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Surah The victory [Al-Fath] in Hindi
إِنَّا فَتَحۡنَا لَكَ فَتۡحࣰا مُّبِینࣰا ﴿1﴾
निश्चय ही हमने तुम्हारे लिए एक खुली विजय प्रकट की,
لِّیَغۡفِرَ لَكَ ٱللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنۢبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَیُتِمَّ نِعۡمَتَهُۥ عَلَیۡكَ وَیَهۡدِیَكَ صِرَ ٰطࣰا مُّسۡتَقِیمࣰا ﴿2﴾
ताकि अल्लाह तुम्हारे अगले और पिछले गुनाहों को क्षमा कर दे और तुमपर अपनी अनुकम्पा पूर्ण कर दे और तुम्हें सीधे मार्ग पर चलाए,
وَیَنصُرَكَ ٱللَّهُ نَصۡرًا عَزِیزًا ﴿3﴾
और अल्लाह तुम्हें प्रभावकारी सहायता प्रदान करे
هُوَ ٱلَّذِیۤ أَنزَلَ ٱلسَّكِینَةَ فِی قُلُوبِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ لِیَزۡدَادُوۤا۟ إِیمَـٰنࣰا مَّعَ إِیمَـٰنِهِمۡۗ وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِیمًا حَكِیمࣰا ﴿4﴾
वहीं है जिसने ईमानवालों के दिलों में सकीना (प्रशान्ति) उतारी, ताकि अपने ईमान के साथ वे और ईमान की अभिवृद्धि करें - आकाशों और धरती की सभी सेनाएँ अल्लाह ही की है, और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है। -
لِّیُدۡخِلَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ وَٱلۡمُؤۡمِنَـٰتِ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ خَـٰلِدِینَ فِیهَا وَیُكَفِّرَ عَنۡهُمۡ سَیِّـَٔاتِهِمۡۚ وَكَانَ ذَ ٰلِكَ عِندَ ٱللَّهِ فَوۡزًا عَظِیمࣰا ﴿5﴾
ताकि वह मोमिन पुरुषों औप मोमिन स्त्रियों को ऐसे बाग़ों में दाख़िल करे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी कि वे उनमें सदैव रहें और उनसे उनकी बुराईयाँ दूर कर दे - यह अल्लाह के यहाँ बड़ी सफलता है। -
وَیُعَذِّبَ ٱلۡمُنَـٰفِقِینَ وَٱلۡمُنَـٰفِقَـٰتِ وَٱلۡمُشۡرِكِینَ وَٱلۡمُشۡرِكَـٰتِ ٱلظَّاۤنِّینَ بِٱللَّهِ ظَنَّ ٱلسَّوۡءِۚ عَلَیۡهِمۡ دَاۤىِٕرَةُ ٱلسَّوۡءِۖ وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِمۡ وَلَعَنَهُمۡ وَأَعَدَّ لَهُمۡ جَهَنَّمَۖ وَسَاۤءَتۡ مَصِیرࣰا ﴿6﴾
और कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को, जो अल्लाह के बारे में बुरा गुमान रखते है, यातना दे। उन्हीं पर बुराई की गर्दिश है। उनपर अल्लाह का क्रोध हुआ और उसने उनपर लानत की, और उसने उनके लिए जहन्नम तैयार कर रखा है, और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है!
وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِیزًا حَكِیمًا ﴿7﴾
आकाशों और धरती की सब सेनाएँ अल्लाह ही की है। अल्लाह प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी है
إِنَّاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ شَـٰهِدࣰا وَمُبَشِّرࣰا وَنَذِیرࣰا ﴿8﴾
निश्चय ही हमने तुम्हें गवाही देनेवाला और शुभ सूचना देनेवाला और सचेतकर्त्ता बनाकर भेजा,
لِّتُؤۡمِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتُعَزِّرُوهُ وَتُوَقِّرُوهُۚ وَتُسَبِّحُوهُ بُكۡرَةࣰ وَأَصِیلًا ﴿9﴾
ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ, उसे सहायता पहुँचाओ और उसका आदर करो, और प्रातःकाल और संध्या समय उसकी तसबीह करते रहो
إِنَّ ٱلَّذِینَ یُبَایِعُونَكَ إِنَّمَا یُبَایِعُونَ ٱللَّهَ یَدُ ٱللَّهِ فَوۡقَ أَیۡدِیهِمۡۚ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا یَنكُثُ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَوۡفَىٰ بِمَا عَـٰهَدَ عَلَیۡهُ ٱللَّهَ فَسَیُؤۡتِیهِ أَجۡرًا عَظِیمࣰا ﴿10﴾
(ऐ नबी) वे लोग जो तुमसे बैअत करते है वे तो वास्तव में अल्लाह ही से बैअत करते है। उनके हाथों के ऊपर अल्लाह का हाथ होता है। फिर जिस किसी ने वचन भंग किया तो वह वचन भंग करके उसका बवाल अपने ही सिर लेता है, किन्तु जिसने उस प्रतिज्ञा को पूरा किया जो उसने अल्लाह से की है तो उसे वह बड़ा बदला प्रदान करेगा
سَیَقُولُ لَكَ ٱلۡمُخَلَّفُونَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ شَغَلَتۡنَاۤ أَمۡوَ ٰلُنَا وَأَهۡلُونَا فَٱسۡتَغۡفِرۡ لَنَاۚ یَقُولُونَ بِأَلۡسِنَتِهِم مَّا لَیۡسَ فِی قُلُوبِهِمۡۚ قُلۡ فَمَن یَمۡلِكُ لَكُم مِّنَ ٱللَّهِ شَیۡـًٔا إِنۡ أَرَادَ بِكُمۡ ضَرًّا أَوۡ أَرَادَ بِكُمۡ نَفۡعَۢاۚ بَلۡ كَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِیرَۢا ﴿11﴾
जो बद्दू पीछे रह गए थे, वे अब तुमसे कहेगे, \"हमारे माल और हमारे घरवालों ने हमें व्यस्त कर रखा था; तो आप हमारे लिए क्षमा की प्रार्थना कीजिए।\" वे अपनी ज़बानों से वे बातें कहते है जो उनके दिलों में नहीं। कहना कि, \"कौन है जो अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे किए किसी चीज़ का अधिकार रखता है, यदि वह तुम्हें कोई हानि पहुँचानी चाहे या वह तुम्हें कोई लाभ पहुँचाने का इरादा करे? बल्कि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है। -
بَلۡ ظَنَنتُمۡ أَن لَّن یَنقَلِبَ ٱلرَّسُولُ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِلَىٰۤ أَهۡلِیهِمۡ أَبَدࣰا وَزُیِّنَ ذَ ٰلِكَ فِی قُلُوبِكُمۡ وَظَنَنتُمۡ ظَنَّ ٱلسَّوۡءِ وَكُنتُمۡ قَوۡمَۢا بُورࣰا ﴿12﴾
\"नहीं, बल्कि तुमने यह समझा कि रसूल और ईमानवाले अपने घरवालों की ओर लौटकर कभी न आएँगे और यह तुम्हारे दिलों को अच्छा लगा। तुमने तो बहुत बुरे गुमान किए और तुम्हीं लोग हुए तबाही में पड़नेवाले।\"
وَمَن لَّمۡ یُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ فَإِنَّاۤ أَعۡتَدۡنَا لِلۡكَـٰفِرِینَ سَعِیرࣰا ﴿13﴾
और अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान न लाया, तो हमने भी इनकार करनेवालों के लिए भड़कती आग तैयार कर रखी है
وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ یَغۡفِرُ لِمَن یَشَاۤءُ وَیُعَذِّبُ مَن یَشَاۤءُۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورࣰا رَّحِیمࣰا ﴿14﴾
अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जिसे चाहे क्षमा करे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
سَیَقُولُ ٱلۡمُخَلَّفُونَ إِذَا ٱنطَلَقۡتُمۡ إِلَىٰ مَغَانِمَ لِتَأۡخُذُوهَا ذَرُونَا نَتَّبِعۡكُمۡۖ یُرِیدُونَ أَن یُبَدِّلُوا۟ كَلَـٰمَ ٱللَّهِۚ قُل لَّن تَتَّبِعُونَا كَذَ ٰلِكُمۡ قَالَ ٱللَّهُ مِن قَبۡلُۖ فَسَیَقُولُونَ بَلۡ تَحۡسُدُونَنَاۚ بَلۡ كَانُوا۟ لَا یَفۡقَهُونَ إِلَّا قَلِیلࣰا ﴿15﴾
जब तुम ग़नीमतों को प्राप्त करने के लिए उनकी ओर चलोगे तो पीछे रहनेवाले कहेंगे, \"हमें भी अनुमति दी जाए कि हम तुम्हारे साथ चले।\" वे चाहते है कि अल्लाह का कथन को बदल दे। कह देना, \"तुम हमारे साथ कदापि नहीं चल सकते। अल्लाह ने पहले ही ऐसा कह दिया है।\" इसपर वे कहेंगे, \"नहीं, बल्कि तुम हमसे ईर्ष्या कर रहे हो।\" नहीं, बल्कि वे लोग समझते थोड़े ही है
قُل لِّلۡمُخَلَّفِینَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ سَتُدۡعَوۡنَ إِلَىٰ قَوۡمٍ أُو۟لِی بَأۡسࣲ شَدِیدࣲ تُقَـٰتِلُونَهُمۡ أَوۡ یُسۡلِمُونَۖ فَإِن تُطِیعُوا۟ یُؤۡتِكُمُ ٱللَّهُ أَجۡرًا حَسَنࣰاۖ وَإِن تَتَوَلَّوۡا۟ كَمَا تَوَلَّیۡتُم مِّن قَبۡلُ یُعَذِّبۡكُمۡ عَذَابًا أَلِیمࣰا ﴿16﴾
पीछे रह जानेवाले बद्दूओं से कहना, \"शीघ्र ही तुम्हें ऐसे लोगों की ओर बुलाया जाएगा जो बड़े युद्धवीर है कि तुम उनसे लड़ो या वे आज्ञाकारी हो जाएँ। तो यदि तुम आज्ञाकारी हो जाएँ। तो यदि तुम आज्ञापालन करोगे तो अल्लाह तुम्हें अच्छा बदला प्रदान करेगा। किन्तु यदि तुम फिर गए, जैसे पहले फिर गए थे, तो वह तुम्हें दुखद यातना देगा।\"
لَّیۡسَ عَلَى ٱلۡأَعۡمَىٰ حَرَجࣱ وَلَا عَلَى ٱلۡأَعۡرَجِ حَرَجࣱ وَلَا عَلَى ٱلۡمَرِیضِ حَرَجࣱۗ وَمَن یُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ یُدۡخِلۡهُ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُۖ وَمَن یَتَوَلَّ یُعَذِّبۡهُ عَذَابًا أَلِیمࣰا ﴿17﴾
न अन्धे के लिए कोई हरज है, न लँगडे के लिए कोई हरज है और न बीमार के लिए कोई हरज है। जो भी अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करेगा, उसे वह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करके, जिनके नीचे नहरे बह रही होगी, किन्तु जो मुँह फेरेगा उसे वह दुखद यातना देगा
۞ لَّقَدۡ رَضِیَ ٱللَّهُ عَنِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ إِذۡ یُبَایِعُونَكَ تَحۡتَ ٱلشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِی قُلُوبِهِمۡ فَأَنزَلَ ٱلسَّكِینَةَ عَلَیۡهِمۡ وَأَثَـٰبَهُمۡ فَتۡحࣰا قَرِیبࣰا ﴿18﴾
निश्चय ही अल्लाह मोमिनों से प्रसन्न हुआ, जब वे वृक्ष के नीचे तुमसे बैअत कर रहे थे। उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था। अतः उनपर उसने सकीना (प्रशान्ति) उतारी और बदले में उन्हें मिलनेवाली विजय निश्चित कर दी;
وَمَغَانِمَ كَثِیرَةࣰ یَأۡخُذُونَهَاۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِیزًا حَكِیمࣰا ﴿19﴾
और बहुत-सी ग़नीमतें भी, जिन्हें वे प्राप्त करेंगे। अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
وَعَدَكُمُ ٱللَّهُ مَغَانِمَ كَثِیرَةࣰ تَأۡخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمۡ هَـٰذِهِۦ وَكَفَّ أَیۡدِیَ ٱلنَّاسِ عَنكُمۡ وَلِتَكُونَ ءَایَةࣰ لِّلۡمُؤۡمِنِینَ وَیَهۡدِیَكُمۡ صِرَ ٰطࣰا مُّسۡتَقِیمࣰا ﴿20﴾
अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी गंनीमतों का वादा किया हैं, जिन्हें तुम प्राप्त करोगे। यह विजय तो उसने तुम्हें तात्कालिक रूप से निश्चित कर दी। और लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए (कि वे तुमपर आक्रमण करने का साहस न कर सकें) और ताकि ईमानवालों के लिए एक निशानी हो। और वह सीधे मार्ग की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करे
وَأُخۡرَىٰ لَمۡ تَقۡدِرُوا۟ عَلَیۡهَا قَدۡ أَحَاطَ ٱللَّهُ بِهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرࣰا ﴿21﴾
इसके अतिरिक्त दूसरी और विजय का भी वादा है, जिसकी सामर्थ्य अभी तुम्हे प्राप्त नहीं, उन्हें अल्लाह ने घेर रखा है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है
وَلَوۡ قَـٰتَلَكُمُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لَوَلَّوُا۟ ٱلۡأَدۡبَـٰرَ ثُمَّ لَا یَجِدُونَ وَلِیࣰّا وَلَا نَصِیرࣰا ﴿22﴾
यदि (मक्का के) इनकार करनेवाले तुमसे लड़ते तो अवश्य ही पीठ फेर जाते। फिर यह भी कि वे न तो कोई संरक्षक पाएँगे और न कोई सहायक
سُنَّةَ ٱللَّهِ ٱلَّتِی قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلُۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ ٱللَّهِ تَبۡدِیلࣰا ﴿23﴾
यह अल्लाह की उस रीति के अनुकूल है जो पहले से चली आई है, और तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे
وَهُوَ ٱلَّذِی كَفَّ أَیۡدِیَهُمۡ عَنكُمۡ وَأَیۡدِیَكُمۡ عَنۡهُم بِبَطۡنِ مَكَّةَ مِنۢ بَعۡدِ أَنۡ أَظۡفَرَكُمۡ عَلَیۡهِمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرًا ﴿24﴾
वही है जिसने उसके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे मक्के की घाटी में रोक दिए इसके पश्चात कि वह तुम्हें उनपर प्रभावी कर चुका था। अल्लाह उसे देख रहा था जो कुछ तुम कर रहे थे
هُمُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوكُمۡ عَنِ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَٱلۡهَدۡیَ مَعۡكُوفًا أَن یَبۡلُغَ مَحِلَّهُۥۚ وَلَوۡلَا رِجَالࣱ مُّؤۡمِنُونَ وَنِسَاۤءࣱ مُّؤۡمِنَـٰتࣱ لَّمۡ تَعۡلَمُوهُمۡ أَن تَطَـُٔوهُمۡ فَتُصِیبَكُم مِّنۡهُم مَّعَرَّةُۢ بِغَیۡرِ عِلۡمࣲۖ لِّیُدۡخِلَ ٱللَّهُ فِی رَحۡمَتِهِۦ مَن یَشَاۤءُۚ لَوۡ تَزَیَّلُوا۟ لَعَذَّبۡنَا ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ مِنۡهُمۡ عَذَابًا أَلِیمًا ﴿25﴾
ये वही लोग तो है जिन्होंने इनकार किया और तुम्हें मस्जिदे हराम (काबा) से रोक दिया और क़ुरबानी के बँधे हुए जानवरों को भी इससे रोके रखा कि वे अपने ठिकाने पर पहुँचे। यदि यह ख़याल न होता कि बहुत-से मोमिन पुरुष और मोमिन स्त्रियाँ (मक्का में) मौजूद है, जिन्हें तुम नहीं जानते, उन्हें कुचल दोगे, फिर उनके सिलसिले में अनजाने तुमपर इल्ज़ाम आएगा (तो युद्ध की अनुमति दे दी जाती, अनुमति इसलिए नहीं दी गई) ताकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता में दाख़िल कर ले। यदि वे ईमानवाले अलग हो गए होते तो उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनको हम अवश्य दुखद यातना देते
إِذۡ جَعَلَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ فِی قُلُوبِهِمُ ٱلۡحَمِیَّةَ حَمِیَّةَ ٱلۡجَـٰهِلِیَّةِ فَأَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِینَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَعَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِینَ وَأَلۡزَمَهُمۡ كَلِمَةَ ٱلتَّقۡوَىٰ وَكَانُوۤا۟ أَحَقَّ بِهَا وَأَهۡلَهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣰا ﴿26﴾
याद करो जब इनकार करनेवाले लोगों ने अपने दिलों में हठ को जगह दी, अज्ञानपूर्ण हठ को; तो अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमानवालो पर सकीना (प्रशान्ति) उतारी और उन्हें परहेज़गारी (धर्मपरायणता) की बात का पाबन्द रखा। वे इसके ज़्यादा हक़दार और इसके योग्य भी थे। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है
لَّقَدۡ صَدَقَ ٱللَّهُ رَسُولَهُ ٱلرُّءۡیَا بِٱلۡحَقِّۖ لَتَدۡخُلُنَّ ٱلۡمَسۡجِدَ ٱلۡحَرَامَ إِن شَاۤءَ ٱللَّهُ ءَامِنِینَ مُحَلِّقِینَ رُءُوسَكُمۡ وَمُقَصِّرِینَ لَا تَخَافُونَۖ فَعَلِمَ مَا لَمۡ تَعۡلَمُوا۟ فَجَعَلَ مِن دُونِ ذَ ٰلِكَ فَتۡحࣰا قَرِیبًا ﴿27﴾
निश्चय ही अल्लाह ने अपने रसूल को हक़ के साथ सच्चा स्वप्न दिखाया, \"यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम अवश्य मस्जिदे हराम (काबा) में प्रवेश करोगे बेखटके, अपने सिर के बाल मुड़ाते और कतरवाते हुए, तुम्हें कोई भय न होगा।\" हुआ यह कि उसने वह बात जान ली जो तुमने नहीं जानी। अतः इससे पहले उसने शीघ्र प्राप्त होनेवाली विजय तुम्हारे लिए निश्चिंत कर दी
هُوَ ٱلَّذِیۤ أَرۡسَلَ رَسُولَهُۥ بِٱلۡهُدَىٰ وَدِینِ ٱلۡحَقِّ لِیُظۡهِرَهُۥ عَلَى ٱلدِّینِ كُلِّهِۦۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِیدࣰا ﴿28﴾
वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा, ताकि उसे पूरे के पूरे धर्म पर प्रभुत्व प्रदान करे और गवाह की हैसियत से अल्लाह काफ़ी है
مُّحَمَّدٞ رَّسُولُ ٱللَّهِۚ وَٱلَّذِينَ مَعَهُۥٓ أَشِدَّآءُ عَلَى ٱلۡكُفَّارِ رُحَمَآءُ بَيۡنَهُمۡۖ تَرَىٰهُمۡ رُكَّعٗا سُجَّدٗا يَبۡتَغُونَ فَضۡلٗا مِّنَ ٱللَّهِ وَرِضۡوَٰنٗاۖ سِيمَاهُمۡ فِي وُجُوهِهِم مِّنۡ أَثَرِ ٱلسُّجُودِۚ ذَٰلِكَ مَثَلُهُمۡ فِي ٱلتَّوۡرَىٰةِۚ وَمَثَلُهُمۡ فِي ٱلۡإِنجِيلِ كَزَرۡعٍ أَخۡرَجَ شَطۡـَٔهُۥ فَـَٔازَرَهُۥ فَٱسۡتَغۡلَظَ فَٱسۡتَوَىٰ عَلَىٰ سُوقِهِۦ يُعۡجِبُ ٱلزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ ٱلۡكُفَّارَۗ وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ مِنۡهُم مَّغۡفِرَةٗ وَأَجۡرًا عَظِيمَۢا ﴿29﴾
अल्लाह के रसूल मुहम्मद और जो लोग उनके साथ हैं, वे इनकार करनेवालों पर भारी हैं, आपस में दयालु है। तुम उन्हें रुकू में, सजदे में, अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता चाहते हुए देखोगे। वे अपने चहरों से पहचाने जाते हैं जिनपर सजदों का प्रभाव है। यही उनकी विशेषता तौरात में और उनकी विशेषता इंजील में उस खेती की तरह उल्लिखित है जिसने अपना अंकुर निकाला; फिर उसे शक्ति पहुँचाई तो वह मोटा हुआ और वह अपने तने पर सीधा खड़ा हो गया। खेती करनेवालों को भा रहा है, ताकि उनसे इनकार करनेवालों का भी जी जलाए। उनमें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह ने क्षमा और बदले का वादा किया है