एक ऐसा वादा है जो प्रार्थनीय है

وَیَوۡمَ یَحۡشُرُهُمۡ وَمَا یَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ فَیَقُولُ ءَأَنتُمۡ أَضۡلَلۡتُمۡ عِبَادِی هَـٰۤؤُلَاۤءِ أَمۡ هُمۡ ضَلُّوا۟ ٱلسَّبِیلَ ﴿17﴾

और जिस दिन उन्हें इकट्ठा किया जाएगा और उनको भी जिन्हें वे अल्लाह को छोड़कर पूजते है, फिर वह कहेगा, \"क्या मेरे बन्दों को तुमने पथभ्रष्ट किया था या वे स्वयं मार्ग छोड़ बैठे थे?\"

قَالُوا۟ سُبۡحَـٰنَكَ مَا كَانَ یَنۢبَغِی لَنَاۤ أَن نَّتَّخِذَ مِن دُونِكَ مِنۡ أَوۡلِیَاۤءَ وَلَـٰكِن مَّتَّعۡتَهُمۡ وَءَابَاۤءَهُمۡ حَتَّىٰ نَسُوا۟ ٱلذِّكۡرَ وَكَانُوا۟ قَوۡمَۢا بُورࣰا ﴿18﴾

वे कहेंगे, \"महान और उच्च है तू! यह हमसे नहीं हो सकता था कि तुझे छोड़कर दूसरे संरक्षक बनाएँ। किन्तु हुआ यह कि तूने उन्हें औऱ उनके बाप-दादा को अत्यधिक सुख-सामग्री दी, यहाँ तक कि वे अनुस्मृति को भुला बैठे और विनष्ट होनेवाले लोग होकर रहे।\"

فَقَدۡ كَذَّبُوكُم بِمَا تَقُولُونَ فَمَا تَسۡتَطِیعُونَ صَرۡفࣰا وَلَا نَصۡرࣰاۚ وَمَن یَظۡلِم مِّنكُمۡ نُذِقۡهُ عَذَابࣰا كَبِیرࣰا ﴿19﴾

अतः इस प्रकार वे तुम्हें उस बात में, जो तुम कहते हो झूठा ठहराए हुए है। अब न तो तुम यातना को फेर सकते हो और न कोई सहायता ही पा सकते हो। जो कोई तुममें से ज़ुल्म करे उसे हम बड़ी यातना का मज़ा चखाएँगे

وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِینَ إِلَّاۤ إِنَّهُمۡ لَیَأۡكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَیَمۡشُونَ فِی ٱلۡأَسۡوَاقِۗ وَجَعَلۡنَا بَعۡضَكُمۡ لِبَعۡضࣲ فِتۡنَةً أَتَصۡبِرُونَۗ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِیرࣰا ﴿20﴾

और तुमसे पहले हमने जितने रसूल भी भेजे हैं, वे सब खाना खाते और बाज़ारों में चलते-फिरते थे। हमने तो तुम्हें परस्पर एक को दूसरे के लिए आज़माइश बना दिया है, \"क्या तुम धैर्य दिखाते हो?\" तुम्हारा रब तो सब कुछ देखता है

۞ وَقَالَ ٱلَّذِینَ لَا یَرۡجُونَ لِقَاۤءَنَا لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡنَا ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ أَوۡ نَرَىٰ رَبَّنَاۗ لَقَدِ ٱسۡتَكۡبَرُوا۟ فِیۤ أَنفُسِهِمۡ وَعَتَوۡ عُتُوࣰّا كَبِیرࣰا ﴿21﴾

जिन्हें हमसे मिलने की आशंका नहीं, वे कहते है, \"क्यों न फ़रिश्ते हमपर उतरे या फिर हम अपने रब को देखते?\" उन्होंने अपने जी में बड़ा घमंज किया और बड़ी सरकशी पर उतर आए

یَوۡمَ یَرَوۡنَ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةَ لَا بُشۡرَىٰ یَوۡمَىِٕذࣲ لِّلۡمُجۡرِمِینَ وَیَقُولُونَ حِجۡرࣰا مَّحۡجُورࣰا ﴿22﴾

जिस दिन वे फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन अपराधियों के लिए कोई ख़ुशख़बरी न होगी और वे पुकार उठेंगे, \"पनाह! पनाह!!\"

وَقَدِمۡنَاۤ إِلَىٰ مَا عَمِلُوا۟ مِنۡ عَمَلࣲ فَجَعَلۡنَـٰهُ هَبَاۤءࣰ مَّنثُورًا ﴿23﴾

हम बढ़ेंगे उस कर्म की ओर जो उन्होंने किया होगा और उसे उड़ती धूल कर देंगे

أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِ یَوۡمَىِٕذٍ خَیۡرࣱ مُّسۡتَقَرࣰّا وَأَحۡسَنُ مَقِیلࣰا ﴿24﴾

उस दिन जन्नतवाले ठिकाने की दृष्टि से अच्छे होगे और आरामगाह की दृष्टि से भी अच्छे होंगे

وَیَوۡمَ تَشَقَّقُ ٱلسَّمَاۤءُ بِٱلۡغَمَـٰمِ وَنُزِّلَ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ تَنزِیلًا ﴿25﴾

उस दिन आकाश एक बादल के साथ फटेगा और फ़रिश्ते भली प्रकार उतारे जाएँगे

ٱلۡمُلۡكُ یَوۡمَىِٕذٍ ٱلۡحَقُّ لِلرَّحۡمَـٰنِۚ وَكَانَ یَوۡمًا عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ عَسِیرࣰا ﴿26﴾

उस दिन वास्तविक राज्य रहमान का होगा और वह दिन इनकार करनेवालों के लिए बड़ा ही मुश्किल होगा

وَیَوۡمَ یَعَضُّ ٱلظَّالِمُ عَلَىٰ یَدَیۡهِ یَقُولُ یَـٰلَیۡتَنِی ٱتَّخَذۡتُ مَعَ ٱلرَّسُولِ سَبِیلࣰا ﴿27﴾

उस दिन अत्याचारी अत्याचारी अपने हाथ चबाएगा। कहेंगा, \"ऐ काश! मैंने रसूल के साथ मार्ग अपनाया होता!

یَـٰوَیۡلَتَىٰ لَیۡتَنِی لَمۡ أَتَّخِذۡ فُلَانًا خَلِیلࣰا ﴿28﴾

हाय मेरा दुर्भाग्य! काश, मैंने अमुक व्यक्ति को मित्र न बनाया होता!

لَّقَدۡ أَضَلَّنِی عَنِ ٱلذِّكۡرِ بَعۡدَ إِذۡ جَاۤءَنِیۗ وَكَانَ ٱلشَّیۡطَـٰنُ لِلۡإِنسَـٰنِ خَذُولࣰا ﴿29﴾

उसने मुझे भटकाकर अनुस्मृति से विमुख कर दिया, इसके पश्चात कि वह मेरे पास आ चुकी थी। शैतान तो समय पर मनुष्य का साथ छोड़ ही देता है।\"

وَقَالَ ٱلرَّسُولُ یَـٰرَبِّ إِنَّ قَوۡمِی ٱتَّخَذُوا۟ هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ مَهۡجُورࣰا ﴿30﴾

रसूल कहेगा, \"ऐ मेरे रब! निस्संदेह मेरी क़ौम के लोगों ने इस क़ुरआन को व्यर्थ बकवास की चीज़ ठहरा लिया था।\"

وَكَذَ ٰ⁠لِكَ جَعَلۡنَا لِكُلِّ نَبِیٍّ عَدُوࣰّا مِّنَ ٱلۡمُجۡرِمِینَۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ هَادِیࣰا وَنَصِیرࣰا ﴿31﴾

और इसी तरह हमने अपराधियों में से प्रत्यॆक नबी के लिये शत्रु बनाया। मार्गदर्शन और सहायता कॆ लिए तॊ तुम्हारा रब ही काफ़ी है।

وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لَوۡلَا نُزِّلَ عَلَیۡهِ ٱلۡقُرۡءَانُ جُمۡلَةࣰ وَ ٰ⁠حِدَةࣰۚ كَذَ ٰ⁠لِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِۦ فُؤَادَكَۖ وَرَتَّلۡنَـٰهُ تَرۡتِیلࣰا ﴿32﴾

और जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि \"उसपर पूरा क़ुरआन एक ही बार में क्यों नहीं उतारा?\" ऐसा इसलिए किया गया ताकि हम इसके द्वारा तुम्हारे दिल को मज़बूत रखें और हमने इसे एक उचित क्रम में रखा

وَلَا یَأۡتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئۡنَـٰكَ بِٱلۡحَقِّ وَأَحۡسَنَ تَفۡسِیرًا ﴿33﴾

और जब कभी भी वे तुम्हारे पास कोई आक्षेप की बात लेकर आएँगे तो हम तुम्हारे पास पक्की-सच्ची चीज़ लेकर आएँगे! इस दशा में कि वह स्पष्टीतकरण की स्पष्ट से उत्तम है

ٱلَّذِینَ یُحۡشَرُونَ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ إِلَىٰ جَهَنَّمَ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ شَرࣱّ مَّكَانࣰا وَأَضَلُّ سَبِیلࣰا ﴿34﴾

जो लोग औंधे मुँह जहन्नम की ओर ले जाए जाएँगे वही स्थान की दृष्टि से बहुत बुरे है, और मार्ग की दृष्टि से भी बहुत भटके हुए है

وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ وَجَعَلۡنَا مَعَهُۥۤ أَخَاهُ هَـٰرُونَ وَزِیرࣰا ﴿35﴾

हमने मूसा को किताब प्रदान की और उसके भाई हारून को सहायक के रूप में उसके साथ किया

فَقُلۡنَا ٱذۡهَبَاۤ إِلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِینَ كَذَّبُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَا فَدَمَّرۡنَـٰهُمۡ تَدۡمِیرࣰا ﴿36﴾

और कहा कि \"तुम दोनों उन लोगों के पास जाओ जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया है।\" अन्ततः हमने उन लोगों को विनष्ट करके रख दिया

وَقَوۡمَ نُوحࣲ لَّمَّا كَذَّبُوا۟ ٱلرُّسُلَ أَغۡرَقۡنَـٰهُمۡ وَجَعَلۡنَـٰهُمۡ لِلنَّاسِ ءَایَةࣰۖ وَأَعۡتَدۡنَا لِلظَّـٰلِمِینَ عَذَابًا أَلِیمࣰا ﴿37﴾

और नूह की क़ौम को भी, जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबा दिया और लोगों के लिए उन्हें एक निशानी बना दिया, और उन ज़ालिमों के लिए हमने एक दुखद यातना तैयार कर रखी है

وَعَادࣰا وَثَمُودَا۟ وَأَصۡحَـٰبَ ٱلرَّسِّ وَقُرُونَۢا بَیۡنَ ذَ ٰ⁠لِكَ كَثِیرࣰا ﴿38﴾

और आद और समूद और अर-रस्सवालों और उस बीच की बहुत-सी नस्लों को भी विनष्ट किया।

وَكُلࣰّا ضَرَبۡنَا لَهُ ٱلۡأَمۡثَـٰلَۖ وَكُلࣰّا تَبَّرۡنَا تَتۡبِیرࣰا ﴿39﴾

प्रत्येक के लिए हमने मिसालें बयान कीं। अन्ततः प्रत्येक को हमने पूरी तरह विध्वस्त कर दिया

وَلَقَدۡ أَتَوۡا۟ عَلَى ٱلۡقَرۡیَةِ ٱلَّتِیۤ أُمۡطِرَتۡ مَطَرَ ٱلسَّوۡءِۚ أَفَلَمۡ یَكُونُوا۟ یَرَوۡنَهَاۚ بَلۡ كَانُوا۟ لَا یَرۡجُونَ نُشُورࣰا ﴿40﴾

और उस बस्ती पर से तो वे हो आए है जिसपर बुरी वर्षा बरसी; तो क्या वे उसे देखते नहीं रहे हैं? नहीं, बल्कि वे दोबारा जीवित होकर उठने की आशा ही नहीं रखते रहे है

وَإِذَا رَأَوۡكَ إِن یَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَـٰذَا ٱلَّذِی بَعَثَ ٱللَّهُ رَسُولًا ﴿41﴾

वे जब भी तुम्हें देखते हैं तो तुम्हारा मज़ाक़ बना लेते हैं कि \"क्या यही, जिसे अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है?

إِن كَادَ لَیُضِلُّنَا عَنۡ ءَالِهَتِنَا لَوۡلَاۤ أَن صَبَرۡنَا عَلَیۡهَاۚ وَسَوۡفَ یَعۡلَمُونَ حِینَ یَرَوۡنَ ٱلۡعَذَابَ مَنۡ أَضَلُّ سَبِیلًا ﴿42﴾

इसने तो हमें भटकाकर हमको हमारे प्रभु-पूज्यों से फेर ही दिया होता, यदि हम उनपर मज़बूती से जम न गए होते।\"

أَرَءَیۡتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَـٰهَهُۥ هَوَىٰهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَیۡهِ وَكِیلًا ﴿43﴾

क्या तुमने उसको भी देखा, जिसने अपना प्रभु अपनी (तुच्छ) इच्छा को बना रखा है? तो क्या तुम उसका ज़िम्मा ले सकते हो

أَمۡ تَحۡسَبُ أَنَّ أَكۡثَرَهُمۡ یَسۡمَعُونَ أَوۡ یَعۡقِلُونَۚ إِنۡ هُمۡ إِلَّا كَٱلۡأَنۡعَـٰمِ بَلۡ هُمۡ أَضَلُّ سَبِیلًا ﴿44﴾

या तुम समझते हो कि उनमें अधिकतर सुनते और समझते है? वे तो बस चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट!

أَلَمۡ تَرَ إِلَىٰ رَبِّكَ كَیۡفَ مَدَّ ٱلظِّلَّ وَلَوۡ شَاۤءَ لَجَعَلَهُۥ سَاكِنࣰا ثُمَّ جَعَلۡنَا ٱلشَّمۡسَ عَلَیۡهِ دَلِیلࣰا ﴿45﴾

क्या तुमने अपने रब को नहीं देखा कि कैसे फैलाई छाया? यदि चाहता तो उसे स्थिर रखता। फिर हमने सूर्य को उसका पता देनेवाला बनाया,

ثُمَّ قَبَضۡنَـٰهُ إِلَیۡنَا قَبۡضࣰا یَسِیرࣰا ﴿46﴾

फिर हम उसको धीरे-धीरे अपनी ओर समेट लेते है

وَهُوَ ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّیۡلَ لِبَاسࣰا وَٱلنَّوۡمَ سُبَاتࣰا وَجَعَلَ ٱلنَّهَارَ نُشُورࣰا ﴿47﴾

वही है जिसने रात्रि को तुम्हारे लिए वस्त्र और निद्रा को सर्वथा विश्राम एवं शान्ति बनाया और दिन को जी उठने का समय बनाया

وَهُوَ ٱلَّذِیۤ أَرۡسَلَ ٱلرِّیَـٰحَ بُشۡرَۢا بَیۡنَ یَدَیۡ رَحۡمَتِهِۦۚ وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ طَهُورࣰا ﴿48﴾

और वही है जिसने अपनी दयालुता (वर्षा) के आगे-आगे हवाओं को शुभ सूचना बनाकर भेजता है, और हम ही आकाश से स्वच्छ जल उतारते है

لِّنُحۡـِۧیَ بِهِۦ بَلۡدَةࣰ مَّیۡتࣰا وَنُسۡقِیَهُۥ مِمَّا خَلَقۡنَاۤ أَنۡعَـٰمࣰا وَأَنَاسِیَّ كَثِیرࣰا ﴿49﴾

ताकि हम उसके द्वारा निर्जीव भू-भाग को जीवन प्रदान करें और उसे अपने पैदा किए हुए बहुत-से चौपायों और मनुष्यों को पिलाएँ

وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَـٰهُ بَیۡنَهُمۡ لِیَذَّكَّرُوا۟ فَأَبَىٰۤ أَكۡثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورࣰا ﴿50﴾

उसे हमने उनके बीच विभिन्न ढ़ंग से पेश किया है, ताकि वे ध्यान दें। परन्तु अधिकतर लोगों ने इनकार और अकृतज्ञता के अतिरिक्त दूसरी नीति अपनाने से इनकार ही किया

وَلَوۡ شِئۡنَا لَبَعَثۡنَا فِی كُلِّ قَرۡیَةࣲ نَّذِیرࣰا ﴿51﴾

यदि हम चाहते तो हर बस्ती में एक डरानेवाला भेज देते

فَلَا تُطِعِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ وَجَـٰهِدۡهُم بِهِۦ جِهَادࣰا كَبِیرࣰا ﴿52﴾

अतः इनकार करनेवालों की बात न मानता और इस (क़ुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद! (जी तोड़ कोशिश)

۞ وَهُوَ ٱلَّذِی مَرَجَ ٱلۡبَحۡرَیۡنِ هَـٰذَا عَذۡبࣱ فُرَاتࣱ وَهَـٰذَا مِلۡحٌ أُجَاجࣱ وَجَعَلَ بَیۡنَهُمَا بَرۡزَخࣰا وَحِجۡرࣰا مَّحۡجُورࣰا ﴿53﴾

वही है जिसने दो समुद्रों को मिलाया। यह स्वादिष्ट और मीठा है और यह खारी और कडुआ। और दोनों के बीच उसने एक परदा डाल दिया है और एक पृथक करनेवाली रोक रख दी है

وَهُوَ ٱلَّذِی خَلَقَ مِنَ ٱلۡمَاۤءِ بَشَرࣰا فَجَعَلَهُۥ نَسَبࣰا وَصِهۡرࣰاۗ وَكَانَ رَبُّكَ قَدِیرࣰا ﴿54﴾

और वही है जिसने पानी से एक मनुष्य पैदा किया। फिर उसे वंशगत सम्बन्धों और ससुराली रिश्तेवाला बनाया। तुम्हारा रब बड़ा ही सामर्थ्यवान है

وَیَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا یَنفَعُهُمۡ وَلَا یَضُرُّهُمۡۗ وَكَانَ ٱلۡكَافِرُ عَلَىٰ رَبِّهِۦ ظَهِیرࣰا ﴿55﴾

अल्लाह से इतर वे उनको पूजते है जो न उन्हें लाभ पहुँचा सकते है और न ही उन्हें हानि पहुँचा सकते है। और ऊपर से यह भी कि इनकार करनेवाला अपने रब का विरोधी और उसके मुक़ाबले में दूसरों का सहायक बना हुआ है

وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ إِلَّا مُبَشِّرࣰا وَنَذِیرࣰا ﴿56﴾

और हमने तो तुमको शुभ-सूचना देनेवाला और सचेतकर्ता बनाकर भेजा है।

قُلۡ مَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ أَجۡرٍ إِلَّا مَن شَاۤءَ أَن یَتَّخِذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِیلࣰا ﴿57﴾

कह दो, \"मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता सिवाय इसके कि जो कोई चाहे अपने रब की ओर ले जानेवाला मार्ग अपना ले।\"

وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱلۡحَیِّ ٱلَّذِی لَا یَمُوتُ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِهِۦۚ وَكَفَىٰ بِهِۦ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِیرًا ﴿58﴾

और उस अल्लाह पर भरोसा करो जो जीवन्त और अमर है और उसका गुणगान करो। वह अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने के लिए काफ़ी है

ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَیۡنَهُمَا فِی سِتَّةِ أَیَّامࣲ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ ٱلرَّحۡمَـٰنُ فَسۡـَٔلۡ بِهِۦ خَبِیرࣰا ﴿59﴾

जिसने आकाशों और धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है छह दिनों में पैदा किया, फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। रहमान है वह! अतः पूछो उससे जो उसकी ख़बर रखता है

وَإِذَا قِیلَ لَهُمُ ٱسۡجُدُوا۟ لِلرَّحۡمَـٰنِ قَالُوا۟ وَمَا ٱلرَّحۡمَـٰنُ أَنَسۡجُدُ لِمَا تَأۡمُرُنَا وَزَادَهُمۡ نُفُورࣰا ۩ ﴿60﴾

उन लोगों से जब कहा जाता है कि \"रहमान को सजदा करो\" तो वे कहते है, \"और रहमान क्या होता है? क्या जिसे तू हमसे कह दे उसी को हम सजदा करने लगें?\" और यह चीज़ उनकी घृणा को और बढ़ा देती है

تَبَارَكَ ٱلَّذِی جَعَلَ فِی ٱلسَّمَاۤءِ بُرُوجࣰا وَجَعَلَ فِیهَا سِرَ ٰ⁠جࣰا وَقَمَرࣰا مُّنِیرࣰا ﴿61﴾

बड़ी बरकतवाला है वह, जिसने आकाश में बुर्ज (नक्षत्र) बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया

وَهُوَ ٱلَّذِی جَعَلَ ٱلَّیۡلَ وَٱلنَّهَارَ خِلۡفَةࣰ لِّمَنۡ أَرَادَ أَن یَذَّكَّرَ أَوۡ أَرَادَ شُكُورࣰا ﴿62﴾

और वही है जिसने रात और दिन को एक-दूसरे के पीछे आनेवाला बनाया, उस व्यक्ति के लिए (निशानी) जो चेतना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे

وَعِبَادُ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلَّذِینَ یَمۡشُونَ عَلَى ٱلۡأَرۡضِ هَوۡنࣰا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ ٱلۡجَـٰهِلُونَ قَالُوا۟ سَلَـٰمࣰا ﴿63﴾

रहमान के (प्रिय) बन्दें वहीं है जो धरती पर नम्रतापूर्वक चलते है और जब जाहिल उनके मुँह आएँ तो कह देते है, \"तुमको सलाम!\"

وَٱلَّذِینَ یَبِیتُونَ لِرَبِّهِمۡ سُجَّدࣰا وَقِیَـٰمࣰا ﴿64﴾

जो अपने रब के आगे सजदे में और खड़े रातें गुज़ारते है;

وَٱلَّذِینَ یَقُولُونَ رَبَّنَا ٱصۡرِفۡ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا ﴿65﴾

जो कहते है कि \"ऐ हमारे रब! जहन्नम की यातना को हमसे हटा दे।\" निश्चय ही उनकी यातना चिमटकर रहनेवाली है

إِنَّهَا سَاۤءَتۡ مُسۡتَقَرࣰّا وَمُقَامࣰا ﴿66﴾

निश्चय ही वह जगह ठहरने की दृष्टि! से भी बुरी है और स्थान की दृष्टि से भी

وَٱلَّذِینَ إِذَاۤ أَنفَقُوا۟ لَمۡ یُسۡرِفُوا۟ وَلَمۡ یَقۡتُرُوا۟ وَكَانَ بَیۡنَ ذَ ٰ⁠لِكَ قَوَامࣰا ﴿67﴾

जो ख़र्च करते है तो न अपव्यय करते है और न ही तंगी से काम लेते है, बल्कि वे इनके बीच मध्यमार्ग पर रहते है

وَٱلَّذِینَ لَا یَدۡعُونَ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ وَلَا یَقۡتُلُونَ ٱلنَّفۡسَ ٱلَّتِی حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَلَا یَزۡنُونَۚ وَمَن یَفۡعَلۡ ذَ ٰ⁠لِكَ یَلۡقَ أَثَامࣰا ﴿68﴾

जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे इष्ट-पूज्य को नहीं पुकारते और न नाहक़ किसी जीव को जिस (के क़त्ल) को अल्लाह ने हराम किया है, क़त्ल करते है। और न वे व्यभिचार करते है - जो कोई यह काम करे तो वह गुनाह के वबाल से दोचार होगा

یُضَـٰعَفۡ لَهُ ٱلۡعَذَابُ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَیَخۡلُدۡ فِیهِۦ مُهَانًا ﴿69﴾

क़ियामत के दिन उसकी यातना बढ़ती चली जाएगी॥ और वह उसी में अपमानित होकर स्थायी रूप से पड़ा रहेगा

إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ عَمَلࣰا صَـٰلِحࣰا فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُبَدِّلُ ٱللَّهُ سَیِّـَٔاتِهِمۡ حَسَنَـٰتࣲۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورࣰا رَّحِیمࣰا ﴿70﴾

सिवाय उसके जो पलट आया और ईमान लाया और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों से बदल देगा। और अल्लाह है भी अत्यन्त क्षमाशील, दयावान

وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَإِنَّهُۥ یَتُوبُ إِلَى ٱللَّهِ مَتَابࣰا ﴿71﴾

और जिसने तौबा की और अच्छा कर्म किया, तो निश्चय ही वह अल्लाह की ओर पलटता है, जैसा कि पलटने का हक़ है

وَٱلَّذِینَ لَا یَشۡهَدُونَ ٱلزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا۟ بِٱللَّغۡوِ مَرُّوا۟ كِرَامࣰا ﴿72﴾

जो किसी झूठ और असत्य में सम्मिलित नहीं होते और जब किसी व्यर्थ के कामों के पास से गुज़रते है, तो श्रेष्ठतापूर्वक गुज़र जाते है,

وَٱلَّذِینَ إِذَا ذُكِّرُوا۟ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ لَمۡ یَخِرُّوا۟ عَلَیۡهَا صُمࣰّا وَعُمۡیَانࣰا ﴿73﴾

जो ऐसे हैं कि जब उनके रब की आयतों के द्वारा उन्हें याददिहानी कराई जाती है तो उन (आयतों) पर वे अंधे और बहरे होकर नहीं गिरते।

وَٱلَّذِینَ یَقُولُونَ رَبَّنَا هَبۡ لَنَا مِنۡ أَزۡوَ ٰ⁠جِنَا وَذُرِّیَّـٰتِنَا قُرَّةَ أَعۡیُنࣲ وَٱجۡعَلۡنَا لِلۡمُتَّقِینَ إِمَامًا ﴿74﴾

और जो कहते है, \"ऐ हमारे रब! हमें हमारी अपनी पत्नियों और हमारी संतान से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें डर रखनेवालों का नायक बना दे।\"

أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُجۡزَوۡنَ ٱلۡغُرۡفَةَ بِمَا صَبَرُوا۟ وَیُلَقَّوۡنَ فِیهَا تَحِیَّةࣰ وَسَلَـٰمًا ﴿75﴾

यही वे लोग है जिन्हें, इसके बदले में कि वे जमे रहे, उच्च भवन प्राप्त होगा, तथा ज़िन्दाबाद और सलाम से उनका वहाँ स्वागत होगा

خَـٰلِدِینَ فِیهَاۚ حَسُنَتۡ مُسۡتَقَرࣰّا وَمُقَامࣰا ﴿76﴾

वहाँ वे सदैव रहेंगे। बहुत ही अच्छी है वह ठहरने की जगह और स्थान;

قُلۡ مَا یَعۡبَؤُا۟ بِكُمۡ رَبِّی لَوۡلَا دُعَاۤؤُكُمۡۖ فَقَدۡ كَذَّبۡتُمۡ فَسَوۡفَ یَكُونُ لِزَامَۢا ﴿77﴾

कह दो, \"मेरे रब को तुम्हारी कोई परवाह नहीं अगर तुम (उसको) न पुकारो। अब जबकि तुम झुठला चुके हो, तो शीघ्र ही वह चीज़ चिमट जानेवाली होगी।\"