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Surah The Standard [Al-Furqan] in Hindi
تَبَارَكَ ٱلَّذِی نَزَّلَ ٱلۡفُرۡقَانَ عَلَىٰ عَبۡدِهِۦ لِیَكُونَ لِلۡعَـٰلَمِینَ نَذِیرًا ﴿1﴾
(ख़ुदा) बहुत बाबरकत है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर कुरान नाज़िल किया ताकि सारे जहॉन के लिए (ख़ुदा के अज़ाब से) डराने वाला हो
बड़ी बरकतवाला है वह जिसने यह फ़ुरक़ान अपने बन्दे पर अवतरित किया, ताकि वह सारे संसार के लिए सावधान करनेवाला हो
ٱلَّذِی لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَمۡ یَتَّخِذۡ وَلَدࣰا وَلَمۡ یَكُن لَّهُۥ شَرِیكࣱ فِی ٱلۡمُلۡكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَیۡءࣲ فَقَدَّرَهُۥ تَقۡدِیرࣰا ﴿2﴾
वह खुदा कि सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत उसी की है और उसने (किसी को) न अपना लड़का बनाया और न सल्तनत में उसका कोई शरीक है और हर चीज़ को (उसी ने पैदा किया) फिर उस अन्दाज़े से दुरुस्त किया
वह जिसका राज्य है आकाशों और धरती पर, और उसने न तो किसी को अपना बेटा बनाया और न राज्य में उसका कोई साझी है। उसने हर चीज़ को पैदा किया; फिर उसे ठीक अन्दाजें पर रखा
وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةࣰ لَّا یَخۡلُقُونَ شَیۡـࣰٔا وَهُمۡ یُخۡلَقُونَ وَلَا یَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ ضَرࣰّا وَلَا نَفۡعࣰا وَلَا یَمۡلِكُونَ مَوۡتࣰا وَلَا حَیَوٰةࣰ وَلَا نُشُورࣰا ﴿3﴾
और लोगों ने उसके सिवा दूसरे दूसरे माबूद बना रखें हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह खुद दूसरे के पैदा किए हुए हैं और वह खुद अपने लिए भी न नुक़सान पर क़ाबू रखते हैं न नफा पर और न मौत ही पर एख़्तियार रखते हैं और न ज़िन्दगी पर और न मरने बाद जी उठने पर
फिर भी उन्होंने उससे हटकर ऐसे इष्ट -पूज्य बना लिए जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते है। उन्हें न तो अपनी हानि का अधिकार प्राप्त है और न लाभ का। और न उन्हें मृत्यु का अधिकार प्राप्त है और न जीवन का और न दोबारा जीवित होकर उठने का
وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوۤا۟ إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّاۤ إِفۡكٌ ٱفۡتَرَىٰهُ وَأَعَانَهُۥ عَلَیۡهِ قَوۡمٌ ءَاخَرُونَۖ فَقَدۡ جَاۤءُو ظُلۡمࣰا وَزُورࣰا ﴿4﴾
और जो लोग काफिर हो गए बोल उठे कि ये (क़ुरान) तो निरा झूठ है जिसे उस शख्स (रसूल) ने अपने जी से गढ़ लिया और कुछ और लोगों ने इस इफतिरा परवाज़ी में उसकी मदद भी की है
जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है, \"यह तो बस मनघड़ंत है जो उसने स्वयं ही घड़ लिया है। और कुछ दूसरे लोगों ने इस काम में उसकी सहायता की है।\" वे तो ज़ुल्म और झूठ ही के ध्येय से आए
وَقَالُوۤا۟ أَسَـٰطِیرُ ٱلۡأَوَّلِینَ ٱكۡتَتَبَهَا فَهِیَ تُمۡلَىٰ عَلَیۡهِ بُكۡرَةࣰ وَأَصِیلࣰا ﴿5﴾
तो यक़ीनन ख़ुद उन ही लोगों ने ज़ुल्म व फरेब किया है और (ये भी) कहा कि (ये तो) अगले लोगों के ढकोसले हैं जिसे उसने किसी से लिखवा लिया है पस वही सुबह व शाम उसके सामने पढ़ा जाता है
कहते है, \"ये अगलों की कहानियाँ है, जिनको उसने लिख लिया है तो वही उसके पास प्रभात काल और सन्ध्या समय लिखाई जाती है।\"
قُلۡ أَنزَلَهُ ٱلَّذِی یَعۡلَمُ ٱلسِّرَّ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ كَانَ غَفُورࣰا رَّحِیمࣰا ﴿6﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि इसको उस शख्स ने नाज़िल किया है जो सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों को ख़ूब जानता है बेशक वह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
कहो, \"उसे अवतरित किया है उसने, जो आकाशों और धरती के रहस्य जानता है। निश्चय ही वह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।\"
وَقَالُوا۟ مَالِ هَـٰذَا ٱلرَّسُولِ یَأۡكُلُ ٱلطَّعَامَ وَیَمۡشِی فِی ٱلۡأَسۡوَاقِ لَوۡلَاۤ أُنزِلَ إِلَیۡهِ مَلَكࣱ فَیَكُونَ مَعَهُۥ نَذِیرًا ﴿7﴾
और उन लोगों ने (ये भी) कहा कि ये कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता है फिरता है उसके पास कोई फरिश्ता क्यों नहीं नाज़िल होता कि वह भी उसके साथ (ख़ुदा के अज़ाब से) डराने वाला होता
उनका यह भी कहना है, \"इस रसूल को क्या हुआ कि यह खाना खाता है और बाज़ारों में चलता-फिरता है? क्यों न इसकी ओर कोई फ़रिश्ता उतरा कि वह इसके साथ रहकर सावधान करता?
أَوۡ یُلۡقَىٰۤ إِلَیۡهِ كَنزٌ أَوۡ تَكُونُ لَهُۥ جَنَّةࣱ یَأۡكُلُ مِنۡهَاۚ وَقَالَ ٱلظَّـٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلࣰا مَّسۡحُورًا ﴿8﴾
(कम से कम) इसके पास ख़ज़ाना ही ख़ज़ाना ही (आसमान से) गिरा दिया जाता या (और नहीं तो) उसके पास कोई बाग़ ही होता कि उससे खाता (पीता) और ये ज़ालिम (कुफ्फ़ार मोमिनों से) कहते हैं कि तुम लोग तो बस ऐसे आदमी की पैरवी करते हो जिस पर जादू कर दिया गया है
या इसकी ओर कोई ख़ज़ाना ही डाल दिया जाता या इसके पास कोई बाग़ होता, जिससे यह खाता।\" और इन ज़ालिमों का कहना है, \"तुम लोग तो बस एक ऐसे व्यक्ति के पीछे चल रहे हो जो जादू का मारा हुआ है!\"
ٱنظُرۡ كَیۡفَ ضَرَبُوا۟ لَكَ ٱلۡأَمۡثَـٰلَ فَضَلُّوا۟ فَلَا یَسۡتَطِیعُونَ سَبِیلࣰا ﴿9﴾
(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो कि इन लोगों ने तुम्हारे वास्ते कैसी कैसी फबत्तियां गढ़ी हैं और गुमराह हो गए तो अब ये लोग किसी तरह राह पर आ ही नहीं सकते
देखों, उन्होंने तुमपर कैसी-कैसी फब्तियाँ कसीं। तो वे बहक गए है। अब उनमें इसकी सामर्थ्य नहीं कि कोई मार्ग पा सकें!
تَبَارَكَ ٱلَّذِیۤ إِن شَاۤءَ جَعَلَ لَكَ خَیۡرࣰا مِّن ذَ ٰلِكَ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ وَیَجۡعَل لَّكَ قُصُورَۢا ﴿10﴾
ख़ुदा तो ऐसा बारबरकत है कि अगर चाहे तो (एक बाग़ क्या चीज़ है) इससे बेहतर बहुतेरे ऐसे बाग़ात तुम्हारे वास्ते पैदा करे जिन के नीचे नहरें जारी हों और (बाग़ात के अलावा उनमें) तुम्हारे वास्ते महल बना दे
बरकतवाला है वह जो यदि चाहे तो तुम्हारे लिए इससे भी उत्तम प्रदान करे, बहत-से बाग़ जिनके नीचे नहरें बह रही हों, और तुम्हारे लिए बहुत-से महल तैया कर दे
بَلۡ كَذَّبُوا۟ بِٱلسَّاعَةِۖ وَأَعۡتَدۡنَا لِمَن كَذَّبَ بِٱلسَّاعَةِ سَعِیرًا ﴿11﴾
(ये सब कुछ नहीं) बल्कि (सच यूँ है कि) उन लोगों ने क़यामत ही को झूठ समझा है और जिस शख्स ने क़यामत को झूठ समझा उसके लिए हमने जहन्नुम को (दहका के) तैयार कर रखा है
नहीं, बल्कि बात यह है कि वे लोग क़ियामत की घड़ी को झुठला चुके है। और जो उस घड़ी को झुठला दे, उसके लिए दहकती आग तैयार कर रखी है
إِذَا رَأَتۡهُم مِّن مَّكَانِۭ بَعِیدࣲ سَمِعُوا۟ لَهَا تَغَیُّظࣰا وَزَفِیرࣰا ﴿12﴾
जब जहन्नुम इन लोगों को दूर से दखेगी तो (जोश खाएगी और) ये लोग उसके जोश व ख़रोश की आवाज़ सुनेंगें
जब वह उनको दूर से देखेगी तो वे उसके बिफरने और साँस खींचने की आवाज़ें सुनेंगे
وَإِذَاۤ أُلۡقُوا۟ مِنۡهَا مَكَانࣰا ضَیِّقࣰا مُّقَرَّنِینَ دَعَوۡا۟ هُنَالِكَ ثُبُورࣰا ﴿13﴾
और जब ये लोग ज़ज़ीरों से जकड़कर उसकी किसी तंग जगह मे झोंक दिए जाएँगे तो उस वक्त मौत को पुकारेंगे
और जब वे उसकी किसी तंग जगह जकड़े हुए डाले जाएँगे, तो वहाँ विनाश को पुकारने लगेंगे
لَّا تَدۡعُوا۟ ٱلۡیَوۡمَ ثُبُورࣰا وَ ٰحِدࣰا وَٱدۡعُوا۟ ثُبُورࣰا كَثِیرࣰا ﴿14﴾
(उस वक्त उनसे कहा जाएगा कि) आज एक मौत को न पुकारो बल्कि बहुतेरी मौतों को पुकारो (मगर इससे भी कुछ होने वाला नहीं)
(कहा जाएगा,) \"आज एक विनाश को मत पुकारो, बल्कि बहुत-से विनाशों को पुकारो!\"
قُلۡ أَذَ ٰلِكَ خَیۡرٌ أَمۡ جَنَّةُ ٱلۡخُلۡدِ ٱلَّتِی وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۚ كَانَتۡ لَهُمۡ جَزَاۤءࣰ وَمَصِیرࣰا ﴿15﴾
(ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि जहन्नुम बेहतर है या हमेशा रहने का बाग़ (बेहश्त) जिसका परहेज़गारों से वायदा किया गया है कि वह उन (के आमाल) का सिला होगा और आख़िरी ठिकाना
कहो, \"यह अच्छा है या वह शाश्वत जन्नत, जिसका वादा डर रखनेवालों से किया गया है? यह उनका बदला और अन्तिम मंज़िल होगी।\"
لَّهُمۡ فِیهَا مَا یَشَاۤءُونَ خَـٰلِدِینَۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ وَعۡدࣰا مَّسۡـُٔولࣰا ﴿16﴾
जिस चीज़ की ख्वाहिश करेंगें उनके लिए वहाँ मौजूद होगी (और) वह हमेशा (उसी हाल में) रहेंगें ये तुम्हारे परवरदिगार पर एक लाज़िमी और माँगा हुआ वायदा है
उनके लिए उसमें वह सबकुछ होगा, जो वे चाहेंगे। उसमें वे सदैव रहेंगे। यह तुम्हारे रब के ज़िम्मे एक ऐसा वादा है जो प्रार्थनीय है
وَیَوۡمَ یَحۡشُرُهُمۡ وَمَا یَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ فَیَقُولُ ءَأَنتُمۡ أَضۡلَلۡتُمۡ عِبَادِی هَـٰۤؤُلَاۤءِ أَمۡ هُمۡ ضَلُّوا۟ ٱلسَّبِیلَ ﴿17﴾
और जिस दिन ख़ुदा उन लोगों को और जिनकी ये लोग ख़ुदा को छोड़कर परसतिश किया करते हैं (उनको) जमा करेगा और पूछेगा क्या तुम ही ने हमारे उन बन्दों को गुमराह कर दिया था या ये लोग खुद राह रास्ते से भटक गए थे
और जिस दिन उन्हें इकट्ठा किया जाएगा और उनको भी जिन्हें वे अल्लाह को छोड़कर पूजते है, फिर वह कहेगा, \"क्या मेरे बन्दों को तुमने पथभ्रष्ट किया था या वे स्वयं मार्ग छोड़ बैठे थे?\"
قَالُوا۟ سُبۡحَـٰنَكَ مَا كَانَ یَنۢبَغِی لَنَاۤ أَن نَّتَّخِذَ مِن دُونِكَ مِنۡ أَوۡلِیَاۤءَ وَلَـٰكِن مَّتَّعۡتَهُمۡ وَءَابَاۤءَهُمۡ حَتَّىٰ نَسُوا۟ ٱلذِّكۡرَ وَكَانُوا۟ قَوۡمَۢا بُورࣰا ﴿18﴾
(उनके माबूद) अर्ज़ करेंगें- सुबहान अल्लाह (हम तो ख़ुद तेरे बन्दे थे) हमें ये किसी तरह ज़ेबा न था कि हम तुझे छोड़कर दूसरे को अपना सरपरस्त बनाते (फिर अपने को क्यों कर माबूद बनाते) मगर बात तो ये है कि तू ही ने इनको बाप दादाओं को चैन दिया-यहाँ तक कि इन लोगों ने (तेरी) याद भुला दी और ये ख़ुद हलाक होने वाले लोग थे
वे कहेंगे, \"महान और उच्च है तू! यह हमसे नहीं हो सकता था कि तुझे छोड़कर दूसरे संरक्षक बनाएँ। किन्तु हुआ यह कि तूने उन्हें औऱ उनके बाप-दादा को अत्यधिक सुख-सामग्री दी, यहाँ तक कि वे अनुस्मृति को भुला बैठे और विनष्ट होनेवाले लोग होकर रहे।\"
فَقَدۡ كَذَّبُوكُم بِمَا تَقُولُونَ فَمَا تَسۡتَطِیعُونَ صَرۡفࣰا وَلَا نَصۡرࣰاۚ وَمَن یَظۡلِم مِّنكُمۡ نُذِقۡهُ عَذَابࣰا كَبِیرࣰا ﴿19﴾
तब (काफ़िरों से कहा जाएगा कि) तुम जो कुछ कह रहे हो उसमें तो तुम्हारे माबूदों ने तुम्हें झूठला दिया तो अब तुम न (हमारे अज़ाब के) टाल देने की सकत रखते हो न किसी से मदद ले सकते हो और (याद रखो) तुममें से जो ज़ुल्म करेगा हम उसको बड़े (सख्त) अज़ाब का (मज़ा) चखाएगें
अतः इस प्रकार वे तुम्हें उस बात में, जो तुम कहते हो झूठा ठहराए हुए है। अब न तो तुम यातना को फेर सकते हो और न कोई सहायता ही पा सकते हो। जो कोई तुममें से ज़ुल्म करे उसे हम बड़ी यातना का मज़ा चखाएँगे
وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِینَ إِلَّاۤ إِنَّهُمۡ لَیَأۡكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَیَمۡشُونَ فِی ٱلۡأَسۡوَاقِۗ وَجَعَلۡنَا بَعۡضَكُمۡ لِبَعۡضࣲ فِتۡنَةً أَتَصۡبِرُونَۗ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِیرࣰا ﴿20﴾
और (ऐ रसूल) हमने तुम से पहले जितने पैग़म्बर भेजे वह सब के सब यक़ीनन बिला शक खाना खाते थे और बाज़ारों में चलते फिरते थे और हमने तुम में से एक को एक का (ज़रिया) आज़माइश बना दिया (मुसलमानों) क्या तुम अब भी सब्र करते हो (या नहीं) और तुम्हारा परवरदिगार (सब की) देख भाल कर रहा है
और तुमसे पहले हमने जितने रसूल भी भेजे हैं, वे सब खाना खाते और बाज़ारों में चलते-फिरते थे। हमने तो तुम्हें परस्पर एक को दूसरे के लिए आज़माइश बना दिया है, \"क्या तुम धैर्य दिखाते हो?\" तुम्हारा रब तो सब कुछ देखता है
۞ وَقَالَ ٱلَّذِینَ لَا یَرۡجُونَ لِقَاۤءَنَا لَوۡلَاۤ أُنزِلَ عَلَیۡنَا ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ أَوۡ نَرَىٰ رَبَّنَاۗ لَقَدِ ٱسۡتَكۡبَرُوا۟ فِیۤ أَنفُسِهِمۡ وَعَتَوۡ عُتُوࣰّا كَبِیرࣰا ﴿21﴾
और जो लोग (क़यामत में) हमारी हुज़ूरी की उम्मीद नहीं रखते कहा करते हैं कि आख़िर फरिश्ते हमारे पास क्यों नहीं नाज़िल किए गए या हम अपने परवरदिगार को (क्यों नहीं) देखते उन लोगों ने अपने जी में अपने को (बहुत) बड़ा समझ लिया है और बड़ी सरकशी की
जिन्हें हमसे मिलने की आशंका नहीं, वे कहते है, \"क्यों न फ़रिश्ते हमपर उतरे या फिर हम अपने रब को देखते?\" उन्होंने अपने जी में बड़ा घमंज किया और बड़ी सरकशी पर उतर आए
یَوۡمَ یَرَوۡنَ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةَ لَا بُشۡرَىٰ یَوۡمَىِٕذࣲ لِّلۡمُجۡرِمِینَ وَیَقُولُونَ حِجۡرࣰا مَّحۡجُورࣰا ﴿22﴾
जिस दिन ये लोग फरिश्तों को देखेंगे उस दिन गुनाह गारों को कुछ खुशी न होगी और फरिश्तों को देखकर कहेंगे दूर दफान
जिस दिन वे फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन अपराधियों के लिए कोई ख़ुशख़बरी न होगी और वे पुकार उठेंगे, \"पनाह! पनाह!!\"
وَقَدِمۡنَاۤ إِلَىٰ مَا عَمِلُوا۟ مِنۡ عَمَلࣲ فَجَعَلۡنَـٰهُ هَبَاۤءࣰ مَّنثُورًا ﴿23﴾
और उन लोगों ने (दुनिया में) जो कुछ नेक काम किए हैं हम उसकी तरफ तवज्जों करेंगें तो हम उसको (गोया) उड़ती हुई ख़ाक बनाकर (बरबाद कर) देगें
हम बढ़ेंगे उस कर्म की ओर जो उन्होंने किया होगा और उसे उड़ती धूल कर देंगे
أَصۡحَـٰبُ ٱلۡجَنَّةِ یَوۡمَىِٕذٍ خَیۡرࣱ مُّسۡتَقَرࣰّا وَأَحۡسَنُ مَقِیلࣰا ﴿24﴾
उस दिन जन्नत वालों का ठिकाना भी बेहतर है बेहतर होगा और आरमगाह भी अच्छी से अच्छी
उस दिन जन्नतवाले ठिकाने की दृष्टि से अच्छे होगे और आरामगाह की दृष्टि से भी अच्छे होंगे
وَیَوۡمَ تَشَقَّقُ ٱلسَّمَاۤءُ بِٱلۡغَمَـٰمِ وَنُزِّلَ ٱلۡمَلَـٰۤىِٕكَةُ تَنزِیلًا ﴿25﴾
और जिस दिन आसमान बदली के सबब से फट जाएगा और फरिश्ते कसरत से (जूक दर ज़ूक) नाज़िल किए जाएँगे
उस दिन आकाश एक बादल के साथ फटेगा और फ़रिश्ते भली प्रकार उतारे जाएँगे
ٱلۡمُلۡكُ یَوۡمَىِٕذٍ ٱلۡحَقُّ لِلرَّحۡمَـٰنِۚ وَكَانَ یَوۡمًا عَلَى ٱلۡكَـٰفِرِینَ عَسِیرࣰا ﴿26﴾
उसे दिन की सल्तनल ख़ास ख़ुदा ही के लिए होगी और वह दिन काफिरों पर बड़ा सख्त होगा
उस दिन वास्तविक राज्य रहमान का होगा और वह दिन इनकार करनेवालों के लिए बड़ा ही मुश्किल होगा
وَیَوۡمَ یَعَضُّ ٱلظَّالِمُ عَلَىٰ یَدَیۡهِ یَقُولُ یَـٰلَیۡتَنِی ٱتَّخَذۡتُ مَعَ ٱلرَّسُولِ سَبِیلࣰا ﴿27﴾
और जिस दिन जुल्म करने वाला अपने हाथ (मारे अफ़सोस के) काटने लगेगा और कहेगा काश रसूल के साथ मैं भी (दीन का सीधा) रास्ता पकड़ता
उस दिन अत्याचारी अत्याचारी अपने हाथ चबाएगा। कहेंगा, \"ऐ काश! मैंने रसूल के साथ मार्ग अपनाया होता!
یَـٰوَیۡلَتَىٰ لَیۡتَنِی لَمۡ أَتَّخِذۡ فُلَانًا خَلِیلࣰا ﴿28﴾
हाए अफसोस काश मै फला शख्स को अपना दोस्त न बनाता
हाय मेरा दुर्भाग्य! काश, मैंने अमुक व्यक्ति को मित्र न बनाया होता!
لَّقَدۡ أَضَلَّنِی عَنِ ٱلذِّكۡرِ بَعۡدَ إِذۡ جَاۤءَنِیۗ وَكَانَ ٱلشَّیۡطَـٰنُ لِلۡإِنسَـٰنِ خَذُولࣰا ﴿29﴾
बेशक यक़ीनन उसने हमारे पास नसीहत आने के बाद मुझे बहकाया और शैतान तो आदमी को रुसवा करने वाला ही है
उसने मुझे भटकाकर अनुस्मृति से विमुख कर दिया, इसके पश्चात कि वह मेरे पास आ चुकी थी। शैतान तो समय पर मनुष्य का साथ छोड़ ही देता है।\"
وَقَالَ ٱلرَّسُولُ یَـٰرَبِّ إِنَّ قَوۡمِی ٱتَّخَذُوا۟ هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ مَهۡجُورࣰا ﴿30﴾
और (उस वक्त) रसूल (बारगाहे ख़ुदा वन्दी में) अर्ज़ करेगें कि ऐ मेरे परवरदिगार मेरी क़ौम ने तो इस क़ुरान को बेकार बना दिया
रसूल कहेगा, \"ऐ मेरे रब! निस्संदेह मेरी क़ौम के लोगों ने इस क़ुरआन को व्यर्थ बकवास की चीज़ ठहरा लिया था।\"
وَكَذَ ٰلِكَ جَعَلۡنَا لِكُلِّ نَبِیٍّ عَدُوࣰّا مِّنَ ٱلۡمُجۡرِمِینَۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ هَادِیࣰا وَنَصِیرࣰا ﴿31﴾
और हमने (गोया ख़ुद) गुनाहगारों में से हर नबी के दुश्मन बना दिए हैं और तुम्हारा परवरदिगार हिदायत और मददगारी के लिए काफी है
और इसी तरह हमने अपराधियों में से प्रत्यॆक नबी के लिये शत्रु बनाया। मार्गदर्शन और सहायता कॆ लिए तॊ तुम्हारा रब ही काफ़ी है।
وَقَالَ ٱلَّذِینَ كَفَرُوا۟ لَوۡلَا نُزِّلَ عَلَیۡهِ ٱلۡقُرۡءَانُ جُمۡلَةࣰ وَ ٰحِدَةࣰۚ كَذَ ٰلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِۦ فُؤَادَكَۖ وَرَتَّلۡنَـٰهُ تَرۡتِیلࣰا ﴿32﴾
और कुफ्फार कहने लगे कि उनके ऊपर (आख़िर) क़ुरान का कुल (एक ही दफा) क्यों नहीं नाज़िल किया गया (हमने) इस तरह इसलिए (नाज़िल किया) ताकि तुम्हारे दिल को तस्कीन देते रहें और हमने इसको ठहर ठहर कर नाज़िल किया
और जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि \"उसपर पूरा क़ुरआन एक ही बार में क्यों नहीं उतारा?\" ऐसा इसलिए किया गया ताकि हम इसके द्वारा तुम्हारे दिल को मज़बूत रखें और हमने इसे एक उचित क्रम में रखा
وَلَا یَأۡتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئۡنَـٰكَ بِٱلۡحَقِّ وَأَحۡسَنَ تَفۡسِیرًا ﴿33﴾
और (ये कुफ्फार) चाहे कैसी ही (अनोखी) मसल बयान करेंगे मगर हम तुम्हारे पास (उनका) बिल्कुल ठीक और निहायत उम्दा (जवाब) बयान कर देगें
और जब कभी भी वे तुम्हारे पास कोई आक्षेप की बात लेकर आएँगे तो हम तुम्हारे पास पक्की-सच्ची चीज़ लेकर आएँगे! इस दशा में कि वह स्पष्टीतकरण की स्पष्ट से उत्तम है
ٱلَّذِینَ یُحۡشَرُونَ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ إِلَىٰ جَهَنَّمَ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ شَرࣱّ مَّكَانࣰا وَأَضَلُّ سَبِیلࣰا ﴿34﴾
जो लोग (क़यामत के दिन) अपने अपने मोहसिनों के बल जहन्नुम में हकाए जाएगें वही लोग बदतर जगह में होगें और सब से ज्यादा राह रास्त से भटकने वाले
जो लोग औंधे मुँह जहन्नम की ओर ले जाए जाएँगे वही स्थान की दृष्टि से बहुत बुरे है, और मार्ग की दृष्टि से भी बहुत भटके हुए है
وَلَقَدۡ ءَاتَیۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَـٰبَ وَجَعَلۡنَا مَعَهُۥۤ أَخَاهُ هَـٰرُونَ وَزِیرࣰا ﴿35﴾
और अलबत्ता हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उनके साथ उनके भाई हारुन को (उनका) वज़ीर बनाया
हमने मूसा को किताब प्रदान की और उसके भाई हारून को सहायक के रूप में उसके साथ किया
فَقُلۡنَا ٱذۡهَبَاۤ إِلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِینَ كَذَّبُوا۟ بِـَٔایَـٰتِنَا فَدَمَّرۡنَـٰهُمۡ تَدۡمِیرࣰا ﴿36﴾
तो हमने कहा तुम दोनों उन लोगों के पास जा जो हमारी (कुदरत की) निशानियों को झुठलाते हैं जाओ (और समझाओ जब न माने) तो हमने उन्हें खूब बरबाद कर डाला
और कहा कि \"तुम दोनों उन लोगों के पास जाओ जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया है।\" अन्ततः हमने उन लोगों को विनष्ट करके रख दिया
وَقَوۡمَ نُوحࣲ لَّمَّا كَذَّبُوا۟ ٱلرُّسُلَ أَغۡرَقۡنَـٰهُمۡ وَجَعَلۡنَـٰهُمۡ لِلنَّاسِ ءَایَةࣰۖ وَأَعۡتَدۡنَا لِلظَّـٰلِمِینَ عَذَابًا أَلِیمࣰا ﴿37﴾
और नूह की क़ौम को जब उन लोगों ने (हमारे) पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबो दिया और हमने उनको लोगों (के हैरत) की निशानी बनाया और हमने ज़ालिमों के वास्ते दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है
और नूह की क़ौम को भी, जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबा दिया और लोगों के लिए उन्हें एक निशानी बना दिया, और उन ज़ालिमों के लिए हमने एक दुखद यातना तैयार कर रखी है
وَعَادࣰا وَثَمُودَا۟ وَأَصۡحَـٰبَ ٱلرَّسِّ وَقُرُونَۢا بَیۡنَ ذَ ٰلِكَ كَثِیرࣰا ﴿38﴾
और (इसी तरह) आद और समूद और नहर वालों और उनके दरमियान में बहुत सी जमाअतों को (हमने हलाक कर डाला)
और आद और समूद और अर-रस्सवालों और उस बीच की बहुत-सी नस्लों को भी विनष्ट किया।
وَكُلࣰّا ضَرَبۡنَا لَهُ ٱلۡأَمۡثَـٰلَۖ وَكُلࣰّا تَبَّرۡنَا تَتۡبِیرࣰا ﴿39﴾
और हमने हर एक से मिसालें बयान कर दी थीं और (खूब समझाया) मगर न माना
प्रत्येक के लिए हमने मिसालें बयान कीं। अन्ततः प्रत्येक को हमने पूरी तरह विध्वस्त कर दिया
وَلَقَدۡ أَتَوۡا۟ عَلَى ٱلۡقَرۡیَةِ ٱلَّتِیۤ أُمۡطِرَتۡ مَطَرَ ٱلسَّوۡءِۚ أَفَلَمۡ یَكُونُوا۟ یَرَوۡنَهَاۚ بَلۡ كَانُوا۟ لَا یَرۡجُونَ نُشُورࣰا ﴿40﴾
हमने उनको ख़ूब सत्यानास कर छोड़ा और ये लोग (कुफ्फ़ारे मक्का) उस बस्ती पर (हो) आए हैं जिस पर (पत्थरों की) बुरी बारिश बरसाई गयी तो क्या उन लोगों ने इसको देखा न होगा मगर (बात ये है कि) ये लोग मरने के बाद जी उठने की उम्मीद नहीं रखते (फिर क्यों ईमान लाएँ)
और उस बस्ती पर से तो वे हो आए है जिसपर बुरी वर्षा बरसी; तो क्या वे उसे देखते नहीं रहे हैं? नहीं, बल्कि वे दोबारा जीवित होकर उठने की आशा ही नहीं रखते रहे है
وَإِذَا رَأَوۡكَ إِن یَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَـٰذَا ٱلَّذِی بَعَثَ ٱللَّهُ رَسُولًا ﴿41﴾
और (ऐ रसूल) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह)
वे जब भी तुम्हें देखते हैं तो तुम्हारा मज़ाक़ बना लेते हैं कि \"क्या यही, जिसे अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है?
إِن كَادَ لَیُضِلُّنَا عَنۡ ءَالِهَتِنَا لَوۡلَاۤ أَن صَبَرۡنَا عَلَیۡهَاۚ وَسَوۡفَ یَعۡلَمُونَ حِینَ یَرَوۡنَ ٱلۡعَذَابَ مَنۡ أَضَلُّ سَبِیلًا ﴿42﴾
अगर बुतों की परसतिश पर साबित क़दम न रहते तो इस शख्स ने हमको हमारे माबूदों से बहका दिया था और बहुत जल्द (क़यामत में) जब ये लोग अज़ाब को देखेंगें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राहे रास्त से कौन ज्यादा भटका हुआ था
इसने तो हमें भटकाकर हमको हमारे प्रभु-पूज्यों से फेर ही दिया होता, यदि हम उनपर मज़बूती से जम न गए होते।\"
أَرَءَیۡتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَـٰهَهُۥ هَوَىٰهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَیۡهِ وَكِیلًا ﴿43﴾
क्या तुमने उस शख्स को भी देखा है जिसने अपनी नफ़सियानी ख्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उसके ज़िम्मेदार हो सकते हो (कि वह गुमराह न हों)
क्या तुमने उसको भी देखा, जिसने अपना प्रभु अपनी (तुच्छ) इच्छा को बना रखा है? तो क्या तुम उसका ज़िम्मा ले सकते हो
أَمۡ تَحۡسَبُ أَنَّ أَكۡثَرَهُمۡ یَسۡمَعُونَ أَوۡ یَعۡقِلُونَۚ إِنۡ هُمۡ إِلَّا كَٱلۡأَنۡعَـٰمِ بَلۡ هُمۡ أَضَلُّ سَبِیلًا ﴿44﴾
क्या ये तुम्हारा ख्याल है कि इन (कुफ्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिसल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज्यादा राह (रास्त) से भटके हुए
या तुम समझते हो कि उनमें अधिकतर सुनते और समझते है? वे तो बस चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट!
أَلَمۡ تَرَ إِلَىٰ رَبِّكَ كَیۡفَ مَدَّ ٱلظِّلَّ وَلَوۡ شَاۤءَ لَجَعَلَهُۥ سَاكِنࣰا ثُمَّ جَعَلۡنَا ٱلشَّمۡسَ عَلَیۡهِ دَلِیلࣰا ﴿45﴾
(ऐ रसूल) क्या तुमने अपने परवरदिगार की कुदरत की तरफ नज़र नहीं की कि उसने क्योंकर साये को फैला दिया अगर वह चहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुआ कर देता फिर हमने आफताब को (उसकी शिनाख्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया
क्या तुमने अपने रब को नहीं देखा कि कैसे फैलाई छाया? यदि चाहता तो उसे स्थिर रखता। फिर हमने सूर्य को उसका पता देनेवाला बनाया,
ثُمَّ قَبَضۡنَـٰهُ إِلَیۡنَا قَبۡضࣰا یَسِیرࣰا ﴿46﴾
फिर हमने उसको थोड़ा थोड़ा करके अपनी तरफ खीच लिया
फिर हम उसको धीरे-धीरे अपनी ओर समेट लेते है
وَهُوَ ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّیۡلَ لِبَاسࣰا وَٱلنَّوۡمَ سُبَاتࣰا وَجَعَلَ ٱلنَّهَارَ نُشُورࣰا ﴿47﴾
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने तुम्हारे वास्ते रात को पर्दा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक्त बनाया
वही है जिसने रात्रि को तुम्हारे लिए वस्त्र और निद्रा को सर्वथा विश्राम एवं शान्ति बनाया और दिन को जी उठने का समय बनाया
وَهُوَ ٱلَّذِیۤ أَرۡسَلَ ٱلرِّیَـٰحَ بُشۡرَۢا بَیۡنَ یَدَیۡ رَحۡمَتِهِۦۚ وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ طَهُورࣰا ﴿48﴾
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुश ख़बरी देने के लिए (पेश ख़ेमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और सुथरा हुआ पानी बरसाया
और वही है जिसने अपनी दयालुता (वर्षा) के आगे-आगे हवाओं को शुभ सूचना बनाकर भेजता है, और हम ही आकाश से स्वच्छ जल उतारते है
لِّنُحۡـِۧیَ بِهِۦ بَلۡدَةࣰ مَّیۡتࣰا وَنُسۡقِیَهُۥ مِمَّا خَلَقۡنَاۤ أَنۡعَـٰمࣰا وَأَنَاسِیَّ كَثِیرࣰا ﴿49﴾
ताकि हम उसके ज़रिए से मुर्दा (वीरान) शहर को ज़िन्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूकात में से चौपायों और बहुत से आदमियों को उससे सेराब करें
ताकि हम उसके द्वारा निर्जीव भू-भाग को जीवन प्रदान करें और उसे अपने पैदा किए हुए बहुत-से चौपायों और मनुष्यों को पिलाएँ
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَـٰهُ بَیۡنَهُمۡ لِیَذَّكَّرُوا۟ فَأَبَىٰۤ أَكۡثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورࣰا ﴿50﴾
और हमने पानी को उनके दरमियान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना
उसे हमने उनके बीच विभिन्न ढ़ंग से पेश किया है, ताकि वे ध्यान दें। परन्तु अधिकतर लोगों ने इनकार और अकृतज्ञता के अतिरिक्त दूसरी नीति अपनाने से इनकार ही किया
وَلَوۡ شِئۡنَا لَبَعَثۡنَا فِی كُلِّ قَرۡیَةࣲ نَّذِیرࣰا ﴿51﴾
और अगर हम चाहते तो हर बस्ती में ज़रुर एक (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाला पैग़म्बर भेजते
यदि हम चाहते तो हर बस्ती में एक डरानेवाला भेज देते
فَلَا تُطِعِ ٱلۡكَـٰفِرِینَ وَجَـٰهِدۡهُم بِهِۦ جِهَادࣰا كَبِیرࣰا ﴿52﴾
(तो ऐ रसूल) तुम काफिरों की इताअत न करना और उनसे कुरान के (दलाएल) से खूब लड़ों
अतः इनकार करनेवालों की बात न मानता और इस (क़ुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद! (जी तोड़ कोशिश)
۞ وَهُوَ ٱلَّذِی مَرَجَ ٱلۡبَحۡرَیۡنِ هَـٰذَا عَذۡبࣱ فُرَاتࣱ وَهَـٰذَا مِلۡحٌ أُجَاجࣱ وَجَعَلَ بَیۡنَهُمَا بَرۡزَخࣰا وَحِجۡرࣰا مَّحۡجُورࣰا ﴿53﴾
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने दरयाओं को आपस में मिला दिया (और बावजूद कि) ये खालिस मज़ेदार मीठा है और ये बिल्कुल खारी कड़वा (मगर दोनों को मिलाया) और दोनों के दरमियान एक आड़ और मज़बूत ओट बना दी है (कि गड़बड़ न हो)
वही है जिसने दो समुद्रों को मिलाया। यह स्वादिष्ट और मीठा है और यह खारी और कडुआ। और दोनों के बीच उसने एक परदा डाल दिया है और एक पृथक करनेवाली रोक रख दी है
وَهُوَ ٱلَّذِی خَلَقَ مِنَ ٱلۡمَاۤءِ بَشَرࣰا فَجَعَلَهُۥ نَسَبࣰا وَصِهۡرࣰاۗ وَكَانَ رَبُّكَ قَدِیرࣰا ﴿54﴾
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने पानी (मनी) से आदमी को पैदा किया फिर उसको ख़ानदान और सुसराल वाला बनाया और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर क़ादिर है
और वही है जिसने पानी से एक मनुष्य पैदा किया। फिर उसे वंशगत सम्बन्धों और ससुराली रिश्तेवाला बनाया। तुम्हारा रब बड़ा ही सामर्थ्यवान है
وَیَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا یَنفَعُهُمۡ وَلَا یَضُرُّهُمۡۗ وَكَانَ ٱلۡكَافِرُ عَلَىٰ رَبِّهِۦ ظَهِیرࣰا ﴿55﴾
और लोग (कुफ्फ़ारे मक्का) ख़ुदा को छोड़कर उस चीज़ की परसतिश करते हैं जो न उन्हें नफा ही दे सकती है और न नुक़सान ही पहुँचा सकती है और काफिर (अबूजहल) तो हर वक्त अपने परवरदिगार की मुख़ालेफत पर ज़ोर लगाए हुए है
अल्लाह से इतर वे उनको पूजते है जो न उन्हें लाभ पहुँचा सकते है और न ही उन्हें हानि पहुँचा सकते है। और ऊपर से यह भी कि इनकार करनेवाला अपने रब का विरोधी और उसके मुक़ाबले में दूसरों का सहायक बना हुआ है
وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ إِلَّا مُبَشِّرࣰا وَنَذِیرࣰا ﴿56﴾
और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको बस (नेकी को जन्नत की) खुशख़बरी देने वाला और (बुरों को अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है
और हमने तो तुमको शुभ-सूचना देनेवाला और सचेतकर्ता बनाकर भेजा है।
قُلۡ مَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ أَجۡرٍ إِلَّا مَن شَاۤءَ أَن یَتَّخِذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِیلࣰا ﴿57﴾
और उन लोगों से तुम कह दो कि मै इस (तबलीगे रिसालत) पर तुमसे कुछ मज़दूरी तो माँगता नहीं हूँ मगर तमन्ना ये है कि जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुँचने की राह पकडे
कह दो, \"मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता सिवाय इसके कि जो कोई चाहे अपने रब की ओर ले जानेवाला मार्ग अपना ले।\"
وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱلۡحَیِّ ٱلَّذِی لَا یَمُوتُ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِهِۦۚ وَكَفَىٰ بِهِۦ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِیرًا ﴿58﴾
और (ऐ रसूल) तुम उस (ख़ुदा) पर भरोसा रखो जो ऐसा ज़िन्दा है कि कभी नहीं मरेगा और उसकी हम्द व सना की तस्बीह पढ़ो और वह अपने बन्दों के गुनाहों की वाक़िफ कारी में काफी है (वह ख़ुद समझ लेगा)
और उस अल्लाह पर भरोसा करो जो जीवन्त और अमर है और उसका गुणगान करो। वह अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने के लिए काफ़ी है
ٱلَّذِی خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَیۡنَهُمَا فِی سِتَّةِ أَیَّامࣲ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ ٱلرَّحۡمَـٰنُ فَسۡـَٔلۡ بِهِۦ خَبِیرࣰا ﴿59﴾
जिसने सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों में है छह: दिन में पैदा किया फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ और वह बड़ा मेहरबान है तो तुम उसका हाल किसी बाख़बर ही से पूछना
जिसने आकाशों और धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है छह दिनों में पैदा किया, फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। रहमान है वह! अतः पूछो उससे जो उसकी ख़बर रखता है
وَإِذَا قِیلَ لَهُمُ ٱسۡجُدُوا۟ لِلرَّحۡمَـٰنِ قَالُوا۟ وَمَا ٱلرَّحۡمَـٰنُ أَنَسۡجُدُ لِمَا تَأۡمُرُنَا وَزَادَهُمۡ نُفُورࣰا ۩ ﴿60﴾
और जब उन कुफ्फारों से कहा जाता है कि रहमान (ख़ुदा) को सजदा करो तो कहते हैं कि रहमान क्या चीज़ है तुम जिसके लिए कहते हो हम उस का सजदा करने लगें और (इससे) उनकी नफरत और बढ़ जाती है (60) सजदा
उन लोगों से जब कहा जाता है कि \"रहमान को सजदा करो\" तो वे कहते है, \"और रहमान क्या होता है? क्या जिसे तू हमसे कह दे उसी को हम सजदा करने लगें?\" और यह चीज़ उनकी घृणा को और बढ़ा देती है
تَبَارَكَ ٱلَّذِی جَعَلَ فِی ٱلسَّمَاۤءِ بُرُوجࣰا وَجَعَلَ فِیهَا سِرَ ٰجࣰا وَقَمَرࣰا مُّنِیرࣰا ﴿61﴾
बहुत बाबरकत है वह ख़ुदा जिसने आसमान में बुर्ज बनाए और उन बुर्जों में (आफ़ताब का) चिराग़ और जगमगाता चाँद बनाया
बड़ी बरकतवाला है वह, जिसने आकाश में बुर्ज (नक्षत्र) बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया
وَهُوَ ٱلَّذِی جَعَلَ ٱلَّیۡلَ وَٱلنَّهَارَ خِلۡفَةࣰ لِّمَنۡ أَرَادَ أَن یَذَّكَّرَ أَوۡ أَرَادَ شُكُورࣰا ﴿62﴾
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने रात और दिन (एक) को (एक का) जानशीन बनाया (ये) उस के (समझने के) लिए है जो नसीहत हासिल करना चाहे या शुक्र गुज़ारी का इरादा करें
और वही है जिसने रात और दिन को एक-दूसरे के पीछे आनेवाला बनाया, उस व्यक्ति के लिए (निशानी) जो चेतना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे
وَعِبَادُ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلَّذِینَ یَمۡشُونَ عَلَى ٱلۡأَرۡضِ هَوۡنࣰا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ ٱلۡجَـٰهِلُونَ قَالُوا۟ سَلَـٰمࣰا ﴿63﴾
और (ख़ुदाए) रहमान के ख़ास बन्दे तो वह हैं जो ज़मीन पर फिरौतनी के साथ चलते हैं और जब जाहिल उनसे (जिहालत) की बात करते हैं तो कहते हैं कि सलाम (तुम सलामत रहो)
रहमान के (प्रिय) बन्दें वहीं है जो धरती पर नम्रतापूर्वक चलते है और जब जाहिल उनके मुँह आएँ तो कह देते है, \"तुमको सलाम!\"
وَٱلَّذِینَ یَبِیتُونَ لِرَبِّهِمۡ سُجَّدࣰا وَقِیَـٰمࣰا ﴿64﴾
और वह लोग जो अपने परवरदिगार के वास्ते सज़दे और क़याम में रात काट देते हैं
जो अपने रब के आगे सजदे में और खड़े रातें गुज़ारते है;
وَٱلَّذِینَ یَقُولُونَ رَبَّنَا ٱصۡرِفۡ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا ﴿65﴾
और वह लोग जो दुआ करते हैं कि परवरदिगारा हम से जहन्नुम का अज़ाब फेरे रहना क्योंकि उसका अज़ाब बहुत (सख्त और पाएदार होगा)
जो कहते है कि \"ऐ हमारे रब! जहन्नम की यातना को हमसे हटा दे।\" निश्चय ही उनकी यातना चिमटकर रहनेवाली है
إِنَّهَا سَاۤءَتۡ مُسۡتَقَرࣰّا وَمُقَامࣰا ﴿66﴾
बेशक वह बहुत बुरा ठिकाना और बुरा मक़ाम है
निश्चय ही वह जगह ठहरने की दृष्टि! से भी बुरी है और स्थान की दृष्टि से भी
وَٱلَّذِینَ إِذَاۤ أَنفَقُوا۟ لَمۡ یُسۡرِفُوا۟ وَلَمۡ یَقۡتُرُوا۟ وَكَانَ بَیۡنَ ذَ ٰلِكَ قَوَامࣰا ﴿67﴾
और वह लोग कि जब खर्च करते हैं तो न फुज़ूल ख़र्ची करते हैं और न तंगी करते हैं और उनका ख़र्च उसके दरमेयान औसत दर्जे का रहता है
जो ख़र्च करते है तो न अपव्यय करते है और न ही तंगी से काम लेते है, बल्कि वे इनके बीच मध्यमार्ग पर रहते है
وَٱلَّذِینَ لَا یَدۡعُونَ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ وَلَا یَقۡتُلُونَ ٱلنَّفۡسَ ٱلَّتِی حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَلَا یَزۡنُونَۚ وَمَن یَفۡعَلۡ ذَ ٰلِكَ یَلۡقَ أَثَامࣰا ﴿68﴾
और वह लोग जो ख़ुदा के साथ दूसरे माबूदों की परसतिश नही करते और जिस जान के मारने को ख़ुदा ने हराम कर दिया है उसे नाहक़ क़त्ल नहीं करते और न ज़िना करते हैं और जो शख्स ऐसा करेगा वह आप अपने गुनाह की सज़ा भुगतेगा
जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे इष्ट-पूज्य को नहीं पुकारते और न नाहक़ किसी जीव को जिस (के क़त्ल) को अल्लाह ने हराम किया है, क़त्ल करते है। और न वे व्यभिचार करते है - जो कोई यह काम करे तो वह गुनाह के वबाल से दोचार होगा
یُضَـٰعَفۡ لَهُ ٱلۡعَذَابُ یَوۡمَ ٱلۡقِیَـٰمَةِ وَیَخۡلُدۡ فِیهِۦ مُهَانًا ﴿69﴾
कि क़यामत के दिन उसके लिए अज़ाब दूना कर दिया जाएगा और उसमें हमेशा ज़लील व ख़वार रहेगा
क़ियामत के दिन उसकी यातना बढ़ती चली जाएगी॥ और वह उसी में अपमानित होकर स्थायी रूप से पड़ा रहेगा
إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ عَمَلࣰا صَـٰلِحࣰا فَأُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُبَدِّلُ ٱللَّهُ سَیِّـَٔاتِهِمۡ حَسَنَـٰتࣲۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورࣰا رَّحِیمࣰا ﴿70﴾
मगर (हाँ) जिस शख्स ने तौबा की और ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो (अलबत्ता) उन लोगों की बुराइयों को ख़ुदा नेकियों से बदल देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
सिवाय उसके जो पलट आया और ईमान लाया और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों से बदल देगा। और अल्लाह है भी अत्यन्त क्षमाशील, दयावान
وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَـٰلِحࣰا فَإِنَّهُۥ یَتُوبُ إِلَى ٱللَّهِ مَتَابࣰا ﴿71﴾
और जिस शख्स ने तौबा कर ली और अच्छे अच्छे काम किए तो बेशक उसने ख़ुदा की तरफ (सच्चे दिल से) हक़ीकक़तन रुजु की
और जिसने तौबा की और अच्छा कर्म किया, तो निश्चय ही वह अल्लाह की ओर पलटता है, जैसा कि पलटने का हक़ है
وَٱلَّذِینَ لَا یَشۡهَدُونَ ٱلزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا۟ بِٱللَّغۡوِ مَرُّوا۟ كِرَامࣰا ﴿72﴾
और वह लोग जो फरेब के पास ही नही खड़े होते और वह लोग जब किसी बेहूदा काम के पास से गुज़रते हैं तो बुर्ज़ुगाना अन्दाज़ से गुज़र जाते हैं
जो किसी झूठ और असत्य में सम्मिलित नहीं होते और जब किसी व्यर्थ के कामों के पास से गुज़रते है, तो श्रेष्ठतापूर्वक गुज़र जाते है,
وَٱلَّذِینَ إِذَا ذُكِّرُوا۟ بِـَٔایَـٰتِ رَبِّهِمۡ لَمۡ یَخِرُّوا۟ عَلَیۡهَا صُمࣰّا وَعُمۡیَانࣰا ﴿73﴾
और वह लोग कि जब उन्हें उनके परवरदिगार की आयतें याद दिलाई जाती हैं तो बहरे अन्धें होकर गिर नहीं पड़ते बल्कि जी लगाकर सुनते हैं
जो ऐसे हैं कि जब उनके रब की आयतों के द्वारा उन्हें याददिहानी कराई जाती है तो उन (आयतों) पर वे अंधे और बहरे होकर नहीं गिरते।
وَٱلَّذِینَ یَقُولُونَ رَبَّنَا هَبۡ لَنَا مِنۡ أَزۡوَ ٰجِنَا وَذُرِّیَّـٰتِنَا قُرَّةَ أَعۡیُنࣲ وَٱجۡعَلۡنَا لِلۡمُتَّقِینَ إِمَامًا ﴿74﴾
और वह लोग जो (हमसे) अर्ज़ करते हैं कि परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलादों की तरफ से ऑंखों की ठन्डक अता फरमा और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना
और जो कहते है, \"ऐ हमारे रब! हमें हमारी अपनी पत्नियों और हमारी संतान से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें डर रखनेवालों का नायक बना दे।\"
أُو۟لَـٰۤىِٕكَ یُجۡزَوۡنَ ٱلۡغُرۡفَةَ بِمَا صَبَرُوا۟ وَیُلَقَّوۡنَ فِیهَا تَحِیَّةࣰ وَسَلَـٰمًا ﴿75﴾
ये वह लोग हैं जिन्हें उनकी जज़ा में (बेहश्त के) बाला ख़ाने अता किए जाएँगें और वहाँ उन्हें ताज़ीम व सलाम (का बदला) पेश किया जाएगा
यही वे लोग है जिन्हें, इसके बदले में कि वे जमे रहे, उच्च भवन प्राप्त होगा, तथा ज़िन्दाबाद और सलाम से उनका वहाँ स्वागत होगा
خَـٰلِدِینَ فِیهَاۚ حَسُنَتۡ مُسۡتَقَرࣰّا وَمُقَامࣰا ﴿76﴾
ये लोग उसी में हमेशा रहेंगें और वह रहने और ठहरने की अच्छी जगह है
वहाँ वे सदैव रहेंगे। बहुत ही अच्छी है वह ठहरने की जगह और स्थान;
قُلۡ مَا یَعۡبَؤُا۟ بِكُمۡ رَبِّی لَوۡلَا دُعَاۤؤُكُمۡۖ فَقَدۡ كَذَّبۡتُمۡ فَسَوۡفَ یَكُونُ لِزَامَۢا ﴿77﴾
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर दुआ नही किया करते तो मेरा परवरदिगार भी तुम्हारी कुछ परवाह नही करता तुमने तो (उसके रसूल को) झुठलाया तो अन क़रीब ही (उसका वबाल) तुम्हारे सर पडेग़ा
कह दो, \"मेरे रब को तुम्हारी कोई परवाह नहीं अगर तुम (उसको) न पुकारो। अब जबकि तुम झुठला चुके हो, तो शीघ्र ही वह चीज़ चिमट जानेवाली होगी।\"