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Surah Spoils of war, booty [Al-Anfal] in Hindi
یَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡأَنفَالِۖ قُلِ ٱلۡأَنفَالُ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِۖ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَصۡلِحُوا۟ ذَاتَ بَیۡنِكُمۡۖ وَأَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۤ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿1﴾
वे तुमसे ग़नीमतों के विषय में पूछते है। कहो, \"ग़नीमतें अल्लाह और रसूल की है। अतः अल्लाह का डर रखों और आपस के सम्बन्धों को ठीक रखो। और, अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो, यदि तुम ईमानवाले हो
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِینَ إِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَجِلَتۡ قُلُوبُهُمۡ وَإِذَا تُلِیَتۡ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتُهُۥ زَادَتۡهُمۡ إِیمَـٰنࣰا وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ یَتَوَكَّلُونَ ﴿2﴾
ईमानवाले तो वही लोग है जिनके दिल उस समय काँप उठे जबकि अल्लाह को याद किया जाए। और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाएँ तो वे उनके ईमान को और अधिक बढ़ा दें और वे अपने रब पर भरोसा रखते हों
ٱلَّذِینَ یُقِیمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَـٰهُمۡ یُنفِقُونَ ﴿3﴾
ये वे लोग हैं जो नमाज़ क़ायम करते है और जो कुछ हमने दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقࣰّاۚ لَّهُمۡ دَرَجَـٰتٌ عِندَ رَبِّهِمۡ وَمَغۡفِرَةࣱ وَرِزۡقࣱ كَرِیمࣱ ﴿4﴾
वही लोग वास्तव में ईमानवाले है। उनके लिेए रब के पास बड़े दर्जे है और क्षमा और सम्मानित उत्तम आजीविका भी
كَمَاۤ أَخۡرَجَكَ رَبُّكَ مِنۢ بَیۡتِكَ بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّ فَرِیقࣰا مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ لَكَـٰرِهُونَ ﴿5﴾
(यह बिल्कुल वैसी ही परिस्थित है) जैसे तुम्हारे ने तुम्हें तुम्हारे घर से एक उद्देश्य के साथ निकाला, किन्तु ईमानवालों में से एक गिरोह को यह अप्रिय लगा था
یُجَـٰدِلُونَكَ فِی ٱلۡحَقِّ بَعۡدَ مَا تَبَیَّنَ كَأَنَّمَا یُسَاقُونَ إِلَى ٱلۡمَوۡتِ وَهُمۡ یَنظُرُونَ ﴿6﴾
वे सत्य के विषय में उसके स्पष्ट हो जाने के पश्चात तुमसे झगड़ रहे थे। मानो वे आँखों देखी मृत्यु की ओर हाँके जा रहे हों
وَإِذۡ یَعِدُكُمُ ٱللَّهُ إِحۡدَى ٱلطَّاۤىِٕفَتَیۡنِ أَنَّهَا لَكُمۡ وَتَوَدُّونَ أَنَّ غَیۡرَ ذَاتِ ٱلشَّوۡكَةِ تَكُونُ لَكُمۡ وَیُرِیدُ ٱللَّهُ أَن یُحِقَّ ٱلۡحَقَّ بِكَلِمَـٰتِهِۦ وَیَقۡطَعَ دَابِرَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿7﴾
और याद करो जब अल्लाह तुमसे वादा कर रहा था कि दो गिरोहों में से एक तुम्हारे हाथ आएगा और तुम चाहते थे कि तुम्हें वह हाथ आए, जो निःशस्त्र था, हालाँकि अल्लाह चाहता था कि अपने वचनों से सत्य को सत्य कर दिखाए और इनकार करनेवालों की जड़ काट दे
لِیُحِقَّ ٱلۡحَقَّ وَیُبۡطِلَ ٱلۡبَـٰطِلَ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿8﴾
ताकि सत्य को सत्य कर दिखाए और असत्य को असत्य, चाहे अपराधियों को कितना ही अप्रिय लगे
إِذۡ تَسۡتَغِیثُونَ رَبَّكُمۡ فَٱسۡتَجَابَ لَكُمۡ أَنِّی مُمِدُّكُم بِأَلۡفࣲ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ مُرۡدِفِینَ ﴿9﴾
याद करो जब तुम अपने रब से फ़रियाद कर रहे थे, तो उसने तुम्हारी पुकार सुन ली। (उसने कहा,) \"मैं एक हजार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करूँगा जो तुम्हारे साथी होंगे।\"
وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشۡرَىٰ وَلِتَطۡمَىِٕنَّ بِهِۦ قُلُوبُكُمۡۚ وَمَا ٱلنَّصۡرُ إِلَّا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمٌ ﴿10﴾
अल्लाह ने यह केवल इसलिए किया कि यह एक शुभ-सूचना हो और ताकि इससे तुम्हारे हृदय संतुष्ट हो जाएँ। सहायता अल्लाह ही के यहाँ से होती है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
إِذۡ یُغَشِّیكُمُ ٱلنُّعَاسَ أَمَنَةࣰ مِّنۡهُ وَیُنَزِّلُ عَلَیۡكُم مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ لِّیُطَهِّرَكُم بِهِۦ وَیُذۡهِبَ عَنكُمۡ رِجۡزَ ٱلشَّیۡطَـٰنِ وَلِیَرۡبِطَ عَلَىٰ قُلُوبِكُمۡ وَیُثَبِّتَ بِهِ ٱلۡأَقۡدَامَ ﴿11﴾
यह करो जबकि वह अपनी ओर से चैन प्रदान कर तुम्हें ऊँघ से ढँक रहा था और वह आकाश से तुमपर पानी बरसा रहा था, ताकि उसके द्वारा तुम्हें अच्छी तरह पाक करे और शैतान की गन्दगी तुमसे दूर करे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत करे और उसके द्वारा तुम्हारे क़दमों को जमा दे
إِذۡ یُوحِی رَبُّكَ إِلَى ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةِ أَنِّی مَعَكُمۡ فَثَبِّتُوا۟ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ۚ سَأُلۡقِی فِی قُلُوبِ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ ٱلرُّعۡبَ فَٱضۡرِبُوا۟ فَوۡقَ ٱلۡأَعۡنَاقِ وَٱضۡرِبُوا۟ مِنۡهُمۡ كُلَّ بَنَانࣲ ﴿12﴾
याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि \"मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!\"
ذَ ٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ شَاۤقُّوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ وَمَن یُشَاقِقِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿13﴾
यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे (उसे कठोर यातना मिलकर रहेगी) क्योंकि अल्लाह कड़ी यातना देनेवाला है
ذَ ٰلِكُمۡ فَذُوقُوهُ وَأَنَّ لِلۡكَـٰفِرِینَ عَذَابَ ٱلنَّارِ ﴿14﴾
यह तो तुम चखो! और यह कि इनकार करनेवालों के लिए आग की यातना है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِذَا لَقِیتُمُ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ زَحۡفࣰا فَلَا تُوَلُّوهُمُ ٱلۡأَدۡبَارَ ﴿15﴾
ऐ ईमान लानेवालो! जब एक सेना के रूप में तुम्हारा इनकार करनेवालों से मुक़ाबला हो तो पीठ न फेरो
وَمَن یُوَلِّهِمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ دُبُرَهُۥۤ إِلَّا مُتَحَرِّفࣰا لِّقِتَالٍ أَوۡ مُتَحَیِّزًا إِلَىٰ فِئَةࣲ فَقَدۡ بَاۤءَ بِغَضَبࣲ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأۡوَىٰهُ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِیرُ ﴿16﴾
जिस किसी ने भी उस दिन उनसे अपनी पीठ फेरी - यह और बात है कि युद्ध-चाल के रूप में या दूसरी टुकड़ी से मिलने के लिए ऐसा करे - तो वह अल्लाह के प्रकोप का भागी हुआ और उसका ठिकाना जहन्नम है, और क्या ही बुरा जगह है वह पहुँचने की!
فَلَمۡ تَقۡتُلُوهُمۡ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ قَتَلَهُمۡۚ وَمَا رَمَیۡتَ إِذۡ رَمَیۡتَ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ رَمَىٰ وَلِیُبۡلِیَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ مِنۡهُ بَلَاۤءً حَسَنًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿17﴾
तुमने उसे क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ही ने उन्हें क़त्ल किया और जब तुमने (उनकी ओर मिट्टी और कंकड़) फेंक, तो तुमने नहीं फेंका बल्कि अल्लाह ने फेंका (कि अल्लाह अपनी गुण-गरिमा दिखाए) और ताकि अपनी ओर से ईमानवालों के गुण प्रकट करे। निस्संदेह अल्लाह सुनता, जानता है
ذَ ٰلِكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُوهِنُ كَیۡدِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿18﴾
यह तो हुआ, और यह (जान लो) कि अल्लाह इनकार करनेवालों की चाल को कमज़ोर कर देनेवाला है
إِن تَسۡتَفۡتِحُوا۟ فَقَدۡ جَاۤءَكُمُ ٱلۡفَتۡحُۖ وَإِن تَنتَهُوا۟ فَهُوَ خَیۡرࣱ لَّكُمۡۖ وَإِن تَعُودُوا۟ نَعُدۡ وَلَن تُغۡنِیَ عَنكُمۡ فِئَتُكُمۡ شَیۡـࣰٔا وَلَوۡ كَثُرَتۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿19﴾
यदि तुम फ़ैसला चाहते हो तो फ़ैसला तुम्हारे सामने आ चुका और यदि बाज़ आ जाओ तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है। लेकिन यदि तुमने पलटकर फिर वही हरकत की तो हम भी पलटेंगे और तुम्हारा जत्था, चाहे वह कितना ही अधिक हो, तुम्हारे कुछ काम न आ सकेगा। और यह कि अल्लाह मोमिनों के साथ होता है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَوَلَّوۡا۟ عَنۡهُ وَأَنتُمۡ تَسۡمَعُونَ ﴿20﴾
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करो और उससे मुँह न फेरो जबकि तुम सुन रहे हो
وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِینَ قَالُوا۟ سَمِعۡنَا وَهُمۡ لَا یَسۡمَعُونَ ﴿21﴾
और उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने कहा था, \"हमने सुना\" हालाँकि वे सुनते नहीं
۞ إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَاۤبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلصُّمُّ ٱلۡبُكۡمُ ٱلَّذِینَ لَا یَعۡقِلُونَ ﴿22﴾
अल्लाह की स्पष्ट में तो निकृष्ट पशु वे बहरे-गूँगे लोग है, जो बुद्धि से काम नहीं लेते
وَلَوۡ عَلِمَ ٱللَّهُ فِیهِمۡ خَیۡرࣰا لَّأَسۡمَعَهُمۡۖ وَلَوۡ أَسۡمَعَهُمۡ لَتَوَلَّوا۟ وَّهُم مُّعۡرِضُونَ ﴿23﴾
यदि अल्लाह जानता कि उनमें कुछ भी भलाई है, तो वह उन्हें अवश्य सुनने का सौभाग्य प्रदान करता। और यदि वह उन्हें सुना देता तो भी वे कतराते हुए मुँह फेर लेते
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ ٱسۡتَجِیبُوا۟ لِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُمۡ لِمَا یُحۡیِیكُمۡۖ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ یَحُولُ بَیۡنَ ٱلۡمَرۡءِ وَقَلۡبِهِۦ وَأَنَّهُۥۤ إِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿24﴾
ऐ ईमान लानेवाले! अल्लाह और रसूल की बात मानो, जब वह तुम्हें उस चीज़ की ओर बुलाए जो तुम्हें जीवन प्रदान करनेवाली है, और जान रखो कि अल्लाह आदमी और उसके दिल के बीच आड़े आ जाता है और यह कि वही है जिसकी ओर (पलटकर) तुम एकत्र होगे
وَٱتَّقُوا۟ فِتۡنَةࣰ لَّا تُصِیبَنَّ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوا۟ مِنكُمۡ خَاۤصَّةࣰۖ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿25﴾
बचो उस फ़ितने से जो अपनी लपेट में विशेष रूप से केवल अत्याचारियों को ही नहीं लेगा, जान लो अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है
وَٱذۡكُرُوۤا۟ إِذۡ أَنتُمۡ قَلِیلࣱ مُّسۡتَضۡعَفُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ تَخَافُونَ أَن یَتَخَطَّفَكُمُ ٱلنَّاسُ فَـَٔاوَىٰكُمۡ وَأَیَّدَكُم بِنَصۡرِهِۦ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّیِّبَـٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ﴿26﴾
और याद करो जब तुम थोड़े थे, धरती में निर्बल थे, डरे-सहमे रहते कि लोग कहीं तु्म्हें उचक न ले जाएँ, फिर उसने तुम्हें ठिकाना दिया और अपनी सहायता से तुम्हें शक्ति प्रदान की और अच्छी-स्वच्छ चीज़ों की तुम्हें रोजी दी, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ لَا تَخُونُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ وَتَخُونُوۤا۟ أَمَـٰنَـٰتِكُمۡ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿27﴾
ऐ ईमान लानेवालो! जानते-बुझते तुम अल्लाह और उसके रसूल के साथ विश्वासघात न करना और न अपनी अमानतों में ख़ियानत करना
وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّمَاۤ أَمۡوَ ٰلُكُمۡ وَأَوۡلَـٰدُكُمۡ فِتۡنَةࣱ وَأَنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥۤ أَجۡرٌ عَظِیمࣱ ﴿28﴾
और जान रखो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी संतान परीक्षा-सामग्री हैं और यह कि अल्लाह के पास बड़ा प्रतिदान है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِن تَتَّقُوا۟ ٱللَّهَ یَجۡعَل لَّكُمۡ فُرۡقَانࣰا وَیُكَفِّرۡ عَنكُمۡ سَیِّـَٔاتِكُمۡ وَیَغۡفِرۡ لَكُمۡۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿29﴾
ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम अल्लाह का डर रखोगे तो वह तुम्हें एक विशिष्टता प्रदान करेगा और तुमसे तुम्हारी बुराइयाँ दूर करेगा और तुम्हे क्षमा करेगा। अल्लाह बड़ा अनुग्राहक है
وَإِذۡ یَمۡكُرُ بِكَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لِیُثۡبِتُوكَ أَوۡ یَقۡتُلُوكَ أَوۡ یُخۡرِجُوكَۚ وَیَمۡكُرُونَ وَیَمۡكُرُ ٱللَّهُۖ وَٱللَّهُ خَیۡرُ ٱلۡمَـٰكِرِینَ ﴿30﴾
और याद करो जब इनकार करनेवाले तुम्हारे साथ चालें चल रहे थे कि तम्हें क़ैद रखें या तुम्हे क़त्ल कर दें या तुम्हे निकाल बाहर करे। वे अपनी चालें चल रहे थे और अल्लाह भी अपनी चाल चल रहा था। अल्लाह सबसे अच्छी चाल चलता है
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَیۡهِمۡ ءَایَـٰتُنَا قَالُوا۟ قَدۡ سَمِعۡنَا لَوۡ نَشَاۤءُ لَقُلۡنَا مِثۡلَ هَـٰذَاۤ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿31﴾
जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती है, तो वे कहते है, \"हम सुन चुके। यदि हम चाहें तो ऐसी बातें हम भी बना लें; ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ हैं।\"
وَإِذۡ قَالُوا۟ ٱللَّهُمَّ إِن كَانَ هَـٰذَا هُوَ ٱلۡحَقَّ مِنۡ عِندِكَ فَأَمۡطِرۡ عَلَیۡنَا حِجَارَةࣰ مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ أَوِ ٱئۡتِنَا بِعَذَابٍ أَلِیمࣲ ﴿32﴾
और याद करो जब उन्होंने कहा, \"ऐ अल्लाह! यदि यही तेरे यहाँ से सत्य हो तो हमपर आकाश से पत्थर बरसा दे, या हम पर कोई दुखद यातना ही ले आ
وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِیُعَذِّبَهُمۡ وَأَنتَ فِیهِمۡۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ مُعَذِّبَهُمۡ وَهُمۡ یَسۡتَغۡفِرُونَ ﴿33﴾
और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम उनके बीच उपस्थित हो और वह उन्हें यातना देने लग जाए, और न अल्लाह ऐसा है कि वे क्षमा-याचना कर रहे हो और वह उन्हें यातना से ग्रस्त कर दे
وَمَا لَهُمۡ أَلَّا یُعَذِّبَهُمُ ٱللَّهُ وَهُمۡ یَصُدُّونَ عَنِ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَمَا كَانُوۤا۟ أَوۡلِیَاۤءَهُۥۤۚ إِنۡ أَوۡلِیَاۤؤُهُۥۤ إِلَّا ٱلۡمُتَّقُونَ وَلَـٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا یَعۡلَمُونَ ﴿34﴾
किन्तु अब क्या है उनके पास कि अल्लाह उन्हें यातना न दे, जबकि वे 'मस्जिदे हराम' (काबा) से रोकते है, हालाँकि वे उसके कोई व्यवस्थापक नहीं? उसके व्यवस्थापक तो केवल डर रखनेवाले ही है, परन्तु उनके अधिकतर लोग जानते नहीं
وَمَا كَانَ صَلَاتُهُمۡ عِندَ ٱلۡبَیۡتِ إِلَّا مُكَاۤءࣰ وَتَصۡدِیَةࣰۚ فَذُوقُوا۟ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ ﴿35﴾
उनकी नमाज़़ इस घर (काबा) के पास सीटियाँ बजाने और तालियाँ पीटने के अलावा कुछ भी नहीं होती। तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो
إِنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ یُنفِقُونَ أَمۡوَ ٰلَهُمۡ لِیَصُدُّوا۟ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِۚ فَسَیُنفِقُونَهَا ثُمَّ تَكُونُ عَلَیۡهِمۡ حَسۡرَةࣰ ثُمَّ یُغۡلَبُونَۗ وَٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ إِلَىٰ جَهَنَّمَ یُحۡشَرُونَ ﴿36﴾
निश्चय ही इनकार करनेवाले अपने माल अल्लाह के मार्ग से रोकने के लिए ख़र्च करते रहेंगे, फिर यही उनके लिए पश्चाताप बनेगा। फिर वे पराभूत होंगे और इनकार करनेवाले जहन्नम की ओर समेट लाए जाएँगे
لِیَمِیزَ ٱللَّهُ ٱلۡخَبِیثَ مِنَ ٱلطَّیِّبِ وَیَجۡعَلَ ٱلۡخَبِیثَ بَعۡضَهُۥ عَلَىٰ بَعۡضࣲ فَیَرۡكُمَهُۥ جَمِیعࣰا فَیَجۡعَلَهُۥ فِی جَهَنَّمَۚ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡخَـٰسِرُونَ ﴿37﴾
ताकि अल्लाह नापाक को पाक से छाँटकर अलग करे और नापाकों को आपस में एक-दूसरे पर रखकर ढेर बनाए, फिर उसे जहन्नम में डाल दे। यही लोग घाटे में पड़नेवाले है
قُل لِّلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ إِن یَنتَهُوا۟ یُغۡفَرۡ لَهُم مَّا قَدۡ سَلَفَ وَإِن یَعُودُوا۟ فَقَدۡ مَضَتۡ سُنَّتُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿38﴾
उन इनकार करनेवालो से कह दो कि वे यदि बाज़ आ जाएँ तो जो कुछ हो चुका, उसे क्षमा कर दिया जाएगा, किन्तु यदि वे फिर भी वहीं करेंगे तो पूर्ववर्ती लोगों के सिलसिले में जो रीति अपनाई गई वह सामने से गुज़र चुकी है
وَقَـٰتِلُوهُمۡ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتۡنَةࣱ وَیَكُونَ ٱلدِّینُ كُلُّهُۥ لِلَّهِۚ فَإِنِ ٱنتَهَوۡا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِمَا یَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿39﴾
उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है
وَإِن تَوَلَّوۡا۟ فَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَوۡلَىٰكُمۡۚ نِعۡمَ ٱلۡمَوۡلَىٰ وَنِعۡمَ ٱلنَّصِیرُ ﴿40﴾
किन्तु यदि वे मुँह मोड़े तो जान रखो कि अल्लाह संरक्षक है। क्या ही अच्छा संरक्षक है वह, और क्या ही अच्छा सहायक!
۞ وَٱعۡلَمُوۤا۟ أَنَّمَا غَنِمۡتُم مِّن شَیۡءࣲ فَأَنَّ لِلَّهِ خُمُسَهُۥ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِی ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡیَتَـٰمَىٰ وَٱلۡمَسَـٰكِینِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِیلِ إِن كُنتُمۡ ءَامَنتُم بِٱللَّهِ وَمَاۤ أَنزَلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا یَوۡمَ ٱلۡفُرۡقَانِ یَوۡمَ ٱلۡتَقَى ٱلۡجَمۡعَانِۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ قَدِیرٌ ﴿41﴾
और तुम्हें मालूम हो कि जो कुछ ग़नीमत के रूप में माल तुमने प्राप्त किया है, उसका पाँचवा भाग अल्लाग का, रसूल का, नातेदारों का, अनाथों का, मुहताजों और मुसाफ़िरों का है। यदि तुम अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारी, जिस दिन दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हूई, और अल्लाह को हर चीज़ की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त है
إِذۡ أَنتُم بِٱلۡعُدۡوَةِ ٱلدُّنۡیَا وَهُم بِٱلۡعُدۡوَةِ ٱلۡقُصۡوَىٰ وَٱلرَّكۡبُ أَسۡفَلَ مِنكُمۡۚ وَلَوۡ تَوَاعَدتُّمۡ لَٱخۡتَلَفۡتُمۡ فِی ٱلۡمِیعَـٰدِ وَلَـٰكِن لِّیَقۡضِیَ ٱللَّهُ أَمۡرࣰا كَانَ مَفۡعُولࣰا لِّیَهۡلِكَ مَنۡ هَلَكَ عَنۢ بَیِّنَةࣲ وَیَحۡیَىٰ مَنۡ حَیَّ عَنۢ بَیِّنَةࣲۗ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَسَمِیعٌ عَلِیمٌ ﴿42﴾
याद करो जब तुम घाटी के निकटवर्ती छोर पर थे और वे घाटी के दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। यदि तुम परस्पर समय निश्चित किए होते तो अनिवार्यतः तुम निश्चित समय पर न पहुँचते। किन्तु जो कुछ हुआ वह इसलिए कि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे, जिसका पूरा होना निश्चित था, ताकि जिसे विनष्ट होना हो, वह स्पष्ट प्रमाण देखकर ही विनष्ट हो और जिसे जीवित रहना हो वह स्पष्ट़ प्रमाण देखकर जीवित रहे। निस्संदेह अल्लाह भली-भाँति जानता, सुनता है
إِذۡ یُرِیكَهُمُ ٱللَّهُ فِی مَنَامِكَ قَلِیلࣰاۖ وَلَوۡ أَرَىٰكَهُمۡ كَثِیرࣰا لَّفَشِلۡتُمۡ وَلَتَنَـٰزَعۡتُمۡ فِی ٱلۡأَمۡرِ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ سَلَّمَۚ إِنَّهُۥ عَلِیمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ﴿43﴾
और याद करो जब अल्लाह उनको तुम्हारे स्वप्न में थोड़ा करके तुम्हें दिखा रहा था और यदि वह उन्हें ज़्यादा करके तुम्हें दिखा देता तो अवश्य ही तुम हिम्मत हार बैठते और असल मामले में झगड़ने लग जाते, किन्तु अल्लाह ने इससे बचा लिया। निश्चय ही वह तो जो कुछ दिलों में होता है उसे भी जानता है
وَإِذۡ یُرِیكُمُوهُمۡ إِذِ ٱلۡتَقَیۡتُمۡ فِیۤ أَعۡیُنِكُمۡ قَلِیلࣰا وَیُقَلِّلُكُمۡ فِیۤ أَعۡیُنِهِمۡ لِیَقۡضِیَ ٱللَّهُ أَمۡرࣰا كَانَ مَفۡعُولࣰاۗ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ﴿44﴾
याद करो जब तुम्हारी परस्पर मुठभेड़ हुई तो वह तुम्हारी निगाहों में उन्हें कम करके और तुम्हें उनकी निगाहों में कम करके दिखा रहा था, ताकि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे जिसका होना निश्चित था। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِذَا لَقِیتُمۡ فِئَةࣰ فَٱثۡبُتُوا۟ وَٱذۡكُرُوا۟ ٱللَّهَ كَثِیرࣰا لَّعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ ﴿45﴾
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम्हारा किसी गिरोह से मुक़ाबला हो जाए तो जमे रहो और अल्लाह को ज़्यादा याद करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो
وَأَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَنَـٰزَعُوا۟ فَتَفۡشَلُوا۟ وَتَذۡهَبَ رِیحُكُمۡۖ وَٱصۡبِرُوۤا۟ۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿46﴾
और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानो और आपस में न झगड़ो, अन्यथा हिम्मत हार बैठोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। और धैर्य से काम लो। निश्चय ही, अल्लाह धैर्यवानों के साथ है
وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِینَ خَرَجُوا۟ مِن دِیَـٰرِهِم بَطَرࣰا وَرِئَاۤءَ ٱلنَّاسِ وَیَصُدُّونَ عَن سَبِیلِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ بِمَا یَعۡمَلُونَ مُحِیطࣱ ﴿47﴾
और उन लोगों की तरह न हो जाना जो अपने घरों से इतराते और लोगों को दिखाते निकले थे और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते है, हालाँकि जो कुछ वे करते है, अल्लाह उसे अपने घेरे में लिए हुए है
وَإِذۡ زَیَّنَ لَهُمُ ٱلشَّیۡطَـٰنُ أَعۡمَـٰلَهُمۡ وَقَالَ لَا غَالِبَ لَكُمُ ٱلۡیَوۡمَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَإِنِّی جَارࣱ لَّكُمۡۖ فَلَمَّا تَرَاۤءَتِ ٱلۡفِئَتَانِ نَكَصَ عَلَىٰ عَقِبَیۡهِ وَقَالَ إِنِّی بَرِیۤءࣱ مِّنكُمۡ إِنِّیۤ أَرَىٰ مَا لَا تَرَوۡنَ إِنِّیۤ أَخَافُ ٱللَّهَۚ وَٱللَّهُ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿48﴾
और याद करो जब शैतान ने उनके कर्म उनके लिए सुन्दर बना दिए और कहा, \"आज लोगों में से कोई भी तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। मैं तुम्हारे साथ हूँ।\" किन्तु जब दोनों गिरोह आमने-सामने हुए तो वह उलटे पाँव फिर गया और कहने लगा, \"मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं। मैं वह कुछ देख रहा हूँ, जो तुम्हें नहीं दिखाई देता। मैं अल्लाह से डरता हूँ, और अल्लाह कठोर यातना देनेवाला है।\"
إِذۡ یَقُولُ ٱلۡمُنَـٰفِقُونَ وَٱلَّذِینَ فِی قُلُوبِهِم مَّرَضٌ غَرَّ هَـٰۤؤُلَاۤءِ دِینُهُمۡۗ وَمَن یَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿49﴾
याद करो जब कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है, कह रहे थे, \"इन लोगों को तो इनके धर्म ने धोखे में डाल रखा है।\" हालाँकि जो अल्लाह पर भरोसा रखता है, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
وَلَوۡ تَرَىٰۤ إِذۡ یَتَوَفَّى ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ یَضۡرِبُونَ وُجُوهَهُمۡ وَأَدۡبَـٰرَهُمۡ وَذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلۡحَرِیقِ ﴿50﴾
क्या ही अच्छा होता कि तुम देखते जब फ़रिश्ते इनकार करनेवालों के प्राण ग्रस्त करते हैं! वे उनके चहरों और उनकी पीठों पर मारते जाते हैं कि \"लो अब जलने की यातना मज़ा चखो।\" (तो उनकी दुर्दशा का अन्दाजा कर सकते)
ذَ ٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتۡ أَیۡدِیكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَیۡسَ بِظَلَّـٰمࣲ لِّلۡعَبِیدِ ﴿51﴾
यह तो उसी का बदला है जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजा और यह कि अल्लाह अपने बन्दों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता
كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَفَرُوا۟ بِـَٔایَـٰتِ ٱللَّهِ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِیࣱّ شَدِیدُ ٱلۡعِقَابِ ﴿52﴾
इनके साथ वैसा ही मामला पेश आया जैसा फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों के साथ पेश आया। उन्होंने अल्लाह की आयतों का इनकार किया तो अल्लाह ने उनके गुनाहों के कारण उन्हें पकड़ लिया। निस्संदेह अल्लाह शक्तिशाली, कठोर यातना देनेवाला है
ذَ ٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ لَمۡ یَكُ مُغَیِّرࣰا نِّعۡمَةً أَنۡعَمَهَا عَلَىٰ قَوۡمٍ حَتَّىٰ یُغَیِّرُوا۟ مَا بِأَنفُسِهِمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ سَمِیعٌ عَلِیمࣱ ﴿53﴾
यह इसलिए हुआ कि अल्लाह उस उदार अनुग्रह (नेमत) को, जो उसने किसी क़ौम पर किया हो, बदलनेवाला नहीं हैं, जब तक कि लोग उस चीज़ को न बदल डालें, जिसका सम्बन्ध स्वयं उनसे है। और यह कि अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है
كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَذَّبُوا۟ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ فَأَهۡلَكۡنَـٰهُم بِذُنُوبِهِمۡ وَأَغۡرَقۡنَاۤ ءَالَ فِرۡعَوۡنَۚ وَكُلࣱّ كَانُوا۟ ظَـٰلِمِینَ ﴿54﴾
जैसे फ़िरऔनियों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने अपने रब की आयतों को झुठलाया तो हमने उन्हें उनके गुनाहों के बदले में विनष्ट कर दिया और फ़िरऔनियों को डूबो दिया। ये सभी अत्याचारी थे
إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَاۤبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ فَهُمۡ لَا یُؤۡمِنُونَ ﴿55﴾
निश्चय ही, सबसे बुरे प्राणी अल्लाह की स्पष्ट में वे लोग है, जिन्होंने इनकार किया। फिर वे ईमान नहीं लाते
ٱلَّذِینَ عَـٰهَدتَّ مِنۡهُمۡ ثُمَّ یَنقُضُونَ عَهۡدَهُمۡ فِی كُلِّ مَرَّةࣲ وَهُمۡ لَا یَتَّقُونَ ﴿56﴾
जिनसे तुमने वचन लिया वे फिर हर बार अपने वचन को भंग कर देते है और वे डर नहीं रखते
فَإِمَّا تَثۡقَفَنَّهُمۡ فِی ٱلۡحَرۡبِ فَشَرِّدۡ بِهِم مَّنۡ خَلۡفَهُمۡ لَعَلَّهُمۡ یَذَّكَّرُونَ ﴿57﴾
अतः यदि युद्ध में तुम उनपर क़ाबू पाओ, तो उनके साथ इस तरह पेश आओ कि उनके पीछेवाले भी भाग खड़े हों, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें
وَإِمَّا تَخَافَنَّ مِن قَوۡمٍ خِیَانَةࣰ فَٱنۢبِذۡ إِلَیۡهِمۡ عَلَىٰ سَوَاۤءٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا یُحِبُّ ٱلۡخَاۤىِٕنِینَ ﴿58﴾
और यदि तुम्हें किसी क़ौम से विश्वासघात की आशंका हो, तो तुम भी उसी प्रकार ऐसे लोगों के साथ हुई संधि को खुल्लम-खुल्ला उनके आगे फेंक दो। निश्चय ही अल्लाह को विश्वासघात करनेवाले प्रिय नहीं
وَلَا یَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ سَبَقُوۤا۟ۚ إِنَّهُمۡ لَا یُعۡجِزُونَ ﴿59﴾
इनकार करनेवाले यह न समझे कि वे आगे निकल गए। वे क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते
وَأَعِدُّوا۟ لَهُم مَّا ٱسۡتَطَعۡتُم مِّن قُوَّةࣲ وَمِن رِّبَاطِ ٱلۡخَیۡلِ تُرۡهِبُونَ بِهِۦ عَدُوَّ ٱللَّهِ وَعَدُوَّكُمۡ وَءَاخَرِینَ مِن دُونِهِمۡ لَا تَعۡلَمُونَهُمُ ٱللَّهُ یَعۡلَمُهُمۡۚ وَمَا تُنفِقُوا۟ مِن شَیۡءࣲ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ یُوَفَّ إِلَیۡكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تُظۡلَمُونَ ﴿60﴾
और जो भी तुमसे हो सके, उनके लिए बल और बँधे घोड़े तैयार रखो, ताकि इसके द्वारा अल्लाह के शत्रुओं और अपने शत्रुओं और इनके अतिरिक्त उन दूसरे लोगों को भी भयभीत कर दो जिन्हें तुम नहीं जानते। अल्लाह उनको जानता है और अल्लाह के मार्ग में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगे, वह तुम्हें पूरा-पूरा चुका दिया जाएगा और तुम्हारे साथ कदापि अन्याय न होगा
۞ وَإِن جَنَحُوا۟ لِلسَّلۡمِ فَٱجۡنَحۡ لَهَا وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿61﴾
और यदि वे संधि और सलामती की ओर झुकें तो तुम भी इसके लिए झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा रखो। निस्संदेह, वह सब कुछ सुनता, जानता है
وَإِن یُرِیدُوۤا۟ أَن یَخۡدَعُوكَ فَإِنَّ حَسۡبَكَ ٱللَّهُۚ هُوَ ٱلَّذِیۤ أَیَّدَكَ بِنَصۡرِهِۦ وَبِٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿62﴾
और यदि वे यह चाहें कि तुम्हें धोखा दें तो तुम्हारे लिए अल्लाह काफ़ी है। वही तो है जिसने तुम्हें अपनी सहायता से और मोमिनों के द्वारा शक्ति प्रदान की
وَأَلَّفَ بَیۡنَ قُلُوبِهِمۡۚ لَوۡ أَنفَقۡتَ مَا فِی ٱلۡأَرۡضِ جَمِیعࣰا مَّاۤ أَلَّفۡتَ بَیۡنَ قُلُوبِهِمۡ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ أَلَّفَ بَیۡنَهُمۡۚ إِنَّهُۥ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿63﴾
और उनके दिल आपस में एक-दूसरे से जोड़ दिए। यदि तुम धरती में जो कुछ है, सब खर्च कर डालते तो भी उनके दिलों को परस्पर जोड़ न सकते, किन्तु अल्लाह ने उन्हें परस्पर जोड़ दिया। निश्चय ही वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّبِیُّ حَسۡبُكَ ٱللَّهُ وَمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿64﴾
ऐ नबी! तुम्हारे लिए अल्लाह और तुम्हारे ईमानवाले अनुयायी ही काफ़ी है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّبِیُّ حَرِّضِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ عَلَى ٱلۡقِتَالِۚ إِن یَكُن مِّنكُمۡ عِشۡرُونَ صَـٰبِرُونَ یَغۡلِبُوا۟ مِا۟ئَتَیۡنِۚ وَإِن یَكُن مِّنكُم مِّا۟ئَةࣱ یَغۡلِبُوۤا۟ أَلۡفࣰا مِّنَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ بِأَنَّهُمۡ قَوۡمࣱ لَّا یَفۡقَهُونَ ﴿65﴾
ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो। यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुमसे से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग है
ٱلۡـَٔـٰنَ خَفَّفَ ٱللَّهُ عَنكُمۡ وَعَلِمَ أَنَّ فِیكُمۡ ضَعۡفࣰاۚ فَإِن یَكُن مِّنكُم مِّا۟ئَةࣱ صَابِرَةࣱ یَغۡلِبُوا۟ مِا۟ئَتَیۡنِۚ وَإِن یَكُن مِّنكُمۡ أَلۡفࣱ یَغۡلِبُوۤا۟ أَلۡفَیۡنِ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِینَ ﴿66﴾
अब अल्लाह ने तुम्हारे बोझ हल्का कर दिया और उसे मालूम हुआ कि तुममें कुछ कमज़ोरी है। तो यदि तुम्हारे सौ आदमी जमे रहनेवाले होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी रहेंगे और यदि तुममें से ऐसे हजार होंगे तो अल्लाह के हुक्म से वे दो हज़ार पर प्रभावी रहेंगे। अल्लाह तो उन्ही लोगों के साथ है जो जमे रहते है
مَا كَانَ لِنَبِیٍّ أَن یَكُونَ لَهُۥۤ أَسۡرَىٰ حَتَّىٰ یُثۡخِنَ فِی ٱلۡأَرۡضِۚ تُرِیدُونَ عَرَضَ ٱلدُّنۡیَا وَٱللَّهُ یُرِیدُ ٱلۡـَٔاخِرَةَۗ وَٱللَّهُ عَزِیزٌ حَكِیمࣱ ﴿67﴾
किसी नबी के लिए यह उचित नहीं कि उसके पास क़ैदी हो यहाँ तक की वह धरती में रक्तपात करे। तुम लोग संसार की सामग्री चाहते हो, जबकि अल्लाह आख़िरत चाहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
لَّوۡلَا كِتَـٰبࣱ مِّنَ ٱللَّهِ سَبَقَ لَمَسَّكُمۡ فِیمَاۤ أَخَذۡتُمۡ عَذَابٌ عَظِیمࣱ ﴿68﴾
यदि अल्लाह का लिखा पहले से मौजूद न होता, तो जो कुछ नीति तुमने अपनाई है उसपर तुम्हें कोई बड़ी यातना आ लेती
فَكُلُوا۟ مِمَّا غَنِمۡتُمۡ حَلَـٰلࣰا طَیِّبࣰاۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿69﴾
अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّبِیُّ قُل لِّمَن فِیۤ أَیۡدِیكُم مِّنَ ٱلۡأَسۡرَىٰۤ إِن یَعۡلَمِ ٱللَّهُ فِی قُلُوبِكُمۡ خَیۡرࣰا یُؤۡتِكُمۡ خَیۡرࣰا مِّمَّاۤ أُخِذَ مِنكُمۡ وَیَغۡفِرۡ لَكُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورࣱ رَّحِیمࣱ ﴿70﴾
ऐ नबी! जो क़ैदी तुम्हारे क़ब्जें में है, उनसे कह दो, \"यदि अल्लाह ने यह जान लिया कि तुम्हारे दिलों में कुछ भलाई है तो वह तुम्हें उससे कहीं उत्तम प्रदान करेगा, जो तुम से छिन गया है और तुम्हें क्षमा कर देगा। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।\"
وَإِن یُرِیدُوا۟ خِیَانَتَكَ فَقَدۡ خَانُوا۟ ٱللَّهَ مِن قَبۡلُ فَأَمۡكَنَ مِنۡهُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِیمٌ حَكِیمٌ ﴿71﴾
किन्तुम यदि वे तुम्हारे साथ विश्वासघात करना चाहेंगे, तो इससे पहले वे अल्लाह के साथ विश्वासघात कर चुके है। तो उसने तुम्हें उनपर अधिकार दे दिया। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, बड़ा तत्वदर्शी है
إِنَّ ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ بِأَمۡوَ ٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِینَ ءَاوَوا۟ وَّنَصَرُوۤا۟ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِیَاۤءُ بَعۡضࣲۚ وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَلَمۡ یُهَاجِرُوا۟ مَا لَكُم مِّن وَلَـٰیَتِهِم مِّن شَیۡءٍ حَتَّىٰ یُهَاجِرُوا۟ۚ وَإِنِ ٱسۡتَنصَرُوكُمۡ فِی ٱلدِّینِ فَعَلَیۡكُمُ ٱلنَّصۡرُ إِلَّا عَلَىٰ قَوۡمِۭ بَیۡنَكُمۡ وَبَیۡنَهُم مِّیثَـٰقࣱۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِیرࣱ ﴿72﴾
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की, वही लोग परस्पर एक-दूसरे के संरक्षक मित्र है। रहे वे लोग जो ईमान लाए, किन्तु उन्होंने हिजरत नहीं की, उनसे तुम्हारा संरक्षण और मित्रता का कोई सम्बन्ध नहीं है, जब तक कि वे हिजरत न करें, किन्तु यदि वे धर्म के मामले में तुमसे सहायता माँगे तो तुमपर अनिवार्य है कि सहायता करो, सिवाय इसके कि सहायता किसी ऐसी क़ौम के मुक़ाबले में हो जिससे तुम्हारी कोई संधि हो। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे देखता है
وَٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِیَاۤءُ بَعۡضٍۚ إِلَّا تَفۡعَلُوهُ تَكُن فِتۡنَةࣱ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَفَسَادࣱ كَبِیرࣱ ﴿73﴾
जो इनकार करनेवाले लोग है, वे आपस में एक-दूसरे के मित्र और सहायक है। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो धरती में फ़ितना और बड़ा फ़साद फैलेगा
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِینَ ءَاوَوا۟ وَّنَصَرُوۤا۟ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقࣰّاۚ لَّهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَرِزۡقࣱ كَرِیمࣱ ﴿74﴾
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की वही सच्चे मोमिन हैं। उनके क्षमा और सम्मानित - उत्तम आजीविका है
وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ مِنۢ بَعۡدُ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ مَعَكُمۡ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ مِنكُمۡۚ وَأُو۟لُوا۟ ٱلۡأَرۡحَامِ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلَىٰ بِبَعۡضࣲ فِی كِتَـٰبِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِیمُۢ ﴿75﴾
और जो लोग बाद में ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया तो ऐसे लोग भी तुम में ही से हैं। किन्तु अल्लाह की किताब मे ख़ून के रिश्तेदार एक-दूसरे के ज़्यादा हक़दार है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है