Main pages

Surah The Star [An-Najm] in Hindi

Surah The Star [An-Najm] Ayah 62 Location Makkah Number 53

وَٱلنَّجۡمِ إِذَا هَوَىٰ ﴿1﴾

गवाह है तारा, जब वह नीचे को आए

مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمۡ وَمَا غَوَىٰ ﴿2﴾

तुम्हारी साथी (मुहम्मह सल्ल॰) न गुमराह हुआ और न बहका;

وَمَا یَنطِقُ عَنِ ٱلۡهَوَىٰۤ ﴿3﴾

और न वह अपनी इच्छा से बोलता है;

إِنۡ هُوَ إِلَّا وَحۡیࣱ یُوحَىٰ ﴿4﴾

वह तो बस एक प्रकाशना है, जो की जा रही है

عَلَّمَهُۥ شَدِیدُ ٱلۡقُوَىٰ ﴿5﴾

उसे बड़ी शक्तियोंवाले ने सिखाया,

ذُو مِرَّةࣲ فَٱسۡتَوَىٰ ﴿6﴾

स्थिर रीतिवाले ने।

وَهُوَ بِٱلۡأُفُقِ ٱلۡأَعۡلَىٰ ﴿7﴾

अतः वह भरपूर हुआ, इस हाल में कि वह क्षितिज के उच्चतम छोर पर है

ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّىٰ ﴿8﴾

फिर वह निकट हुआ और उतर गया

فَكَانَ قَابَ قَوۡسَیۡنِ أَوۡ أَدۡنَىٰ ﴿9﴾

अब दो कमानों के बराबर या उससे भी अधिक निकट हो गया

فَأَوۡحَىٰۤ إِلَىٰ عَبۡدِهِۦ مَاۤ أَوۡحَىٰ ﴿10﴾

तब उसने अपने बन्दे की ओर प्रकाशना की, जो कुछ प्रकाशना की।

مَا كَذَبَ ٱلۡفُؤَادُ مَا رَأَىٰۤ ﴿11﴾

दिल ने कोई धोखा नहीं दिया, जो कुछ उसने देखा;

أَفَتُمَـٰرُونَهُۥ عَلَىٰ مَا یَرَىٰ ﴿12﴾

अब क्या तुम उस चीज़ पर झगड़ते हो, जिसे वह देख रहा है? -

وَلَقَدۡ رَءَاهُ نَزۡلَةً أُخۡرَىٰ ﴿13﴾

और निश्चय ही वह उसे एक बार और

عِندَ سِدۡرَةِ ٱلۡمُنتَهَىٰ ﴿14﴾

'सिदरतुल मुन्तहा' (परली सीमा के बेर) के पास उतरते देख चुका है

عِندَهَا جَنَّةُ ٱلۡمَأۡوَىٰۤ ﴿15﴾

उसी के निकट 'जन्नतुल मावा' (ठिकानेवाली जन्नत) है। -

إِذۡ یَغۡشَى ٱلسِّدۡرَةَ مَا یَغۡشَىٰ ﴿16﴾

जबकि छा रहा था उस बेर पर, जो कुछ छा रहा था

مَا زَاغَ ٱلۡبَصَرُ وَمَا طَغَىٰ ﴿17﴾

निगाह न तो टेढ़ी हुइ और न हद से आगे बढ़ी

لَقَدۡ رَأَىٰ مِنۡ ءَایَـٰتِ رَبِّهِ ٱلۡكُبۡرَىٰۤ ﴿18﴾

निश्चय ही उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियाँ देखीं

أَفَرَءَیۡتُمُ ٱللَّـٰتَ وَٱلۡعُزَّىٰ ﴿19﴾

तो क्या तुमने लात और उज़्ज़ा

وَمَنَوٰةَ ٱلثَّالِثَةَ ٱلۡأُخۡرَىٰۤ ﴿20﴾

और तीसरी एक और (देवी) मनात पर विचार किया?

أَلَكُمُ ٱلذَّكَرُ وَلَهُ ٱلۡأُنثَىٰ ﴿21﴾

क्या तुम्हारे लिए तो बेटे है उनके लिए बेटियाँ?

تِلۡكَ إِذࣰا قِسۡمَةࣱ ضِیزَىٰۤ ﴿22﴾

तब तो यह बहुत बेढ़ंगा और अन्यायपूर्ण बँटवारा हुआ!

إِنۡ هِیَ إِلَّاۤ أَسۡمَاۤءࣱ سَمَّیۡتُمُوهَاۤ أَنتُمۡ وَءَابَاۤؤُكُم مَّاۤ أَنزَلَ ٱللَّهُ بِهَا مِن سُلۡطَـٰنٍۚ إِن یَتَّبِعُونَ إِلَّا ٱلظَّنَّ وَمَا تَهۡوَى ٱلۡأَنفُسُۖ وَلَقَدۡ جَاۤءَهُم مِّن رَّبِّهِمُ ٱلۡهُدَىٰۤ ﴿23﴾

वे तो बस कुछ नाम है जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए है। अल्लाह ने उनके लिए कोई सनद नहीं उतारी। वे तो केवल अटकल के पीछे चले रहे है और उनके पीछे जो उनके मन की इच्छा होती है। हालाँकि उनके पास उनके रब की ओर से मार्गदर्शन आ चुका है

أَمۡ لِلۡإِنسَـٰنِ مَا تَمَنَّىٰ ﴿24﴾

(क्या उनकी देवियाँ उन्हें लाभ पहुँचा सकती है) या मनुष्य वह कुछ पा लेगा, जिसकी वह कामना करता है?

فَلِلَّهِ ٱلۡـَٔاخِرَةُ وَٱلۡأُولَىٰ ﴿25﴾

आख़िरत और दुनिया का मालिक तो अल्लाह ही है

۞ وَكَم مِّن مَّلَكࣲ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ لَا تُغۡنِی شَفَـٰعَتُهُمۡ شَیۡـًٔا إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ أَن یَأۡذَنَ ٱللَّهُ لِمَن یَشَاۤءُ وَیَرۡضَىٰۤ ﴿26﴾

आकाशों में कितने ही फ़रिश्ते है, उनकी सिफ़ारिश कुछ काम नहीं आएगी; यदि काम आ सकती है तो इसके पश्चात ही कि अल्लाह अनुमति दे, जिसे चाहे और पसन्द करे।

إِنَّ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ لَیُسَمُّونَ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةَ تَسۡمِیَةَ ٱلۡأُنثَىٰ ﴿27﴾

जो लोग आख़िरत को नहीं मानते, वे फ़रिश्तों के देवियों के नाम से अभिहित करते है,

وَمَا لَهُم بِهِۦ مِنۡ عِلۡمٍۖ إِن یَتَّبِعُونَ إِلَّا ٱلظَّنَّۖ وَإِنَّ ٱلظَّنَّ لَا یُغۡنِی مِنَ ٱلۡحَقِّ شَیۡـࣰٔا ﴿28﴾

हालाँकि इस विषय में उन्हें कोई ज्ञान नहीं। वे केवल अटकल के पीछे चलते है, हालाँकि सत्य से जो लाभ पहुँचता है वह अटकल से कदापि नहीं पहुँच सकता।

فَأَعۡرِضۡ عَن مَّن تَوَلَّىٰ عَن ذِكۡرِنَا وَلَمۡ یُرِدۡ إِلَّا ٱلۡحَیَوٰةَ ٱلدُّنۡیَا ﴿29﴾

अतः तुम उसको ध्यान में न लाओ जो हमारे ज़िक्र से मुँह मोड़ता है और सांसारिक जीवन के सिवा उसने कुछ नहीं चाहा

ذَ ٰ⁠لِكَ مَبۡلَغُهُم مِّنَ ٱلۡعِلۡمِۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِیلِهِۦ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِمَنِ ٱهۡتَدَىٰ ﴿30﴾

ऐसे लोगों के ज्ञान की पहुँच बस यहीं तक है। निश्चय ही तुम्हारा रब ही उसे भली-भाँति जानता है जो उसके मार्ग से भटक गया और वही उसे भी भली-भाँति जानता है जिसने सीधा मार्ग अपनाया

وَلِلَّهِ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰ⁠تِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِ لِیَجۡزِیَ ٱلَّذِینَ أَسَـٰۤـُٔوا۟ بِمَا عَمِلُوا۟ وَیَجۡزِیَ ٱلَّذِینَ أَحۡسَنُوا۟ بِٱلۡحُسۡنَى ﴿31﴾

अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, ताकि जिन लोगों ने बुराई की वह उन्हें उनके किए का बदला दे। और जिन लोगों ने भलाई की उन्हें अच्छा बदला दे;

ٱلَّذِینَ یَجۡتَنِبُونَ كَبَـٰۤىِٕرَ ٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡفَوَ ٰ⁠حِشَ إِلَّا ٱللَّمَمَۚ إِنَّ رَبَّكَ وَ ٰ⁠سِعُ ٱلۡمَغۡفِرَةِۚ هُوَ أَعۡلَمُ بِكُمۡ إِذۡ أَنشَأَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ وَإِذۡ أَنتُمۡ أَجِنَّةࣱ فِی بُطُونِ أُمَّهَـٰتِكُمۡۖ فَلَا تُزَكُّوۤا۟ أَنفُسَكُمۡۖ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَنِ ٱتَّقَىٰۤ ﴿32﴾

वे लोग जो बड़े गुनाहों और अश्लील कर्मों से बचते है, यह और बात है कि संयोगबश कोई छोटी बुराई उनसे हो जाए। निश्चय ही तुम्हारा रब क्षमाशीलता मे बड़ा व्यापक है। वह तुम्हें उस समय से भली-भाँति जानता है, जबकि उसने तुम्हें धरती से पैदा किया और जबकि तुम अपनी माँओ के पेटों में भ्रुण अवस्था में थे। अतः अपने मन की पवित्रता और निखार का दावा न करो। वह उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है, जिसने डर रखा

أَفَرَءَیۡتَ ٱلَّذِی تَوَلَّىٰ ﴿33﴾

क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जिसने मुँह फेरा,

وَأَعۡطَىٰ قَلِیلࣰا وَأَكۡدَىٰۤ ﴿34﴾

और थोड़ा-सा देकर रुक गया;

أَعِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلۡغَیۡبِ فَهُوَ یَرَىٰۤ ﴿35﴾

क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है कि वह देख रहा है;

أَمۡ لَمۡ یُنَبَّأۡ بِمَا فِی صُحُفِ مُوسَىٰ ﴿36﴾

या उसको उन बातों की ख़बर नहीं पहुँची, जो मूसा की किताबों में है

وَإِبۡرَ ٰ⁠هِیمَ ٱلَّذِی وَفَّىٰۤ ﴿37﴾

और इबराहीम की (किताबों में है), जिसने अल्लाह की बन्दगी का) पूरा-पूरा हक़ अदा कर दिया?

أَلَّا تَزِرُ وَازِرَةࣱ وِزۡرَ أُخۡرَىٰ ﴿38﴾

यह कि कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा;

وَأَن لَّیۡسَ لِلۡإِنسَـٰنِ إِلَّا مَا سَعَىٰ ﴿39﴾

और यह कि मनुष्य के लिए बस वही है जिसके लिए उसने प्रयास किया;

وَأَنَّ سَعۡیَهُۥ سَوۡفَ یُرَىٰ ﴿40﴾

और यह कि उसका प्रयास शीघ्र ही देखा जाएगा।

ثُمَّ یُجۡزَىٰهُ ٱلۡجَزَاۤءَ ٱلۡأَوۡفَىٰ ﴿41﴾

फिर उसे पूरा बदला दिया जाएगा;

وَأَنَّ إِلَىٰ رَبِّكَ ٱلۡمُنتَهَىٰ ﴿42﴾

और यह कि अन्त में पहुँचना तुम्हारे रब ही की ओर है;

وَأَنَّهُۥ هُوَ أَضۡحَكَ وَأَبۡكَىٰ ﴿43﴾

और यह कि वही है जो हँसाता और रुलाता है;

وَأَنَّهُۥ هُوَ أَمَاتَ وَأَحۡیَا ﴿44﴾

और यह कि वही जो मारता और जिलाता है;

وَأَنَّهُۥ خَلَقَ ٱلزَّوۡجَیۡنِ ٱلذَّكَرَ وَٱلۡأُنثَىٰ ﴿45﴾

और यह कि वही है जिसने नर और मादा के जोड़े पैदा किए,

مِن نُّطۡفَةٍ إِذَا تُمۡنَىٰ ﴿46﴾

एक बूँद से, जब वह टपकाई जाती है;

وَأَنَّ عَلَیۡهِ ٱلنَّشۡأَةَ ٱلۡأُخۡرَىٰ ﴿47﴾

और यह कि उसी के ज़िम्मे दोबारा उठाना भी है;

وَأَنَّهُۥ هُوَ أَغۡنَىٰ وَأَقۡنَىٰ ﴿48﴾

और यह कि वही है जिसने धनी और पूँजीपति बनाया;

وَأَنَّهُۥ هُوَ رَبُّ ٱلشِّعۡرَىٰ ﴿49﴾

और यह कि वही है जो शेअरा (नामक तारे) का रब है

وَأَنَّهُۥۤ أَهۡلَكَ عَادًا ٱلۡأُولَىٰ ﴿50﴾

और यह कि वही है उसी ने प्राचीन आद को विनष्ट किया;

وَثَمُودَا۟ فَمَاۤ أَبۡقَىٰ ﴿51﴾

और समूद को भी। फिर किसी को बाक़ी न छोड़ा।

وَقَوۡمَ نُوحࣲ مِّن قَبۡلُۖ إِنَّهُمۡ كَانُوا۟ هُمۡ أَظۡلَمَ وَأَطۡغَىٰ ﴿52﴾

और उससे पहले नूह की क़ौम को भी। बेशक वे ज़ालिम और सरकश थे

وَٱلۡمُؤۡتَفِكَةَ أَهۡوَىٰ ﴿53﴾

उलट जानेवाली बस्ती को भी फेंक दिया।

فَغَشَّىٰهَا مَا غَشَّىٰ ﴿54﴾

तो ढँक लिया उसे जिस चीज़ ने ढँक लिया;

فَبِأَیِّ ءَالَاۤءِ رَبِّكَ تَتَمَارَىٰ ﴿55﴾

फिर तू अपने रब के चमत्कारों में से किस-किस के विषय में संदेह करेगा?

هَـٰذَا نَذِیرࣱ مِّنَ ٱلنُّذُرِ ٱلۡأُولَىٰۤ ﴿56﴾

यह पहले के सावधान-कर्ताओं के सदृश एक सावधान करनेवाला है

أَزِفَتِ ٱلۡـَٔازِفَةُ ﴿57﴾

निकट आनेवाली (क़ियामत की घड़ी) निकट आ गई

لَیۡسَ لَهَا مِن دُونِ ٱللَّهِ كَاشِفَةٌ ﴿58﴾

अल्लाह के सिवा कोई नहीं जो उसे प्रकट कर दे

أَفَمِنۡ هَـٰذَا ٱلۡحَدِیثِ تَعۡجَبُونَ ﴿59﴾

अब क्या तुम इस वाणी पर आश्चर्य करते हो;

وَتَضۡحَكُونَ وَلَا تَبۡكُونَ ﴿60﴾

और हँसते हो और रोते नहीं?

وَأَنتُمۡ سَـٰمِدُونَ ﴿61﴾

जबकि तुम घमंडी और ग़ाफिल हो

فَٱسۡجُدُوا۟ لِلَّهِ وَٱعۡبُدُوا۟ ۩ ﴿62﴾

अतः अल्लाह को सजदा करो और बन्दगी करो