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Surah The Spider [Al-Ankaboot] in Hindi
الۤمۤ ﴿1﴾
अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰
أَحَسِبَ ٱلنَّاسُ أَن یُتۡرَكُوۤا۟ أَن یَقُولُوۤا۟ ءَامَنَّا وَهُمۡ لَا یُفۡتَنُونَ ﴿2﴾
क्या लोगों ने यह समझ रखा है कि वे इतना कह देने मात्र से छोड़ दिए जाएँगे कि \"हम ईमान लाए\" और उनकी परीक्षा न की जाएगी?
وَلَقَدۡ فَتَنَّا ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۖ فَلَیَعۡلَمَنَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ صَدَقُوا۟ وَلَیَعۡلَمَنَّ ٱلۡكَـٰذِبِینَ ﴿3﴾
हालाँकि हम उन लोगों की परीक्षा कर चुके है जो इनसे पहले गुज़र चुके है। अल्लाह तो उन लोगों को मालूम करके रहेगा, जो सच्चे है। और वह झूठों को भी मालूम करके रहेगा
أَمۡ حَسِبَ ٱلَّذِینَ یَعۡمَلُونَ ٱلسَّیِّـَٔاتِ أَن یَسۡبِقُونَاۚ سَاۤءَ مَا یَحۡكُمُونَ ﴿4﴾
या उन लोगों ने, जो बुरे कर्म करते है, यह समझ रखा है कि वे हमारे क़ाबू से बाहर निकल जाएँगे? बहुत बुरा है जो फ़ैसला वे कर रहे है
مَن كَانَ یَرۡجُوا۟ لِقَاۤءَ ٱللَّهِ فَإِنَّ أَجَلَ ٱللَّهِ لَـَٔاتࣲۚ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿5﴾
जो व्यक्ति अल्लाह से मिलने का आशा रखता है तो अल्लाह का नियत समय तो आने ही वाला है। और वह सब कुछ सुनता, जानता है
وَمَن جَـٰهَدَ فَإِنَّمَا یُجَـٰهِدُ لِنَفۡسِهِۦۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَغَنِیٌّ عَنِ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿6﴾
और जो व्यक्ति (अल्लाह के मार्ग में) संघर्ष करता है वह तो स्वयं अपने ही लिए संघर्ष करता है। निश्चय ही अल्लाह सारे संसार से निस्पृह है
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَنُكَفِّرَنَّ عَنۡهُمۡ سَیِّـَٔاتِهِمۡ وَلَنَجۡزِیَنَّهُمۡ أَحۡسَنَ ٱلَّذِی كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿7﴾
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छा कर्म किए हम उनसे उनकी बुराइयों को दूर कर देंगे और उन्हें अवश्य ही उसका प्रतिदान प्रदान करेंगे, जो कुछ अच्छे कर्म वे करते रहे होंगे
وَوَصَّیۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ بِوَ ٰلِدَیۡهِ حُسۡنࣰاۖ وَإِن جَـٰهَدَاكَ لِتُشۡرِكَ بِی مَا لَیۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمࣱ فَلَا تُطِعۡهُمَاۤۚ إِلَیَّ مَرۡجِعُكُمۡ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿8﴾
और हमने मनुष्यों को अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने की ताकीद की है। किन्तु यदि वे तुमपर ज़ोर डालें कि तू किसी ऐसी चीज़ को मेरा साक्षी ठहराए, जिसका तुझे कोई ज्ञान नहीं, तो उनकी बात न मान। मेरी ही ओर तुम सबको पलटकर आना है, फिर मैं तुम्हें बता दूँगा जो कुछ कुम करते रहे होगे
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَنُدۡخِلَنَّهُمۡ فِی ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿9﴾
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए हम उन्हें अवश्य अच्छे लोगों में सम्मिलित करेंगे
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن یَقُولُ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ فَإِذَاۤ أُوذِیَ فِی ٱللَّهِ جَعَلَ فِتۡنَةَ ٱلنَّاسِ كَعَذَابِ ٱللَّهِۖ وَلَىِٕن جَاۤءَ نَصۡرࣱ مِّن رَّبِّكَ لَیَقُولُنَّ إِنَّا كُنَّا مَعَكُمۡۚ أَوَلَیۡسَ ٱللَّهُ بِأَعۡلَمَ بِمَا فِی صُدُورِ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿10﴾
लोगों में ऐसे भी है जो कहते है कि \"हम अल्लाह पर ईमान लाए,\" किन्तु जब अल्लाह के मामले में वे सताए गए तो उन्होंने लोगों की ओर से आई हुई आज़माइश को अल्लाह की यातना समझ लिया। अब यदि तेरे रब की ओर से सहायता पहुँच गई तो कहेंगे, \"हम तो तुम्हारे साथ थे।\" क्या जो कुछ दुनियावालों के सीनों में है उसे अल्लाह भली-भाँति नहीं जानता?
وَلَیَعۡلَمَنَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَلَیَعۡلَمَنَّ ٱلۡمُنَـٰفِقِینَ ﴿11﴾
और अल्लाह तो उन लोगों को मालूम करके रहेगा जो ईमान लाए, और वह कपटाचारियों को भी मालूम करके रहेगा
وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لِلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّبِعُوا۟ سَبِیلَنَا وَلۡنَحۡمِلۡ خَطَـٰیَـٰكُمۡ وَمَا هُم بِحَـٰمِلِینَ مِنۡ خَطَـٰیَـٰهُم مِّن شَیۡءٍۖ إِنَّهُمۡ لَكَـٰذِبُونَ ﴿12﴾
और इनकार करनेवाले ईमान लानेवालों से कहते है, \"तुम हमारे मार्ग पर चलो, हम तुम्हारी ख़ताओं का बोझ उठा लेंगे।\" हालाँकि वे उनकी ख़ताओं में से कुछ भी उठानेवाले नहीं है। वे निश्चय ही झूठे है
وَلَیَحۡمِلُنَّ أَثۡقَالَهُمۡ وَأَثۡقَالࣰا مَّعَ أَثۡقَالِهِمۡۖ وَلَیُسۡـَٔلُنَّ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ عَمَّا كَانُوا۟ یَفۡتَرُونَ ﴿13﴾
हाँ, अवश्य ही वे अपने बोझ भी उठाएँगे और अपने बोझों के साथ और बहुत-से बोझ भी। और क़ियामत के दिन अवश्य उनसे उसके विषय में पूछा जाएगा जो कुछ झूठ वे घड़ते रहे होंगे
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَلَبِثَ فِیهِمۡ أَلۡفَ سَنَةٍ إِلَّا خَمۡسِینَ عَامࣰا فَأَخَذَهُمُ ٱلطُّوفَانُ وَهُمۡ ظَـٰلِمُونَ ﴿14﴾
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा। और वह पचास साल कम एक हजार वर्ष उनके बीच रहा। अन्ततः उनको तूफ़ान ने इस दशा में आ पकड़ा कि वे अत्याचारी था
فَأَنجَیۡنَـٰهُ وَأَصۡحَـٰبَ ٱلسَّفِینَةِ وَجَعَلۡنَـٰهَاۤ ءَایَةࣰ لِّلۡعَـٰلَمِینَ ﴿15﴾
फिर उसको और नौकावालों को हमने बचा लिया और उसे सारे संसार के लिए एक निशानी बना दिया
وَإِبۡرَ ٰهِیمَ إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ وَٱتَّقُوهُۖ ذَ ٰلِكُمۡ خَیۡرࣱ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿16﴾
और इबराहीम को भी भेजा, जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, \"अल्लाह की बन्दगी करो और उसका डर रखो। यह तुम्हारे लिए अच्छा है, यदि तुम जानो
إِنَّمَا تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡثَـٰنࣰا وَتَخۡلُقُونَ إِفۡكًاۚ إِنَّ ٱلَّذِینَ تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَا یَمۡلِكُونَ لَكُمۡ رِزۡقࣰا فَٱبۡتَغُوا۟ عِندَ ٱللَّهِ ٱلرِّزۡقَ وَٱعۡبُدُوهُ وَٱشۡكُرُوا۟ لَهُۥۤۖ إِلَیۡهِ تُرۡجَعُونَ ﴿17﴾
तुम तो अल्लाह से हटकर बस मूर्तियों को पूज रहे हो और झूठ घड़ रहे हो। तुम अल्लाह से हटकर जिनको पूजते हो वे तुम्हारे लिए रोज़ी का भी अधिकार नहीं रखते। अतः तुम अल्लाह ही के यहाँ रोज़ी तलाश करो और उसी की बन्दगी करो और उसके आभारी बनो। तुम्हें उसी की ओर लौटकर जाना है
وَإِن تُكَذِّبُوا۟ فَقَدۡ كَذَّبَ أُمَمࣱ مِّن قَبۡلِكُمۡۖ وَمَا عَلَى ٱلرَّسُولِ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُ ٱلۡمُبِینُ ﴿18﴾
और यदि तुम झुठलाते हो तो तुमसे पहले कितने ही समुदाय झुठला चुके है। रसूल पर तो बस केवल स्पष्ट रूप से (सत्य संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है।\"
أَوَلَمۡ یَرَوۡا۟ كَیۡفَ یُبۡدِئُ ٱللَّهُ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ یُعِیدُهُۥۤۚ إِنَّ ذَ ٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ یَسِیرࣱ ﴿19﴾
क्या उन्होंने देखा नहीं कि अल्लाह किस प्रकार पैदाइश का आरम्भ करता है और फिर उसकी पुनरावृत्ति करता है? निस्संदेह यह अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है
قُلۡ سِیرُوا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُوا۟ كَیۡفَ بَدَأَ ٱلۡخَلۡقَۚ ثُمَّ ٱللَّهُ یُنشِئُ ٱلنَّشۡأَةَ ٱلۡـَٔاخِرَةَۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿20﴾
कहो कि, \"धरती में चलो-फिरो और देखो कि उसने किस प्रकार पैदाइश का आरम्भ किया। फिर अल्लाह पश्चात्वर्ती उठान उठाएगा। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है
یُعَذِّبُ مَن یَشَاۤءُ وَیَرۡحَمُ مَن یَشَاۤءُۖ وَإِلَیۡهِ تُقۡلَبُونَ ﴿21﴾
वह जिसे चाहे यातना दे और जिसपर चाहे दया करे। और उसी की ओर तुम्हें पलटकर जाना है।\"
وَمَاۤ أَنتُم بِمُعۡجِزِینَ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِی ٱلسَّمَاۤءِۖ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرࣲ ﴿22﴾
तुम न तो धरती में क़ाबू से बाहर निकल सकते हो और न आकाश में। और अल्लाह से हटकर न तो तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक
وَٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ وَلِقَاۤىِٕهِۦۤ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یَىِٕسُوا۟ مِن رَّحۡمَتِی وَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿23﴾
और जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों और उससे मिलने का इनकार किया, वही लोग है जो मेरी दयालुता से निराश हुए और वही है जिनके लिए दुखद यातना है। -
فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوۡمِهِۦۤ إِلَّاۤ أَن قَالُوا۟ ٱقۡتُلُوهُ أَوۡ حَرِّقُوهُ فَأَنجَىٰهُ ٱللَّهُ مِنَ ٱلنَّارِۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿24﴾
फिर उनकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके सिवा और कुछ न था कि उन्होंने कहा, \"मार डालो उसे या जला दो उसे!\" अंततः अल्लाह ने उसको आग से बचा लिया। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है, जो ईमान लाएँ
وَقَالَ إِنَّمَا ٱتَّخَذۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡثَـٰنࣰا مَّوَدَّةَ بَیۡنِكُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۖ ثُمَّ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ یَكۡفُرُ بَعۡضُكُم بِبَعۡضࣲ وَیَلۡعَنُ بَعۡضُكُم بَعۡضࣰا وَمَأۡوَىٰكُمُ ٱلنَّارُ وَمَا لَكُم مِّن نَّـٰصِرِینَ ﴿25﴾
और उसने कहा, \"अल्लाह से हटकर तुमने कुछ मूर्तियों को केवल सांसारिक जीवन में अपने पारस्परिक प्रेम के कारण पकड़ रखा है। फिर क़ियामत के दिन तुममें से एक-दूसरे का इनकार करेगा और तुममें से एक-दूसरे पर लानत करेगा। तुम्हारा ठौर-ठिकाना आग है और तुम्हारा कोई सहायक न होगा।\"
۞ فَـَٔامَنَ لَهُۥ لُوطࣱۘ وَقَالَ إِنِّی مُهَاجِرٌ إِلَىٰ رَبِّیۤۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿26﴾
फिर लूत ने उसकी बात मानी औऱ उसने कहा, \"निस्संदेह मैं अपने रब की ओर हिजरत करता हूँ। निस्संदेह वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।\"
وَوَهَبۡنَا لَهُۥۤ إِسۡحَـٰقَ وَیَعۡقُوبَ وَجَعَلۡنَا فِی ذُرِّیَّتِهِ ٱلنُّبُوَّةَ وَٱلۡكِتَـٰبَ وَءَاتَیۡنَـٰهُ أَجۡرَهُۥ فِی ٱلدُّنۡیَاۖ وَإِنَّهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿27﴾
और हमने उसे इसहाक़ और याक़ूब प्रदान किए और उसकी संतति में नुबूवत (पैग़म्बरी) और किताब का सिलसिला जारी किया और हमने उसे संसार में भी उसका अच्छा प्रतिदान प्रदान किया। और निश्चय ही वह आख़िरत में अच्छे लोगों में से होगा
وَلُوطًا إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦۤ إِنَّكُمۡ لَتَأۡتُونَ ٱلۡفَـٰحِشَةَ مَا سَبَقَكُم بِهَا مِنۡ أَحَدࣲ مِّنَ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿28﴾
और हमने लूत को भेजा, जबकि उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, \"तुम जो वह अश्लील कर्म करते हो, जिसे तुमसे पहले सारे संसार में किसी ने नहीं किया
أَىِٕنَّكُمۡ لَتَأۡتُونَ ٱلرِّجَالَ وَتَقۡطَعُونَ ٱلسَّبِیلَ وَتَأۡتُونَ فِی نَادِیكُمُ ٱلۡمُنكَرَۖ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوۡمِهِۦۤ إِلَّاۤ أَن قَالُوا۟ ٱئۡتِنَا بِعَذَابِ ٱللَّهِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿29﴾
क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो और बटमारी करते हो औऱ अपनी मजलिस में बुरा कर्म करते हो?\" फिर उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर बस यही था कि उन्होंने कहा, \"ले आ हमपर अल्लाह की यातना, यदि तू सच्चा है।\"
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡمُفۡسِدِینَ ﴿30﴾
उसने कहास \"ऐ मेरे रब! बिगाड़ पैदा करनेवाले लोगों के मुक़ावले में मेरी सहायता कर।\"
وَلَمَّا جَاۤءَتۡ رُسُلُنَاۤ إِبۡرَ ٰهِیمَ بِٱلۡبُشۡرَىٰ قَالُوۤا۟ إِنَّا مُهۡلِكُوۤا۟ أَهۡلِ هَـٰذِهِ ٱلۡقَرۡیَةِۖ إِنَّ أَهۡلَهَا كَانُوا۟ ظَـٰلِمِینَ ﴿31﴾
हमारे भेजे हुए जब इबराहीम के पास शुभ सूचना लेकर आए तो उन्होंने कहा, \"हम इस बस्ती के लोगों को विनष्ट करनेवाले है। निस्संदेह इस बस्ती के लोग ज़ालिम है।\"
قَالَ إِنَّ فِیهَا لُوطࣰاۚ قَالُوا۟ نَحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَن فِیهَاۖ لَنُنَجِّیَنَّهُۥ وَأَهۡلَهُۥۤ إِلَّا ٱمۡرَأَتَهُۥ كَانَتۡ مِنَ ٱلۡغَـٰبِرِینَ ﴿32﴾
उसने कहाँ, \"वहाँ तो लूत मौजूद है।\" वे बोले, \"जो कोई भी वहाँ है, हम भली-भाँति जानते है। हम उसको और उसके घरवालों को बचा लेंगे, सिवाय उसकी स्त्री के। वह पीछे रह जानेवालों में से है।\"
وَلَمَّاۤ أَن جَاۤءَتۡ رُسُلُنَا لُوطࣰا سِیۤءَ بِهِمۡ وَضَاقَ بِهِمۡ ذَرۡعࣰاۖ وَقَالُوا۟ لَا تَخَفۡ وَلَا تَحۡزَنۡ إِنَّا مُنَجُّوكَ وَأَهۡلَكَ إِلَّا ٱمۡرَأَتَكَ كَانَتۡ مِنَ ٱلۡغَـٰبِرِینَ ﴿33﴾
जब यह हुआ कि हमारे भेजे हुए लूत के पास आए तो उनका आना उसे नागवार हुआ और उनके प्रति दिल को तंग पाया। किन्तु उन्होंने कहा, \"डरो मत और न शोकाकुल हो। हम तुम्हें और तुम्हारे घरवालों को बचा लेंगे सिवाय तुम्हारी स्त्री के। वह पीछे रह जानेवालों में से है
إِنَّا مُنزِلُونَ عَلَىٰۤ أَهۡلِ هَـٰذِهِ ٱلۡقَرۡیَةِ رِجۡزࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ بِمَا كَانُوا۟ یَفۡسُقُونَ ﴿34﴾
निश्चय ही हम इस बस्ती के लोगों पर आकाश से एक यातना उतारनेवाले है, इस कारण कि वे बन्दगी की सीमा से निकलते रहे है।\"
وَلَقَد تَّرَكۡنَا مِنۡهَاۤ ءَایَةَۢ بَیِّنَةࣰ لِّقَوۡمࣲ یَعۡقِلُونَ ﴿35﴾
और हमने उस बस्ती से प्राप्त होनेवाली एक खुली निशानी उन लोगों के लिए छोड़ दी है, जो बुद्धि से काम लेना चाहे
وَإِلَىٰ مَدۡیَنَ أَخَاهُمۡ شُعَیۡبࣰا فَقَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ وَٱرۡجُوا۟ ٱلۡیَوۡمَ ٱلۡـَٔاخِرَ وَلَا تَعۡثَوۡا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِینَ ﴿36﴾
और मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो, अल्लाह की बन्दगी करो। और अंतिम दिन की आशा रखो और धरती में बिगाड़ फैलाते मत फिरो।\"
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلرَّجۡفَةُ فَأَصۡبَحُوا۟ فِی دَارِهِمۡ جَـٰثِمِینَ ﴿37﴾
किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। अन्ततः भूकम्प ने उन्हें आ लिया। और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए
وَعَادࣰا وَثَمُودَا۟ وَقَد تَّبَیَّنَ لَكُم مِّن مَّسَـٰكِنِهِمۡۖ وَزَیَّنَ لَهُمُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ فَصَدَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّبِیلِ وَكَانُوا۟ مُسۡتَبۡصِرِینَ ﴿38﴾
और आद और समूद को भी हमने विनष्ट किया। और उनके घरों और बस्तियों के अवशेषों से तुमपर स्पष्ट हो चुका है। शैतान ने उनके कर्मों को उनके लिए सुहाना बना दिया और उन्हें संमार्ग से रोक दिया। यद्यपि वे बड़े तीक्ष्ण स्पष्ट वाले थे
وَقَـٰرُونَ وَفِرۡعَوۡنَ وَهَـٰمَـٰنَۖ وَلَقَدۡ جَاۤءَهُم مُّوسَىٰ بِٱلۡبَیِّنَـٰتِ فَٱسۡتَكۡبَرُوا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا كَانُوا۟ سَـٰبِقِینَ ﴿39﴾
और क़ारून और फ़िरऔन और हामान को हमने विनष्ट किया। मूसा उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आया। किन्तु उन्होंने धरती में घमंड किया, हालाँकि वे हमसे निकल जानेवाले न थे
فَكُلًّا أَخَذۡنَا بِذَنۢبِهِۦۖ فَمِنۡهُم مَّنۡ أَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِ حَاصِبࣰا وَمِنۡهُم مَّنۡ أَخَذَتۡهُ ٱلصَّیۡحَةُ وَمِنۡهُم مَّنۡ خَسَفۡنَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ وَمِنۡهُم مَّنۡ أَغۡرَقۡنَاۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِیَظۡلِمَهُمۡ وَلَـٰكِن كَانُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡ یَظۡلِمُونَ ﴿40﴾
अन्ततः हमने हरेक को उसके अपने गुनाह के कारण पकड़ लिया। फिर उनमें से कुछ पर तो हमने पथराव करनेवाली वायु भेजी और उनमें से कुछ को एक प्रचंड चीत्कार न आ लिया। और उनमें से कुछ को हमने धरती में धँसा दिया। और उनमें से कुछ को हमने डूबो दिया। अल्लाह तो ऐसा न था कि उनपर ज़ुल्म करता, किन्तु वे स्वयं अपने आपपर ज़ुल्म कर रहे थे
مَثَلُ ٱلَّذِینَ ٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡلِیَاۤءَ كَمَثَلِ ٱلۡعَنكَبُوتِ ٱتَّخَذَتۡ بَیۡتࣰاۖ وَإِنَّ أَوۡهَنَ ٱلۡبُیُوتِ لَبَیۡتُ ٱلۡعَنكَبُوتِۚ لَوۡ كَانُوا۟ یَعۡلَمُونَ ﴿41﴾
जिन लोगों ने अल्लाह से हटकर अपने दूसरे संरक्षक बना लिए है उनकी मिसाल मकड़ी जैसी है, जिसने अपना एक घर बनाया, और यह सच है कि सब घरों से कमज़ोर घर मकड़ी का घर ही होता है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते!
إِنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ مَا یَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ مِن شَیۡءࣲۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿42﴾
निस्संदेह अल्लाह उन चीज़ों को भली-भाँति जानता है, जिन्हें ये उससे हटकर पुकारते है। वह तो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
وَتِلۡكَ ٱلۡأَمۡثَـٰلُ نَضۡرِبُهَا لِلنَّاسِۖ وَمَا یَعۡقِلُهَاۤ إِلَّا ٱلۡعَـٰلِمُونَ ﴿43﴾
ये मिसालें हम लोगों के लिए पेश करते है, परन्तु इनको ज्ञानवान ही समझते है
خَلَقَ ٱللَّهُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰ لِّلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿44﴾
अल्लाह ने आकाशों और धरती को सत्य के साथ पैदा किया। निश्चय ही इसमें ईमानवालों के लिए एक बड़ी निशानी है
ٱتۡلُ مَاۤ أُوحِیَ إِلَیۡكَ مِنَ ٱلۡكِتَـٰبِ وَأَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَۖ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ تَنۡهَىٰ عَنِ ٱلۡفَحۡشَاۤءِ وَٱلۡمُنكَرِۗ وَلَذِكۡرُ ٱللَّهِ أَكۡبَرُۗ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ مَا تَصۡنَعُونَ ﴿45﴾
उस किताब को पढ़ो जो तुम्हारी ओर प्रकाशना के द्वारा भेजी गई है, और नमाज़ का आयोजन करो। निस्संदेह नमाज़ अश्लीलता और बुराई से रोकती है। और अल्लाह का याद करना तो बहुत बड़ी चीज़ है। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम रचते और बनाते हो
۞ وَلَا تُجَـٰدِلُوۤا۟ أَهۡلَ ٱلۡكِتَـٰبِ إِلَّا بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُ إِلَّا ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ مِنۡهُمۡۖ وَقُولُوۤا۟ ءَامَنَّا بِٱلَّذِیۤ أُنزِلَ إِلَیۡنَا وَأُنزِلَ إِلَیۡكُمۡ وَإِلَـٰهُنَا وَإِلَـٰهُكُمۡ وَ ٰحِدࣱ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ﴿46﴾
और किताबवालों से बस उत्तम रीति ही से वाद-विवाद करो - रहे वे लोग जो उनमें ज़ालिम हैं, उनकी बात दूसरी है - और कहो - \"हम ईमान लाए उस चीज़ पर जो अवतरित हुई और तुम्हारी ओर भी अवतरित हुई। और हमारा पूज्य और तुम्हारा पूज्य अकेला ही है और हम उसी के आज्ञाकारी है।\"
وَكَذَ ٰلِكَ أَنزَلۡنَاۤ إِلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَۚ فَٱلَّذِینَ ءَاتَیۡنَـٰهُمُ ٱلۡكِتَـٰبَ یُؤۡمِنُونَ بِهِۦۖ وَمِنۡ هَـٰۤؤُلَاۤءِ مَن یُؤۡمِنُ بِهِۦۚ وَمَا یَجۡحَدُ بِـَٔایَـٰتِنَاۤ إِلَّا ٱلۡكَـٰفِرُونَ ﴿47﴾
इसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर किताब अवतरित की है, तो जिन्हें हमने किताब प्रदान की है वे उसपर ईमान लाएँगे। उनमें से कुछ उसपर ईमान ला भी रहे है। हमारी आयतों का इनकार तो केवल न माननेवाले ही करते है
وَمَا كُنتَ تَتۡلُوا۟ مِن قَبۡلِهِۦ مِن كِتَـٰبࣲ وَلَا تَخُطُّهُۥ بِیَمِینِكَۖ إِذࣰا لَّٱرۡتَابَ ٱلۡمُبۡطِلُونَ ﴿48﴾
इससे पहले तुम न कोई किताब पढ़ते थे और न उसे अपने हाथ से लिखते ही थे। ऐसा होता तो ये मिथ्यावादी सन्देह में पड़ सकते थे
بَلۡ هُوَ ءَایَـٰتُۢ بَیِّنَـٰتࣱ فِی صُدُورِ ٱلَّذِینَ أُوتُوا۟ ٱلۡعِلۡمَۚ وَمَا یَجۡحَدُ بِـَٔایَـٰتِنَاۤ إِلَّا ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿49﴾
नहीं, बल्कि वे तो उन लोगों के सीनों में विद्यमान खुली निशानियाँ है, जिन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ है। हमारी आयतों का इनकार तो केवल ज़ालिम ही करते है
وَقَالُوا۟ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡهِ ءَایَـٰتࣱ مِّن رَّبِّهِۦۚ قُلۡ إِنَّمَا ٱلۡـَٔایَـٰتُ عِندَ ٱللَّهِ وَإِنَّمَاۤ أَنَا۠ نَذِیرࣱ مُّبِینٌ ﴿50﴾
उनका कहना है कि \"उसपर उसके रब की ओर से निशानियाँ क्यों नहीं अवतरित हुई?\" कह दो, \"निशानियाँ तो अल्लाह ही के पास है। मैं तो केवल स्पष्ट रूप से सचेत करनेवाला हूँ।\"
أَوَلَمۡ یَكۡفِهِمۡ أَنَّاۤ أَنزَلۡنَا عَلَیۡكَ ٱلۡكِتَـٰبَ یُتۡلَىٰ عَلَیۡهِمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَرَحۡمَةࣰ وَذِكۡرَىٰ لِقَوۡمࣲ یُؤۡمِنُونَ ﴿51﴾
क्या उनके लिए यह पर्याप्त नहीं कि हमने तुमपर किताब अवतरित की, जो उन्हें पढ़कर सुनाई जाती है? निस्संदेह उसमें उन लोगों के लिए दयालुता है और अनुस्मृति है जो ईमान लाएँ
قُلۡ كَفَىٰ بِٱللَّهِ بَیۡنِی وَبَیۡنَكُمۡ شَهِیدࣰاۖ یَعۡلَمُ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ بِٱلۡبَـٰطِلِ وَكَفَرُوا۟ بِٱللَّهِ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿52﴾
कह दो, \"मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह गवाह के रूप में काफ़ी है।\" वह जानता है जो कुछ आकाशों और धरती में है। जो लोग असत्य पर ईमान लाए और अल्लाह का इनकार किया वही है जो घाटे में है
وَیَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلۡعَذَابِ وَلَوۡلَاۤ أَجَلࣱ مُّسَمࣰّى لَّجَاۤءَهُمُ ٱلۡعَذَابُۚ وَلَیَأۡتِیَنَّهُم بَغۡتَةࣰ وَهُمۡ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿53﴾
वे तुमसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे है। यदि इसका एक नियत समय न होता तो उनपर अवश्य ही यातना आ जाती। वह तो अचानक उनपर आकर रहेगी कि उन्हें ख़बर भी न होगी
یَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلۡعَذَابِ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِیطَةُۢ بِٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿54﴾
वे तुमसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे है, हालाँकि जहन्नम इनकार करनेवालों को अपने घेरे में लिए हुए है
یَوۡمَ یَغۡشَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِن فَوۡقِهِمۡ وَمِن تَحۡتِ أَرۡجُلِهِمۡ وَیَقُولُ ذُوقُوا۟ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ﴿55﴾
जिस दिन यातना उन्हें उनके ऊपर से ढाँक लेगी और उनके पाँव के नीचे से भी, और वह कहेगा, \"चखो उसका मज़ा जो कुछ तुम करते रहे हो!\"
یَـٰعِبَادِیَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِنَّ أَرۡضِی وَ ٰسِعَةࣱ فَإِیَّـٰیَ فَٱعۡبُدُونِ ﴿56﴾
ऐ मेरे बन्दों, जो ईमान लाए हो! निस्संदेह मेरी धरती विशाल है। अतः तुम मेरी ही बन्दगी करो
كُلُّ نَفۡسࣲ ذَاۤىِٕقَةُ ٱلۡمَوۡتِۖ ثُمَّ إِلَیۡنَا تُرۡجَعُونَ ﴿57﴾
प्रत्येक जीव को मृत्यु का स्वाद चखना है। फिर तुम हमारी ओर वापस लौटोगे
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ لَنُبَوِّئَنَّهُم مِّنَ ٱلۡجَنَّةِ غُرَفࣰا تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ خَـٰلِدِینَ فِیهَاۚ نِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَـٰمِلِینَ ﴿58﴾
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें हम जन्नत की ऊपरी मंज़िल के कक्षों में जगह देंगे, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वे उसमें सदैव रहेंगे। क्या ही अच्छा प्रतिदान है कर्म करनेवालों का!
ٱلَّذِینَ صَبَرُوا۟ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿59﴾
जिन्होंने धैर्य से काम लिया और जो अपने रब पर भरोसा रखते है
وَكَأَیِّن مِّن دَاۤبَّةࣲ لَّا تَحۡمِلُ رِزۡقَهَا ٱللَّهُ یَرۡزُقُهَا وَإِیَّاكُمۡۚ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿60﴾
कितने ही चलनेवाले जीवधारी है, जो अपनी रोज़ी उठाए नहीं फिरते। अल्लाह ही उन्हें रोज़ी देता है और तुम्हें भी! वह सब कुछ सुनता, जानता है
وَلَىِٕن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَ لَیَقُولُنَّ ٱللَّهُۖ فَأَنَّىٰ یُؤۡفَكُونَ ﴿61﴾
और यदि तुम उनसे पूछो कि \"किसने आकाशों और धरती को पैदा किया और सूर्य और चन्द्रमा को काम में लगाया?\" तो वे बोल पड़ेगे, \"अल्लाह ने!\" फिर वे किधर उलटे फिरे जाते है?
ٱللَّهُ یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِهِۦ وَیَقۡدِرُ لَهُۥۤۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿62﴾
अल्लाह अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है आजीविका विस्तीर्ण कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। निस्संदेह अल्लाह हरेक चीज़ को भली-भाँति जानता है
وَلَىِٕن سَأَلۡتَهُم مَّن نَّزَّلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَحۡیَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ مِنۢ بَعۡدِ مَوۡتِهَا لَیَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿63﴾
और यदि तुम उनसे पूछो कि \"किसने आकाश से पानी बरसाया; फिर उसके द्वारा धरती को उसके मुर्दा हो जाने के पश्चात जीवित किया?\" तो वे बोल पड़ेंगे, \"अल्लाह ने!\" कहो, \"सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है।\" किन्तु उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते
وَمَا هَـٰذِهِ ٱلۡحَیَوٰةُ ٱلدُّنۡیَاۤ إِلَّا لَهۡوࣱ وَلَعِبࣱۚ وَإِنَّ ٱلدَّارَ ٱلۡـَٔاخِرَةَ لَهِیَ ٱلۡحَیَوَانُۚ لَوۡ كَانُوا۟ یَعۡلَمُونَ ﴿64﴾
और यह सांसारिक जीवन तो केवल दिल का बहलावा और खेल है। निस्संदेह पश्चात्वर्ती घर (का जीवन) ही वास्तविक जीवन है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते!
فَإِذَا رَكِبُوا۟ فِی ٱلۡفُلۡكِ دَعَوُا۟ ٱللَّهَ مُخۡلِصِینَ لَهُ ٱلدِّینَ فَلَمَّا نَجَّىٰهُمۡ إِلَى ٱلۡبَرِّ إِذَا هُمۡ یُشۡرِكُونَ ﴿65﴾
जब वे नौका में सवार होते है तो वे अल्लाह को उसके दीन (आज्ञापालन) के लिए निष्ठा वान होकर पुकारते है। किन्तु जब वह उन्हें बचाकर शु्ष्क भूमि तक ले आता है तो क्या देखते है कि वे लगे (अल्लाह का साथ) साझी ठहराने
لِیَكۡفُرُوا۟ بِمَاۤ ءَاتَیۡنَـٰهُمۡ وَلِیَتَمَتَّعُوا۟ۚ فَسَوۡفَ یَعۡلَمُونَ ﴿66﴾
ताकि जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसके प्रति वे इस तरह कृतघ्नता दिखाएँ, और ताकि इस तरह से मज़े उड़ा ले। अच्छा तो वे शीघ्र ही जान लेंगे
أَوَلَمۡ یَرَوۡا۟ أَنَّا جَعَلۡنَا حَرَمًا ءَامِنࣰا وَیُتَخَطَّفُ ٱلنَّاسُ مِنۡ حَوۡلِهِمۡۚ أَفَبِٱلۡبَـٰطِلِ یُؤۡمِنُونَ وَبِنِعۡمَةِ ٱللَّهِ یَكۡفُرُونَ ﴿67﴾
क्या उन्होंने देखा नही कि हमने एक शान्तिमय हरम बनाया, हालाँकि उनके आसपास से लोग उचक लिए जाते है, तो क्या फिर भी वे असत्य पर ईमान रखते है और अल्लाह की अनुकम्पा के प्रति कृतघ्नता दिखलाते है?
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَوۡ كَذَّبَ بِٱلۡحَقِّ لَمَّا جَاۤءَهُۥۤۚ أَلَیۡسَ فِی جَهَنَّمَ مَثۡوࣰى لِّلۡكَـٰفِرِینَ ﴿68﴾
उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े या सत्य को झुठलाए, जबकि वह उसके पास आ चुका हो? क्या इनकार करनेवालों का ठौर-ठिकाना जहन्नम नें नहीं होगा?
وَٱلَّذِینَ جَـٰهَدُوا۟ فِینَا لَنَهۡدِیَنَّهُمۡ سُبُلَنَاۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَمَعَ ٱلۡمُحۡسِنِینَ ﴿69﴾
रहे वे लोग जिन्होंने हमारे मार्ग में मिलकर प्रयास किया, हम उन्हें अवश्य अपने मार्ग दिखाएँगे। निस्संदेह अल्लाह सुकर्मियों के साथ है