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Surah Council, Consultation [Ash-Shura] in Hindi
حمۤ ﴿1﴾
हा॰ मीम॰
عۤسۤقۤ ﴿2﴾
ऐन॰ सीन॰ क़ाफ़॰
كَذَ ٰلِكَ یُوحِیۤ إِلَیۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكَ ٱللَّهُ ٱلۡعَزِیزُ ٱلۡحَكِیمُ ﴿3﴾
इसी प्रकार अल्लाह प्रुभत्वशाली, तत्वदर्शी तुम्हारी ओर और उन लोगों की ओर प्रकाशना (वह्यप) करता रहा है, जो तुमसे पहले गुज़र चुके है
لَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡعَظِیمُ ﴿4﴾
आकाशों और धरती में जो कुछ है उसी का है और वह सर्वोच्च महिमावान है
تَكَادُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتُ یَتَفَطَّرۡنَ مِن فَوۡقِهِنَّۚ وَٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ یُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَیَسۡتَغۡفِرُونَ لِمَن فِی ٱلۡأَرۡضِۗ أَلَاۤ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِیمُ ﴿5﴾
लगता है कि आकाश स्वयं अपने ऊपर से फट पड़े। हाल यह है कि फ़रिश्ते अपने रब का गुणगान कर रहे, और उन लोगों के लिए जो धरती में है, क्षमा की प्रार्थना करते रहते है। सुन लो! निश्चय ही अल्लाह ही क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
وَٱلَّذِینَ ٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦۤ أَوۡلِیَاۤءَ ٱللَّهُ حَفِیظٌ عَلَیۡهِمۡ وَمَاۤ أَنتَ عَلَیۡهِم بِوَكِیلࣲ ﴿6﴾
और जिन लोगों ने उससे हटकर अपने कुछ दूसरे संरक्षक बना रखे हैं, अल्लाह उनपर निगरानी रखे हुए है। तुम उनके कोई ज़िम्मेदार नहीं हो
وَكَذَ ٰلِكَ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ قُرۡءَانًا عَرَبِیࣰّا لِّتُنذِرَ أُمَّ ٱلۡقُرَىٰ وَمَنۡ حَوۡلَهَا وَتُنذِرَ یَوۡمَ ٱلۡجَمۡعِ لَا رَیۡبَ فِیهِۚ فَرِیقࣱ فِی ٱلۡجَنَّةِ وَفَرِیقࣱ فِی ٱلسَّعِیرِ ﴿7﴾
और (जैसे हम स्पष्ट आयतें उतारते है) उसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर एक अरबी क़ुरआन की प्रकाशना की है, ताकि तुम बस्तियों के केन्द्र (मक्का) को और जो लोग उसके चतुर्दिक है उनको सचेत कर दो और सचेत करो इकट्ठा होने के दिन से, जिसमें कोई सन्देह नहीं। एक गिरोह जन्नत में होगा और एक गिरोह भड़कती आग में
وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَهُمۡ أُمَّةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ وَلَـٰكِن یُدۡخِلُ مَن یَشَاۤءُ فِی رَحۡمَتِهِۦۚ وَٱلظَّـٰلِمُونَ مَا لَهُم مِّن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرٍ ﴿8﴾
यदि अल्लाह चाहता तो उन्हें एक ही समुदाय बना देता, किन्तु वह जिसे चाहता है अपनी दयालुता में दाख़िल करता है। रहे ज़ालिम, तो उनका न तो कोई निकटवर्ती मित्र है और न कोई (दूर का) सहायक
أَمِ ٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦۤ أَوۡلِیَاۤءَۖ فَٱللَّهُ هُوَ ٱلۡوَلِیُّ وَهُوَ یُحۡیِ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣱ ﴿9﴾
(क्या उन्होंने अल्लाह से हटकर दूसरे सहायक बना लिए है,) या उन्होंने उससे हटकर दूसरे संरक्षक बना रखे है? संरक्षक तो अल्लाह ही है। वही मुर्दों को जीवित करता है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है
وَمَا ٱخۡتَلَفۡتُمۡ فِیهِ مِن شَیۡءࣲ فَحُكۡمُهُۥۤ إِلَى ٱللَّهِۚ ذَ ٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبِّی عَلَیۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَإِلَیۡهِ أُنِیبُ ﴿10﴾
(रसूल ने कहा,) \"जिस चीज़ में तुमने विभेद किया है उसका फ़ैसला तो अल्लाह के हवाले है। वही अल्लाह मेरा रब है। उसी पर मैंने भरोसा किया है, और उसी की ओर में रुजू करता हूँ
فَاطِرُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ جَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ أَزۡوَ ٰجࣰا وَمِنَ ٱلۡأَنۡعَـٰمِ أَزۡوَ ٰجࣰا یَذۡرَؤُكُمۡ فِیهِۚ لَیۡسَ كَمِثۡلِهِۦ شَیۡءࣱۖ وَهُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡبَصِیرُ ﴿11﴾
वह आकाशों और धरती का पैदा करनेवाला है। उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी अपनी सहजाति से जोड़े बनाए और चौपायों के जोड़े भी। फैला रहा है वह तुमको अपने में। उसके सदृश कोई चीज़ नहीं। वही सबकुछ सुनता, देखता है
لَهُۥ مَقَالِیدُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ یَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن یَشَاۤءُ وَیَقۡدِرُۚ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿12﴾
आकाशों और धरती की कुंजियाँ उसी के पास हैं। वह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। निस्संदेह उसे हर चीज़ का ज्ञान है
۞ شَرَعَ لَكُم مِّنَ ٱلدِّینِ مَا وَصَّىٰ بِهِۦ نُوحࣰا وَٱلَّذِیۤ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ وَمَا وَصَّیۡنَا بِهِۦۤ إِبۡرَ ٰهِیمَ وَمُوسَىٰ وَعِیسَىٰۤۖ أَنۡ أَقِیمُوا۟ ٱلدِّینَ وَلَا تَتَفَرَّقُوا۟ فِیهِۚ كَبُرَ عَلَى ٱلۡمُشۡرِكِینَ مَا تَدۡعُوهُمۡ إِلَیۡهِۚ ٱللَّهُ یَجۡتَبِیۤ إِلَیۡهِ مَن یَشَاۤءُ وَیَهۡدِیۤ إِلَیۡهِ مَن یُنِیبُ ﴿13﴾
उसने तुम्हारे लिए वही धर्म निर्धारित किया जिसकी ताकीद उसने नूह को की थी।\" और वह (जीवन्त आदेश) जिसकी प्रकाशना हमने तुम्हारी ओर की है और वह जिसकी ताकीद हमने इबराहीम और मूसा और ईसा को की थी यह है कि \"धर्म को क़ायम करो और उसके विषय में अलग-अलग न हो जाओ।\" बहुदेववादियों को वह चीज़ बहुत अप्रिय है, जिसकी ओर तुम उन्हें बुलाते हो। अल्लाह जिसे चाहता है अपनी ओर छाँट लेता है और अपनी ओर का मार्ग उसी को दिखाता है जो उसकी ओर रुजू करता है
وَمَا تَفَرَّقُوۤا۟ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ مَا جَاۤءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُ بَغۡیَۢا بَیۡنَهُمۡۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةࣱ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ إِلَىٰۤ أَجَلࣲ مُّسَمࣰّى لَّقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۚ وَإِنَّ ٱلَّذِینَ أُورِثُوا۟ ٱلۡكِتَـٰبَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ لَفِی شَكࣲّ مِّنۡهُ مُرِیبࣲ ﴿14﴾
उन्होंने तो परस्पर एक-दूसरे पर ज़्यादती करने के उद्देश्य से इसके पश्चात विभेद किया कि उनके पास ज्ञान आ चुका था। और यदि तुम्हारे रब की ओर से एक नियत अवधि तक के लिए बात पहले निश्चित न हो चुकी होती तो उनके बीच फ़ैसला चुका दिया गया होता। किन्तु जो लोग उनके पश्चात किताब के वारिस हुए वे उसकी ओर से एक उलझन में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए है
فَلِذَ ٰلِكَ فَٱدۡعُۖ وَٱسۡتَقِمۡ كَمَاۤ أُمِرۡتَۖ وَلَا تَتَّبِعۡ أَهۡوَاۤءَهُمۡۖ وَقُلۡ ءَامَنتُ بِمَاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِن كِتَـٰبࣲۖ وَأُمِرۡتُ لِأَعۡدِلَ بَیۡنَكُمُۖ ٱللَّهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمۡۖ لَنَاۤ أَعۡمَـٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَـٰلُكُمۡۖ لَا حُجَّةَ بَیۡنَنَا وَبَیۡنَكُمُۖ ٱللَّهُ یَجۡمَعُ بَیۡنَنَاۖ وَإِلَیۡهِ ٱلۡمَصِیرُ ﴿15﴾
अतः इसी लिए (उन्हें सत्य की ओर) बुलाओ, और जैसा कि तुम्हें हुक्म दिया गया है स्वयं क़ायम रहो, और उनकी इच्छाओं का पालन न करना और कह दो, \"अल्लाह ने जो किताब अवतरित की है, मैं उसपर ईमान लाया। मुझे तो आदेश हुआ है कि मैं तुम्हारे बीच न्याय करूँ। अल्लाह ही हमारा भी रब है और तुम्हारा भी। हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। हममें और तुममें कोई झगड़ा नहीं। अल्लाह हम सबको इकट्ठा करेगा और अन्ततः उसी की ओर जाना है।\"
وَٱلَّذِینَ یُحَاۤجُّونَ فِی ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا ٱسۡتُجِیبَ لَهُۥ حُجَّتُهُمۡ دَاحِضَةٌ عِندَ رَبِّهِمۡ وَعَلَیۡهِمۡ غَضَبࣱ وَلَهُمۡ عَذَابࣱ شَدِیدٌ ﴿16﴾
जो लोग अल्लाह के विषय में झगड़ते है, इसके पश्चात कि उसकी पुकार स्वीकार कर ली गई, उनका झगड़ना उनके रब की स्पष्ट में बिलकुल न ठहरनेवाला (असत्य) है। प्रकोप है उनपर और उनके लिए कड़ी यातना है
ٱللَّهُ ٱلَّذِیۤ أَنزَلَ ٱلۡكِتَـٰبَ بِٱلۡحَقِّ وَٱلۡمِیزَانَۗ وَمَا یُدۡرِیكَ لَعَلَّ ٱلسَّاعَةَ قَرِیبࣱ ﴿17﴾
वह अल्लाह ही है जिसने हक़ के साथ किताब और तुला अवतरित की। और तुम्हें क्या मालूम कदाचित क़ियामत की घड़ी निकट ही आ लगी हो
یَسۡتَعۡجِلُ بِهَا ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِهَاۖ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مُشۡفِقُونَ مِنۡهَا وَیَعۡلَمُونَ أَنَّهَا ٱلۡحَقُّۗ أَلَاۤ إِنَّ ٱلَّذِینَ یُمَارُونَ فِی ٱلسَّاعَةِ لَفِی ضَلَـٰلِۭ بَعِیدٍ ﴿18﴾
उसकी जल्दी वे लोग मचाते है जो उसपर ईमान नहीं रखते, किन्तु जो ईमान रखते है वे तो उससे डरते है और जानते है कि वह सत्य है। जान लो, जो लोग उस घड़ी के बारे में सन्देह डालनेवाली बहसें करते है, वे परले दरजे की गुमराही में पड़े हुए है
ٱللَّهُ لَطِیفُۢ بِعِبَادِهِۦ یَرۡزُقُ مَن یَشَاۤءُۖ وَهُوَ ٱلۡقَوِیُّ ٱلۡعَزِیزُ ﴿19﴾
अल्लाह अपने बन्दों पर अत्यन्त दयालु है। वह जिसे चाहता है रोज़ी देता है। वह शक्तिमान, अत्यन्त प्रभुत्वशाली है
مَن كَانَ یُرِیدُ حَرۡثَ ٱلۡـَٔاخِرَةِ نَزِدۡ لَهُۥ فِی حَرۡثِهِۦۖ وَمَن كَانَ یُرِیدُ حَرۡثَ ٱلدُّنۡیَا نُؤۡتِهِۦ مِنۡهَا وَمَا لَهُۥ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ مِن نَّصِیبٍ ﴿20﴾
जो कोई आख़िरत की खेती चाहता है, हम उसके लिए उसकी खेती में बढ़ोत्तरी प्रदान करेंगे और जो कोई दुनिया की खेती चाहता है, हम उसमें से उसे कुछ दे देते है, किन्तु आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं
أَمۡ لَهُمۡ شُرَكَـٰۤؤُا۟ شَرَعُوا۟ لَهُم مِّنَ ٱلدِّینِ مَا لَمۡ یَأۡذَنۢ بِهِ ٱللَّهُۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةُ ٱلۡفَصۡلِ لَقُضِیَ بَیۡنَهُمۡۗ وَإِنَّ ٱلظَّـٰلِمِینَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿21﴾
(क्या उन्हें समझ नहीं) या उनके कुछ ऐसे (ठहराए हुए) साझीदार है, जिन्होंन उनके लिए कोई ऐसा धर्म निर्धारित कर दिया है जिसकी अनुज्ञा अल्लाह ने नहीं दी? यदि फ़ैसले की बात निश्चित न हो गई होती तो उनके बीच फ़ैसला हो चुका होता। निश्चय ही ज़ालिमों के लिए दुखद यातना है
تَرَى ٱلظَّـٰلِمِینَ مُشۡفِقِینَ مِمَّا كَسَبُوا۟ وَهُوَ وَاقِعُۢ بِهِمۡۗ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فِی رَوۡضَاتِ ٱلۡجَنَّاتِۖ لَهُم مَّا یَشَاۤءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَ ٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡكَبِیرُ ﴿22﴾
तुम ज़ालिमों को देखोगे कि उन्होंने जो कुछ कमाया उससे डर रहे होंगे, किन्तु वह तो उनपर पड़कर रहेगा। किन्तु जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे जन्न्तों की वाटिकाओं में होंगे। उनके लिए उनके रब के पास वह सब कुछ है जिसकी वे इच्छा करेंगे। वही तो बड़ा उदार अनुग्रह है
ذَ ٰلِكَ ٱلَّذِی یُبَشِّرُ ٱللَّهُ عِبَادَهُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِۗ قُل لَّاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ أَجۡرًا إِلَّا ٱلۡمَوَدَّةَ فِی ٱلۡقُرۡبَىٰۗ وَمَن یَقۡتَرِفۡ حَسَنَةࣰ نَّزِدۡ لَهُۥ فِیهَا حُسۡنًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ شَكُورٌ ﴿23﴾
उसी की शुभ सूचना अल्लाह अपने बन्दों को देता है जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। कहो, \"मैं इसका तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता, बस निकटता का प्रेम-भाव चाहता हूँ, जो कोई नेकी कमाएगा हम उसके लिए उसमें अच्छाई की अभिवृद्धि करेंगे। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, गुणग्राहक है।\"
أَمۡ یَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰاۖ فَإِن یَشَإِ ٱللَّهُ یَخۡتِمۡ عَلَىٰ قَلۡبِكَۗ وَیَمۡحُ ٱللَّهُ ٱلۡبَـٰطِلَ وَیُحِقُّ ٱلۡحَقَّ بِكَلِمَـٰتِهِۦۤۚ إِنَّهُۥ عَلِیمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿24﴾
(क्या वे ईमान नहीं लाएँगे) या उनका कहना है कि \"इस व्यक्ति ने अल्लाह पर मिथ्यारोपण किया है?\" यदि अल्लाह चाहे तो तुम्हारे दिल पर मुहर लगा दे (जिस प्रकार उसने इनकार करनेवालों के दिल पर मुहर लगा दी है) । अल्लाह तो असत्य को मिटा रहा है और सत्य को अपने बोलों से सिद्ध कर रहा है। निश्चय ही वह सीनों तक की बात को भी भली-भाँति जानता है
وَهُوَ ٱلَّذِی یَقۡبَلُ ٱلتَّوۡبَةَ عَنۡ عِبَادِهِۦ وَیَعۡفُوا۟ عَنِ ٱلسَّیِّـَٔاتِ وَیَعۡلَمُ مَا تَفۡعَلُونَ ﴿25﴾
वही है जो अपने बन्दों की तौबा क़बूल करता है और बुराइयों को माफ़ करता है, हालाँकि वह जानता है, जो कुछ तुम करते हो
وَیَسۡتَجِیبُ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَیَزِیدُهُم مِّن فَضۡلِهِۦۚ وَٱلۡكَـٰفِرُونَ لَهُمۡ عَذَابࣱ شَدِیدࣱ ﴿26﴾
और वह उन लोगों की प्रार्थनाएँ स्वीकार करता है जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करता है। रहे इनकार करनेवाले, तो उनके लिए कड़ा यातना है
۞ وَلَوۡ بَسَطَ ٱللَّهُ ٱلرِّزۡقَ لِعِبَادِهِۦ لَبَغَوۡا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَـٰكِن یُنَزِّلُ بِقَدَرࣲ مَّا یَشَاۤءُۚ إِنَّهُۥ بِعِبَادِهِۦ خَبِیرُۢ بَصِیرࣱ ﴿27﴾
यदि अल्लाह अपने बन्दों के लिए रोज़ी कुशादा कर देता तो वे धरती में सरकशी करने लगते। किन्तु वह एक अंदाज़े के साथ जो चाहता है, उतारता है। निस्संदेह वह अपने बन्दों की ख़बर रखनेवाला है। वह उनपर निगाह रखता है
وَهُوَ ٱلَّذِی یُنَزِّلُ ٱلۡغَیۡثَ مِنۢ بَعۡدِ مَا قَنَطُوا۟ وَیَنشُرُ رَحۡمَتَهُۥۚ وَهُوَ ٱلۡوَلِیُّ ٱلۡحَمِیدُ ﴿28﴾
वही है जो इसके पश्चात कि लोग निराश हो चुके होते है, मेंह बरसाता है और अपनी दयालुता को फैला देता है। और वही है संरक्षक मित्र, प्रशंसनीय!
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِۦ خَلۡقُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَثَّ فِیهِمَا مِن دَاۤبَّةࣲۚ وَهُوَ عَلَىٰ جَمۡعِهِمۡ إِذَا یَشَاۤءُ قَدِیرࣱ ﴿29﴾
और उसकी निशानियों में से है आकाशों और धरती को पैदा करना, और वे जीवधारी भी जो उसने इन दोनों में फैला रखे है। वह जब चाहे उन्हें इकट्ठा करने की सामर्थ्य भी रखता है
وَمَاۤ أَصَـٰبَكُم مِّن مُّصِیبَةࣲ فَبِمَا كَسَبَتۡ أَیۡدِیكُمۡ وَیَعۡفُوا۟ عَن كَثِیرࣲ ﴿30﴾
जो मुसीबत तुम्हें पहुँची वह तो तुम्हारे अपने हाथों की कमाई से पहुँची और बहुत कुछ तो वह माफ़ कर देता है
وَمَاۤ أَنتُم بِمُعۡجِزِینَ فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِیࣲّ وَلَا نَصِیرࣲ ﴿31﴾
तुम धरती में काबू से निकल जानेवाले नहीं हो, और न अल्लाह से हटकर तुम्हारा कोई संरक्षक मित्र है और न सहायक ही
وَمِنۡ ءَایَـٰتِهِ ٱلۡجَوَارِ فِی ٱلۡبَحۡرِ كَٱلۡأَعۡلَـٰمِ ﴿32﴾
उसकी निशानियों में से समुद्र में पहाड़ो के सदृश चलते जहाज़ भी है
إِن یَشَأۡ یُسۡكِنِ ٱلرِّیحَ فَیَظۡلَلۡنَ رَوَاكِدَ عَلَىٰ ظَهۡرِهِۦۤۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ لِّكُلِّ صَبَّارࣲ شَكُورٍ ﴿33﴾
यदि वह चाहे तो वायु को ठहरा दे, तो वे समुद्र की पीठ पर ठहरे रह जाएँ - निश्चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ है हर उस व्यक्ति के लिए जो अत्यन्त धैर्यवान, कृतज्ञ हो
أَوۡ یُوبِقۡهُنَّ بِمَا كَسَبُوا۟ وَیَعۡفُ عَن كَثِیرࣲ ﴿34﴾
या उनको उनकी कमाई के कारण विनष्ट कर दे और बहुतो को माफ़ भी कर दे
وَیَعۡلَمَ ٱلَّذِینَ یُجَـٰدِلُونَ فِیۤ ءَایَـٰتِنَا مَا لَهُم مِّن مَّحِیصࣲ ﴿35﴾
और परिणामतः वे लोग जान लें जो हमारी आयतों में झगड़ते है कि उनके लिए भागने की कोई जगह नहीं
فَمَاۤ أُوتِیتُم مِّن شَیۡءࣲ فَمَتَـٰعُ ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَاۚ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ خَیۡرࣱ وَأَبۡقَىٰ لِلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿36﴾
तुम्हें जो चीज़ भी मिली है वह तो सांसारिक जीवन की अस्थायी सुख-सामग्री है। किन्तु जो कुछ अल्लाह के पास है वह उत्तम है और शेष रहनेवाला भी, वह उन्ही के लिए है जो ईमान लाए और अपने रब पर भरोसा रखते है;
وَٱلَّذِینَ یَجۡتَنِبُونَ كَبَـٰۤىِٕرَ ٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡفَوَ ٰحِشَ وَإِذَا مَا غَضِبُوا۟ هُمۡ یَغۡفِرُونَ ﴿37﴾
जो बड़े-बड़े गुनाहों और अश्लील कर्मों से बचते है और जब उन्हे (किसी पर) क्रोध आता है तो वे क्षमा कर देते हैं;
وَٱلَّذِینَ ٱسۡتَجَابُوا۟ لِرَبِّهِمۡ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَمۡرُهُمۡ شُورَىٰ بَیۡنَهُمۡ وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿38﴾
और जिन्होंने अपने रब का हुक्म माना और नमाज़ क़ायम की, और उनका मामला उनके पारस्परिक परामर्श से चलता है, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते है;
وَٱلَّذِینَ إِذَاۤ أَصَابَهُمُ ٱلۡبَغۡیُ هُمۡ یَنتَصِرُونَ ﴿39﴾
और जो ऐसे है कि जब उनपर ज़्यादती होती है तो वे प्रतिशोध करते है
وَجَزَ ٰۤؤُا۟ سَیِّئَةࣲ سَیِّئَةࣱ مِّثۡلُهَاۖ فَمَنۡ عَفَا وَأَصۡلَحَ فَأَجۡرُهُۥ عَلَى ٱللَّهِۚ إِنَّهُۥ لَا یُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿40﴾
बुराई का बदला वैसी ही बुराई है किन्तु जो क्षमा कर दे और सुधार करे तो उसका बदला अल्लाह के ज़िम्मे है। निश्चय ही वह ज़ालिमों को पसन्द नहीं करता
وَلَمَنِ ٱنتَصَرَ بَعۡدَ ظُلۡمِهِۦ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ مَا عَلَیۡهِم مِّن سَبِیلٍ ﴿41﴾
और जो कोई अपने ऊपर ज़ु्ल्म होने के पश्चात बदला ले ले, तो ऐसे लोगों पर कोई इलज़ाम नहीं
إِنَّمَا ٱلسَّبِیلُ عَلَى ٱلَّذِینَ یَظۡلِمُونَ ٱلنَّاسَ وَیَبۡغُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ بِغَیۡرِ ٱلۡحَقِّۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمࣱ ﴿42﴾
इलज़ाम तो केवल उनपर आता है जो लोगों पर ज़ुल्म करते है और धरती में नाहक़ ज़्यादती करते है। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है
وَلَمَن صَبَرَ وَغَفَرَ إِنَّ ذَ ٰلِكَ لَمِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ ﴿43﴾
किन्तु जिसने धैर्य से काम लिया और क्षमा कर दिया तो निश्चय ही वह उन कामों में से है जो (सफलता के लिए) आवश्यक ठहरा दिए गए है
وَمَن یُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن وَلِیࣲّ مِّنۢ بَعۡدِهِۦۗ وَتَرَى ٱلظَّـٰلِمِینَ لَمَّا رَأَوُا۟ ٱلۡعَذَابَ یَقُولُونَ هَلۡ إِلَىٰ مَرَدࣲّ مِّن سَبِیلࣲ ﴿44﴾
जिस व्यक्ति को अल्लाह गुमराही में डाल दे, तो उसके पश्चात उसे सम्भालनेवाला कोई भी नहीं। तुम ज़ालिमों को देखोगे कि जब वे यातना को देख लेंगे तो कह रहे होंगे, \"क्या लौटने का भी कोई मार्ग है?\"
وَتَرَىٰهُمۡ یُعۡرَضُونَ عَلَیۡهَا خَـٰشِعِینَ مِنَ ٱلذُّلِّ یَنظُرُونَ مِن طَرۡفٍ خَفِیࣲّۗ وَقَالَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِنَّ ٱلۡخَـٰسِرِینَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِیهِمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِۗ أَلَاۤ إِنَّ ٱلظَّـٰلِمِینَ فِی عَذَابࣲ مُّقِیمࣲ ﴿45﴾
और तुम उन्हें देखोगे कि वे उस (जहन्नम) पर इस दशा में लाए जा रहे है कि बेबसी और अपमान के कारण दबे हुए है। कनखियों से देख रहे है। जो लोग ईमान लाए, वे उस समय कहेंगे कि \"निश्चय ही घाटे में पड़नेवाले वही है जिन्होंने क़ियामत के दिन अपने आपको और अपने लोगों को घाटे में डाल दिया। सावधान! निश्चय ही ज़ालिम स्थिर रहनेवाली यातना में होंगे
وَمَا كَانَ لَهُم مِّنۡ أَوۡلِیَاۤءَ یَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِۗ وَمَن یُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن سَبِیلٍ ﴿46﴾
और उनके कुछ संरक्षक भी न होंगे, जो सहायता करके उन्हें अल्लाह से बचा सकें। जिसे अल्लाह गुमराही में डाल दे तो उसके लिए फिर कोई मार्ग नहीं।\"
ٱسۡتَجِیبُوا۟ لِرَبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن یَأۡتِیَ یَوۡمࣱ لَّا مَرَدَّ لَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۚ مَا لَكُم مِّن مَّلۡجَإࣲ یَوۡمَىِٕذࣲ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِیرࣲ ﴿47﴾
अपने रब की बात मान लो इससे पहले कि अल्लाह की ओर से वह दिन आ जाए जो पलटने का नहीं। उस दिन तुम्हारे लिए न कोई शरण-स्थल होगा और न तुम किसी चीज़ को रद्द कर सकोगे
فَإِنۡ أَعۡرَضُوا۟ فَمَاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ عَلَیۡهِمۡ حَفِیظًاۖ إِنۡ عَلَیۡكَ إِلَّا ٱلۡبَلَـٰغُۗ وَإِنَّاۤ إِذَاۤ أَذَقۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ مِنَّا رَحۡمَةࣰ فَرِحَ بِهَاۖ وَإِن تُصِبۡهُمۡ سَیِّئَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَیۡدِیهِمۡ فَإِنَّ ٱلۡإِنسَـٰنَ كَفُورࣱ ﴿48﴾
अब यदि वे ध्यान में न लाएँ तो हमने तो तुम्हें उनपर कोई रक्षक बनाकर तो भेजा नहीं है। तुमपर तो केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। हाल यह है कि जब हम मनुष्य को अपनी ओर से किसी दयालुता का आस्वादन कराते है तो वह उसपर इतराने लगता है, किन्तु ऐसे लोगों के हाथों ने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण यदि उन्हें कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो निश्चय ही वही मनुष्य बड़ा कृतघ्न बन जाता है
لِّلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ یَخۡلُقُ مَا یَشَاۤءُۚ یَهَبُ لِمَن یَشَاۤءُ إِنَـٰثࣰا وَیَهَبُ لِمَن یَشَاۤءُ ٱلذُّكُورَ ﴿49﴾
अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़कियाँ देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है।
أَوۡ یُزَوِّجُهُمۡ ذُكۡرَانࣰا وَإِنَـٰثࣰاۖ وَیَجۡعَلُ مَن یَشَاۤءُ عَقِیمًاۚ إِنَّهُۥ عَلِیمࣱ قَدِیرࣱ ﴿50﴾
या उन्हें लड़के और लड़कियाँ मिला-जुलाकर देता है और जिसे चाहता है निस्संतान रखता है। निश्चय ही वह सर्वज्ञ, सामर्थ्यवान है
۞ وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن یُكَلِّمَهُ ٱللَّهُ إِلَّا وَحۡیًا أَوۡ مِن وَرَاۤىِٕ حِجَابٍ أَوۡ یُرۡسِلَ رَسُولࣰا فَیُوحِیَ بِإِذۡنِهِۦ مَا یَشَاۤءُۚ إِنَّهُۥ عَلِیٌّ حَكِیمࣱ ﴿51﴾
किसी मनुष्य की यह शान नहीं कि अल्लाह उससे बात करे, सिवाय इसके कि प्रकाशना के द्वारा या परदे के पीछे से (बात करे) । या यह कि वह एक रसूल (फ़रिश्ता) भेज दे, फिर वह उसकी अनुज्ञा से जो कुछ वह चाहता है प्रकाशना कर दे। निश्चय ही वह सर्वोच्च अत्यन्त तत्वदर्शी है
وَكَذَ ٰلِكَ أَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡكَ رُوحࣰا مِّنۡ أَمۡرِنَاۚ مَا كُنتَ تَدۡرِی مَا ٱلۡكِتَـٰبُ وَلَا ٱلۡإِیمَـٰنُ وَلَـٰكِن جَعَلۡنَـٰهُ نُورࣰا نَّهۡدِی بِهِۦ مَن نَّشَاۤءُ مِنۡ عِبَادِنَاۚ وَإِنَّكَ لَتَهۡدِیۤ إِلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿52﴾
और इसी प्रकार हमने अपने आदेश से एक रूह (क़ुरआन) की प्रकाशना तुम्हारी ओर की है। तुम नहीं जानते थे कि किताब क्या होती है और न ईमान को (जानते थे), किन्तु हमने इस (प्रकाशना) को एक प्रकाश बनाया, जिसके द्वारा हम अपने बन्दों में से जिसे चाहते है मार्ग दिखाते है। निश्चय ही तुम एक सीधे मार्ग की ओर पथप्रदर्शन कर रहे हो-
صِرَ ٰطِ ٱللَّهِ ٱلَّذِی لَهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۗ أَلَاۤ إِلَى ٱللَّهِ تَصِیرُ ٱلۡأُمُورُ ﴿53﴾
उस अल्लाह के मार्ग की ओर जिसका वह सब कुछ है, जो आकाशों में है और जो धरती में है। सुन लो, सारे मामले अन्ततः अल्लाह ही की ओर पलटते हैं