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Surah The winnowing winds [Adh-Dhariyat] in Hindi
وَٱلذَّ ٰرِیَـٰتِ ذَرۡوࣰا ﴿1﴾
गवाह है (हवाएँ) जो गर्द-ग़ुबार उड़ाती फिरती है;
فَٱلۡحَـٰمِلَـٰتِ وِقۡرࣰا ﴿2﴾
फिर बोझ उठाती है;
فَٱلۡجَـٰرِیَـٰتِ یُسۡرࣰا ﴿3﴾
फिर नरमी से चलती है;
فَٱلۡمُقَسِّمَـٰتِ أَمۡرًا ﴿4﴾
फिर मामले को अलग-अलग करती है;
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقࣱ ﴿5﴾
निश्चय ही तुमसे जिस चीज़ का वादा किया जाता है, वह सत्य है;
وَإِنَّ ٱلدِّینَ لَوَ ٰقِعࣱ ﴿6﴾
और (कर्मों का) बदला अवश्य सामने आकर रहेगा
وَٱلسَّمَاۤءِ ذَاتِ ٱلۡحُبُكِ ﴿7﴾
गवाह है धारियोंवाला आकाश।
إِنَّكُمۡ لَفِی قَوۡلࣲ مُّخۡتَلِفࣲ ﴿8﴾
निश्चय ही तुम उस बात में पड़े हुए हो जिनमें कथन भिन्न-भिन्न है
یُؤۡفَكُ عَنۡهُ مَنۡ أُفِكَ ﴿9﴾
इसमें कोई सरफिरा ही विमुख होता है
قُتِلَ ٱلۡخَرَّ ٰصُونَ ﴿10﴾
मारे जाएँ अटकल दौड़ानेवाले;
ٱلَّذِینَ هُمۡ فِی غَمۡرَةࣲ سَاهُونَ ﴿11﴾
जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं भूले हुए
یَسۡـَٔلُونَ أَیَّانَ یَوۡمُ ٱلدِّینِ ﴿12﴾
पूछते है, \"बदले का दिन कब आएगा?\"
یَوۡمَ هُمۡ عَلَى ٱلنَّارِ یُفۡتَنُونَ ﴿13﴾
जिस दिन वे आग पर तपाए जाएँगे,
ذُوقُوا۟ فِتۡنَتَكُمۡ هَـٰذَا ٱلَّذِی كُنتُم بِهِۦ تَسۡتَعۡجِلُونَ ﴿14﴾
\"चखों मज़ा. अपने फ़ितने (उपद्रव) का! यहीं है जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे थे।\"
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِینَ فِی جَنَّـٰتࣲ وَعُیُونٍ ﴿15﴾
निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे
ءَاخِذِینَ مَاۤ ءَاتَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡۚ إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ قَبۡلَ ذَ ٰلِكَ مُحۡسِنِینَ ﴿16﴾
जो कुछ उनके रब ने उन्हें दिया, वे उसे ले रहे होंगे। निस्संदेह वे इससे पहले उत्तमकारों में से थे
كَانُوا۟ قَلِیلࣰا مِّنَ ٱلَّیۡلِ مَا یَهۡجَعُونَ ﴿17﴾
रातों को थोड़ा ही सोते थे,
وَبِٱلۡأَسۡحَارِ هُمۡ یَسۡتَغۡفِرُونَ ﴿18﴾
और वही प्रातः की घड़ियों में क्षमा की प्रार्थना करते थे
وَفِیۤ أَمۡوَ ٰلِهِمۡ حَقࣱّ لِّلسَّاۤىِٕلِ وَٱلۡمَحۡرُومِ ﴿19﴾
और उनके मालों में माँगनेवाले और धनहीन का हक़ था
وَفِی ٱلۡأَرۡضِ ءَایَـٰتࣱ لِّلۡمُوقِنِینَ ﴿20﴾
और धरती में विश्वास करनेवालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ है,
وَفِیۤ أَنفُسِكُمۡۚ أَفَلَا تُبۡصِرُونَ ﴿21﴾
और ,स्वयं तुम्हारे अपने आप में भी। तो क्या तुम देखते नहीं?
وَفِی ٱلسَّمَاۤءِ رِزۡقُكُمۡ وَمَا تُوعَدُونَ ﴿22﴾
और आकाश मे ही तुम्हारी रोज़ी है और वह चीज़ भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है
فَوَرَبِّ ٱلسَّمَاۤءِ وَٱلۡأَرۡضِ إِنَّهُۥ لَحَقࣱّ مِّثۡلَ مَاۤ أَنَّكُمۡ تَنطِقُونَ ﴿23﴾
अतः सौगन्ध है आकाश और धरती के रब की। निश्चय ही वह सत्य बात है ऐसे ही जैसे तुम बोलते हो
هَلۡ أَتَىٰكَ حَدِیثُ ضَیۡفِ إِبۡرَ ٰهِیمَ ٱلۡمُكۡرَمِینَ ﴿24﴾
क्या इबराईम के प्रतिष्ठित अतिथियों का वृतान्त तुम तक पहँचा?
إِذۡ دَخَلُوا۟ عَلَیۡهِ فَقَالُوا۟ سَلَـٰمࣰاۖ قَالَ سَلَـٰمࣱ قَوۡمࣱ مُّنكَرُونَ ﴿25﴾
जब वे उसके पास आए तो कहा, \"सलाम है तुमपर!\" उसने भी कहा, \"सलाम है आप लोगों पर भी!\" (और जी में कहा) \"ये तो अपरिचित लोग हैं।\"
فَرَاغَ إِلَىٰۤ أَهۡلِهِۦ فَجَاۤءَ بِعِجۡلࣲ سَمِینࣲ ﴿26﴾
फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया और एक मोटा-ताज़ा बछड़ा (का भूना हुआ मांस) ले आया
فَقَرَّبَهُۥۤ إِلَیۡهِمۡ قَالَ أَلَا تَأۡكُلُونَ ﴿27﴾
और उसे उनके सामने पेश किया। कहा, \"क्या आप खाते नहीं?\"
فَأَوۡجَسَ مِنۡهُمۡ خِیفَةࣰۖ قَالُوا۟ لَا تَخَفۡۖ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَـٰمٍ عَلِیمࣲ ﴿28﴾
फिर उसने दिल में उनसे डर महसूस किया। उन्होंने कहा, \"डरिए नहीं।\" और उन्होंने उसे एक ज्ञानवान लड़के की मंगल-सूचना दी
فَأَقۡبَلَتِ ٱمۡرَأَتُهُۥ فِی صَرَّةࣲ فَصَكَّتۡ وَجۡهَهَا وَقَالَتۡ عَجُوزٌ عَقِیمࣱ ﴿29﴾
इसपर उसकी स्त्री (चकित होकर) आगे बढ़ी और उसने अपना मुँह पीट लिया और कहने लगी, \"एक बूढ़ी बाँझ (के यहाँ बच्चा पैदा होगा)!\"
قَالُوا۟ كَذَ ٰلِكِ قَالَ رَبُّكِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡحَكِیمُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿30﴾
उन्होंने कहा, \"ऐसी ही तेरे रब ने कहा है। निश्चय ही वह बड़ा तत्वदर्शी, ज्ञानवान है।\"
۞ قَالَ فَمَا خَطۡبُكُمۡ أَیُّهَا ٱلۡمُرۡسَلُونَ ﴿31﴾
उसने कहा, \"ऐ (अल्लाह के भेजे हुए) दूतों, तुम्हारे सामने क्या मुहिम है?\"
قَالُوۤا۟ إِنَّاۤ أُرۡسِلۡنَاۤ إِلَىٰ قَوۡمࣲ مُّجۡرِمِینَ ﴿32﴾
उन्होंने कहा, \"हम एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है;
لِنُرۡسِلَ عَلَیۡهِمۡ حِجَارَةࣰ مِّن طِینࣲ ﴿33﴾
\"ताकि उनके ऊपर मिट्टी के पत्थर (कंकड़) बरसाएँ,
مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلۡمُسۡرِفِینَ ﴿34﴾
जो आपके रब के यहाँ सीमा का अतिक्रमण करनेवालों के लिए चिन्हित है।\"
فَأَخۡرَجۡنَا مَن كَانَ فِیهَا مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿35﴾
फिर वहाँ जो ईमानवाले थे, उन्हें हमने निकाल लिया;
فَمَا وَجَدۡنَا فِیهَا غَیۡرَ بَیۡتࣲ مِّنَ ٱلۡمُسۡلِمِینَ ﴿36﴾
किन्तु हमने वहाँ एक घर के अतिरिक्त मुसलमानों (आज्ञाकारियों) का और कोई घर न पाया
وَتَرَكۡنَا فِیهَاۤ ءَایَةࣰ لِّلَّذِینَ یَخَافُونَ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِیمَ ﴿37﴾
इसके पश्चात हमने वहाँ उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुखद यातना से डरते है
وَفِی مُوسَىٰۤ إِذۡ أَرۡسَلۡنَـٰهُ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ بِسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینࣲ ﴿38﴾
और मूसा के वृतान्त में भी (निशानी है) जब हमने फ़िरऔन के पास के स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा,
فَتَوَلَّىٰ بِرُكۡنِهِۦ وَقَالَ سَـٰحِرٌ أَوۡ مَجۡنُونࣱ ﴿39﴾
किन्तु उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और कहा, \"जादूगर है या दीवाना।\"
فَأَخَذۡنَـٰهُ وَجُنُودَهُۥ فَنَبَذۡنَـٰهُمۡ فِی ٱلۡیَمِّ وَهُوَ مُلِیمࣱ ﴿40﴾
अन्ततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया, इस दशा में कि वह निन्दनीय था
وَفِی عَادٍ إِذۡ أَرۡسَلۡنَا عَلَیۡهِمُ ٱلرِّیحَ ٱلۡعَقِیمَ ﴿41﴾
और आद में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि हमने उनपर अशुभ वायु चला दी
مَا تَذَرُ مِن شَیۡءٍ أَتَتۡ عَلَیۡهِ إِلَّا جَعَلَتۡهُ كَٱلرَّمِیمِ ﴿42﴾
वह जिस चीज़ पर से गुज़री उसे उसने जीर्ण-शीर्ण करके रख दिया
وَفِی ثَمُودَ إِذۡ قِیلَ لَهُمۡ تَمَتَّعُوا۟ حَتَّىٰ حِینࣲ ﴿43﴾
और समुद्र में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि उनसे कहा गया, \"एक समय तक मज़े कर लो!\"
فَعَتَوۡا۟ عَنۡ أَمۡرِ رَبِّهِمۡ فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ وَهُمۡ یَنظُرُونَ ﴿44﴾
किन्तु उन्होंने अपने रब के आदेश की अवहेलना की; फिर कड़क ने उन्हें आ लिया और वे देखते रहे
فَمَا ٱسۡتَطَـٰعُوا۟ مِن قِیَامࣲ وَمَا كَانُوا۟ مُنتَصِرِینَ ﴿45﴾
फिर वे न खड़े ही हो सके और न अपना बचाव ही कर सके
وَقَوۡمَ نُوحࣲ مِّن قَبۡلُۖ إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ قَوۡمࣰا فَـٰسِقِینَ ﴿46﴾
और इससे पहले नूह की क़ौम को भी पकड़ा। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे
وَٱلسَّمَاۤءَ بَنَیۡنَـٰهَا بِأَیۡی۟دࣲ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ ﴿47﴾
आकाश को हमने अपने हाथ के बल से बनाया और हम बड़ी समाई रखनेवाले है
وَٱلۡأَرۡضَ فَرَشۡنَـٰهَا فَنِعۡمَ ٱلۡمَـٰهِدُونَ ﴿48﴾
और धरती को हमने बिछाया, तो हम क्या ही ख़ूब बिछानेवाले है
وَمِن كُلِّ شَیۡءٍ خَلَقۡنَا زَوۡجَیۡنِ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ ﴿49﴾
और हमने हर चीज़ के जोड़े बनाए, ताकि तुम ध्यान दो
فَفِرُّوۤا۟ إِلَى ٱللَّهِۖ إِنِّی لَكُم مِّنۡهُ نَذِیرࣱ مُّبِینࣱ ﴿50﴾
अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ
وَلَا تَجۡعَلُوا۟ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَۖ إِنِّی لَكُم مِّنۡهُ نَذِیرࣱ مُّبِینࣱ ﴿51﴾
और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न ठहराओ। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ
كَذَ ٰلِكَ مَاۤ أَتَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُوا۟ سَاحِرٌ أَوۡ مَجۡنُونٌ ﴿52﴾
इसी तरह उन लोगों के पास भी, जो उनसे पहले गुज़र चुके है, जो भी रसूल आया तो उन्होंने बस यही कहा, \"जादूगर है या दीवाना!\"
أَتَوَاصَوۡا۟ بِهِۦۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمࣱ طَاغُونَ ﴿53﴾
क्या उन्होंने एक-दूसरे को इसकी वसीयत कर रखी है? नहीं, बल्कि वे है ही सरकश लोग
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ فَمَاۤ أَنتَ بِمَلُومࣲ ﴿54﴾
अतः उनसे मुँह फेर लो अब तुमपर कोई मलामत नहीं
وَذَكِّرۡ فَإِنَّ ٱلذِّكۡرَىٰ تَنفَعُ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿55﴾
और याद दिलाते रहो, क्योंकि याद दिलाना ईमानवालों को लाभ पहुँचाता है
وَمَا خَلَقۡتُ ٱلۡجِنَّ وَٱلۡإِنسَ إِلَّا لِیَعۡبُدُونِ ﴿56﴾
मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे
مَاۤ أُرِیدُ مِنۡهُم مِّن رِّزۡقࣲ وَمَاۤ أُرِیدُ أَن یُطۡعِمُونِ ﴿57﴾
मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ
إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلرَّزَّاقُ ذُو ٱلۡقُوَّةِ ٱلۡمَتِینُ ﴿58﴾
निश्चय ही अल्लाह ही है रोज़ी देनेवाला, शक्तिशाली, दृढ़
فَإِنَّ لِلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ ذَنُوبࣰا مِّثۡلَ ذَنُوبِ أَصۡحَـٰبِهِمۡ فَلَا یَسۡتَعۡجِلُونِ ﴿59﴾
अतः जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके लिए एक नियत पैमाना है; जैसा उनके साथियों का नियत पैमाना था। अतः वे मुझसे जल्दी न मचाएँ!
فَوَیۡلࣱ لِّلَّذِینَ كَفَرُوا۟ مِن یَوۡمِهِمُ ٱلَّذِی یُوعَدُونَ ﴿60﴾
अतः इनकार करनेवालों के लिए बड़ी खराबी है, उनके उस दिन के कारण जिसकी उन्हें धमकी दी जा रही है