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Surah The private apartments [Al-Hujraat] in Hindi
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَا تُقَدِّمُوا۟ بَیۡنَ یَدَیِ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿1﴾
ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढो और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह सुनता, जानता है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَا تَرۡفَعُوۤا۟ أَصۡوَ ٰتَكُمۡ فَوۡقَ صَوۡتِ ٱلنَّبِیِّ وَلَا تَجۡهَرُوا۟ لَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ كَجَهۡرِ بَعۡضِكُمۡ لِبَعۡضٍ أَن تَحۡبَطَ أَعۡمَـٰلُكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ ﴿2﴾
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम अपनी आवाज़ों को नबी की आवाज़ से ऊँची न करो। और जिस तरह तुम आपस में एक-दूसरे से ज़ोर से बोलते हो, उससे ऊँची आवाज़ में बात न करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म अकारथ हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो
إِنَّ ٱلَّذِینَ یَغُضُّونَ أَصۡوَ ٰتَهُمۡ عِندَ رَسُولِ ٱللَّهِ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ ٱمۡتَحَنَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُمۡ لِلتَّقۡوَىٰۚ لَهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَأَجۡرٌ عَظِیمٌ ﴿3﴾
वे लोग जो अल्लाह के रसूल के समक्ष अपनी आवाज़ों को दबी रखते है, वही लोग है जिनके दिलों को अल्लाह ने परहेज़गारी के लिए जाँचकर चुन लिया है। उनके लिए क्षमा और बड़ा बदला है
إِنَّ ٱلَّذِینَ یُنَادُونَكَ مِن وَرَاۤءِ ٱلۡحُجُرَ ٰتِ أَكۡثَرُهُمۡ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿4﴾
जो लोग (ऐ नबी) तुम्हें कमरों के बाहर से पुकारते है उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ صَبَرُوا۟ حَتَّىٰ تَخۡرُجَ إِلَیۡهِمۡ لَكَانَ خَیۡرࣰا لَّهُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿5﴾
यदि वे धैर्य से काम लेते यहाँ तक कि तुम स्वयं निकलकर उनके पास आ जाते तो यह उनके लिए अच्छा होता। किन्तु अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِن جَاۤءَكُمۡ فَاسِقُۢ بِنَبَإࣲ فَتَبَیَّنُوۤا۟ أَن تُصِیبُوا۟ قَوۡمَۢا بِجَهَـٰلَةࣲ فَتُصۡبِحُوا۟ عَلَىٰ مَا فَعَلۡتُمۡ نَـٰدِمِینَ ﴿6﴾
ऐ लोगों, जो ईमान लाए हो! यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ
وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ فِیكُمۡ رَسُولَ ٱللَّهِۚ لَوۡ یُطِیعُكُمۡ فِی كَثِیرࣲ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ لَعَنِتُّمۡ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ حَبَّبَ إِلَیۡكُمُ ٱلۡإِیمَـٰنَ وَزَیَّنَهُۥ فِی قُلُوبِكُمۡ وَكَرَّهَ إِلَیۡكُمُ ٱلۡكُفۡرَ وَٱلۡفُسُوقَ وَٱلۡعِصۡیَانَۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلرَّ ٰشِدُونَ ﴿7﴾
जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह का रसूल मौजूद है। बहुत-से मामलों में यदि वह तुम्हारी बात मान ले तो तुम कठिनाई में पड़ जाओ। किन्तु अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुन्दरता दे दी और इनकार, उल्लंघन और अवज्ञा को तुम्हारे लिए बहुत अप्रिय बना दिया।
فَضۡلࣰا مِّنَ ٱللَّهِ وَنِعۡمَةࣰۚ وَٱللَّهُ عَلِیمٌ حَكِیمࣱ ﴿8﴾
ऐसे ही लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह और अनुकम्पा से सूझबूझवाले है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
وَإِن طَاۤىِٕفَتَانِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ٱقۡتَتَلُوا۟ فَأَصۡلِحُوا۟ بَیۡنَهُمَاۖ فَإِنۢ بَغَتۡ إِحۡدَىٰهُمَا عَلَى ٱلۡأُخۡرَىٰ فَقَـٰتِلُوا۟ ٱلَّتِی تَبۡغِی حَتَّىٰ تَفِیۤءَ إِلَىٰۤ أَمۡرِ ٱللَّهِۚ فَإِن فَاۤءَتۡ فَأَصۡلِحُوا۟ بَیۡنَهُمَا بِٱلۡعَدۡلِ وَأَقۡسِطُوۤا۟ۖ إِنَّ ٱللَّهَ یُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِینَ ﴿9﴾
यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़े तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़्यादती करे, तो जो गिरोह ज़्यादती कर रहा हो उससे लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इनसाफ़ करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِخۡوَةࣱ فَأَصۡلِحُوا۟ بَیۡنَ أَخَوَیۡكُمۡۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ﴿10﴾
मोमिन तो भाई-भाई ही है। अतः अपने दो भाईयो के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَا یَسۡخَرۡ قَوۡمࣱ مِّن قَوۡمٍ عَسَىٰۤ أَن یَكُونُوا۟ خَیۡرࣰا مِّنۡهُمۡ وَلَا نِسَاۤءࣱ مِّن نِّسَاۤءٍ عَسَىٰۤ أَن یَكُنَّ خَیۡرࣰا مِّنۡهُنَّۖ وَلَا تَلۡمِزُوۤا۟ أَنفُسَكُمۡ وَلَا تَنَابَزُوا۟ بِٱلۡأَلۡقَـٰبِۖ بِئۡسَ ٱلِٱسۡمُ ٱلۡفُسُوقُ بَعۡدَ ٱلۡإِیمَـٰنِۚ وَمَن لَّمۡ یَتُبۡ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ ﴿11﴾
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! न पुरुषों का कोई गिरोह दूसरे पुरुषों की हँसी उड़ाए, सम्भव है वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियाँ स्त्रियों की हँसी उड़ाए, सम्भव है वे उनसे अच्छी हों, और न अपनों पर ताने कसो और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो। ईमान के पश्चात अवज्ञाकारी का नाम जुडना बहुत ही बुरा है। और जो व्यक्ति बाज़ न आए, तो ऐसे ही व्यक्ति ज़ालिम है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ ٱجۡتَنِبُوا۟ كَثِیرࣰا مِّنَ ٱلظَّنِّ إِنَّ بَعۡضَ ٱلظَّنِّ إِثۡمࣱۖ وَلَا تَجَسَّسُوا۟ وَلَا یَغۡتَب بَّعۡضُكُم بَعۡضًاۚ أَیُحِبُّ أَحَدُكُمۡ أَن یَأۡكُلَ لَحۡمَ أَخِیهِ مَیۡتࣰا فَكَرِهۡتُمُوهُۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ تَوَّابࣱ رَّحِیمࣱ ﴿12﴾
ऐ ईमान लानेवालो! बहुत से गुमानों से बचो, क्योंकि कतिपय गुमान गुनाह होते है। और न टोह में पड़ो और न तुममें से कोई किसी की पीठ पीछे निन्दा करे - क्या तुममें से कोई इसको पसन्द करेगा कि वह मरे हुए भाई का मांस खाए? वह तो तुम्हें अप्रिय होगी ही। - और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّا خَلَقۡنَـٰكُم مِّن ذَكَرࣲ وَأُنثَىٰ وَجَعَلۡنَـٰكُمۡ شُعُوبࣰا وَقَبَاۤىِٕلَ لِتَعَارَفُوۤا۟ۚ إِنَّ أَكۡرَمَكُمۡ عِندَ ٱللَّهِ أَتۡقَىٰكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِیمٌ خَبِیرࣱ ﴿13﴾
ऐ लोगो! हमनें तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और क़बिलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है, जो तुममे सबसे अधिक डर रखता है। निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है
۞ قَالَتِ ٱلۡأَعۡرَابُ ءَامَنَّاۖ قُل لَّمۡ تُؤۡمِنُوا۟ وَلَـٰكِن قُولُوۤا۟ أَسۡلَمۡنَا وَلَمَّا یَدۡخُلِ ٱلۡإِیمَـٰنُ فِی قُلُوبِكُمۡۖ وَإِن تُطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَا یَلِتۡكُم مِّنۡ أَعۡمَـٰلِكُمۡ شَیۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمٌ ﴿14﴾
बद्दुओं ने कहा कि, \"हम ईमान लाए।\" कह दो, \"तुम ईमान नहीं लाए। किन्तु यूँ कहो, 'हम तो आज्ञाकारी हुए' ईमान तो अभी तुम्हारे दिलों में दाख़िल ही नहीं हुआ। यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हारे कर्मों में से तुम्हारे लिए कुछ कम न करेगा। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।\"
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ لَمۡ یَرۡتَابُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ بِأَمۡوَ ٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلصَّـٰدِقُونَ ﴿15﴾
मोमिन तो बस वही लोग है जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, फिर उन्होंने कोई सन्देह नहीं किया और अपने मालों और अपनी जानों से अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया। वही लोग सच्चे है
قُلۡ أَتُعَلِّمُونَ ٱللَّهَ بِدِینِكُمۡ وَٱللَّهُ یَعۡلَمُ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمࣱ ﴿16﴾
कहो, \"क्या तुम अल्लाह को अपने धर्म की सूचना दे रहे हो। हालाँकि जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, अल्लाह सब जानता है? अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है।\"
یَمُنُّونَ عَلَیۡكَ أَنۡ أَسۡلَمُوا۟ۖ قُل لَّا تَمُنُّوا۟ عَلَیَّ إِسۡلَـٰمَكُمۖ بَلِ ٱللَّهُ یَمُنُّ عَلَیۡكُمۡ أَنۡ هَدَىٰكُمۡ لِلۡإِیمَـٰنِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِینَ ﴿17﴾
वे तुमपर एहसान जताते है कि उन्होंने इस्लाम क़बूल कर लिया। कह दो, \"मुझ पर अपने इस्लाम का एहसान न रखो, बल्कि यदि तुम सच्चे हो तो अल्लाह ही तुमपर एहसान रखता है कि उसने तुम्हें ईमान की राह दिखाई।-
إِنَّ ٱللَّهَ یَعۡلَمُ غَیۡبَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بَصِیرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ ﴿18﴾
\"निश्चय ही अल्लाह आकाशों और धरती के अदृष्ट को जानता है। और अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम करते हो।\"