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Surah THE ANT [An-Naml] in Hindi
طسۤۚ تِلۡكَ ءَایَـٰتُ ٱلۡقُرۡءَانِ وَكِتَابࣲ مُّبِینٍ ﴿1﴾
ता॰ सीन॰। ये आयतें है क़ुरआन और एक स्पष्ट किताब की
هُدࣰى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿2﴾
मार्गदर्शन है और शुभ-सूचना उन ईमानवालों के लिए,
ٱلَّذِینَ یُقِیمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَیُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمۡ یُوقِنُونَ ﴿3﴾
जो नमाज़ का आयोजन करते है और ज़कात देते है और वही है जो आख़िरत पर विश्वास रखते है
إِنَّ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ زَیَّنَّا لَهُمۡ أَعۡمَـٰلَهُمۡ فَهُمۡ یَعۡمَهُونَ ﴿4﴾
रहे वे लोग जो आख़िरत को नहीं मानते, उनके लिए हमने उनकी करतूतों को शोभायमान बना दिया है। अतः वे भटकते फिरते है
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ لَهُمۡ سُوۤءُ ٱلۡعَذَابِ وَهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ هُمُ ٱلۡأَخۡسَرُونَ ﴿5﴾
वही लोग है, जिनके लिए बुरी यातना है और वही है जो आख़िरत में अत्यन्त घाटे में रहेंगे
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى ٱلۡقُرۡءَانَ مِن لَّدُنۡ حَكِیمٍ عَلِیمٍ ﴿6﴾
निश्चय ही तुम यह क़ुरआन एक बड़े तत्वदर्शी, ज्ञानवान (प्रभु) की ओर से पा रहे हो
إِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهۡلِهِۦۤ إِنِّیۤ ءَانَسۡتُ نَارࣰا سَـَٔاتِیكُم مِّنۡهَا بِخَبَرٍ أَوۡ ءَاتِیكُم بِشِهَابࣲ قَبَسࣲ لَّعَلَّكُمۡ تَصۡطَلُونَ ﴿7﴾
याद करो जब मूसा ने अपने घरवालों से कहा कि \"मैंने एक आग-सी देखी है। मैं अभी वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आता हूँ या तुम्हारे पास कोई दहकता अंगार लाता हूँ, ताकि तुम तापो।\"
فَلَمَّا جَاۤءَهَا نُودِیَ أَنۢ بُورِكَ مَن فِی ٱلنَّارِ وَمَنۡ حَوۡلَهَا وَسُبۡحَـٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿8﴾
फिर जब वह उसके पास पहुँचा तो उसे आवाज़ आई कि \"मुबारक है वह जो इस आग में है और जो इसके आस-पास है। महान और उच्च है अल्लाह, सारे संसार का रब!
یَـٰمُوسَىٰۤ إِنَّهُۥۤ أَنَا ٱللَّهُ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿9﴾
ऐ मूसा! वह तो मैं अल्लाह हूँ, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी!
وَأَلۡقِ عَصَاكَۚ فَلَمَّا رَءَاهَا تَهۡتَزُّ كَأَنَّهَا جَاۤنࣱّ وَلَّىٰ مُدۡبِرࣰا وَلَمۡ یُعَقِّبۡۚ یَـٰمُوسَىٰ لَا تَخَفۡ إِنِّی لَا یَخَافُ لَدَیَّ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿10﴾
तू अपनी लाठी डाल दे।\" जब मूसा ने देखा कि वह बल खा रहा है जैसे वह कोई साँप हो, तो वह पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर न देखा। \"ऐ मूसा! डर मत। निस्संदेह रसूल मेरे पास डरा नहीं करते,
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسۡنَۢا بَعۡدَ سُوۤءࣲ فَإِنِّی غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿11﴾
सिवाय उसके जिसने कोई ज़्यादती की हो। फिर बुराई के पश्चात उसे भलाई से बदल दिया, तो मैं भी बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान हूँ
وَأَدۡخِلۡ یَدَكَ فِی جَیۡبِكَ تَخۡرُجۡ بَیۡضَاۤءَ مِنۡ غَیۡرِ سُوۤءࣲۖ فِی تِسۡعِ ءَایَـٰتٍ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَقَوۡمِهِۦۤۚ إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ قَوۡمࣰا فَـٰسِقِینَ ﴿12﴾
अपना हाथ गिरेबान में डाल। वह बिना किसी ख़राबी के उज्जवल चमकता निकलेगा। ये नौ निशानियों में से है फ़िरऔन और उसकी क़ौम की ओर भेजने के लिए। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग है।\"
فَلَمَّا جَاۤءَتۡهُمۡ ءَایَـٰتُنَا مُبۡصِرَةࣰ قَالُوا۟ هَـٰذَا سِحۡرࣱ مُّبِینࣱ ﴿13﴾
किन्तु जब आँखें खोल देनेवाली हमारी निशानियाँ उनके पास आई तो उन्होंने कहा, \"यह तो खुला हुआ जादू है।\"
وَجَحَدُوا۟ بِهَا وَٱسۡتَیۡقَنَتۡهَاۤ أَنفُسُهُمۡ ظُلۡمࣰا وَعُلُوࣰّاۚ فَٱنظُرۡ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلۡمُفۡسِدِینَ ﴿14﴾
उन्होंने ज़ुल्म और सरकशी से उनका इनकार कर दिया, हालाँकि उनके जी को उनका विश्वास हो चुका था। अब देख लो इन बिगाड़ पैदा करनेवालों का क्या परिणाम हुआ?
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا دَاوُۥدَ وَسُلَیۡمَـٰنَ عِلۡمࣰاۖ وَقَالَا ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِی فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِیرࣲ مِّنۡ عِبَادِهِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿15﴾
हमने दाऊद और सुलैमान को बड़ा ज्ञान प्रदान किया था, (उन्होंने उसके महत्व को जाना) और उन दोनों ने कहा, \"सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपने बहुत-से ईमानवाले बन्दों के मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की।\"
وَوَرِثَ سُلَیۡمَـٰنُ دَاوُۥدَۖ وَقَالَ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ عُلِّمۡنَا مَنطِقَ ٱلطَّیۡرِ وَأُوتِینَا مِن كُلِّ شَیۡءٍۖ إِنَّ هَـٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡمُبِینُ ﴿16﴾
दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ औऱ उसने कहा, \"ऐ लोगों! हमें पक्षियों की बोली सिखाई गई है और हमें हर चीज़ दी गई है। निस्संदेह वह स्पष्ट बड़ाई है।\"
وَحُشِرَ لِسُلَیۡمَـٰنَ جُنُودُهُۥ مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ وَٱلطَّیۡرِ فَهُمۡ یُوزَعُونَ ﴿17﴾
सुलैमान के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र कर गई फिर उनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी
حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَتَوۡا۟ عَلَىٰ وَادِ ٱلنَّمۡلِ قَالَتۡ نَمۡلَةࣱ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّمۡلُ ٱدۡخُلُوا۟ مَسَـٰكِنَكُمۡ لَا یَحۡطِمَنَّكُمۡ سُلَیۡمَـٰنُ وَجُنُودُهُۥ وَهُمۡ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿18﴾
यहाँ तक कि जब वे चींटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, \"ऐ चींटियों! अपने घरों में प्रवेश कर जाओ। कहीं सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल न डालें और उन्हें एहसास भी न हो।\"
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكࣰا مِّن قَوۡلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوۡزِعۡنِیۤ أَنۡ أَشۡكُرَ نِعۡمَتَكَ ٱلَّتِیۤ أَنۡعَمۡتَ عَلَیَّ وَعَلَىٰ وَ ٰلِدَیَّ وَأَنۡ أَعۡمَلَ صَـٰلِحࣰا تَرۡضَىٰهُ وَأَدۡخِلۡنِی بِرَحۡمَتِكَ فِی عِبَادِكَ ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿19﴾
तो वह उसकी बात पर प्रसन्न होकर मुस्कराया और कहा, \"मेरे रब! मुझे संभाले रख कि मैं तेरी उस कृपा पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझे अपने अच्छे बन्दों में दाखिल कर।\"
وَتَفَقَّدَ ٱلطَّیۡرَ فَقَالَ مَا لِیَ لَاۤ أَرَى ٱلۡهُدۡهُدَ أَمۡ كَانَ مِنَ ٱلۡغَاۤىِٕبِینَ ﴿20﴾
उसने पक्षियों की जाँच-पड़ताल की तो कहा, \"क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ, (वह यहीं कहीं है) या ग़ायब हो गया है?
لَأُعَذِّبَنَّهُۥ عَذَابࣰا شَدِیدًا أَوۡ لَأَا۟ذۡبَحَنَّهُۥۤ أَوۡ لَیَأۡتِیَنِّی بِسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینࣲ ﴿21﴾
मैं उसे कठोर दंड दूँगा या उसे ज़बह ही कर डालूँगा या फिर वह मेरे सामने कोई स्पष्ट॥ कारण प्रस्तुत करे।\"
فَمَكَثَ غَیۡرَ بَعِیدࣲ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمۡ تُحِطۡ بِهِۦ وَجِئۡتُكَ مِن سَبَإِۭ بِنَبَإࣲ یَقِینٍ ﴿22﴾
फिर कुछ अधिक देर नहीं ठहरा कि उसने आकर कहा, \"मैंने वह जानकारी प्राप्त की है जो आपको मालूम नहीं है। मैं सबा से आपके पास एक विश्वसनीय सूचना लेकर आया हूँ
إِنِّی وَجَدتُّ ٱمۡرَأَةࣰ تَمۡلِكُهُمۡ وَأُوتِیَتۡ مِن كُلِّ شَیۡءࣲ وَلَهَا عَرۡشٌ عَظِیمࣱ ﴿23﴾
मैंने एक स्त्री को उनपर शासन करते पाया है। उसे हर चीज़ प्राप्त है औऱ उसका एक बड़ा सिंहासन है
وَجَدتُّهَا وَقَوۡمَهَا یَسۡجُدُونَ لِلشَّمۡسِ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَزَیَّنَ لَهُمُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ فَصَدَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّبِیلِ فَهُمۡ لَا یَهۡتَدُونَ ﴿24﴾
मैंने उसे और उसकी क़ौम के लोगों को अल्लाह से इतर सूर्य को सजदा करते हुए पाया। शैतान ने उनके कर्मों को उनके लिए शोभायमान बना दिया है और उन्हें मार्ग से रोक दिया है - अतः वे सीधा मार्ग नहीं पा रहे है। -
أَلَّا یَسۡجُدُوا۟ لِلَّهِ ٱلَّذِی یُخۡرِجُ ٱلۡخَبۡءَ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَیَعۡلَمُ مَا تُخۡفُونَ وَمَا تُعۡلِنُونَ ﴿25﴾
खि अल्लाह को सजदा न करें जो आकाशों और धरती की छिपी चीज़ें निकालता है, और जानता है जो कुछ भी तुम छिपाते हो और जो कुछ प्रकट करते हो
ٱللَّهُ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِیمِ ۩ ﴿26﴾
अल्लाह कि उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं, वह महान सिंहासन का रब है।\"
۞ قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقۡتَ أَمۡ كُنتَ مِنَ ٱلۡكَـٰذِبِینَ ﴿27﴾
उसने कहा, \"अभी हम देख लेते है कि तूने सच कहा या तू झूठा है
ٱذۡهَب بِّكِتَـٰبِی هَـٰذَا فَأَلۡقِهۡ إِلَیۡهِمۡ ثُمَّ تَوَلَّ عَنۡهُمۡ فَٱنظُرۡ مَاذَا یَرۡجِعُونَ ﴿28﴾
मेरा यह पत्र लेकर जा, और इसे उन लोगों की ओर डाल दे। फिर उनके पास से अलग हटकर देख कि वे क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते है।\"
قَالَتۡ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلۡمَلَؤُا۟ إِنِّیۤ أُلۡقِیَ إِلَیَّ كِتَـٰبࣱ كَرِیمٌ ﴿29﴾
वह बोली, \"ऐ सरदारों! मेरी ओर एक प्रतिष्ठित पत्र डाला गया है
إِنَّهُۥ مِن سُلَیۡمَـٰنَ وَإِنَّهُۥ بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِیمِ ﴿30﴾
वह सुलैमान की ओर से है और वह यह है कि अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है
أَلَّا تَعۡلُوا۟ عَلَیَّ وَأۡتُونِی مُسۡلِمِینَ ﴿31﴾
यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और आज्ञाकारी बनकर मेरे पास आओ।\"
قَالَتۡ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلۡمَلَؤُا۟ أَفۡتُونِی فِیۤ أَمۡرِی مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمۡرًا حَتَّىٰ تَشۡهَدُونِ ﴿32﴾
उसने कहा, \"ऐ सरदारों! मेरे मामलें में मुझे परामर्श दो। मैं किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती, जब तक कि तुम मेरे पास मौजूद न हो।\"
قَالُوا۟ نَحۡنُ أُو۟لُوا۟ قُوَّةࣲ وَأُو۟لُوا۟ بَأۡسࣲ شَدِیدࣲ وَٱلۡأَمۡرُ إِلَیۡكِ فَٱنظُرِی مَاذَا تَأۡمُرِینَ ﴿33﴾
उन्होंने कहा, \"हम शक्तिशाली है और हमें बड़ी युद्ध-क्षमता प्राप्त है। आगे मामले का अधिकार आपको है, अतः आप देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।\"
قَالَتۡ إِنَّ ٱلۡمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا۟ قَرۡیَةً أَفۡسَدُوهَا وَجَعَلُوۤا۟ أَعِزَّةَ أَهۡلِهَاۤ أَذِلَّةࣰۚ وَكَذَ ٰلِكَ یَفۡعَلُونَ ﴿34﴾
उसने कहा, \"सम्राट जब किसी बस्ती में प्रवेश करते है, तो उसे ख़राब कर देते है और वहाँ के प्रभावशाली लोगों को अपमानित करके रहते है। और वे ऐसा ही करेंगे
وَإِنِّی مُرۡسِلَةٌ إِلَیۡهِم بِهَدِیَّةࣲ فَنَاظِرَةُۢ بِمَ یَرۡجِعُ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿35﴾
मैं उनके पास एक उपहार भेजती हूँ; फिर देखती हूँ कि दूत क्या उत्तर लेकर लौटते है।\"
فَلَمَّا جَاۤءَ سُلَیۡمَـٰنَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالࣲ فَمَاۤ ءَاتَىٰنِۦَ ٱللَّهُ خَیۡرࣱ مِّمَّاۤ ءَاتَىٰكُمۚ بَلۡ أَنتُم بِهَدِیَّتِكُمۡ تَفۡرَحُونَ ﴿36﴾
फिर जब वह सुलैमान के पास पहुँचा तो उसने (सुलैमान ने) कहा, \"क्या तुम माल से मेरी सहायता करोगे, तो जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है वह उससे कहीं उत्तम है, जो उसने तुम्हें दिया है? बल्कि तुम्ही लोग हो जो अपने उपहार से प्रसन्न होते हो!
ٱرۡجِعۡ إِلَیۡهِمۡ فَلَنَأۡتِیَنَّهُم بِجُنُودࣲ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخۡرِجَنَّهُم مِّنۡهَاۤ أَذِلَّةࣰ وَهُمۡ صَـٰغِرُونَ ﴿37﴾
उनके पास वापस जाओ। हम उनपर ऐसी सेनाएँ लेकर आएँगे, जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें अपमानित करके वहाँ से निकाल देंगे कि वे पस्त होकर रहेंगे।\"
قَالَ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلۡمَلَؤُا۟ أَیُّكُمۡ یَأۡتِینِی بِعَرۡشِهَا قَبۡلَ أَن یَأۡتُونِی مُسۡلِمِینَ ﴿38﴾
उसने (सुलैमान ने) कहा, \"ऐ सरदारो! तुममें कौन उसका सिंहासन लेकर मेरे पास आता है, इससे पहले कि वे लोग आज्ञाकारी होकर मेरे पास आएँ?\"
قَالَ عِفۡرِیتࣱ مِّنَ ٱلۡجِنِّ أَنَا۠ ءَاتِیكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَۖ وَإِنِّی عَلَیۡهِ لَقَوِیٌّ أَمِینࣱ ﴿39﴾
जिन्नों में से एक बलिष्ठ निर्भीक ने कहा, \"मैं उसे आपके पास ले आऊँगा। इससे पहले कि आप अपने स्थान से उठे। मुझे इसकी शक्ति प्राप्त है और मैं अमानतदार भी हूँ।\"
قَالَ ٱلَّذِی عِندَهُۥ عِلۡمࣱ مِّنَ ٱلۡكِتَـٰبِ أَنَا۠ ءَاتِیكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن یَرۡتَدَّ إِلَیۡكَ طَرۡفُكَۚ فَلَمَّا رَءَاهُ مُسۡتَقِرًّا عِندَهُۥ قَالَ هَـٰذَا مِن فَضۡلِ رَبِّی لِیَبۡلُوَنِیۤ ءَأَشۡكُرُ أَمۡ أَكۡفُرُۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا یَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّی غَنِیࣱّ كَرِیمࣱ ﴿40﴾
जिस व्यक्ति के पास किताब का ज्ञान था, उसने कहा, \"मैं आपकी पलक झपकने से पहले उसे आपके पास लाए देता हूँ।\" फिर जब उसने उसे अपने पास रखा हुआ देखा तो कहा, \"यह मेरे रब का उदार अनुग्रह है, ताकि वह मेरी परीक्षा करे कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्न बनता हूँ। जो कृतज्ञता दिखलाता है तो वह अपने लिए ही कृतज्ञता दिखलाता है और वह जिसने कृतघ्नता दिखाई, तो मेरा रब निश्चय ही निस्पृह, बड़ा उदार है।\"
قَالَ نَكِّرُوا۟ لَهَا عَرۡشَهَا نَنظُرۡ أَتَهۡتَدِیۤ أَمۡ تَكُونُ مِنَ ٱلَّذِینَ لَا یَهۡتَدُونَ ﴿41﴾
उसने कहा, \"उसके पास उसके सिंहासन का रूप बदल दो। देंखे वह वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को नहीं पाते।\"
فَلَمَّا جَاۤءَتۡ قِیلَ أَهَـٰكَذَا عَرۡشُكِۖ قَالَتۡ كَأَنَّهُۥ هُوَۚ وَأُوتِینَا ٱلۡعِلۡمَ مِن قَبۡلِهَا وَكُنَّا مُسۡلِمِینَ ﴿42﴾
जब वह आई तो कहा गया, \"क्या तुम्हारा सिंहासन ऐसा ही है?\" उसने कहा, \"यह तो जैसे वही है, और हमें तो इससे पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका था; और हम आज्ञाकारी हो गए थे।\"
وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعۡبُدُ مِن دُونِ ٱللَّهِۖ إِنَّهَا كَانَتۡ مِن قَوۡمࣲ كَـٰفِرِینَ ﴿43﴾
अल्लाह से हटकर वह दूसरे को पूजती थी। इसी चीज़ ने उसे रोक रखा था। निस्संदेह वह एक इनकार करनेवाली क़ौम में से थी
قِیلَ لَهَا ٱدۡخُلِی ٱلصَّرۡحَۖ فَلَمَّا رَأَتۡهُ حَسِبَتۡهُ لُجَّةࣰ وَكَشَفَتۡ عَن سَاقَیۡهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ صَرۡحࣱ مُّمَرَّدࣱ مِّن قَوَارِیرَۗ قَالَتۡ رَبِّ إِنِّی ظَلَمۡتُ نَفۡسِی وَأَسۡلَمۡتُ مَعَ سُلَیۡمَـٰنَ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿44﴾
उससे कहा गया कि \"महल में प्रवेश करो।\" तो जब उसने उसे देखा तो उसने उसको गहरा पानी समझा और उसने अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दी। उसने कहा, \"यह तो शीशे से निर्मित महल है।\" बोली, \"ऐ मेरे रब! निश्चय ही मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अब मैंने सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के समर्पित कर दिया, जो सारे संसार का रब है।\"
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَاۤ إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمۡ صَـٰلِحًا أَنِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ فَإِذَا هُمۡ فَرِیقَانِ یَخۡتَصِمُونَ ﴿45﴾
और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को भेजा कि \"अल्लाह की बन्दगी करो।\" तो क्या देखते है कि वे दो गिरोह होकर आपस में झगड़ने लगे
قَالَ یَـٰقَوۡمِ لِمَ تَسۡتَعۡجِلُونَ بِٱلسَّیِّئَةِ قَبۡلَ ٱلۡحَسَنَةِۖ لَوۡلَا تَسۡتَغۡفِرُونَ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ﴿46﴾
उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगों, तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी मचा रहे हो? तुम अल्लाह से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? कदाचित तुमपर दया की जाए।\"
قَالُوا۟ ٱطَّیَّرۡنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَۚ قَالَ طَـٰۤىِٕرُكُمۡ عِندَ ٱللَّهِۖ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمࣱ تُفۡتَنُونَ ﴿47﴾
उन्होंने कहा, \"हमने तुम्हें और तुम्हारे साथवालों को अपशकुन पाया है।\" उसने कहा, \"तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो अल्लाह के पास है, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो।\"
وَكَانَ فِی ٱلۡمَدِینَةِ تِسۡعَةُ رَهۡطࣲ یُفۡسِدُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَا یُصۡلِحُونَ ﴿48﴾
नगर में नौ जत्थेदार थे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते थे, सुधार का काम नहीं करते थे
قَالُوا۟ تَقَاسَمُوا۟ بِٱللَّهِ لَنُبَیِّتَنَّهُۥ وَأَهۡلَهُۥ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِیِّهِۦ مَا شَهِدۡنَا مَهۡلِكَ أَهۡلِهِۦ وَإِنَّا لَصَـٰدِقُونَ ﴿49﴾
वे आपस में अल्लाह की क़समें खाकर बोले, \"हम अवश्य उसपर और उसके घरवालों पर रात को छापा मारेंगे। फिर उसके वली (परिजन) से कह देंगे कि हम उसके घरवालों के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे। और हम बिलकुल सच्चे है।\"
وَمَكَرُوا۟ مَكۡرࣰا وَمَكَرۡنَا مَكۡرࣰا وَهُمۡ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿50﴾
वे एक चाल चले और हमने भी एक चाल चली और उन्हें ख़बर तक न हुई
فَٱنظُرۡ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ مَكۡرِهِمۡ أَنَّا دَمَّرۡنَـٰهُمۡ وَقَوۡمَهُمۡ أَجۡمَعِینَ ﴿51﴾
अब देख लो, उनकी चाल का कैसा परिणाम हुआ! हमने उन्हें और उनकी क़ौम - सबको विनष्ट करके रख दिया
فَتِلۡكَ بُیُوتُهُمۡ خَاوِیَةَۢ بِمَا ظَلَمُوۤا۟ۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَعۡلَمُونَ ﴿52﴾
अब ये उनके घर उनके ज़ुल्म के कारण उजडें पड़े हुए है। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है उन लोगों के लिए जो जानना चाहें
وَأَنجَیۡنَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَكَانُوا۟ یَتَّقُونَ ﴿53﴾
और हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और डर रखते थे
وَلُوطًا إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦۤ أَتَأۡتُونَ ٱلۡفَـٰحِشَةَ وَأَنتُمۡ تُبۡصِرُونَ ﴿54﴾
और लूत को भी भेजा, जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, \"क्या तुम आँखों देखते हुए अश्लील कर्म करते हो?
أَىِٕنَّكُمۡ لَتَأۡتُونَ ٱلرِّجَالَ شَهۡوَةࣰ مِّن دُونِ ٱلنِّسَاۤءِۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمࣱ تَجۡهَلُونَ ﴿55﴾
क्या तुम स्त्रियों को छोड़कर अपनी काम-तृप्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि बात यह है कि तुम बड़े ही जाहिल लोग हो।\"
۞ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوۡمِهِۦۤ إِلَّاۤ أَن قَالُوۤا۟ أَخۡرِجُوۤا۟ ءَالَ لُوطࣲ مِّن قَرۡیَتِكُمۡۖ إِنَّهُمۡ أُنَاسࣱ یَتَطَهَّرُونَ ﴿56﴾
परन्तु उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, \"निकाल बाहर करो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से। ये लोग सुथराई को बहुत पसन्द करते है!\"
فَأَنجَیۡنَـٰهُ وَأَهۡلَهُۥۤ إِلَّا ٱمۡرَأَتَهُۥ قَدَّرۡنَـٰهَا مِنَ ٱلۡغَـٰبِرِینَ ﴿57﴾
अन्ततः हमने उसे और उसके घरवालों को बचा लिया सिवाय उसकी स्त्री के। उसके लिए हमने नियत कर दिया था कि वह पीछे रह जानेवालों में से होगी
وَأَمۡطَرۡنَا عَلَیۡهِم مَّطَرࣰاۖ فَسَاۤءَ مَطَرُ ٱلۡمُنذَرِینَ ﴿58﴾
और हमने उनपर एक बरसात बरसाई और वह बहुत ही बुरी बरसात था उन लोगों के हक़ में, जिन्हें सचेत किया जा चुका था
قُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ وَسَلَـٰمٌ عَلَىٰ عِبَادِهِ ٱلَّذِینَ ٱصۡطَفَىٰۤۗ ءَاۤللَّهُ خَیۡرٌ أَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿59﴾
कहो, \"प्रशंसा अल्लाह के लिए है और सलाम है उनके उन बन्दों पर जिन्हें उसने चुन लिया। क्या अल्लाह अच्छा है या वे जिन्हें वे साझी ठहरा रहे है?
أَمَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَنۢبَتۡنَا بِهِۦ حَدَاۤىِٕقَ ذَاتَ بَهۡجَةࣲ مَّا كَانَ لَكُمۡ أَن تُنۢبِتُوا۟ شَجَرَهَاۤۗ أَءِلَـٰهࣱ مَّعَ ٱللَّهِۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمࣱ یَعۡدِلُونَ ﴿60﴾
(तुम्हारे पूज्य अच्छे है) या वह जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से पानी बरसाया; उसके द्वारा हमने रमणीय उद्यान उगाए? तुम्हारे लिए सम्भव न था कि तुम उनके वृक्षों को उगाते। - क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु-पूज्य है? नहीं, बल्कि वही लोग मार्ग से हटकर चले जा रहे है!
أَمَّن جَعَلَ ٱلۡأَرۡضَ قَرَارࣰا وَجَعَلَ خِلَـٰلَهَاۤ أَنۡهَـٰرࣰا وَجَعَلَ لَهَا رَوَ ٰسِیَ وَجَعَلَ بَیۡنَ ٱلۡبَحۡرَیۡنِ حَاجِزًاۗ أَءِلَـٰهࣱ مَّعَ ٱللَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿61﴾
या वह जिसने धरती को ठहरने का स्थान बनाया और उसके बीच-बीच में नदियाँ बहाई और उसके लिए मज़बूत पहाड़ बनाए और दो समुद्रों के बीच एक रोक लगा दी। क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? नहीं, उनमें से अधिकतर लोग जानते ही नही!
أَمَّن یُجِیبُ ٱلۡمُضۡطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَیَكۡشِفُ ٱلسُّوۤءَ وَیَجۡعَلُكُمۡ خُلَفَاۤءَ ٱلۡأَرۡضِۗ أَءِلَـٰهࣱ مَّعَ ٱللَّهِۚ قَلِیلࣰا مَّا تَذَكَّرُونَ ﴿62﴾
या वह जो व्यग्र की पुकार सुनता है, जब वह उसे पुकारे और तकलीफ़ दूर कर देता है और तुम्हें धरती में अधिकारी बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और पूज्य-प्रभु है? तुम ध्यान थोड़े ही देते हो
أَمَّن یَهۡدِیكُمۡ فِی ظُلُمَـٰتِ ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ وَمَن یُرۡسِلُ ٱلرِّیَـٰحَ بُشۡرَۢا بَیۡنَ یَدَیۡ رَحۡمَتِهِۦۤۗ أَءِلَـٰهࣱ مَّعَ ٱللَّهِۚ تَعَـٰلَى ٱللَّهُ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿63﴾
या वह जो थल और जल के अँधेरों में तुम्हारा मार्गदर्शन करता है और जो अपनी दयालुता के आगे हवाओं को शुभ-सूचना बनाकर भेजता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? उच्च है अल्लाह, उस शिर्क से जो वे करते है
أَمَّن یَبۡدَؤُا۟ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥ وَمَن یَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِۗ أَءِلَـٰهࣱ مَّعَ ٱللَّهِۚ قُلۡ هَاتُوا۟ بُرۡهَـٰنَكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿64﴾
या वह जो सृष्टि का आरम्भ करता है, फिर उसकी पुनरावृत्ति भी करता है, और जो तुमको आकाश और धरती से रोज़ी देता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभ पूज्य है? कहो, \"लाओ अपना प्रमाण, यदि तुम सच्चे हो।\"
قُل لَّا یَعۡلَمُ مَن فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ ٱلۡغَیۡبَ إِلَّا ٱللَّهُۚ وَمَا یَشۡعُرُونَ أَیَّانَ یُبۡعَثُونَ ﴿65﴾
कहो, \"आकाशों और धरती में जो भी है, अल्लाह के सिवा किसी को भी परोक्ष का ज्ञान नहीं है। और न उन्हें इसकी चेतना प्राप्त है कि वे कब उठाए जाएँगे।\"
بَلِ ٱدَّ ٰرَكَ عِلۡمُهُمۡ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِۚ بَلۡ هُمۡ فِی شَكࣲّ مِّنۡهَاۖ بَلۡ هُم مِّنۡهَا عَمُونَ ﴿66﴾
बल्कि आख़िरत के विषय में उनका ज्ञान पक्का हो गया है, बल्कि ये उसकी ओर से कुछ संदेह में है, बल्कि वे उससे अंधे है
وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ أَءِذَا كُنَّا تُرَ ٰبࣰا وَءَابَاۤؤُنَاۤ أَىِٕنَّا لَمُخۡرَجُونَ ﴿67﴾
जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है कि \"क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे और हमारे बाप-दादा भी, तो क्या वास्तव में हम (जीवित करके) निकाले जाएँगे?
لَقَدۡ وُعِدۡنَا هَـٰذَا نَحۡنُ وَءَابَاۤؤُنَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿68﴾
इसका वादा तो इससे पहले भी किया जा चुका है, हमसे भी और हमारे बाप-दादा से भी। ये तो बस पहले लोगो की कहानियाँ है।\"
قُلۡ سِیرُوا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُوا۟ كَیۡفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلۡمُجۡرِمِینَ ﴿69﴾
कहो कि \"धरती में चलो-फिरो और देखो कि अपराधियों का कैसा परिणाम हुआ।\"
وَلَا تَحۡزَنۡ عَلَیۡهِمۡ وَلَا تَكُن فِی ضَیۡقࣲ مِّمَّا یَمۡكُرُونَ ﴿70﴾
उनके प्रति शोकाकुल न हो और न उस चाल से दिल तंग हो, जो वे चल रहे है।
وَیَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿71﴾
वे कहते है, \"यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?\"
قُلۡ عَسَىٰۤ أَن یَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعۡضُ ٱلَّذِی تَسۡتَعۡجِلُونَ ﴿72﴾
कहो, \"जिसकी तुम जल्दी मचा रहे हो बहुत सम्भव है कि उसका कोई हिस्सा तुम्हारे पीछे ही लगा हो।\"
وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا یَشۡكُرُونَ ﴿73﴾
निश्चय ही तुम्हारा रब तो लोगों पर उदार अनुग्रह करनेवाला है, किन्तु उनमें से अधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखाते
وَإِنَّ رَبَّكَ لَیَعۡلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمۡ وَمَا یُعۡلِنُونَ ﴿74﴾
निश्चय ही तुम्हारा रह भली-भाँति जानता है, जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है और जो कुछ वे प्रकट करते है।
وَمَا مِنۡ غَاۤىِٕبَةࣲ فِی ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِ إِلَّا فِی كِتَـٰبࣲ مُّبِینٍ ﴿75﴾
आकाश और धरती में छिपी कोई भी चीज़ ऐसी नहीं जो एक स्पष्ट किताब में मौजूद न हो
إِنَّ هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ یَقُصُّ عَلَىٰ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ أَكۡثَرَ ٱلَّذِی هُمۡ فِیهِ یَخۡتَلِفُونَ ﴿76﴾
निस्संदेह यह क़ुरआन इसराईल की सन्तान को अधिकतर ऐसी बाते खोलकर सुनाता है जिनके विषय में उनसे मतभेद है
وَإِنَّهُۥ لَهُدࣰى وَرَحۡمَةࣱ لِّلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿77﴾
और निस्संदह यह तो ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता है
إِنَّ رَبَّكَ یَقۡضِی بَیۡنَهُم بِحُكۡمِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿78﴾
निश्चय ही तुम्हारा रब उनके बीच अपने हुक्म से फ़ैसला कर देगा। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ है
فَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۖ إِنَّكَ عَلَى ٱلۡحَقِّ ٱلۡمُبِینِ ﴿79﴾
अतः अल्लाह पर भरोसा रखो। निश्चय ही तुम स्पष्ट सत्य पर हो
إِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَلَا تُسۡمِعُ ٱلصُّمَّ ٱلدُّعَاۤءَ إِذَا وَلَّوۡا۟ مُدۡبِرِینَ ﴿80﴾
तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते और न बहरों को अपनी पुकार सुना सकते हो, जबकि वे पीठ देकर फिरे भी जा रहें हो।
وَمَاۤ أَنتَ بِهَـٰدِی ٱلۡعُمۡیِ عَن ضَلَـٰلَتِهِمۡۖ إِن تُسۡمِعُ إِلَّا مَن یُؤۡمِنُ بِـَٔایَـٰتِنَا فَهُم مُّسۡلِمُونَ ﴿81﴾
और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से हटाकर राह पर ला सकते हो। तुम तो बस उन्हीं को सुना सकते हो, जो हमारी आयतों पर ईमान लाना चाहें। अतः वही आज्ञाकारी होते है
۞ وَإِذَا وَقَعَ ٱلۡقَوۡلُ عَلَیۡهِمۡ أَخۡرَجۡنَا لَهُمۡ دَاۤبَّةࣰ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ تُكَلِّمُهُمۡ أَنَّ ٱلنَّاسَ كَانُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَا لَا یُوقِنُونَ ﴿82﴾
और जब उनपर बात पूरी हो जाएगी, तो हम उनके लिए धरती का प्राणी सामने लाएँगे जो उनसे बातें करेगा कि \"लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे\"
وَیَوۡمَ نَحۡشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةࣲ فَوۡجࣰا مِّمَّن یُكَذِّبُ بِـَٔایَـٰتِنَا فَهُمۡ یُوزَعُونَ ﴿83﴾
और जिस दिन हम प्रत्येक समुदाय में से एक गिरोह, ऐसे लोगों का जो हमारी आयतों को झुठलाते है, घेर लाएँगे। फिर उनकी दर्जाबन्दी की जाएगी
حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءُو قَالَ أَكَذَّبۡتُم بِـَٔایَـٰتِی وَلَمۡ تُحِیطُوا۟ بِهَا عِلۡمًا أَمَّاذَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿84﴾
यहाँ तक कि जब वे आ जाएँगे तो वह कहेगा, \"क्या तुमने मेरी आयतों को झुठलाया, हालाँकि अपने ज्ञान से तुम उनपर हावी न थे या फिर तुम क्या करते थे?\"
وَوَقَعَ ٱلۡقَوۡلُ عَلَیۡهِم بِمَا ظَلَمُوا۟ فَهُمۡ لَا یَنطِقُونَ ﴿85﴾
और बात उनपर पूरी होकर रहेगी, इसलिए कि उन्होंने ज़ुल्म किया। अतः वे कुछ बोल न सकेंगे
أَلَمۡ یَرَوۡا۟ أَنَّا جَعَلۡنَا ٱلَّیۡلَ لِیَسۡكُنُوا۟ فِیهِ وَٱلنَّهَارَ مُبۡصِرًاۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿86﴾
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने रात को (अँधेरी) बनाया, ताकि वे उसमें शान्ति और चैन प्राप्त करें। और दिन को प्रकाशमान बनाया (कि उसमें काम करें)? निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है, जो ईमान ले आएँ
وَیَوۡمَ یُنفَخُ فِی ٱلصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَن فِی ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَاۤءَ ٱللَّهُۚ وَكُلٌّ أَتَوۡهُ دَ ٰخِرِینَ ﴿87﴾
और ख़याल करो जिस दिन सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी और जो आकाशों और धरती में है, घबरा उठेंगे, सिवाय उनके जिन्हें अल्लाह चाहे - और सब कान दबाए उसके समक्ष उपस्थित हो जाएँगे
وَتَرَى ٱلۡجِبَالَ تَحۡسَبُهَا جَامِدَةࣰ وَهِیَ تَمُرُّ مَرَّ ٱلسَّحَابِۚ صُنۡعَ ٱللَّهِ ٱلَّذِیۤ أَتۡقَنَ كُلَّ شَیۡءٍۚ إِنَّهُۥ خَبِیرُۢ بِمَا تَفۡعَلُونَ ﴿88﴾
और तुम पहाड़ों को देखकर समझते हो कि वे जमे हुए है, हालाँकि वे चल रहे होंगे, जिस प्रकार बादल चलते है। यह अल्लाह की कारीगरी है, जिसने हर चीज़ को सुदृढ़ किया। निस्संदेह वह उसकी ख़बर रखता है, जो कुछ तुम करते हो
مَن جَاۤءَ بِٱلۡحَسَنَةِ فَلَهُۥ خَیۡرࣱ مِّنۡهَا وَهُم مِّن فَزَعࣲ یَوۡمَىِٕذٍ ءَامِنُونَ ﴿89﴾
जो कोई सुचरित लेकर आया उसको उससे भी अच्छा प्राप्त होगा; और ऐसे लोग घबराहट से उस दिन निश्चिन्त होंगे
وَمَن جَاۤءَ بِٱلسَّیِّئَةِ فَكُبَّتۡ وُجُوهُهُمۡ فِی ٱلنَّارِ هَلۡ تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿90﴾
और जो कुचरित लेकर आया तो ऐसे लोगों के मुँह आग में औधे होंगे। (और उनसे कहा जाएगा) \"क्या तुम उसके सिवा किसी और चीज़ का बदला पा रहे हो, जो तुम करते रहे हो?\"
إِنَّمَاۤ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ رَبَّ هَـٰذِهِ ٱلۡبَلۡدَةِ ٱلَّذِی حَرَّمَهَا وَلَهُۥ كُلُّ شَیۡءࣲۖ وَأُمِرۡتُ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿91﴾
मुझे तो बस यही आदेश मिला है कि इस नगर (मक्का) के रब की बन्दगी करूँ, जिसने इस आदरणीय ठहराया और उसी की हर चीज़ है। और मुझे आदेश मिला है कि मैं आज्ञाकारी बनकर रहूँ
وَأَنۡ أَتۡلُوَا۟ ٱلۡقُرۡءَانَۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَإِنَّمَا یَهۡتَدِی لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَقُلۡ إِنَّمَاۤ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُنذِرِینَ ﴿92﴾
और यह कि क़ुरआन पढ़कर सुनाऊँ। अब जिस किसी ने संमार्ग ग्रहण किया वह अपने ही लिए संमार्ग ग्रहण करेगा। और जो पथभ्रष्टि रहा तो कह दो, \"मैं तो बस एक सचेत करनेवाला ही हूँ।\"
وَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ سَیُرِیكُمۡ ءَایَـٰتِهِۦ فَتَعۡرِفُونَهَاۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿93﴾
और कहो, \"सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है। जल्द ही वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखा देगा और तुम उन्हें पहचान लोगे। और तेरा रब उससे बेख़बर नहीं है, जो कुछ तुम सब कर रहे हो।\"