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Surah The Poets [Ash-Shuara] in Hindi
تِلۡكَ ءَایَـٰتُ ٱلۡكِتَـٰبِ ٱلۡمُبِینِ ﴿2﴾
ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें है
ये स्पष्ट किताब की आयतें है
لَعَلَّكَ بَـٰخِعࣱ نَّفۡسَكَ أَلَّا یَكُونُوا۟ مُؤۡمِنِینَ ﴿3﴾
(ऐ रसूल) शायद तुम (इस फिक्र में) अपनी जान हलाक कर डालोगे कि ये (कुफ्फार) मोमिन क्यो नहीं हो जाते
शायद इसपर कि वे ईमान नहीं लाते, तुम अपने प्राण ही खो बैठोगे
إِن نَّشَأۡ نُنَزِّلۡ عَلَیۡهِم مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ ءَایَةࣰ فَظَلَّتۡ أَعۡنَـٰقُهُمۡ لَهَا خَـٰضِعِینَ ﴿4﴾
अगर हम चाहें तो उन लोगों पर आसमान से कोई ऐसा मौजिज़ा नाज़िल करें कि उन लोगों की गर्दनें उसके सामने झुक जाएँ
यदि हम चाहें तो उनपर आकाश से एक निशानी उतार दें। फिर उनकी गर्दनें उसके आगे झुकी रह जाएँ
وَمَا یَأۡتِیهِم مِّن ذِكۡرࣲ مِّنَ ٱلرَّحۡمَـٰنِ مُحۡدَثٍ إِلَّا كَانُوا۟ عَنۡهُ مُعۡرِضِینَ ﴿5﴾
और (लोगों का क़ायदा है कि) जब उनके पास कोई कोई नसीहत की बात ख़ुदा की तरफ से आयी तो ये लोग उससे मुँह फेरे बगैर नहीं रहे
उनके पास रहमान की ओर से जो नवीन अनुस्मृति भी आती है, वे उससे मुँह फेर ही लेते है
فَقَدۡ كَذَّبُوا۟ فَسَیَأۡتِیهِمۡ أَنۢبَـٰۤؤُا۟ مَا كَانُوا۟ بِهِۦ یَسۡتَهۡزِءُونَ ﴿6﴾
उन लोगों ने झुठलाया ज़रुर तो अनक़रीब ही (उन्हें) इस (अज़ाब) की हक़ीकत मालूम हो जाएगी जिसकी ये लोग हँसी उड़ाया करते थे
अब जबकि वे झुठला चुके है, तो शीघ्र ही उन्हें उसकी हक़ीकत मालूम हो जाएगी, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते रहे है
أَوَلَمۡ یَرَوۡا۟ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ كَمۡ أَنۢبَتۡنَا فِیهَا مِن كُلِّ زَوۡجࣲ كَرِیمٍ ﴿7﴾
क्या इन लोगों ने ज़मीन की तरफ भी (ग़ौर से) नहीं देखा कि हमने हर रंग की उम्दा उम्दा चीजें उसमें किस कसरत से उगायी हैं
क्या उन्होंने धरती को नहीं देखा कि हमने उसमें कितने ही प्रकार की उमदा चीज़ें पैदा की है?
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿8﴾
यक़ीनन इसमें (भी क़ुदरत) ख़ुदा की एक बड़ी निशानी है मगर उनमें से अक्सर ईमान लाने वाले ही नहीं
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है, इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿9﴾
और इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार यक़ीनन (हर चीज़ पर) ग़ालिब (और) मेहरबान है
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
وَإِذۡ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰۤ أَنِ ٱئۡتِ ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِینَ ﴿10﴾
(ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब तुम्हारे परवरदिगार ने मूसा को आवाज़ दी कि (इन) ज़ालिमों फिरऔन की क़ौम के पास जाओ (हिदायत करो)
और जबकि तुम्हारे रह ने मूसा को पुकारा कि \"ज़ालिम लोगों के पास जा -
قَوۡمَ فِرۡعَوۡنَۚ أَلَا یَتَّقُونَ ﴿11﴾
क्या ये लोग (मेरे ग़ज़ब से) डरते नहीं है
फ़िरऔन की क़ौम के पास - क्या वे डर नहीं रखते?\"
قَالَ رَبِّ إِنِّیۤ أَخَافُ أَن یُكَذِّبُونِ ﴿12﴾
मूसा ने अर्ज़ कि परवरदिगार मैं डरता हूँ कि (मुबादा) वह लोग मुझे झुठला दे
उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! मुझे डर है कि वे मुझे झुठला देंगे,
وَیَضِیقُ صَدۡرِی وَلَا یَنطَلِقُ لِسَانِی فَأَرۡسِلۡ إِلَىٰ هَـٰرُونَ ﴿13﴾
और (उनके झुठलाने से) मेरा दम रुक जाए और मेरी ज़बान (अच्छी तरह) न चले तो हारुन के पास पैग़ाम भेज दे (कि मेरा साथ दे)
और मेरा सीना घुटता है और मेरी ज़बान नहीं चलती। इसलिए हारून की ओर भी संदेश भेज दे
وَلَهُمۡ عَلَیَّ ذَنۢبࣱ فَأَخَافُ أَن یَقۡتُلُونِ ﴿14﴾
(और इसके अलावा) उनका मेरे सर एक जुर्म भी है (कि मैने एक शख्स को मार डाला था)
और मुझपर उनके यहाँ के एक गुनाह का बोझ भी है। इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।\"
قَالَ كَلَّاۖ فَٱذۡهَبَا بِـَٔایَـٰتِنَاۤۖ إِنَّا مَعَكُم مُّسۡتَمِعُونَ ﴿15﴾
तो मैं डरता हूँ कि (शायद) मुझे ये लाग मार डालें ख़ुदा ने कहा हरगिज़ नहीं अच्छा तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ हम तुम्हारे साथ हैं
कहा, \"कदापि नहीं, तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ। हम तुम्हारे साथ है, सुनने को मौजूद है
فَأۡتِیَا فِرۡعَوۡنَ فَقُولَاۤ إِنَّا رَسُولُ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿16﴾
और (सारी गुफ्तगू) अच्छी तरह सुनते हैं ग़रज़ तुम दोनों फिरऔन के पास जाओ और कह दो कि हम सारे जहाँन के परवरदिगार के रसूल हैं (और पैग़ाम लाएँ हैं)
अतः तुम दोनो फ़िरऔन को पास जाओ और कहो कि हम सारे संसार के रब के भेजे हुए है
أَنۡ أَرۡسِلۡ مَعَنَا بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ﴿17﴾
कि आप बनी इसराइल को हमारे साथ भेज दीजिए
कि तू इसराईल की सन्तान को हमारे साथ जाने दे।\"
قَالَ أَلَمۡ نُرَبِّكَ فِینَا وَلِیدࣰا وَلَبِثۡتَ فِینَا مِنۡ عُمُرِكَ سِنِینَ ﴿18﴾
(चुनान्चे मूसा गए और कहा) फिरऔन बोला (मूसा) क्या हमने तुम्हें यहाँ रख कर बचपने में तुम्हारी परवरिश नहीं की और तुम अपनी उम्र से बरसों हम मे रह सह चुके हो
(फ़िरऔन ने) कहा, \"क्या हमने तुझे जबकि तू बच्चा था, अपने यहाँ पाला नहीं था? और तू अपनी अवस्था के कई वर्षों तक हमारे साथ रहा,
وَفَعَلۡتَ فَعۡلَتَكَ ٱلَّتِی فَعَلۡتَ وَأَنتَ مِنَ ٱلۡكَـٰفِرِینَ ﴿19﴾
और तुम अपना वह काम (ख़ून क़िब्ती) जो कर गए और तुम (बड़े) नाशुक्रे हो
और तूने अपना वह काम किया, जो किया। तू बड़ा ही कृतघ्न है।\"
قَالَ فَعَلۡتُهَاۤ إِذࣰا وَأَنَا۠ مِنَ ٱلضَّاۤلِّینَ ﴿20﴾
मूसा ने कहा (हाँ) मैने उस वक्त उस काम को किया जब मै हालते ग़फलत में था
कहा, ऐसा तो मुझसे उस समय हुआ जबकि मैं चूक गया था
فَفَرَرۡتُ مِنكُمۡ لَمَّا خِفۡتُكُمۡ فَوَهَبَ لِی رَبِّی حُكۡمࣰا وَجَعَلَنِی مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿21﴾
फिर जब मै आप लोगों से डरा तो भाग खड़ा हुआ फिर (कुछ अरसे के बाद) मेरे परवरदिगार ने मुझे नुबूवत अता फरमायी और मुझे भी एक पैग़म्बर बनाया
फिर जब मुझे तुम्हारा भय हुआ तो मैं तुम्हारे यहाँ से भाग गया। फिर मेरे रब ने मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान की और मुझे रसूलों में सम्मिलित किया
وَتِلۡكَ نِعۡمَةࣱ تَمُنُّهَا عَلَیَّ أَنۡ عَبَّدتَّ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ﴿22﴾
और ये भी कोई एहसान हे जिसे आप मुझ पर जता रहे है कि आप ने बनी इसराईल को ग़ुलाम बना रखा है
यही वह उदार अनुग्रह है जिसका रहमान तू मुझपर जताता है कि तूने इसराईल की सन्तान को ग़ुलाम बना रखा है।\"
قَالَ فِرۡعَوۡنُ وَمَا رَبُّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿23﴾
फिरऔन ने पूछा (अच्छा ये तो बताओ) रब्बुल आलमीन क्या चीज़ है
फ़िरऔन ने कहा, \"और यह सारे संसार का रब क्या होता है?\"
قَالَ رَبُّ ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَیۡنَهُمَاۤۖ إِن كُنتُم مُّوقِنِینَ ﴿24﴾
मूसा ने कहाँ सारे आसमान व ज़मीन का और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है (सबका) मालिक अगर आप लोग यक़ीन कीजिए (तो काफी है)
उसने कहा, \"आकाशों और धरती का रब और जो कुछ इन दोनों का मध्य है उसका भी, यदि तुम्हें यकीन हो।\"
قَالَ لِمَنۡ حَوۡلَهُۥۤ أَلَا تَسۡتَمِعُونَ ﴿25﴾
फिरऔन ने उन लोगो से जो उसके इर्द गिर्द (बैठे) थे कहा क्या तुम लोग नहीं सुनते हो
उसने अपने आस-पासवालों से कहा, \"क्या तुम सुनते नहीं हो?\"
قَالَ رَبُّكُمۡ وَرَبُّ ءَابَاۤىِٕكُمُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿26﴾
मूसा ने कहा (वही ख़ुदा जो कि) तुम्हारा परवरदिगार और तुम्हारे बाप दादाओं का परवरदिगार है
कहा, \"तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादा का रब।\"
قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ ٱلَّذِیۤ أُرۡسِلَ إِلَیۡكُمۡ لَمَجۡنُونࣱ ﴿27﴾
फिरऔन ने कहा (लोगों) ये रसूल जो तुम्हारे पास भेजा गया है हो न हो दीवाना है
बोला, \"निश्चय ही तुम्हारा यह रसूल, जो तुम्हारी ओर भेजा गया है, बिलकुल ही पागल है।\"
قَالَ رَبُّ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَمَا بَیۡنَهُمَاۤۖ إِن كُنتُمۡ تَعۡقِلُونَ ﴿28﴾
मूसा ने कहा (वह ख़ुदा जो) पूरब पश्चिम और जो कुछ इन दोनों के दरमियान (सबका) मालिक है अगर तुम समझते हो (तो यही काफी है)
उसने कहा, \"पूर्व और पश्चिम का रब और जो कुछ उनके बीच है उसका भी, यदि तुम कुछ बुद्धि रखते हो।\"
قَالَ لَىِٕنِ ٱتَّخَذۡتَ إِلَـٰهًا غَیۡرِی لَأَجۡعَلَنَّكَ مِنَ ٱلۡمَسۡجُونِینَ ﴿29﴾
फिरऔन ने कहा अगर तुम मेरे सिवा किसी और को (अपना) ख़ुदा बनाया है तो मै ज़रुर तुम्हे कैदी बनाऊँगा
बोला, \"यदि तूने मेरे सिवा किसी और को पूज्य एवं प्रभु बनाया, तो मैं तुझे बन्दी बनाकर रहूँगा।\"
قَالَ أَوَلَوۡ جِئۡتُكَ بِشَیۡءࣲ مُّبِینࣲ ﴿30﴾
मूसा ने कहा अगरचे मैं आपको एक वाजेए व रौशन मौजिज़ा भी दिखाऊ (तो भी)
उसने कहा, \"क्या यदि मैं तेरे पास एक स्पष्ट चीज़ ले आऊँ तब भी?\"
قَالَ فَأۡتِ بِهِۦۤ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿31﴾
फिरऔन ने कहा (अच्छा) तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो ला दिखाओ
बोलाः “अच्छा वह ले आ; यदि तू सच्चा है” ।
فَأَلۡقَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِیَ ثُعۡبَانࣱ مُّبِینࣱ ﴿32﴾
बस (ये सुनते ही) मूसा ने अपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दी फिर तो यकायक वह एक सरीही अज़दहा बन गया
फिर उसने अपनी लाठी डाल दी, तो अचानक क्या देखते है कि वह एक प्रत्यक्ष अज़गर है
وَنَزَعَ یَدَهُۥ فَإِذَا هِیَ بَیۡضَاۤءُ لِلنَّـٰظِرِینَ ﴿33﴾
और (जेब से) अपना हाथ बाहर निकाला तो यकायक देखने वालों के वास्ते बहुत सफेद चमकदार था
और उसने अपना हाथ बाहर खींचा तो फिर क्या देखते है कि वह देखनेवालों के सामने चमक रहा है
قَالَ لِلۡمَلَإِ حَوۡلَهُۥۤ إِنَّ هَـٰذَا لَسَـٰحِرٌ عَلِیمࣱ ﴿34﴾
(इस पर) फिरऔन अपने दरबारियों से जो उसके गिर्द (बैठे) थे कहने लगा
उसने अपने आस-पास के सरदारों से कहा, \"निश्चय ही यह एक बड़ा ही प्रवीण जादूगर है
یُرِیدُ أَن یُخۡرِجَكُم مِّنۡ أَرۡضِكُم بِسِحۡرِهِۦ فَمَاذَا تَأۡمُرُونَ ﴿35﴾
कि ये तो यक़ीनी बड़ा खिलाड़ी जादूगर है ये तो चाहता है कि अपने जादू के ज़ोर से तुम्हें तुम्हारे मुल्क से बाहर निकाल दे तो तुम लोग क्या हुक्म लगाते हो
चाहता है कि अपने जादू से तुम्हें तुम्हारी अपनी भूमि से निकाल बाहर करें; तो अब तुम क्या कहते हो?\"
قَالُوۤا۟ أَرۡجِهۡ وَأَخَاهُ وَٱبۡعَثۡ فِی ٱلۡمَدَاۤىِٕنِ حَـٰشِرِینَ ﴿36﴾
दरबारियों ने कहा अभी इसको और इसके भाई को (चन्द) मोहलत दीजिए
उन्होंने कहा, \"इसे और इसके भाई को अभी टाले रखिए, और एकत्र करनेवालों को नगरों में भेज दीजिए
یَأۡتُوكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِیمࣲ ﴿37﴾
और तमाम शहरों में जादूगरों के जमा करने को हरकारे रवाना कीजिए कि वह लोग तमाम बड़े बड़े खिलाड़ी जादूगरों की आपके सामने ला हाज़िर करें
कि वे प्रत्येक प्रवीण जादूगर को आपके पास ले आएँ।\"
فَجُمِعَ ٱلسَّحَرَةُ لِمِیقَـٰتِ یَوۡمࣲ مَّعۡلُومࣲ ﴿38﴾
ग़रज़ वक्ते मुकर्रर हुआ सब जादूगर उस मुक़र्रर के वायदे पर जमा किए गए
अतएव एक निश्चित दिन के नियत समय पर जादूगर एकत्र कर लिए गए
وَقِیلَ لِلنَّاسِ هَلۡ أَنتُم مُّجۡتَمِعُونَ ﴿39﴾
और लोगों में मुनादी करा दी गयी कि तुम लोग अब भी जमा होगे
और लोगों से कहा गया, \"क्या तुम भी एकत्र होते हो?\"
لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ ٱلسَّحَرَةَ إِن كَانُوا۟ هُمُ ٱلۡغَـٰلِبِینَ ﴿40﴾
या नहीं ताकि अगर जादूगर ग़ालिब और वर है तो हम लोग उनकी पैरवी करें
कदाचित हम जादूगरों ही के अनुयायी रह जाएँ, यदि वे विजयी हुए
فَلَمَّا جَاۤءَ ٱلسَّحَرَةُ قَالُوا۟ لِفِرۡعَوۡنَ أَىِٕنَّ لَنَا لَأَجۡرًا إِن كُنَّا نَحۡنُ ٱلۡغَـٰلِبِینَ ﴿41﴾
अलग़रज जब सब जादूगर आ गये तो जादूगरों ने फिरऔन से कहा कि अगर हम ग़ालिब आ गए तो हमको यक़ीनन कुछ इनाम (सरकार से) मिलेगा
फिर जब जादूगर आए तो उन्होंने फ़िरऔन से कहा, \"क्या हमारे लिए कोई प्रतिदान भी है, यदि हम प्रभावी रहे?\"
قَالَ نَعَمۡ وَإِنَّكُمۡ إِذࣰا لَّمِنَ ٱلۡمُقَرَّبِینَ ﴿42﴾
फिरऔन ने कहा हा (ज़रुर मिलेगा) और (इनाम क्या चीज़ है) तुम उस वक्त (मेरे) मुकररेबीन (बारगाह) से हो गए
उसने कहा, \"हाँ, और निश्चित ही तुम तो उस समय निकटतम लोगों में से हो जाओगे।\"
قَالَ لَهُم مُّوسَىٰۤ أَلۡقُوا۟ مَاۤ أَنتُم مُّلۡقُونَ ﴿43﴾
मूसा ने जादूगरों से कहा (मंत्र व तंत्र) जो कुछ तुम्हें फेंकना हो फेंको
मूसा ने उनसे कहा, \"डालो, जो कुछ तुम्हें डालना है।\"
فَأَلۡقَوۡا۟ حِبَالَهُمۡ وَعِصِیَّهُمۡ وَقَالُوا۟ بِعِزَّةِ فِرۡعَوۡنَ إِنَّا لَنَحۡنُ ٱلۡغَـٰلِبُونَ ﴿44﴾
इस पर जादूगरों ने अपनी रस्सियाँ और अपनी छड़ियाँ (मैदान में) डाल दी और कहने लगे फिरऔन के जलाल की क़सम हम ही ज़रुर ग़ालिब रहेंगे
तब उन्होंने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डाल दी और बोले, \"फ़िरऔन के प्रताप से हम ही विजयी रहेंगे।\"
فَأَلۡقَىٰ مُوسَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِیَ تَلۡقَفُ مَا یَأۡفِكُونَ ﴿45﴾
तब मूसा ने अपनी छड़ी डाली तो जादूगरों ने जो कुछ (शोबदे) बनाए थे उसको वह निगलने लगी
फिर मूसा ने अपनी लाठी फेकी तो क्या देखते है कि वह उसे स्वाँग को, जो वे रचाते है, निगलती जा रही है
فَأُلۡقِیَ ٱلسَّحَرَةُ سَـٰجِدِینَ ﴿46﴾
ये देखते ही जादूगर लोग सजदे में (मूसा के सामने) गिर पडे
इसपर जादूगर सजदे में गिर पड़े
قَالُوۤا۟ ءَامَنَّا بِرَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿47﴾
और कहने लगे हम सारे जहाँ के परवरदिगार पर ईमान लाए
वे बोल उठे, \"हम सारे संसार के रब पर ईमान ले आए -
رَبِّ مُوسَىٰ وَهَـٰرُونَ ﴿48﴾
जो मूसा और हारुन का परवरदिगार है
मूसा और हारून के रब पर!\"
قَالَ ءَامَنتُمۡ لَهُۥ قَبۡلَ أَنۡ ءَاذَنَ لَكُمۡۖ إِنَّهُۥ لَكَبِیرُكُمُ ٱلَّذِی عَلَّمَكُمُ ٱلسِّحۡرَ فَلَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَۚ لَأُقَطِّعَنَّ أَیۡدِیَكُمۡ وَأَرۡجُلَكُم مِّنۡ خِلَـٰفࣲ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمۡ أَجۡمَعِینَ ﴿49﴾
फिरऔन ने कहा (हाए) क़ब्ल इसके कि मै तुम्हें इजाज़त दूँ तुम इस पर ईमान ले आए बेशक ये तुम्हारा बड़ा (गुरु है जिसने तुम सबको जादू सिखाया है तो ख़ैर) अभी तुम लोगों को (इसका नतीजा) मालूम हो जाएगा कि हम यक़ीनन तुम्हारे एक तरफ के हाथ और दूसरी तरफ के पाँव काट डालेगें और तुम सब के सब को सूली देगें
उसने कहा, \"तुमने उसको मान लिया, इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति देता। निश्चय ही वह तुम सबका प्रमुख है, जिसने तुमको जादू सिखाया है। अच्छा, शीघ्र ही तुम्हें मालूम हुआ जाता है! मैं तुम्हारे हाथ और पाँव विपरीत दिशाओं से कटवा दूँगा और तुम सभी को सूली पर चढ़ा दूँगा।\"
قَالُوا۟ لَا ضَیۡرَۖ إِنَّاۤ إِلَىٰ رَبِّنَا مُنقَلِبُونَ ﴿50﴾
वह बोले कुछ परवाह नही हमको तो बहरहाल अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है
उन्होंने कहा, \"कुछ हरज नहीं; हम तो अपने रब ही की ओर पलटकर जानेवाले है
إِنَّا نَطۡمَعُ أَن یَغۡفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطَـٰیَـٰنَاۤ أَن كُنَّاۤ أَوَّلَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿51﴾
हम चँकि सबसे पहले ईमान लाए है इसलिए ये उम्मीद रखते हैं कि हमारा परवरदिगार हमारी ख़ताएँ माफ कर देगा
हमें तो इसी की लालसा है कि हमारा रब हमारी ख़ताओं को क्षमा कर दें, क्योंकि हम सबसे पहले ईमान लाए।\"
۞ وَأَوۡحَیۡنَاۤ إِلَىٰ مُوسَىٰۤ أَنۡ أَسۡرِ بِعِبَادِیۤ إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ ﴿52﴾
और हमने मूसा के पास वही भेजी कि तुम मेरे बन्दों को लेकर रातों रात निकल जाओ क्योंकि तुम्हारा पीछा किया जाएगा
हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, \"मेरे बन्दों को लेकर रातों-रात निकल जा। निश्चय ही तुम्हारा पीछा किया जाएगा।\"
فَأَرۡسَلَ فِرۡعَوۡنُ فِی ٱلۡمَدَاۤىِٕنِ حَـٰشِرِینَ ﴿53﴾
तब फिरऔन ने (लश्कर जमा करने के ख्याल से) तमाम शहरों में (धड़ा धड़) हरकारे रवाना किए
इसपर फ़िरऔन ने एकत्र करनेवालों को नगर में भेजा
إِنَّ هَـٰۤؤُلَاۤءِ لَشِرۡذِمَةࣱ قَلِیلُونَ ﴿54﴾
(और कहा) कि ये लोग मूसा के साथ बनी इसराइल थोड़ी सी (मुट्ठी भर की) जमाअत हैं
कि \"यह गिरे-पड़े थोड़े लोगों का एक गिरोह है,
وَإِنَّهُمۡ لَنَا لَغَاۤىِٕظُونَ ﴿55﴾
और उन लोगों ने हमें सख्त गुस्सा दिलाया है
और ये हमें क्रुद्ध कर रहे है।
وَإِنَّا لَجَمِیعٌ حَـٰذِرُونَ ﴿56﴾
और हम सबके सब बा साज़ों सामान हैं
और हम चौकन्ना रहनेवाले लोग है।\"
فَأَخۡرَجۡنَـٰهُم مِّن جَنَّـٰتࣲ وَعُیُونࣲ ﴿57﴾
(तुम भी आ जाओ कि सब मिलकर ताअककुब (पीछा) करें)
इस प्रकार हम उन्हें बाग़ों और स्रोतों
وَكُنُوزࣲ وَمَقَامࣲ كَرِیمࣲ ﴿58﴾
ग़रज़ हमने इन लोगों को (मिस्र के) बाग़ों और चश्मों और खज़ानों और इज्ज़त की जगह से (यूँ) निकाल बाहर किया
और ख़जानों और अच्छे स्थान से निकाल लाए
كَذَ ٰلِكَۖ وَأَوۡرَثۡنَـٰهَا بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ﴿59﴾
(और जो नाफरमानी करे) इसी तरह सज़ा होगी और आख़िर हमने उन्हीं चीज़ों का मालिक बनी इसराइल को बनाया
ऐसा ही हम करते है और इनका वारिस हमने इसराईल की सन्तान को बना दिया
فَأَتۡبَعُوهُم مُّشۡرِقِینَ ﴿60﴾
ग़रज़ (मूसा) तो रात ही को चले गए
सुबह-तड़के उन्होंने उनका पीछा किया
فَلَمَّا تَرَ ٰۤءَا ٱلۡجَمۡعَانِ قَالَ أَصۡحَـٰبُ مُوسَىٰۤ إِنَّا لَمُدۡرَكُونَ ﴿61﴾
और उन लोगों ने सूरज निकलते उनका पीछा किया तो जब दोनों जमाअतें (इतनी करीब हुयीं कि) एक दूसरे को देखने लगी तो मूसा के साथी (हैरान होकर) कहने लगे
फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, \"हम तो पकड़े गए!\"
قَالَ كَلَّاۤۖ إِنَّ مَعِیَ رَبِّی سَیَهۡدِینِ ﴿62﴾
कि अब तो पकड़े गए मूसा ने कहा हरगिज़ नहीं क्योंकि मेरे साथ मेरा परवरदिगार है
उसने कहा, \"कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।\"
فَأَوۡحَیۡنَاۤ إِلَىٰ مُوسَىٰۤ أَنِ ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡبَحۡرَۖ فَٱنفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرۡقࣲ كَٱلطَّوۡدِ ٱلۡعَظِیمِ ﴿63﴾
वह फौरन मुझे कोई (मुखलिसी का) रास्ता बता देगा तो हमने मूसा के पास वही भेजी कि अपनी छड़ी दरिया पर मारो (मारना था कि) फौरन दरिया फुट के टुकड़े टुकड़े हो गया तो गोया हर टुकड़ा एक बड़ा ऊँचा पहाड़ था
तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, \"अपनी लाठी सागर पर मार।\"
وَأَزۡلَفۡنَا ثَمَّ ٱلۡـَٔاخَرِینَ ﴿64﴾
और हमने उसी जगह दूसरे फरीक (फिरऔन के साथी) को क़रीब कर दिया
और हम दूसरों को भी निकट ले आए
وَأَنجَیۡنَا مُوسَىٰ وَمَن مَّعَهُۥۤ أَجۡمَعِینَ ﴿65﴾
और मूसा और उसके साथियों को हमने (डूबने से) बचा लिया
हमने मूसा को और उन सबको जो उसके साथ थे, बचा लिया
ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا ٱلۡـَٔاخَرِینَ ﴿66﴾
फिर दूसरे फरीक़ (फिरऔन और उसके साथियों) को डुबोकर हलाक़ कर दिया
और दूसरों को डूबो दिया
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿67﴾
बेशक इसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और उनमें अक्सर ईमान लाने वाले ही न थे
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿68﴾
और इसमें तो शक ही न था कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
وَٱتۡلُ عَلَیۡهِمۡ نَبَأَ إِبۡرَ ٰهِیمَ ﴿69﴾
और (ऐ रसूल) उन लोगों के सामने इबराहीम का किस्सा बयान करों
और उन्हें इबराहीम का वृत्तान्त सुनाओ,
إِذۡ قَالَ لِأَبِیهِ وَقَوۡمِهِۦ مَا تَعۡبُدُونَ ﴿70﴾
जब उन्होंने अपने (मुँह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा
जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौंम के लोगों से कहा, \"तुम क्या पूजते हो?\"
قَالُوا۟ نَعۡبُدُ أَصۡنَامࣰا فَنَظَلُّ لَهَا عَـٰكِفِینَ ﴿71﴾
कि तुम लोग किसकी इबादत करते हो तो वह बोले हम बुतों की इबादत करते हैं और उन्हीं के मुजाविर बन जाते हैं
उन्होंने कहा, \"हम बुतों की पूजा करते है, हम तो उन्हीं की सेवा में लगे रहेंगे।\"
قَالَ هَلۡ یَسۡمَعُونَكُمۡ إِذۡ تَدۡعُونَ ﴿72﴾
इबराहीम ने कहा भला जब तुम लोग उन्हें पुकारते हो तो वह तुम्हारी कुछ सुनते हैं
उसने कहा, \"क्या ये तुम्हारी सुनते है, जब तुम पुकारते हो,
أَوۡ یَنفَعُونَكُمۡ أَوۡ یَضُرُّونَ ﴿73﴾
या तम्हें कुछ नफा या नुक़सान पहुँचा सकते हैं
या ये तुम्हें कुछ लाभ या हानि पहुँचाते है?\"
قَالُوا۟ بَلۡ وَجَدۡنَاۤ ءَابَاۤءَنَا كَذَ ٰلِكَ یَفۡعَلُونَ ﴿74﴾
कहने लगे (कि ये सब तो कुछ नहीं) बल्कि हमने अपने बाप दादाओं को ऐसा ही करते पाया है
उन्होंने कहा, \"नहीं, बल्कि हमने तो अपने बाप-दादा को ऐसा ही करते पाया है।\"
قَالَ أَفَرَءَیۡتُم مَّا كُنتُمۡ تَعۡبُدُونَ ﴿75﴾
इबराहीम ने कहा क्या तुमने देखा भी कि जिन चीज़ों कीे तुम परसतिश करते हो
उसने कहा, \"क्या तुमने उनपर विचार भी किया कि जिन्हें तुम पूजते हो,
أَنتُمۡ وَءَابَاۤؤُكُمُ ٱلۡأَقۡدَمُونَ ﴿76﴾
या तुम्हारे अगले बाप दादा (करते थे) ये सब मेरे यक़ीनी दुश्मन हैं
तुम और तुम्हारे पहले के बाप-दादा?
فَإِنَّهُمۡ عَدُوࣱّ لِّیۤ إِلَّا رَبَّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿77﴾
मगर सारे जहाँ का पालने वाला जिसने मुझे पैदा किया (वही मेरा दोस्त है)
वे सब तो मेरे शत्रु है, सिवाय सारे संसार के रब के,
ٱلَّذِی خَلَقَنِی فَهُوَ یَهۡدِینِ ﴿78﴾
फिर वही मेरी हिदायत करता है
जिसने मुझे पैदा किया और फिर वही मेरा मार्गदर्शन करता है
وَٱلَّذِی هُوَ یُطۡعِمُنِی وَیَسۡقِینِ ﴿79﴾
और वह शख्स जो मुझे (खाना) खिलाता है और मुझे (पानी) पिलाता है
और वही है जो मुझे खिलाता और पिलाता है
وَإِذَا مَرِضۡتُ فَهُوَ یَشۡفِینِ ﴿80﴾
और जब बीमार पड़ता हूँ तो वही मुझे शिफा इनायत फरमाता है
और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे अच्छा करता है
وَٱلَّذِی یُمِیتُنِی ثُمَّ یُحۡیِینِ ﴿81﴾
और वह वही हेै जो मुझे मार डालेगा और उसके बाद (फिर) मुझे ज़िन्दा करेगा
और वही है जो मुझे मारेगा, फिर मुझे जीवित करेगा
وَٱلَّذِیۤ أَطۡمَعُ أَن یَغۡفِرَ لِی خَطِیۤـَٔتِی یَوۡمَ ٱلدِّینِ ﴿82﴾
और वह वही है जिससे मै उम्मीद रखता हूँ कि क़यामत के दिन मेरी ख़ताओं को बख्श देगा
और वही है जिससे मुझे इसकी आकांक्षा है कि बदला दिए जाने के दिन वह मेरी ख़ता माफ़ कर देगा
رَبِّ هَبۡ لِی حُكۡمࣰا وَأَلۡحِقۡنِی بِٱلصَّـٰلِحِینَ ﴿83﴾
परवरदिगार मुझे इल्म व फहम अता फरमा और मुझे नेकों के साथ शामिल कर
ऐ मेरे रब! मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान कर और मुझे योग्य लोगों के साथ मिला।
وَٱجۡعَل لِّی لِسَانَ صِدۡقࣲ فِی ٱلۡـَٔاخِرِینَ ﴿84﴾
और आइन्दा आने वाली नस्लों में मेरा ज़िक्रे ख़ैर क़ायम रख
और बाद के आनेवालों में से मुझे सच्ची ख़्याति प्रदान कर
وَٱجۡعَلۡنِی مِن وَرَثَةِ جَنَّةِ ٱلنَّعِیمِ ﴿85﴾
और मुझे भी नेअमत के बाग़ (बेहश्त) के वारिसों में से बना
और मुझे नेमत भरी जन्नत के वारिसों में सम्मिलित कर
وَٱغۡفِرۡ لِأَبِیۤ إِنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلضَّاۤلِّینَ ﴿86﴾
और मेरे (मुँह बोले) बाप (चचा आज़र) को बख्श दे क्योंकि वह गुमराहों में से है
और मेरे बाप को क्षमा कर दे। निश्चय ही वह पथभ्रष्ट लोगों में से है
وَلَا تُخۡزِنِی یَوۡمَ یُبۡعَثُونَ ﴿87﴾
और जिस दिन लोग क़ब्रों से उठाए जाएँगें मुझे रुसवा न करना
और मुझे उस दिन रुसवा न कर, जब लोग जीवित करके उठाए जाएँगे।
یَوۡمَ لَا یَنفَعُ مَالࣱ وَلَا بَنُونَ ﴿88﴾
जिस दिन न तो माल ही कुछ काम आएगा और न लड़के बाले
जिस दिन न माल काम आएगा और न औलाद,
إِلَّا مَنۡ أَتَى ٱللَّهَ بِقَلۡبࣲ سَلِیمࣲ ﴿89﴾
मगर जो शख्स ख़ुदा के सामने (गुनाहों से) पाक दिल लिए हुए हाज़िर होगा (वह फायदे में रहेगा)
सिवाय इसके कि कोई भला-चंगा दिल लिए हुए अल्लाह के पास आया हो।\"
وَأُزۡلِفَتِ ٱلۡجَنَّةُ لِلۡمُتَّقِینَ ﴿90﴾
और बेहश्त परहेज़ गारों के क़रीब कर दी जाएगी
और डर रखनेवालों के लिए जन्नत निकट लाई जाएगी
وَبُرِّزَتِ ٱلۡجَحِیمُ لِلۡغَاوِینَ ﴿91﴾
और दोज़ख़ गुमराहों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी
और भडकती आग पथभ्रष्टि लोगों के लिए प्रकट कर दी जाएगी
وَقِیلَ لَهُمۡ أَیۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡبُدُونَ ﴿92﴾
और उन लोगों (अहले जहन्नुम) से पूछा जाएगा कि ख़ुदा को छोड़कर जिनकी तुम परसतिश करते थे (आज) वह कहाँ हैं
और उनसे कहा जाएगा, \"कहाँ है वे जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते रहे हो?
مِن دُونِ ٱللَّهِ هَلۡ یَنصُرُونَكُمۡ أَوۡ یَنتَصِرُونَ ﴿93﴾
क्या वह तुम्हारी कुछ मदद कर सकते हैं या वह ख़ुद अपनी आप बाहम मदद कर सकते हैं
क्या वे तुम्हारी कुछ सहायता कर रहे है या अपना ही बचाव कर सकते है?\"
فَكُبۡكِبُوا۟ فِیهَا هُمۡ وَٱلۡغَاوُۥنَ ﴿94﴾
फिर वह (माबूद) और गुमराह लोग और शैतान का लशकर
फिर वे उसमें औंधे झोक दिए जाएँगे, वे और बहके हुए लोग
وَجُنُودُ إِبۡلِیسَ أَجۡمَعُونَ ﴿95﴾
(ग़रज़ सबके सब) जहन्नुम में औधें मुँह ढकेल दिए जाएँगे
और इबलीस की सेनाएँ, सबके सब।
قَالُوا۟ وَهُمۡ فِیهَا یَخۡتَصِمُونَ ﴿96﴾
और ये लोग जहन्नुम में बाहम झगड़ा करेंगे और अपने माबूद से कहेंगे
वे वहाँ आपस में झगड़ते हुए कहेंगे,
تَٱللَّهِ إِن كُنَّا لَفِی ضَلَـٰلࣲ مُّبِینٍ ﴿97﴾
ख़ुदा की क़सम हम लोग तो यक़ीनन सरीही गुमराही में थे
\"अल्लाह की क़सम! निश्चय ही हम खुली गुमराही में थे
إِذۡ نُسَوِّیكُم بِرَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿98﴾
कि हम तुम को सारे जहाँन के पालने वाले (ख़ुदा) के बराबर समझते रहे
जबकि हम तुम्हें सारे संसार के रब के बराबर ठहरा रहे थे
وَمَاۤ أَضَلَّنَاۤ إِلَّا ٱلۡمُجۡرِمُونَ ﴿99﴾
और हमको बस (उन) गुनाहगारों ने (जो मुझसे पहले हुए) गुमराह किया
और हमें तो बस उन अपराधियों ने ही पथभ्रष्ट किया
فَمَا لَنَا مِن شَـٰفِعِینَ ﴿100﴾
तो अब तो न कोई (साहब) मेरी सिफारिश करने वाले हैं
अब न हमारा कोई सिफ़ारिशी है,
فَلَوۡ أَنَّ لَنَا كَرَّةࣰ فَنَكُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿102﴾
तो काश हमें अब दुनिया में दोबारा जाने का मौक़ा मिलता तो हम (ज़रुर) ईमान वालों से होते
क्या ही अच्छा होता कि हमें एक बार फिर पलटना होता, तो हम मोमिनों में से हो जाते!\"
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿103﴾
इबराहीम के इस किस्से में भी यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें से अक्सर ईमान लाने वाले थे भी नहीं
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकरतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿104﴾
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَتۡ قَوۡمُ نُوحٍ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿105﴾
(यूँ ही) नूह की क़ौम ने पैग़म्बरो को झुठलाया
नूह की क़ौम ने रसूलों को झुठलाया;
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ ﴿106﴾
कि जब उनसे उन के भाई नूह ने कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते मै तो तुम्हारा यक़ीनी अमानत दार पैग़म्बर हूँ
जबकि उनसे उनके भाई नूह ने कहा, \"क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّی لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِینࣱ ﴿107﴾
तुम खुदा से डरो और मेरी इताअत करो
निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿108﴾
और मैं इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ उजरत तो माँगता नहीं
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरा कहा मानो
وَمَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿109﴾
मेरी उजरत तो बस सारे जहाँ के पालने वाले ख़ुदा पर है
मैं इस काम के बदले तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿110﴾
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो वह लोग बोले जब कमीनो मज़दूरों वग़ैरह ने (लालच से) तुम्हारी पैरवी कर ली है
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो।\"
۞ قَالُوۤا۟ أَنُؤۡمِنُ لَكَ وَٱتَّبَعَكَ ٱلۡأَرۡذَلُونَ ﴿111﴾
तो हम तुम पर क्या ईमान लाएं
उन्होंने कहा, \"क्या हम तेरी बात मान लें, जबकि तेरे पीछे तो अत्यन्त नीच लोग चल रहे है?\"
قَالَ وَمَا عِلۡمِی بِمَا كَانُوا۟ یَعۡمَلُونَ ﴿112﴾
नूह ने कहा ये लोग जो कुछ करते थे मुझे क्या ख़बर (और क्या ग़रज़)
उसने कहा, \"मुझे क्या मालूम कि वे क्या करते रहे है?
إِنۡ حِسَابُهُمۡ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّیۖ لَوۡ تَشۡعُرُونَ ﴿113﴾
इन लोगों का हिसाब तो मेरे परवरदिगार के ज़िम्मे है
उनका हिसाब तो बस मेरे रब के ज़िम्मे है। क्या ही अच्छा होता कि तुममें चेतना होती।
وَمَاۤ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿114﴾
काश तुम (इतनी) समझ रखते और मै तो ईमानदारों को अपने पास से निकालने वाला नहीं
और मैं ईमानवालों को धुत्कारनेवाला नहीं हूँ।
إِنۡ أَنَا۠ إِلَّا نَذِیرࣱ مُّبِینࣱ ﴿115﴾
मै तो सिर्फ (अज़ाबे ख़ुदा से) साफ साफ डराने वाला हूँ
मैं तो बस स्पष्ट रूप से एक सावधान करनेवाला हूँ।\"
قَالُوا۟ لَىِٕن لَّمۡ تَنتَهِ یَـٰنُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمَرۡجُومِینَ ﴿116﴾
वह लोग कहने लगे ऐ नूह अगर तुम अपनी हरकत से बाज़ न आओगे तो ज़रुर संगसार कर दिए जाओगे
उन्होंने कहा, \"यदि तू बाज़ न आया ऐ नूह, तो तू संगसार होकर रहेगा।\"
قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوۡمِی كَذَّبُونِ ﴿117﴾
नूह ने अर्ज की परवरदिगार मेरी क़ौम ने यक़ीनन मुझे झुठलाया
उसने कहा, \"ऐ मेरे रब! मेरी क़ौम के लोगों ने तो मुझे झुठला दिया
فَٱفۡتَحۡ بَیۡنِی وَبَیۡنَهُمۡ فَتۡحࣰا وَنَجِّنِی وَمَن مَّعِیَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿118﴾
तो अब तू मेरे और इन लोगों के दरमियान एक क़तई फैसला कर दे और मुझे और जो मोमिनीन मेरे साथ हें उनको नजात दे
अब मेरे और उनके बीच दो टूक फ़ैसला कर दे और मुझे और जो ईमानवाले मेरे साथ है, उन्हें बचा ले!\"
فَأَنجَیۡنَـٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ فِی ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ ﴿119﴾
ग़रज़ हमने नूह और उनके साथियों को जो भरी हुई कश्ती में थे नजात दी
अतः हमने उसे और जो उसके साथ भरी हुई नौका में थे बचा लिया
ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا بَعۡدُ ٱلۡبَاقِینَ ﴿120﴾
फिर उसके बाद हमने बाक़ी लोगों को ग़रक कर दिया
और उसके पश्चात शेष लोगों को डूबो दिया
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿121﴾
बेशक इसमे भी यक़ीनन बड़ी इबरत है और उनमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿122﴾
और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَتۡ عَادٌ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿123﴾
(इसी तरह क़ौम) आद ने पैग़म्बरों को झुठलाया
आद ने रसूलों को झूठलाया
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ ﴿124﴾
जब उनके भाई हूद ने उनसे कहा कि तुम ख़ुदा से क्यों नही डरते
जबकि उनके भाई हूद ने उनसे कहा, \"क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّی لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِینࣱ ﴿125﴾
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿126﴾
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा मानो
وَمَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿127﴾
मै तो तुम से इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी उजरत तो बस सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) पर है
मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़ि्म्मे है।
أَتَبۡنُونَ بِكُلِّ رِیعٍ ءَایَةࣰ تَعۡبَثُونَ ﴿128﴾
तो क्या तुम ऊँची जगह पर बेकार यादगारे बनाते फिरते हो
क्या तुम प्रत्येक उच्च स्थान पर व्यर्थ एक स्मारक का निर्माण करते रहोगे?
وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمۡ تَخۡلُدُونَ ﴿129﴾
और बड़े बड़े महल तामीर करते हो गोया तुम हमेशा (यहीं) रहोगे
और भव्य महल बनाते रहोगे, मानो तुम्हें सदैव रहना है?
وَإِذَا بَطَشۡتُم بَطَشۡتُمۡ جَبَّارِینَ ﴿130﴾
और जब तुम (किसी पर) हाथ डालते हो तो सरकशी से हाथ डालते हो
और जब किसी पर हाथ डालते हो तो बिलकुल निर्दय अत्याचारी बनकर हाथ डालते हो!
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿131﴾
तो तुम ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَٱتَّقُوا۟ ٱلَّذِیۤ أَمَدَّكُم بِمَا تَعۡلَمُونَ ﴿132﴾
और उस शख्स से डरो जिसने तुम्हारी उन चीज़ों से मदद की जिन्हें तुम खूब जानते हो
उसका डर रखो जिसने तुम्हें वे चीज़े पहुँचाई जिनको तुम जानते हो
أَمَدَّكُم بِأَنۡعَـٰمࣲ وَبَنِینَ ﴿133﴾
अच्छा सुनो उसने तुम्हारे चार पायों और लड़के बालों वग़ैरह और चश्मों से मदद की
उसने तुम्हारी सहायता की चौपायों और बेटों से,
إِنِّیۤ أَخَافُ عَلَیۡكُمۡ عَذَابَ یَوۡمٍ عَظِیمࣲ ﴿135﴾
एक बड़े (सख्त) रोज़ के अज़ाब से डरता हूँ
निश्चय ही मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।\"
قَالُوا۟ سَوَاۤءٌ عَلَیۡنَاۤ أَوَعَظۡتَ أَمۡ لَمۡ تَكُن مِّنَ ٱلۡوَ ٰعِظِینَ ﴿136﴾
वह लोग कहने लगे ख्वाह तुम नसीहत करो या न नसीहत करो हमारे वास्ते (सब) बराबर है
उन्होंने कहा, \"हमारे लिए बराबर है चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत करने वाले न बनो।
إِنۡ هَـٰذَاۤ إِلَّا خُلُقُ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿137﴾
ये (डरावा) तो बस अगले लोगों की आदत है
यह तो बस पहले लोगों की पुरानी आदत है
وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِینَ ﴿138﴾
हालाँकि हम पर अज़ाब (वग़ैरह अब) किया नहीं जाएगा
और हमें कदापि यातना न दी जाएगी।\"
فَكَذَّبُوهُ فَأَهۡلَكۡنَـٰهُمۡۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿139﴾
ग़रज़ उन लोगों ने हूद को झुठला दिया तो हमने भी उनको हलाक कर डाला बेशक इस वाक़िये में यक़ीनी एक बड़ी इबरत है आर उनमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले भी न थे
अन्ततः उन्होंने उन्हें झुठला दिया जो हमने उनको विनष्ट कर दिया। बेशक इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿140﴾
और इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
और बेशक तुम्हारा रब ही है, जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَتۡ ثَمُودُ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿141﴾
(इसी तरह क़ौम) समूद ने पैग़म्बरों को झुठलाया
समूद ने रसूलों को झुठलाया,
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ صَـٰلِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ ﴿142﴾
जब उनके भाई सालेह ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यो नहीं डरते
जबकि उसके भाई सालेह ने उससे कहा, \"क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّی لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِینࣱ ﴿143﴾
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ
निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿144﴾
तो खुदा से डरो और मेरी इताअत करो
अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी बात मानो
وَمَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿145﴾
और मै तो तुमसे इस (तबलीगे रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता- मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा पर है)
मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
أَتُتۡرَكُونَ فِی مَا هَـٰهُنَاۤ ءَامِنِینَ ﴿146﴾
क्या जो चीजें यहाँ (दुनिया में) मौजूद है
क्या तुम यहाँ जो कुछ है उसके बीच, निश्चिन्त छोड़ दिए जाओगे,
فِی جَنَّـٰتࣲ وَعُیُونࣲ ﴿147﴾
बाग़ और चश्में और खेतिया और छुहारे जिनकी कलियाँ लतीफ़ व नाज़ुक होती है
बाग़ों और स्रोतों
وَزُرُوعࣲ وَنَخۡلࣲ طَلۡعُهَا هَضِیمࣱ ﴿148﴾
उन्हीं मे तुम लोग इतमिनान से (हमेशा के लिए) छोड़ दिए जाओगे
और खेतों और उन खजूरों में जिनके गुच्छे तरो ताज़ा और गुँथे हुए है?
وَتَنۡحِتُونَ مِنَ ٱلۡجِبَالِ بُیُوتࣰا فَـٰرِهِینَ ﴿149﴾
और (इस वजह से) पूरी महारत और तकलीफ के साथ पहाड़ों को काट काट कर घर बनाते हो
तुम पहाड़ों को काट-काटकर इतराते हुए घर बनाते हो?
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿150﴾
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَلَا تُطِیعُوۤا۟ أَمۡرَ ٱلۡمُسۡرِفِینَ ﴿151﴾
और ज्यादती करने वालों का कहा न मानों
और उन हद से गुज़र जानेवालों की आज्ञा का पालन न करो,
ٱلَّذِینَ یُفۡسِدُونَ فِی ٱلۡأَرۡضِ وَلَا یُصۡلِحُونَ ﴿152﴾
जो रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाया करते हैं और (ख़राबियों की) इसलाह नहीं करते
जो धरती में बिगाड़ पैदा करते है, और सुधार का काम नहीं करते।\"
قَالُوۤا۟ إِنَّمَاۤ أَنتَ مِنَ ٱلۡمُسَحَّرِینَ ﴿153﴾
वह लोग बोले कि तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हो)
उन्होंने कहा, \"तू तो बस जादू का मारा हुआ है।
مَاۤ أَنتَ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُنَا فَأۡتِ بِـَٔایَةٍ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿154﴾
तुम भी तो आख़िर हमारे ही ऐसे आदमी हो पस अगर तुम सच्चे हो तो कोई मौजिज़ा हमारे पास ला (दिखाओ)
तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है। यदि तू सच्चा है, तो कोई निशानी ले आ।\"
قَالَ هَـٰذِهِۦ نَاقَةࣱ لَّهَا شِرۡبࣱ وَلَكُمۡ شِرۡبُ یَوۡمࣲ مَّعۡلُومࣲ ﴿155﴾
सालेह ने कहा- यही ऊँटनी (मौजिज़ा) है एक बारी इसके पानी पीने की है और एक मुक़र्रर दिन तुम्हारे पीने का
उसने कहा, \"यह ऊँटनी है। एक दिन पानी पीने की बारी इसकी है और एक नियत दिन की बारी पानी लेने की तुम्हारी है
وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوۤءࣲ فَیَأۡخُذَكُمۡ عَذَابُ یَوۡمٍ عَظِیمࣲ ﴿156﴾
और इसको कोई तकलीफ़ न पहुँचाना वरना एक बड़े (सख्त) ज़ोर का अज़ाब तुम्हे ले डालेगा
तकलीफ़ पहुँचाने के लिए इसे हाथ न लगाना, अन्यथा एक बड़े दिन की यातना तुम्हें आ लेगी।\"
فَعَقَرُوهَا فَأَصۡبَحُوا۟ نَـٰدِمِینَ ﴿157﴾
इस पर भी उन लोगों ने उसके पाँव काट डाले और (उसको मार डाला) फिर ख़़ुद पशेमान हुए
किन्तु उन्होंने उसकी कूचें काट दी। फिर पछताते रह गए
فَأَخَذَهُمُ ٱلۡعَذَابُۚ إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿158﴾
फिर उन्हें अज़ाब ने ले डाला-बेशक इसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और इनमें के बहुतेरे ईमान लाने वाले भी न थे
अन्ततः यातना ने उन्हें आ दबोचा। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿159﴾
और इसमें शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और मेहरबान है
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयाशील है
كَذَّبَتۡ قَوۡمُ لُوطٍ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿160﴾
इसी तरह लूत की क़ौम ने पैग़म्बरों को झुठलाया
लूत की क़ौम के लोगों ने रसूलों को झुठलाया;
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ ﴿161﴾
जब उनके भाई लूत ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते
जबकि उनके भाई लूत ने उनसे कहा, \"क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّی لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِینࣱ ﴿162﴾
मै तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूँ तो ख़ुदा से डरो
मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿163﴾
और मेरी इताअत करो
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَمَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿164﴾
और मै तो तुमसे इस (तबलीगे रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) पर है
मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता, मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
أَتَأۡتُونَ ٱلذُّكۡرَانَ مِنَ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿165﴾
क्या तुम लोग (शहवत परस्ती के लिए) सारे जहाँ के लोगों में मर्दों ही के पास जाते हो
क्या सारे संसारवालों में से तुम ही ऐसे हो जो पुरुषों के पास जाते हो,
وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمۡ رَبُّكُم مِّنۡ أَزۡوَ ٰجِكُمۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمٌ عَادُونَ ﴿166﴾
और तुम्हारे वास्ते जो बीवियाँ तुम्हारे परवरदिगार ने पैदा की है उन्हें छोड़ देते हो (ये कुछ नहीं) बल्कि तुम लोग हद से गुज़र जाने वाले आदमी हो
और अपनी पत्नियों को, जिन्हें तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिए पैदा किया, छोड़ देते हो? इतना ही नहीं, बल्कि तुम हद से आगे बढ़े हुए लोग हो।\"
قَالُوا۟ لَىِٕن لَّمۡ تَنتَهِ یَـٰلُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُخۡرَجِینَ ﴿167﴾
उन लोगों ने कहा ऐ लूत अगर तुम बाज़ न आओगे तो तुम ज़रुर निकल बाहर कर दिए जाओगे
उन्होंने कहा, \"यदि तू बाज़ न आया, ऐ लतू! तो तू अवश्य ही निकाल बाहर किया जाएगा।\"
قَالَ إِنِّی لِعَمَلِكُم مِّنَ ٱلۡقَالِینَ ﴿168﴾
लूत ने कहा मै यक़ीनन तुम्हारी (नाशाइसता) हरकत से बेज़ार हूँ
उसने कहा, \"मैं तुम्हारे कर्म से अत्यन्त विरक्त हूँ।
رَبِّ نَجِّنِی وَأَهۡلِی مِمَّا یَعۡمَلُونَ ﴿169﴾
(और दुआ की) परवरदिगार जो कुछ ये लोग करते है उससे मुझे और मेरे लड़कों को नजात दे
ऐ मेरे रब! मुझे और मेरे लोगों को, जो कुछ ये करते है उसके परिणाम से, बचा ले।\"
فَنَجَّیۡنَـٰهُ وَأَهۡلَهُۥۤ أَجۡمَعِینَ ﴿170﴾
तो हमने उनको और उनके सब लड़कों को नजात दी
अन्ततः हमने उसे और उसके सारे लोगों को बचा लिया;
إِلَّا عَجُوزࣰا فِی ٱلۡغَـٰبِرِینَ ﴿171﴾
मगर (लूत की) बूढ़ी औरत कि वह पीछे रह गयी
सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में थी
ثُمَّ دَمَّرۡنَا ٱلۡـَٔاخَرِینَ ﴿172﴾
(और हलाक हो गयी) फिर हमने उन लोगों को हलाक कर डाला
फिर शेष दूसरे लोगों को हमने विनष्ट कर दिया।
وَأَمۡطَرۡنَا عَلَیۡهِم مَّطَرࣰاۖ فَسَاۤءَ مَطَرُ ٱلۡمُنذَرِینَ ﴿173﴾
और उन पर हमने (पत्थरों का) मेंह बरसाया तो जिन लोगों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराया गया था
और हमने उनपर एक बरसात बरसाई। और यह चेताए हुए लोगों की बहुत ही बुरी वर्षा थी
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿174﴾
उन पर क्या बड़ी बारिश हुई इस वाक़िये में भी एक बड़ी इबरत है और इनमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿175﴾
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सब पर ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
और निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَ أَصۡحَـٰبُ لۡـَٔیۡكَةِ ٱلۡمُرۡسَلِینَ ﴿176﴾
इसी तरह जंगल के रहने वालों ने (मेरे) पैग़म्बरों को झुठलाया
अल-ऐकावालों ने रसूलों को झुठलाया
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ شُعَیۡبٌ أَلَا تَتَّقُونَ ﴿177﴾
जब शुएब ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते
जबकि शुऐब ने उनसे कहा, \"क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّی لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِینࣱ ﴿178﴾
मै तो बिला शुबाह तुम्हारा अमानदार हूँ
मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُونِ ﴿179﴾
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَمَاۤ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَیۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِیَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿180﴾
मै तो तुमसे इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) के ज़िम्मे है
मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
۞ أَوۡفُوا۟ ٱلۡكَیۡلَ وَلَا تَكُونُوا۟ مِنَ ٱلۡمُخۡسِرِینَ ﴿181﴾
तुम (जब कोई चीज़ नाप कर दो तो) पूरा पैमाना दिया करो और नुक़सान (कम देने वाले) न बनो
तुम पूरा-पूरा पैमाना भरो और घाटा न दो
وَزِنُوا۟ بِٱلۡقِسۡطَاسِ ٱلۡمُسۡتَقِیمِ ﴿182﴾
और तुम (जब तौलो तो) ठीक तराज़ू से डन्डी सीधी रखकर तौलो
और ठीक तराज़ू से तौलो
وَلَا تَبۡخَسُوا۟ ٱلنَّاسَ أَشۡیَاۤءَهُمۡ وَلَا تَعۡثَوۡا۟ فِی ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِینَ ﴿183﴾
और लोगों को उनकी चीज़े (जो ख़रीदें) कम न ज्यादा करो और ज़मीन से फसाद न फैलाते फिरो
और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ और फ़साद मचाते मत फिरो
وَٱتَّقُوا۟ ٱلَّذِی خَلَقَكُمۡ وَٱلۡجِبِلَّةَ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿184﴾
और उस (ख़ुदा) से डरो जिसने तुम्हे और अगली ख़िलकत को पैदा किया
उसका डर रखो जिसने तुम्हें और पिछली नस्लों को पैदा किया हैं।\"
قَالُوۤا۟ إِنَّمَاۤ أَنتَ مِنَ ٱلۡمُسَحَّرِینَ ﴿185﴾
वह लोग कहने लगे तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हों)
उन्होंने कहा, \"तू तो बस जादू का मारा हुआ है
وَمَاۤ أَنتَ إِلَّا بَشَرࣱ مِّثۡلُنَا وَإِن نَّظُنُّكَ لَمِنَ ٱلۡكَـٰذِبِینَ ﴿186﴾
और तुम तो हमारे ही ऐसे एक आदमी हो और हम लोग तो तुमको झूठा ही समझते हैं
और तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है और हम तो तुझे झूठा समझते है
فَأَسۡقِطۡ عَلَیۡنَا كِسَفࣰا مِّنَ ٱلسَّمَاۤءِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِینَ ﴿187﴾
तो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर आसमान का एक टुकड़ा गिरा दो
फिर तू हमपर आकाश को कोई टुकड़ा गिरा दे, यदि तू सच्चा है।\"
قَالَ رَبِّیۤ أَعۡلَمُ بِمَا تَعۡمَلُونَ ﴿188﴾
और शुएब ने कहा जो तुम लोग करते हो मेरा परवरदिगार ख़ूब जानता है
उसने कहा, \" मेरा रब भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम कर रहे हो।\"
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمۡ عَذَابُ یَوۡمِ ٱلظُّلَّةِۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَذَابَ یَوۡمٍ عَظِیمٍ ﴿189﴾
ग़रज़ उन लोगों ने शुएब को झुठलाया तो उन्हें साएबान (अब्र) के अज़ाब ने ले डाला- इसमे शक नहीं कि ये भी एक बड़े (सख्त) दिन का अज़ाब था
किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। फिर छायावाले दिन की यातना ने आ लिया। निश्चय ही वह एक बड़े दिन की यातना थी
إِنَّ فِی ذَ ٰلِكَ لَـَٔایَةࣰۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِینَ ﴿190﴾
इसमे भी शक नहीं कि इसमें (समझदारों के लिए) एक बड़ी इबरत है और उनमें के बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِیزُ ٱلرَّحِیمُ ﴿191﴾
और बेशक तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है, जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
وَإِنَّهُۥ لَتَنزِیلُ رَبِّ ٱلۡعَـٰلَمِینَ ﴿192﴾
और (ऐ रसूल) बेशक ये (क़ुरान) सारी ख़ुदायी के पालने वाले (ख़ुदा) का उतारा हुआ है
निश्चय ही यह (क़ुरआन) सारे संसार के रब की अवतरित की हुई चीज़ है
نَزَلَ بِهِ ٱلرُّوحُ ٱلۡأَمِینُ ﴿193﴾
जिसे रुहुल अमीन (जिबरील) साफ़ अरबी ज़बान में लेकर तुम्हारे दिल पर नाज़िल हुए है
इसको लेकर तुम्हारे हृदय पर एक विश्वसनीय आत्मा उतरी है,
عَلَىٰ قَلۡبِكَ لِتَكُونَ مِنَ ٱلۡمُنذِرِینَ ﴿194﴾
ताकि तुम भी और पैग़म्बरों की तरह
ताकि तुम सावधान करनेवाले हो
بِلِسَانٍ عَرَبِیࣲّ مُّبِینࣲ ﴿195﴾
लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से डराओ
स्पष्ट अरबी भाषा में
وَإِنَّهُۥ لَفِی زُبُرِ ٱلۡأَوَّلِینَ ﴿196﴾
और बेशक इसकी ख़बर अगले पैग़म्बरों की किताबों मे (भी मौजूद) है
और निस्संदेह यह पिछले लोगों की किताबों में भी मौजूद है
أَوَلَمۡ یَكُن لَّهُمۡ ءَایَةً أَن یَعۡلَمَهُۥ عُلَمَـٰۤؤُا۟ بَنِیۤ إِسۡرَ ٰۤءِیلَ ﴿197﴾
क्या उनके लिए ये कोई (काफ़ी) निशानी नहीं है कि इसको उलेमा बनी इसराइल जानते हैं
क्या यह उनके लिए कोई निशानी नहीं है कि इसे बनी इसराईल के विद्वान जानते है?
وَلَوۡ نَزَّلۡنَـٰهُ عَلَىٰ بَعۡضِ ٱلۡأَعۡجَمِینَ ﴿198﴾
और अगर हम इस क़ुरान को किसी दूसरी ज़बान वाले पर नाज़िल करते
यदि हम इसे ग़ैर अरबी भाषी पर भी उतारते,
فَقَرَأَهُۥ عَلَیۡهِم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ مُؤۡمِنِینَ ﴿199﴾
और वह उन अरबो के सामने उसको पढ़ता तो भी ये लोग उस पर ईमान लाने वाले न थे
और वह इसे उन्हें पढ़कर सुनाता तब भी वे इसे माननेवाले न होते
كَذَ ٰلِكَ سَلَكۡنَـٰهُ فِی قُلُوبِ ٱلۡمُجۡرِمِینَ ﴿200﴾
इसी तरह हमने (गोया ख़ुद) इस इन्कार को गुनाहगारों के दिलों में राह दी
इसी प्रकार हमने इसे अपराधियों के दिलों में पैठाया है
لَا یُؤۡمِنُونَ بِهِۦ حَتَّىٰ یَرَوُا۟ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِیمَ ﴿201﴾
ये लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब को न देख लेगें उस पर ईमान न लाएँगे
वे इसपर ईमान लाने को नहीं, जब तक कि दुखद यातना न देख लें
فَیَأۡتِیَهُم بَغۡتَةࣰ وَهُمۡ لَا یَشۡعُرُونَ ﴿202﴾
कि वह यकायक इस हालत में उन पर आ पडेग़ा कि उन्हें ख़बर भी न होगी
फिर जब वह अचानक उनपर आ जाएगी और उन्हें ख़बर भी न होगी,
فَیَقُولُوا۟ هَلۡ نَحۡنُ مُنظَرُونَ ﴿203﴾
(मगर जब अज़ाब नाज़िल होगा) तो वह लोग कहेंगे कि क्या हमें (इस वक्त क़ुछ) मोहलत मिल सकती है
तब वे कहेंगे, \"क्या हमें कुछ मुहलत मिल सकती है?\"
أَفَبِعَذَابِنَا یَسۡتَعۡجِلُونَ ﴿204﴾
तो क्या ये लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं
तो क्या वे लोग हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे है?
أَفَرَءَیۡتَ إِن مَّتَّعۡنَـٰهُمۡ سِنِینَ ﴿205﴾
तो क्या तुमने ग़ौर किया कि अगर हम उनको सालो साल चैन करने दे
क्या तुमने कुछ विचार किया? यदि हम उन्हें कुछ वर्षों तक सुख भोगने दें;
ثُمَّ جَاۤءَهُم مَّا كَانُوا۟ یُوعَدُونَ ﴿206﴾
उसके बाद जिस (अज़ाब) का उनसे वायदा किया जाता है उनके पास आ पहुँचे
फिर उनपर वह चीज़ आ जाए, जिससे उन्हें डराया जाता रहा है;
مَاۤ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُوا۟ یُمَتَّعُونَ ﴿207﴾
तो जिन चीज़ों से ये लोग चैन किया करते थे कुछ भी काम न आएँगी
तो जो सुख उन्हें मिला होगा वह उनके कुछ काम न आएगा
وَمَاۤ أَهۡلَكۡنَا مِن قَرۡیَةٍ إِلَّا لَهَا مُنذِرُونَ ﴿208﴾
और हमने किसी बस्ती को बग़ैर उसके हलाक़ नहीं किया कि उसके समझाने को (पहले से) डराने वाले (पैग़म्बर भेज दिए) थे
हमने किसी बस्ती को भी इसके बिना विनष्ट नहीं किया कि उसके लिए सचेत करनेवाले याददिहानी के लिए मौजूद रहे हैं।
وَمَا تَنَزَّلَتۡ بِهِ ٱلشَّیَـٰطِینُ ﴿210﴾
और इस क़ुरान को शयातीन लेकर नाज़िल नही हुए
इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं।
وَمَا یَنۢبَغِی لَهُمۡ وَمَا یَسۡتَطِیعُونَ ﴿211﴾
और ये काम न तो उनके लिए मुनासिब था और न वह कर सकते थे
न यह उन्हें फबता ही है और न ये उनके बस का ही है
إِنَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّمۡعِ لَمَعۡزُولُونَ ﴿212﴾
बल्कि वह तो (वही के) सुनने से महरुम हैं
वे तो इसके सुनने से भी दूर रखे गए है
فَلَا تَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ فَتَكُونَ مِنَ ٱلۡمُعَذَّبِینَ ﴿213﴾
(ऐ रसूल) तुम ख़ुदा के साथ किसी दूसरे माबूद की इबादत न करो वरना तुम भी मुबतिलाए अज़ाब किए जाओगे
अतः अल्लाह के साथ दूसरे इष्ट-पूज्य को न पुकारना, अन्यथा तुम्हें भी यातना दी जाएगी
وَأَنذِرۡ عَشِیرَتَكَ ٱلۡأَقۡرَبِینَ ﴿214﴾
और (ऐ रसूल) तुम अपने क़रीबी रिश्तेदारों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराओ
और अपने निकटतम नातेदारों को सचेत करो
وَٱخۡفِضۡ جَنَاحَكَ لِمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ ﴿215﴾
और जो मोमिनीन तुम्हारे पैरो हो गए हैं उनके सामने अपना बाजू झुकाओ
और जो ईमानवाले तुम्हारे अनुयायी हो गए है, उनके लिए अपनी भुजाएँ बिछाए रखो
فَإِنۡ عَصَوۡكَ فَقُلۡ إِنِّی بَرِیۤءࣱ مِّمَّا تَعۡمَلُونَ ﴿216﴾
(तो वाज़ेए करो) पस अगर लोग तुम्हारी नाफ़रमानी करें तो तुम (साफ साफ) कह दो कि मैं तुम्हारे करतूतों से बरी उज़ ज़िम्मा हूँ
किन्तु यदि वे तुम्हारी अवज्ञा करें तो कह दो, \"जो कुछ तुम करते हो, उसकी ज़िम्मेदारी से मं1 बरी हूँ।\"
وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱلۡعَزِیزِ ٱلرَّحِیمِ ﴿217﴾
और तुम उस (ख़ुदा) पर जो सबसे (ग़ालिब और) मेहरबान है
और उस प्रभुत्वशाली और दया करनेवाले पर भरोसा रखो
ٱلَّذِی یَرَىٰكَ حِینَ تَقُومُ ﴿218﴾
भरोसा रखो कि जब तुम (नमाजे तहज्जुद में) खड़े होते हो
जो तुम्हें देख रहा होता है, जब तुम खड़े होते हो
وَتَقَلُّبَكَ فِی ٱلسَّـٰجِدِینَ ﴿219﴾
और सजदा
और सजदा करनेवालों में तुम्हारे चलत-फिरत को भी वह देखता है
إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِیعُ ٱلۡعَلِیمُ ﴿220﴾
करने वालों (की जमाअत) में तुम्हारा फिरना (उठना बैठना सजदा रुकूउ वगैरह सब) देखता है
निस्संदेह वह भली-भाँति सुनता-जानता है
هَلۡ أُنَبِّئُكُمۡ عَلَىٰ مَن تَنَزَّلُ ٱلشَّیَـٰطِینُ ﴿221﴾
बेशक वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है क्या मै तुम्हें बता दूँ कि शयातीन किन लोगों पर नाज़िल हुआ करते हैं
क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि शैतान किसपर उतरते है?
تَنَزَّلُ عَلَىٰ كُلِّ أَفَّاكٍ أَثِیمࣲ ﴿222﴾
(लो सुनो) ये लोग झूठे बद किरदार पर नाज़िल हुआ करते हैं
वे प्रत्येक ढोंग रचनेवाले गुनाहगार पर उतरते है
یُلۡقُونَ ٱلسَّمۡعَ وَأَكۡثَرُهُمۡ كَـٰذِبُونَ ﴿223﴾
जो (फ़रिश्तों की बातों पर कान लगाए रहते हैं) कि कुछ सुन पाएँ
वे कान लगाते है और उनमें से अधिकतर झूठे होते है
وَٱلشُّعَرَاۤءُ یَتَّبِعُهُمُ ٱلۡغَاوُۥنَ ﴿224﴾
हालाँकि उनमें के अक्सर तो (बिल्कुल) झूठे हैं और शायरों की पैरवी तो गुमराह लोग किया करते हैं
रहे कवि, तो उनके पीछे बहके हुए लोग ही चला करते है।-
أَلَمۡ تَرَ أَنَّهُمۡ فِی كُلِّ وَادࣲ یَهِیمُونَ ﴿225﴾
क्या तुम नहीं देखते कि ये लोग जंगल जंगल सरगिरदॉ मारे मारे फिरते हैं
क्या तुमने देखा नहीं कि वे हर घाटी में बहके फिरते हैं,
وَأَنَّهُمۡ یَقُولُونَ مَا لَا یَفۡعَلُونَ ﴿226﴾
और ये लोग ऐसी बाते कहते हैं जो कभी करते नहीं
और कहते वह है जो करते नहीं? -
إِلَّا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَذَكَرُوا۟ ٱللَّهَ كَثِیرࣰا وَٱنتَصَرُوا۟ مِنۢ بَعۡدِ مَا ظُلِمُوا۟ۗ وَسَیَعۡلَمُ ٱلَّذِینَ ظَلَمُوۤا۟ أَیَّ مُنقَلَبࣲ یَنقَلِبُونَ ﴿227﴾
मगर (हाँ) जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और क़सरत से ख़ुदा का ज़िक्र किया करते हैं और जब उन पर ज़ुल्म किया जा चुका उसके बाद उन्होंनें बदला लिया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि वह किस जगह लौटाए जाएँगें
वे नहीं जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अल्लाह को अधिक .याद किया। औऱ इसके बाद कि उनपर ज़ुल्म किया गया तो उन्होंने उसका प्रतिकार किया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया, उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा कि वे किस जगह पलटते हैं