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Surah The Believers [Al-Mumenoon] in Hindi
قَدۡ أَفۡلَحَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ﴿1﴾
अलबत्ता वह ईमान लाने वाले रस्तगार हुए
सफल हो गए ईमानवाले,
ٱلَّذِینَ هُمۡ فِی صَلَاتِهِمۡ خَـٰشِعُونَ ﴿2﴾
जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं
जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता अपनाते है;
وَٱلَّذِینَ هُمۡ عَنِ ٱللَّغۡوِ مُعۡرِضُونَ ﴿3﴾
और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं
और जो व्यर्थ बातों से पहलू बचाते है;
وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِلزَّكَوٰةِ فَـٰعِلُونَ ﴿4﴾
और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं
और जो ज़कात अदा करते है;
وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِفُرُوجِهِمۡ حَـٰفِظُونَ ﴿5﴾
और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं
और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है-
إِلَّا عَلَىٰۤ أَزۡوَ ٰجِهِمۡ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَیۡمَـٰنُهُمۡ فَإِنَّهُمۡ غَیۡرُ مَلُومِینَ ﴿6﴾
मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता
सिवाय इस सूरत के कि अपनी पत्नि यों या लौंडियों के पास जाएँ कि इसपर वे निन्दनीय नहीं है
فَمَنِ ٱبۡتَغَىٰ وَرَاۤءَ ذَ ٰلِكَ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡعَادُونَ ﴿7﴾
पस जो शख्स उसके सिवा किसी और तरीके से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं
परन्तु जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा उल्लंघन करनेवाले है।-
وَٱلَّذِینَ هُمۡ لِأَمَـٰنَـٰتِهِمۡ وَعَهۡدِهِمۡ رَ ٰعُونَ ﴿8﴾
और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं
और जो अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते है;
وَٱلَّذِینَ هُمۡ عَلَىٰ صَلَوَ ٰتِهِمۡ یُحَافِظُونَ ﴿9﴾
और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं
और जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं;
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡوَ ٰرِثُونَ ﴿10﴾
(आदमी की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस है
वही वारिस होने वाले है
ٱلَّذِینَ یَرِثُونَ ٱلۡفِرۡدَوۡسَ هُمۡ فِیهَا خَـٰلِدُونَ ﴿11﴾
जो बेहश्त बरी का हिस्सा लेंगे (और) यही लोग इसमें हमेशा (जिन्दा) रहेंगे
जो फ़िरदौस की विरासत पाएँगे। वे उसमें सदैव रहेंगे
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَـٰنَ مِن سُلَـٰلَةࣲ مِّن طِینࣲ ﴿12﴾
और हमने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया
हमने मनुष्य को मिट्टी के सत से बनाया
ثُمَّ جَعَلۡنَـٰهُ نُطۡفَةࣰ فِی قَرَارࣲ مَّكِینࣲ ﴿13﴾
फिर हमने उसको एक महफूज़ जगह (औरत के रहम में) नुत्फ़ा बना कर रखा
फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बूँद बनाकर रखा
ثُمَّ خَلَقۡنَا ٱلنُّطۡفَةَ عَلَقَةࣰ فَخَلَقۡنَا ٱلۡعَلَقَةَ مُضۡغَةࣰ فَخَلَقۡنَا ٱلۡمُضۡغَةَ عِظَـٰمࣰا فَكَسَوۡنَا ٱلۡعِظَـٰمَ لَحۡمࣰا ثُمَّ أَنشَأۡنَـٰهُ خَلۡقًا ءَاخَرَۚ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ أَحۡسَنُ ٱلۡخَـٰلِقِینَ ﴿14﴾
फिर हम ही ने नुतफ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया फिर हम ही ने मुनजमिद खून को गोश्त का लोथड़ा बनाया हम ही ने लोथडे क़ी हड्डियाँ बनायीं फिर हम ही ने हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया फिर हम ही ने उसको (रुह डालकर) एक दूसरी सूरत में पैदा किया तो (सुबहान अल्लाह) ख़ुदा बा बरकत है जो सब बनाने वालो से बेहतर है
फिर हमने उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया; फिर हमने उस लोथड़े को बोटी का रूप दिया; फिर हमने उन हड्डियों पर मांस चढाया; फिर हमने उसे एक दूसरा ही सर्जन रूप देकर खड़ा किया। अतः बहुत ही बरकतवाला है अल्लाह, सबसे उत्तम स्रष्टा!
ثُمَّ إِنَّكُم بَعۡدَ ذَ ٰلِكَ لَمَیِّتُونَ ﴿15﴾
फिर इसके बाद यक़ीनन तुम सब लोगों को (एक न एक दिन) मरना है
फिर तुम अवश्य मरनेवाले हो
ثُمَّ إِنَّكُمۡ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ تُبۡعَثُونَ ﴿16﴾
इसके बाद कयामत के दिन तुम सब के सब कब्रों से उठाए जाओगे
फिर क़ियामत के दिन तुम निश्चय ही उठाए जाओगे
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا فَوۡقَكُمۡ سَبۡعَ طَرَاۤىِٕقَ وَمَا كُنَّا عَنِ ٱلۡخَلۡقِ غَـٰفِلِینَ ﴿17﴾
और हम ही ने तुम्हारे ऊपर तह ब तह आसमान बनाए और हम मख़लूक़ात से बेखबर नही है
और हमने तुम्हारे ऊपर सात रास्ते बनाए है। और हम सृष्टि-कार्य से ग़ाफ़िल नहीं
وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءَۢ بِقَدَرࣲ فَأَسۡكَنَّـٰهُ فِی ٱلۡأَرۡضِۖ وَإِنَّا عَلَىٰ ذَهَابِۭ بِهِۦ لَقَـٰدِرُونَ ﴿18﴾
और हमने आसमान से एक अन्दाजे क़े साथ पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में (हसब मसलेहत) ठहराए रखा और हम तो यक़ीनन उसके ग़ाएब कर देने पर भी क़ाबू रखते है
और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है
فَأَنشَأۡنَا لَكُم بِهِۦ جَنَّـٰتࣲ مِّن نَّخِیلࣲ وَأَعۡنَـٰبࣲ لَّكُمۡ فِیهَا فَوَ ٰكِهُ كَثِیرَةࣱ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ﴿19﴾
फिर हमने उस पानी से तुम्हारे वास्ते खजूरों और अंगूरों के बाग़ात बनाए कि उनमें तुम्हारे वास्ते (तरह तरह के) बहुतेरे मेवे (पैदा होते) हैं उनमें से बाज़ को तुम खाते हो
फिर हमने उसके द्वारा तुम्हारे लिए खजूरो और अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फल है (जिनमें तुम्हारे लिए कितने ही लाभ है) और उनमें से तुम खाते हो
وَشَجَرَةࣰ تَخۡرُجُ مِن طُورِ سَیۡنَاۤءَ تَنۢبُتُ بِٱلدُّهۡنِ وَصِبۡغࣲ لِّلۡـَٔاكِلِینَ ﴿20﴾
और (हम ही ने ज़ैतून का) दरख्त (पैदा किया) जो तूरे सैना (पहाड़) में (कसरत से) पैदा होता है जिससे तेल भी निकलता है और खाने वालों के लिए सालन भी है
और वह वृक्ष भी जो सैना पर्वत से निकलता है, जो तेल और खानेवालों के लिए सालन लिए हुए उगता है
وَإِنَّ لَكُمۡ فِی ٱلۡأَنۡعَـٰمِ لَعِبۡرَةࣰۖ نُّسۡقِیكُم مِّمَّا فِی بُطُونِهَا وَلَكُمۡ فِیهَا مَنَـٰفِعُ كَثِیرَةࣱ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ﴿21﴾
और उसमें भी शक नहीं कि तुम्हारे वास्ते चौपायों में भी इबरत की जगह है और (ख़ाक बला) जो कुछ उनके पेट में है उससे हम तुमको दूध पिलाते हैं और जानवरों में तो तुम्हारे और भी बहुत से फायदे हैं और उन्हीं में से बाज़ तुम खाते हो
और निश्चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते है। औऱ तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे है और उन्हें तुम खाते भी हो
وَعَلَیۡهَا وَعَلَى ٱلۡفُلۡكِ تُحۡمَلُونَ ﴿22﴾
और उन्हें जानवरों और कश्तियों पर चढे चढ़े फिरते भी हो
और उनपर और नौकाओं पर तुम सवार होते हो
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَقَالَ یَـٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿23﴾
और हमने नूह को उनकी काैम के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा तो नूह ने (उनसे) कहा ऐ मेरी क़ौम खुदा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे) डरते नहीं हो
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा तो उसने कहा, \"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा और कोई इष्ट-पूज्य नहीं है तो क्या तुम डर नहीं रखते?\"
فَقَالَ ٱلۡمَلَؤُا۟ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ مِن قَوۡمِهِۦ مَا هَـٰذَاۤ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُرِیدُ أَن یَتَفَضَّلَ عَلَیۡكُمۡ وَلَوۡ شَاۤءَ ٱللَّهُ لَأَنزَلَ مَلَـٰۤىِٕكَةࣰ مَّا سَمِعۡنَا بِهَـٰذَا فِیۤ ءَابَاۤىِٕنَا ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿24﴾
तो उनकी क़ौम के सरदारों ने जो काफिर थे कहा कि ये भी तो बस (आख़िर) तुम्हारे ही सा आदमी है (मगर) इसकी तमन्ना ये है कि तुम पर बुर्जुगी हासिल करे और अगर खुदा (पैग़म्बर ही न भेजना) चाहता तो फरिश्तों को नाज़िल करता हम ने तो (भाई) ऐसी बात अपने अगले बाप दादाओं में (भी होती) नहीं सुनी
इसपर उनकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, \"यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। चाहता है कि तुमपर श्रेष्ठता प्राप्त करे।\"\"अल्लाह यदि चाहता तो फ़रिश्ते उतार देता। यह बात तो हमने अपने अगले बाप-दादा के समयों से सुनी ही नहीं
إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلُۢ بِهِۦ جِنَّةࣱ فَتَرَبَّصُوا۟ بِهِۦ حَتَّىٰ حِینࣲ ﴿25﴾
हो न हों बस ये एक आदमी है जिसे जुनून हो गया है ग़रज़ तुम लोग एक (ख़ास) वक्त तक (इसके अन्जाम का) इन्तेज़ार देखो
यह तो बस एक उन्मादग्रस्त व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो।\"
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی بِمَا كَذَّبُونِ ﴿26﴾
नूह ने (ये बातें सुनकर) दुआ की ऐ मेरे पलने वाले मेरी मदद कर
उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! इन्होंने मुझे जो झुठलाया है, इसपर तू मेरी सहायता कर।\"
فَأَوۡحَیۡنَاۤ إِلَیۡهِ أَنِ ٱصۡنَعِ ٱلۡفُلۡكَ بِأَعۡیُنِنَا وَوَحۡیِنَا فَإِذَا جَاۤءَ أَمۡرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ فَٱسۡلُكۡ فِیهَا مِن كُلࣲّ زَوۡجَیۡنِ ٱثۡنَیۡنِ وَأَهۡلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَیۡهِ ٱلۡقَوۡلُ مِنۡهُمۡۖ وَلَا تُخَـٰطِبۡنِی فِی ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤا۟ إِنَّهُم مُّغۡرَقُونَ ﴿27﴾
इस वजह से कि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया तो हमने नूह के पास 'वही' भेजी कि तुम हमारे सामने हमारे हुक्म के मुताबिक़ कश्ती बनाना शुरु करो फिर जब कल हमारा अज़ाब आ जाए और तन्नूर (से पानी) उबलने लगे तो तुम उसमें हर किस्म (के जानवरों में) से (नर मादा) दो दो का जोड़ा और अपने लड़के बालों को बिठा लो मगर उन में से जिसकी निस्बत (ग़रक़ होने का) पहले से हमारा हुक्म हो चुका है (उन्हें छोड़ दो) और जिन लोगों ने (हमारे हुकम से) सरकशी की है उनके बारे में मुझसे कुछ कहना (सुनना) नहीं क्योंकि ये लोग यकीनन डूबने वाले है
तब हमने उसकी ओर प्रकाशना की कि \"हमारी आँखों के सामने और हमारी प्रकाशना के अनुसार नौका बना और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तूफ़ान उमड़ पड़े तो प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख ले और अपने लोगों को भी, सिवाय उनके जिनके विरुद्ध पहले फ़ैसला हो चुका है। और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करना। वे तो डूबकर रहेंगे
فَإِذَا ٱسۡتَوَیۡتَ أَنتَ وَمَن مَّعَكَ عَلَى ٱلۡفُلۡكِ فَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِی نَجَّىٰنَا مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿28﴾
ग़रज़ जब तुम अपने हमराहियों के साथ कश्ती पर दुरुस्त बैठो तो कहो तमाम हम्दो सना की सज़ावार खुदा ही है जिसने हमको ज़ालिम लोगों से नजात दी
फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी तो कह, प्रशंसा है अल्लाह की, जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया
وَقُل رَّبِّ أَنزِلۡنِی مُنزَلࣰا مُّبَارَكࣰا وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلۡمُنزِلِینَ ﴿29﴾
और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (दरख्त के पानी की) बा बरकत जगह में उतारना और तू तो सब उतारने वालो ंसे बेहतर है
और कह, ऐ मेरे रब! मुझे बरकतवाली जगह उतार। और तू सबसे अच्छा मेज़बान है।\"
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَـٰتࣲ وَإِن كُنَّا لَمُبۡتَلِینَ ﴿30﴾
इसमें शक नहीं कि हसमें (हमारी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं और हमको तो बस उनका इम्तिहान लेना मंज़ूर था
निस्संदेह इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं और परीक्षा तो हम करते ही है
ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قَرۡنًا ءَاخَرِینَ ﴿31﴾
फिर हमने उनके बाद एक और क़ौम को (समूद) को पैदा किया
फिर उनके पश्चात हमने एक दूसरी नस्ल को उठाया;
فَأَرۡسَلۡنَا فِیهِمۡ رَسُولࣰا مِّنۡهُمۡ أَنِ ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُۥۤۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿32﴾
और हमने उनही में से (एक आदमी सालेह को) रसूल बनाकर उन लोगों में भेजा (और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा) कि खुदा की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे डरते नही हो)
और उनमें हमने स्वयं उन्हीं में से एक रसूल भेजा कि \"अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। तो क्या तुम डर नहीं रखते?\"
وَقَالَ ٱلۡمَلَأُ مِن قَوۡمِهِ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِلِقَاۤءِ ٱلۡـَٔاخِرَةِ وَأَتۡرَفۡنَـٰهُمۡ فِی ٱلۡحَیَوٰةِ ٱلدُّنۡیَا مَا هَـٰذَاۤ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یَأۡكُلُ مِمَّا تَأۡكُلُونَ مِنۡهُ وَیَشۡرَبُ مِمَّا تَشۡرَبُونَ ﴿33﴾
और उनकी क़ौम के चन्द सरदारों ने जो काफिर थे और (रोज़) आख़िरत की हाज़िरी को भी झुठलाते थे और दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी में हमने उन्हें शहवत भी दे रखी थी आपस में कहने लगे (अरे) ये तो बस तुम्हारा ही सा आदमी है जो चीज़े तुम खाते वही ये भी खाता है और जो चीज़े तुम पीते हो उन्हीं में से ये भी पीता है
उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया और आख़िरत के मिलन को झूठलाया और जिन्हें हमने सांसारिक जीवन में सुख प्रदान किया था, कहने लगे, \"यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। जो कुछ तुम खाते हो, वही यह भी खाता है और जो कुछ तुम पीते हो, वही यह भी पीता है
وَلَىِٕنۡ أَطَعۡتُم بَشَرࣰا مِّثۡلَكُمۡ إِنَّكُمۡ إِذࣰا لَّخَـٰسِرُونَ ﴿34﴾
और अगर कहीं तुम लोगों ने अपने ही से आदमी की इताअत कर ली तो तुम ज़रुर घाटे में रहोगे
यदि तुम अपने ही जैसे एक मनुष्य के आज्ञाकारी हुए तो निश्चय ही तुम घाटे में पड़ गए
أَیَعِدُكُمۡ أَنَّكُمۡ إِذَا مِتُّمۡ وَكُنتُمۡ تُرَابࣰا وَعِظَـٰمًا أَنَّكُم مُّخۡرَجُونَ ﴿35﴾
क्या ये शख्स तुमसे वायदा करता है कि जब तुम मर जाओगे और (मर कर) सिर्फ मिट्टी और हड्डियाँ (बनकर) रह जाओगे तो तुम दुबारा ज़िन्दा करके कब्रों से निकाले जाओगे (है है अरे) जिसका तुमसे वायदा किया जाता है
क्या यह तुमसे वादा करता है कि जब तुम मरकर मिट्टी और हड़्डियाँ होकर रह जाओगे तो तुम निकाले जाओगे?
۞ هَیۡهَاتَ هَیۡهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ ﴿36﴾
बिल्कुल (अक्ल से) दूर और क़यास से बईद है (दो बार ज़िन्दा होना कैसा) बस यही तुम्हारी दुनिया की ज़िन्दगी है
दूर की बात है, बहुत दूर की, जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है!
إِنۡ هِیَ إِلَّا حَیَاتُنَا ٱلدُّنۡیَا نَمُوتُ وَنَحۡیَا وَمَا نَحۡنُ بِمَبۡعُوثِینَ ﴿37﴾
कि हम मरते भी हैं और जीते भी हैं और हम तो फिर (दुबारा) उठाए नहीं जाएँगे हो न हो ये (सालेह) वह शख्स है जिसने खुदा पर झूठ मूठ बोहतान बाँधा है
वह तो बस हमारा सांसारिक जीवन ही है। (यहीं) हम मरते और जीते है। हम कोई दोबारा उठाए जानेवाले नहीं है
إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبࣰا وَمَا نَحۡنُ لَهُۥ بِمُؤۡمِنِینَ ﴿38﴾
और हम तो कभी उस पर ईमान लाने वाले नहीं (ये हालत देखकर) सालेह ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले चूँकि इन लोगों ने मुझे झुठला दिया
वह तो बस एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अल्लाह पर झूठ घड़ा है। हम उसे कदापि माननेवाले नहीं।\"
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِی بِمَا كَذَّبُونِ ﴿39﴾
तू मेरी मदद कर ख़ुदा ने फरमाया (एक ज़रा ठहर जाओ)
उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! उन्होंने जो मुझे झुठलाया, उसपर तू मेरी सहायता कर।\"
قَالَ عَمَّا قَلِیلࣲ لَّیُصۡبِحُنَّ نَـٰدِمِینَ ﴿40﴾
अनक़रीब ही ये लोग नादिम व परेशान हो जाएँगे
कहा, \"शीघ्र ही वे पछताकर रहेंगे।\"
فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّیۡحَةُ بِٱلۡحَقِّ فَجَعَلۡنَـٰهُمۡ غُثَاۤءࣰۚ فَبُعۡدࣰا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿41﴾
ग़रज़ उन्हें यक़ीनन एक सख्त चिंघाड़ ने ले डाला तो हमने उन्हें कूडे क़रकट (का ढेर) बना छोड़ा पस ज़ालिमों पर (खुदा की) लानत है
फिर घटित होनेवाली बात के अनुसार उन्हें एक प्रचंड आवाज़ ने आ लिया और हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बनाकर रख दिया। अतः फिटकार है, ऐसे अत्याचारी लोगों पर!
ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قُرُونًا ءَاخَرِینَ ﴿42﴾
फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमों को पैदा किया
फिर हमने उनके पश्चात दूसरी नस्लों को उठाया
مَا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا یَسۡتَـٔۡخِرُونَ ﴿43﴾
कोई उम्मत अपने वक्त मुर्करर से न आगे बढ़ सकती है न (उससे) पीछे हट सकती है
कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है
ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا تَتۡرَاۖ كُلَّ مَا جَاۤءَ أُمَّةࣰ رَّسُولُهَا كَذَّبُوهُۖ فَأَتۡبَعۡنَا بَعۡضَهُم بَعۡضࣰا وَجَعَلۡنَـٰهُمۡ أَحَادِیثَۚ فَبُعۡدࣰا لِّقَوۡمࣲ لَّا یُؤۡمِنُونَ ﴿44﴾
फिर हमने लगातार बहुत से पैग़म्बर भेजे (मगर) जब जब किसी उम्मत का पैग़म्बर उन के पास आता तो ये लोग उसको झुठलाते थे तो हम थी (आगे पीछे) एक को दूसरे के बाद (हलाक) करते गए और हमने उन्हें (नेस्त व नाबूद करके) अफसाना बना दिया तो ईमान न लाने वालो पर ख़ुदा की लानत है
फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ
ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَـٰرُونَ بِـَٔایَـٰتِنَا وَسُلۡطَـٰنࣲ مُّبِینٍ ﴿45﴾
फिर हमने मूसा और उनके भाई हारुन को अपनी निशानियों और वाज़ेए व रौशन दलील के साथ फिरऔन और उसके दरबार के उमराओ के पास रसूल बना कर भेजा
फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा।
إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِی۟هِۦ فَٱسۡتَكۡبَرُوا۟ وَكَانُوا۟ قَوۡمًا عَالِینَ ﴿46﴾
तो उन लोगो ने शेख़ी की और वह थे ही बड़े सरकश लोग
किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग
فَقَالُوۤا۟ أَنُؤۡمِنُ لِبَشَرَیۡنِ مِثۡلِنَا وَقَوۡمُهُمَا لَنَا عَـٰبِدُونَ ﴿47﴾
आपस मे कहने लगे क्या हम अपने ही ऐसे दो आदमियों पर ईमान ले आएँ हालाँकि इन दोनों की (क़ौम की) क़ौम हमारी ख़िदमत गारी करती है
तो व कहने लगे, \"क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?\"
فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُوا۟ مِنَ ٱلۡمُهۡلَكِینَ ﴿48﴾
गरज़ उन लोगों ने इन दोनों को झुठलाया तो आख़िर ये सब के सब हलाक कर डाले गए
अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ لَعَلَّهُمۡ یَهۡتَدُونَ ﴿49﴾
और हमने मूसा को किताब (तौरैत) इसलिए अता की थी कि ये लोग हिदायत पाएँ
और हमने मूसा को किताब प्रदान की, ताकि वे लोग मार्ग पा सकें
وَجَعَلۡنَا ٱبۡنَ مَرۡیَمَ وَأُمَّهُۥۤ ءَایَةࣰ وَءَاوَیۡنَـٰهُمَاۤ إِلَىٰ رَبۡوَةࣲ ذَاتِ قَرَارࣲ وَمَعِینࣲ ﴿50﴾
और हमने मरियम के बेटे (ईसा) और उनकी माँ को (अपनी कुदरत की निशानी बनाया था) और उन दोनों को हमने एक ऊँची हमवार ठहरने के क़ाबिल चश्में वाली ज़मीन पर (रहने की) जगह दी
और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतबाली ऊँची जगह शरण दी,
یَـٰۤأَیُّهَا ٱلرُّسُلُ كُلُوا۟ مِنَ ٱلطَّیِّبَـٰتِ وَٱعۡمَلُوا۟ صَـٰلِحًاۖ إِنِّی بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِیمࣱ ﴿51﴾
और मेरा आम हुक्म था कि ऐ (मेरे पैग़म्बर) पाक व पाकीज़ा चीज़ें खाओ और अच्छे अच्छे काम करो (क्योंकि) तुम जो कुछ करते हो मैं उससे बख़ूबी वाक़िफ हूँ
\"ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़े खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ
وَإِنَّ هَـٰذِهِۦۤ أُمَّتُكُمۡ أُمَّةࣰ وَ ٰحِدَةࣰ وَأَنَا۠ رَبُّكُمۡ فَٱتَّقُونِ ﴿52﴾
(लोगों ये दीन इस्लाम) तुम सबका मज़हब एक ही मज़हब है और मै तुम लोगों का परवरदिगार हूँ
और निश्चय ही यह तुम्हारा समुदाय, एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।\"
فَتَقَطَّعُوۤا۟ أَمۡرَهُم بَیۡنَهُمۡ زُبُرࣰاۖ كُلُّ حِزۡبِۭ بِمَا لَدَیۡهِمۡ فَرِحُونَ ﴿53﴾
तो बस मुझी से डरते रहो फिर लोगों ने अपने काम (में एख़तिलाफ करके उस) को टुकड़े टुकड़े कर डाला हर गिरो जो कुछ उसके पास है उसी में निहाल निहाल है
किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर खुश है, जो कुछ उसके पास है
فَذَرۡهُمۡ فِی غَمۡرَتِهِمۡ حَتَّىٰ حِینٍ ﴿54﴾
तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उन की ग़फलत में एक ख़ास वक्त तक (पड़ा) छोड़ दो
अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो
أَیَحۡسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُم بِهِۦ مِن مَّالࣲ وَبَنِینَ ﴿55﴾
क्या ये लोग ये ख्याल करते है कि हम जो उन्हें माल और औलाद में तरक्क़ी दे रहे है तो हम उनके साथ भलाईयाँ करने में जल्दी कर रहे है
क्या वे समझते है कि हम जो उनकी धन और सन्तान से सहायता किए जा रहे है,
نُسَارِعُ لَهُمۡ فِی ٱلۡخَیۡرَ ٰتِۚ بَل لَّا یَشۡعُرُونَ ﴿56﴾
(ऐसा नहीं) बल्कि ये लोग समझते नहीं
तो यह उनके भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे है?
إِنَّ ٱلَّذِینَ هُم مِّنۡ خَشۡیَةِ رَبِّهِم مُّشۡفِقُونَ ﴿57﴾
उसमें शक नहीं कि जो लोग अपने परवरदिगार की वहशत से लरज़ रहे है
नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं;
وَٱلَّذِینَ هُم بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ یُؤۡمِنُونَ ﴿58﴾
और जो लोग अपने परवरदिगार की (क़ुदरत की) निशानियों पर ईमान रखते हैं
और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते है;
وَٱلَّذِینَ هُم بِرَبِّهِمۡ لَا یُشۡرِكُونَ ﴿59﴾
और अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नही बनाते
और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते;
وَٱلَّذِینَ یُؤۡتُونَ مَاۤ ءَاتَوا۟ وَّقُلُوبُهُمۡ وَجِلَةٌ أَنَّهُمۡ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ رَ ٰجِعُونَ ﴿60﴾
और जो लोग (ख़ुदा की राह में) जो कुछ बन पड़ता है देते हैं और फिर उनके दिल को इस बात का खटका लगा हुआ है कि उन्हें अपने परवरदिगार के सामने लौट कर जाना है
और जो लोग देते है, जो कुछ देते है और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते है, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है;
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُسَـٰرِعُونَ فِی ٱلۡخَیۡرَ ٰتِ وَهُمۡ لَهَا سَـٰبِقُونَ ﴿61﴾
(देखिये क्या होता है) यही लोग अलबत्ता नेकियों में जल्दी करते हैं और भलाई की तरफ (दूसरों से) लपक के आगे बढ़ जाते हैं
यही वे लोग है, जो भलाइयों में जल्दी करते है और यही उनके लिए अग्रसर रहनेवाले है।
وَلَا نُكَلِّفُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ وَلَدَیۡنَا كِتَـٰبࣱ یَنطِقُ بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا یُظۡلَمُونَ ﴿62﴾
और हम तो किसी शख्स को उसकी क़ूवत से बढ़के तकलीफ देते ही नहीं और हमारे पास तो (लोगों के आमाल की) किताब है जो बिल्कुल ठीक (हाल बताती है) और उन लोगों की (ज़र्रा बराबर) हक़ तलफी नहीं की जाएगी
हम किसी व्यक्ति पर उसकी समाई (क्षमता) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालते और हमारे पास एक किताब है, जो ठीक-ठीक बोलती है, और उनपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा
بَلۡ قُلُوبُهُمۡ فِی غَمۡرَةࣲ مِّنۡ هَـٰذَا وَلَهُمۡ أَعۡمَـٰلࣱ مِّن دُونِ ذَ ٰلِكَ هُمۡ لَهَا عَـٰمِلُونَ ﴿63﴾
उनके दिल उसकी तरफ से ग़फलत में पडे हैं इसके अलावा उन के बहुत से आमाल हैं जिन्हें ये (बराबर किया करते है) और बाज़ नहीं आते
बल्कि उनके दिल इसकी (सत्य धर्म की) ओर से हटकर (वसवसों और गफ़लतों आदि के) भँवर में पडे हुए है और उससे (ईमानवालों की नीति से) हटकर उनके कुछ और ही काम है। वे उन्हीं को करते रहेंगे;
حَتَّىٰۤ إِذَاۤ أَخَذۡنَا مُتۡرَفِیهِم بِٱلۡعَذَابِ إِذَا هُمۡ یَجۡـَٔرُونَ ﴿64﴾
यहाँ तक कि जब हम उनके मालदारों को अज़ाब में गिरफ््तार करेंगे तो ये लोग वावैला करने लगेंगें
यहाँ तक कि जब हम उनके खुशहाल लोगों को यातना में पकड़ेगे तो क्या देखते है कि वे विलाप और फ़रियाद कर रहे है
لَا تَجۡـَٔرُوا۟ ٱلۡیَوۡمَۖ إِنَّكُم مِّنَّا لَا تُنصَرُونَ ﴿65﴾
(उस वक्त क़हा जाएगा) आज वावैला मत करों तुमको अब हमारी तरफ से मदद नहीं मिल सकती
(कहा जाएगा,) \"आज चिल्लाओ मत, तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता मिलनेवाली नहीं
قَدۡ كَانَتۡ ءَایَـٰتِی تُتۡلَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَكُنتُمۡ عَلَىٰۤ أَعۡقَـٰبِكُمۡ تَنكِصُونَ ﴿66﴾
(जब) हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं तो तुम अकड़ते किस्सा कहते बकते हुए उन से उलटे पाँव फिर जाते
तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाते थे।
مُسۡتَكۡبِرِینَ بِهِۦ سَـٰمِرࣰا تَهۡجُرُونَ ﴿67﴾
तो क्या उन लोगों ने (हमारी) बात (कुरान) पर ग़ौर नहीं किया
हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे
أَفَلَمۡ یَدَّبَّرُوا۟ ٱلۡقَوۡلَ أَمۡ جَاۤءَهُم مَّا لَمۡ یَأۡتِ ءَابَاۤءَهُمُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿68﴾
उनके पास कोई ऐसी नयी चीज़ आयी जो उनके अगले बाप दादाओं के पास नहीं आयी थी
क्या उन्होंने इस वाणी पर विचार नहीं किया या उनके पास वह चीज़ आ गई जो उनके पहले बाप-दादा के पास न आई थी?
أَمۡ لَمۡ یَعۡرِفُوا۟ رَسُولَهُمۡ فَهُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ ﴿69﴾
या उन लोगों ने अपने रसूल ही को नहीं पहचाना तो इस वजह से इन्कार कर बैठे
या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं, इसलिए उसका इनकार कर रहे है?
أَمۡ یَقُولُونَ بِهِۦ جِنَّةُۢۚ بَلۡ جَاۤءَهُم بِٱلۡحَقِّ وَأَكۡثَرُهُمۡ لِلۡحَقِّ كَـٰرِهُونَ ﴿70﴾
या कहते हैं कि इसको जुनून हो गया है (हरगिज़ उसे जुनून नहीं) बल्कि वह तो उनके पास हक़ बात लेकर आया है और उनमें के अक्सर हक़ बात से नफरत रखते हैं
या वे कहते है, \"उसे उन्माद हो गया है।\" नहीं, बल्कि वह उनके पास सत्य लेकर आया है। किन्तु उनमें अधिकांश को सत्य अप्रिय है
وَلَوِ ٱتَّبَعَ ٱلۡحَقُّ أَهۡوَاۤءَهُمۡ لَفَسَدَتِ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِیهِنَّۚ بَلۡ أَتَیۡنَـٰهُم بِذِكۡرِهِمۡ فَهُمۡ عَن ذِكۡرِهِم مُّعۡرِضُونَ ﴿71﴾
और अगर कहीं हक़ उनकी नफसियानी ख्वाहिश की पैरवी करता है तो सारे आसमान व ज़मीन और जो लोग उनमें हैं (सबके सब) बरबाद हो जाते बल्कि हम तो उन्हीं के तज़किरे (जिबरील के वास्ते से) उनके पास लेकर आए तो यह लोग अपने ही तज़किरे से मुँह मोड़तें हैं
और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए है। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे है
أَمۡ تَسۡـَٔلُهُمۡ خَرۡجࣰا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَیۡرࣱۖ وَهُوَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰزِقِینَ ﴿72﴾
(ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (अपनी रिसालत की) कुछ उजरत माँगतें हों तो तुम्हारे परवरदिगार की उजरत उससे कही बेहतर है और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देने वाला है
या तुम उनसे कुथ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है
وَإِنَّكَ لَتَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَ ٰطࣲ مُّسۡتَقِیمࣲ ﴿73﴾
और तुम तो यक़ीनन उनको सीधी राह की तरफ बुलाते हो
और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो
وَإِنَّ ٱلَّذِینَ لَا یُؤۡمِنُونَ بِٱلۡـَٔاخِرَةِ عَنِ ٱلصِّرَ ٰطِ لَنَـٰكِبُونَ ﴿74﴾
और इसमें शक नहीं कि जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वह सीधी राह से हटे हुए हैं
किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते है
۞ وَلَوۡ رَحِمۡنَـٰهُمۡ وَكَشَفۡنَا مَا بِهِم مِّن ضُرࣲّ لَّلَجُّوا۟ فِی طُغۡیَـٰنِهِمۡ یَعۡمَهُونَ ﴿75﴾
और अगर हम उन पर तरस खायें और जो तकलीफें उनको (कुफ्र की वजह से) पहुँच रही हैं उन को दफा कर दें तो यक़ीनन ये लोग (और भी) अपनी सरकशी पर अड़ जाए और भटकते फिरें
यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते
وَلَقَدۡ أَخَذۡنَـٰهُم بِٱلۡعَذَابِ فَمَا ٱسۡتَكَانُوا۟ لِرَبِّهِمۡ وَمَا یَتَضَرَّعُونَ ﴿76﴾
और हमने उनको अज़ाब में गिरफ्तार किया तो भी वे लोग न तो अपने परवरदिगार के सामने झुके और गिड़गिड़ाएँ
यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे
حَتَّىٰۤ إِذَا فَتَحۡنَا عَلَیۡهِم بَابࣰا ذَا عَذَابࣲ شَدِیدٍ إِذَا هُمۡ فِیهِ مُبۡلِسُونَ ﴿77﴾
यहाँ तक कि जब हमने उनके सामने एक सख्त अज़ाब का दरवाज़ा खोल दिया तो उस वक्त फ़ौरन ये लोग बेआस होकर बैठ रहे
यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है
وَهُوَ ٱلَّذِیۤ أَنشَأَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَـٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِیلࣰا مَّا تَشۡكُرُونَ ﴿78﴾
हालाँकि वही वह (मेहरबान खुदा) है जिसने तुम्हारे लिए कान और ऑंखें और दिल पैदा किये (मगर) तुम लोग हो ही बहुत कम शुक्र करने वाले
और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो!
وَهُوَ ٱلَّذِی ذَرَأَكُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَإِلَیۡهِ تُحۡشَرُونَ ﴿79﴾
और वह वही (ख़ुदा) है जिसने तुम को रुए ज़मीन में (हर तरफ) फैला दिया और फिर (एक दिन) सब के सब उसी के सामने इकट्ठे किये जाओगे
वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे
وَهُوَ ٱلَّذِی یُحۡیِۦ وَیُمِیتُ وَلَهُ ٱخۡتِلَـٰفُ ٱلَّیۡلِ وَٱلنَّهَارِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ﴿80﴾
और वही वह (ख़ुदा) है जो जिलाता और मारता है कि और रात दिन का फेर बदल भी उसी के एख्तियार में है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते
और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?
بَلۡ قَالُوا۟ مِثۡلَ مَا قَالَ ٱلۡأَوَّلُونَ ﴿81﴾
(इन बातों को समझें ख़ाक नहीं) बल्कि जो अगले लोग कहते आए वैसी ही बात ये भी कहने लगे
नहीं, बल्कि वे लोग वहीं कुछ करते है जो उनके पहले के लोग कह चुके है
قَالُوۤا۟ أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابࣰا وَعِظَـٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ﴿82﴾
कि जब हम मर जाएँगें और (मरकर) मिट्टी (का ढ़ेर) और हड्डियाँ हो जाएँगें तो क्या हम फिर दोबारा (क्रबों से ज़िन्दा करके) निकाले जाएँगे
उन्होंने कहा, \"क्या जब हम मरकर मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे , तो क्या हमें दोबारा जीवित करके उठाया जाएगा?
لَقَدۡ وُعِدۡنَا نَحۡنُ وَءَابَاۤؤُنَا هَـٰذَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿83﴾
इसका वायदा तो हमसे और हमसे पहले हमारे बाप दादाओं से भी (बार हा) किया जा चुका है ये तो बस सिर्फ अगले लोगों के ढकोसले हैं
यह वादा तो हमसे और इससे पहले हमारे बाप-दादा से होता आ रहा है। कुछ नहीं, यह तो बस अगलों की कहानियाँ है।\"
قُل لِّمَنِ ٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِیهَاۤ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿84﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला अगर तुम लोग कुछ जानते हो (तो बताओ) ये ज़मीन और जो लोग इसमें हैं किस के हैं वह फौरन जवाब देगें ख़ुदा के
कहो, \"यह धरती और जो भी इसमें आबाद है, वे किसके है, बताओ यदि तुम जानते हो?\"
سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴿85﴾
तुम कह दो कि तो क्या तुम अब भी ग़ौर न करोगे
वे बोल पड़ेगे, \"अल्लाह के!\" कहो, \"फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?\"
قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ ٱلسَّبۡعِ وَرَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿86﴾
(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि सातों आसमानों का मालिक और (इतने) बड़े अर्श का मालिक कौन है तो फौरन जवाब देगें कि (सब कुछ) खुदा ही का है
कहो, \"सातों आकाशों का मालिक और महान राजासन का स्वामीकौन है?\"
سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَتَّقُونَ ﴿87﴾
अब तुम कहो तो क्या तुम अब भी (उससे) नहीं डरोगे
वे कहेंगे, \"सब अल्लाह के है।\" कहो, \"फिर डर क्यों नहीं रखते?\"
قُلۡ مَنۢ بِیَدِهِۦ مَلَكُوتُ كُلِّ شَیۡءࣲ وَهُوَ یُجِیرُ وَلَا یُجَارُ عَلَیۡهِ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿88﴾
(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो कि भला अगर तुम कुछ जानते हो (तो बताओ) कि वह कौन शख्स है- जिसके एख्तेयार में हर चीज़ की बादशाहत है वह (जिसे चाहता है) पनाह देता है और उस (के अज़ाब) से पनाह नहीं दी जा सकती
कहो, \"हर चीज़ की बादशाही किसके हाथ में है, वह जो शरण देता है औऱ जिसके मुक़ाबले में कोई शरण नहीं मिल सकती, बताओ यजि तुम जानते हो?\"
سَیَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ فَأَنَّىٰ تُسۡحَرُونَ ﴿89﴾
तो ये लोग फौरन बोल उठेंगे कि (सब एख्तेयार) ख़ुदा ही को है- अब तुम कह दो कि तुम पर जादू कहाँ किया जाता है
वे बोल पड़ेगे, \"अल्लाह की।\" कहो, \"फिर कहाँ से तुमपर जादू चल जाता है?\"
بَلۡ أَتَیۡنَـٰهُم بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّهُمۡ لَكَـٰذِبُونَ ﴿90﴾
बात ये है कि हमने उनके पास हक़ बात पहुँचा दी और ये लोग यक़ीनन झूठे हैं
नहीं, बल्कि हम उनके पास सत्य लेकर आए है और निश्चय ही वे झूठे है
مَا ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ مِن وَلَدࣲ وَمَا كَانَ مَعَهُۥ مِنۡ إِلَـٰهٍۚ إِذࣰا لَّذَهَبَ كُلُّ إِلَـٰهِۭ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضࣲۚ سُبۡحَـٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا یَصِفُونَ ﴿91﴾
न तो अल्लाह ने किसी को (अपना) बेटा बनाया है और न उसके साथ कोई और ख़ुदा है (अगर ऐसा होता) उस वक्त हर खुदा अपने अपने मख़लूक़ को लिए लिए फिरता और यक़ीनन एक दूसरे पर चढ़ाई करता
अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु है। ऐसा होता तो प्रत्येक पूज्य-प्रभु अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक-दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और उच्च है अल्लाह उन बातों से, जो वे बयान करते है;
عَـٰلِمِ ٱلۡغَیۡبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ فَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا یُشۡرِكُونَ ﴿92﴾
(और ख़ूब जंग होती) जो जो बाते ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) बयान करते हैं उस से ख़ुदा पाक व पाकीज़ा है वह पोशीदा और हाज़िर (सबसे) खुदा वाक़िफ है ग़रज़ वह उनके शिर्क से (बिल्कुल पाक और) बालातर है
जाननेवाला है छुपे और खुले का। सो वह उच्चतर है वह शिर्क से जो वे करते है!
قُل رَّبِّ إِمَّا تُرِیَنِّی مَا یُوعَدُونَ ﴿93﴾
(ऐ रसूल) तुम दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले जिस (अज़ाब) का तूने उनसे वायदा किया है अगर शायद तू मुझे दिखाए
कहो, \"ऐ मेरे रब! जिस चीज़ का वादा उनसे किया जा रहा है, वह यदि तू मुझे दिखाए
رَبِّ فَلَا تَجۡعَلۡنِی فِی ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿94﴾
तो परवरदिगार मुझे उन ज़ालिम लोगों के हमराह न करना
तो मेरे रब! मुझे उन अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।\"
وَإِنَّا عَلَىٰۤ أَن نُّرِیَكَ مَا نَعِدُهُمۡ لَقَـٰدِرُونَ ﴿95﴾
और (ऐ रसूल) हम यक़ीनन इस पर क़ादिर हैं कि जिस (अज़ाब) का हम उनसे वायदा करते हैं तुम्हें दिखा दें
निश्चय ही हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि हम उनसे जो वादा कर रहे है, वह तुम्हें दिखा दें।
ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِی هِیَ أَحۡسَنُ ٱلسَّیِّئَةَۚ نَحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا یَصِفُونَ ﴿96﴾
और बुरी बात के जवाब में ऐसी बात कहो जो निहायत अच्छी हो जो कुछ ये लोग (तुम्हारी निस्बत) बयान करते हैं उससे हम ख़ूब वाक़िफ हैं
बुराई को उस ढंग से दूर करो, जो सबसे उत्तम हो। हम भली-भाँति जानते है जो कुछ बातें वे बनाते है
وَقُل رَّبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنۡ هَمَزَ ٰتِ ٱلشَّیَـٰطِینِ ﴿97﴾
और (ये भी) दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मै शैतान के वसवसों से तेरी पनाह माँगता हूँ
और कहो, \"ऐ मेरे रब! मैं शैतान की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ
وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَن یَحۡضُرُونِ ﴿98﴾
और ऐ मेरे परवरदिगार इससे भी तेरी पनाह माँगता हूँ कि शयातीन मेरे पास आएँ
और मेरे रब! मैं इससे भी तेरी शरण चाहता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।\" -
حَتَّىٰۤ إِذَا جَاۤءَ أَحَدَهُمُ ٱلۡمَوۡتُ قَالَ رَبِّ ٱرۡجِعُونِ ﴿99﴾
(और कुफ्फ़ार तो मानेगें नहीं) यहाँ तक कि जब उनमें से किसी को मौत आयी तो कहने लगे परवरदिगार तू मुझे (एक बार) उस मुक़ाम (दुनिया) में छोड़ आया हूँ फिर वापस कर दे ताकि मै (अपकी दफ़ा) अच्छे अच्छे काम करूं
यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु आ गई तो वह कहेगा, \"ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे। - ताकि जिस (संसार) को मैं छोड़ आया हूँ
لَعَلِّیۤ أَعۡمَلُ صَـٰلِحࣰا فِیمَا تَرَكۡتُۚ كَلَّاۤۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَاۤىِٕلُهَاۖ وَمِن وَرَاۤىِٕهِم بَرۡزَخٌ إِلَىٰ یَوۡمِ یُبۡعَثُونَ ﴿100﴾
(जवाब दिया जाएगा) हरगिज़ नहीं ये एक लग़ो बात है- जिसे वह बक रहा और उनके (मरने के) बाद (आलमे) बरज़ख़ है
उसमें अच्छा कर्म करूँ।\" कुछ नहीं, यह तो बस एक (व्यर्थ) बात है जो वह कहेगा और उनके पीछे से लेकर उस दिन तक एक रोक लगी हुई है, जब वे दोबारा उठाए जाएँगे
فَإِذَا نُفِخَ فِی ٱلصُّورِ فَلَاۤ أَنسَابَ بَیۡنَهُمۡ یَوۡمَىِٕذࣲ وَلَا یَتَسَاۤءَلُونَ ﴿101﴾
(जहाँ) क़ब्रों से उठाए जाएँगें (रहना होगा) फिर जिस वक्त सूर फूँका जाएगा तो उस दिन न लोगों में क़राबत दारियाँ रहेगी और न एक दूसरे की बात पूछेंगे
फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी तो उस दिन उनके बीच रिश्ते-नाते शेष न रहेंगे, और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे
فَمَن ثَقُلَتۡ مَوَ ٰزِینُهُۥ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ﴿102﴾
फिर जिन (के नेकियों) के पल्लें भारी होगें तो यही लोग कामयाब होंगे
फिर जिनके पलड़े भारी हुए तॊ वही हैं जो सफल।
وَمَنۡ خَفَّتۡ مَوَ ٰزِینُهُۥ فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ ٱلَّذِینَ خَسِرُوۤا۟ أَنفُسَهُمۡ فِی جَهَنَّمَ خَـٰلِدُونَ ﴿103﴾
और जिन (के नेकियों) के पल्लें हल्के होंगे तो यही लोग है जिन्होंने अपना नुक़सान किया कि हमेशा जहन्नुम में रहेंगे
रहे वे लोग जिनके पलड़े हल्के हुए, तो वही है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। वे सदैव जहन्नम में रहेंगे
تَلۡفَحُ وُجُوهَهُمُ ٱلنَّارُ وَهُمۡ فِیهَا كَـٰلِحُونَ ﴿104﴾
और (उनकी ये हालत होगी कि) जहन्नुम की आग उनके मुँह को झुलसा देगी और लोग मुँह बनाए हुए होगें
आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और उसमें उनके मुँह विकृत हो रहे होंगे
أَلَمۡ تَكُنۡ ءَایَـٰتِی تُتۡلَىٰ عَلَیۡكُمۡ فَكُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ﴿105﴾
(उस वक्त हम पूछेंगें) क्या तुम्हारे सामने मेरी आयतें न पढ़ी गयीं थीं (ज़रुर पढ़ी गयी थीं) तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे
(कहा जाएगा,) \"क्या तुम्हें मेरी आयातें सुनाई नहीं जाती थी, तो तुम उन्हें झुठलाते थे?\"
قَالُوا۟ رَبَّنَا غَلَبَتۡ عَلَیۡنَا شِقۡوَتُنَا وَكُنَّا قَوۡمࣰا ضَاۤلِّینَ ﴿106﴾
वह जवाब देगें ऐ हमारे परवरदिगार हमको हमारी कम्बख्ती ने आज़माया और हम गुमराह लोग थे
वे कहेंगे, \"ऐ हमारे रब! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हुआ और हम भटके हुए लोग थे
رَبَّنَاۤ أَخۡرِجۡنَا مِنۡهَا فَإِنۡ عُدۡنَا فَإِنَّا ظَـٰلِمُونَ ﴿107﴾
परवरदिगार हमको (अबकी दफा) किसी तरह इस जहन्नुम से निकाल दे फिर अगर दोबारा हम ऐसा करें तो अलबत्ता हम कुसूरवार हैं
हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे! फिर हम दोबारा ऐसा करें तो निश्चय ही हम अत्याचारी होंगे।\"
قَالَ ٱخۡسَـُٔوا۟ فِیهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ ﴿108﴾
ख़ुदा फरमाएगा दूर हो इसी में (तुम को रहना होगा) और (बस) मुझ से बात न करो
वह कहेगा, \"फिटकारे हुए तिरस्कृत, इसी में पड़े रहो और मुझसे बात न करो
إِنَّهُۥ كَانَ فَرِیقࣱ مِّنۡ عِبَادِی یَقُولُونَ رَبَّنَاۤ ءَامَنَّا فَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَا وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰحِمِینَ ﴿109﴾
मेरे बन्दों में से एक गिरोह ऐसा भी था जो (बराबर) ये दुआ करता था कि ऐ हमारे पालने वाले हम ईमान लाए तो तू हमको बख्श दे और हम पर रहम कर तू तो तमाम रहम करने वालों से बेहतर है
मेरे बन्दों में कुछ लोग थे, जो कहते थे, हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू सबसे अच्छा दया करनेवाला है
فَٱتَّخَذۡتُمُوهُمۡ سِخۡرِیًّا حَتَّىٰۤ أَنسَوۡكُمۡ ذِكۡرِی وَكُنتُم مِّنۡهُمۡ تَضۡحَكُونَ ﴿110﴾
तो तुम लोगों ने उन्हें मसखरा बना लिया-यहाँ तक कि (गोया) उन लोगों ने तुम से मेरी याद भुला दी और तुम उन पर (बराबर) हँसते रहे
तो तुमने उनका उपहास किया, यहाँ तक कि उनके कारण तुम मेरी याद को भुला बैठे और तुम उनपर हँसते रहे
إِنِّی جَزَیۡتُهُمُ ٱلۡیَوۡمَ بِمَا صَبَرُوۤا۟ أَنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡفَاۤىِٕزُونَ ﴿111﴾
मैने आज उनको उनके सब्र का अच्छा बदला दिया कि यही लोग अपनी (ख़ातिरख्वाह) मुराद को पहुँचने वाले हैं
आज मैंने उनके धैर्य का यह बदला प्रदान किया कि वही है जो सफलता को प्राप्त हुए।\"
قَـٰلَ كَمۡ لَبِثۡتُمۡ فِی ٱلۡأَرۡضِ عَدَدَ سِنِینَ ﴿112﴾
(फिर उनसे) ख़ुदा पूछेगा कि (आख़िर) तुम ज़मीन पर कितने बरस रहे
वह कहेगाः “तुम धरती में कितने वर्ष रहे”?
قَالُوا۟ لَبِثۡنَا یَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ یَوۡمࣲ فَسۡـَٔلِ ٱلۡعَاۤدِّینَ ﴿113﴾
वह कहेंगें (बरस कैसा) हम तो बस पूरा एक दिन रहे या एक दिन से भी कम
वॆ कहेंगेः , \"एक दिन या एक दिन का कुछ भाग। गणना करनेवालों से पूछ लीजिए।?\"
قَـٰلَ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا قَلِیلࣰاۖ لَّوۡ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ﴿114﴾
तो तुम शुमार करने वालों से पूछ लो ख़ुदा फरमाएगा बेशक तुम (ज़मीन में) बहुत ही कम ठहरे काश तुम (इतनी बात भी दुनिया में) समझे होते
वह कहेगा, \"तुम ठहरे थोड़े ही, क्या अच्छा होता तुम जानते होते!
أَفَحَسِبۡتُمۡ أَنَّمَا خَلَقۡنَـٰكُمۡ عَبَثࣰا وَأَنَّكُمۡ إِلَیۡنَا لَا تُرۡجَعُونَ ﴿115﴾
तो क्या तुम ये ख्याल करते हो कि हमने तुमको (यूँ ही) बेकार पैदा किया और ये कि तुम हमारे हुज़ूर में लौटा कर न लाए जाओगे
तो क्या तुमने यह समझा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और यह कि तुम्हें हमारी और लौटना नहीं है?\"
فَتَعَـٰلَى ٱللَّهُ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡحَقُّۖ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡكَرِیمِ ﴿116﴾
तो ख़ुदा जो सच्चा बादशाह (हर चीज़ से) बरतर व आला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वहीं) अर्श बुर्जुग़ का मालिक है
तो सर्वोच्च है अल्लाह, सच्चा सम्राट! उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, स्वामी है महिमाशाली सिंहासन का
وَمَن یَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ لَا بُرۡهَـٰنَ لَهُۥ بِهِۦ فَإِنَّمَا حِسَابُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦۤۚ إِنَّهُۥ لَا یُفۡلِحُ ٱلۡكَـٰفِرُونَ ﴿117﴾
और जो शख्स ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद की भी परसतिश करेगा उसके पास इस शिर्क की कोई दलील तो है नहीं तो बस उसका हिसाब (किताब) उसके परवरदिगार ही के पास होगा (मगर याद रहे कि कुफ्फ़ार हरगिज़ फलॉह पाने वाले नहीं)
और जो कोई अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को पुकारे, जिसके लिए उसके पास कोई प्रमाम नहीं, तो बस उसका हिसाब उसके रब के पास है। निश्चय ही इनकार करनेवाले कभी सफल नहीं होगे
وَقُل رَّبِّ ٱغۡفِرۡ وَٱرۡحَمۡ وَأَنتَ خَیۡرُ ٱلرَّ ٰحِمِینَ ﴿118﴾
और (ऐ रसूल) तुम कह दो परवरदिगार तू (मेरी उम्मत को) बख्श दे और तरस खा और तू तो सब रहम करने वालों से बेहतर है
और कहो, \"मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और दया कर। तू तो सबसे अच्छा दया करनेवाला है।\"